गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

टिकट चोर




काफी देर सोचने के बाद महेश ने फैसला किया कि उसे बिना टिकट खरीदे ही रेल में बैठ जाना चाहिए, बाद में जोकुछ होगा देखा जाएगा, क्योंकि रेल कुछ ही देर में प्लेटफार्म पर आने वाली है. महेश रेल में बिना टिकट के बैठना नहीं चाहता था. जब वह घर से चला था, तब उस की जेब में 2 हजार के 2 कड़क नोट थे, जिन्हें वह कल ही बैंक से लाया था. घर से निकलते समय सौसौ के 2 नोट जरूर जेब में रख लिए थे कि 2 हजार के नोट को कोई खुला नहीं करेगा.

जैसे ही महेश घर से बाहर निकला कि सड़क पर उस का दोस्त दीनानाथ मिल गया, जो उस से बोला था, ‘कहां जा रहे हो महेश?’

महेश ने कहा था, ‘उदयपुर.’

दीनानाथ बोला था, ‘जरा 2 सौ रुपए दे दे.’

‘क्यों भला?’ महेश ने चौंकते हुए सवाल किया था.

‘अरे, कपड़े बदलते समय पैसे उसी में रह गए…’ अपनी मजबूरी बताते हुए दीनानाथ बोला था, ‘अब घर जाऊंगा, तो देर हो जाएगी. मिठाई और नमकीन खरीदना है. थोड़ी देर में मेहमान आ रहे हैं.’

‘मगर, मेरे पास तो 2 सौ रुपए ही हैं. मुझे भी खुले पैसे चाहिए और बाकी

2 हजार के नोट हैं,’ महेश ने भी मजबूरी बता दी थी.

‘देख, रेलवे वाले खुले पैसे कर देंगे. ला, जल्दी कर,’ दीनानाथ ने ऐसे कहा, जैसे वह अपना कर्ज मांग रहा है.

महेश ने सोचा, ‘अगर इसे 2 सौ रुपए दे दिए, तो पैसे रहते हुए भी मेरी जेब खाली रहेगी. अगर टिकट बनाने वाले ने खुले पैसे मांग लिए, तब तो बड़ी मुसीबत हो जाएगी. कोई दुकानदार भी कम पैसे का सामान लेने पर नहीं तोड़ेगा.’

दीनानाथ दबाव बनाते हुए बोला था, ‘क्या सोच रहे हो? मत सोचो भाई, मेरी मदद करो.’

‘मगर, टिकट बाबू मेरी मदद नहीं करेगा,’ महेश ने कहा, पर न चाहते हुए भी उस का मन पिघल गया और जेब से निकाल कर उस की हथेली पर 2 सौ रुपए धर दिए.

दीनानाथ तो धन्यवाद दे कर चला गया. जब टिकट खिड़की पर महेश का नंबर आया, तो उस ने 2 हजार का नोट पकड़ाया.

टिकट बाबू बोला, ‘खुले पैसे लाओ.’

महेश ने कहा कि खुले पैसे नहीं हैं, पर वह खुले पैसों के लिए अड़ा रहा. उस की एक न सुनी.

इसी बीच गाड़ी का समय हो चुका था. खुले पैसे न होने के चलते महेश को टिकट नहीं मिला, इसलिए वह प्लेटफार्म पर आ गया.

प्लेटफार्म पर बैठ कर महेश ने काफी विचार किया कि उदयपुर जाए या वापस घर लौट जाए. उस का मन बिना टिकट के रेल में जाने की इजाजत नहीं दे रहा था, फिर मानो कह रहा था कि चला जा, जो होगा देखा जाएगा. अगर टिकट चैकर नहीं आया, तो उदयपुर तक मुफ्त में चला जाएगा.

इंदौरउदयपुर ऐक्सप्रैस रेल आउटर पर आ चुकी थी. धीरेधीरे प्लेटफार्म की ओर बढ़ रही थी. महेश ने मन में सोचा कि बिना टिकट नहीं चढ़ना चाहिए, मगर जाना भी जरूरी है. वहां वह एक नजदीकी रिश्तेदार की शादी में जा रहा है. अगर वह नहीं जाएगा, तो संबंधों में दरार आ जाएगी.

जैसे ही इंजन ने सीटी बजाई, महेश यह सोच कर फौरन रेल में चढ़ गया कि जब ओखली में सिर दे ही दिया, तो मूसल से क्या डरना?

रेल अब चल पड़ी. महेश उचित जगह देख कर बैठ गया. 6 घंटे का सफर बिना टिकट के काटना था. एक डर उस के भीतर समाया हुआ था. ऐसे हालात में टिकट चैकर जरूर आता है.

भारतीय रेल में यों तो न जाने कितने मुसाफिर बेटिकट सफर करते हैं. आज वह भी उन में शामिल है. रास्ते में अगर वह पकड़ा गया, तो उस की कितनी किरकिरी होगी.

जो मुसाफिर महेश के आसपास बैठे हुए थे, वे सब उदयपुर जा रहे थे. उन की बातें धर्म और राजनीति से निकल कर नोटबंदी पर चल रही थीं. नोटबंदी को ले कर सब के अपनेअपने मत थे. इस पर कोई विरोधी था, तो कोई पक्ष में भी था. मगर उन में विरोध करने वाले ज्यादा थे.

सब अपनेअपने तर्क दे कर अपने को हीरो साबित करने पर तुले हुए थे. मगर इन बातों में उस का मन नहीं लग रहा था. एकएक पल उस के लिए घंटेभर का लग रहा था. उस के पास टिकट नहीं है, इस डर से उस का सफर मुश्किल लग रहा था.

नोटबंदी के मुद्दे पर सभी मुसाफिर इस बात से सहमत जरूर थे कि नोटबंदी के चलते बचत खातों से हफ्तेभर के लिए 24 हजार रुपए निकालने की छूट दे रखी है, मगर यह समस्या उन लोगों की है, जिन्हें पैसों की जरूरत है.

महेश की तो अपनी ही अलग समस्या थी. गाड़ी में वह बैठ तो गया, मगर टिकट चैकर का भूत उस की आंखों के सामने घूम रहा था. अगर उसे इन लोगों के सामने पकड़ लिया, तो वह नंगा हो जाएगा. उस का समय काटे नहीं कट रहा था.

फिर उन लोगों की बात रेलवे के ऊपर हो गई. एक आदमी बोला, ‘‘आजादी के बाद रेलवे ने बहुत तरक्की की है. रेलों का जाल बिछा दिया है.’’

दूसरा आदमी समर्थन करते हुए बोला, ‘‘हां, रेल व्यवस्था अब आधुनिक तकनीक पर हो गई है. इक्कादुक्का हादसा छोड़ कर सारी रेल व्यवस्था चाकचौबंद है.’’

‘‘हां, यह बात तो है. काम भी खूब हो रहा है.’’

‘‘इस के बावजूद किराया सस्ता है.’’

‘‘हां, बसों के मुकाबले आधे से भी कम है.’’

‘‘फिर भी रेलों में लोग मुफ्त में चलते हैं.’’

‘‘मुफ्त चल कर ऐसे लोग रेलवे का नुकसान कर रहे हैं.’’

‘‘नुकसान तो कर रहे हैं. ऐसे लोग समझते हैं कि क्यों टिकट खरीदें, जैसे रेल उन के बाप की है.’’

‘‘हां, सो तो है. जब टिकट चैकर पकड़ लेता है, तो लेदे कर मामला रफादफा कर लेते हैं.’’

‘‘टिकट चैकर की यही ऊपरी आमदनी का जरीया है.’’

‘‘इस रेल में भी बिना टिकट के लोग जरूर बैठे हुए मिलेंगे.’’

‘हां, मिलेंगे,’ कई लोगों ने इस बात का समर्थन किया.

महेश को लगा कि ये सारी बातें उसे ही इशारा कर के कही जा रही हैं. वह बिना टिकट लिए जरूर बैठ गया, मगर भीतर से उस का चोर मन चिल्ला कर कह रहा है कि बिना टिकट ले कर रेल में बैठ कर उस ने रेलवे की चोरी की है. सरकार का नुकसान किया है.

रेल अब भी अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी. मगर रेल की रफ्तार से तेज महेश के विचार दौड़ रहे थे. उसे लग रहा था कि रेल अब भी धीमी रफ्तार से चल रही है. उस का समय काटे नहीं कट रहा था. भीतरी मन कह रहा था कि उदयपुर तक कोई टिकट चैकर न आए.

अभी रेल चित्तौड़गढ़ स्टेशन से चली थी. वही हो गया, जिस का डर था. टिकट चैकर आ रहा था. महेश के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. अब वह भी इन लोगों के सामने नंगा हो जाएगा. सब मिल कर उस की खिल्ली उड़ाएंगे, मगर उस के पास तो पैसे थे.

टिकट खिड़की बाबू ने खुले पैसे न होने के चलते टिकट नहीं दिया था. इस में उस का क्या कुसूर? मगर उस की बात पर कौन यकीन करेगा? सारा कुसूर उस पर मढ़ कर उसे टिकट चोर साबित कर देंगे और इस डब्बे में बैठे हुए लोग उस का मजाक उड़ाएंगे.

टिकट चैकर ने पास आ कर टिकट मांगी. उस का हाथ जेब में गया. उस ने 2 हजार का नोट आगे बढ़ा दिया.

टिकट चैकर गुस्से से बाला, ‘मैं ने टिकट मांगा है, पैसे नहीं.’’

‘‘मुझे 2 हजार के नोट के चलते टिकट नहीं मिला. कहा कि खुले पैसे दीजिए. आप अपना जुर्माना वसूल कर के उदयपुर का टिकट काट दीजिए,’’ कह कर महेश ने अपना गुनाह कबूल कर लिया.

मगर टिकट चैकर कहां मानने वाला था. वह उसी गुस्से से बोला, ‘‘सब टिकट चोर पकड़े जाने के बाद यही बोलते हैं… निकालो साढ़े 5 सौ रुपए खुले.’’

‘‘खुले पैसे होते तो मैं टिकट ले कर नहीं बैठता,’’ एक बार फिर महेश आग्रह कर के बोला, ‘‘टिकट के लिए  मैं उस बाबू के सामने गिड़गिड़ाया,

मगर उसे खुले पैसे चाहिए थे. मेरा उदयपुर जाना जरूरी था, इसलिए

बिना टिकट लिए बैठ गया. आप मेरी मजबूरी क्यों नहीं समझते हैं.’’

‘‘आप मेरी मजबूरी को भी क्यों नहीं समझते हैं?’’ टिकट चैकर बोला, ‘‘हर कोई 2 हजार का नोट पकड़ाता रहा, तो मैं कहां से लाऊंगा खुले पैसे. अगर आप नहीं दे सकते हो, तो अगले स्टेशन पर उतर जाना,’’ कह कर टिकट चैकर आगे बढ़ने लगा, तभी पास बैठे एक मुसाफिर ने कहा, ‘‘रुकिए.’’

उस मुसाफिर ने महेश से 2 हजार का नोट ले कर सौसौ के 20 नोट गिन कर दे दिए. उस टिकट चैकर ने जुर्माना सहित टिकट काट कर दे दिया.

टिकट चैकर तो आगे बढ़ गया, मगर उन लोगों को नोटबंदी पर चर्र्चा का मुद्दा मिल गया.

अब महेश के भीतर का डर खत्म हो चुका था. उस के पास टिकट था. उसे अब कोई टिकट चोर नहीं कहेगा. उस ने उस मुसाफिर को धन्यवाद दिया कि उस ने खुले पैसे दे कर उस की मदद की. रेल अब भी अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी.

वह सरकार की मनमानी की वजह से टिकट चोर बन जाता. गनीमत है कि कुछ लोग सरकार और प्रधानमंत्री से ज्यादा समझदार थे और इस बेमतलब की आंधी में अपनी मुसीबतों की फिक्र करे बिना ही दूसरों की मदद करने वाले थे.

काफी देर सोचने के बाद महेश ने फैसला किया कि उसे बिना टिकट खरीदे ही रेल में बैठ जाना चाहिए, बाद में जोकुछ होगा देखा जाएगा, क्योंकि रेल कुछ ही देर में प्लेटफार्म पर आने वाली है. महेश रेल में बिना टिकट के बैठना नहीं चाहता था. जब वह घर से चला था, तब उस की जेब में 2 हजार के 2 कड़क नोट थे, जिन्हें वह कल ही बैंक से लाया था. घर से निकलते समय सौसौ के 2 नोट जरूर जेब में रख लिए थे कि 2 हजार के नोट को कोई खुला नहीं करेगा.

जैसे ही महेश घर से बाहर निकला कि सड़क पर उस का दोस्त दीनानाथ मिल गया, जो उस से बोला था, ‘कहां जा रहे हो महेश?’

महेश ने कहा था, ‘उदयपुर.’

दीनानाथ बोला था, ‘जरा 2 सौ रुपए दे दे.’

‘क्यों भला?’ महेश ने चौंकते हुए सवाल किया था.

‘अरे, कपड़े बदलते समय पैसे उसी में रह गए…’ अपनी मजबूरी बताते हुए दीनानाथ बोला था, ‘अब घर जाऊंगा, तो देर हो जाएगी. मिठाई और नमकीन खरीदना है. थोड़ी देर में मेहमान आ रहे हैं.’

‘मगर, मेरे पास तो 2 सौ रुपए ही हैं. मुझे भी खुले पैसे चाहिए और बाकी

2 हजार के नोट हैं,’ महेश ने भी मजबूरी बता दी थी.

‘देख, रेलवे वाले खुले पैसे कर देंगे. ला, जल्दी कर,’ दीनानाथ ने ऐसे कहा, जैसे वह अपना कर्ज मांग रहा है.

महेश ने सोचा, ‘अगर इसे 2 सौ रुपए दे दिए, तो पैसे रहते हुए भी मेरी जेब खाली रहेगी. अगर टिकट बनाने वाले ने खुले पैसे मांग लिए, तब तो बड़ी मुसीबत हो जाएगी. कोई दुकानदार भी कम पैसे का सामान लेने पर नहीं तोड़ेगा.’

दीनानाथ दबाव बनाते हुए बोला था, ‘क्या सोच रहे हो? मत सोचो भाई, मेरी मदद करो.’

‘मगर, टिकट बाबू मेरी मदद नहीं करेगा,’ महेश ने कहा, पर न चाहते हुए भी उस का मन पिघल गया और जेब से निकाल कर उस की हथेली पर 2 सौ रुपए धर दिए.

दीनानाथ तो धन्यवाद दे कर चला गया. जब टिकट खिड़की पर महेश का नंबर आया, तो उस ने 2 हजार का नोट पकड़ाया.

टिकट बाबू बोला, ‘खुले पैसे लाओ.’

महेश ने कहा कि खुले पैसे नहीं हैं, पर वह खुले पैसों के लिए अड़ा रहा. उस की एक न सुनी.

इसी बीच गाड़ी का समय हो चुका था. खुले पैसे न होने के चलते महेश को टिकट नहीं मिला, इसलिए वह प्लेटफार्म पर आ गया.

प्लेटफार्म पर बैठ कर महेश ने काफी विचार किया कि उदयपुर जाए या वापस घर लौट जाए. उस का मन बिना टिकट के रेल में जाने की इजाजत नहीं दे रहा था, फिर मानो कह रहा था कि चला जा, जो होगा देखा जाएगा. अगर टिकट चैकर नहीं आया, तो उदयपुर तक मुफ्त में चला जाएगा.

इंदौरउदयपुर ऐक्सप्रैस रेल आउटर पर आ चुकी थी. धीरेधीरे प्लेटफार्म की ओर बढ़ रही थी. महेश ने मन में सोचा कि बिना टिकट नहीं चढ़ना चाहिए, मगर जाना भी जरूरी है. वहां वह एक नजदीकी रिश्तेदार की शादी में जा रहा है. अगर वह नहीं जाएगा, तो संबंधों में दरार आ जाएगी.

