सोमवार, 14 सितंबर 2020

मिस्टर चैलेंज (वेद प्रकाश शर्मा) Thriller (Part - 02)




" हम फिर कहते है .---- शब्दों को तोड़ मरोडकर पेश मत कीजिए । यह भविष्यवाणी नहीं , कंवल एक शंका थी और हमें खुशी है शंका निर्मूल निकला । सत्या के मर्डर का कारण उमके और चन्द्रमोहन के बीच का तनाव नहीं ... बल्कि कुछ और था ।

"खैर मै फिर वहीं आता हूँ और अपने सवाल को दोहरा रहा हूँ । इतने गुनाहों के बावजूद चन्द्रमोहन का रेस्ट्रोफेशन क्यों नहीं किया आपने ? "
" अगर बात अब भी आपकी समझ में नहीं आई तो मेरे सवाल का जवाब दीजिए । " वह ताव खाकर बोला ---- " क्या होता रेस्ट्रिकेशन से ? " 
" नशाखोरी बंद होती । चाकु - छुरे नहीं चलते कालिज में । " 
" तो वहां चलते जहां रेस्ट्रीकेशन के बाद चन्द्रमोहन भटकता । " 
" उससे आपको क्या ? " 
" कम से कम आप जैसे बुद्धिजीवी के मुह से यह बात शोभा नहीं देती । " अचानक बंसल मेरी आँखों में आंखे डालकर कह उठा --- " एक टीचर के नाते हमारा मकसद केवल अपने कालेज से गुण्डागदी खत्म करना नहीं बल्कि चन्द्रमोहन जैसे लड़कों की पैदावार रोकना है । इनके हाथों से चाकू छीनना है । सत्या कालिज को तालीम का चर्च कहती थी । और हम कहा करते थे कि जब लड़के इस चर्च से बाहर निकलें तो उनके हाथ अपने बुजुगों के पैरों की तरफ बढ़े । चाकु वाले लड़के को समाज के हवाले करना तो अपने फर्ज से मुँह मोड़ना है । क्या हमें अपनी मुश्किलें आसान करने के लिए समाज को खतरे में डाल देना चाहिए ? " 

" बात आपने काफी वजनदार कही बंसल साहब .... लेकिन चन्द्रमोहन के हाथ से चाकू छीनने के लिए आप कर क्या रहे थे ? " 

" बार - बार माफ करके उसकी आत्मा के बोझ तले दबा रहे थे उसे । चाहते थे कि अपराध - बोध से दबकर चन्द्रमोहन खुद हमारे सामने नतमस्तक हो जाये । मगर सत्या की गलती ने ऐसा नहीं होने दिया । एक के बाद दूसरी घटना चिडचिड़ा ही बनाती गई उसे । हम एक बार फिर कहते हैं और पूरे विश्वास के साथ कहते हैं , चन्द्रमोहन जैसे लड़के सख्ती , डांट - डपट और मारपीट से और ज्यादा बिगड़ जायेंगे । जबकि क्षमा , नर्मी और मुहब्बत उन्हें सुधार सकती है । 

" बंसल की थ्योरी ने मुझे सोचने पर मजबुर कर दिया । भरपूर कोशिश के बावजूद ये नहीं ताड़ पाया कि उसके ये विचार दिल की गहराइयों से थे या चन्द्रमोहन का रेस्ट्रीकेशन न करने के अपने गुनाह को खूबसूरत शब्दों की चाशनी में लपेटकर मुझे पिलाना चाहता था ? 

एक नौकर चाय लेकर आया । ट्रे रखकर वह चला गया । 
बंसल अपने हाथ से मेरे लिए चाय बनाने लगा और मेरे दिमाग में बन रही थी स्टोरी । उसने चाय का कप मेरे सामने रखा । ' उसके दिमाग का फ्यूज उड़ाने की खातिर मैने वो स्टोरी सुनाने की ठानी । 
चाय में पहला घूंट भरा और भूमिका शुरू की ---- " साबित हो चुका है चन्द्रमोहन और सत्या की हत्या उसने की जिसने पेपर आऊट कराकर लाखों में खेलने के ख्वाब देखे थे । 
आपके प्याल से वह कौन हो सकता है ? " 

" यह पता लगाना जैकी का काम है । " 
“ अगर मै कहूँ वो आप है । अपनी समझ में मैने धमाका किया था , पर वह चौंका तक नहीं । 

आराम से चाय का घूट भरने के बाद पूछा--- कैसे ? " अंदाज ऐसा था जैसे बात किसी और के बारे में चल रही हो ।


अंदर ही अंदर से मैं तिलमिलाया । बोला ---- " चन्द्रमोहन का रेस्ट्रीकेशन न करने के लिए आपने जो लम्बी चोड़ी दलीलें दी , मैं उसे रद्द करता हूँ । जितनी बातें अब तक मेरे संज्ञान में आइ उनके बेस पर कह सकता हूँ सत्या को आपने कभी पसंद नहीं किया । बेइंतिहा बद्तमीजी के बावजूद चन्द्रमोहन को केवल सत्या पर दबाव बनाने के लिए माफ करते रहे । सत्या उसमें चिढ़ती थी । माफ कीजिए , आपने खुद कहा ---- आप जानते थे सत्या और चन्द्रमोहन का टकराव होता रहा तो एक दिन अंजाम क्या होगा ? दरअसल आप चन्द्रमोहन के हाथों सत्या को उसी अंजाम तक पहुंचाना चाहते थे जिस तक वह पहुंची । लेकिन हुआ कुछ अलग ---- आपकी उम्मीदों के मुताबिक चन्द्रमोहन चाकु निकालने तक तो पहुंचा परन्तु हत्या करने की कुवत न पैदा कर सका । फिर भी आपको यकीन था एक दिन वह , वह भी कर देगा । यह बात आपने सत्या से कही थी । फिर सत्या ने आपको पेपर के साथ पकड़ लिया । उसे तत्काल मार डालना मजबूरी हो गयी । । बकरा पहले ही तैयार था । खून सना चाकू उसी के कमरे में छुपा दिया । नतीजा ? चन्द्रमोहन पकड़ा गया । चाकू से अपनी अंगुलियों के निशान आपने भले ही साफ कर दिये थे परन्तु चन्द्रमोहन को छोड़ने को मजबूर कर दिया । उसकी रिहाई आपको बौखलाने के लिए काफी था और आप बौखलाये । कोई ऐसी गलती की जिसके कारण सारा राज चन्द्रमोहन को इतनी जल्दी पता लग गया । मगर आप स्वयं भी जान गये कि चन्द्रमोहन सबकुछ जान गया है । ऐन मौके पर उसका मुह हमेशा के लिए बंद कर दिया । " 

" आप वो कह चुके जो कहना था ? " मेरे चुप होते ही उसने चाय का कप खाली करके प्लेट में रखा । मुझे आश्चर्य था वह जरा भी विचलित या उतेजित नजर नहीं आ रहा था । उसी तरह ठंडे स्वर में बोला ---- " आपने साबित कर दिया कि आप एक अच्छे लेखक है लेकिन महोदय , हत्या के केस कहानियों से हल नहीं होते । उसके लिए सुबूत चाहिए और सुबूत आप नहीं जुटा सकते " 

" ओह ! इतना भरोसा है खुद पर ? " 
" इससे भी ज्यादा । " कहने के साथ एक बार फिर सोफे से खड़ा हो गया और चहलकदमी करता हुआ बोला ---- " इस भरोसे का सबसे बड़ा कारण ये है मिस्टर वेद कि जो कुछ आपने कहा , वह केवल आपकी कल्पना थी और कल्पना के सुबूत नहीं मैंने अपना अगला तीर चलाने के लिए मुंह खोला ही था कि बंसल साहब की पत्नी ड्राइंगरूम में आई । उसकी हालत देखते ही मैं चौंक पड़ा । चेहरा कोरे कागज की तरह सफेद नजर आ रहा था । बुरी तरह हड़वड़ाई हुई थी वह । बोली ---- " ग - गजब हो गया ! " 
" क्या हुआ ? " बंसल उसकी तरफ घूमा । 

निर्मला ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन मुझ पर नजर पड़ते ही ठिठकी । पसीने से तरबतर अपने चेहरे के साथ बंसल की तरफ लपकी । उसका हाथ पकड़कर एक कोने में ले गया और जल्दी - जल्दी फान में कुछ कहा । 

सुनते ही उछल पड़ा बंसल ---- " क - क्या ? कहां गया वह ? " 
" म - मुझे नहीं पता । " कंठ सूखा होने के कारण वह बड़ी मुश्किल कह सकी । 

बंसल का सम्पूर्ण जिस्म पसीने से इस कदर भरभरा उठा जैसे सभी के सामने शर्त लगाकर पसीना उगला हो । चेहरा ऐसा नजर आने लगा जैसे किसी ने हल्दी का उबटन लगा दिया हो । ये वो शख्स था जो मेरे द्वारा सीधे सीधे हत्यारा कहने के बावजूद पूरी तरह नियंत्रण में रहा था ।

उसकी यह हालत देखकर मारे उत्सुकता के मेरा बुरा हाल हो गया । सोफे से खड़ा होता हुआ लगभग चीख पड़ा मैं ---- " क्या हुआ मिस्टर बंसल ? कौन कहाँ गया ? " 
" क - कुछ नहीं । " लाख चाहने के बावजूद बंसल अपनी हकलाहट नहीं रोक सका ---- " हमारी कोई घरेलु प्राब्लम है । " 
" आप झुठ बोल रहे है " 
वह चीखा ---- " आपको तो हमारी हर बात झूठ नजर आ रहा है । " 
" क्योंकि आप बोल ही झूठ रहे है । " मैं उससे ज्यादा जोर से चीखा ---- " घरेलू प्राब्लम है तो बताइए । उसे बताने में आपको क्या एतराज है ? " 
" घरेलू प्राब्लम बाहर बालों को नहीं बताई जाती । " 
मैं वो बात जानने के लिए पागल हो उठा था जिसने इन पति - पत्नी की हवा खराब कर दी थी । अतः झपटकर निर्मला के नजदीक पहुंचा । उसके दोनों कंधो को पकड़कर झंझोड़ता हुआ बोला ---- " आप बताइए मिसेज बंसल । आखिर वो क्या बात है जिसने पहले आपके चेहरे पर हवाइयां उड़ा रखी थी -- अब मिस्टर बंसल को पीला कर दिया है ? " 
क्रोधित बंसल मुझे जबरदस्ती निर्मला से अलग करता दहाडा ---- " आप हमारे साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते मिस्टर ये । " 
" ऐसा क्या है जिसे आप छुपा रहे हैं ? " 
" हम आपको हर बात बताने लिए बाध्य नहीं हैं । " 
" ओ.के .। " मैंने भी ताव में आकर कहा ---- " मुझमें कुव्वत होगी तो पता लगाकर रहूंगा । उस स्टोरी को मत भूलियेगा जिसे आप मेरी काल्पनिक स्टोरी बता रहे थे । " कहने के बाद तमतमाया हुआ मैं ड्राइंगरूम से बाहर निकल गया । दिमाग बुरी तरह झन्ना रहा था । छठी इन्द्रिय बार - बार कह रही थी ---- ' हो न हो , बात कोई इसी केस से कनेकटेड है । लाख कोशिश के बावजूद समझ नहीं पा रहा था कि आखिर ऐसी क्या बात हो सकती है जिसने पूरी तरह शान्त बंसल में तूफान ला दिया।

बंगले के लान से गुजरते वक्त जी चाहा ---- पलटकर किसी और तरफ से इमारत में पहुंचने की कोशिश करूं । खुली हुई खिड़की या दरवाजे का फायदा उठाऊं । मेरे निकलते ही ये यकीनन आपस में खुलकर बात करेंगे । वे बाते मुझे बता सकती थी कि बात क्या है ? लोहे वाले गेट के नजदीक पहुंचकर मैंने पलटकर इमारत की तरफ देखा । महसुस किया --- ड्राइंगरूम की खिड़की के पीछे से चार आंखें मुझे ही देख रही है । मैं चुपचाप निकल आने के लिए मजबूर था । मुझे जैकी को फोन करना चाहिए । अपना यह विचार मुझे जँचा।


मुझे तो बंसल ने टरका दिया । मगर जैकी एक पुलिसिया था । उसे नहीं टरका सकता था वो । वह पुलिस वाले हथकंडे इस्तेमाल कर सकता था । फिर , हिमानी वाली घटना की जानकारी भी उसे देनी ही थी । 

मैं स्टॉफ़ रूम की तरफ बढ़ा । बड़ा ही था कि चौंका । प्रिंसिपल की एम्बेसडर उसके बंगले का लोहे वाला गेट क्रास करके बाहर निकली । मैंने तेजी से खुद को एक झाड़ी के पीछे छुपा लिया । कुछ देर बाद एम्बेसडर ठीक मेरे सामने से गुजरी । 
मैंने साफ देखा ---- उसे बंसल ड्राइव कर रहा था । दिमाग में बिजली की सी गति से सवाल कौंधा ---- कहां जा रहा है वह ? चन्द मिनट पहले किसी ऐसी बात का पता लगना जिसने उसके होश उड़ा दिये थे मुझसे झड़प और तुरन्त बाद निकलना । मुझे लगा ---- वह किसी खास जगह जा रहा है । कहा ? जानना चाहिए । 

यह विचार दिमाग में आते ही मैं कॉलिज के मुख्य द्वार की तरफ दौड़ा । मारुति दरवाजे के बाहर खड़ी थी । मुझे भागते देखकर हड़बड़ाए हुए गुल्लू ने कहा ---- " क्या हुआ सर ? " 

मैंने सड़क के दोनों तरफ देखा ---- एम्वेसडर नजर नहीं आई । अपनी गाड़ी का लॉक खोलते हुए चीखकर गुल्लू से पूछा ---- " प्रिंसिपल किधर गया है ? " 
" उभर । " गुल्लू ने हाथ के इशारे से बताया । 

फिर क्या था ? मैंने गाड़ी दौड़ा दी । उस क्षण मुझे नहीं मालूम था सही कर रहा हूं या गलत ? बस जो सूझ रहा था . किये चला गया । गाड़ी - की रफ्तार अस्सी से कम नहीं थी । हापुड स्टैण्ड के चौराहे पर अंततः मैंने उसे पकड़ लिया । 

दूसरे व्हीकल्स के साथ एम्बेसडर रेड लाइट पर खड़ी थी । मैंने मारुति एक सूमो की बैक में छुपा ली । चौराहे की लाइटें टूटी पड़ी थी । उनका काम वहां तैनात पुलिसिए और होमगार्ड कर रहे थे । उनके इशारे पर इस तरफ ट्रैफिक चला ।


एम्बेसडर बैगमपुल जाने वाले मार्ग पर मुड़ी । मैंने थोड़ा फासला बनाये रखकर फालो किया । अब रफ्तार की न मुझे जरूरत थी , न ही उस गति से गाड़ी चला सकता था । रिक्शों . तांगों , साइकिलों , टैम्पू और भैसा बुग्गी आदि का बेतरतीय ट्रैफिक किसी को भी रफ्तार से ड्राइविंग नहीं करने दे सकता था । अब मेरी एक ही ड्यूटी धी ---- प्रिंसिपल को पता न लग पाये मैं उसके पीछे हूं । भरपूर सावधानी बरतता गुलमर्ग सिनेमा और बच्चा पार्फ के सामने से गुजरा । बेगमपुल के चौराहे से एम्बेसडर आबूलेन की तरफ मुड़ गयी । मैं पीछे लगा रहा । और फिर , एम्बेसडर एक बहुमंजिला इमारत के सामने रूकी । 

प्रिंसिपल बाहर निकला । गाड़ी लॉक की और इमारत में दाखिल हो गया । वह तनाव में नजर आ रहा था । उस इमारत की हर मंजिल पर ढेर सारे ऑफिस थे । जानता था . अगर एक वक्त के लिए भी वह आंखों से ओझल हो गया तो नहीं जान सकूँगा कि इमारत में किससे मिला ? क्या वात की ? अतः कार जहा थी , वहीं छोड़कर इमारत में दाखिल हो गया । वह लिफ्ट में दाखिल होता नजर आया । लिफ्ट का दरवाजा बंद हुआ । मैं दौड़कर उसके नजदीक पहुंचा । लिफ्ट एक ही थी । एक विचार आया ---- सीड़ियों के जरिए पीछा करने की कोशिश करूं । अगले पल मैंने यह मूर्खतापूर्ण विचार दिमाग से छिटका । नजरें लिफ्ट के दरवाजे के ऊपर गड़ाये रखीं । ऊपर की तरफ सफर करती लिफ्ट चौथी मंजिल पर रुकी । मैंने उसे ग्राउण्ड फ्लोर पर लाने के लिये बदन पुश किया । लिफ्ट ने नीचे आना शुरू कर दिया । कुछ देर बाद उसका दरवाजा खुला । अंदर दाखिल होते ही फोर्थ फ्तोर के लिए यात्रा शुरू कर दी । चौथी मंजिल पर लिफ्ट रुकी । दरवाजा खुला । मैं बाहर निकला । 

अगले दिन के अखवारों में हैडिंग था ---- कॉलिज की घटनाओं में नया मोड़ ! . वेद प्रकाश शर्मा का अपहरण ! इस हैडिंग ने मेरठ के लोगों और मेरे परिचितों में जो हंगामा मचाया सो तो मचा ही , मेरे परिवार की हालत सबसे ज्यादा खराब थी । मधु बार - बार कह रही थी ये सब मेरी वजह से हुआ है । मैंने ही उन्हें रियल स्टोरी लिखने के लिए उकसाया था । मै सोच भी नहीं सकती थी कि ऐसा होगा । जरूर हत्यारे के चंगुल में फंस गये हैं । फोन की घंटी बार - बार बज रही थी।




दृर - दूर से परिचितों और पाठकों के फोन आ रहे थे । उस गहन अंधकार में मधु को एक आशा की किरण नजर आई । विभा।

विभा जिन्दल और फिर फोन की घण्टी बजी । रिसीवर मेरी बड़ी बेटी करिश्मा ने उटाया । दूसरी तरफ से कहा गया ---- " मधु बहन हैं ? " " आप कौन ? " करिश्मा ने पूछा । “ जिन्दलपुरम से विभा जिन्दल । " मारे उत्साह के उछल पड़ी करिश्मा । वगैर माऊथीस पर हाथ रखे मधु को आवाज लगाकर बुलाया । मधु भागती दौड़ती फोन के नजदीक आई । करिश्मा के हाथ से रिसीयर छीना और बोली ---- " मधु बोल रही हूं विभा बहन , गजब हो गया । " " 

हाँ , मैंने पेपर में पड़ा । " विभा की उत्तेजित आवाज उभरी ---- 
" कैसे हुआ ? " 

" विभा बहन ! मैंने तो इनसे पहले ही कहा था आपको बुला लें मगर ये नहीं माने । " मधु बड़ी मुश्किल से खुद को फफकने से रोक रही थी ---- " मुसीबत की इस घड़ी में आप ही मेरी मदद कर सकती हैं । मेरठ आ जाइए । " 

" मैं निकलने ही वाली थी । सोचा फोन करना मुनासिब होगा । क्या तुम कोई ऐसी बात बता सकती हो जो अखबार में न छपी हो ? " " अखबार पढ़ने का होश ही कहां है मुझे ! " " घबराने से काम नहीं चलेगा मधु बहन । होसला रखो । भगवान ने चाहा तो सब ठीक हो जायेगा । वेद अपना नया उपन्यास उन घटनाओं पर लिख रहा था । एक इन्वेस्टिगेटर की तरह पुछताछ करता फिर रहा था वह और इस्पैक्टर जैकी के हवाले से छपा है , मेरी इन्फ़ारमैशन के मुताबिक अंत में वेद जी ने प्रिंसिपल से पूछताछ की ।


कॉलिज के चौकीदार ने बताया , वह प्रिंसिपल की कार के पीछे निकले थे और वेद की मारुति आबूलेन नामक किसी इलाके में खड़ी मिली है । प्रिंसिपल का कहना है मुझे मालूम नहीं था वेद जी मेंरा पीछा कर रहे हैं । मैं आबूलेन गया जरूर लेफिन चाट खाकर लौट आया ! " 

" हां " मधु ने कहा ---- ' ' यह सब मुझे जैकी ने बताया । 
" इसके अलावा कोई और इन्फारमैशन है तुम्हारे पास ? " 
" कालिज में किसी ने उनकी पीठ पर एक कागज चिपकाया था । मुझे तभी से डर था कि .... " वह सब मै पढ़ चुकी हूँ । विभा ने मधु की बात बीच में काटकर कहा ---- " जो हुआ , उससे जाहिर है वेद की इन्वेस्टिगेशन ने मि ० चैलेंज को हिला डाला । तभी उसे अपहरण की जरूरत पड़ी । चिन्ता मत करना , मै आ रही हूं । बारह बजे तक पहुंच जाऊगी । " कहने के बाद दूसरी तरफ से रिसीवर रख दिया गया । उसके बाद शुरू हुआ ---- विभा का इंतजार !


इस वीच जैकी खामोश नहीं बैठा था । अपनी तरफ से मुझे तलाश करने की भरपूर कोशिश कर रहा था वह लेकिन प्रत्येक कोशिश वहां जाकर रुक जाती जहां मेरी गाड़ी खड़ी मिली थी । मधु चिंतित जरूर थी लेकिन हड़बड़ाहट पर नियंत्रण पा चुकी थी । विभा को पहुंचते - पहुंचते एक बज गया । जब वह घर पहुंची तो शुभचिन्तकों की भीड़ के साथ इंस्पैक्टर जैकी भी मौजूद था । अपनी चमचमाती हुई राल्स - रॉयल में आई थी वह । 

वह जिसका नाम " विभा ' है । विभा जिन्दल ! दुध से गोरे और पूर्णिमा के चांद से गोल मुखड़े वाली विभा ! इन्द्र के दरबार की मेनका सी विभा ! गुलाब की पंखुड़ियों से होंठ ! सुतवा नाक ! कंठ ऐसा जैसे कांच का बना हो । कोल्ड ड्रिंक पिये तो कंठ से नीचे उतरती साफ नजर आये । घने , काले और लम्ये वालों को अपने चीड़े मस्तक के आस - पास से पूरी सख्ती के साथ खींचकर एक जूड़ा बनाये रहता है वह । 

इसके बावजूद वालों को एक मोटी लट दायें कपोत पर अठखेलियां करती रहती है । कमान - सी भवों के नीचे उसकी आंखें हैं । सीप की मानिन्द ! मृगनयनी ! उन आंखों में चमक है । ऐसी दिव्य चमक कि अगर एकटक आपकी तरफ देखने लगे तो मेरी गारन्टी है दो सैकिण्ड से ज्यादा आप उसकी तरफ नहीं देख सकोगे । अपनी पलकें झुकानी पड़ेंगी आपको । दिल में घबराहट होने लगेगी । 

ईश्वर ही जाने विभा के व्यक्तित्व में उसने ऐसा क्या जादू भरा है कि उसकी तरफ देखने वाले प्रत्येक व्यक्ति की आखों में सिर्फ और सिर्फ श्रद्धा के भाव उभरते हैं । अथाह श्रद्धा के ! दिल रोशनी से भर जाता है । हमेशा की तरह इस वक्त भी वह अपने परम्परागत लिबास में थी । सुगठीत शरीर पर सफेद साड़ी । हंस के जिस्म - सी बेदाग। रेशमी।
उसी से मैच करता , गोल गले का ब्लाउज । गोरी और गोल कलाइयों में कोहनियों के ऊपर कटा हुआ ।


हर शख्स मंत्र - मुग्ध सा उसे देखता रह गया था । उसके व्यक्तित्व के जादू से लोग अभी बाहर नहीं निकल पाये थे कि मेरी बीच वाली बेटी गरिमा ने अंदर जाकर मधु को उसके आगमन की सूचना दी । मधु बाहर की तरफ लपकी और फिर , विभा के सामने पड़ते ही उससे लिपटकर सिसक पड़ी वह । 

" बाह मधु बहन । ' विभा के कंठ से मंदिर की घंटियों की घनघनाइट निकली ---- " ये भी कोई तरीका है मेहमान के स्वागत का ? वेद तो बड़ी तारीफ करता था तुम्हारी ? कहता था एक बार जो मेरे घर आता है , मधु की मेहमाननवाजी की तारीफ किये बगैर नहीं जाता । 

" मधु की सिसकियां रुलाई में तब्दील हो गयीं । “ विश्वास रखो बहन । वेद को कुछ नहीं हो सकता । मैंने तुम्हारे माथे की बिंदिया में हमेशा एक दिव्य ज्योति जगमगाती देखी है । विभा ने कहा ---- " आओ ! अंदर चलें । 
" करिश्मा - गरिमा ने मधु को विभा से अलग किया । सब लोग अंदर आ गये । लाबी में ! छोटी बेटी खुश्बू ने हाथ से सोफे की तरफ इशारा करके कहा ---- " बैठो आटी ! " विभा थोड़ी झुकी । खुश्बू के गाल पर एक चुम्बन अंकित किया । प्यार से उसे थपथपाती बोली ---- " अकेली नहीं खुश्बू बेटी ! मैं तुम्हारे पापा के साथ बैठकर चाय पियूगी । ' ' उसके वाक्य पर सब चौके । खुश्बू ने पूछा ---- " आपको मेरा नाम कैसे पता लगा आंटी ? " " अपने पैन से अपने हाथ पर लिखने की आदत छोड़ दो । ' विभा ने मोहक मुस्कान के साथ कहा ---- " बगैर तुम्हारे बताये कभी किसी को पता नहीं लगेगा । " 

खुश्बू ने अपनी हथेली देखी । बोली ---- " पर आंटी , इस पर तो मैंने केवल K लिखा है । " " और ये बात हमें पहले से मालूम है कि हमारे फ्रेंड की छोटी बेटी का नाम खुश्बू है । " 
" बैरी गुड । " शगुन यह उठा --... " झंड हो गई खुश्बू की । " विभा ने उससे कहा ---- " तुम मास्टर शगुन हो न ?