जैसे ही इंजन ने सीटी बजाई, महेश यह सोच कर फौरन रेल में चढ़ गया कि जब ओखली में सिर दे ही दिया, तो मूसल से क्या डरना?

रेल अब चल पड़ी. महेश उचित जगह देख कर बैठ गया. 6 घंटे का सफर बिना टिकट के काटना था. एक डर उस के भीतर समाया हुआ था. ऐसे हालात में टिकट चैकर जरूर आता है.

भारतीय रेल में यों तो न जाने कितने मुसाफिर बेटिकट सफर करते हैं. आज वह भी उन में शामिल है. रास्ते में अगर वह पकड़ा गया, तो उस की कितनी किरकिरी होगी.

जो मुसाफिर महेश के आसपास बैठे हुए थे, वे सब उदयपुर जा रहे थे. उन की बातें धर्म और राजनीति से निकल कर नोटबंदी पर चल रही थीं. नोटबंदी को ले कर सब के अपनेअपने मत थे. इस पर कोई विरोधी था, तो कोई पक्ष में भी था. मगर उन में विरोध करने वाले ज्यादा थे.

सब अपनेअपने तर्क दे कर अपने को हीरो साबित करने पर तुले हुए थे. मगर इन बातों में उस का मन नहीं लग रहा था. एकएक पल उस के लिए घंटेभर का लग रहा था. उस के पास टिकट नहीं है, इस डर से उस का सफर मुश्किल लग रहा था.

नोटबंदी के मुद्दे पर सभी मुसाफिर इस बात से सहमत जरूर थे कि नोटबंदी के चलते बचत खातों से हफ्तेभर के लिए 24 हजार रुपए निकालने की छूट दे रखी है, मगर यह समस्या उन लोगों की है, जिन्हें पैसों की जरूरत है.

महेश की तो अपनी ही अलग समस्या थी. गाड़ी में वह बैठ तो गया, मगर टिकट चैकर का भूत उस की आंखों के सामने घूम रहा था. अगर उसे इन लोगों के सामने पकड़ लिया, तो वह नंगा हो जाएगा. उस का समय काटे नहीं कट रहा था.

फिर उन लोगों की बात रेलवे के ऊपर हो गई. एक आदमी बोला, ‘‘आजादी के बाद रेलवे ने बहुत तरक्की की है. रेलों का जाल बिछा दिया है.’’

दूसरा आदमी समर्थन करते हुए बोला, ‘‘हां, रेल व्यवस्था अब आधुनिक तकनीक पर हो गई है. इक्कादुक्का हादसा छोड़ कर सारी रेल व्यवस्था चाकचौबंद है.’’

‘‘हां, यह बात तो है. काम भी खूब हो रहा है.’’

‘‘इस के बावजूद किराया सस्ता है.’’

‘‘हां, बसों के मुकाबले आधे से भी कम है.’’

‘‘फिर भी रेलों में लोग मुफ्त में चलते हैं.’’

‘‘मुफ्त चल कर ऐसे लोग रेलवे का नुकसान कर रहे हैं.’’

‘‘नुकसान तो कर रहे हैं. ऐसे लोग समझते हैं कि क्यों टिकट खरीदें, जैसे रेल उन के बाप की है.’’

‘‘हां, सो तो है. जब टिकट चैकर पकड़ लेता है, तो लेदे कर मामला रफादफा कर लेते हैं.’’

‘‘टिकट चैकर की यही ऊपरी आमदनी का जरीया है.’’

‘‘इस रेल में भी बिना टिकट के लोग जरूर बैठे हुए मिलेंगे.’’

‘हां, मिलेंगे,’ कई लोगों ने इस बात का समर्थन किया.

महेश को लगा कि ये सारी बातें उसे ही इशारा कर के कही जा रही हैं. वह बिना टिकट लिए जरूर बैठ गया, मगर भीतर से उस का चोर मन चिल्ला कर कह रहा है कि बिना टिकट ले कर रेल में बैठ कर उस ने रेलवे की चोरी की है. सरकार का नुकसान किया है.

रेल अब भी अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी. मगर रेल की रफ्तार से तेज महेश के विचार दौड़ रहे थे. उसे लग रहा था कि रेल अब भी धीमी रफ्तार से चल रही है. उस का समय काटे नहीं कट रहा था. भीतरी मन कह रहा था कि उदयपुर तक कोई टिकट चैकर न आए.

अभी रेल चित्तौड़गढ़ स्टेशन से चली थी. वही हो गया, जिस का डर था. टिकट चैकर आ रहा था. महेश के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. अब वह भी इन लोगों के सामने नंगा हो जाएगा. सब मिल कर उस की खिल्ली उड़ाएंगे, मगर उस के पास तो पैसे थे.

टिकट खिड़की बाबू ने खुले पैसे न होने के चलते टिकट नहीं दिया था. इस में उस का क्या कुसूर? मगर उस की बात पर कौन यकीन करेगा? सारा कुसूर उस पर मढ़ कर उसे टिकट चोर साबित कर देंगे और इस डब्बे में बैठे हुए लोग उस का मजाक उड़ाएंगे.

टिकट चैकर ने पास आ कर टिकट मांगी. उस का हाथ जेब में गया. उस ने 2 हजार का नोट आगे बढ़ा दिया.

टिकट चैकर गुस्से से बाला, ‘मैं ने टिकट मांगा है, पैसे नहीं.’’

‘‘मुझे 2 हजार के नोट के चलते टिकट नहीं मिला. कहा कि खुले पैसे दीजिए. आप अपना जुर्माना वसूल कर के उदयपुर का टिकट काट दीजिए,’’ कह कर महेश ने अपना गुनाह कबूल कर लिया.

मगर टिकट चैकर कहां मानने वाला था. वह उसी गुस्से से बोला, ‘‘सब टिकट चोर पकड़े जाने के बाद यही बोलते हैं… निकालो साढ़े 5 सौ रुपए खुले.’’

‘‘खुले पैसे होते तो मैं टिकट ले कर नहीं बैठता,’’ एक बार फिर महेश आग्रह कर के बोला, ‘‘टिकट के लिए  मैं उस बाबू के सामने गिड़गिड़ाया,

मगर उसे खुले पैसे चाहिए थे. मेरा उदयपुर जाना जरूरी था, इसलिए

बिना टिकट लिए बैठ गया. आप मेरी मजबूरी क्यों नहीं समझते हैं.’’

‘‘आप मेरी मजबूरी को भी क्यों नहीं समझते हैं?’’ टिकट चैकर बोला, ‘‘हर कोई 2 हजार का नोट पकड़ाता रहा, तो मैं कहां से लाऊंगा खुले पैसे. अगर आप नहीं दे सकते हो, तो अगले स्टेशन पर उतर जाना,’’ कह कर टिकट चैकर आगे बढ़ने लगा, तभी पास बैठे एक मुसाफिर ने कहा, ‘‘रुकिए.’’

उस मुसाफिर ने महेश से 2 हजार का नोट ले कर सौसौ के 20 नोट गिन कर दे दिए. उस टिकट चैकर ने जुर्माना सहित टिकट काट कर दे दिया.

टिकट चैकर तो आगे बढ़ गया, मगर उन लोगों को नोटबंदी पर चर्र्चा का मुद्दा मिल गया.

अब महेश के भीतर का डर खत्म हो चुका था. उस के पास टिकट था. उसे अब कोई टिकट चोर नहीं कहेगा. उस ने उस मुसाफिर को धन्यवाद दिया कि उस ने खुले पैसे दे कर उस की मदद की. रेल अब भी अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी.

वह सरकार की मनमानी की वजह से टिकट चोर बन जाता. गनीमत है कि कुछ लोग सरकार और प्रधानमंत्री से ज्यादा समझदार थे और इस बेमतलब की आंधी में अपनी मुसीबतों की फिक्र करे बिना ही दूसरों की मदद करने वाले थे.

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इतिहास के रोचक तथ्य




1. बीजगणित, त्रिकोणमिति और कलन जैसी गणित की अलग-अलग शाखाओं का जन्म भारत में हुआ था।

2. शल्य चिकित्सा (Surgery) का प्रारंभ 2600 वर्ष पूर्व भारत में हुआ था। अनेक प्राचीन ग्रंथों में गुरु सुश्रुत और उनकी टीम द्वारा आँखों को मोतियाबिंदु से मुक्त करने, प्रसव कराने, हड्डियाँ जोड़ने, पथरी निकालने, अंगों को सुंदर बनाने और मस्तिष्क की चिकित्सा में शल्य क्रिया करने के उल्लेख मिलते हैं।

3. नौकायन की कला का आविष्कार विश्व में सबसे पहले 6,000 वर्ष पूर्व भारत की सिंधु घाटी में हुआ था।

4. 1982 में भारतीय सेना द्वारा लद्दाख घाटी में सुरु और द्रास नदी के बीच निर्मित बेली ब्रिज विश्व में सर्वाधिक ऊँचाई पर बना पुल है।

5. भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त (598-668) तत्कालीन गुर्जर प्रदेश के प्रख्यात नगर उज्जैन की अन्तरिक्ष प्रयोगशाला के प्रमुख थे।

6. ‘पाई’ की कीमत, संसार में सबसे पहले, छठवीं शताब्‍दी में, भारतीय गणितज्ञ बुधायन द्वारा पता की गई थी।

7. ईसा से 800 वर्ष पूर्व स्थापित तक्षशिला विश्वविद्यालय(आधुनिक पाकिस्तान) में 20,500 से अधिक विद्यार्थी 60 से अधिक विषयों की शिक्षा प्राप्त करते थे।

8. भारत के बंगलुरु नगर में 2,500 से अधिक सॉफ्टवेयर कंपनियों में 26,000 से अधिक कंप्यूटर इंजीनियर काम करते हैं।

9. कमल के फूल को भारत के साथ साथ वियतनाम के राष्ट्रीय पुष्प होने का गौरव भी प्राप्त है।

10. भारत विश्व का सबसे बड़ा चाय उत्पादक और उपभोक्ता है। यहाँ विश्व की 30% चाय उतपादित होती है जिसमें से 25% यही उपयोग की जाती है।

11. जयपुर में सवाई राजा जयसिंह द्वारा 1724 में बनाई गई जंतर मंतर संसार की सबसे बड़ी पत्थर निर्मित वेधशाला है।

12. भारतीय रेल कर्माचारियों की संख्या के आधार पर संसार की सबसे बड़ी संस्था है जिसमें 16 लाख से भी अधिक कर्मचारी काम करते हैं।

13. भारत में पाई जानेवाली 1,000 से अधिक आर्किड प्रजातियों में से 600 से भी अधिक केवल अरुणाचल प्रदेश में पाई जाती हैं।

14. भारत विश्व में सबसे अधिक डाकघरों वाला देश है। इतने डाकघर संसार के किसी भी ओर देश में नहीं हैं।

15. वाराणसी, जिसे बनारस के नाम से भी जाना जाता है, एक प्राचीन शहर है जब भगवान बुद्ध ने 500 बी सी में यहां आगमन किया और यह आज विश्व का सबसे पुराना और निरंतर आगे बढ़ने वाला शहर है।

16. कुंग फू के जनक तत्मोह या बोधिधर्म नामक एक भारतीय बौद्ध भिक्षु थे जो 500 ईस्वी के आसपास भारत से चीन गए।

17. जैसलमेर का किला संसार का एकमात्र ऐसा अनोखा किला है जिसमें शहर की लगभग 25 प्रतीशत आबादी ने अपना घर बना लिया है।

18. विश्व में 22 हजार टन पुदीने के तेल का उत्पादन होता है, इसमें से 19 हजार टन तेल अकेले भारत में निकाला जाता है।

19. 1896 तक भारत हीरों का एक मात्र स्त्रोत था और आधुनिक समय में हीरों के सबसे बड़े उपभोक्ता देशों में भारत तीसरे स्थान पर है। पहले व दूसरे स्थान पर क्रमशः अमेरिका और जापान हैं।

20. श्रीलंका और दक्षिण भारत के कुछ भागों में दीपावली का उत्सव उत्तर भारत से एक दिन पहले मनाया जाता है।

21. भारत ने अपने आखिरी 10,000 वर्षों के इतिहास में किसी भी देश पर हमला नहीं किया है।

22. ‘हिंदुस्तान’ नाम सिंधु और हिंदु का संयोजन है, जो कि हिंदुओं की भूमि के संदर्भ में प्रयुक्त होता है।

23. शतरंज की खोज भारत में की गई थी।

24. विश्व का प्रथम ग्रेनाइट मंदिर तमिलनाडु के तंजौर में बृहदेश्वर मंदिर है। इस मंदिर के शिखर ग्रेनाइट के 80 टन के टुकड़ों से बने हैं। यह भव्य मंदिर राजाराज चोल के राज्य के दौरान केवल 5 वर्ष की अवधि में 1004 से1009 ईसवी के दौरान बनवया किया गया था।

25. भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र और विश्व का सातवां सबसे बड़ा देश तथा प्राचीन सभ्यताओं में से एक है।

26. सांप सीढ़ी का खेल ,तेरहवीं शताब्दी .में कवि संत ज्ञान देव द्वारा तैयार किया गया था इसे मूल रूप से मोक्षपट कहते थे। इस खेल में सीढियां वरदानों का प्रतिनिधित्व करती थीं जबकि सांप अवगुणों को दर्शाते थे। इस खेल को कौडियों तथा पांसे के साथ खेला जाता था। आगे चल कर इस खेल में कई बदलाव किए गए, परन्तु इसका अर्थ वहीं रहा अर्थात अच्छे काम लोगों को स्वर्ग की ओर ले जाते हैं जबकिबुरे काम दोबारा जन्म के चक्र में डाल देते हैं।

27. दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट का मैदान हिमाचल प्रदेश के चायल नामक स्थान पर है। इसे समुद्री सतह से 2,444 मीटर की ऊंचाई पर भूमि को समतल बनाकर 1993 में तैयार किया गया था।

28. आयुर्वेद मानव जाति के लिए ज्ञात सबसे ,आरंभिक चिकित्सा शाखा है। इस शाखा विज्ञान के जनक माने जाने वाले चरक ने 2500 वर्ष पहले आयुर्वेद का समेकन किया था।

29. भारत 17वीं सदी के आरंभ तक ब्रिटिश राज्य आने से पहले सबसे अमीर देश था। क्रिस्टोफर कोलम्बस भारत की सम्पन्नता से आकर्षित हो कर भारत आने का समुद्री मार्ग खोजने चला और उसने गलती से अमेरिका को खोज लिया।

30. भास्कराचार्य ने खगोल शास्त्र के कई सौ साल पहले धरती द्वारा सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने में लगने वाले सही समय की गणना की थी। उनकी गणना के अनुसार सूर्य की परिक्रमा में पृथ्वी को 365.258756484 दिन का समय लगता है।

31. पेंटियम चिप का आविष्कार ‘विनोद धाम’ ने किया था। (आज दुनिया के 90% कम्प्युटर इसी से चलते हैं)

32. सबीर भाटिया ने हॉटमेल बनाई. (हॉटमेल दुनिया का न.1 ईमेल प्रोग्राम है)

33. अमेरिका में 38% डॉक्टर भारतीय हैं, अमेरिका में 12% वैज्ञानिक भारतीय हैं और नासा में 36% वैज्ञानिक भारतीय हैं.

34. माइक्रोसॉफ़्ट के 34% कर्मचारी, आईबीएम के 28% और इंटेल के 17% कर्मचारी भारतीय हैं.

35. ग्रीक तथा रोमनों द्वारा उपयोग की गई की सबसे बड़ी संख्या 10^6(अर्थात 10 की घात 6) थी जबकि हिन्दुओं ने 10^53 जितने बड़े अंकों का उपयोग करना शुरू कर दिया था.

36.भारत में 4 धर्मों का जन्म हुआ हिन्दु, बौद्ध, जैन और सिक्ख धर्म और जिनका पालन दुनिया की आबादी का 25 प्रतिशत हिस्सा करता है।

37. योग कला का उद्भव भारत में हुआ है और यह 5,000 वर्ष से अधिक समय से मौजूद है।

38. आधुनिक संख्या प्रणाली की खोज भारत द्वारा की गयी है. आर्यभट्ट ने अंक शून्य का आविष्कार किया था. विश्व में उपयोग की जाने वाली आधुनिक संख्या प्रणाली को भारतीय अंको का अंतरराष्ट्री रूप कहा जाता है.