" आप विभा आंटी है न ? " शगुन ने पलटकर सवाल किया । ठहाका लगा उठी विभा । बोली ---- " तुम हो मेरी टक्कर के ! मिलाओ हाथ " 
शगुन ने हाथ मिलाया । 
बच्चे तो खैर बच्चे थे । गमगीन माहौल में विभा का ठहाका लगाना सबको अजीब लगा । सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे । विभा मधु के नजदीक पहुंची . फिर वहां मौजूद लोगों के लिए अणुबम से भी जबरदस्त धमाका किया उसने ---- " कमाल है मधु बहन ! मैं तुम्हारे लिए खुशखबरी लेकर आई और तुम मुंह लटकाये ख्ड़ी हो । " 
" ख - सुशखबरी ? 
" मधु के चेहरे पर चमक आई । 
" समझो कि मैं वेट को ढूंढ चुकी हूं । " 
" क - क्या ? " अकेली मधु के नहीं , वहां मौजूद हर शख्स के हलक से आश्चर्य मिश्रित चीख निकल गयीं । मधु तो पागल हो गयी मानो । विभा को झंझोड़ती हुई चीख पड़ी वह ---- " य - ये क्या कह रही हो विभा बहन ? स - सच बोल रही हो म तुम ? मजाक तो नहीं कर रहीं मुझसे ? " 
" ऐसा मजाक विभा जिन्दल कभी किसी से नहीं कर सकती । " " त - तो कहा है वो ? कैसे ? " 
" फिक्र मत करो ! मेरे खयाल से उसे महफूज होना चाहिए । " 
" मगर आंटी ! पापा हैं कहां ? " करिश्मा ने पूछा । 
उसको वगैर जवाब दिए कह जैकी की तरफ पलटकर बोली ---- " क्या तुम मेरा एक छोटा सा काम कर सकते हो मिस्टर जैकी ? " " काम तो आप जितने बतायेंगी मै कर दूंगा । " चेहरे पर हैरत का सागर लिए वह कहता चला गया ---- " म - मगर अभी अभी जो बात आपने कही . उसका मतलब समझ में नहीं आया । क्या आप वास्तव में वेद जी का पता लगा चुकी है ? " 
" अभी ये तो पता नहीं लगा कि वह कहां है मगर अपहरण करने वाले को ट्रेस जरूर कर चुकी हूं । " 
“ कि किसने ? " मधु ने पूछा ---- " किसने किडनैप किया उन्हें ? " 
" उतावलेपन से काम मत लो मधु बहन । धैर्य बड़ी चीज है । " 
सभी चमत्कृत रह गये थे । जैकी ने उन सबका नेतृत्व किया ---- " विभा जी , कमाल की बात कर रही हैं आप । आई हैं नहीं और कह रही हैं किडनैपर का पता लगा चुकी है । " 
" कोन कह रहा है मै आई नहीं ? " विभा के होठों पर मोहक मुस्कान तैर रही थी ---- " तुम्हारे सामने आई हुई खडी हूं । " 
" ल - लेकिन .... आपने पता कब लगा लिया कि ....


" एक घण्टा लेट आई हूँ । कोई तो बात होगी ? " 
" फ - फिर भी " 
मैं किसी छोटे से काम का जिक्र कर रही थी । " 

"बोलिए । " 
“ आबूलेन पर स्थित जिस इमारत के बाहर से वेद की कार मिली , मेरे ख्याल से उसमें कुल मिलाकर दो सौ के आसपास दुकानें और आफिस होंगे । क्या मुझे उन सबकी लिस्ट मिल सकती है ? " 
" लिस्ट में क्या जानकारी चाहिए ? " 
" कौन सा ऑफिस किस चीज का है और वहां क्या काम होता है ? " 
" वामुश्किल एक घण्टे में लिस्ट मिल जायेगी । " " ये काम खुद करोगे या किसी से कराओगे ? " " जैसा आप चाहेंगी । 
" मुझ फौरन कहीं जाना है ! चाहती हूं साथ चलो । " 
" अभी इन्तजाम किये देता हूँ । " कहने के साथ जैकी ने अपने सेल्यूलर से थाने का नम्बर डायल किया । एक सब - इंस्पेक्टर को वह करने का हुक्म दिया जो विभा चाहती थी । यह विभा के व्यक्तित्व और आते ही उसके द्वारा किये गये धमाके का जादू था कि इस्पैक्टर जैकी उसके मातहत की तरह काम करने लगा । 

सेल्यूलर आफ करते हुए उसने कहा ---- " मैं फ्री हूँ विभा जी । " " आओ । 
" वह दरवाजे की तरफ बढ़ी --- . " वेद को लेकर आते हैं । " मधु और दूसरे लोगों ने उसे रोकना चाहा । चाय नाश्ते के लिए कहा परन्तु विभा रुकने वाली कहां थी ? मधु से कहा ---- " मुझे चाय में चीनी नहीं , तुम्हारी मुस्कान की मिठास चाहिए और यह केवल तब मिल सकती है जब वेद साथ हो ! " 


शगुन कूदकर विभा के सामने आता बोला ---- " आंटी , मैं चलूँ ? " एक सैकिण्ड कुछ सोचा विभा ने ! फिर होठो पर मुस्कान लाती बोली --- " जासूसी सीखनी है । " " यस " " कम ऑन ! " 
रोल्स रायल वर्दीधारी शोफर ड्राइव कर रहा था । विभा और शगुन पीछे थे । जैकी शोफर की बगल वाली सीट पर । विभा शगुन से इस तरह बातें कर रही थी कि जैकी को लगा ---- उसे कोई टेंशन नहीं है । ऐसा विल्कुल नहीं लग रहा था जैसे बह किसी अपहरण के केस पर काम कर रही है । अपहरण भी उसका जो उसका दोस्त है । जिसकी खातिर जिन्दलपुरम से भागी - भागी मेरठ आई है । गाड़ी जब तेजगढ़ी के चौराहे पर पहुंची और शोफर ने रास्ता पूछने वाले अंदाज में जैका की तरफ देखा तो जैकी ने
गर्दन घुमाकर बिभा से सवाल किया। " हम जा कहाँ रहे है बिभा जी"

" वो बल्लम कहां है जिससे चन्द्रमोहन की हत्या हुई ? " विभा ने उल्टा सवाल पूछा । 

पुलिस के फिंगर प्रिन्ट्स डिपार्टमेन्ट के कब्जे में । " 
“ वहीं चलो । " कहकर विभा पुनः शगुन के साथ खेल में लग गयी । जैकी के जहन में जबरदस्त खलबली मच चुकी थी । दिमाग में ढेर सारे सवाल सर्प बनकर सरसराने लगे । अंततः स्वयं को यह कहने से वह रोक न सका -.-- " बात समझ में नहीं आई विभा जी , वेद जी के गायब होने का बल्लम से क्या सम्बन्ध ? " 

" बेचैन होने की जरूरत नहीं है । कुछ देर बाद सब समझ में आ जायेगा । मेरे ख्याल से बल्लम से भी चाकू की तरह किसी की अंगुलियों के निशान नहीं मिले होंगे । " 
“ जी । " जैकी ने धाड़ - धाड़ बज रहे अपने दिल पर काबू पाने की चेष्टा करने के प्रयास में कहा ---- " लगता है हत्यारा गलब्स पहनफर वैपन इस्तेमाल करता है । " 

" ग्लव्स इस्तेमाल करना कोई खास चतुराई नहीं है । आजकल की फिल्मों और वेद जैसे लेखकों के उपन्यासों ने लोगों को काफी शिक्षित कर दिया है । अखबार के मुताबिक कालिज के चौकीदार से हत्यारे की मुठभेड़ हो चुकी है । क्या कहना है उसका ? हेलमेट वाला दस्ताने पहने था या नहीं ? " 
" सारी मैडम ! यह सवाल हमने नहीं किया । " 

" सबसे बड़ी कभी यही होती है पुलिसियों में । दिमाग पर जोर नहीं देंगे । वह नहीं पूछेंगे जो पूछना चाहिए । उन सवालों पर जोर देंगे जिनके जवाब मिल भी जाये तो आगे बढ़ने में कोई मदद नहीं मिलती या फिर , थर्ड डिग्री पर जोर देंगे । ये बात तुम्हारी समझ में क्यों नहीं आती कि यदि दिमाग खुला रखकर सामने वाले को अपने सवालों से घेरो तो सामने वाला किसी भी तरह कतराकर नहीं निकल सकता । उससे वे बाते उगलवा सकते हो जो तुम लोगों के फेमस थर्ड डिग्री तरीके से नहीं जानी जा सकती । 

जैकी ---- जो वकौल अपने , थर्ड डिग्री का धुरंधर था , कुछ बोल न सका । शायद अपनी झेप मिटाने के लिये पूछा ---- " आपने वाकई किडनैपर का पता लगा लिया है या घर पर मधु भाभी को सांत्वना देने की खातिर .... " 

किसी को झूठी सांत्वना नहीं दिया करती जैकी । " 
" आपने तो चमत्कृत कर दिया है मुझे । इतनी जल्दी किडनैपर का पता कैसे लगा लिया ? " 
" आदमी दिमाग की आंखें खुली रखे तो सफलता जल्दी मिलती है । " 
" लगता है आपसे कुछ सीखने को मिलेगा ! " 

" मुझे खुशी है तुममें सीखने की भावना है । " 

" उस इमारत में मौजूद दुकानें और आफिसों की लिस्ट का क्या करेंगी आप ? काफी दिमाग घुमाने के बावजूद नहीं समझ पाया कि उससे वेद जी तक पहुंचने में क्या मदद मिल सकती है ?

पक्का नहीं है मदद मिल ही जाये । मगर उम्मीद है । एक अच्छे इन्वेस्टिगेटर को हर वह काम करना चाहिए जिससे आगे वढ़ने का रास्ता मिलने की संभावना हो । 

वैसे तुमने सब - इंस्पैक्टर से कह दिया न कि लिस्ट बनते ही सैल पर सूचित करे । " 
" जी ! कर दिया था । 
“ समझदारी की । " कहने के साथ विभा मुस्कराई । 
राल्स रॉयल जेल चुंगी के चौराहे पर पहुंच चुकी थी । 
शोफर ने पूछा ---- " किधर साहब ? " 
" सीधे । " जैकी ने कहा । 
विभा बोली ---- ' " फिलहाल अपना दिमाग शोफर को रास्ता बताने में खर्च करो । यह हेडेक जहन में रखने की जरूरत नहीं कि केस कैसे हल होगा ? बस यूं समझो केस मै हल कर चुकी हूं । " 
" आंटी ! " शगुन ने कहा ---- " आप जादूगरनी है क्या ? " 
बरबस ही खिलखिलाकर हंस पड़ी विभा । बोली ---- " शैतान ! तुम्हें ऐसा क्यों लगा ? " 

" कल से पता नहीं कितने लोग पापा का पता लगाने में जुटे हैं । भागदौड़ मची हुई है मगर पता नहीं लगकर दे रहा ! और जब आप आई है , एक ही बात कहे जा रही है ---- यह कि आपको पता है पापा कहां है । कहीं आप ही ने तो नहीं छुपा रखा उन्हें ? " शगुन का अंतिम वाक्य सुनकर ठहाका लगाकर हंस पड़ी विभा ।

" और ये बेद - वेद ! पापा के लिए आप बोलती कैसे है ? इस तरह तो मम्मी भी नहीं बोलतीं । " 

हंसती हुई विभा ने कहा ---- " यही तो फर्क है पत्नी और फ्रेन्ड में । " 
" तुम्हारी क्लास में कोई लड़की है ? " 
"बहुत है।"
" कौन - कौन ? " 
" श्वेता ! मंजरी । काजोल ! रुचि और .... " 

सबके नाम क्यों ले रहे हो ? " 
" और कैसे बताऊ ? वे मेरी दोस्त हैं । " 
" उसी तरह वेद मेरा दोस्त है । दोस्तों के नाम ही लिये जाते हैं । " 
" अच्छा ! ये बात है । तब तो पापा भी आपको सिर्फ विभा कहते होंगे ? " 
" नहीं तो क्या तेरी तरह आंटी कहेगा ?

इस बार शगुन खिलखिलाकर हंस पड़ा । " बड़ा वेवाक । बड़ा पवित्र । और सभी औपचारिकताओं से दूर है ये रिश्ता ---- 

दोस्तो ! तभी तो अपनी पढ़ाई के आखिरी दिन मैंने वेद से कहा था कोई और नाम देकर इस रिश्ते को कलंकित मत करो । और मुझे खुशी है बेद ने उसे निभाया । आज कोई तो है जिसे मै पूरी बेबाकी के साथ नाम लेकर पुकार सकती हूं । कोई तो है जिसका नाम जितनी ज्यादा बदतमीजी के साथ लूँ उतना ही अपनापन छलकेगा । 

दोस्तों को कभी मत खोना बेटे । बड़े होने के बाद ये नहीं मिल पाते । दुर्लभ हो जाते हैं । जो मिलता है , चेहरे पर लाख - लाख मुखौटे लगाकर मिलता है । " 
" अरे ! आप तो सीरियस हो गई आंटी । " मटका सा लगा विभा को । खुद को संभाला उसने । रॉल्स - रोयल एक इमारत की चारदीवारी के अंदर दाखिल होकर जैकी के बताये स्थान पर रुकी । 
विभा ने कहा ---- " हम लोग यही बैठे हैं । तुम बल्लम ले आओ । " जैकी यह सोचता हुआ उतरा कि खेल आखिर चल क्या रहा है ?

राल्स रोयल कॉलिज में दाखिल हुई । सेल्यूलर बजने लगा । जैकी उसे ऑन करने की प्रक्रिया में जुट गया । विभा ने कहा ---- " सब- इंस्पैक्टर का फोन हो तो कहना लिस्ट लेकर प्रिंसिपल के बंगले पर पहुंच जाये । 

फोन उसी का था और जैकी ने यही कहा जो विभा चाहती थी । गाड़ी बंगले के पोर्च में खड़ी एम्बेसडर के पीछे रुकी । जैकी ने पूछा ---- " क्या प्रिंसिपल ही किडनैपर है ? " 
" तेल देखो और तेल की धार देखो । " कहने के साथ विभा शोफर द्वारा खोले गये गेट से बाहर निकली । 
जैकी ने पूछा ----- " वल्लम लेना है क्या ? 

" गाड़ी में रहने दो । " कहने के साथ उसने शोफर की आंखों से कुछ संकेत किया । अगला गेट खोलकर जैकी बाहर निकला । 
" आंटी । " शगुन ने पुछा ---- " आपने ड्राइवर अंकल को क्या इशारा किया ? " 
" चुप शैतान । " विभा ने अपना हाथ उसके मुंह पर रख दिया । ड्राइबर होठो ही होंठों में मुस्कुरा उठा । 
ड्राइंगरूम में जब जैकी ने वंसल को विभा का परिचय दिया तो वह बोला ---- " आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई ! वैठिए । " विभा एक सोफा चेयर पर बैठ गयी।


बंसल ने पूछा --- " क्या लेंगी ? " 
" आपसे अपने सवालों के जवाब । " सकपकाया बंसल । बोला ---- ' ' काफी अजीब हादसा हुआ ! और यही क्यों ? बड़ी - बड़ी भयानक घटनायें घट रही हैं । हमने तो पिछली मुलाकात में मिस्टर जैकी से कहा भी ---- इनके लिए यह केस , अनेक केसों में से एक हो सकता है मगर हमारे कैरियर पर तो धब्बा बन गया है । हमसे ज्यादा ईमानदारी के साथ और कोई नहीं चाह सकता कि हत्यारा जल्द से जल्द पकड़ा जाये । अब आप आ गयी हैं । जितना आपके बारे में सुना है . ईश्वर करे वह सच हो । हम अपने दामन पर कोई धब्बा लिए रिटायर नहीं होना चाहते । " 
" मेरे बारे में आपने किससे क्या सुना है ? " " आपके सामने मिस्टर जैकी ने बताया । " 

" वस ? " विभा निरन्तर उसकी आखों में झांक रही थी ---- " इतना ही सुना है या कुछ ज्यादा ? 
"आंखे चुराने की कोशिश करते बंसल ने कहा ---- " इ - इतना ही । " 

"वो उतना नहीं था जिसके आधार पर मुझसे यह उम्मीद बांध ले कि मैं आपको आपके करियर पर लगे धब्बे से निजात दिला सकती हूं । यकीनन आपने कहीं और भी जाकर मेरे बारे में कुछ सुना है । " 
" कहीं और भला किससे सुनते ? " 
" मुमकिन है वेद ने कहा हो ! बहरहाल , दोस्त है मेरा । " 
" नहीं । " बंसल एक्स्ट्रा एलर्ट नजर आया। ---- " वेद जी ने तो आपका नाम भी नहीं लिया । " 
" सुना है अंतिम बातचीत उसने आप ही से की थी ? " 
" हां । इस संबंध में मिटर जैकी हमसे पूछताछ कर चुके हैं । इन्होंने बताया वेद जी ने आबूलेन तक हमारा पीछा किया था । हमने तो ध्यान ही नहीं दिया । आबुलेन चाट खाने गये थे , खाकर आ गये । 
“ वो सब बाद में । विभा ने कहा ---- " सबसे पहले यह बताइए , वेद ने आपसे क्या बातें की ? " 
" इंस्पैक्टर को बता चुके हैं । " " और वो सब अखबारों में भी छपा है । अखबार मैंने पढे हैं । " बगैर किसी कठोरता के विभा एक - एक शब्द नाप तोलकर बोल रही धी ---- " इसके बादजूद आपसे पूछ रही हूं तो कोई वजह जरूर होगी । क्या कहता है आपका दिमाग ? वजह होगी या नहीं ? " 
" होगी । " 
" क्यों ? " 
" क्या कर सकते है ? " 
" नहीं कह सकते तो बता दीजिए ---- क्या बात हुई थी ?

प्रिसिंपन खुद को काफी असुविधा में महसूस कर रहा था । लहजे को संतुलित रखने की भरसक चेष्टा के साथ प्रारम्भिक वातें सब - सच बताने के बाद कहा ---- " अचानक वेद जी ने बातों का रुख मोड़ दिया । बल्कि मोड़ देना भी क्या कहें , सीधे - सीधे हमें ही हत्यारा कहने लगे । " 
" किस बेस पर ? " 
" एक ऊटपटांग काल्पनिक स्टोरी बना बैठे थे ।

" मै उसे सुनना चाहती हूं । 
" प्रिंसिपल एक ही सांस में बता गया । 
" बाकई । " सुनने के बाद विभा ने कहा ---- " निहायत की घटिया और अविवेकपूर्ण स्टोरी तैयार की थी वेद ने और अखबार के मुताबिक उसमें तुम भी शामिल हो इंस्पैक्टर । मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि तुम और वेद ! दोनों मृर्ख हो । " 

" म -मै समझा नहीं । " जैकी बौखला गया । " तुम्हारे मुताबिक सत्या की हत्या हत्यारे ने पेपर की वजह से की और चन्द्रमोहन को इसलिए मार डाला क्योंकि वह हत्यारे का राज जान गया था और फोन पर तुम्हें बताने वाला था । " 
" इसमें क्या गलत है ? " 
" वेद की पीठ से बरामद कागज पर लिखे शब्दों का क्या मतलब निकाला तुमने ? " 
" यह कि अभी वह और हत्यायें करना चाहता है । " 
" करेक्ट ! यही मतलब है उसका । और अगर यही मतलब है तो नतीजा ये कैसे निकलता है कि वह अपना राज जानने वालों के मर्डर कर रहा है ? क्या उसकी नजर में कुछ और लोग हैं जो उसका राज जानते हैं ? यदि हां , तो धमका क्यों रहा है उन्हें ? खत्म क्यों नहीं कर देता ? इतना मौका क्यों दे रहा है कि उसके राज को वे किसी और को भी बता सके ? नहीं जैकी ---- हत्याओं की वजह यह नहीं है जो तुम और वेद समझे । अपना राज जानने वालों की हत्या हत्यारा चैलेंज देकर नहीं करता ---- बल्कि जल्द से जल्द मार डालना चाहता है ताकि उसका भेद और ज्यादा लोगों को पता न लग सके । " 
" आपके ख्याल से दूसरी क्या वजह हो सकती है ? " 

"चैलेंज देकर हत्यायें वही करता है जिसकी हिट लिस्ट पहले से तैयार हो अर्थात् जिसने पक्का इरादा कर लिया हो फला - फला लोगों को मौत के घाट उतारना है । कारण अनेक हो सकते हैं । मगर ये तय है ---- यह काम है किसी इरादे के पक्के आदमी का । उसकी हिट लिस्ट में अभी और लोग है और यकीनन वे , वे नहीं हो सकते जिनके द्वारा उसे अपना भेद खुलने का डर हो बल्कि ये होंगे जिन्हें किसी न किसी कारण से वह मार ही डालना चाहता है । " 

जैकी को क्रॉस करने के लिए तर्क न मिला । विभा की बातें सुनकर प्रिंसिपल की आंखों में चमक उभर आई थी । वह चमक विभा की पैनी नजरों से न छुप सकी । गुलाबी होठों पर हल्की सी मुस्कान लाती बोली ---- " मेरे विचार जानकर आपको कुछ खास ही खुशी हुई बंसल साहब । " 
" वेद जी ने जिस थ्योरी के आधार पर मुझे हत्यारा बना दिया था उसकी धज्जियाँ उड़ते देखकर मुझे खुशी नहीं होगी तो किसे होगी।

आप वाकई जीनियस है विभा जी । 
" जब वेद आपको हत्यारा ठहरा चुका , उसके बाद क्या हुआ ? 
" उसकी बात पर ध्यान दिए बगैर विभा ने सवाल किया । 
" होना क्या था ? हमने साफ - साफ कहा कल्पनाओं के सुबूत नहीं होते । " आप इस स्टोरी के सुबूत इकट्ठा नहीं कर सकते । स्टोरी काल्पनिक है और 
" उसके बाद ? " 
" वो सुबुत इकट्ठा करने की धमकी देकर चले गये । " 
“ गलत । " विभा ने पूरी दृढ़ता के साथ कहा ---- " आप झूठ बोल रहे हैं । रील काट रहे हैं ।
" क - क्या मतलब ? " बौखलाहट सी हावी होती नजर आई प्रिसिपल पर । 
" अच्छी तरह सोचकर बताइए : क्या वेद के जाने और इन बातों के बीच और कुछ नहीं हुआ ? " 
" क - क्या होता ? " 
" आपको बताना है । " 
" क - कुछ नहीं हुआ । " 
" मै एक मौका और देती हूं प्रिंसिपल साहब । " 

शब्दों से लग रहा था वह चेतावनी दे रही है लेकिन फेस पर ऐसा कोई भाव नहीं था । अपनी सदावहार सौम्य मुस्कान के साथ वह कहती चली जा रही थी --- " या तो बता दीजिए अन्यथा मुझे वताना होगा । " 
" क - कहना क्या चाहती हैं आप ? " आतंक की ज्यादती के कारण वह चिल्ला उठा ---- " क्या हुआ था ? हो भी क्या सकता था ? आप बता सकती है तो बता क्यों नहीं देती ? हमसे क्या पूछ रही है ? "

हड़वड़ाई हुई निर्मला ड्राइंगरूम में दाखिल हुई । प्रिंसिपल की तरफ लपकती बोली ---- " आप चीख क्यों रहे हैं ? बात क्या है ? 