39. पुरी के जगन्नाथ मंदिर में प्रतिदिन इतना प्रसाद बँटता है कि 500 रसोइए और 300 सहयोगी रोज़ काम करते हैं।

40. 5000 साल पहले जब विश्व में ज्यादातर सभ्यताएँ खानाबदोश जीवन व्यतीत कर रही थीं भारत में सिंधु-घाटी उन्नति के शिखर पर थी।

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020

अनुशासन का महत्व




जब हम पैदा होते हैं, तो उसके बाद हमें अलग – अलग लोगों द्वारा अच्छी आदतें सिखाई जाती है, ये अच्छी आदतें हमें इसलिए सिखाई जाती है, ताकि हम एक अच्छे इन्सान बन सकें. ये आदतें हमें हमारे बड़ों यानि हमारे माता – पिता एवं शिक्षकों द्वारा प्रदान की जाती है, जोकि हमारे जीवन को आसान बना देती है. उन सभी अच्छी आदतों में सबसे अच्छी आदत है, अनुशासन का पालन करना. वे हमें बचपन से ही अनुशासन जैसी अच्छी आदतों को अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं. इस लेख में हम आपको अनुशासन का हमारे जीवन में महत्व एवं उससे होने वाले लाभ के बारे में जानकारी दे रहे हैं. इसलिए हमारे लेख को अंत तक पढ़ें.   

अनुशासन क्या है? (What is Discipline Meaning)

कोई व्यक्ति हो या संस्था हो या राष्ट्र हो, जब वे अपने विकास के लिए कुछ नियम निर्धारित करते हैं, तो उसे अनुशासन कहा जाता है. अतः दूसरे शब्दों में कहें तो अनुशासन एक ऐसी आदत है, जोकि मनुष्य जीवन में बहुत मायने रखती है. अनुशासन को यदि अलग – अलग किया जाये, तो अनु और शासन दो शब्द मिलते हैं, जिसका अर्थ होता है खुद के ऊपर शासन करना. यानि यदि आप नियमित रूप से नियमों का पालन करते हैं, तो इससे आपका दिमाग एवं शरीर दोनों नियंत्रित रहते हैं. रोजमर्रा की जिन्दगी में आप सुबह से उठकर रात तक जो भी कार्य करते हैं, वह आपका रोज का नियम होता है और जब आप उन नियमों का पालन करते हैं, तो इसे अनुशासन कहा जाता है.

अनुशासन के प्रकार (Types of Discipline)

अनुशासन के विभिन्न लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार बताएं गए है. यहाँ हम कुछ प्रकार के अनुशासन के बारे में बताने जा रहे हैं जोकि इस प्रकार है–

सकारात्मक अनुशासन :- सकारात्मक अनुशासन वह है, जो व्यवहार के सकारात्मक बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित करता है. यह व्यक्ति में एक तरह का सकारात्मक विचार उत्पन्न करता है, कि कोई व्यक्ति अच्छा या बुरा नहीं होता, बल्कि उसके व्यवहार अच्छे या बुरे होते हैं. किसी बच्चे के माता – पिता उन्हें समस्या सुलझाने के कौशल सिखाते हैं और साथ ही उन्हें विकसित करने के लिए उनके साथ काम करते हैं. माता – पिता अपने बच्चे को अनुशासन सिखाने के लिए शिक्षण संस्थाओं में भेजते हैं. यह सभी पहलू सकारात्मक अनुशासन को बढ़ावा देते हैं. और इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिये.
नकारात्मक अनुशासन :- नकारात्मक अनुशासन वह अनुशासन है जिसमें यह देखा जाता है, कि कोई व्यक्ति क्या गलत कर रहा है, जिससे उस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. किसी व्यक्ति को आदेश देना एवं उन्हें नियमों और कानूनों को पालन करने के लिए मजबूर करना नकारात्मक अनुशासन होता है.

सीमा आधारित अनुशासन :- सीमा आधारित अनुशासन सीमाएं निर्धारित करने और नियमों को स्पष्ट करने के लिए होता है. इस अनुशासन के पीछे एक सरल सिद्धांत है, कि जब एक बच्चे को यह पता होता है, कि यदि वे सीमा से बाहर जाते हैं, तो इसका परिणाम क्या होता है, तो ऐसे बच्चे आज्ञाकारी होते हैं. उनका व्यवहार सकारात्मक होता हैं और वे खुद को हमेशा सुरक्षित महसूस करते हैं.

व्यवहार आधारित अनुशासन :- व्यवहार में संशोधन करने से सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही परिणाम होते हैं. अच्छा व्यवहार प्रशंसा या पुरस्कार के साथ आता है, जबकि दुर्व्यवहारों के कारण नकारात्मक परिणामों को हवा मिलती है, इसलिए इससे काफी नुकसान भी होता है.

आत्म अनुशासन :- आत्म अनुशासन का अर्थ है, अपने मन और आत्मा को अनुशासित करना जो बदले में हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं. इसके लिए हमें अपने आप को अनुशासित होने के लिए प्रेरित करना होगा. यदि हमारा दिमाग अनुशासित रहेगा, तो हमारा शरीर अपने आप ही अच्छे से कार्य करेगा.

अनुशासन के लाभ (Benefits of Discipline)

अनुशासित होना जीवन में कई फायदे और लाभ प्राप्त करने का एक तरीका है. इससे होने वाले कुछ लाभ इस प्रकार हैं –

केन्द्रित रहने में सहायक :- अनुशासित होने से व्यक्ति को अपने काम, गतिविधियों या लक्ष्यों के प्रति केन्द्रित रहने में मदद मिलती है. वे व्यक्ति जिनका लक्ष्य मजबूत होता है, वे अधिक केन्द्रित होते हैं, और रोजमर्रा की जिन्दगी में समय पर काम करने के लिए तैयार रहते हैं. अनुशासन के साथ किसी भी व्यक्ति को अपने मन को अपने काम या लक्ष्यों पर ध्यान केन्द्रित रखने में सहायता मिलती है, जिससे मानसिक समस्याओं से बचा जा सकता है.

दूसरों से सम्मान मिलता है :- अनुशासन दूसरों से सम्मान प्राप्त करने में मदद करता है. बहुत से लोग अपने कार्य करने वाली जगह में दूसरों से सम्मान पाने के लिए संघर्ष करते हैं. लेकिन सम्मान पाने का सबसे आसान तरीका अनुशासित होना है. आसपास के लोग अनुशासित व्यक्ति का सम्मान करते हैं. यदि आप अनुशासित रहते हैं, तो इससे दूसरे अन्य व्यक्तियों की नजर में आप सम्मान के पात्र हो जाते हैं, और वे आपको अपना रोल मॉडल भी मान सकते हैं.

स्वस्थ रखता है :- अनुशासित जीवन में कुछ आदतें हैं, जो नियमित होती है. जैसे भोजन, दवा, नहाना, व्यायाम करना, सही समय पर चलना और सोना आदि. व्यायाम और अन्य नियमित आदतें शरीर और दिमाग को इतनी अच्छी तरह से ट्यून करती है, जिससे व्यक्ति हमेशा स्वस्थ रहता है. यहाँ तक कि पुरानी बीमारी के लिए नियमित समय पर दवाएं लेने से भी जल्द ठीक होने में मदद मिलती है. समय पर भोजन करना बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि भोजन भी एक तरह की दवा होती है.

सक्रीय रहने में मददगार :- अनुशासन जीवन के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण का एक तरीका है. जोकि अंदर से उत्साह और आत्मविश्वास को जगाता है. इसलिए यदि आप हमेशा सक्रिय रहते हैं तो इससे आलस आपसे कोषों दूर रहता है. आप हमेशा उन लोगों की आदतों को अपनायें जो अनुशासित होते हैं, क्योंकि वे दूसरों की तुलना में भोजन, नींद और नियमित व्यायाम जैसी अनुशासित आदतों के कारण सक्रीय रहते हैं. इससे आपको सक्रीय रहने में मदद मिलेगी.

आत्म नियंत्रण :- जो व्यक्ति खुद अनुशासन में रहते हैं उनका स्वयं पर अधिक नियंत्रण होता है. वह बात करते समय अपने व्यवहार में सावधानी बरतते है. उनका व्यवहार आदि खुद को मूर्खतापूर्ण समस्याओं में फंसने से बचाता है. इससे वह लोगों के साथ अच्छे संबंध भी बनाता है.
चीजों को प्राप्त करने और खुश रहने में मदद करता है :- अनुशासित होने से चीजों को तेजी से और सही समय पर पूरा करने में मदद मिलती है. हालाँकि कुछ चीजें अन्य कारणों से देर से होती है. किन्तु फिर भी अनुशासित रहने वाला व्यक्ति अपने खुद के अनुशासन के कारण दूसरों की तुलना में तेजी से काम करता है. इससे उसके मन को शांति मिलती है और वह व्यक्ति खुश रहता है.

एक दिन में अधिक समय देता है :- एक अनुशासित व्यक्ति के पास एक अनुशासनहीन व्यक्ति की तुलना में एक दिन में अधिक समय होता है. तो अधिक समय का मतलब यह है कि उनके पास अतिरिक्त कार्यों या अन्य पेंडिंग कार्यों को करने की अधिक सम्भावना होती है, और वे अपने कार्यों को बखूबी कर भी लेते हैं.

तनाव मुक्त रहने में मदद करता है :- किसी को प्रतियोगी परीक्षा या दैनिक दिनचर्या के काम के दौरान तनाव होता है, जोकि हमारी आंतरिक चिंता को बढ़ा देता है. इससे हमारे काम के परिणाम पर भी असर पड़ता है. अनुशासित रहकर परीक्षा के लिए अध्ययन करने और रोज की दिनचर्या के काम अच्छी तरह से करने में मदद मिलती है. अनुशासन के कारण कार्य को अच्छी तरह से एवं समय पर किया जा सकता है. ताकि कोई तनाव न हो. इसलिए अनुशासन का एक फायदा यह भी है कि यह तनाव मुक्त रहने में मदद करता है जिससे आपका आत्म सम्मान बढ़ता है.

अतः ऊपर दिए हुए सभी लाभ आपके जीवन को सफल एवं सरल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है.

अनुशासन का हमारे जीवन में महत्व (Importance of Discipline in Our Life)   

अनुशासन से होने वाले लाभ के बारे में तो आपने जान लिया अब यह जानते हैं कि यह हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण है. इसके लिए निम्न बिन्दुओं पर नजर डालें –

दोस्तों जाने अनजाने में हम हर वक्त अनुशासन का किसी न किसी रूप में पालन करते ही हैं. क्योंकि यह हमारे जीवन में एक आदत बन जाती है. चाहे हम कहीं भी हो स्कूल, घर, कार्यालय, संसथान, कारखाने, खेल के मैदान, युद्ध के मैदान या अन्य किसी भी स्थान पर हो. हम इसका पालन करते ही है. इसलिए यह हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन जाता है.

अनुशासन हमारे जीवन के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जब हम अनुशासन में रह कर काम करते हैं तो हमारा वह काम शांति से और अच्छे से हो जाता है. और जब हमारा काम आसानी से हो जाता है तो हमे आंतरिक ख़ुशी मिलती है और हमारा मन भी शांत रहता है.  
कई सफल व्यक्ति जिन्होंने अपने जीवन में काफी सफलता हासिल की हो वह अपनी इस सफलता का श्रेय अनुशासन को देते हैं. उनकी सफलता की राह में ज्ञान, संचार या कौशल से अधिक अनुशासन अहम भूमिका निभाता है.

अनुशासन हमारे व्यक्तिगत जीवन, करियर, काम, अध्ययन, जीवन शैली और यहाँ तक कि सामाजिक जीवन तक फैला हुआ है. इसलिए इसका महत्व भी हमारे जीवन के लिए बहुत अधिक है.
अनुशासन हमें आगे बढ़ने का सही तरीका, जीवन में नई चीजें सीखने, कम समय के अंदर अधिक अनुभव करने जैसे बहुत सारे अवसर प्रदान करता है.

यदि कोई व्यक्ति अनुशासन में काम नहीं करता है तो वह कितना भी अधिक प्रतिभाशाली और मेहनती क्यों न हो उसे सफलता आसानी से प्राप्त नहीं होती है. यहाँ तक कि यदि अनुशासन नहीं है तो इससे बहुत सारे भ्रम और विकार पैदा होते हैं. इससे जीवन की प्रगति रुक जाती है और बहुत सारी समस्या पैदा होती है. और अंत में निराशा मिलती है.
इस तरह से जीवन में अनुशासन बहुत अधिक महत्वपूर्ण होता है.

अनुशासन का विद्यार्थी जीवन में महत्व (Importance of Discipline in Students Life)

किसी विद्यार्थी को बेहतर शिक्षा तभी प्राप्त हो सकती है जब वह अनुशासन में रहकर कार्य करते हैं. इसलिए कहा जाता है कि अनुशासन सीखे बिना शिक्षा अधूरी है. कक्षा में सिखाया गया अनुशासन छात्रों को अच्छी तरह से शिक्षा प्राप्त करने में और पूरे पाठ्यक्रम को समझने में मदद करता है. जब वे समय पर उठते है और समय पर स्नान और नाश्ता कर स्कूल जाते हैं तो यह अनुशासन ही हैं जो उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है. विद्यार्थियों के स्कूलों में सिखाया जाने वाला अनुशासन उन्हें स्वस्थ रहने में मदद करता है, जोकि उनके शरीर और दिमाग दोनों के विकास के लिए अच्छा है. इसलिए एक विद्यार्थी को बचपन से ही अनुशासन जैसी अच्छी आदतें सिखाई जाती है जोकि उनके लिए जीवन भर फायदेमंद रहती है.

अनुशासन पर सुविचार (Discipline Quotes)

अनुशासन पढ़ना, सीखना, प्रशिक्षण लेना, और इसके तरीके को जीवन में लागू करना है.

अनुशासन कोई नियम, कानून या सजा नहीं है, और न ही समर्पण या कर्तव्य पालन, कठोर, बोरिंग या हमेशा एक ही काम करने वाला है. अनुशासन एक विकल्प है जो आपकी पसंद हो सकता है, और यह निर्णय लेने में भी बेहतर होता है.

अनुशासन वह प्रकृति है जो प्रकृति द्वारा बनाई गई हर चीज में मौजूद होता है.

एक अनुशासित मन सुख की ओर जाता है और एक अनुशासनहीन मन दुःख की ओर ले जाता है.

सफलता के लिए सबसे महत्वपूर्ण चाबियों में से एक अनुशासन है, किन्तु यह जानते हुए भी हम इसका पालन करना पसंद नहीं करते है.

यह कोई जादू की छड़ी नहीं है जो हमारी समस्याओं को हल कर सके. समाधान हमारे काम और अनुशासन दोनों के साथ मिलता है.  

अनुशासन लक्ष्य और सफलता के बीच एक पुल की तरह काम करता है.
नियमित रूप से आत्म अनुशासन और आत्म नियंत्रण से आप चरित्र की महानता को विकसित कर सकते हैं.

कोई भी व्यक्ति दूसरे को आदेश देने के लिए फिट नहीं है जब वह खुद को आदेश नहीं दे सकता है.

कुछ लोग अनुशासन को एक संस्कार मानते हैं, किन्तु मेरे लिए यह एक तरह का आदेश है जो मुझे उड़ान भरने के लिए स्वतंत्र करता है.
इस तरह से हमें अनुशासन को अपने जीवन में लागू कर एक अनुशासित व्यक्ति बनना चाहिए. और अपने जीवन जीने के तरीके को आसन बनाना चाहिए तभी हम सफलता की राह पर चल सकते हैं.


सभी सामग्री इंटरनेट से ली गई है

मृत्यु जीवन का एक अटल सत्य है

मृत्यु एक सत्य हैं Mrityu Ek Atal Satya Hain यह सत्य वचन एक हिंदी कहानी के जरिये आपके सामने रखा गया हैं | जीवन जन्म और मृत्यु के बीच का एक भ्रम हैं जिसे हम अनन्तकाल तक देखते हैं वास्तव में वह मृत्यु तक ही सीमित हैं | पढ़े हिंदी कहानी मृत्यु एक अटल सत्य हैं Mrityu Ek Atal Satya Hain………





मृत्यु सत्य हैं

एक राधेश्याम नामक युवक था | स्वभाव का बड़ा ही शांत एवम सुविचारों वाला व्यक्ति था | उसका छोटा सा परिवार था जिसमे उसके माता- पिता, पत्नी एवम दो बच्चे थे | सभी से वो बेहद प्यार करता था |

इसके अलावा वो कृष्ण भक्त था और सभी पर दया भाव रखता था | जरूरतमंद की सेवा करता था | किसी को दुःख नहीं देता था | उसके इन्ही गुणों के कारण श्री कृष्ण उससे बहुत प्रसन्न थे और सदैव उसके साथ रहते थे | और राधेश्याम अपने कृष्ण को देख भी सकता था और बाते भी करता था | इसके बावजूद उसने कभी ईश्वर से कुछ नहीं माँगा | वह बहुत खुश रहता था क्यूंकि ईश्वर हमेशा उसके साथ रहते थे | उसे मार्गदर्शन देते थे | राधेश्याम भी कृष्ण को अपने मित्र की तरह ही पुकारता था और उनसे अपने विचारों को बाँटता था |

एक दिन राधेश्याम के पिता की तबियत अचानक ख़राब हो गई | उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया | उसने सभी डॉक्टर्स के हाथ जोड़े | अपने पिता को बचाने की मिन्नते की | लेकिन सभी ने उससे कहा कि वो ज्यादा उम्मीद नहीं दे सकते | और सभी ने उसे भगवान् पर भरोसा रखने को कहा |

तभी राधेश्याम को कृष्ण का ख्याल आया और उसने अपने कृष्ण को पुकारा | कृष्ण दौड़े चले आये | राधेश्याम ने कहा – मित्र ! तुम तो भगवान हो मेरे पिता को बचा लो | कृष्ण ने कहा – मित्र ! ये मेरे हाथों में नहीं हैं | अगर मृत्यु का समय होगा तो होना तय हैं | इस पर राधेश्याम नाराज हो गया और कृष्ण से लड़ने लगा, गुस्से में उन्हें कौसने लगा | भगवान् ने भी उसे बहुत समझाया पर उसने एक ना सुनी |

 तब भगवान् कृष्ण ने उससे कहा – मित्र ! मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ लेकिन इसके लिए तुम्हे एक कार्य करना होगा | राधेश्याम ने तुरंत पूछा कैसा कार्य ? कृष्ण ने कहा – तुम्हे ! किसी एक घर से मुट्ठी भर ज्वार लानी होगी और ध्यान रखना होगा कि उस परिवार में कभी किसी की मृत्यु न हुई हो | राधेश्याम झट से हाँ बोलकर तलाश में निकल गया | उसने कई दरवाजे खटखटायें | हर घर में ज्वार तो होती लेकिन ऐसा कोई नहीं होता जिनके परिवार में किसी की मृत्यु ना हुई हो | किसी का पिता, किसी का दादा, किसी का भाई, माँ, काकी या बहन | दो दिन तक भटकने के बाद भी राधेश्याम को ऐसा एक भी घर नहीं मिला |

तब उसे इस बात का अहसास हुआ कि मृत्यु एक अटल सत्य हैं | इसका सामना सभी को करना होता हैं | इससे कोई नहीं भाग सकता | और वो अपने व्यवहार के लिए कृष्ण से क्षमा मांगता हैं और निर्णय लेता हैं जब तक उसके पिता जीवित हैं उनकी सेवा करेगा |

थोड़े दिनों बाद राधेश्याम के पिता स्वर्ग सिधार जाते हैं | उसे दुःख तो होता हैं लेकिन ईश्वर की दी उस सीख के कारण उसका मन शांत रहता हैं |

दोस्तों इसी प्रकार हम सभी को इस सच को स्वीकार करना चाहिये कि मृत्यु एक अटल सत्य हैं उसे नकारना मुर्खता हैं | दुःख होता हैं लेकिन उसमे फँस जाना गलत हैं क्यूंकि केवल आप ही उस दुःख से पिढीत नहीं हैं अपितु सम्पूर्ण मानव जाति उस दुःख से रूबरू होती ही हैं | ऐसे सच को स्वीकार कर आगे बढ़ना ही जीवन हैं |

कई बार हम अपने किसी खास के चले जाने से इतने बेबस हो जाते हैं कि सामने खड़ा जीवन और उससे जुड़े लोग हमें दिखाई ही नहीं पड़ते | ऐसे अंधकार से निकलना मुश्किल हो जाता हैं | जो मनुष्य मृत्यु के सत्य को स्वीकार कर लेता हैं उसका जीवन भार विहीन हो जाता हैं और उसे कभी कोई कष्ट तोड़ नहीं सकता | वो जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ता जाता हैं |


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सोमवार, 14 सितंबर 2020

मिस्टर चैलेंज (वेद प्रकाश शर्मा) Thriller (Part - 04) - समाप्त




" हम हत्यारे के लिए मजबूत जाल बिछा सकते हैं । नये हालात में पन्द्रह व्यक्तियों की सुरक्षा करने की जरूरत नहीं है । जानते है ---- हत्यारे का अगला शिकार एकता या ऐरिक है । हत्यारा यह नहीं जानता कि हम यह जानते है । वह पूरी निश्चिन्तता के साथ जल्द ही अपने अगले शिकार पर हाथ डालेगा । ऐरिक और एकता हमारे पूर्ण पहरे में होंगे । हत्यारे को पकड़ने के लिए इससे अच्छी स्थिति और क्या हो सकती है ? " 

“ मैं आपसे सहमत हूं । " 

" हालांकि सुरक्षा व्यवस्था का मेन जाल एकता और ऐरिक के इर्द - गिर्द होगा परन्तु ऐसा नजर नहीं आना चाहिए । नजर आना चाहिए जैसे आम पहरा बैठाया गया हो । हत्यारे को अगर यह इल्म हो गया ---- हमें उसके अगले शिकार की भनक है तो वह अपना पैतरा बदल सकता है । " 

" ये बात मेरे जहन में थी । " 

" मैं एरिक की निगरानी करूगी । तुम एकता की । और तुम ! " विभा ने मुझसे कहा ---- " तुम्हारा काम गुल्लू पर नजर रखना होगा ---- जो कुछ उसने कैंटीन में बका यदि वह वो सब एकता , ऐरिक और नगेन्द्र को बताता है तो तुम्हारी गैरजानकारी में न बता पाये । " 
" वो तो मैं कर लूंगा लेकिन ---- 
" तुम लेकिन ! किन्तु ! बट ! परन्तु बहुत करते हो ! वको । " 
" कुछ सवालों के जवाब चाहता हूं मैं । " 
" जानती हूं तुम्हें सवालों के जवाब न मिले तो पेट में दर्द शुरू हो जाता है । " 

" लोकेश अब तक नहीं मिला है । " 

" मिल जायेगा । " विभा ने पूरी निश्चितता के साथ कहा ---- " उसके लिए तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है । " 
विभा का जवाब ही ऐसा था कि मैं और जैकी , दोनों चौक पड़े । 
मैने कहा ---- " बात समझ में नहीं आई विभा ! तुम तो इस तरह कह रही हो जैसे जानती हो लोकेश कहां है ? " 
" सारे सवालों के जवाब अभी लोगे तो हाजमा बिगड़ जायेगा तुम्हारा । " मुझे टालने के बाद उसने जैकी से कहा ---- " हमें बगैर टाइम गंवाए एकता और ऐरिक की सुरक्षा का जाल बिछा देना चाहिए । " 
मैं समझ सकता था ---- महामाया अब अपनी फुल फार्म में थी।

चप्पे - चप्पे पर पुलिस का सख्त पहरा था । कैम्पस से होस्टल और होस्टल से मेस तक । 

उधर , कॉलिज के मुख्य द्वार से बंसल के बंगले तक । हर कोना रोगनी से जगमगा रहा था । पेड़ों पर भी बल्ब टांग दिये गये थे । चार पुलिस मैन मेन स्विच पर तैनात थे । एक ऐसे जनरेटर का इन्तजाम किया गया था जो लाइट जाते ही ऐटोमेटिक रूप से चालू हो जाने वाला था । 

कुल पुलिस वालों को संख्या एक सौ पच्चीस थी । छात्रों और प्रोफेसर्स से कहा गया वे अपने अपने रूम में जाकर चैन से सो सकते हैं परन्तु स्टूडेन्ट्स नहीं माने विभा तक के समझाने के बावजूद उन्होंने गुट में बंटकर पहरा देने का निश्चय किया । 

मैं , जैकी और विभा अपनी - अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद थे । रात के यारह बजे वह वक्त आया जब तीनों एक जगह एकत्रित हुए । वह जगह थी --- ऐरिक के रूम के पीछे बनी सर्विस लेन । हम तीनों के एक जगह इकट्ठा होने का कारण धा ---- तीनों के शिकारों का एक जगह इक्कठे होना । मैं वहां गुल्लू पर नजर रखता पहुंचा था । जैकी , एकता को फालो करता और विभा ऐरिक का पीछा करती ।


कमरे में इस वक्त नगेन्द्र भी था । हम सब सर्विस लेन की तरफ खुलने बाली बंद खिड़की की दरारों पर कान सटाये हुए थे । अंदर से एकता की आबाज आ रही थी -- " लविन्द्र सर के बाद मुझे तो उन्हीं की बात सच लगने लगी है सर ! ऐसा लगता है जैसे कोई हमारे ही ग्रुप के पीछे पड़ा है । चुन - चुनकर मार रहा है हमारे साथियों को । 
" नगेन्द्र बोला ---- " अब तो लगता है , अगला नम्बर हमही में से किसी का होगा । " 

" भोला शंकर हमारी मदद करें । " गुल्लू की आवाज । 
" वुद्धि भ्रष्ट हो गयी है तुम सबकी । " क्रोधित ऐरिक ने कहा ---- " क्या लोकेश भी हमारे ही दल का सदस्य था ? " " 
" नहीं । " 
" वह क्यों लापता हो गया ? " 
" गायव ही तो हुआ है ! मरा तो नहीं ? " 
" मर भी जायेगा । क्या पता ---- मर चुका हो ! केवल शव ही तो नहीं मिला है उसका ? " 
" आप कहना क्या चाहते है ? " 
" केवल इतना ----अपहरण अपराधी ने अचार डालने के लिए नहीं किया होगा उसका ! निश्चय ही मार डाला होगा । तात्पर्य ये कि आप लोगों की शंका निर्मूल है । अपराधी केवल हमारे ही दल के लोगों को नहीं मार रहा अपितु जो जहां हाथ लग रहा है , मार रहा है । यह संयोग है कि मरने वाले पांच हमारे साथी थे । हमें अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए ।

सामने मर्डर नजर आ रहा हो तो कौन धैर्य रख सकता है ? " 
" धैर्य रखने के अतिरिक्त चारा भी क्या है ? एक पल को स्वीकार भी कर लें हमारे ही साथियों की हत्याएं हो रही है , तब भी कर क्या सकते हैं हम ? क्या लोगों को बता दें हम प्रश्न पत्र प्रकाशित करते थे ? सत्या की हत्या हमने की है ? वैसे ही सूली पर लटक जायेंगे । " 
" हत्यारे का पता लगाने की कोशिश तो करनी चाहिए । " 
" तीन - तीन गुप्तचर लगे पड़े है ! अब तो छावनी बन गया है विद्यालय ! वे ही पता नहीं लगा पा रहे हैं तो हम किस खेत की मूली है ? " " ये मीटिंग क्यों बुलाई गई है ? " गुल्लू ने पुछा। 

" विशेष रूप से तुमसे वार्ता करने हेतु । " ऐरिक ने कहा ---- " वंद अल्प भोजनालय में विभा देवी ने तुम्हारे मुखारबिन्द से कुछ ऐसा तो नहीं उगलवा लिया जैसा नहीं उगलना चाहिए था ? " " भला हमसे क्या उगलवा सकती थी वो ? " 
" क्या पूछ रही थी ? " 
" दरवाजा खुलने पर उसने बताया तो था । " 
" वही सब या अन्य कुछ ? " बंद खिड़की की दरारों से कान लगाने के पीछे हमारा उद्देश्य यह जानना था कि गुल्लू बंद कैंटीन में हुई बातें उन्हें बताता है या नहीं ? सो , उनका जिक्र उसने नहीं किया । 

करीब पन्द्रह मिनट बाद मीटिंग वर्खास्त हुई । ऐरिक वहीं रह गया । सो विभा भी यहीं रह गयी । जैकी ने एकता को फॉलो किया । मैंने गुल्लू को । एक बार फिर हम अलग हो गये । 

जैकी तो एकाध बार टकराया भी क्योंकि इधर गुल्लू तो अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद था ही , उधर एकता भी राजेश वाले ग्रुप के साथ पहरे पर थी । मगर विभा नहीं टकराई । 

मैं समझ गया ---- एरिक शायद अपने कमरे ही में है और विभा एक पल के लिए भी उससे दूर नहीं होना चाहती । दो बजे के बाद जैकी भी नहीं मिला । मैं जानता था ---- राजेश वाला ग्रुप दो बजे के बाद अपने - अपने कमरों में जाकर सो चुका है । समझ सकता था ---- जैकी एकता के कमरे के इर्द - गिर्द होगा । सख्त पहरे के कारण जैसी की उम्मीद थी ---- रात बगैर किसी दुर्घटना के गुजर गयी।


मगर यह मेरी कितनी बड़ी गलतफहमी थी इसका एहसास सुबह के आठ बजे हुआ । तब जब सारे कालिज में एक दरवाजा पीटने की आवाज गूंज उठी । 
सब चौंके । 
बल्कि जो जहां था वहीं उछल पड़ा । 
पुलिस वाले तो खैर ट्रेंड थे । उन्हें हुक्म था कि अन्य कहीं चाहे जो होता रहे , जिसकी ड्यूटी जहां है वहां से नहीं हिलना है । अतः वे सतर्क जरूर हुए मगर मुस्तैद रहे । 
स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स आवाज की दिशा में दौड़े । दौड़ने बालों में गुल्लू भी शामिल था । उसके पीछे मैं भी दौड़ा । भगदड़ सी मची हुई थी चारों तरफ । लक्ष्य था ---- गर्ल्स होस्टल ! 

हॉस्टल का फर्स्ट फ्लोर । 
एकता के कमरे के बंद दरवाजे पर पिले पड़े जब मैं पहुंचा तब जैकी वहां तैनात पुलिस वाले और स्टूडेन्ट्स जुनूनी अवस्था थे । उसे तोड़ डालने पर आमादा थे वे । वातावरण में उस पर होती चोटों की आवाज गूंज रही थी । जो सामने पड़ा मैंने उससे चीखकर पुछा ---- " हुआ क्या है ? " 
" अनेक आवाजें लगाई जा चुकी हैं । पता नहीं एकता दरबाजा क्यों नहीं खोल रही ? कोई आवाज तक नहीं है अंदर । सबसे पहले संजय आया था उसे जगाने ! जब नहीं उठी तो ... " 

भड़ाक ! " की जोरदार आवाज के साथ दरवाजा टूटा । एक साथ अनेक चीखें उभरी । मैं दरवाजे की तरफ लपका । उसी समय एरिक और विभा भी नजर आये । 
“ लाश - लाश ! " चीखती हुई ढेर सारी लड़कियों का रेला गैलरी में इधर - उधर भागा । मेरा और विभा का रुख अलग - अलग दिशाओं से कमरे की तरफ था । टूटा हुआ दरवाजा कमरे के अंदर फर्श पर पड़ा था । चौखट पार करके उधर से विभा ने , इधर से मैंने दरवाजे पर कदम रखे ही थे कि जहां के तहां जाम होकर रह गये । जैकी आदि पहले ही मूर्ति बने खड़े थे । दृश्य ही ऐसा था।


औरों की तो क्या कहूँ ? अपने सम्पूर्ण जिस्म में मैंने चोटियां सी रेंगती महसूस की । जहन सांय - सांय कर रहा था । क्या इतने पहरे के बावजूद वह सब हो सकता था ? हुआ था ! 