" विभा से पूछा-- " आप कौन है ? " 

" बार - बार एक ही बात रिपीट करके बिभा जिन्दल नाम की ये शख्स पता नहीं कहना क्या चाहती है ? " 
कभी उत्तेजित न होने वाला बंसल झूठ पकड़ा जाने के खौफ से अपने आपा खो चुका था ---- " कहती है वेद जी के हमें हत्यारा कहने और . उनके जाने के बीच यहां कुछ हुआ था । धमकी दे रही है । हम नहीं बतायेंगे तो खुद बता देंगी । अजीब धमकी है । ये वजह डराना चाहती हैं हमें पता नहीं हमारे मुंह से क्या सुनने की ख्वाहिशमंद है । " 
" वह । " विभा अब भी मुस्कुरा रही थी ---- " जो मिसेज बंसल ने आपके कान में कहा था ? 

" और जैसे जादू हो गया । बंसल ही नहीं , निर्मला भी पत्थर की स्टैब्यू में बदल गयी ।

जैकी ने बुरी तरह हैरान होकर विभा की तरफ देखा । उस विभा की तरफ जिसके फेस पर किसी किस्म की सख्ती का भाव नहीं था । फिर उसने वंसल और निर्मला नाम के स्टैच्युओं की तरफ देखा ---- जो किसी अंजाने जादू के प्रभाव से पीले पडते जा रहे थे । चेहरे निस्तेज ! निर्जीव राख की मानिन्द ! पलकें तक झपकाना भूल गये थे वे , विभा अपने स्थान से उठी । चहलकदमी करती बोली ---- वेद ने पूछा ---- क्या बात है ? 
आपने कहा ---- हमारी कोई घरेलू प्राब्लम है । 
वेद को यकीन नहीं आया । आप दोनों में झड़प हुई । वेद झड़प के बाद यहां से ......

" अ - आप तो यूं बता रही है जैसे उस वक्त यहीं कहीं थी ? " बंसल के होठ हिले । चेहरे पर आश्चर्य की पराकाष्टा लिए जैकी ने विभा की तरफ देखा । विभा ने बंसल के नजदीक ठिठकते हुए कहा- " मैं उस वक्त जिन्दलपुरम में थी । वेद इसी कमरे में था । वह नहीं सुन सका मिसेज बंसल ने आपके कानों में क्या कहा ---- मगर वो आवाज जिन्दलपुरम में मेरे कानों तक पहुंच गयी थी । इजाजत दें तो फरमाऊं । 
" चीख सी निकल गयी बंसल के हलक से ---- " अ - आप यह भी बता सकती है ? 
"ऑफकोर्स"
हैरान और पस्त बंसल ने कहा ---- " बताइए । " 

" यानी आप कुछ बताने के मूड में नहीं है ? " 
" अब तो यू कह लो , हम यह देखना चाहते हैं कि एक शख्शियत कितने चमत्कार दिखा सकती है । 
" तभी बंगले के बाहर मोटर साइकिल की आवाज आई । विभा ने कहा ---- " तुम्हारा सब - इंस्पैक्टर आ गया लगता है जैकी । " 

किसी के जवाब देने से पहले सब - इंस्पेक्टर ड्राइंगरूम में दाखिल हुआ । उसके द्वारा तैयार की गई लिस्ट विभा के हाथ में पहुंची । विभा ने उसे देखना शुरू किया । देखते ही देखते आंखों में दिव्य ज्योति सी चमकी । चुटकी बजाकर कह उठी -- " अब मै दावे के साथ कह सकती हूं मिस्टर बंसल , आबूलेन पर आपने चाट नहीं खाई । " 
" पता नहीं आप क्या देखकर क्या जान जाती है ? " इसी सवाल का जवाब जैकी लिस्ट में ढूंढने की कोशिश कर रहा था । लिस्ट अब उसके हाथ में थी मगर लाख सिर खपाने के बावजूद नहीं जान पाया था कि इससे ये बात कैसे पता लग सकती है कि बंसल आबूलेन चाट खाने गया था या कुछ और करने ? 

उसने विभा की तरफ सचमुच ऐसे अंदाज में देखा जैसे जादूगरनी को देख रहा हो । विभा ने सब - इंस्पैक्टर से पूछा ---- " क्या मेरा शोफर बाहर है ? " " प्लीज ! उसे बुला दीजिए ।

सब - इंस्पैक्टर उसके जरखरीद गुलाम की तरह बाहर चला गया । बंसल ने कहा ---- " आप कान वाली बात बताने वाली थी ..... " 

“ सोच रही हूं क्यों न वह बात आपके बेडरूम में चलकर बताई जाये ? " 
" व - बेडरूम में ? " बंसल और निर्मला एकदम उछल पड़े । 
चेहरों पर जलजला लिये एक - दूसरे की तरफ देखा उन्होंने । ' सब - इंस्पेक्टर और शोफर अंदर दाखिल हुए । 

आंखों ही आंखों में शोफर और विभा की बातें हुइ विभा ने बंसल से -- " इजाजत हो तो अंदर चले।

" जैसी मर्जी । बंसल ने हथियार डालने वाले अंदाज में कहा ।


बेडरूम कॉफी बड़ा था । बेड के अलावा एक सोफा सेट और ड्रेसिंग टेबल अति सलीके से रखी थी । 

" अरे ! " बेड के पीछे वाली दीवार पर नजर पड़ते ही जैकी उछल पड़ा -.-- " विभा जी , वैसे ही बल्लम ! " 
उससे भी बुरी तरह चौंके बंसल दम्पत्ति । 
विभा के होठो पर चित्ताकर्षक मुस्कान थी । वेड के ठीक पीछे वाली दीवार पर दो बल्लम एक दूसरे को क्रास करते हुये लगाये गये थे । उनके बीच सजी थी एक चौड़ी ढाल। चेहरे पर हैरत के असीमित भाव लिये निर्मला ने बंसल से कहा ---- " ये क्या जादू हो रहा है ? दूसरा वल्लम कहां से आया ? 

" बंसल ने विभा की तरफ देखते हुए कहा --- " इन्हीं की कारस्तानी लगती है । " 
" क्या बताने की जरूरत रह गया कि मिसेज बंसल ने आपके कान में क्या कहा था ? " 
" नहीं " बंसल पस्त हो चुका था । 
जैकी कह उठा ---- " आखिर मामला क्या है ? मुझे भी तो कुछ समझाइए विभा जी । " " मिसेज बंसल ने प्रिंसिपल साहब के कान में कहा था वेडरूम से एक बल्लम गायब है । सुनते ही प्रिंसिपल साहब की हवा शंट होनी थी ! हुई । क्योंकि ये जानते थे कि चन्द्रमोहन की हत्या बल्लम से की गयी है । करेला नीम चढ़ा इसलिए बन गया क्योंकि ठीक उसी समय ड्राइंगरूम में वैठा वेद इन्हें कातिल बता रहा था । यह सोचफर इनकी हालत खस्ता हो गयी कि यदि वेद को वल्लम के बारे में पता चल गया तो वह तुमसे कहकर इन्हें हथकड़ी लगवा देगा । उस अवस्था में वेद को ये बल्लम के बारे में न बता सकते थे , न बताया । " 
" लेकिन ये बातें आपको कब और कैसे पता लग गयी ? " 
विभा ने शोफर को इशारा किया ।


शोफर कमरे में पड़े सोफे के पीछे पहुंचा और किसी भारी वस्तु को खींचकर निकालने का प्रयास करने लगा । वस्तु बाहर आई तो जैकी ने देखा ---- यह एक बड़ा शख्म था । बंसल के मुंह से निकला -.- " अरे ! रामदीन ? 
ये तो सब्जी लेने गया था । " 
" वहां हमने पकड़ लिया । " विभा ने बताया ---- " जो कुछ हुआ था , इसके मुंह से वह उगलवाने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी । " 
" लेकिन ये आपने किया कब ? " जैकी ने पूछा । " अखवार में साफ - साफ लिखा था और मधु बहन को फोन करके मैंने पुष्टि भी कर ली थी । वेद अंतिम बार प्रिंसिपल साहब के साथ देखा गया तथा उसके बाद इनका पीछा करता आबूलेन पहुंचा । इतना सुनना यह समझने के लिए काफी था कि यकीनन वेद और प्रिंसिपल साहब के बीच और भी बात हुई थी जिसके कारण वेद को पीछा करना पड़ा । पीछा करता हुआ ही यह गायब हो गया । 

अतः जिन्दलपुरम से सीधी यहां आई । उस वक्त रामदीन सब्जी लेने निकला था । मैंने सीधे प्रिंसिपल से बात करने से बेहतर रामदीन से बात करना समझा । पुराना नौकर घर का भेदिया होता है । वही हुआ । मौका देखकर मेरे इशारे पर शोफर ने इसे सड़क से गाड़ी में खींच लिया । 

इसे बताना पड़ा इनका वेद से क्या बातें हुइ और वेद के जाने के बाद पति - पत्नी के बीच क्या बात हुई ? वे बातें बल्लम के बारे में थीं । प्रिंसिपल साहब मिसेज बंसल से वार - बार कह रहे थे ---- बल्लम गायब होने की बात हमारे कान में कहकर तुमने समझदारी दिखाई । इस लेखक के बच्चे को तो पहले से ही हम पर शक है । बल्लम के बारे में भनक लग जाती तो तत्काल फांसी पर चढ़ा देता । " 
" लेकिन इस मुसीबत से निकलेंगे कैसे ? " मिसेज बंसल ने पूछा । 
" यही सोच रहे है । दिमाग पर जोर डालते हुए प्रिंसिपल साहब ने कहा ---- इसके बाद इन्होंने क्या फैसला किया - यह रामदीन न सुन सका । रामदीन से जहां मुझे इतनी बातें पता लगी वहां यह भी पता लग गया कि वास्तव में चन्द्रमोहन की हत्या इन्होंने नहीं की । ये बेचारे तो खुद बल्लम के गायब होने से परेशान थे । " विभा की बातें सुनकर बंसल दम्पति ने राहत की सांस ली । वंसल ने पुछा---- " लेकिन बल्लम पुनः यहां कैसे आ गया ? " " रामदीन और बल्लम को हमारे शोफर ने ठीक उस वक्त किचन लॉन में खुलने वाली खिड़की के जरिए यहां पहुंचाया जिस वक्त मिसेज बंसल भी ड्राइंगरूम में पहुंच चुकी थीं । आपको मैंने उत्तेजित ही इसलिए किया था कि आप चीखने चिल्लाने लगे और मिसेज बंसल वहां पहुंच जायें । बहरहाल , अपने शोफर को रास्ता तो क्लियर देना ही था । उसके बाद मैं बातों को थोड़ा लम्बा खिंचकर समय गुजारती रही ताकि शोफर काम पूरा करके वापस गाड़ी पर पहुंच जाये । 

यहां आने की बात हमने तभी कही जब सब - इंस्पैक्टर से शोफर के बाहर होने की पुष्टि कर ली । " 
" हद है । " जैकी बोला --- " आपने सारा काम इतने योजनाबद्ध तरीके से किया , हमारे सामने किया और हमें इल्म तक नहीं हो पाया ? " 
" तुम दिमाग के खिड़की - दरवाजे बंद रखते हो जैकी , इसलिए नहीं जान पाये । वरना सोचते , हम बल्लम साथ क्यों लाये और फिर उसे गाड़ी में छोड़ने की क्या तुक हुई ? " 
" रामदीन कहाँ था हमारे पास ? " 
" गाड़ी की डिक्की में।
"ओह"

" आओ , आबूलेन चलते हैं । " विभा ने कहा

जैकी , बंसल , शगुन और विभा उस इमारत की लिफ्ट के जरिए फोर्थ फ्लोर पर पहुंचे जिसके बाहर मेंरी गाड़ी खड़ी मिली थी । 
सब - इंस्पेक्टर को वापस थाने भेजा जा चुका था और शोफर नीचे गाड़ी में था । फोर्थ क्लोर की गैलरी में बढ़ते जैकी ने कहा ---- " आप तो इस तरह चली आ रही है जैसे हन्डरेड परसेन्ट मालूम हो वेद जी कहा है ? " 
" वेद का तो फिलहाल नहीं लेकिन यह मालूम है बंसल साहब कहां आये थे ? " 
" प्लीज । " जैकी ने कहा ---- " अब तो बता दीजिए । कैसे पता चला आपको ? " 
" आप सब - इंस्पैक्टर द्वारा बनाई गई लिस्ट पर गौर करो --- साथ ही गौर करो मिस्टर बंसल की उस वक्त की मानसिकता पर । 

हमें मालूम है ---- इनकी सबसे बड़ी समस्या बल्लम की बजह से अपना सदिग्ध हो उठना था । जाहिर है , इन्हें किसी ऐसे शख्स की तलाश होगी जो उस समस्या से निजात दिलाने की क्षमता रखता हो । " 
" अब बंसल साहब की जगह खुद को खड़ा करके , सोचो । तुम्हारे सामने यह प्राब्लम होती तो किसके पास जाते ? 

" जैकी ने चंद सैकिण्ड सोचने के बाद कहा ---- " शायद किसी वकील के पास । " 
" बिन्कुल सही सोचा तुमने । लेकिन लिस्ट देख चुके हो , इस बिल्डिंग में कोई वकील नहीं है । लिस्ट पर गौर करो जैकी । जवाब खुद मिल जाएगा । " 
" प्राइवेट डिटेक्टिव " जैकी चुटकी बजा उठा ---- " इस बिल्डिंग में ऐरो डिटेक्टिव एजेन्सी का आफिस है । वकील के अलावा प्राइवेट डिटेक्टिव भी इस समस्या में मददगार हो सकता है । " 
" हम वहीं खड़े हैं । विभा रुकती हुई बोली । जैकी ने देखा ---- वे सचमुच ऐरो डिटेक्टिव एजेन्सी के आफिस के गेट पर खड़े थे । 
होठों पर मुस्कान लिए विभा ने बंसल से पूछा ---- " हम लोग गलत जगह तो नहीं आये ? " 

" हम यह दावे के साथ कह सकते हैं । बंसल बोला ---- " आपसे जिन्दगी में कभी कोई गलती नहीं हो सकती । 
" ये गलत है । " विभा ने कहा ---- " इन्वेस्टिगेटर का सारा खेल तर्कपूर्ण तिगड़मों पर होता है । और तर्क कभी - कभी इतना तगड़ा धोखा देते है कि इन्वेस्टिगेटर अंधेरे में ही हाथ - पांव मारता रहता है । " 
" फिलहाल इस मामले में आप केवल रोशनी में नहीं रहीं बल्कि रोशनी की मीनार बनकर आई है । " कहने के साथ बंसल अंदर दाखिल हो गया । 

विभा , जैकी और शगुन उसके पीछे थे । . ' ऐरो डिटेक्टिव एजेंसी के संचालक का नाम रमेश गौतम था । एजेन्सी का प्रमुख जासूस भी वह था । अपने क्लाइन्ट के साथ पुलिस इंस्पैक्टर और एक अति प्रभावशाली महिला को देखकर थोड़ा सतर्क नजर आने लगा । बंसल ने विभा का परिचय दिया । वह प्रभावित हुआ । विभा ने पुछा ---- " क्या आप वेद प्रकाश शर्मा को जानते है ? " चंद सेकिण्ड सोचन में गंबाकर उसने कहा ---- " हां - हां , क्यों नहीं ! हिन्दुस्तान भर में प्रसिद्ध उपन्यासकार हैं वे । अपने मेरठ के रहने वाले है। " 


" कमाल है आप कुदकर उन तक कैसे पहुंच गये आप ? इस नाम के और भी बहुत लोग हो सकते हैं । " 

" वेशक हो सकते हैं । गौतम ने कहा ---- " लेकिन सुबह के अखबार में उनके किडनैप की खबर छपी है । उस कालिज के प्रिंसपल , एक पुलिस इंस्पेक्टर और आप डिटेक्टिव एजेन्सी में आकर यह नाम लेती है तो मुझे समझ जाना चाहिए चर्चा किस के बारे में हो सकती है । " विभा हौले से मुस्कुराकर बोली ---- " चतुराई भरा जवाब देकर साबित कर दिया कि तुममें जासूसी के मैदान में काम करने के टेलेन्ट हो या न हो मगर ग्राहक को चंगुल में फंसाने के टैलेन्ट निसन्देह है । बरायमेहरबानी , अब जल्द से जल्द वेद से मिला दिजिए । " 

" मैं- : " वह बौखलाया --- " मैं आपको वेद जी से मिला दूँ " 

"एक्टिंग बेकार है . मिस्टर गौतम ! मैं समझ चुकी हूँ कि बंसल साहब के लिए वेद का अपहरण तुमने किया है । " 
गौतम चौंका । 
हडबडाकर मत की तरफ देखा उसने । वैसे ही भाव बंसल के चेहरे पर भी थे ।


विभा की तरफ देखते उसने कहा ---- " ये आप क्या कह रही है ? विभा जी ? 
वेदजी का अपहरण हमने किया है ? " 
“ नहीं किया ? " विभा की आंखे मुड़कर गोल हो गई । 
गौतम बोला ---- " हरगिज नहीं किया । " जैकी गुर्राया ---- " स्मार्ट बनने की कोशिश तुम्हारा लाइसेंस रद्द करा सकता है मिस्टर गौतम । प्राइवेट डिटेक्टिव एजेन्सी चलाने के लिए लाइसेंस का मतलब ये नहीं कि तुम्हें लोगों के अपहरण करने का लाइसेंस मिल गया है । " 

" बही तो कहना चाहता हूँ । " गौतम ने कहा ---- " मै प्राइवेट डिटेक्टिव हूँ अपराधी नहीं । किसी का अपहरण करना आपराधिक कार्य है । में ऐसा नहीं कर सकता । पता नहीं यह वहम आपको कैसे हो गया ? सही बात ये है . मिस्टर बंसल मेरे पास आये । इन्होंने कहा मिस्टर वेद इन पर कालिज में हो रही हत्याओं का शक कर रहे हैं । संयोग से एक हत्त्या हुई भी इनके पुश्तैनी बल्लम से । पता नहीं उस बल्लम को इनके बेडरूम से किसने गायब किया । मेरे पास ये उस चोर का पता लगाने का केस सौपने आये थे । अपनी फीस लेकर मैंने केस लिया भी । इससे ज्यादा इस केस में मेरा अभी तक कोई इन्वाल्चमेन्ट नहीं है । 

" विभा ने बंसल से पुछा ---- " तुम्हारा पीछा करता वेद यहां नहीं पहुंचा था ? " 
" यकीन कीजिए विभाजी , मुझे नहीं मालूम वे मेरे पीछे थे । " बंसल कहता चला गया --- " मैंने सिर्फ अपने बचाव की कोशिश की थी । अपहरण जैसे जुर्म के बारे में सोच भी नहीं सकता । " 

जैकी गुर्राकर पुलिसिया भाषा पर उतरने वाला था कि विभा ने इशारे से रोका । बोली ---- " कुछ देर पहले मैंने कहा था इन्वेस्टिगेटर अंधेरे में ही हाथ - पांव मारता रहता है । लगता है इस मामले में मेरे साथ वैसा ही कुछ हो गया है । रामदीन के बयान से निकले तर्कों के आधार पर मैं आश्वस्त हो गयी थी कि अपने लिए मुसीबत बने वेद को मिस्टर बंसल ने ही गौतम की मदद से कहीं कैद कर लिया है । मैं यह सोचकर भी सुकून की दुनिया में थी कि इस अवस्था में वेद किसी खतरे में नहीं हो सकता लेकिन अगर ये सच है तो , वेद खतरे में है । जैकी बोला ---- " विभा जी , ये लोग झूठ भी तो बोल सकते है ? " विभा ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि जैकी का सेल्यूलर बज उठा।

जैकी ने उसे बेल्ट से निकालकर ऑन किया । बोला ---- " कौन ? " 
" मि ० चैलेंज " दूसरी तरफ से आवाज उभरी । जैकी चौका --.- " मि ० चैलेंज " 
" शायद तुम्हारे साथ विभा है । " दूसरी तरफ से कहा गया । " फोन उसे दो । " 
उद्वेलित सा नजर आ रहा जैकी गुर्राया ---- " पहले अपना असली नाम बताओ । " 
" बेवकूफानी बातें छोड़कर फोन विभा को दो जैकी । " 
जैकी के बोलने से पहले विभा ने फोन उसके हाथ से ले लिया कहा ---- " विभा हीयर ! " 
" मि ० चैलेंज । " " मतलब की बात बोलो । फोन क्यों किया ? " 
" प्रिंसिपल एक नम्बर का झूठा है । " दूसरी तरफ से एक ही सांस में सब कुछ कहने की कोशिश की गयी ---- " वह आबूलेन चाट खाने नहीं , ऐरो डिटेक्टिव एजेन्सी में गया था । " " जानती हूँ । कोई नई बात बताओ ? " 
" जानती है ? " थोड़ा आश्चर्य व्यक्त किया गया ---- " इस वक्त आप कहां है ? " 
“ ऐरो रिटेक्टिव एजेन्सी के ऑफिस में । " 
" तब तो सही जगह पहुंच गयीं । वाकई ब्रिलियेंट हैं आप । " कहने के बाद फोन डिस्कनेक्ट कर दिया गया । 
मोबाइल ऑफ करते वक्त बिभा के चेहरे पर जलजले के से भाव उभर आये । उसने ध्यान से सेल्यूलर की स्क्रीन पर चमक रहा नम्बर पढ़ा । अंगुलियों ने तेजी से मेरठ के कोड के साथ यह नम्बर डायल किया । दूसरी तरफ से एंगेज टोन उभरी । विभा ने रिडायल किया । स्वागत पुनः एंगेज टोन ने किया । जब बार - बार कोशिश के बावजूद दूसरी तरफ रिंग नहीं गई तो थोड़े उद्वेलित स्वर में बोली ---- " एक कागज पर नम्बर नोट कीजिए मिस्टर गौतम । " 
" बोलिए । " गौतम ने पैन संभाला । नम्बर नोट कराने के बाद विभा ने कहा ---- " पता लगाइए कि नम्बर कहां का है ? 
" गौतम ने टेलीफोन डिपार्टमेन्ट में अपने सूत्र को फोन किया । निर्देश देकर रिसीवर कैडिल पर रखता बोला ---- " पांच दस मिनट में पता लग जाता है । " 
" यह बात तो आप सेल्यूलर पर ही रिडायल करके मालूम कर सकती हैं विभा जी । " जैकी ने कहा।