हमारे सामने हुआ पड़ा था । मगर कैसे ? मुझे लगा हत्यारा , हत्यारा नहीं जादुगर है । एकता के जिस्म पर झीनी नाइटी थी । डबल बेड पर चित अवस्था में लेटी हुई थी वह । आंखें बंद ! चेहरे पर शान्ति । 

होठो से नीले झाग न निकल रहे होते तो कोई नहीं कह सकता था वह मरी हुई है । वेड ही पर एक छोटी सी शीशी लुढ़की पड़ी थी । उस पर चिपके लेवल पर लिखा था CHALLENGE | 

तो क्या आत्महत्या कर ली थी एकता ने ? 
मगर क्यों ? क्या हो रहा था ? आत्महत्या ललिता ने भी की थी । 
उसके पीछे वजह थी चिन्नी । एकता ने ऐसा क्यों किया ? उसकी क्या मजबूरी थी ? 

वही बात जैकी ने कही भी .... " दो बजे के बाद मेरे सामने कमरे में सोने आई थी ये पूरी तरह स्वस्थ मानसिक अवस्था में थी । मैं सोच तक नहीं सकता था सुसाइड कर लेगी ! " 

विभा ने आगे बढ़कर गंभीर स्वर में कहा ---- " तुमसे किसने कहा ये सुसाइड है ? " 
" सुसाइड नहीं तो क्या हत्या है ? " 
" हन्नरेड परसेन्ट । " 
" क - क्या बात कर रही है आप ? कमरे का एकमात्र दरवाजा अंदर से बंद था । सर्विस लेन की तरफ घुलने वाली खिड़की अब तक बंद है । जहर की वह शीशी बेड पर पड़ी है जिससे मौत हुई । हत्या तब कहीं जा सकती थी जब कोई और आकर मारे " 
एकता को किसी और ही ने कत्ल किया है । " 

" नामुमकिन हरगिज नहीं मान सकता विभा जी ! " पागलों की मानिन्द चीख पड़ा जैकी ---- " भला कैसे हो सकता है ऐसा ?

सारी रात मैं खुद पांच पुलिस वालों के साथ कमरे में बंद दरवाजे के बाहर गैलरी में तैनात रहा हूं । गैलरी में बीसों पुलिस वाले और थे । इस खिड़की के पार , नीचे पांच पुलिस वालों की ड्यूटी है । इस वक्त भी यहीं मुस्तैद खड़े होंगे वे । आदमी तो आदमी ---- सारी रात परिन्दे तक ने पर नहीं मारा है कमरे में ! और आप कह रही है कोई जहर दे गया ? कैसे मान लू ?

उस रोशनदान की तरफ देखो ! " विभा ने बेड के ठीक ऊपर छत में बने एक छोटे से रोशनदान की तरफ इशारा किया । 
" क्या बात कर रही हैं आप ? सारा रोशनदान ही छ : इंच बाई छ : इंच का है । उस पर ग्रिल भी लगी है ? क्या ग्रिल को उखाड़े वगैर वहां से कोई व्यक्ति कमरे में आ सकता ? 
" मैं कह उठा ---- " ग्रिल को उखाड़कर भी नहीं आ सकता । " 
" ग्रिल अपनी जगह मजबूती से लगी है । " ऐरिक ने कहा । 
“ जहर की बूँद तो आ सकती है ---- जिसने एकता की जान ली । " 
" कमाल की बात कर रही हैं आप ? रोशनदान से जहर की बूंद आई और सीधी एकता के मुंह में गिरी । ऐसा कहीं हो सकता है।
" हो सकता है जैकी ! " विभा ने भेद भरी मुस्कान के साथ कहा ---- " मैं भी कर सकती हूं । " 
" अ - आप कर सकती है ? द - दिखाइए करके । " 
" दिखाती हूं । पहले ये बताओ ढ़क्कन कहां गया शीशी का ? " 
“ यही कहीं होगा । लाश के नीचे भी दबा हो सकता है । " 
“ कोशिश करो ढूंढने की ! याद रहे लाश ज्यादा हिलनी - डुलनी नहीं चाहिए । 
" जैकी ने ही क्यों , सबने ढक्कन ढूंढने की कोशिश की मगर नहीं मिला । जब सब हार मान चुके तो विभा ने कहा ---- " ढ़क्कन का न मिलना इस बात का सुबूत है कि ये सुसाइड नहीं है । होती तो ढक्कन कहां चला जाता ? तुम लोग यहीं रहना ! मैं बताती हूँ कैसे हुआ ? " 

कहने के बाद वह घुमी और कमरे से बाहर निकल गयी । हम सब हकबकाए से खड़े सोच रहे थे कि पता नहीं वह क्या दिखाना चाहती है । करीब पांच मिनट बाद रोशनदान से विभा की आवाज उभरी ---- " ढक्कन यहां रोशनदान के नजदीक छत पर पड़ा है । " 

सबकी नजर एक झटके से रोशनदान की तरफ उठ गई । विभा ने वहां से एक धागा लटकाना शुरू किया । सब सांस रोके उसकी कार्यवाई देख रहे थे । देखते ही देखते धागे का निचला सिरा इतना नीचे आ गया कि एकता के होठों के मध्य को चूमने लगा । अब विभा ने धागे के ऊपरी सिरे पर पानी की बूंद डाली । बूँद ने घागे पर नीचे की तरफ सफर शुरू किया । विभा ने कहा ---- " इसे तुम जहर की बूंद समझ सकते हो । " सबके दिल धाड़ - धाड़ कर रहे थे । नजरें धागे पर सफर कर रही बूंद पर जमीं थी।

और अंततः बूँद ' टप ' से एकता के होठों के मध्य गिर गई । " खेल समाप्त " कहने के साथ विभा ने धागा वापस खींचना शुरू करते हुए कहा ---- " अब आप ऊपर आ सकते है । 

यहां हत्यारे के फुट स्टैप्स तक मौजूद है । " हत्या की इस टेक्निक पर मैं ही क्या , सब हैरान थे ।

हम छत पर पहुंचे । भरपूर भीड़ के बावजूद कब्रिस्तान जैसी खामोशी छाई हुई थी । सब डरे और सहमे हुए थे । किसी के मुंह से बोल न फूट रहा था । छत पर बड़े स्पष्ट , सफेद रंग के फुट स्टेप्स बने हुए थे । ये निशान छत के एक कोने में पड़ी ढेर सारी कली से शुरू हुए थे । 

यह कली वह थी जो ' पुताई से बचने के बाद अक्सर छतों को चुने से बचाने के लिए डाल दी जाती है । 
रात भर पड़ी ओस के कारण कली में नर्मी थी । उसी नमी के कारण हत्यारे के जूतों के तली में लगी थी । कली पर जूतों के बड़े ही स्पष्ट निशान थे । वहां से निशान ' कदमों ' की शक्ल में रोशनदान की तरफ आये थे । और रोशनदान से गये थे पानी की टंकी की सीढ़ी तक । वहां के वाद --- अर्धात टंकी से नीचे उतरने का कोई चिन्ह नहीं था । 

मैं क्या उन निशानों द्वारा कही जा रही कहानी सभी समझ सकते थे । दिभा ने वही कहानी कही ---- " अंधेरे के कारण हत्यारा शायद कली के ढेर को देख न सका । वहां से कली उसके जूतों में लगी रोशनदान पर आया । वह किया जो कुछ देर पहले मैंने करके दिखाया । उसके बाद पानी की टंकी की तरफ गया । " 

" टंकी की तरफ क्यों गया वह " जैकी ने पुछा ---- " और टंकी पर चढ़ने के निशान तो हैं , उतरने के नहीं ! क्या मतलब हुआ इसका ? " 

" मेरे ख्याल से काम निपटाने के बाद उसे अपने जूतों में लगी कली का एहसास हो गया था इसलिए रोशनदान से सीथा टंकी पर पहुंचा । जूते धोये ! इसीलिए नीचे उतरने के निशान नहीं है । 
" बंसल कर उठा ---- " समझ में नहीं आ रहा सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने से फायदा क्या होता है ? " 
" विभा जी ! " जैकी ने पुछा ---- " वो ढक्कन कहाँ है ?

ये रहा । " विभा अपने हाथों में मौजूद एक हरा ढक्कन उसे देती बोली । ढक्कन लेते हुए जैकी ने पूछा -... " आपने इसे उठा क्यों लिया ? " 

" इतनी वारदातों के बाद जान चुके हैं । हत्यारा ग्लस पहने हुए होता है । किसी वस्तु पर उसकी अंगुलियों के निशान होने का सवाल ही नहीं उठता । " 
“ मगर विभा जी ! " ढक्कन को बहुत गौर से देखते जैकी ने कहा -- " मुझे यह ढक्कन एकता के बेड पर पड़ी शीशी का नहीं लगता । " " यही देखना चाहती थी मैं --- यह कि तुम्हें भी वहीं डाउट होता है या नहीं जो मुझे हुआ है । 

शीशी के मुकाबले ढक्कन थोड़ा बड़ा है । यदि उसका नहीं है तो बड़ी विचित्र बात है । कौन - सी शीशी का ढक्कन है ये और यहां क्यों डाला गया ? साथ ही सवाल उठता है उस शीशी का ढक्कन कहां गया ? 

" जैकी ने रोशनदन के जरिए कमरे में झाँका। बेड पर लेटी एकता की लाश और बगल में पड़ी शीशी साफ नजर आ रही थी । 
विभा ने कहा ---- " शुरू में , जब मुझे यह लग रहा था , ढ़क्कन उसी शीशी का है तब मेरे दिमाग में यह सवाल था कि हत्यारे ने अपना काम करके शीशी बेड पर और ढ़क्कन यहां क्यों डाला ? धागे की तरह अपने साथ ले क्यों नहीं गया ? या दोनों को एक जगह क्यों नहीं डाला ? लगता था हत्यारा अपना काम करने के साथ हमसे खिलवाड़ भी कर रहा है मगर यदि ये ढक्कन उस शीशी का नहीं है तो खिलवाड़ भी ऊंचे दर्जे का है । " 
" क्या मैं शीशी को यहाँ मंगा सकता हूं विभा जी ? " 
" जो शक हुआ है , उसकी पुष्टि के लिए जरूरी है । "


जैकी ने इधर - उधर देखा । गुल्लू नजर आया । उसी से कहा ---- " एकता के बेड से शीशी उठा लाओ गुल्लू तुरन्त जीने की तरफ बढ़ गया । 
“ हत्यारा हर मर्डर एक अलग और नई टैक्निक से कर रहा है विभा " मैं कह उठा ---- " सबसे पहले चन्द्रमोहन ! मैंने उससे पहले जिन्दगी में कभी खड़ी हुई लाश नहीं देखी थी । उसके बाद हिमानी ---- सबके देखते - देखते मर गयी वह ! अल्लारखा को अंधेरे में निशाना बनाया गया है । ललिता की हत्या उसी के हाथों कराई । लविन्द्र भूषण को अम्लराज से जला दिया गया और अब ये ---- कोई सोच तक नहीं सकता । एक व्यक्ति इतने पहरे के बावजूद कमरे के अंदर गये बगैर , बिना कोई आवाज पैदा किये इतनी आसानी से किसी की हत्या कर सकता है । " 
ऐरिक बोला ---- " आप सत्या मैडम की हत्या का जिक्र करना भूल गये वेद जी ! " 

मैं सकपका गया । फ्लो में वही भूल कर बैठा जो ललिता ने की थी । ऐरिक कर रहा था ---- " उन्हें टैरेस से गिराकर मार डाला गया । 
" मेरा जी चाहा---- चीखकर कहूं ---- ' उसे तो तुम्हीं लोगों ने मारा है हरामजादे और अब ..... ये बात इसलिए कह रहा है कि ताकि उसे भी इन्हीं हत्याओं की कडी समझते रहे । मगर विभा की इजाजत के बगैर में ऐसा एक भी लफ्ज नहीं कह सकता था।

हां , अपनी बात सम्मालने को जरूर कहा ---- " उसका जिक्र मैंने इसलिए नहीं किया क्योंकि सत्या के मर्डर में ऐसी कोई खास बात नहीं थी । हत्यारे से बचने की कोशिश में छत से गिरकर मरी थी वह । " 

ऐरिक चुप रह गया । शायद इस बात को ' आई - गई करने के लिए विभा ने जैकी से कहा ---- " आओ जैकी। कहने के साथ वह टंकी की तरफ बढ़ गयी । जैकी के साथ मैं भी उसके पीछे लपका । टँकी सीमेन्ट की बनी , पांच फुट ऊंची । पांच वाई पांच की थी । उस पर चढ़ने के लिए लोहे की सीढ़ी थी । 

छत पर टंकी का होल था । होल पर लोहे का बना सीवर के ढक्कन जैसा ढ़क्कन था । होल दो बाई दो का था यानी इतना जिसमें से आदमी आसानी से अंदर उतरकर टंकी की सफाई कर सके । 
जैकी ने कहा ---- " यहां तो ऐसा कोई निशान नजर नहीं आ रहा जिससे लगे जूते धोये गये हैं । " 
" ढक्कन हटवाओ । " विभा ने कहा । टंकी पर खड़े ही खड़े जैकी ने एक नजर स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स पर डाली । उन्हीं के बीच नगेन्द्र खड़ा नजर आया उसे । 

" इधर आओ । " जैकी ने उसी से कहा । बह लपककर टंकी की तरफ आया । 
जिस वक्त नगेन्द्र सीढ़ियां बढ़ रहा था उस वक्त बड़ा अजीव ख्याल आया मेरे दिमाग में । हत्यारे का अगला शिकार यही है । भरपूर सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद क्या हम इसे बचा पायेंगे ? या एकता जैसा ही अंजाम होगा इसका ? छत्त पर पहुंच चुके नगेन्द्र से विभा ने कहा ---- " ठक्कन उठाओ । " 

ढक्कन भारी था । नगेन्द्र ने उसे उठाकर एक तरफ रख दिया । 
" ओह ! " टंकी के अंदर झांकती विभा के मुंह से निकला ---- " यह तो जूते ही टंकी में डाल गया । " मैं या जैकी कुछ बोले नहीं।

दोनों की नजरे टँकी के अंदर थी । टंकी आधी के करीब भरी हुई थी । पानी साफ था । तली में पड़े दो जूते साफ नजर आ रहे थे । हमारे साथ नगेन्द्र ने भी उन्हें देखा । 
जैकी ने कहा ---- " जूते बाहर निकालो । " 

नगेन्द्र ने अपनी खाकी पैन्ट के दोनों पायचे मोड़ - मोड़कर घुटनों से ऊपर चढ़ा लिये । 

हम तीनों टंकी के होल के तीन तरफ खड़े थे । चौथी तरफ नगेन्द्र टंकी में उतरा । उसी क्षण मानो कयामत आ गयी । 
" बचाओ बचाओ । " दोनो हाथ होल से बाहर निकाले नगेन्द्र चीख पड़ा । बुरी तरह छटपटा रहा था वह । सारा जिस्म जुड़ी के मरीज की मानिन्द थरथरा रहा था । आवाज तक स्पष्ट नहीं निकल रही थी उसके मुंह से । 
यह सारा खेल क्षण भर का था । जब हम ही ठीक से कुछ नहीं समझ पाये तो टैरेस पर खड़े अन्य लोग क्या समझ सकते थे ? मैने और जैकी ने झपटकर नगेन्द्र के हाथ पकड़ने चाहे । एक साथ विजली का जबरदस्त झटका लगा दोनों को । मैं टंकी के दाई तरफ टेरेस पर जाकर गिरा । जैसी बाई तरफ । नगेन्द्र की चीखें डूबने लगी थीं । विभा चिल्लाई ---- " मैन स्विच ऑफ करो।
" मगर । कहां हम ? कहां मेन स्विच ? स्विच के पास तैनात पुलिसियों तक विभा का आदेश पहुंचते - पहुंचते टंकी में खामोशी छा गयी थी । मेन स्विच ऑफ जरूर हुआ मगर नगेन्द्र मर चुका था । 

विभा आंखे फाड़े पानी पर झूलती उसकी लाश को देख रही थी । मैं और जैकी अपनी चोटें भूलकर सीढ़ी की तरफ लपके । हम ही क्यों , कई स्टूडेन्ट्स भी टंकी पर चढ़ने के लिए लपके थे । छोटी सी सीढ़ी पर सब एक दूसरे से उलझकर रह गये।


घटनाये इतनी तेजी से घट रही थी कि दिमाग कुंद होकर रह गये । 
एक वारदात पर ठीक से डिस्कस नहीं कर पाते थे तब तक दुसरा हादसा हो जाता । 

बिभा और जैकी की छानबीन में सामने आया ---- बिजली के दो मोटे तार बाहर पाइप के अंदर से होते हुए टंकी में आये थे पर ऊपर से इसलिए नही चमके क्योंकि दोनो में से एक जूते ने उन्हें ढक दिया था । 

तारों के अंतिम सिरे सत्या के कमरे में मौजूद एक पावर प्लग में लगे पाए गये । 

सत्या का कमरा ठीक टंकी के छत के नीचे था । किमी को किसी से कुछ कहने की उमरत नहीं थी । 

सब समझ चुके थे ---- टंकी के पानी में करंट था नगेन्द्र उसमें जाते ही मारा गया । 

लाश और जुते , टंकी में से निकालकर टेरेस पर डाल दिये गये थे । 
चेहरों पर आतंक और खौफ लिए सब उन्हीं को देख रहे थे । 

" कमाल हो गया विभा जी ! " जैकी बड़बड़ाया ----- " ऐसी वारदात न पहले कभी देखी , न सुनी । हत्यारा पहले ही से अपने शिकार के लिए जाल बिछा देता है ।

विभा चुप रही । अजीब सी शांती थी उसके चेहरे पर । 
" अब तो मुझे यह भी शक हो रहा है कि अपने जूतों में कली उसने जान बूझकर लगाई थी । " जैकी कहता चला गया ---- ताकि हम फुट स्टेप्स का पीछा करते टंकी तक पहुंचे । " 

" वाकई में ऐसे हत्यारे से मेरा पाला भी पहली बार पड़ा है । " कहने के बाद वह बगैर किसी की तरफ देखे जीने की तरफ बढ़ गयी । 

सब के साथ मैं भी ठगा सा खड़ा रह गया । " 

समझ में नहीं आ रहा ये वारदातें कैसे रुकेंगी ? " वंसल कह उठा---- " इतने पहरे के बावजूद , हम सबकी आंखों के सामने हत्या हो जाती है और कोई कुछ नहीं कर पाता । " 

" करना तो दूर आठ हत्याएं हो चुकी है । " राजेश के अंदर का लावा फूट पड़ा ---- " और कोई इतना तक नहीं पता लगा सका ---- ये मर्डर आखिर क्यों हो रहे है ? 
" सभी से फिसलती मेरी नजर ऐरिक और गुल्लू पर पड़ी । ऐरिक का चेहरा बता रहा था ---- वह अन्य सभी के मुकाबले ज्यादा डरा हुआ है । और गुल्लू ---- उसके चेहरे पर तो साक्षात मौत नाचती नजर आई । दिमाग में वही विचार कौंधा जो कुछ देर पहले नगेन्द्र के लिए कौंधा था । हत्यारे का अगला शिकार ये है । 

"क्या गुल्लू भी इसी तरह मर जायेगा या हम उसे बचाने में कामयाब हो पायेंगे ? 

उसी शाम । मैं और विभा दो कुर्सियों पर कैम्पस में बैठे थे । हर तरफ पुलिस वाले तैनात थे । स्टूडेन्ट्स की टुकड़ियां छितराइ - छितराइ सी इधर - उधर घूम रही थीं । कोई बरांडे में बैठा था । कोई पेड़ के नीचे । सभी उदास थे । खामोश । 
हत्यारे और कॉलिज में हो रहीं वारदातों के बारे में सब एक - दूसरे से इतनी बातें कर चुके थे कि कहने सुनने के लिए बाकी कुछ बचा ही नहीं था । घूम - फिर कर वही बातें दिमाग में आती और उन्हें दोहराने से हरेक को एर्लजी हो चली थी । 
" विभा ! " मैंने उसे पुकारा । 
" हूँ ! " वह जैसे नींद से जागी । 
" मैं स्वप्न तक में नहीं सोच सकता था तुम्हारी मौजूदगी में , तुम्हारी आँखों के सामने एक के बाद एक मर्डर हो सकते है और तुम .... 
" रुक क्यों गये ? " वह मुस्कराई -.- " कहो ! " 

" और तुम इतनी असहाय बनी रहोगी । " मैं कहता चला गया ---- " एकता और नगेन्द्र के मर्डर से पहले तुमने कहा था --- हत्यारे को पहचान चुकी हो । क्या वह गप्प थी ? " 

" मेरे मुंह से पहले कभी कोई गप्प सुनी है तुमने ? " 
" तो आखिर कर क्या रही हो तुम ? गिरफ्तार क्यों नहीं करती हत्यारे को ? रोक क्यों नहीं देती कॉलिज में हो रही हत्याएं ? अजीब बात है .... तुम्हें मालूम है हत्यारा कौन है ! ये भी जानती हो उसके शिकार कौन - कौन है । इसके बावजूद हाथ पर हाथ रखे बैठी हो ! आखिर क्यों ? क्यों विभा ? " 

एक बार फिर उसके होठों पर मुस्कान उभरी । यह वह मुस्कान थी जो केवल तब उभरती थी जब किसी भेद को छुपाये रखना चाहती थी ।


मैं खीज उठा । कुछ कहना ही चाहता था कि ---- गर्ल्स हॉस्टल की तरफ से जैकी आता नजर आया । उसके दाये हाथ में एक एयर बैग था । बांये हाथ की गोद में चिन्नी । चाल में अजीब सा उत्साह देखकर मैं चौंका । सीधा हमारी ही तरफ आया वह । 

बोला ---- " क्या आप कल्पना कर सकती है विभा जी कि मैंने बाजी मार ली है ? " 
“ मतलब ? " विभा ने पूछा । " मैंने हत्यारे को पहचान लिया है ।

" प - पहचान लिया ? " 
मैंने एक झटके से कुर्सी छोड़ दी ---- " कौन है ? कहां है ? " 
" बात इस नन्हीं लड़की से शुरू करता हूँ । " कहने के साथ उसने चिन्नी को गोद से उतारा । उसके नजदीक बैठता बोला -.-- " तुमने हेलमेट वाले अंकल को देखा था न चिन्नी ? " 
" हां " 
" हेलमेट को भी ? " 
" हां , पुलिस अंकल ! " जैकी के होठो पर सफलता भरी मुस्कान उभरी । एयर बैग जमीन पर रखा । तब तक काफी स्टूडेन्ट्स , प्रोफेसर्स और पुलिस वाले हमारे इर्द - गिर्द इकट्ठा हो चुके थे । सभी के चेहरों पर उत्सुकता के भाव थे । 

मैंने विभा की तरफ देखा --- उसके मुखड़े पर ऐसे चिन्ह थे जैसे किसी दिलचस्प खेल को देख रही हो । जैकी ने एयर बैग की चैन खोली भी कुछ ऐसे ही अंदाज में जैसे बाजीगर पिटारा खोलता है । एयर बैग से एक हेलमेट निकाला उसने । 
" हां - हां पुलिस अंकल । " चिन्नी कह उठी ---- " यह उसी का हेलमेट है । " फिर जैकी ने ओवरकोट और पैन्ट निकालने के साथ पुछा ---- " ये ? " 
" ये भी उसी के हैं । " चिन्नी उछल पड़ी ---- " क्या आप उसे जानते है ? 
" होठों पर कामयाबी से परिपूर्ण मुस्कान लिए जैकी अपने स्थान से खड़ा हुआ । नजरें स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स की भीड़ पर स्थिर की । बंसल , गुल्लू और एरिक भी भीड़ में शामिल । एक - एक शख्स को घूरता जैकी कॉन्फिडेंस भरे स्वर में कहता चला गया ---- " 

मैं जानता हूँ तुम इसी भीड़ में खड़े हो । ये भी जानता हूं हेलमेट और अपने कपड़े देखकर समझ गये होगे कि मैं तुम्हें पहचान चुका है । वजह साफ है ---- इन्हें मैंने तुम्हारे कमरे से बरामद किया है । बोलो ! खुद सामने आ रहे हो या अपने मुंह से नाम लेकर पुकारुं ? " 

सन्नाटा गया । ऐसा सन्नाटा कि सुई भी गिरे तो आवाज बम के धमाके जैसी लगे । सभी एक - दूसरे का चेहरा देखने लगे । मारे सस्पैंस के सबका बुरा हाल था । कोई न समझ सका जैकी मुखातिब किससे है ? 
" इसका मतलब तुम्हारे दिमाग में यह भ्रम है कि मैं तिगड़म मार रहा हूं । पहचान नहीं सका हूं तुम्हें ! इस भ्रम को दूर करने के लिए मेरे पास बहुत कुछ है । " कहने के साथ वह झुका , एयर बैग से एक बटन निकाला । 
उसे मुझे दिखाता बोला --- " माफी चाहूंगा वेद जी , मैंने शुरू से इस बटन को आपसे छुपाये रखा ! आपसे भी माफी चाहूंगा विभा जी ---- बटन के बारे में आपको भी कुछ नहीं बताया । चन्द्रमोहन के मर्डर के बाद इन्वेरिटगेशन करते वक्त यह मुझे स्टॉफ रूम के दरवाजे पर पड़ा मिला था और बटन बता रहा है , टूटने से पहले मैं यहां लगा हुआ था । " 


कहने के साथ उसने ओवरकोट का वह स्थान दिखाया जहाँ एक बदन टूटा हुआ था । वैसे ही वाकी बटन ओवरकोट में टंके हुए थे । जैकी ने आगे कहा ---- " चिन्नी के बयान को आप एक बच्ची का बयान कहकर टाल सकते है । परन्तु स्टॉफ रूम से इस बटन की बरामदगी साबित कर देती है ओवरकोट चन्द्रमोहन के हत्यारे का है । " 
" मगर वो है कौन ? " ऐरिक ने सबके दिमागों में घुमड़ रहा सवाल पूछा "


खुद सामने आना होगा उसे । " कहने के माथ जैकी ने एयर बैग से कुछ और चीजें निकाली । उन सभी को एक - एक करके भीड़ को दिखाता कहता चला गया ---- " ये उस जहर को शीशी है जिसे हिमानी की लिपस्टिक पर लगाया गया । इस दवात में फास्फोरस भरा है , ये वो कलम है जिससे अल्लारखा के गाउन पर CHALLENGE लिखा गया । ये वो धागा है जिस पर एकता की जान लेने वाली जहर की बूँद ने सफर किया । 

सरकारी लैव में इसकी जांच करा चुका हूं । और ये है उस शीशी का ढक्कन जो एकता के बेड पर पड़ी पाई गई । कोई और जानता हो या न जानता हो मगर भीड़ में खड़े ' तुम ' जरूर जानते हो यह सामान तूमने कहाँ छुपा रखा था ? 

समझ सकते हो ---- यदि मैंने इस सबको वरामद कर लिया है तो जान गया हूं तुम कौन हो ? बेहतर होगा ---- खुद सामने आकर गुनाह कुबुल कर लो । " 

एक बार फिर सभी ने उस शख्स की खोज में एक - दूसरे की तरफ देखा जिससे जैकी मुखातिब था । 

मैंने भीड़ में मौजूद एक - एक फेस को रीड करने की कोशिश की । सबसे ज्यादा हवाइयां गुल्लू के चेहरे पर उड़ती नजर आई । 

विभा के चेहरे पर नजर पड़ते ही मेरा दिमाग घूम गया । उसके गुलाबी होठों पर ऐसी मुस्कान थी जैसे जानती हो जैकी किससे मुखातिब है । कुर्सी से एक इंच नहीं हिली थी वह । पोज तक नहीं बदला । 

जैकी ने पलटकर उसकी तरफ देखा । कहा ---- " हर वारदात के बाद हमारी धारणा यह बनी थी विभा जी कि हत्यारा बेहद चालाक और सुलझे हुए दिमाग का मालिक है मगर , इस वक्त मेरे पास इतने सुबूत देखकर भी अगर वह चुप है , सोच रहा है मैं केवल तिगड़म मार रहा हूं ---- उसे नहीं पहचानता तो उससे बड़ा मूर्ख इस दुनिया में दूसरा नहीं हो सकता । " 

" सब लोग नाम जानने के लिए उत्सुक हैं जैकी । " 
" मैं नहीं समझता था वह इतना बेवकूफ है । यदि ऐसा है तो यहां से भाग निकलने की वेवकुफी भरी कोशिश भी कर सकता है । मेरे नाम लेने के बाद हत्यारा ऐसा करे तो तुम सुनो ! " जैकी ने पुलिस वालों से मुखावित होकर ऊंची आवाज में कहा ---- " कोई उसे रोकने की कोशिश नहीं करेगा । कोई गोली नहीं चलायेगा । जो करना होगा मैं करूंगा । 

एक बार फिर हर तरफ सन्नाटा छा गया । भीड़ पर दृष्टिपात करते जैकी ने कहा ---- " एक मौका और देता हूं । आखिरी मौका ! या तो खुद आगे बढ़कर अपना गुनाह कुबुल कर लो अन्यथा मुझे गिरेबान पकड़कर खींचना होगा । 

" भीड़ में तब भी खामोशी छाई रही । " शायद तुम सोच रहे हो जब मैं नाम लूंगा तो यह कहकर बच जाओगे कि असल हत्यारे ने यह सारा सामान तुम्हारे कमरे में रख दिया होगा । मगर नहीं , इस बार कच्चा हाथ नहीं डाला है मैंने । मेरे पास इतना पुख्ता सुबूत हैं कि दुनिया की कोई ताकत तुम्हे नही बचा सकती।

ये देखो " 
कहने के साथ जैकी ने एयर बैग से एक लेटर निशालकर हवा में लहराते हुए कहा ---- " ये लव लेटर भी तुम्हारे ही कमरे से मिला है । सत्या का लेटर । ये तुम्हारे नाम ! 