" वही कोशिश कर रही हूं । " विभा ने पुनः रिडायल वाला बटन दबाते हुए कहा ---- " लगातार एंगेज लग रहा है । " 
" ओह ! शायद वह किसी और से बात कर रहा हो । " 
" मेरे ख्याल से वह फोन खराब कर चुका है । " 

विभा कहती चली गयी ---- " बच्चा भी जानता है कि यदि सेल्यूलर पर फोन किया जाये तो स्क्रीन पर उसका नम्बर आ जाता है । मि ० चैलेंज द्वारा किसी ऐसे फोन से तुम्हारे सेल्यूलर पर बात करने का सवाल ही नहीं उठता जिस पर उसे पकड़ा जा सके । हन्डरेड परसेन्ट ये फोन किसी पी ० सी ० ओ ० से किया गया होगा । वह यह भी जानता था कि उसके द्वारा फोन काटे जाते ही मैं रिडायल करके सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश करूंगी । यह कोशिश कामयाव न हो , इसके लिए उसने फोन ही डेड कर दिया । " 

" इससे क्या फायदा ? " 
" हम वो नहीं कर सकते जो कर सकते थे । " 
" क्या कर सकते थे ? " 
" मैं संचालक से यह कह सकती थी , उस शख्स को रोक ले जिसने अभी - अभी इस फोन से फलां नम्बर डायल कर मोबाइल पर बात की है । 

जैकी के जवाब देने से पहले गौतम की टेबिल पर रखे फोन की घंटी बजी । गौतम ने रिसीवर उठाया और बातें करने के बाद कहा ---- " आपका शक ठीक है विभा जी । ये नम्बर मोदीपुरम के एक पी ० सी ० ओ ० का है । " 
" आओ । " विभा एक झटके से खड़ी हो गयी । गाड़ी में जैकी ने पूछा ---- " कह क्या रहा था वह ? " विभा ने बतला दिया । 

सुनकर बंसल ने कहा ---- " विभा जी , कोई हमें फंसाना चाहता है ! पहले हमारे बल्लम से चन्द्रमोहन की हत्या करना और अब ये कहना कि आप गौतम के ऑफिस तक पहुंच जायें । यह अलग बात है आप उसके द्वारा दी गई इन्फॉरमेशन से पहले ही पहुंच गइ मगर .... उसका ये फोन क्या इस बात का गवाह नहीं है कि वह हमें आपकी नजर में झूठा और संदिग्ध साबित करना चाहता है ? " 

जैकी गुर्राया---- " वह तो तुम हो ही । " 
" यह बात वाकई सौचने वाली है जैकी । " विभा ने कहा ---- " बंसल ने गौतम से अपनी भेंट को हमसे छुपाने की कोशिश की , इसमें शक नहीं । परन्तु मि ० चैलेंज क्यों चाहता है यह बात हमें पता लगे ? " 
" आपके ख्याल से फोन के पीछे उसका क्या मकसद था ? " 
" भायद वही जो मिस्टर बंसल कह रहे हैं । इन्हें संदिग्ध बनाना । बल्कि हमारे दिमाग में यह ढूंसना कि वेद के अपहरणकर्ता यही हैं । मगर जरूरत से ज्यादा चालाकी का दूसरा नाम ही दरअसल बेवकूफी है । न करने की बेवकूफी करके मि ० चैलेंज बता गया कि अभी वह कच्चा खिलाड़ी है । " 

" मैं समझ नही विभा जी । " 
" पका हुआ खिलाड़ी हर वक्त इन्वेस्टिगेटर को अपनी नालिज में रखता है , मि ० चेलेंज को इतना तक मालूम नहीं था की मै गौतम के ऑफिस में पहुंच चुकी हूं । " 

किसी के कुछ पूछने से पहले राल्स रॉयल गौतम के निर्देश पर एक पी ० सी ० ओ ० बूथ पर रुकी । विभा के साथ सब लोग बाहर निकले । पी ० सी ० ओ ० का संचालक बीस - बाइस साल की उम्र का था । वह खाली बैठा उपन्यास पढ़ रहा था । पुलिस के साथ धड़धड़ाते लोगों को अंदर प्रविष्ट होते देख थोड़ा घबराया । जैकी ने कड़क आवाज में पूछा , फलां नम्बर कौन सा है ? लड़के ने एक केबिन की तरफ इशारा कर दिया । जब पूछा गया कि अंतिम बार उसका इस्तेमाल किसने किया तो लड़के ने कहा ---- " एक औरत ने । " 
" औरत ? " जैकी उलझा । गौतम से पूछा ---- " जवान थी या बूढी ? हुलिया क्या था ? " 
" ज - जी । मैं देख नहीं सका । वह बुर्के में थी । " 
" कहां फोन किया था ? " 
" अभी बत्ताता हूं । " कहने के साथ उसने रजिस्टर देखना शुरू किया । अगले पल उसमें दर्ज जैकी के मोबाइल का नम्बर बता दिया । जैकी उसे अपना मोबाइल दिखाता हुआ गुर्राया --- " इसका नम्बर है ये । वह एक अपराधी था । सुना तूने ---- थी नहीं था।


एक मर्द अगर बुर्का पहनकर आ जाये तो तू इतना भी नहीं जान सकता कि वह औरत नहीं मर्द था ? " लड़का ऐसा हकलाया कि जवाब नहीं सूझा उसे । विभा के होठो पर जैकी का रवैया देखकर मुस्कान उभर आई । बोली ---- " इस बेचारे को हड़काने से कोई फायदा नहीं जैकी । एक बार फिर कहूंगी ---- अपनी ये पुलिसिया हरकतें छोड़ दो । काम यो करो जिससे आगे बढ़ने का रास्ता मिले । " 

जैकी चुप रहा । विभा ने उसे लड़के के सामने से हटाया और स्वयं उसका स्थान ग्रहण करती बोली ---- " घबराओ नहीं , मैं जानती हूँ तुम्हारा कुसूर नहीं है । अपना रजिस्टर देखकर बताओ ---- क्या बुर्के वाले ने मोबाइल पर फोन करने से पहले कोई और नम्बर भी मिलाया था " 
“ जी नहीं । " कहने के साथ उस लड़के ने सुबूत के तौर पर रिकार्ड का रजिस्टर उसकी तरफ सरका दिया । विभा ने उस पर नजर मारने की कोशिश नहीं की । वह तेजी से मुड़ी और उस केबिन में घुस गई जिसमें उस नम्बर का फोन था । तार टेलीफोन इंस्ट्रमेन्ट से अलग पड़ा था।

विभा चौंकी । चौंकने का कारण वह कागज था जो क्रेडिल पर रखे रिसीवर और केंडिल के बीच फंसा था । कागज किसी की पाकेट डायरी का था । विभा ने उसे निकाला । लिखा था ---- " वेलकम विभा जिन्दल ! बेलकम हा ... हा ... हा .... " मि ० चैलेंज ।

विभा के जबड़े भिंच गये । कागज लिए केबिन से बाहर निकली। मि ० चैलेंज के चैलेंज को पढ़कर जैकी , गौतम और प्रिंसिपल भी दंग रह गये । प्रिंलिपल के मुंह से तो टिप्पणी भी निकल पड़ी ---- " मि ० चैलेंज तो हमसे खेल रहा है । " उस वक्त कागज जैकी के हाथ में था और यह मि ० चैलेंज द्वारा लिखी गई एकमात्र लाइन को बार - बार पढ़ रहा था जब विभा कागज पर इस तरह झपटी जैसे बाज कबूतर पर झपटा हो । अगले पल वह कागज को अपनी आंखों और ट्यूब के बीच किए बोली " 
एक नम्बर नोट करो जैकी । " जैकी ने लड़के की मेज पर रखा रजिस्टर उठाते हुए कहा ---- " बोलिए । " बहुत ध्यान से पढ़ रही विभा ने एक नम्बर बताया । जैकी ने लड़के के रजिस्टर के ऊपरी किनारे पर नोट किया । यह वह नम्बर जिसका केवल अक्स मि ० चैलेंज के कागज पर नजर आ रहा था । 
विभा ने कहा --- ' ' यह नम्बर बाल पेन से डायरी के इससे ऊपर वाले पन्ने पर लिखा गया था । " 
जैकी , प्रिंसिपल और गौतम मन ही मन उसकी पैनी नजर की तारीफ कर उठे । पी ० सी ० ओ वाले लड़के ने कहा ---- " ये नम्बर पल्लवपुरम का है । " 
" चलो । " कहने के साथ विभा छलावे की तरह बाहर निकली । बाकी सब उसके पीछे लपके । पल्लवपुरम की तरफ उड़ी चली जा रही राल्स रॉयल में बैटी - बैठी विभा कह रही थी ---- " इस बात पर तब्सरा करने से कोई फायदा नहीं कि मि ० चैलेंज कैसे जानता था मैं पी ० सी ० ओ ० तक पहुंचुगी । आप सब समझ ही गये होंगे मगर जहां अब पहुंचने वाले हैं , वहां हमारे पहुंचने की कल्पना उसने ख्वाब तक में नहीं की होगी । " 

सब चुप रहे । जैसे बोलने के लिए किसी के पास कुछ नहीं था । " ये फोन नम्बर जिसका भी है ! जाहिर है वह मि ० चैलेंज का परिचित होगा । " पुनः विभा ने ही कहा -- " तुम्हारी वर्दी के कारण वे टाइम से पहले सतर्क हो सकते हैं जैकी ।
अतः मेरे इशारे से पहले गाड़ी से बाहर नहीं निकलोगे । " 
" ओ.के. जैकी ने कहा । 
सभी को लग रहा था अगले पड़ाव पर शायद किडनैपर से सामना हो ।


फेज टू में पहुंचकर एड्रेस ढूँढने में पांच मिनट लगे । वह एक एम ० आई ० जी ० मकान था । बल्कि वहां मौजूद सभी मकान एम ० आई ० जी ० थे । उन्हें एमडीए द्वारा एक बड़े पार्क के चारों तरफ बनाया गया था । उस वक्त सबके दिमागों में तरह - तरह के सवाल चकरा उठे जब उस मकान में एक फैमिली रहती पाई । 

गाड़ी मकान से थोड़ी दूर रोक दी गयी । विभा शगुन के साथ जैकी को सतर्क रहने और इशारे का इंतजार करने के लिए कहकर गाड़ी से उत्तरी । और एक मकान की तरफ बढ़ी । नेम प्लेट पर आर ० के ० शाडिल्य लिखा था । विभा ने कालबेल बजाई । खिड़की खुली । एक महिला ने पूछा- कौन ? " 
" आपका फोन नम्बर 572030 है न ? " विभा ने कहा । 
" जी । " " एक मिनट के लिए बाहर आयेंगी । " 

दरवाजा खुला । महिला बाहर आई । विभा कहा ---- " आप पढ़ी - लिखी लगती है । अखबार तो जरूर पढ़ती होगी " 
असमंजस में फंसी महिला ने कहा ---- " हां पढ़ती हूँ । " 
प्रसिद्ध उपन्यासकार वेद प्रकाश शर्मा के अपहरण की खबर भी जरूर पढ़ी होगी । " कहते वक्त विभा महिला के चेहरे के हर उतार - चढ़ाव को बहुत ध्यान से देख रही थी । 

" हा ! पढी है । मगर आप कौन हैं और यह सब क्यों पूछ रही है ? " 
" क्या हम अंदर बैठकर बात नहीं कर सकते ? " " सॉरी ! इस वक्त घर में केवल मै और पिंटू हैं । 

" तभी पिंटू बाहर आ गया । वह एक दस वर्षीय खूबसूरत लड़का था । " ओ ० के ० विभा ने कहा --- ' " मेरा सम्बन्ध पुलिस से है । शर्मा जी के किडनैपर की तलाश में हूं । समझ नहीं पा रही उनका आपसे क्या सम्बनध हो सकता है ? " 
" किडनैपर का सम्बन्ध हमसे ? " वह बुरी तरह चौंकी ---- " ये क्या कह रही है आप ? भला हमारा किसी क्रिमिनल से क्या लेना - देना ? " 

" वही तो मैं नहीं समझ पा रही । हमारे हाथ किडनैपर की डायरी लगी है ।डायरी में आपका नंबर है। जाहिर है वह आप का परिचित होगा । बुरी तरह हकला गई महिला । बोली -.- " - क्या कह रही है आप ?


वैसे आपके हसवेंड करते क्या है ? " " स - सी.डी.ए . में हैं । " वह घबरा गई ---- " म - मगर मैं आपको विश्वास दिला सकती हूं उनका सम्बन्ध किसी क्रिमिनल से नहीं हो सकता और फिर , वेद प्रकाश शर्मा के तो हम दोनों पति - पत्नी फैन हैं । उनके अपहरण के बारे में पढ़कर बहुत दुख हुआ । भला हमारा कोई परिचित उन्हें क्यों किडनैप करेगा ? " 

विभा को वह महिला हर अक्षर सच बोलती नजर आई । हर बात पर उसकी प्रतिक्रिया वैसी ही थी जैसी साधारण घरेलू महिला को होनी चाहिए थी । मगर विभा के पास जो एकमात्र सूत्र था , उसे पूरी तरह खंगालना जरूरी था । उसने महिला को थोड़ा डराने के लिए गाड़ी की तरफ इशारा किया । जैकी के साथ प्रिंसिपल और गौतम भी बाहर निकले । यही हुआ जो विभा चाहती थी । वर्दीधारी पुलिस वाले को देखकर महिला आतंकित नजर आने लगी । अनिष्ट की आशंका ने उसे बुरी तरह हिला डाला था । गिड़गिड़ा उठी वह ---- " यकीन कीजिए , मेरा और मेरे पति का किसी क्राइम से कोई सम्बन्ध नहीं है । " 

“ मैंने क्राइम से आपका सम्बन्ध नहीं बताया । केवल यह कहा है किडनैपर की डायरी से आपका नम्बर मिला है और फोन नम्बर केवल परिचितों के होते हैं । हमें उनकी लिस्ट बनाकर दे दे जिनके पास आपके टेलीफोन नम्बर है । " 

" भ - भला ऐसी लिस्ट कैसे बनाई जा सकती है ? जाने किस - किसके पास नम्बर होगा । " 

विभा जानती थी जो वह कह रही है यह बात व्यवहारिक नहीं है लेकिन जितना सूत्र उसके पास था , फिलहाल उसी पर खेलना मजबूरी था । बोली ---- " अगर आप लिस्ट नहीं देंगी तो मुसीबत में पड़ सकती है । "

जैकी , प्रिसिपल और गौतम उनके नजदीक पहुंच चुके थे । महिला के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी । अपनी गिरफ्तारी की आशंका उसे साफ नजर आ रही थी । बड़ी मुश्किल से कह सकी ---- " आप कहती है तो लिस्ट बनाने की कोशिश करती हूँ मगर ये काम है बहुत मुश्किल । अब देखिए न , इस कालोनी में अभी हमारे ही यहां फोन लगा है । बाकी लोगों ने भी अपने परिचितों को यही नम्बर दे रखा है । सबके फोन यहाँ आते हैं । कल ही की बात लीजिए ---- थर्टी सिक्स बटा टू में एम ० डी ० ए ० के लोग बिजली का काम कर रहे हैं । उन्होंने भी यही का नम्बर लिया । आज उनका फोन भी आया । मैंने बात करा दी । इस तरह .... विभा को ऐसा ही किसी इन्फारमेशन की तलाश थी । महिला की बात बीच में काटकर सवाल किया ---- " थर्टी सिक्स बटा टू नम्बर का मकान कौन - सा है ? " 

" क्यो । " उसने अंगुली से इशारा किया ---- " पार्क के पार , सामने वाला । " 

विभा सहित सबने उधर देखा ---- उसने करीब दो सौ मीटर दूर , सामने वाले मकान की तरफ इशारा किया था । उस मकान का मुख्य द्वार बंद नजर आ रहा था । विभा ने पुनः महिला से मुखातिब होते हुए पूछा ---- " कौन रहता है वहाँ ? " 
" कोई नहीं 
“ मतलब ? " " यहां सभी मकान एम ० डी ० ए ० के बनवाये हुए हैं । कुछ मकानों के कब्जे आबंटी ले चुके हैं । कुछ के नहीं । सामने वाला मकान अभी खाली है । तभी तो एम ० डी ० ए ० के बिजली वाले काम कर रहे हैं।

कहां कर रहे हैं ? " जैकी ने कहा -.- " हमें तो मकान बंद नजर आ रहा है । " 
" चले गये होंगे । " 
" नहीं मम्मी । " पिंट्ट कह उठा ---- " सिर्फ दो अंकल गये हैं . दो वहीं होंगे । 
" विभा ने महिला से पुछा ---- " उनके लिए कहां से फोन आया था ? " 
" एम ० डी ० ए ० के ऑफिस से । कहा गया थर्टी सिक्स बटा टू में हमारे कुछ आदमी विजली का काम कर रहे है । कृपया उनमें से किसी को बुला दीजिए । मैंने पिंटू को भेजकर एक को बुला लिया । " 
" और उसने आपके फोन पर बात की ? " 
" कितनी देर ? " 
" कह नहीं सकती । मैं किचन में चली गई थी । " 
" मैं वहीं था । " पिंटू ने कहा ---- " बस थोड़ी - सी वात करी थी अंकल ने । हा हूँ करते रहे । उसके बाद फोन रखकर चल गये । कुछ देर सामने वाले मकान के अंदर रहे , फिर एक और अंकल के साथ बाहर निकले । " 
" तुम्हे कैसे पता ये चार थे ? " 
" जब मैं बुलाने गया था तब देखे थे । 
" विभा का अगला सवाल फिर महिला से था --- ' " उनका फोन कितनी देर पहले आया था ? " 
" तीन बजे के करीब । " 
" वहां कब से काम कर रहे है वे ? " " कल दोपहर बाद से " दस सैकिण्ड विभा ने जाने क्या सोचने में गंवाए । महिला से कहा ---- " ठीक है ! उनसे मिल लेते हैं । " 

महिला ने राहत की सांस ली । विभा के साथ सभी सड़क पर आ गये । महिला राम - राम जपती पिंटू को लेकर चली गयी । शोफर राल्स रॉयल को विभा के इशारे पर उनके साथ - साथ चला रहा था । वे लोग पार्क के चारों तरफ बनी सड़क पर पैदल चल रहे थे । जैकी ने पूछा ---- " विभा जी , क्या जरूरी है उस मकान में यही लोग है जिनकी हमें तलाश है ? " 
" कोई जरूरी नहीं है मगर ....

" मगर ? " " फिलहाल उन्हीं लोगों के वहां होने के चांस ज्यादा है । दावे के साथ कह सकती हूं ---- महिला या उसके पति का क्रिमिनल से कोई सम्बंध नहीं है । जिस अंदाज में मि ० चैलेंज ने कागज पर लिखा हमें उनका फोन नम्बर मिला है . वह अपने आप बता रहा है लिखने वाले के लिए वह टेम्परेरी इस्तेमाल का था । क्योंकि न तो वह पेज टेलीफोन डायरेक्टरी का है और न ही नम्बर के आगे पीछे किसी का नाम लिखा है । 
परिचित के नम्बर को आदमी इस तरह नहीं बल्कि बाकायदा नाम लिखकर उसके सामने लिखता है । ऐसे अंदाज में वे नम्बर लिखे जाते हैं जिनको हमें एकाध बार इस्तेमाल करने के बाद भविष्य में कभी जरूरत पड़ने की संभावना नहीं होती । 
दूसरा प्वाइंट ---- बिजली वाले वहां कल दोपहर से काम कर रहे हैं और वेद का अपहरण , ग्यारह के आस - पास हुआ । हालांकि ये इतफाक भी हो सकता है मगर ऐसी हर चीज को खंगालना इस वक्त हमारी इयूटी है । 
" विभा जी । " जैकी ने पूछा---- " क्यों न मैं एम ० डी ० ए ० फोन करके पुछु कि थर्टी सिक्स वटा टू में उनके इलेक्ट्रिक डिपार्टमेन्ट का काम चल रहा है या नहीं ? " 
" गुड आइडिया । क्या तुम्हारे पास एम ० टी ० ए ० का नम्बर है ? " 
" वन नाइन सेवन से ले लेता हूँ । " कहने के साथ उसने अपनी बैल्ट से सैल्यूलर निकाला और अंगुलियां तेजी से काम करने के बाद उत्साह से भरा बोला ---- " उनका कहना है , फेज टू के किसी भी मकान में कोई काम बाकी नहीं बचा है । सारा काम एक महीने पहले कम्पलीट हो चुका है । 

" गौतम कह उठा--- " पक्का हो गया । मामला संदिग्ध है । जरूर ये मि ० चैलेंज के साथी हैं । उन्होंने एम ० टी ० ए ० के खाली पड़े मकान का इस्तेमाल किया और कॉलोनी में जो इक्का - दुक्का परिवार रह रहे हैं , उनमें प्रचार कर दिया कि एम ० डी ० ए ० के आदमी हैं । "

" पिंट्ट ने बताया वे चार थे ! दो चले गये ! दो वही है । " 
मकान के सामने पहुंच चुकी विभा ने कहा ---- " मुमकिन है वेद भी यही हो । " मेरा जी चाहा चीखकर कहूं ---- " हाँ विभा ! मैं यहीं हूं । " मगर । बोल न सका । बोलने के प्रयास में मुंह से गूं - गू की आवाज निकली । उस आवाज में बाहर मौजूद विभा या किसी अन्य के कान तक पहुंचने का दम नहीं था । मेरे मुंह में रुई ठुसी हुई थी । होठो पर टेप चिपका था । मुझे एक फोल्डिंग पलंग पर लिटाकर उसके साथ बांधा गया था।

हाथ - पांव ही नहीं सारा जिस्म रेशम की डोरी से बंधा था । बाहर से बराबर उन लोगों की आवाज आ रही थी । उन आवाजों को मेरे अलावा वे दोनों भी सुन रहे थे जो इस वक्त कमरे में मौजूद थे । 

विभा एण्ड कम्पनी की आवाजें उनके होश उड़ाये हुए थी । दोनों के हाथों में रिवाल्वर थे । बंद दरवाजे के दांये - बांये दीवार से पीठ टीकाये खड़े थे । किसी भी खतरे से निपटने के लिए मुस्तैद । और मैं विभा आदि को कमरे में मौजूद खतरे का इल्म कराना चाहता था , साथ ही चाहता था ---- अपनी मौजूदगी का अहसास कराना ! सूझ न रहा था क्या करू ? " 

यहाँ तो ताला लगा है । " आवाज जैकी की थी । 

विभा ने कहा --- " वे लोग चले गये लगते हैं । " 
" मगर पिंटू के मुताविक वे चार थे गये केवल दो । " ये शब्द प्रिंसिपल ने कहे थे ---- " दो यहीं होने चाहिए थे । उन्हीं के साथ वेद जी भी होंगे । " 
" वेद को लेकर दो बाद में निकल गये होंगे । " विभा ने कहा- " उन्हें जाते पिंटू देख न सका होगा । " 

" इसका मतलब हम देर से पहुंचे ? " मुझे लगा ---- ये लोग निराश होकर जाने वाले है । कुछ और न सूझा तो पलंग पर उछलने कूदने की कोशिश करने लगा । 
फोलडींग पक्के फर्श पर सरका । आवाज पैदा हुई । ये तो नहीं कह सकता यह आवाज बाहर पहुंची या नहीं परन्तु कमरे में मौजूद दोनों व्यक्तियों के चेहरे पर भभका दिये उसने । उनमें से एक झपटकर मेरे करीब आया । रिवाल्वर मेंरी कनपटी से सटाकर सर्प की मानिन्द फुफकारा ---- " ज्यादा चालाकी दिखाई तो भेजा उड़ा दूंगा । " 

अब बाहर से कोई आवाज नहीं आ रही थी । हम तीनों के कान बाहर ही लगे थे । कार स्टार्ट होने की आवाज आई । उसके बाद कार जाने की आवाज । उनके चेहरों पर राहत के भाव उभरे । मेरे दिलो - दिमाग पर निराशा छा गई । मुझ पर रिवाल्वर ताने शख्स गुर्राया ---- " ज्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश कर रहा था साले ! जी चाहता है तेरी खोपड़ी में हवा के आवागमन के लिए रोशनदान बना दूं।

वॉस की तरफ से ऐसा करने की सख्त मनाही है । " दूसरा भी मेरे नजदीक आता बोला । 

" यही तो मजबूरी है । " पहला कसमसाया । " लेकिन इसके साथी यहां पहुंच कैसे गये ? " । धांय - धांय ! दो गोलियां एक साथ चली । फिजां में दोनों की चीख गूंजी और दोनों के रिवाल्वर दूर जा गिरे । मैंने पुनः चीखना चाहा --- " व - विभा । " मगर चीख न सका । वह फ्लैट के इस और अंदर वाले दरवाजे के बीचो - बीच खड़ी थी । गुलाबी होठों पर मुस्कान और हाथ में रिवाल्चर लिये । रिबाल्वर की नाल से अभी तक धूंआं निकल रहा था । सफेद लिवास में मां मरियम सी नजर आई मुझे । 

दोनों गुण्डे उनकी तरफ फटी - फटी आंखों से देख रहे थे । तभी भड़ाक की जोरदार आवाज के साथ एम ० टी ० ए ० का शानदार दरवाजा चौखट सहित कमरे में आ गिरा । ताला ज्यों का त्यों लगा था । उसे एक ही धक्के में शहीद करने वाला जैकी था । मौका अच्छा जानकर एक गुण्डे ने फर्श पर पड़े रिवाल्चर पर जम्प लगानी चाही । विभा के रिवाल्वर ने एक बार फिर खांसा । गोली उसकी पिण्डली में लगी । चीख के साथ त्यौराकर गिरा वह । जैकी ने झपटकर अपना जूता उसकी छाती पर रख दिया । विभा ने दूसरे से कहा ---- " तुम भी ट्राई मारो । " उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी । कमरे में गौतम , प्रिंसिपल और शगुन दाखिल हुए । " पापा ! " चीखता हुआ शगुन मुझसे आ लिपटा।

गौतम ने झपटकर दोनों गुण्डों के रिवाल्वर उठा लिये । प्रिंसिपल मुझे खोलने के लिए लपका । " 

ठहरो ! " विभा ने कहा । प्रिसिपल ठिठका । फिर वह मेरी तरफ देखकर शरारती अंदाज में मुस्कराई ---- " अच्छे लग रहे हो ? " 
बोलने से लाचार मैं कसमसा गया । 
" क्या पोज है ? " विभा मेरे नजदीक आई । शगुन से बोली ---- " क्यों बेटे ! पापा स्मार्ट लग रहे हैं न ? " 
उसे मूड में देखकर जैकी , गौतम और प्रिंसिपल के होठो पर मुस्कान उभर आई । 

शगुन ने कहा --- " आप मजाक कर रही है आंटी ? " " मजाक और इनसे भला देश के ऐसे महान डिटेक्टिव से कौन मजाक कर सकता है जो दुनिया के सबसे बड़े क्रिमिनल का पीछा करता बहोश हुआ हो । चूम न लूं वतन के इस लाइले को । " 

कहने के साथ उसने सचमुच मेरे मस्तक पर एक चुम्बन अंकित कर दिया । " 

गाना गाने के लिए फड़फड़ा रहा है वेचारा । " वह मेरे होठो से टेप और मुंह से रूई निकालती हुई बोली ---- " सबसे पहले चोंच ही खोलती हूँ इसकी ! " 
" व - विभा ! " बोलने के काबिल होते ही मै बोला --- " मुझे यकीन था तुम मुझे ढूंढ लोगी । 
" उसने मुझे बच्चे की तरह पुचकारते हुए कहा ---- " और क्या यकीन था तुम्हें ? " 
" विभा प्लीज ! मुझे खोलो । " 
" खोल दो प्रिंसिपल साहब ! काफी कष्ट झेल लिया मेरे दोस्त ने । 
" इधर मैं पलंग से उठा उधर गौतम ने कहा --- " विभा जी , फायरों की आवाज ने कॉलोनी के सभी लोगों को बाहर निकाल दिया है । " 
" आगे की कार्यवाई यहां सम्भव नहीं है जैकी । " विभा बोली -...- " थाने चलो । " 

सब यही चाहते थे । आदेश का पालन होने लगा । कालोनी के लोग धीरे - धीरे सरकते सरकते थर्टी सिक्स बटा टू के बाहर इकट्ठा हो गये थे । 

पिंटू को खुद से लिपटाये पिंटू की मां ने कहा ---- हे भगवान ! मैंने तो इन्हें बुलाने अपने पिंटू को भेज दिया था । घर से फोन पर भी बात करा दी । अगर ये हमें ही........
मुस्कराती हुई विभा ने उसकी बात काटी- " वह सोचकर मत घबराइए जो नहीं हुआ।

" विभा ! " मैंने उसके कान में कहा --- " थाने चलकर एक ऐसी बात बताऊंगा जिसे सुनकर तुम उछल पड़ोगी । 

" उसने सवालिया नजरों से मेरी तरफ देखा । वहां कुछ भी कहने का मौका न था । दोनों गुण्डे हवालात में थे । हम सब जैकी के ऑफिस में । जैकी ने जिद करके विभा को अपनी कुर्सी पर बैठाया था । स्वयं हमारे साथ मेज के इस तरफ बैठा । उसने विभा से पुछा---- " गुण्डों से आप अपने तरीके से पूछताछ करना चाहेंगी या हवालात में जाकर मैं अपना तरीका इस्तेमाल करूं ? " 
मैं बोल उठा -- " उसकी जरूरत नहीं है । मैं उनसे ज्यादा जानता हूं । " 
" क्या आप उनके बाकी दो साथियों के नाम पते भी जानते हैं ? " 
" वे खुद भी नहीं जानते । " 
" मतलब ? " 
" ये जाल बड़ा गहरा था जैकी 
मि ० चैलेंज ने ये दो गुण्डे कहीं और से अरेंज किये थे .... दो गुण्डे कहीं और से । सारे किराये के है । इन दो को उन दोनों का और उन को इन दोनों का नाम पता नहीं मालूम । 

उन्हें यह भी नहीं पता कि उन्हें अरेंज करने वाला मि ० चैलेंज था । ये उसे ' बॉस ' कहते थे । " 
" यानी आगे बढ़ने का रास्ता मिलने की उम्मीद नहीं है ? " 
" रास्ता क्यों नहीं मिलेगा ? " मैंने अपने होठों पर भेदभरी मुस्कान बिखेरी ---- " जब उन्हें अरेंज करने वाला मेन मुजरिम पानी मि ० चैलेंज यहां मौजूद है तो रास्ता छोड़ो , मंजिल भी मिलेगी । " 
" य - यहां ? " एक साथ सब चौके ---- "मि ० चैलेंज यहां मौजूद है ? " 
" वेशक ! " मेरी मुस्कराहट गहरी हो गयी । विभा कह उठी ---- “ मारे सस्पैंस के अब तो दिमाग फटने वाला है यार ! उगल ही दो नाम । " 

" ये सारा खेल प्रिंसिपल साहब खेल रहे हैं । " 

" ह - हम ? " बंसल उछल पड़ा । चौंके सभी थे । विभा भी । 
मैं दांत पीसकर कह उठा ---- " हाँ बंसल ! तुम्हीं को कह रहा हूं । हालांकि मुझसे मिलते वक्त तुमने चेहरे को नकाब के पीछे छुपाने की भरसक चेष्टा की परन्तु बेवफूफी भरी कुछ ऐसी बातें कह गये जिनसे मैं तुम्हें पहचान गया । "

" य - यकीनन आपको गलतफहमी हुई है वेद जी । " वह बुरी तरह हकला रहा था ---- " व - विभा जी , सोचिए तो सही लगातार मैं आपके साथ हूं । " 
" यही तो खेल खेल रहे थे तुम । इधर विभा के साथ मुझे खोजने का नाटक , उधर चौंगे और नकाब के पीछे खुद को छूपाकर मुझसे मिलना ! दोनों जगह तुम थे । " 
" अगर मै मि ० चैलेंज हूँ तो मेरे सामने उसका फोन कैसे आ गया ? और विभा जी , क्या पी ० सी ० ओ ० पर मुझे केविन में कागज प्लांट करने का टाइम मिला था ? " 

" इने भरमाने के लिए दोनों काम तुमने किराये के वैसे ही गुण्डे से कराये जैसे हवालात में बंद हैं । " 
“ अब ---- अब इसका तो मेरे पास कोई जवाब नहीं है । " 
" जबाव होगा भी कैसे ? मेरे पास तुम्हारे मि ० चैलेंज होने का सुबुत जो है । " 
" स - सुबूत ? क्या सुबुत है आपके पास ? " 

मेरे कुछ कहने से पहले विभा बोल उठी ---- " मैं समझ सकती हूँ वेद ! कोई न कोई कारण जरूर है जो तुम इतनी बड़ी बात इतने विश्वासपूर्वक कर रहे हो । शुरू से आखिर तक बताओ —- तुम्हारे साथ क्या हुआ ? कैसे इनके चंगुल में फंसे ? और वो कौन - सा सुबूत है जिसके बेस पर बंसल मि ० चैलेंज सिद्ध होते हैं ? " 
" इमारत की चौथी मंजिल पर पहुंचते ही मेरे सिर पर किसी कठोर वस्तु का जोरदार प्रहार हुआ । मैंने लिखा बहुत है कि फलां करेक्टर की आखों के सामने आतिशबाजी का नजारा चकरा उठा मगर मेरे साथ पहली बार ऐसा हुआ । " 

मैं कहता चला गया ---- " आंख खुलने पर मैंने खुद को थर्टी सिक्स वटा टू के कमरे में उसी पोजीशन में पाया जिसमें तुम लोगों को मिला था । वे दोनों गुण्डे पहरे पर थे जो इस वक्त हवालात में बंद हैं । हालांकि ये एक दूसरे का नाम लेकर बातें नहीं कर रहे थे मगर मैंने उनकी बातों से अंदाजा लगाया कि मेरा अपहरण किसी ने कराया है । उसके खास निर्देश थे ---- यदि मैं भागने की कोशिश करूं तो अच्छी तरह मरम्मत कर दी जाये । परन्तु किसी भी हालत में जान से नहीं मारना है । ऐसे ही निर्देश दूसरी शिफ्ट के गुण्डों को थे । इन चारों का अरेंजमेंट केवल मुझे कैद में बनाये रखने के लिए किया गया था । 

मि ० चैलेंज के निर्देश पर इनमें से एक सामने वाले मकान का फोन नम्बर ले आया था । मि ० चैलेज ने वह नम्बर अपनी पाकेट डायरी में नोट करते हुए कहा था ---- प्लान के मुताबिक तुम लोगों ने यहां खुद को एम ० डी ० ए ० के कर्मचारी प्रचारित किया है । मुझे कोई निर्देश देना होगा तो इसी नंबर पर एम ० डी ० ए ० का अफसर बनकर दूंगा । जिस वक्त उसका फोन आया , वह दोनों ग्रुप्स की ड्यूटी चेंज का टाइम था । इसलिए चारों मौजूद थे । फोन के बाद वे दोनों चले गये । " 

" फोन पर मि ० चैलेंज ने क्या निर्देश दिया था ? " 
" जिसने सामने वाले मकान में जाकर मि ० पैलेंज से बात की , उसने वापस आकर बाकी तीन से कहा -बॉस का कहना है , जिन्दलपुरम से विभा जिन्दल नामक इसकी फ्रेन्ड आ चुकी है । सुना है ---- खोजवीन करने के मामले में उसे महारत हासिल है । उम्मीद तो नहीं है कि वह यहां पहुंच सकेगी । फिर भी , एक्स्ट्रा एलर्ट रहने की जरूरत है । 
इनमें से एक ने कहा ---- " तुम्हारी - शिफ्ट खत्म हो चुकी है , हमारी ड्यूटी शुरू ! तुम जाओ । एक लेडी से बॉस डरता होगा ! हम नहीं । वह यहां पहुंच भी गये तो बॉस ने केवल इसे न मारने का हुक्म दिया है , इसके दोस्तों को नहीं । " 
" क्या मि ० चेलेंज भी वहां आया था ? " 
" केवल एक वार ! तभी तो मुझे मालूम है कि मेरा अपहरण मि ० चैलेंज ने कराया था । " 
" क्या बात की उसने ?

मैंने प्रिंसिपल पर नजरें गड़ाये रखकर कहा ---- " वह जिस्म ढीला - ढाला सफेद चोगा , दस्ताने और रिवीक शू पहने हुए था । चेहरा काले नकाब से ढ़क रखा था । बाकी दो की शिफ्ट में आया था वह । आते ही उन्हें बाहर भेज दिया ताकि हमारी बातें न मुन सके और बोला ---- ' कहिए लेखक महोदय , मैंने तुम्हारी पीठ पर अपना मैसेज चिपका दिया और तुम्हें इल्म तक न हो सका ---- मेरी कारीगरी को मानते हो या नहीं ? ' 
बोलने के प्रयास में मैं फड़फड़ाया । अपने मुंह से टेप हटाने का इशारा किया , परन्तु उसने ऐसी कोई कोशिश नहीं की । दरअसल उसने सवाल जरूर किया मगर जवाब का इच्छुक नही था । अपनी कामयाबियों पर खुद ही जश्न सा मना रहा था ! 
वह बोला ---- ' मैंने सत्या की हत्या की ! चन्द्रमोहन को मार डाला । बाल बाका किया जाना तो दूर . मुझ पर अब तक किसी का शक भी नहीं पहुंच सका । तुम्हें तो खैर मैं कुछ समझता ही नहीं , लेखक हो ---- कागजों पर भले ही चाहे जितने दांव - पेच इस्तेमाल कर लो परन्तु असल घटनाओं के हत्यारे को सूंघ तक नहीं सकते । लेकिन वो जैकी ---- खुद को थर्ड डिग्री का मास्टर कहने वाला बेवकूफ ---- सुना है . रिकार्ड बहुत शानदार है उसका । अपने तरीके से अनेक जटिल केस सौल्च किये हैं । कम से कम मैंने तो उसे मूर्ख ही पाया । ' कहने के साथ यह मेरे पलंग की परिक्रमा कर रहा था । ठिठककर बोला ---- " अब मैं तुम्हें एक राज की बात बताता हूँ--चन्द्रमोहन की हत्या मैंने प्रिंसिपल के बल्लम से की ! यह राज न अब तक तुम जान सके न जैकी । 

ऐसा मैंने उसे फंसाने के लिए किया । लेकिन सामने जब बेवकूफ इन्वेस्टिगेटर हो तो ऐसी चालें कामयाब नहीं होती । कामयाब तो तब होती जब इस राज तक पहुचते और यही वह राज था जिसे जानने के लिए तुम मरे जा रहे थे । जो मिसेज बंसल ने बंसल के कान में कहा था । दरअसल मिसेज बंसल को उसी क्षण पता लगा था कि उनके दो पुश्तैनी बल्लमों में से एक गायव है । चन्द्रमोहन का खून बल्लम से हुआ है , यह बात उन्हें पहले से मालूम थी । बल्लम गायब होना उनके लिए इतनी विस्फोटक बात थी कि वे तुम्हारे वहां से चले जाने तक का इंतजार न कर सकी । 

ड्राइंगरूम में पहुंची । कहते - कहते अचानक ख्याल आया ---- शायद इस बात का जिक्र किसी बाहरी व्यक्ति के सामने नहीं किया जाना चाहिए । और तब .... उन्होंने यह खबर बंसल के कान में कही । बंसल के होश उड़ने थे । उड़े । इधर मारे जिज्ञासा के तुम्हारी हालत बैरंग हो गयी । 
तुमने पूछा ---- बंसल ने नहीं बताया । इतना बड़ा प्वाइंट वह उस शख्स के हाथ में दे भी कैसे सकता था जो एक सैकिण्ड पहले उसे हत्यारा कह रहा था । तुममें गर्मागर्मी हुई । उसके बाद तुमने उसका पीछा किया और मौका लगते ही मैंने तुम्हारी खोपड़ी पर चोट की । ' कहने के बाद मैं चुप हो गया । 

वे सब भी चुप थे ! विभा भी ! " क्या तुम अब भी नहीं समझी विभा कि मेरे सामने नकाब पहनकर खड़ा वह शख्स सिर्फ और सिर्फ बंसल था ? " 
" नहीं " विभा ने कहा । " 
हद हो गयी विभा । कम से कम तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी मुझे । दावे से कह सकता हूं इस बार तुम भी चुक रही हो । सोचा था --- जितनी बातें बता चुका हूं उन्हें सुनते ही मेरी तरह तुम भी समझ जाओगी कि मेरे सामने मि ० चैलेंज के रूप में खड़ा शख्स मि ० बंसल थे । 

" चौंकते हुए जैकी ने पूछा ---- " आप मि ० चैलेंज के मुंह से निकली वह बात बता चुके है ? " 
" यकीनन बता चुका हूं । " 
मेरे होठों पर उन सबको छकाने वाली मुस्कान थी । " 
कमाल है ! मैं तो ऐसी कोई बात नहीं पकड़ पाया । " 
" धुमाओ दिमाग ! सोचो ! कहो तो ये बातें दोहराऊ जो उस वक्त मि ० चैलेंज ने कही थी ? " 
" मुझे हर बात याद है । " गौतम ने कहा- " मगर कोई ऐसी नहीं लग रही जिससे जाना जा सके कि उस वक्त आपके सामने खड़ा नकाबपोश बंसल साहब थे ।

क्यों बंसल साहब ? " मैंने सीधे प्रिंसिपल से कहा ---- " क्या आपको अब भी इल्म नहीं हो रहा , उस वक्त आप क्या लूज टॉक कर गये थे ? " 

" पता नहीं आप मेरे पीछे क्यों पड़ गये है । जितनी बातें अब तक बताई हैं , मेरे खयाल से तो उन सबसे एक ही बात ध्वनित होती है ---- यह कि वह जो भी था , मुझे आपके शक के दायरे में फंसाना चाहता था । वकौल आपके , उसने साफ - साफ कहा , मैंने बंसल के वल्लम से चन्द्रमोहन की हत्या इसलिए की ताकि आप और जैकी प्रिंसिपल की गर्दन पकड़ लें । इसके बावजूद यदि आप कहते हैं कि वह हम थे जो बजह समझ से बाहर है । " 

" यह सब तुम कह ही इसलिए रहे थे ताकि मेरे जहन में यह भ्रम भर सको कि वह तुम नहीं कोई ऐसा शख्स है जो तुम्हें फंसाना चाहता है । परन्तु चूक होशियार से होशियार आदमी से भी आखिर हो ही जाती है । जाहिर है तुम अब तक नहीं समझ सके उस वक्त तुमसे क्या चूक हुई ? आश्चर्य केवल ये है विभा कि उस चूक को तुम भी नहीं पकड़ पा रहीं । " 
" पता नहीं हम सब कहां चूक रहे है ? " जैकी ने कहा ---- " अब तो बता ही दीजिए वेद जी । " 
" नहीं ! अभी नहीं । " विभा मुझसे कह रही थी ---- " बात पूरी करो वेद ! उसके बाद मि ० चैलेंज ने तुमसे क्या कहा ? " 

" बोला ---- सुना है , अखबार में तुम्हारे अपहरण की खबर पढ़कर जिन्दलपुरम से विभा जिन्दल आई है । तुम्हारी दोस्त है वो ! अब वो तुम्हारी खोजबीन करेगी । ' साढ़े तीन घंटे ' और ' बीवी का नशा ' मैंने भी पढ़े हैं । दोनों उपन्यासों में विभा जिन्दल के बारे में काफी डोंग मारी है । इस बहाने पता लग जायेगा यह कितनी ऊंची चीज है ? और सब में यदि वह उतनी ही ब्रिलियन्ट है जितना तुमने दर्शाया था तो मजा आ जायेगा इस टकराव में ! तुमसे और जैकी से उलझने में रस नहीं आ रहा । अगर वो विभा जिन्दल है तो मैं भी मि ० चैलेंज हूँ । पता लग जायेगा उसे , कि छोटे - छोटे अपराधियों को खोज निकालने और मि ० चैलेंज तक पहुंचने में कितना फर्क है ? 

आने दो । दावा है मेरा ---- उस वक्त तक मुझे कोई नहीं पहचान सकता जब तक अपने हाथों से नकाब न नोंच दूँ । " 

" उसके बाद ? " 
" अंत में यह कहकर चला गया कि दुनिया की कोई ताकत मुझे मेरे इरादों में कामयाब होने से नहीं रोक सकती । " 
" तुम्हारे ख्याल से इन बातों के पीछे उसका मकसद क्या था ? " 
एक बार फिर मैंने प्रिंसिपल को घूरा । कहा --- " मेरे जहन में यह ठूंसना कि मि ० चैलेंज और भले ही चाहे जो हो , मगर प्रिंसिपल नहीं है । " 
" और तुम फिर भी समझ गये वह प्रिंसिपल है ? " 
" इसकी चूक के कारण । " " अब तुम्हें उस चूक के बारे में बता देना चाहिए । " 
मैंने धमाका करने वाले अंदाज में कहा ---- " उसे कैसे मालूम था मिसेज बंसल ने बंसल के कान में क्या कहा ? " जैकी और गौतम उछल पड़े । गौतम कह उठा ---- " वाकई । " जैकी के मुंह से निकला ---- " सोचने वाल बात है।

" म मुझे नहीं पता । " बंसल की हालत बैरंग । " वहां केवल में , तुम और तुम्हारी मिसेज थीं ।
मि ० बंसल " मै एक - एक शब्द पर जोर देता कहता चला गया ---- " फिर वो बात मि ० चैलेज को कैसे पता लगी । जो वहां रहने के बावजूद मैं नहीं सुन सका था ? इतना ही नहीं , मि ० चैलेंज ने उस वक्त की एक - एक घटना का वर्णन चश्मदीद गवाह की तरह किया । 

सवाल उठता है ---- कैसे ? जवाब साफ है .---- वो तुम थे । तुम्हारे अलावा वहां की घटनाओं का ज्यों का त्यों जिक्र और कर भी कौन सकता है ? दरअसल उस वक्त तुम पर एक ही घुन सबार थी --- यह कि खुद को मेरे शक के दायरे से कैसे दूर रखो ! उसी धुन में तुमने बल्लम के बारे में बताया । तुम भूल गये बल्कि अब तक भी इल्म नहीं था कि चूक कहां हो गयी ? मैं तुमसे पुछता हूं विभा ---- जो बात केवल इसे और इसकी मिसेज को पता थी वह मि ० चैलेज ने कैसे कह दी ? अगर वह इसके अलावा कोई और था तो यह बात कैसे पता थी उसे ? " 
विभा बोली - पॉइंट में दम है मिस्टर बंसल जवाब दो । " 
" म - मुझे नहीं पता ! मुझे कुछ नहीं पता विभा जी ! " 
बंसल बुरी तरह रो पड़ा ---- " बस इतना जानता हूं मैं मि ० चैलेंज नहीं ।

मैंने ऑफिस में मौजूद हर शख्स की तरफ कामयाबी से परिपूर्ण मुस्कान के साथ देखा । कुछ ऐसे अंदाज में जैसे अखाड़े में अपने प्रतिद्धन्दि को चित करने के बाद जीतने वाला पहलवान दर्शकों की तरफ देखता है । सभी मेरे तर्क से सहमत नजर आ रहे थे । पहली बार मैंने विभा पर जीत दर्ज की थी । कह उठा---- कोई ऐसा जो बता सके , मि ० बैलेंज अगर कोई और था तो वे बाते उसे कहां से पता लग गयी ? " 
" जैसे मुझे पता लग गई । " विभा ने कहा । " 