तुम्हारा नाम भी है इसमें कहो तो पढ़कर .... " 

धांय धांय " एक साथ दो हवाई फायर हुए । 

जैकी का वाक्य अधूरा रह गया। 
सबने पलटकर गुल्लू की तरफ देखा । 
उसके हाथ मे रिवाल्वर था । 
चहरे पर आग।
मुँह से अंगारे बरसे ---- "हाँ हाँ मैंने मारा है.... चन्द्रमोहन , हिमानी , अलारक्खा , ललिता , लविन्द्र , एकता और नगेन्द्र को । 

मुझसे प्यार करती थी सत्या 'मेरा नाम है उस लेटर में । किसी ने भी मेरी तरफ बढ़ने की कोशिश की तो भूनकर रख दूँगा ।

इन सब ने मिलकर मेरी सत्या को मार डाला । किसी को नहीं छोडूंगा ! नहीं इंस्पेक्टर , तुम मुझे आखिरी कत्ल करने से पहले गिरफ्तार नहीं कर सकते । " 

" रिवाल्वर फेक दो गुल्लू " जैकी मुस्कुराया। ---- " इसमें भरी गोलियाँ नकली है । " 

गुल्लु ने बौखलाकर अपने रिवाल्वर की तरफ देखा । 
" असली गोलिया इसमें है । " कहने के साथ जैकी ने अपने होलेस्टर से रिवाल्वरर निकालकर उस पर तान दिया ---- " और तुम मेरे निशाने पर हो। 

मेरे लफ्जो पर गौर नहीं किया तुमने । पहले ही कहा था ---- कच्चा हाथ नही डाला मैंने ।

"जानता था पूरी तरह फंस जाने के बाद आखिरी कत्ल करने की कोशिश करोगे मगर अफसोस ... मैं तुम्हारे रिवाल्वर की गोलियां बदल चुका हूँ।
" ये झूठ है । बकवास है ! " 
कहने के साथ बौखलाये हुए गुल्लू ने अंधाधुंध ट्रेगर दबाना शुरू किया । 

" घांय धांय ! धांय ! धांय! " चार धमाके हुए । 

निशाना जैकी था । ठहाका लगाकर हँसा वह । बोला ---- " नकली गोलियां भी खत्म ! " 

बुरी तरह हड़बड़ा गया गुल्लू । 
झुंझलाकर जैकी पर रिवाल्वर खीच मारा । जैकी ने फुर्ती से खुद को बचाया । 

गुल्लू पलटकर अपनी कोठरी की तरफ भागा । 

" कोई गोली नहीं चलायेगा । " चीखता हुआ जैकी उसके पीछे लपका । गुल्लू तेजी से भागा चला जा रहा था।



जैकी उसका पीछा करता चिल्लाया --- " रुक जाओ गुल्लू ! भागने की कोशिश बेकार है । " 

मगर गुल्लू पर तो मानो जुनून सवार था । एक नहीं सुनी उसने ! लगातार पीछा कर रहे जैकी ने अनेक चेतावनियां दीं । और फिर .... गुल्लू ने अपनी कोठरी के नजदीक खड़े पुलिसिए के जबड़े पर अप्रत्याशित ढंग से घूसे का प्रहार किया । सिपाही चीख के साथ दूर जा गिरा । 

गुल्लू ने झपटकर उसकी रायफल उठाई । पलटकर उसका रुख जैकी की तरफ करना ही चाहता था कि ---- 
" धांय ! " 
जैकी का रिवाल्वर गरजा । गुल्लू के हलक से चीख निकली । गोली उसका सीना चीरती निकल गई । रायफल हाथ से छिटककर दूर जा गिरी । लहुलुहान हुआ वह कई बोतल पी गये शराबी की मानिन्द लड़खड़ाता चीखा ---- " ये क्या किया इंस्पैक्टर साहब ? ये क्या किया आपने ? 

" जैकी बुरी तरह चौंका । 
चौंककर अपने रिवाल्वर की तरफ देखा । उधर गुल्लू जमीन पर गिर पड़ा । 
" गुल्लू ! " चीखता हुआ जैकी उसकी तरफ लपका । 
हम सब उसकी तरफ।
जैकी पागलों की मानिन्द गुल्लू की लाश को झंझोड़ता हुआ चीख रहा था ---- “ गुल्लू ! क्या हुआ तुम्हें ? उठों ! उठों ! नहीं तुम नहीं मर सकते ! कैसे मर सकते हो तुम ? मेरे रिवाल्वर में नकली गोलियां थीं । उठो गुल्लू ! उठो ! " 

उसके मुंह से निकले शब्दों को सुनकर सभी हैरान रह गये । मतलब नहीं समझ पाये उनका । जैकी मानो पागल हो चुका था । गुल्लू की लाश को झंझोड़ता वह बार - बार उसे जगाने की कोशिश कर रहा था ।


विभा ने उसे झंझोड़ते हुए कहा ---- " ये क्या पागलपन है जेकी ? होश में आओ ! गुल्लू मर चुका है । " 
" क - कैसे मर गया ? ये कैसे मर गया विभा जी ? " जैकी दहाड़ा ---- " मेरे रिवाल्वर में नकली गोलियां दी । 
" अच्छा हुआ मर गया कम्बखत " एरिक कह उठा --- ' " बहुत हत्याएं की इसने । " 

" नहीं ! " जैकी एक झटके से खड़ा होता हुआ अर्धविक्षिप्त अंदाज में दहाड़ा ---- " यह हत्यारा नहीं था । ये तो हत्यारे को पकड़ने के लिए साथ दे रहा था मेरा । मेरी समझ में नहीं आ रहा कैसे मर गया ? " 
" जैकी " मैं चीख पड़ा ---- " पागल तो नहीं हो गये तुम ? तुमने खुद उसके खिलाफ ढेर सारे सुबूत पेश किए । गुल्लू ने कुबूल किया वह हत्यारा है , इसके बावजूद तुम ......



वह झूठ था । सारे सुबूत झूठे हैं । स्टाफ रूम से कोई बटन नहीं मिला मुझे । ओवरकोट , पैट , हेलमेट एक भी चीज हत्यारे की नहीं है । जहर की शीशी , फास्फोरस , कलम , धागा , लेटर तक नकली है । " 

" मेरी समझ में नहीं आ रहा क्या वक रहे हो ? सब नकली है तो तुमने हम सबके सामने गुल्लू को हत्यारा क्यों सावित किया ? और फिर , गुल्लू ने खुद को हत्यारा क्यों कुबूला ? " 

" मेरे कहने पर ! वो सब हमारी चाल थी ! मेरी और गुल्लू की ! गुल्लू वेचारा तो इस खेल के लिए तैयार भी नहीं था । मैंने ही समझा - बुझाकर तैयार किया । 
" कैसी चाल ? क्या खेल खेल रहे थे तुम ? " 

" मैंने गुल्लु से कहा था ... नकली सुबुतों के बेस पर मैं तुम्हें सबके सामने हत्यारा साबित करुंगा । एक हद के बाद तुम रिवाल्वर निकालकर खुद को हत्यारा कुबुल करोगे । मुझ पर गोलियां चलाओंगे । वे नकली होंगी । मैं कहूंगा कि उन्हें मैंने चेंज किया है । वो सब नाटक था । हमारा मिला जुला रोल ! 

गुन्न का भागने की कोशिश करना ! पुलिस वाले से रायफल छीनकर मुझ पर तानना । और मेरा उस पर गोली चलाना । गुल्लू के रिवाल्वर की तरह अपने रिवाल्वर में भी मैंने नकली गोलियां भरी थीं । इसीलिए सब पुलिस वालों को हिदायत दी थी कि कोई गुल्लू पर गोली नहीं चलायेगा । 

तुम सबको दिखाने के लिए उस पर मुझे नकली गोलियां चलानी थी । गुल्लू को मरने का नाटक करना था । इसके कपड़ों के नीचे बकरे के खून से भरे गुब्बारे छुपे थे । " 

कहने के साथ ही जैकी पागलों की मानिन्द गुल्लू की लाश पर झपटा । उसके पेट और कमीन के बीच में टटोलकर दो फुटे हुए गुब्बारों के अवशेष निकालकर दिखाता चीखा --- " देखो देखो ! ये फूट चुके हैं । इनमें भरा बकरे का खून गुल्लू के अपने खून के साथ बह रहा है । 

एलान के मुताबिक मुझे गुल्लू पर नकली गोलियां चलानी थी । गुब्यारे फोड़ते हुए इसे मर जाने का नाटक करना था । सोचा था ---- दूसरे लोगों की तरह इसे हत्यारा भी मर चुका समझेगा । जबकि असल में यह अन्डरग्राऊन्ड रहकर हत्यारे की खोज करेगा । मुझे अपने इस प्लान से कामयाबी मिलने की उम्मीद थी । " 

फिर तुम्हारे रिवाल्वर में असली गोलियां कहाँ से आ गई ? " विभा ने पूछा ---- " मर कैसे गया गुल्लू ? " 
" य - पही तो ? मैं तो तब चौंका जब खून का फव्वारा गुल्लू के पेट की जगह सीने से उछला । सचमुच की गोली लगी थी वहां ! यह देखकर मेरे होश उड़ गये ।


मुझे मारो ! गिरफ्तार कर लो विभा जी ! बाकी लोगों का हत्यारा चाहे जो हो मगर गुल्ल का हत्यारा मैं हुँ । मैंने मारा है इसे । इन हाथों से ! इस रिवाल्वर से ! आप सबके सामने गुल्लू की हत्या की है मैंने । मेरी बेवकूफी भरी चाल की भेंट चढ़ गया ये । नही ... नहीं इस गुनाह की सजा मुझे मिलनी ही चाहिए । " कहने के साथ जुनूनी अवस्था में उसने रिवाल्वर वाला हाथ अपनी कनपर्टी की तरफ बढ़ाया । 

मैंने झपटकर रिवाल्वर छीना , चीखा ---- " वे क्या पागलपन है जैकी ? " 
" मैं हत्यारा हूँ हत्यारा हूँ ! " गुल्लू की लाश के नजदीक घुटनों के बल गिरकर वह बार - बार अपने हाथों से माथा पीटता कहता चला गया -- " गुल्लू की हत्या मैंने की है । मुझे मार डालो ! 

" दिल को हिला देने वाला रुदन था उसका । सब हकबकाये से खड़े थे । एकाएक वातावरण में किसी के जोर - जोर से ठहाका लगाने की आवाज गूंजी । सबने चौंककर एक - दूसरे की तरफ देखा । रोना भूलकर जैकी ने भी चेहरा ऊपर उठा लिया 



हंसने वाला नजर नहीं आया । भीड़ में से कोई नहीं था वहां । सभी के रोंगटे खड़े हो गये । 

ठहाकों के बाद आवाज गूंजी ---- " देखा इस्पैक्टर ! देखा ? इसे कहते हैं चमत्कार ! अपने अगले शिकार की हत्या मैंने तेरे हाथों से करा दी । सबके सामने करा दी और करना क्या पड़ा मुझे ? सिर्फ तेरे रिवाल्वर से छेड़छाड़ । उसमें तेरे द्वारा डाली गयीं नकली गोलियां निकालकर असली गोलियां डालना कितना आसान था । मुझे पकड़ने के लिए साजिश रचने चला था । मुझे पकड़ने के लिए गुल्लू को मृत घोषित करके उसे मेरी खोज में लगाना चाहता था । चाल तो अच्छा सोची तूने ! आदमी खुद को जिन्दा लोगों की नजरों से छुपाने का प्रयत्न करता है । मरे हुए लोगों की नजरों से नहीं ! तेरी चाल कामयाब हो जाती तो मुमकिन है गुल्लू के हाथ मेरी नकाब तक पहुंच जाते मगर देख ---- वो बेचारा तो खुद मरा पड़ा है । सचमुच मर गया वह । 

" सनसनी फैल गई चारों तरफ । आवाज गुल्लू की कोठरी से आ रही थी । क्षणिक अंतराल के बाद पुनः कहा गया ---- " आठ हत्यायें कर चुका हूं ! अब केवल नौवा हरामजादा बाकी है । मेरा आखरी शिकार ! दावा है इंस्पैक्टर और तुम भी सुनो विभा जिन्दला दुनिया की कोई ताकत उसे नहीं बचा सकती । उसका भी यही हश्र होगा जो आठों का हुआ । 

तुम सबकी आंखों के सामने मौत के घाट उतार दूंगा मैं उसे । हा ..... हा .... " आवाज पुनः ठहाको तब्दील हो गयी । विभा रिवाल्वर निकालकर गुल्लू की कोठरी की तरफ लपकी । जैकी मेरे हाथ से रिवाल्वर छीनकर उस तरफ दौड़ा । मैंने उसके पीछे जम्प लगाई । मेरे पीछे पूरी भीड़ थी । ठहाकों की आवाज लगातार गूंज रही थी । गुल्लु की कोठरी में कदम रखते ही मैंने देखा ---- विभा और जैकी पहले से जाम हुए खड़े थे । 

नजरें एक स्टूल पर रखे ऑन टेपरिकार्डर पर स्थिर थीं । अपनी चकरियों पर धूमता टेप साफ नजर आ रहा था । ठहाकों की आवाज उसी से निकल रही थी । " धांय ! धांय " उत्तेजना की ज्यादती के कारण कांप रहे जैकी ने दो बार ट्रेगर दबाया । ठहाको की आवाज शान्त।टेपरिकार्डर खील - खील होकर कोठरी में विखर गया ।

" मेरी रक्षा करो ! मुझे बचा लो इंस्पैक्टर साहब ! विभा जी वो मुझे मार डालेगा ! बचा लो मुझे " जैकी और विभा के कदमों में गिरकर ऐरिक जब बार - बार यह कहने लगा तो सब दंग रह गये । जाने क्यों मेरे मन में उसके लिए नफरत का भाव उभरा । शायद यह सोचकर कि वह सत्या का हत्यारा था । 

" क्या हुआ ? " जैकी उसके कंधे पकड़कर ऊपर उठाता बोला ---- " आपको अचानक क्या हुआ ऐरिक सर ? " 
" मेरे सारे साथी मारे गये । " बुरी तरह डरा हुआ वह कहता चला गया ---- " अब मुझे यकीन हो गया है , हत्यारे का अगला शिकार मैं हूं । वह मुझे नहीं छोड़ेगा । मार डालेगा मुझे भी । परन्तु मैं उसके हाथों नहीं मरना चाहता । गिरफ्तार कर लो मुझे हथकड़ियां पहना दो ! कारागार भेज दो ! " 

" मगर क्यों ? तुम्हें किस जुर्म में गिरफ्तार कर सकते हैं हम ? " 
" मैने सत्या की हत्या की है । प्रश्न पत्र प्रकाशित कराता था । मैं और मेरे साथी ! चन्द्रमोहन , हिमानी , अल्लारक्खा , ललिता , लविन्द्र , एकता , नगेन्द्र और गुल्लू मेरे साथ थे । हम सब प्रश्न पत्र प्रकाशित करते है । 

सत्या ने यह रहस्य जान लिया । हमने उसे हिस्सा देकर अपने में मिलाना चाहा । वह नहीं मानी । हम सबने मिलकर उसकी हत्या कर दी और फिर कोई एक - एक करके हम सबको मारने लगा । सब मर गये ! केवल मैं बचा हूं । मैं मरना नहीं चाहता । गिरफ्तार कर लो मुझे ! भले ही सूली पर लटका देना मगर हत्यारे के हवाले मत करना । वो मुझे .... 