तुम्हें ? " मैं सकपकाया । 
" पूछो बंसल से ! जैकी से भी पूछ सकते हो और मास्टर शगुन भी बतायेगा । बताओ बेटे , अपने पापा को बताओ वे बातें मुझे पता थीं या नहीं ? " 
" किससे पता लगी तुम्हे ? " " बंसल के नौकर से ? " 
मैं अवाक रह गया । पूछा ---- " क्या मिस्टर चैलेंज को भी उसी से .... 
" नहीं ! मि ० चलेज को ये बातें रामदीन से पता नहीं लगी थीं । " 
" फिर किससे पता लगी ? " 
" मतलब ? " 
" जिस तरह मैंने रामदीन के रास्ते से मालूम कर ली , मुमकिन है मि ० चैलेंज ने किसी अन्य माध्यम से जान ली हो । " 
" सवाल उठता है --- किस माध्यम से ? " 

अगर आज हमारे पास इस सवाल का जवाब नहीं है तो मतलब ये नहीं हुआ कि प्रिंसिपल को ही मि ० चैलेंज मान लें । अपना उदाहरण देने के पीछे मकसद केवल यह समझाना भी है की यह ऐसी बात नहीं थी जिसे मालूम ही न किया जा सके । 

" लगता है विभा , तुम केवल बहस करने के लिए बहस कर रही हो । " 
" वात बहस की नहीं बंद , गुत्थियों को समझने की है । " विभा कहती चली गयी ---- " हालांकि तारीफ करनी होगी : तुमने ऐसा प्वाइंट पकड़ा जिसे मैं नहीं पकड़ सकी । और यकीनन ये प्वाइंट ऐसा है जिसके बाद यह सोचने की गुंजाइश नहीं रह जाती कि मि ० चैलेज प्रिंसिपल के अलावा कोई और होगा । मैं खुले दिल से बधाई देती हूं - उसे कुबुल करो ! लेकिन .... 
" लेकिन ? " सभी उलझ गये । “ 
जब उसने जैकी के मोबाइल पर फोन किया तब मैंने मि ० चैलेंज को कच्चा खिलाड़ी कहा था , मैं अपने शब्द वापस लेती हूँ ।
" मतलब ? " " मि ० चैलेज जो भी है , बहुत पक्का और घुटा हुआ खिलाड़ी है । " 
" तुम तो उसकी तारीफ करने लगी । 

" दुश्मन भी अगर तारीफ का काम करे तो की जानी चाहिए । " 
" ऐसा कौन - सा काम कर दिया उसने ? " 
" दिमाग घुमाकर रख दिये हैं हम सबके । " विभा कह उठी ---- " ये छोटा काम नहीं है । अपनी बातों के शुरू में तुमने कहा था --- ' ये जाल बड़ा गहरा है । ' उस वक्त मैं तुम्हारे वाक्य से सहमत नहीं थी , परन्तु इस वक्त सहमत होना पड़ रहा है । वाकई मि ० चैलेंज ने इतना गहरा जाल बुना जिसमें हम फंसकर रह गये हैं।

" मैं समझ नहीं पा रहा विभा , तुम कहना क्या चाहती हो ? " 
" यह पेंच शायद तब ठीक से समझ आयेगा जब दिमाग से यह निकाल दो कि प्रिंसिपल मि ० चैलेंज था । समझ लो वह कोई और था ---- उसका मकसद था , प्रिंसिपल को तुम्हारी नजर में संदिग्ध बनाना । 

सोचो--- यदि यह काम वह सीधे - सीधे रास्ते से करता अर्थात् ऐसी कोई हरकत या बात करता , जिससे लगता , वह प्रिंसिपल है तो तुम पर क्या प्रतिक्रिया होती ? " 
" मैं समझ जाता यह कोई भी है मगर प्रिंसिपल नहीं है । प्रिंसिपल होता तो ऐसी कोई हरकत करता ही नहीं जिससे उसका राज उजागर हो जाये । . " 
दिमाग रखने वाले हर शख्स पर यही प्रतिक्रिया होगी ---- इस बात को मि ० चैलेंज अच्छी तरह समझता है । उसने तुम्हारे दिमाग को रीड किया और उसके अनुरूप चाल चली । वह समझ चुका था जो तुम्हें समझाने की कोशिश की जायेगी तुम उसका उल्टा समझोगे इसलिए अपनी बातों से यह समझाने की कोशिश की कि वह प्रिंसिपल नहीं बल्कि उसे फंसाने का इच्छुक कोई शख्स है और मुंह से ऐसी बात निकाल दी जिससे साबित हो कि वह प्रिंसिपल है तथा वो बात तुम्हें उसकी चूक लगे । तुम फौरन समझ गये ---- यह शख्स है प्रिंसिपल ही और ऐसी बातें इसलिए कर रहा है ताकि मैं इसे प्रिंसिपल न समझू । तुम्हें इसी नतीजे पर पहुंचाना उसका लक्ष्य था । " 
" यानी मैं बुरी तरह उसके खेल में फंस गया । " " तुम्हें बुरा न लगे तो ऐसा भी कहा जा सकता है । " 
" लेकिन ऐसा तभी हो सकता है विभा जब उसे ड्राइंगरूम की बातें कहीं और से पता लगी हों । ये बात मुमकिन नहीं तो बेइन्तिहा कठिन जरूर है । 

जब तक हमारे पास इस सवाल का जवाब नहीं है तब तक क्या तुम्हारी बातों से सिद्ध नहीं होता कि तुम अंधी होकर बंसल का पक्ष ले रही हो ? " 
" नहीं । ऐसा नहीं है । बंसल को मि ० बैलेंज न मानने के मेरे पास अनेक कारण है । 

" मैंने व्यंग सा किया ---- " एकाध का जिक्र तो करो । " 
" मेरे चन्द सवालों का जवाब दो । " विभा ने कहा ---- " तुम्हारे ख्याल से प्रिंसिपल को अपना पीछा किये जाने के बारे में मालूम था या नहीं ? "
“ हैन्डरेड परसेन्ट मालूम था , तभी तो मुझे बेहोश किया । " 
" क्या जरूरत थी बेहोश करने की ? " 
“ मतलब ? " 
" शीशे की तरह साफ है वेद ! प्रिसिपल को तुम्हें बेहोश करने की कोई जरूरत नहीं थी । बल्कि इसे तो चाहिए था कि अंजान बनकर तुम्हें अपने पीछे आने देता । अपनी और गौतम की बातें सुनने देता । सोचता ---- ये बातें सुनकर तुम्हारा शक खुद ही दूर हो जायेगा । खुद सोचो , अगर तुमने गौतम और प्रिंसिपल की बाते सुन ली होती ---- जान लिया होता कि यह हत्यारा नहीं बल्कि बल्लम की वजह से घबराया हुआ है और गौतम के पास मदद के लिए आया है तो क्या उसके बाद भी इसके पीछे पड़े रहते ? " 
" नहीं । " मुझे कहना पड़ा । 
" इति सिद्धम । " कसकर विभा मुस्कराई । " 

लेकिन विभा , क्या जरूरी है उस वक्त ये इस एंगिल से सोच पाया या नहीं ? " 
“ अपने पक्ष में हर शख्स चौबीस घंटे उसी ऐंगेल से सोचता है जो उसे सूट कर सकता हो । " विभा बगैर रुके कहता चलती गयी ---- " जैसा की तुमने कहा ---- अपहरण के पीछे प्रिंसिपल का उद्देश्य तुम्हारी नजर में खुद को बेगुनाह साबित करना था । तो मेरे दोस्त , इसके लिए इसे इतना प्रपंच रचने की जरूरत नहीं थी । अंजान बना रहकर तुम्हें अपनी और गौतम की बातें सुनाता और तुम्हारी गुड बुक में आकर मस्ती मारता । " 
" दूसरी बजह ? " " तुमने खुद बताया ---- किराये के गुण्डे इसे ' बॉस ' कह रहे थे । उन्हें नहीं मालूम था यह वही मि ० चैलेंज है जिसका जिक्र कालिज की घटनाओं के सिलसिले में अखबार में आ चुका है । तुमसे बात करते वक्त भी उसने दोनों गुण्डों को बाहर भेज दिया था । जो शख्स इतना पर्दा बरत रहा था , वह न किसी और को मि ० चैलेंज के नाम से जैकी के मोबाइल पर फोन करने का काम सौंप सकता है , न पी ० सी ० ओ ० में संदेश छोड़ने का काम कर सकता है । 
तीसरी वात ---- सामने का नम्बर अपनी नोट बुक में नोट करके जेब में रखते मि ० चैलेंज को तुमने अपनी आंखों से देखा था । पी ० सी ० ओ ० में हमें उसी नोट बुक का नीचे वाला कागज मिला । स्पष्ट है ---- वह कागज वहां उसी ने छोड़ा जिसने तुमसे बात की और प्रिंसिपल साहब वह इसलिए नहीं हो सकते क्योंकि जब फोन आया तो ये हमारी बगल वाली कुर्सी पर थे । तो चौथी बात भी बताऊं ? " 
" बता दो । "

" सीधी और सिम्पल बात ! इन्हें चन्द्रमोहन की हत्या अपने बल्लम से करने की जरूरत नहीं थी । यह वेवकूफी अगर इनसे हो गयी थी तो बल्लम गायब होने के बारे में सुनकर उतनी बुरी तरह कभी न चौंकते जितनी बुरी तरह चौंके और यदि वह चौकना नकली था तो मदद के लिए गौतम के ऑफिस में कभी न जाते । " 

" विभा । " मुझे कहना पड़ा ---- " जब तुम किसी प्वाइंट की धज्जियां उड़ाती हो तो उड़ाती ही चली जाती हो । तुम्हारे पास इतने तर्क होते है कि सामने वाला ठहर नहीं पाता । " 

" ये सारे तर्क मेरे दिमाग में शुरू से थे । इसलिए तुम्हारे बार - बार कहने के बावजूद सहमत नहीं थी । " 
" तो नतीजा यह निकला ---- वह कोई और है । " 
" यकीनन । " 
" कौन हो सकता है ? क्या इस पर भी रोशनी डाल सकती हो ? " 
" सारी बातों पर यहीं रोशनी मत डलवाओ । टार्च के सैल लीक हो चुके है । " विभा ने मस्ती के मूड में आते हुए कहा- " घर चलो ! मधु बहन का ब्लड प्रेशर बढ़ रहा होगा । " 

हम उठ खड़े हुए । कम से कम उस वक्त मैंने ख्वाब तक में नहीं सोचा था कि अभी हमारे घर पहुंचने का मुहूर्त नहीं आया है । कॉलिज में दिमागों का फ्यूज उड़ा देने वाली एक जबरदस्त घटना घट चुकी थी । 

मेरे अपहरण को लेकर कॉलिज में भी कम हंगामा नहीं था । लगभग सभी प्रोफेसर और स्टूडेन्ट्स उद्वेलित थे । राजेश , दीपा , एकता , ऐरिक और लबिन्द्र जैसे लोग मेरे घर भी पहुंचे । 

राजेश इस वक्त अपने बाकी दोस्तों को वहीं का हाल बता रहा था ---- " विभा जिन्दल मेरे सामने पहुंच गयी थी । क्या लेडी है । देखते ही मन में श्रद्धा जागती है । वेद जी की पत्नी तो उनसे लिपटकर रोने लगी । विभा ने कहा- ' कमाल है मधु बहन मैं तुम्हारे लिए खुशखबरी लेकर आई और तुम मुंह लटकाये खड़ी हो ! " 

रणवीर नामक स्टूडेन्ट ने पूछा --- " खुशखबरी कैसी ? " 
" कहने लगी ---- ' यूं समझो कि मैं वेद को ढूंढ चुकी हूं । " 
" क - क्या ? " उसके चारों तरफ खड़े स्टूडेन्ट्स के मुंह खुले के खुले रह गये । " 

मैं तो क्या ---- कोई भी उनकी बात का अर्थ नहीं समझ पाया । ऐसी बातें कर रही थी जैसे पहेलियां बुझा रही हो । " 
" कुछ देर बाद इंस्पैक्टर से उस इमारत की शॉप्स और ऑफिस की लिस्ट बनाने को कहने लगी जिसके बाहर वेद जी की गाड़ी खड़ी मिली थी । 
दीपा ने कहा --- . " और फिर जैकी को लेकर चली गई । " 
" कहाँ ? " मुक्ता ने पूछा । " 
ये तो साथ जाने वाले इंस्पेक्टर को भी नहीं पता था । " एकता बोली । " 
लुक तो ऐसा देकर गई थी जैसे वेद जी को साथ लेकर ही घर में घुसेंगी । " दीपा कहती चली गयी ---- " दूसरे लोग और बेद जी की मिसेज भी काफी आश्वस्त नजर आने लगी थीं । इन्तजार में हम काफी देर रुके भी लेकिन जब नहीं आई तो वापस आ गये । " 

संजय ने सवाल उठाया ---- " कहाँ गये होंगे वे लोग ? " अचानक अल्लारखा बोला ---- " मैं बता सकता हूं । " " तू - तू ? " सबने चौंककर अल्लारखा की तरफ देखा । " 
हाँ ... मैं । " उसने सीना चौड़ा लिया । 

" तु कैसे बता सकता है ? " उसने अपना कालर खड़ा करते हुए कहा ---- " 

विभा जिन्दल से बड़ा डिटेक्टिव जो हूँ मैं । " 

ये आधा किलो का कान पर पड़ा तो सारी जासूसी झड़ जायेगी । " राजेश ने अपना हाथ दिखाते हुए पृछा ---- " जल्दी बक ! " 

इन चक्षुओं से देखा था । " उसने आंखें मटकाई।
" कहाँ "
" यहीं । " 
" यही कहां ? " 
" अबे कालिज में ! और कहां ! " 
" यहां ? यहां आये थे वे ? " 
" हन्डरेड परसेन्ट । " 
" किससे मिले ? " 
" प्रसिपल से । " " और क्या तुझसे मिलते ? " 
" लेकिन प्रिंसिपल से क्यों मिले ? " 
" जी चाहता है न बताऊ बहरहाल जबरदस्त इन्फारमेशन है मेरे पास । मगर सोचता हूँ ---- गैर तो हो नहीं तुम लोग । दोस्त हो अपने , क्यों न बता ही दू ! " 
" बताता है या दूं एक हाथ ? " 
" बताता हूं ! बताता हूं यार । " एकाएक वह धमाका करने वाली स्टाइल में बोला --- " तुम लोग तो बेद जी के घर गये हुए थे ।

मैं देवदास बना ग्राउण्ड में एक पेड़ के नीचे बैठा था । " 
" फिर ? " " फिर ....। " कहते - कहते उसकी नजर गर्ल्स हॉस्टल की तरफ अटक गई ---- " शोला आ रहा है । " 
एक साथ सबने उधर देखा । गर्ल्स होस्टल से निकलकर हिमानी आ रही थी । ऊँची ऐड़ी की सेंडिल ! सफेद टी शर्ट और जांघों तक को नुमाया करने वाली सुर्ख स्कर्ट पहने हुए थी वह । 
बालों की दो छोटी - छोटी चोटियां बनाये , उनमें सुर्ख रंग के रिवन लगाये हुए थी । " 

शर्म नहीं आती तुझे । " एकता ने कहा ---- " मैडम को शोला कहता है । " 
" मैडम हो या आंटी ! शोला है तो शोला ही कहा जायेगा । " 
संजय कह उठा ---- " देखो तो ! बालों को कैसे गूंथकर दो चौटिया बनाई हैं । कसम से --- तुम सबसे छोटी लगती है । " 
" ब्रा तो जैसे मैडम पर है ही नहीं । " रणवीर ने कहा । 
" चुप । " दीपा ने घुंसा ताना ---- " सीमा से बाहर निकला तो नाक तोड़ दूंगी । " 

“ सीमा से बाहर मैं हूं ही कब ? " उसने सीमा नाम की लड़की की तरफ देखकर आंख मारी । 

" तुम ! और मेरे लिए ? " सीमा ने जीभ निकाल कर चिढ़ाया ---- ' ' ठेंगे पर ! " 

संजय बोला --- . " सीटी बजाने को दिल कर रहा है यार । " " बजाकर देख वह तेरा बाजा बजा देगी । " 
" अब हम भी क्या करें ? " राजेश बड़बड़ाया ---- " वो कपड़े ही ऐसे पहनती है । " 

" सत्या मैडम ने कितनी बार रोका मगर ये नहीं मानी । " 

तभी , ब्यायज हॉस्टल से ऐरिक निकलकर इस तरफ बढ़ता नजर आया । वह अपना परम्परागत लिबास अर्थात् धोती कुर्ता पहने हुए थे । लगभग भागने की सी अवस्था में हिमानी के पीछे लपक रहा था वह । 
" लो ! " दीपा कह उठी ---- " मैडम के आशिक भी निकल पड़े । " 
" इसे पता कैसे लग जाता है कि हिमानी मैडम कब हॉस्टल से बाहर निकली ? " 
“ तूने नहीं देखा ? " संजय ने कहा ---- " मैंने देखा है । दोनों के कमरों की खिड़की आमने - सामने है । देवनागरी लिपि की नजर हमेशा शोले की खिड़की पर टिकी रहती है । खाने - पीने से लेकर शेव तक बनाने का काम वहीं होता है । इसका बस चले तो कपाट भी वहीं बनवा ले । " 
" सुनो कोमलागनी । " ऐरिक ने पीछे से हिमानी को आवाज लगाई ---- " सुनो ! "

हिमानी अपनी सैंडिल पर घूमी । ऐरिक पर नजर पड़ते ही मुस्कराई और फिर , थोड़ी उचकती सी , वही अदा के साथ वापस पलट कर स्टूडेन्ट की तरफ बढ़ गई । किसी को नया कमेन्ट करने का मौका नहीं मिला । वह नजदीक आ गयी थी । चेहरा मेकअप से पुता पड़ा था । होठों पर लगी थी गहरे मुर्ख रंग की लिपस्टिक । 
" हैलो एवरीबडी । " वह अपनी आदतानुसार बार - बार होठो पर जीभ फेरती बोली । सबने एक साथ कहा -... " गुरु आफ्टर नून मैडम । " 

" यहां क्या कर रहे हैं आप लोग ? " उसने इठलाते हुए पुछा । अल्लारखा एकटक उसे देखे जा रहा था । एकता ने जोर से उसकी पीठ पर चुटकी भरी । 
" उई । " अल्लारक्खा चिहुंका । 
" क्या हुआ ? " हिमानी ने पूछा । 
" अभी कुछ नहीं हुआ । नौ महीने बाद होगा सर। " 
" दुष्ट ! " नजदीक आ चुके ऐरिक ने डॉटा ---- " छियालिसवीं बार बता रहा हूं तुझे । हमें सर नहीं , अध्यापक कहा कर ! देवनागरी लिपी का पठन - पाठन करते हैं हम । " 
" हाय ! " हिमानी ने एरिक की तरफ नाखून पोलिश से पुती अंगुलियां हिलाइ ऐरिक ने भी कहा ---- " हाय । " 
" सर " कई लड़के कह उठे ---- " आपने इंग्लिश बोली ? " 
" अंग्रेजी ? और हमने ? कब ? कहां ? कैसे ? " 

" अभी - अभी ' हाय ' कहा । " 
" धत्त ! कम्बख्तों । हमने अंग्रेजी वाला नहीं देवनागरी लिपी वाला हाय बोला है । " 
" हिन्दी वाला हाय ? ये कब बोला जाता है ? " 

" जब कोई ऐसी वस्तु परिलक्षित हो जिसे प्राप्त करना कठिन हो तो स्वयं हिन्दी बाली हाय विस्फुटित होती है । " 
" ऐसी क्या चीज देख ली आपने ? " ऐरिक ने अपने गंची चश्मे के पीछे से लार टपकाने वाले अंदाज में हिमानी को निहारा , बोला ---- " छंदेश्वरी ! बालक नटखट हैं । शरारत की मुद्रा में प्रतीत होते है । वैसे भी , इनके समक्ष प्रेमालाप करना उचित नहीं । क्यों न हम अल्पभोजनालय के लिए प्रस्थान करे ? " एक लड़के ने कहा ---- केंटीन बंद है गुरू जी ।

" क्षमा करें गुरुदेव ! " राजेश बोला -..- " हम एक आवश्यक विषय पर वार्तारत थे । " 
" बहुत सन्दर ! अति सुन्दर । " ऐरिक ने कहा ---- " हम तुमसे प्रसन्न ही इसलिए रहते हैं। राजेश तुम हमेशा देवनागरी लिपि में वार्ता करते हो । बहरहाल , किस विषय पर वार्ता कर रहे थे तुम लोग ? " 
" हम कहाँ थे । " राजेश ने अल्लारखा से कहा ---- " तू पेड़ के नीचे देवदास बना बैटा था ! उसके बाद ? " 
" विमा जिन्दल की चमचमाती गाड़ी आई और सीधी प्रिंसिपल के बंगले की तरफ चली गई । मैंने उसमें बैठे इंस्पैक्टर को देख लिया था । लगा ---- कुछ गड़बड़ है । उठा , और बंगले की तरफ लपक लिया । वाकी सब अंदर जा चुके थे , शोफर गाड़ी के बाहर खड़ा था । मैंने खुद को अशोक के पेड़ के साथ चिपका लिया । अन्दर तो खुदा जाने क्या खिचड़ी पक रही थी । मगर कुछ देर बाद जो सीन देखा , उसे देखकर फरिश्ते कूच कर गये मेरे । " 

" ऐसा क्या देखा तुमने ? " हिमानी अपने होठो पर जीभ फेरी । " 
चोरों की तरह चारों तरफ देखते शोफर ने डिक्की खोली । उसमें से एक बेहोश जिस्म निकालकर कंधे पर डाला । " 
" माई गॉड ! " हिमानी ने फिर होठो पर जीभ फेरते हुए पूछा ---- " किसका जिस्म था वह ? " 
" प्रिंसिपल के नीकर रामदीन का । " 
" हे भगवान ! " दीपा का उठी ---- " उसके बाद क्या हुआ ? " 
" शोफर ने डिक्की बंद की । " अल्लारखा की आवाज किसी हारर फिल्म के करेक्टर जैसी हो गई ... " रामदीन को कंधे पर लादे गाड़ी का पिछला दरवाजा खोला । 

एक बल्लम बाहर निकाला । " 
" बल्लम ? " चीख सी निकल गई सबके मुंह से । 
" हाँ "

ऐरिक ने पूछा ---- " क्या वह वही बल्लम था जिससे चन्द्रमोहन पर आघात किया गया ? " 

" पता नहीं वही था या कोई और लेकिन था वैसा ही । दोनों चीजें लिए शोफर दबे पांव बंगले के पीछे चला गया । " । 
" तुमने उसे फालो नहीं किया ? " अल्लारखा के जवाब से पहले हिमानी ने कहा ---- " उफ्फ ! मुझे गर्मी लग रही है । " 
" प्लीज मैडम ! " राजेश झुंझला सा उठा ---- " अल्लारखा को बात पूरी करने दो । " 
" अरे ! " हिमानी की तरफ देखते हुए अल्लारखा के मुंह से निकला ---- " आपके होठो पर क्या हुआ मैडम ? " 

सबने चौंककर हिमानी की तरफ देखा और उछल पड़े । उसके होठों पर मोटे - माटे फफोले नजर आने लगे थे । बुरी तरह बेचैन लग रही थी वह । बार - बार अपनी जीभ से अपने होठों के फफोलों को टटोलती चीखी ---- " ये क्या हो रहा है मुझे ? इतनी गर्मी क्यों लग रही है ? उफ्फ ! 
मैं जल रही हूं .... एक मोटा फफोला उसके गाल पर उभर आया.

देखने वालों के होश फाख्ता ! ऐरिक चीखा ---- " क्या हुआ महोदया ? ये फफोले कैसे है ? " 
हिमानी पागलों की तरफ अपने बाल नोचने लगी । उसके चेहरे पर ही नहीं , हाथ - पैरों पर भी फफोले नजर आने लगे थे । राजेश ने झपटकर उसके दोनों कंधे पकड़ें । दहाड़ा ---- " क्या हुआ मैडम ? क्या हुआ ? बोलो ! ये क्या हो रहा है आपको ? " वह अपने कपड़े फाडने लगी । वक्षस्थल नग्न हो गया । वहां भी फफोले नजर आ रहे थे । ठीक वैसे जैसे किसी के जिस्म पर खौलता पानी गिरने पर पड़ जाते हैं । कुछ फफोले बन चुके थे । कुछ बन रहे थे । देखने वाले अपनी आंखों से बनते हुए देख रहे थे उन्हें । चीखती - चिल्लाती हिमानी ने स्कर्ट तक टुकड़े - टुकड़े कर डाली । अब वह जन्मजात नग्न थी । जिस्म का कोई हिस्सा ऐसा नहीं था जहां फफोला नजर न आ रहा हो । डरे , सहमें , चकित और हतप्रभ स्टूडेन्ट्स उसके चारों तरफ वृत्त सा बनाये चीखने , चिल्लाने से ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहे थे । फफोलों की ज्यादती के कारण चेहरा अत्यन्त वीभत्स और डरावना हो उठा । चेहरा ही क्यों , सारा जिस्म कुरूप होता जा रहा था । उसने दौड़कर ऐरिक को पकड़ा । चीखी ---- " मुझे बचाइए ! मुझे बचाइए ऐरिक सर ! मैं मर रही हूं ! कोई मुझे अंदर से जला रहा है । फुंक रहा है ! " 
ऐरिक ने घबराकर खुद को छुड़ाया । वह अल्लारक्खा से लिपट गई ---- " मुझे बचाओ । मुझे बचाओ बेटे .... ' 

अल्लारखा ने उसे झंझोड़ा । दहाड़ा ---- " कैसे बचायें मैडम ? कैसे ? " और यह सवाल सभी के सामने था । हिमानी को बचायें भी , तो कैसे ? किसी को पता ही नहीं ये सब क्यों हो रहा है ?

जो हो रहा था वह सबके सामने था । मगर क्यों हो रहा है ? कैसे हो रहा है ? किसी की समझ में न आ सका । कोई बचाता भी तो कैसे ? अंततः आग से जलती , तड़पती , फड़फड़ाती सी हिमानी अंततः जमीन पर गिर गई । असंख्य फफोलों में से अनेक फट गये । और फिर , हिमानी का मुंह खुला । यूं डकराई जैसे भैंस हो । मुंह के रास्ते ढेर सारा खून इस तरह बाहर उछला जैसे किसी ने अंदर से धकेला हो । और उसी के साथ बाहर आ पड़ी , हिमानी की सम्पूर्ण जीभ । चीखें मारते हुए सब पीछे हटे । किसी स्टूडेन्ट ने सोचा भी नहीं था इंसानी जीभ इतनी लंबी होती है । लाश के चारों तरफ वहता खुन यूं उबल रहा था जैसे भट्टी पर रखी तैयार चाय उबल रही हो । हर आंख में खौफ । हर चेहरे पर दहशत और हर दिल में रूह तक को कंपकंपा देने वाले साये फनफना रहे थे । 

गौतम की भूमिका इस केस में खत्म हो चुकी थी । उसे थाने से विदा कर दिया गया । बंसल को विभा ने अपनी गाड़ी में बैठा लिया और कुछ दूर चलने के बाद कहा -- " गाड़ी कालिज की तरफ लेना । 
" मैं चौंका ---- " कॉलिज की तरफ क्यों ? " " भगवान न करे , मगर मुझे लगता है हत्यारे की अगली शिकार हिमानी है । " 

" इ - हिमानी ! 
" मेरे और बंसल के मुंह से चीखें निकली । चेहरों पर आश्चर्य के भाव लिए विभा की तरफ देखते रहकर .....वह सामान्य स्वर में कहती चली गई .--- " दो हत्याओं के बाद कालिज में होनी वाली छोटी से छोटी घटना को हम हल्के ढंग से नहीं ले सकते बेद । हिमानी को किसी के द्वारा बाथरूम में बंद किया जाना बेसबब नहीं हो सकता । " 

" तुम्हारे ख्याल से क्या कारण रहा होगा ? " 

" शायद हत्यारे ने उसके मर्डर की भूमिका तैयार की है । " 
" कैसी भूमिका ? " 
" बेचैन क्यों होते हो ? " विभा ने कहा ---- " कालिज का गेट आ चुका है । " 
तभी हवा के झोंके की तरह पुलिस जीप हमसे आगे निकली । दायरों की चरमराहट के साथ कॉलिज के गेट की तरफ मुड़ी.


" अरे ! " प्रिंसिपल कह उठा ---- " ये तो जैकी है । " 
विभा बोली- " इतनी तेजी में क्यों है ये ? " 

किसी के जबाब देने से पहले जीप आनन - फानन में बैंक होकर गेट से बाहर निकली । सांप की तरह लहराती राल्स रॉयल के नजदीक आई । जबरदस्त चीख चिल्लाहट के साथ रुकी और जीप से कूदता जैकी पागलों की मानिन्द चीखा ---- " कालेज में हिमानी की हत्या हो गयी है । 
" किसी और के बारे में तो क्या कहू ? मेरे कानों में सन्नाटा छा गया । सांय - साय हो रही थी चारों तरफ । 

हिमानी की लाश को बड़ी ही वीभत्स अवस्था में देखा हमने । मुझे उबकाई सी आने लगी थी । शगुन को हम शोफर के साथ गाड़ी में ही छोड़ आये थे । शायद यह अच्छा ही किया । 

याद आ रहा था ---- कितनी सुन्दर थी हिमानी ! कितनी मस्त ! टीचर होने के बावजूद स्टूडेन्ट सी लगती थी । कितना ध्यान रखती थी अपने जिस्म का । इसका जो इस वक्त ऐसी अवस्था में पड़ा था जिसे देखकर दहशत और घृणा के अलावा दूसरा भाव ही उठकर नहीं दे रहा था । किसने सोचा था इतनी जल्दी उसे इस हाल में देखना पड़ेगा ? स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर मुझे देखकर अचम्भित और खुश थे परन्तु ऐसा माहौल नहीं या था की कोई अपनी भावनाएं व्यक्त कर सकता । किसी ने यह पुछने तक की हिम्मत नहीं की कि मैं कहां था ? 
किसने किडनैप किया और कैसे वापस आ गया ? एक वृत्त सा बनाये सभी लाश से दूर खड़े थे । वृत्त के अंदर केवल तीन लोग थे । मैं , जैकी और विभा । उन दोनों के बारे में तो खैर कह नहीं सकता , वे क्या तलाश कर रहे थे परन्तु अपने बारे में कह सकता हूं ---- मुझे तो यह भी मालूम नहीं था कि तलाश करना क्या है ? दिमाग कुंद होकर रह गया था । जाम ! जैसे जंग लग गया हो ।

पूरी भीड़ के बावजूद ऐसा सन्नाटा था जैसा आजकल कब्रिस्तान में भी नहीं पाया जाता । " 

जैकी ! " सन्नाटे के गाल पर विभा के शब्द रूपी हाथ का झन्नाटेदार हाथ पड़ा ---- " इस वारदात की सूचना तुम्हें कैसे मिली ? " 

" मोबाइल पर । " ' 
" किसने फोन किया ? " 
" अल्लारखा ने । " 
विभा झुककर ध्यान से लाश के होठो को देख रही थी । मेरे दिमाग में कौंध रहा , सवाल अंततः जैकी के मुंह से फूट ही पड़ा- “ बात समझ में नहीं आ रही बिभा जी , हत्या आखिर हुई कैसे है ? 

" जवाब देने की जगह विभा ने सवाल किया --- " इसे बार - बार होठो पर जीभ फेरने की आदत थी क्या ? " 
मैं और जैकी दंग ! 
जैकी ने कहा --- " हाँ ! 
मगर आपको कैसे मालूम ? " 

मेरे मुंह से निकला ---- " बात समझ में नहीं आई ? " 
समझाने की कोशिश विभा ने भी नहीं की । स्टूडेन्ट्स की तरफ देखते हुए ऊंची आवाज से पूछा ---- " ये हादसा किसके सामने हुआ। राजेश , दीपा और एरिक आदि एक साथ बोले ---- " मेरे ! " 
विभा ने सभी को अपने नजदीक बुलाकर पूछा -- " क्या मरने से पूर्व हिमानी ने गर्मी लगने की शिकायत की थी ? " 

" हां मैडम ! " राजेश कहा ---- " सबसे पहले यही कहा था इन्होंने । उसके बाद जिस्म पर फफोले ... " सबसे पहला फफोला होठों पर नजर आया होगा ! " कहने के बाद विभा हिमानी की मौत का वृतांत इस तरह सुनाने लगो जैसे मुकम्मल घटना की चश्मदीद गवाह हो । 

सभी चकित रह गये । इधर वह चुप हुई उधर चेहरे पर हैरानियों का सागर लिए जैकी ने कहा -- " हैरत की बात है विभा जी । साधारण इन्वेस्टिगेटर जो बातें चश्मदीद गवाहों से पूछते हैं , उन्हें आप स्वयं बता रही हैं । ठीक ऐसे जैसे सब कुछ आपके सामने हुआ हो । " 

" हैरत की ऐसी कोई बात नहीं है इसमें । " विभा ने कहा -- " यदि गंधक , पोटेशियम में साइनाइट और सूखे सल्फ्यूरिक की एक निश्चित मात्रा किसी जीव के जिस्म में पहुंचा दी जाये तो यह सब होता है । " 

" अ - आपको कैसे मालूम ? " 

" सचेत इन्वेस्टिगेटर को ऐसी बातें पता रखनी होती हैं । इसके लिए उसे खाली समय में पुराने केसों की फाइलों का अध्ययन करते रहना चाहिए । सन् 1826 में अमेरिका के न्यूयार्क शहर में एक वैज्ञानिक ने इसी टेक्निक से चार हत्याएं की थी । " 
" क - कमाल की नालिज है आपकी ! " 
" तीन केमिकल्स से बनने वाला ये जहर जैसे ही निश्चित मात्रा में जिस्म में पहुंचता है , खून को उबालना शुरू कर देता है ।

धीरे - धीरे वह इस कदर उबलने लगता है जैसे आग पर रखा पानी । इसी कारण प्रभावित व्यक्ति पहले गर्मी लगने की शिकायत करता है , फिर जिस्म पर फफोले पड़ने शुरू होते हैं और अंततः लहु मुंह के रास्ते आ जाता है । " 

मैंने पूछा ---- " लेकिन विभा , जहर इसके जिस्म में पहुंचा कैसे ? "
" लिपस्टिक के जरिए । 
' लिपस्टिक ? " 
" हत्यारे को हिमानी की आदतों के बारे में अच्छी तरह पता था । नम्बर वन , इसे मेकअप का शौक है । नम्बर दू , इसकी लिपस्टिक पर जीभ घुमाने की आदत है । इसी का फायदा उठाया उसने । हत्यारे ने जहर इसकी लिपस्टिक पर लगा दिया और यह उसे चाटती कमरे से यहां तक आ गयी । निश्चित मात्रा मिलते ही खून उबलने लगा । अंजाम सामने है । " 

उसके बाद हम हिमानी के कमरे में पहुंचे । वहां कदम रखते ही मेरे पैर मानो जाम हो गये । आंखे ड्रेसिंग टेबिल के आइने पर चिपकी रह गयीं । शीशे पर लिपस्टिक से बड़े - बड़े अक्षरों में लिखा था ---- " CHALLENGE " 

" फिर वही चैलेंज ! " मेरे मुंह से स्वतः शब्द फूट पड़े --- " विभा , ये है वो वजह जिसने मुझे इस केस में इन्वॉल्व कर दिया । पहेली समझ में नहीं आकर दे रही । आखिर मरने वाला ये शब्द क्यों लिखता है ? पहले सत्या ने लिया । फिर चन्द्रमोहन ने । और अब हिमानी ने । " 

" क्या जरूरी है हिमानी ने ही लिखा है ये ? " 

" कमरे में कहीं न कहीं उसकी राइटिंग होगी । मिलाकर देखो ! मेरा दावा है .--- हिमानी ने ही लिखा है ये । " 

राइटिंग टेबल पर अटेंडेंस रजिस्टर रखा था । विभा ने उठाया । उसमें हिमानी की राइटिंग थी । उस राइटिंग से ड्रेसिंग टेबल पर लिखे अक्षरों का मिलान करने के बाद वह बोली ---- " लगती तो उसी की है । " 
" लगती है से मतलब ? " मैंने पूछा । " 
राइटिंग के बारे में अंतिम निर्णय एक्सपर्ट की रिपोर्ट के बाद ही किया जाना चाहिए । इस दुनिया में ऐसे बहुत लोग है जो राइटिंग की नकल मारने में माहिर होते हैं । ऐसे लोगों की कारीगरी नंगी आखों से नहीं पकड़ी जा सकती है । उन्हें परीक्षण के याद एक्सपर्ट्स ही पकड़ पाते हैं । " 
" सत्या ने यह शब्द सबके सामने लिखा था विभा । " वह होठो पर मुस्कान लिए बोली ---- " मैंने कब कहा नहीं लिखा ? " 
" फिर शक की वजह ? " विभा ने मेरे सवाल का जवाब देने की जगह जैकी से कहा ---- " क्या तुमने चन्द्रमोहन की जेब से निकले कागज को एक्सपर्ट के पास भेजा था ? "

" ज - जी हां । " 
" रिपोर्ट " 
राइटिंग चन्द्रमोहन की ही थी । " 
" इसका भी एक फोटो उतरवा लेना । " विभा ने शीशे पर लिखे अक्षरों की तरफ इशारा किया ---- " और एक्सपर्ट के पास भेजकर उसकी ओपिनियन जरूर ले लेना । " कहने के बाद उसने अपनी आखें ड्रेसिंग टेबल पर रखे मेकअप के सामान पर स्थिर की । 

सामान सलीके से रखा था । एक एक लिपस्टिक उठाकर उसका कलर देखती हुई विभा ने कहा ---- " लिपस्टिक पर पॉयजन लगाने का काम हत्यारे ने हिमानी को वाथरूम में बंद करके किया । उसकी हरकत का कारण तुममें से कोई नहीं समझ सका । " 

मै सोच रहा था कितनी तेजी से और कितना एक्यूरेट सोचती है विभा ? उसने गाड़ी में ही संभावना व्यक्त कर दी थी कि हत्यारे ने हिमानी की हत्या की भूमिका उसे बाथरूम में बंद करते वक्त तैयार कर ली थी । मैंने अपने दिमाग में उभरा एकमात्र सवाल उगला ---- " लेकिन विभा । यह घटना कल की है । यदि हत्यारे ने उस वक्त लिपस्टिक पर पॉयजन लगाया तो क्या उसे मालूम था हिमानी आज कौन - सी लिपस्टिक इस्तेमाल करेगी ? " 

" पायजन एक ही लिपस्टिक पर लगाया गया था या सब पर , इस सवाल पर जवाब मेकअप के सारे सामान को लेबोरेट्री में भेजने के बाद मिलेगा । " कहने के साथ विभा ने वह लिपस्टिक निकालकर अलग रख दी जिससे शीशे पर CHALLENGE लिखा गया था । हिमानी द्वारा इस्तेमाल की गई लिपस्टिक भी वही थी । ड्रेसिंग टेबिल की दराज खोलती विभा ने आगे कहा --- " वैसे मेरे ख्याल से हिमानी का आज ही मरना जरूरी नहीं था । उसे तब मरना था जब इस लिपस्टिक का इस्तेमाल करती । संयोग से वह दिन आज का हो गया । हत्यारे ने अपनी तरफ से मौत का जाल बिछाकर छोड़ दिया था । हिमानी आज मरे या कल । " 

मैंने कहा -- " सबसे अहम सवाल को तुम भी बार - बार गोल कर रही हो विभा । " 

" कौन सा सवाल ? " " हिमानी ने शीशे पर क्या सोचकर CHALLENGE लिखा ? " 

" मेरे दिमाग के मुताबिक अब एक सवाल के अंदर से दूसरा सवाल भी उभर आया है । यह सवाल तो अपनी जगह अनुत्तरित है ही कि मरने वाले CHALLENGE क्यों लिख रहे हैं ? चलो माना , सत्या ने किसी अज्ञात वजह से CHALLENGE लिखा । परन्तु चन्द्रमोहन ने कागज पर यही शब्द लिखकर जेब में क्यों रखा ? हिमानी ने इस कमरे से बाहर निकलने से पहले क्यों लिखा ? क्या इन दोनों को भी अपनी मौत का पूर्वाभास हो गया था ? " 

जैकी बोला ---- " ऐसा नहीं था । दावे से कह सकता हूं फोन पर बात करते वक्त चन्द्रमोहन को स्वप्न तक में अपनी मौत का अनुमान नहीं था । उसी तरह -चश्मदीद गवाहों के मुताबिक मौत के चंद क्षण पहले हिमानी जितनी मस्त थी , उसे देखते हुए नहीं जा सकता कि उसे मौत का पूर्वाभास था , बलिक वह तो खुद को बचाने के लिए भी चिल्लाई । " 

" फिर उसने किस मानसिकता के तहत शीशे पर CHALLENGE लिखा ? " एक - एक शब्द पर जोर देता मैं कहता चला गया -- " क्या लिखते वक्त उसे यह ध्यान नहीं आया होगा सत्या और चन्द्रमोहन यह शब्द लिखने के बाद मर चुके है ? ऐसा नहीं माना जा सकता कि यह बात उसके जहन में नहीं कौंधी होगी । यदि कौंधी थी , तो लिखते वक्त हाथ क्यों नहीं कांपे.
उसके ? यह सवाल दिमाग में क्यों नहीं आया कि अब मैं भी मरने वाली हूं ? अगर आया था तो लिखा क्यों ? इतनी मस्त कैसे थी वह इसे लिखते आखिर सोच क्या रही थी हिमानी ? " 

विभा कह उठी ---- " बहुत ही गूढ , गहरा और सार्थक सवाल उठाया है तुमने । " 

" मैं अपनी तारीफ का नहीं विभा , जवाब का तलबगार हूं । "

" मैं जादूगर नहीं बेद । इन्वेस्टिगेटर हूँ । केवल उन सवालों के जवाब दे सकती हूं जिनके जवाब घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद समझ में आये । " 
" अर्थात् तुम भी इस गुत्थी को नहीं सुलझा सकी ? " 
" दो बातें हैं जिन पर टाइम मिलने पर थोड़ा मनन करना चाहूंगी । " 

" कौन - सी दो बाते ? " जैकी ने उत्सुकतावश पूछा । " 

सत्या द्वारा CHALLENGE लिखने तथा चन्द्रमोहन और हिमानी द्वारा लिखने में एक बारीक फर्क है । सत्या में यह शब्द ठीक तब लिखा जब उसे अपनी मौत का इल्म हो गया । 

चन्द्रमोहन की तरह पहले से लिखकर जेब में नहीं रखा था । उसी तरह हिमानी ने भी मरते वक्त नहीं बल्कि मरने से काफी पहले लिख दिया था । सवाल उठता है ये फर्क क्यो ? मुमकिन है मुजरिम इसी फर्क के पीछे छुपा हो । " 
" दूसरी वात ? " 
" एक कागज पर इंग्लिश में चैलेंज लिखो । " 

" म - मैं ? " 

उसके विचित्र आदेश पर एक सेकेण्ड के लिए मैं सटपटा गया । होटों पर गहरी मुस्कान लिए कहा विभा ने ---- " हाँ तुम ! घबराओ नहीं , तुम मरने वाले नहीं हो । " 

समझ नहीं सका मुझसे चैलेंज लिखवाकर वह क्या साबित करना चाहती थी ? परन्तु सवाल करने की जगह एक कागज पर लिख दिया ---- ' Challenge कागज हाथ में लेते ही विभा की मुस्कान गहरी हो गयी । बोली ---- " तुमने यह शब्द सत्या की तरह इंग्लिश के कैपिटल लेटर्स में क्यों नहीं लिखा ? पहला अक्षर कैपिटल और बाकी लेटर स्माल इंग्लिश में क्यों लिखे ? " 

" इंग्लिश में किसी शब्द को लिखने का यही तरीका सही है । " 

“ याद रहे वेद ! सत्या इंग्लिश की टीचर थी । यकीनन इंग्लिश लिखने का तरीका तुमसे बेहतर जानती होगी । फिर उसने कैपिटल लेटर्स में चैलेंज क्यों लिखा ? वैसे क्यों नहीं लिखा जैसे तुमने लिखा है ? " सवाल वाकई जानदार था । मुझे चुप हो जाना पड़ा । जैकी ने कहा ---- " कैपिटल लेटर्स में शब्द लिखना सत्या की आदत हो सकती है । " 
" नहीं ! " बंसल कह उठा- " उसे यह आदत नहीं थी । " 
" इसके बावजूद मान लिया जाये आदत थी तो चन्द्रमोहन और हिमानी के बारे में क्या कहोगे ? " जानदार मुस्कान के साथ विभा ने जैकी को लाजवाब कर दिया ---- " क्या उन्हें भी यही आदत थी ? उन्होंने बेद की तरह चेलेंज लिखने की जगह सत्या की तरह क्यों लिखा ? " 

मैंने पूछा- " इस फर्क को प्वाइंट आऊट करके तुम कहना क्या चाहती हो विभा ? " " सत्या को CHALLENGE लिखते अनेक लोगों ने देखा है । उस वक्त उसे खुब मालूम था कि मेरे पास टाइम बेहद कम है , किसी भी क्षण मेरे प्राण पखेरू उड़ सकते हैं । ध्यान दो ---- Challenge फ्लो में लिखा जाता है अर्थात् कम टाइम जबकि CHALLENGE ज्यादा टाइम लेता है । इसके बावजूद सत्या ने Challenge नहीं CHALLENGE लिखा । यकीनन इसके पीछे कोई ठोस वजह होगी । यह बात और भी पक्की तब हो जाती है जब मरने वाले अन्य दो व्यक्ति भी Challenge नहीं CHALLENGE लिखते हैं । जाहिर है मरने वाले को कहना चाहते हैं वह केवल CHALLENGE के जरिए कहा जा सकता है , Challenge के जरिए नहीं । " 

" ऐसा क्या है जिसे इंग्लिश के कैपिटल लेटर्स के जरिये तो कहा जा सकता है मगर इन्हीं लेटर्स के स्माल इस्तेमाल से नहीं ? "

" इस सवाल का जवाब अभी मैं भी नहीं खोज पाई हूं । " 
" इसके बावजूद तुम पहेली को हल करने के काफी नजदीक हो विभा । " उत्साह में भरा मैं कहता चला गया ---- " मुझे यही उम्मीद थी । आमतौर पर किसी शब्द को लिखने में कोई शख्स कैपिटल लेटर्स का इस्तेमाल नहीं करता । यह बात जानने के बावजूद इस प्वाइंट पर मेरा या जैकी का ध्यान केन्द्रित नहीं हो सका था । तुम्हारी बातें सुनने के बाद लगता है .---- पहेली की चाबी इसी प्वाइंट में है कि मरने वाले ने यह शब्द कैपिटल लेटर्स में क्यों लिखा ? " 

" पहेली पर सिरखपाई बाद में भी हो सकती है । विभा ने खुली हुई दराज में नजर मारते हुए कहा ---- " फिलहाल हमारी जरूरत बारीकी से कमरे की तलाशी लेनी है । इस काम में मेरी मदद करो जैकी । ध्यान रहे , किसी वस्तु से अनावश्यक छेड़छाड़ नहीं करनी है । " 

उसके बाद करीब दस मिनट तक विभा और जैकी अपने अपने तरीकों से कमरे की तलाशी लेते रहे । विभा ने बाथरूम तक को नहीं बख्शा और जब बाहर निकली तो मैं चौंक पड़ा । चौकने का कारण थी विभा के होठो पर चिपकी मुस्कान । दो केसों में उसके साथ रह चुका मैं उस मुस्कान का अर्थ समझता था । वह मुस्कान विभा के होठों पर केवल तब नजर आती थी जब उसके हाथ कोई तगड़ा क्लू लगा होता था । मैंने पूछने के लिए मुंह खोला , उससे पहले विभा जैकी से बोली ---- " और ज्यादा खंगालने की जरूरत नहीं जैकी ! काम हो गया है । " 

हिमानी की पर्सनल अलमारी में नजर मारता जैकी चौंककर उसकी तरफ पलटा । मैंने उत्कंठापूर्वक पूछा -- . " तुम्हारे हाथ क्या लगा है विभा ? " 

मेरे सवाल का जवाब देने की जगह उसने अपनी आंखें भीड़ में खड़े लविन्द्र भूषण पर जमा दीं । कम से कम तीस सैकिण्ड तक उसी को देखती रही । लविन्द्र भूषण पन्द्रह सैकेण्ड उसकी नजरों का सामना कर सका । बाकी पन्द्रह सैकिण्ड बगलें झांकने में लगायी । एकाएक विभा ने उसे नजदीक आने के लिए कहा । लविन्द्र उसकी तरफ इस तरह बढ़ा जैसे पैर कई - कई मन के हो गये हैं । मारे सस्पेंस के सबका बुरा हाल था । इतने लोगों की मौजूदगी के बावजूद विभा की नजर लबिन्द्र पर ही क्यों टिक गई , कोई नहीं समझ पा रहा था । " 

आपका नाम ? " विभा ने उससे पूछा । उसकी आवाज मानो गहरे कुवें से उभरी ---- " लविन्द्र भूषण ! " 
" मैं आपके कमरे की तलाशी लेना चाहती हूँ।

मेरे कमरे की " लाविन्द्र के होश फाख्ता --- " क - क्यो ? " 
" सवाल छोड़िए । एतराज तो बताईए ? " 

" म - मुझे क्या एतराज हो सकता है । " 

" तो प्लीज ! मार्गदर्शन कीजिए हमारा । " कहने के साथ वह दरवाजे की तरफ बढ़ गई । सवालिया निशानों के सागर में गोते लगाती भीड़ ने काई की तरह फटकर रास्ता दिया । लविन्द्र भूषण के कमरे में कदम रखते ही सिगरेट की तीव्र गंध नथुनों में घुसती चली गई । राइटिंग टेबल पर रखी एशट्रे टोटों से भरी पड़ी थी । हमारे पीछे अन्य लोग भी अंदर आना चाहते थे , उन्हें रोकते हुए विभा ने मुझसे दरवाजा बंद करने के लिए कहा । मैंने वैसा ही किया । कमरे में केवल मै , जैकी और लविन्द्र थे । 

चेहरे पर हवाइयां लिए लविन्द्र ने कहा- " ल - लीजिए तलाशी । " 
" ले चुकी । " विमा मुस्कराई । 
" ज - जी " लविन्द्र चिहुंका । हालत जैकी और मेरी भी चिहुंक पड़ने जैसी थी । हम नहीं समझ सके उसने तलाशी कब ले ली ? " 
अब केवल एक सवाल का जवाब दीजिए मिस्टर लबिन्द्र । " उसे अपलक घूरती विभा ने पूछा ---- " हिमानी की हत्या आपने क्यों की ? " 
" म - मैंने ? मैने हत्या की ? " लविन्द्र इस तरह उछला जैसे हजारों बिच्छुओं ने एक साथ डंक मारे हो ---- " क - क्या कह रही हैं आप ? भ - भला में हिमानी की हत्या क्यों करूगा ? " 

" मैं वही पूछ रही हूं । " 
" अ - आपको किसी कारण गलतफहमी हो गयी है । मैंने उसे नहीं मारा । " 
" किस वजह से गलतफहमी हो सकती है मुझे ? " 
" म - मैं क्या जानूं ? " विभा बहुत ध्यान से लविन्द्र के फेस पर उभरने वाले एक्सप्रेशन को रीड करती नजर आ रही थी । बोली ---- " क्या कल और आज के बीच आप हिमानी के कमरे में नहीं गये ?

जवाब दीजिए मिस्टर लविन्द्र ? " बहुत मुश्कित से कह सका बह ---- " गया था ? " 
" क्यो ? " 
उसने हिचकते हुए पुछा ---- " क्या जवाब देना जरूरी है ? " 
" हत्या के इल्जाम से बचना चाहते हो तो जरूरी है । " 
" मेरे वहां जाने का कारण ये लेटर था। " कहने के साथ उसने अपनी पेंट की जेब से एक लेटर निकाल कर विभा को दिया । विभा की पतली अंगुलियों ने उसकी तहें खोलनी शुरू की । जिज्ञासा के मारे मै और जैकी उस पर झुक गये । लेटर का मजूमन तीनों ने लगभग साथ - साथ पढ़ा । 

लिखा था - माई डिअर लबिन्द्र ! बहुत दिन से तुम्हें अपने दिल की भावनाएं बताने के लिए वेचैन हूँ परन्तु साहस न कर सकी । पता नहीं तुम इतने खोये - खोये क्यों रहते हो ? क्या तुम्हें सचमुच मालूम नहीं कि कोई तुम्हें चोरी - चोरी देखता है । चाहता है । पूजता है । वो मैं हूँ लबिन्द्र ! मैं । पर एक तुम हो -- मैंने तुम्हें कभी अपनी तरफ नजर उठाकर देखते नहीं देखा । बहुत हिम्मत करके लेटर लिखा है । आज रात दो बजे अपने कमरे में तुम्हारा इंतजार करूंगी । सिर्फ तुम्हारी ---- हिमानी " 

और तुम उसके कमरे में पहुंच गये ? " पत्र पूरा पढ़ते ही मैं लविन्द्र पर वरस पड़ा ---- " मन ही मन सत्या से मुहब्बत करने के बावजूद हिमानी का आफर मिलते ही फिसल गये ? " 

" मेरे वहां जाने का कारण वो नहीं था जो आप सोच रहे हैं । " 
" और क्या कारण था ? " " हिमानी से वही सब कहना जो एक दिन सत्या ने मुझसे कहा था । " " क्या कहा था सत्या ने ? " विभा ने पूछा । " यह कि हम जवान बच्चों के कॉलिज में टीचर हैं । आपस में प्यार मुहब्बत का रिश्ता कायम करना शोभा नहीं देता । हमारे आचरण से स्टूडेन्ट्स में अच्छा मैसेज जाना चाहिए । " 

" और यही सब तुमने कहा ? " विभा ने उसे घुरते हुए पूछा । " 
यकीन मानिए । यही सब कहा था । " 

" हिमानी क्या बोली ? " " मेरी बातें सुनकर वह हैरान रह गयी । कहने लगी ---- ' आपने सोच कैसे लिया मिस्टर लविन्द्र कि मैं आपसे मुहब्बत करती हूं ? मैंने तो स्वप्न में भी कल्पना नहीं की । 

अब मैं चौंका ! जेब से निकालकर लेटर दिखाया । बुरी तरह चकित वह बोली ---- ' ये लेटर मैंने नहीं लिखा । मेरी राइटिंग ही नहीं है ये । और ये सच था । तब हम इस नतीजे पर पहुंचे कि किसी शरारती स्टूडेन्ट ने हमें बेवकूफ बनाया है । मगर किसने ? 

जो माहौल कॉलिज में है , उसमें इतनी बड़ी शरारत किसे सूझी ? न जान सके । शरारत करने वाले को ढूंढने की खातिर मैंने लेटर अपने पास रख रखा है । " 
" तुम झूट बोल रहे हो । " जैकी गुर्राया । विभा ने कहा --- " ये सच बोल रहे हैं जैकी । कुछ देर पहले हिमानी की राइटिंग हम सबने देखी है । लेटर की राइटिंग उससे अलग है । मि ० लविन्द्र को उस वक्त झूठ बोलता माना जा सकता था जब ये कहते कि इन्होंने हिमानी को आदर्श भरी बातें समझाई और वह समझ गयी । " 
" लेकिन विभा , तुम्हें कैसे पता लगा लविन्द्र हिमानी के कमरे में गया था ? " मैंने बहुत देर से अपने दिमाग में घूम रहा सवाल पूछा " सिगरेट पीने वालों की सबसे गंदी आदत होती है कि वे कहीं नहीं चूकते । ' कहने के साथ विभा मुझे सिगरेट का टोटा दिखाती बोली ---- " यह हिमानी के बाथरूम में मौजूद डस्टबिन से मिला । " 
" मगर तुमने यह नतीजा कैसे निकाल लिया यह लविन्द्र का है । सिगरेट तो कॉलिज में और भी लोग पीते होंगे । " 
" ध्यान से देखो इसे ! सिगरेट आधी पी गई है । टोटे पर सिगरेट का ब्राण्ड साफ पढ़ा जा सकता है । और अब एक नजर मि ० लविन्द्र की शर्ट पर डालो । झीने कपड़े की जेब में इसी ब्राण्ड का पैकिट रखा साफ चमक रहा है । "

" क्या जरूरी है ये ब्राण्ड इस्तेमाल करने वाला कालिज में दूसरा नहीं होगा . " 
" इसीलिए इस कमरे तक आने की जरूरत पड़ी । एशट्रे को देखते ही पुष्टि हो गयी , हिमानी के कमरे में सिगरेट पीने वाले मिस्टर लविन्द्र ही थे । ध्यान से देखो , एशट्रे में मौजूद सभी टोटे इस टोटे की तरह आये है अर्थात् आधी सिगरेट पीकर कुचल देना इनकी आदत है । " 
" कड़ियां जोड़ने में आपको महारत हासिल है । " जैकी कह उठा- " इस केस से पहले मैं ऐसे किसी इन्वेस्टिगेटर से नहीं मिला जो इतने छोटे - छोटे प्याइंट्स पकड़कर इतनी दूर तक निकल जाये । " जैकी के मुंह से विभा की तारीफ सुनकर मेंरा सीना चौड़ा हो गया । कुछ इस तरह , जैसे मेरी तारीफ की गई हो । मगर विभा पर कोई असर नहीं था । बोली -.- " मि ० लविन्द्र , मेरे ख्याल से यह लेटर आपको हिमानी के कमरे में भेजने के लिए हत्यारे ने लिखा है । " 
" मगर क्यों ? वह ऐसा क्यों चाहता था ? " " एक बजह आपको इन्वेस्टिगेटर की नजर में संदिग्ध बनाना भी हो सकती है । " 
" म - मुझे क्यों संदिग्ध बनाना चाहता है वह ? " 
" यह इस केस के हत्यारे की टेंडेंसी लगती है । कुछ देर पहले तक मि ० बंसल को चारा बनाकर हमारे सामने डाल रहा था । मुमकिन है आगे किसी और को डाले । यह टेक्निक उसने खुद को शक के से बाहर रखने के लिए अपनाई है । " 
" यह टेक्निक तो जबरदस्त पेचीदगियां पैदा कर देगी विभा जी । " जैको बोला ---- " किन्हीं कारणों से असल हत्यारे पर शक गया भी तो उस स्पॉट पर हम यह सोचकर चूक कर सकते हैं कि शायद वह भी हत्यारे की टेक्निक का ही शिकार है।

सो तो है । " विभा नुस्कराई ---- " वह अपनी चाल चलेगा । हमें अपने पैतरे दिखाने हैं । दिमाग की नसें इसी खेल से खुलती हैं । खैर .... जैसा कि आपकी बातों से जाहिर है मि ० लविन्द्र आप अभी तक इस लेटर के लेखक का पता नहीं लगा सके होंगे । " 
" कालिज में मुस्लिम कैंडिडेट कितने हैं ? " मैं और लबिन्द्र विभा के सवाल का मतलब नहीं समझ सके । जबकि जैकी मारे खुशी के लगभग उछल पड़ा ---- " मैं भी यही कहने वाला था विभा जी , लेटर किसी मुस्लिम ने लिखा है । 
" किस बेस पर ? " विभा ने कहा । " 
प्लीज ---- इम्तहान मत लीजिए मेरा । आपके सवाल से जाहिर है कि कॉपी के जिस कागज पर लेटर लिखा गया है , उसके दाहिने ऊपरी कोने पर बहुत छोटे - छोटे अंकों में लिखे ' सात सौ छियासी ' पर आपकी नजर भी पड़ चुकी होगी । ' विभा के होठो पर मुस्कान फैल गयी । बौली ---- " मुझे खुशी हुई कि इस प्वाइंट को तुमने भी पकड़ा । " 

" मैंने कहा था , आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा । " 
" सीख आदमी तभी सकता है जब सीखना चाहे । वैसे इसमें सीखने वाली उतनी बात नहीं है । जो भी वस्तु या जीव तुम्हारे सामने आये , उसे बारीकी से देखने की आदत डालो । मुमकिन है , उसी में से रास्ता निकलता नजर आये । " 

जैकी ने लविन्द्र से कहा --- " हमें मुस्लिम स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स की लिस्ट चाहिए । " मगर लबिन्द्र को लिस्ट बनाने की जरूरत नहीं पड़ी । विभा की सलाह पर कमरे का दरवाजा खोलकर जैकी ने जब ऊंची आवाज में पूछा कि अपनी कापी के पन्नों के कोनों पर बारीक लेटर्स में सात सौ छियासी लिखने की आदत किसे है तो चौंकते से राजेश ने आगे आकर कहा ---- " अल्लारखा को ! " 

सबकी नजरें अल्लारखा पर स्थिर हो गयीं । अल्लारक्खा की अवस्था बड़ी अजीब थी । उस वक्त तो पीला ही पड़ गया जब उसे कड़ी नजर से देखती विभा ने कहा ---- " अब हमें तुम्हारे कमरे की तलाशी लेनी है । " बेचारा अल्लारक्खा । कारण तक न पूछ सका । 

काफिला उसके कमरे में पहुंचा । यह कॉपी तलाश करने में खास दिक्कत पेश नहीं आई जिसके कागज पर लविन्द्र के नाम हिमानी का लेटर लिखा गया था । कापी में फटे हुए कागज के रेशे मौजूद थे । उन्हें देखने के बाद जैकी ने अल्लारखा को घुरते हुए कहा ---- " तो तुमने हिमानी की तरफ से लबिन्द्र को लेटर लिखा । " 
" ल - लेटर ? क कौन सा लेटर ? "

विभा ने लेटर उसके हाथ में पकड़ा दिया । अल्लारखा ने उसे पढ़ा और पढ़ते - पढ़ते चेहरे की सारी चमक काफूर हो गई । चीख सा पड़ा वह ---- " नहीं ! ये लेटर मैंने नही लिखा । " 

" मेरे सामने झूठ नहीं टिक पाता । " पहली बार विभा का लहजा कर्कश हुआ ---- " मैं लेटर की राइटिंग को इस कापी में मौजूद तुम्हारी राइटिंग से मिला चुकी हूँ । 

"राइटिंग मेरी है विभा जी , म - मगर मैंने इसे नहीं लिखा। यकीन कीजिए मेरी राइटिंग में यह लेटर किसी और ने लिखा " बात वो करो अलारखा जिस पर यकीन किया जा सके । 

रोने को तैयार उसने कहना चाहा --..- " मैं कसम खाकर कहना हूँ .... " इस तरह सच नहीं उगलेगा ये ! " भन्नाये हुए जैकी ने झपटकर दोनों हाथों से उसका गिरेवान पकड़ा और दांत भींचकर कहता चला गया -
--- " अपना तरीका इस्तेमाल करना पड़ेगा मुझे । " 

" म - मुझे बचाइए विभा जी । " अल्लारखा गिड़गिड़ा उठा --- " म - मैंने कुछ नहीं किया । " 

" जब तक सच नहीं बोलोगे तक तक मैं कोई मदद नहीं कर सकती ! " कहने के बाद विभा जैकी से मुखातिब होती बोली ---- " कुछ लोगों के सिर पर सवार भूत वाकई बातों से नहीं लातों से भागता है । इसे अपने साथ ले जाओ और जैसे भी हो , सब उगलवाओ । " और क्या चाहिए था जैकी को ! उसने तुरन्त अल्लारखा के हाथों में हथकड़ी डाल दी । अल्लारखा चीखता रहा , चिल्लाता रहा मगर कोई उसकी मदद न कर सका । विभा के आदेश पर जैकी उसे अपनी जीप की तरफ ले गया । सभी अवाक थे । हकके - वक्के थे । सन्नाटा हो गया वहां । बहुत कुछ कहना चाहकर कोई कुछ नहीं कह पा रहा था । 

अंततः मैंने ही पूछा ---- " क्या इस केस का हत्यारा पकड़ा गया विभा ? " 
“ तुम्हें शक क्यों है ? " उसके होठो पर भेद भरी मुस्कान नाच रही थी । 
" जाने क्यों , दिलो - दिमाग अल्लारक्खा को हत्यारा मानने को तैयार नहीं । भला सत्या , चन्द्रमोहन और हिमानी की हत्यायें यह क्यों करेगा ? और फिर , क्या इस जटील केस का हत्यारा इतना आसानी से पकड़ा जा सकता है ? " 

" तुम ठीक सोच रहे हो । " विभा ने कहा ---- " अल्लारखा हत्यारा नहीं है । " 
" फिर तुमने उसे ...

"वो लेटर हमें काफी दूर ले जा सकता है । " विभा ने कहा ---- " पहली बात , अगर ये लेटर अल्लारखा ने लिखा है तो पता लगना चाहिए उसने ऐसा क्यों किया ? और यदि उसने लेटर नहीं लिखा तो जाहिर है - हत्यारा दूसरों की राइटिंग की नकल में माहिर है । इस अवस्था में CHALLENGE वाली पहेली स्वतः हल हो जायेगी । " 

मुझे विभा की बात में दम लगा । एक बार फिर वहां खामोशी छा गयी । थोड़े अंतराल के बाद विभा ने बंसल से कहा ---- " प्रिंसिपल साहब , कल से कॉलिज की गतिविधियां उसी तरह चालू हो जानी चाहिए जैसे कुछ हुआ ही न हो । " 
सब चौके । 

बंसल कह उठा ..... " य - ये आप क्या कह रही है ? " 
" बर्तमान हालात में आपको मेरी बात अजीब लग सकती है परन्तु होना यही चाहिए । " विभा एक एक शब्द पर जोर देती कहता चली गयी ---- “ सामान्य गतिविधियां चालू नहीं हुइ तो वातावरण में आतंक छाया रहेगा । अगर हमने उसे छाये रहने दिया तो यह एक प्रकार से हत्यारे की मदद ही होगी । याद रहे ---- हत्यारे का मकसद कॉलिज परिसर में मौजूद हर शख्स को आतंकित रखना है क्योंकि आतंक युक्त दिमाग कभी ढंग से नहीं सोच पाते और जब तक सही दिशा में नहीं सोचेंगे , तब तक हत्यारा हमारी पकड़ से दूर रहेगा । " कहने के बाद वह एकाएक स्टूडेन्ट्स की तरफ मुड़ी और प्रभावशाली स्वर में बोली ---- " यह समझने की भूल कदापि न करना कि मेरे पास अलादीन का चिराग है । इन्वेस्टिगेटर तक नहीं हूँ मैं। वेद के अपहरण की वजह से मेरठ आई हूँ , और जब आ ही गई हूं तो इस कॉलिज में हो रही हत्याओं के जिम्मेवार शख्स को पकड़ने की कोशिश भी करूंगी । लेकिन आप सबके सहयोग के बगैर मेरी कामयाबी नामुमकिन है । सबसे पहला सहयोग आप तोग मुझे आतंकित वातावरण को वाश करके दे सकते हैं । और ये तव संभव है जब कालिज खुले । "

“ हम सहयोग देने के लिए तैयार हैं विभा जी । " राजेश ने कहा । " 
दूसरी बात , हत्यारा आप ही लोगों के बीच मौजूद है । उसे पहचानना और शायद पकड़ना भी आपके लिए मुझसे ज्यादा आसान है । माहोल खुशनुमा रहेगा तो अपनी चाल पिटती देखकर हत्यारा बौखलायेगा । बौखलाया हुआ मुजरिम हमेशा गलतियां करता है । यकीन रखो , तुम अपने बीच छुपी गलतियां करने वाले उस शख्स को पहचान सकते हो । 
वेद से पूछो ---- विभा जिन्दल आसमान से नहीं उतरी है । एक दिन मैं और वेद भी तुम्हारी तरह स्टूडेन्ट थे । हमारे कालिज में एक क्राइम हो गया था । मैंने इन्वेस्टिगेशन की और मुजरिम को पकड़ लिया । उस दिन खुद मुझे भी पहली बार पता लगा कि मेरे अंदर एक सुलझे हुए इन्वेस्टिगेटर के गुण हैं । कहने का तात्पर्य ये कि तुममें से भी कई भविष्य के विभा जिन्दल हो सकते हैं , अतः स्वयं हत्यारे को ढूंढने की कोशिश करो । विश्वास रखो ---- यह काम ज्यादा मुश्किल नहीं है । मुजरिम का होसला केवल तब तक बना रहता है जब तक अपने आस - पास खतरा नजर नहीं आता है । 

तुमने सुना होगा ---- चोर के पांव नहीं होते । जरा सा खटका होते ही वह भागने की कोशिश करता है और इसी कोशिश पकड़ा जाता है अर्थात् केवल खटका पैदा करो , वह स्वयं तुम्हारे चंगुल में होगा । " उपरोक्त किस्म की अनेक बाते कही विभा ने । उन बातों का असर मैंने सभी के वजूद पर देखा । निराश और आतंकित हो चले स्टूडेन्ट्स में उसने उम्मीद और जोश भर दिया था।


वह सिर पर हेलमेट , हाथों में दस्ताने , पैरों में कैपसोल के जूते , जिस्म पर काले रंग का ओवरकोट और वैसे ही रंग की पेन्ट पहने हुए था । हेलमेट लगी पारदर्शी प्लास्टिक ने उसका चेहरा तक ढक रखा था । अर्थात् जिस्म की त्वचा का जर्रा तक नजर नहीं आ रहा था । लम्बे - लम्बे कदमो के साथ वह ब्वायज हॉस्टल की गैलरी पार कर रहा था । एक कमरे के बन्द दरवाजे पर ठिटका । कमरा अल्लारखा का था । ओवरकोट की जेब से चाबी निकालकर आसानी से ताला खोला । गैलरी में दोनों तरफ निगाह मारी । कहीं कोई नजर नहीं आया । दरवाजा खोलकर अन्दर पहुंचा । किवाड़ वापस भिड़ाये ।

कमरे में अंधेरा था । हेलमेट वाले ने जेब से टार्च निकालकर ऑन की । प्रकाश पूरे कमरे में गर्दिश करने लगा । पलंग , मेज , कुर्सी और किताब - कापियों पर थिरकने के बाद दायरा एक ऐसी खूटी पर स्थिर हो गया जिस पर कई हेंगर लटक रहे थे । हेंगर्स में लटके हुए थे ---- अन्लारखा के कपड़े । प्रकाश का दायरा वही स्थिर किये हेलमेट बाला खूटी की तरफ बढ़ा । नजदीक पहुंचा । फिर उसने हेलमेट में लगा प्लास्टिक का फेस कवर ऊपर उठाया । टार्च का पिछला सिरा मुंह में दबाया । दोनों हाथ औवरकोट की जेब में डाले । हाथ जब बाहर निकले तो एक में वैसी मोटी कलम थी जिससे रेल या ट्रांसपोर्ट पर भेजे जाने वाले बंडल्स पर एड्रेस लिखा जाता है , दूसरे में चौड़े मुंह बाली ऐसी दवात जिसमें पानी जैसे रंग की स्याही भरी थी । हेलमेट वाले ने दवात का ढक्कन खोला । कलम की नोक दबात में डाली और हेंगर पर लटके नाइट गाऊन पर कुछ लिखने लगा । 

हम घर पहुंचे । मुझे देखकर मारे खुशी के मधु की आंखें भर आई । करिश्मा , गरिमा और खुश्बु दौड़कर लिपट गई।

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