" तो तुम हो सत्या मैडम के हत्यारे ? " ऐरिक का सेन्टेन्स पूरा होने से पहले राजेश दहाड़ उठा ---- " तुमने मारा था हमारी सत्या मैडम को ? अरे हत्यारा क्या मारेगा तुझे ? हम ही बोटी - बोटी नोच डालेंगे । क्यों दोस्तो ---- क्या कहते हो ? " 

" मारो ! मारो ! मार डालो इसे । " चारों तरफ से आवाजें आई । सभी स्टूडेन्ट्स उतेजित हो उठे थे । जैकी माहौल को ठीक से समझ भी नहीं पाया था कि राजेश ने बाज की तरह झपटकर ऐरिक को उनके हाथों से छीन लिया । खींचकर स्टूडेन्ट्स की भीड़ के बीच में ले गया उसे । फिर क्या था ? हरेक की जुबान पर एक ही लफ्ज था ... " मारो ! मारो ! " 

स्टूडेन्ट्स टिड्ढी दल की तरह उस पर टूट पड़े । ऐरिक की चीखें गूंजने लगीं । जिस्म पर पूरी बेरहमी से लात , घूसे और ठोकरें पड़ रही थीं । जुनूनी स्टूडेन्ट्स की भीड़ से पूरी तरह घिर चुका था ऐरिक । जैकी को जब लगा वे लोग उसे लात , घूसों से ही मार डालेंगे तो रिवाल्वर का रुख आकाश की तरफ करके फायर किया । स्टुरेन्टस चौंके।


पलटकर उसकी तरफ देखा । 
" छोड़ दो उसे । " जैकी गरजा । 
" हरगिज नहीं ! " राजेश दहाड़ा ---- " हम इसे अपने हाथों से सजा देंगे । " 
" पागलपन मत करो राजेश। मैं कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत किसी को नहीं दे सकता । " 
" कहां का कानून इस्पैक्टर कौन सा कानून ? " राजेश पर जुनून सवार था ---- " उस वक्त कहां था तुम्हारा कानून जब इस हरामजादे ने हमारी सत्या मैडम को मारा ? हम किसी कानून को नहीं जानते । अपने हाथों से सजा देंगे इसे ! रुक क्यों गये दोस्तो ---- मारो साले को ! इंस्पेक्टर हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता । " 

स्टूडेन्टस ने पुनः ऐरिक पर लपकना चाहा । " 

खबरदार ! " जैकी उनकी तरफ लपकता गर्जा ---- " आगे बढ़े तो गोली मार दूंगा । " स्टुडेन्टस ठिठक गये । 

रिवाल्वर हाथ में लिए जैकी ने राजेश के नजदीक से गुजरना चाहा था कि ---- राजेश ने ऐसी हरकत की जिसका स्वप्न तक में किसी ने कल्पना नहीं की थी । विजली की सी गति से उसका घुंसा , जैकी के चेहरे पर पड़ा । जैकी के हलक से चीख निकली । राजेश ने झपटकर उसका रिवाल्वर कब्जाया । इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता , रिवाल्वर की नाल ऐरिक की कनपटी से सटाता गुर्राया वह ---- " किसी ने भी आगे बढ़ने की कोशिश की तो मैं इसे यहीं इसी वक्त गोली मार दूंगा । " 

" ये क्या पागलपन है राजेश ? " जैकी चकित स्वर में कह उठा ---- " छोड़ दो उसे ! जिसे कानून खुद फांसी पर लटकाने वाला है उसके खून से तुम अपने हाथ क्यों रंगते हो ? " 

जिस पर जुनून सवार हो भला उसकी समझ में ऐसी बातें कहां आती है ? चेहरे पर गम लिए उसने कहा ---- " जो होगा देखा जायेगा इंस्पैक्टर ! मगर ये तुम्हारा नहीं , तुम्हारे कानून का नहीं , हमारा , हम सबका शिकार है ! क्यों दोस्तो ? खामोश क्यो खड़े हो ? " 
" तुमने ठीक कहाँ राजेश । " रणवीर कह उठा ---- " सत्या मैडम के हत्यारे को हमारे अलावा कोई सजा नहीं दे सकता । " 
" चले आओ मेरे साथ । " कहने के साथ राजेश ने ऐरिक को पुलिस जीप की तरफ घसीटा । उसके ग्रुप के स्टूडेन्ट्स ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया था । ऐरिक हलाल होते बकरे की तरह मिमिया रहा था .--- " बचाओ ! बचाओ ! " जैकी बौखलाकर विभा की तरफ घूमा । बोला ---- " कुछ कीजिए विभा जी ! रोकिए उन्हें !

" बगैर उनका खून बहाये इस वक्त उन्हें कोई नहीं रोक सकता और एक हत्यारे के लिए उनका खून बहाना किसी नजरिए से ठीक नही होगा।


अपने पुलिस वालों से कहो ---- कोई उन पर गोली न चलाये । वे मरने को तैयार है । मर जायेंगे मगर ऐरिक को नहीं छोड़ेंगे । " 

मैं विभा से सहमत था । 
जैकी भी सहमत हुआ तभी तो उसने चीखकर किसी को स्टूडेन्ट्स पर गोली न चलाने का हुक्म दिया । 

चीखते - चिल्लाते और बचाओ - बचाओ की गुहार करते ऐरिक को घसीटकर वे जीप तक ले गये । जैकी ने पुनः पलटकर विभा से कहा ---- " जो हो रहा है , वह भी तो ठीक नहीं है विभा जी ! उन्होंने ऐरिक को मार डाला तो कानून उन्हें नहीं छोड़ेगा । 

" बड़ी ही गहरी मुस्कान उभरी थी विभा के होठो पर ! बोली ---- " वे उसे नहीं मार सकेंगे । " 

" क क्या मतलब ? " जैको बुरी तरह चौंका । 
" मैं जानती हूं --- हत्यारा उन्हें ऐसा नहीं करने देगा 
" क - कहना क्या चाहती हैं आप ? 
" बिभा के जवाब देने से पहले जीप स्टार्ट होने की आवाज उभरी । 
मैंने और जैकी ने चौंककर उधर देखा । ऐरिक को लिए जीप गोली की तरह गेट की तरफ लपकी । जैकी आधी तूफान की तरह दूसरी जीप की तरफ दौड़ा । तब तक पहली जीप गेट पार करके कॉलिज से बाहर निकल चुकी थी । जैकी की जीप उसके पीछे लपकी । 

" कम आन ! " मेरा हाथ पकड़कर बिभा गेट के नजदीक खड़ी अपनी राल्स रॉयल की तरफ बढ़ी । हम दोनों फुर्ती से पिछली सीट पर बैठे । शोफर ने गाड़ी स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी । 

गेट पार करने के बाद वह गाड़ी को बाई तरफ वाली सड़क पर मोड़ना चाहता था कि विभा ने कहा --- " दाई तरफ चलो । 
" मैंने जल्दी से कहा ---- " वे बाईं तरफ गये हैं । " 
" जाने दो ! हम उनके पीछे नहीं जा रहे । " हकला उठा मैं ---- " त - तो कहां जा रहे है ? " 
" हत्यारे की एक और करतूत दिखाना चाहती हूं तुम्हें । 
" मुझसे कहने के बाद विभा ने शोफर को हुक्म दिया ---- " वहाँ चलो , जहां ' वह ' है । मेरी खोपड़ी अंतरिक्ष में तैर गयी । समझ न सका ---- खेल क्या खेल रही थी महामाया ?




राल्स रॉयल पल्लवपुरम में दाखिल हुई । मेरा दिल रबर की गेंद की मानिन्द उछलने लगा । उस वक्त तो मानो धड़कनें ही रुक गई जब रॉल्स रायल ठीक उस मकान के सामने रुकी जिससे विभा ने मुझे बरामद किया था । 

मुंह से बेसाख्ता निकला ---- " यहां क्यों लाई हो तुम मुझे ? " 
" सारे रहस्यों से पर्दा उठाने । " वह गाड़ी का दरवाजा खोलकर बाहर निकलती बोली ---- " आओ । 
" धाड़ - धाड़ करके बज रहे अपने दिल को मैं भरपूर कोशिश के बावजूद न रोक सका । 

थर्टी सिक्स वटा टू का मुख्य द्वार ज्यों का त्यों टूटा पड़ा था । शोफर को अपने साथ आने का इशारा करके वह मकान में दाखिल हो गयी । यह वही कमरा था जहां से उसने मुझे बरामद किया था ।


इस वक्त वह बिल्कुल खाली था । पलंग तक नहीं था वहां । इस और अंदर वाले कमरे के बीच के दरवाजे पर ताला लटका हुआ था । विभा के इशारे पर शोफर ने अपनी जेब से ' मास्टर की ' निकाली और थोड़ी सी कोशिश के बाद खोल दिया । कमरे में कदम रखते ही मुझे ठिठक जाना पड़ा । लोकेश फोल्डिंग पलंग के साथ रस्सियों से बंधा हुआ था । मुंह पर टेप लगा था । हमें देखते ही उसकी आंखों में याचना उभर आई । 

विभा ने आगे बढ़कर उसके मुंह से टेप हटा दिया । मुंह के अंदर ढेर सारी रूई ठूँसी हुई थी । वह कसमसाया । बोलने की कोशिश में मुंह से गू - गू की आवाज निकली । विभा ने उसके मुंह से रूई निकाल ली । 

बोलने लायक होते ही उसने कहा ---- " मुझे खोलिए विभा जी । " 
" पहले बताओ ---- तुम्हे यहां कौन लाया ? " 

" बता तो चुका हूं आपके शोफर को । " 
" फिर एक बार बताओ । " विभा ने मेरी तरफ इशारा किया ---- " इसके सामने । " 
" मैं उसे पहचान नहीं सका । उसने हेलमेट , दस्ताने , ओवरकोट , पैंट और जूते पहन रखे थे । " 
" शुरू से बताओ क्या हुआ था ? " 
" ललिता की मौत के बाद प्रिंसिपल साहब के बंगले तक मैं आपके साथ ही था । उसके बाद अपने दोस्तों के साथ कालिज में पहरे पर रहा । सुबह के वक्त थोड़ा आराम करने अपने कमरे में पहुंचा । बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गयी । आंख खुली तो खुद को यहां , इस हालत में पाया । 

जहां आप खड़ी है वहां हेलमेट वाला खड़ा था । उसे देखते ही तिरपन कांप गये मेरे । तब तक अच्छी तरह प्रचारित हो चुका था कि हत्यारा हेलमेट बाला है । यह सोचकर होश उड़ गये कि अब शायद मेरा नम्बर है । बड़ी मुश्किल से पूछ सका मैं ---- ' अ - आप हम लोगों की हत्याएं क्यों कर रहे हैं ? हमने क्या बिगाड़ा है आपका ? 

' उसने कहा ---- 'डरो नहीं लोकेश ! मैंने तुम्हें मारने के लिए अगवा नहीं किया है । मारना होता तो यहां क्यों लाता ? दूसरों की तरह कालिज में ही मार डालता । मगर एक भी बेगुनाह को मारना तो दूर , खरोंच तक नहीं पहुंचाना चाहता । 
मैं सिर्फ उन्हें मारूंगा जो पैदा ही मेरे हाथ से मरने के लिए हुए है । मैंने पूछा ---- ' फिर मुझे अगवा क्यों किया ? उसने कहा ---- क्योंकि तुम्हारी कद काठी लविन्द्र से मिलती है और मेरा अगला शिकार वही है । 

विभा जिन्दल जरूरत से ज्यादा चालाक है । लगता है ---- मैंने नया खेल नहीं खेला तो वह मुझे पहचान जायेगी । खेल ये होगा ---- लविन्द्र को इस तरह मारूंगा कि उसकी लाश पहचानी न जा सके । तुम सारे कालेज को गायब मिलोगे । 
मैं जानता हूं ---- विभा जिन्दल इतनी ब्रिलियंट है ---- उसके दिमाग में फौरन यह बात आयेगी कि लाश लविन्द्र की जगह लोकेश की हो सकती है । उसका दिमाग लविन्द्र पर अटक जायेगा , जितना सोचेगी लविन्द्र उसे उतना ही हत्यारा नजर आयेगा । 
एक ही कहानी बनेगी उसके दिमाग में ---- यह की लविन्द्र ने खुद को सबके शक के दायरे से बाहर रखने की खातिर लोकेश को अपनी लाश बनाया है ! बस ! यही मेरा उद्देश्य है । खुद से ध्यान हटाने के लिए में विभा जिन्दल को लविन्द्र में अटकाना चाहता हूं । ' 

' इसका मतलब जैकी और विभा जी सही ताड़े । मैंने कहा ---- ' खुद को बचाये रखने के लिए तुम्हारी ट्रेडेन्सी दूसरों को शक के दायरे में फंसाये रखना है । 
' तभी तो कहा दोस्त विभा जिन्दल जरूरत से ज्यादा ब्रिलियन्ट है । वह कहता चला गया ---- ' मुझे डर है , कहीं वह मुझे मेरा मकसद पूरा होने से पहले न दबोच ले । किसी चाल में नहीं फंसती वह ।


यहां तक कि जो चाल बंसल की तिजोरी में सत्या का कार्ड रखकर चली थी , उसे भी समझ गयी । मगर इस बात में जरूर फंसेगी । यकीनन लविन्द्र की मौत को नकली मानेगी । ' 
' तुम ये सब कर क्यों रहे हो ? ' मैंने पूछा मगर इस सवाल का जवाब नहीं दिया उसने । मेरे हलक में रूई ठुंसी । मुंह पर टेप लगाया और चला गया । " 
" उसके बाद ? " 
" दोपहर के वक्त फिर आया । मेरे लिए खाना लाया था । मुझे खोला । रिवाल्वर की नोक पर खिलाया और पुनः इसी तरह बांधकर चला गया । इस मुलाकात में उसने बताया ---- वह लविन्द्र सर की हत्या कर चुका है । उसके जाने के मुश्किल से पन्द्रह मिनट बाद आपका ये शोफर आया ! मेरे मुंह से टेप और हलक से रूई निकालकर बयान लिया । वही सब बताने के बाद मैंने इसरो खुद को खोलने की रिक्वेस्ट की , जो अब बताया है । मगर एक भी लफज बोले बगैर इसने मेरा मुंह बंद किया और हेलमेट वाले की तरह कमरे का ताला लगाकर चला गया । 

" मैंने हैरान होकर शोफर से पूछा ---- " तुमने ऐसा क्यों किया ? " 
" मेरे हुक्म के बगैर ये लोकेश को आजाद नहीं कर सकता था । " विभा ने कहा । 
" मगर तुमने लोकेश को , यहां से निकलवाया क्यों नहीं ? " 
" ताकि हत्यारे के इरादों पर पानी न फिरे । " 
" म - मतलब ? " " वह खुली किताब की तरह मेरे सामने आ चुका था । " 
" क - कौन है वो ? " मैने घड़कते दिल से पूछा।


विभा ने कहा ---- "मैं ? " 
चीख निकल गई मेरे हलक से ---- " य - ये क्या कह रही हो विभा ? 
" आकर्षक मुसकान के साथ कहा विभा ने ---- " मैं चाहती तो उसे रोक सकती थी । गिरफ्तार कर सकती थी लेकिन नहीं किया ! क्या तुम इसे मेरा उसे सहयोग देना नहीं कहोगे ? " 
"जरूर कहूँगा"
" और मुजरिम हत्यारे को सहयोग देने वाला भी होता है । " 
" मगर क्यों ? क्यों विभा ? तुमने ऐसा क्यों किया ? " 
" क्योंकि जो मरे वे इसी लायक थे । जो मर रहे थे वे मरने ही चाहिए थे । " कहती हुई विभा के जबड़े मिंच गए । उसके दूध से गोरे मुखड़े पर आग ही आग नजर आने लगी । पूरी कठोंरता के साथ वह कहती चली गयी --- " मेरी सहानुभूति मरने वालों के साथ नहीं हत्यारे के साथ थी वेद । 

पेपर आऊट करके छात्रों का भविष्य बिगाड़ रहे थे वे । बेगुनाह ... एक सिरे से दूसरे सिरे तक पूरी तरह बेगुनाह सत्या को मार डाला इन्होंने । ऐसे वहशी दरिन्दों की वहीं सजा है जो उन्हें मिली । क्या तुम्हें याद नहीं मैंने खुद अपने पति के एक - एक हत्यारे को चुन - चुनकर मारा था ? फिर इस केस के हत्यारे को कैसे गलत कह सकती थी ? उसने अपनी सत्या के हत्यारों को सजा दी है । इस तरह के लोगों को हत्यारा कहा जाने लगा तो राम भी रावण और उसके सारे परिवार के हत्यारे कहलायेंगे । नहीं ये हत्याएं नहीं थी । यह इंसाफ था । यह इंसाफ जो , किसी के दिल से दिल की आवाज बनकर निकलता है । इसे तुम चाहे जो कहो मगर मैं ये कहूंगी --- मैंने इंसाफ होने दिया । " 

" मैं तुम्हें पहली बार जज्बातों की आंधी में उड़ती देख रहा हूं । विभा ! आखिर कानून भी तो कोई चीज है । माना उन्होंने जुर्म किया था --- कानून के हवाले भी तो किया जा सकता था उन्हें । ' 
" अगर मैं चन्द्रमोहन का कत्ल होने से पहले मेरठ आ जाती तो जरूर ऐसा करती " 
" मतलब ? " " चन्द्रमोहन के मर्डर के साथ हत्यारा अपना काम शुरू कर चुका था । मेरे कॉलिज पहुंचने से पहले हिमानी भी मर गयी ।


अल्लारखा और ललिता के मर्डर के बाद मैंने हत्यारे को पहचाना । वह वजह जानी जिसके कारण वह हत्याएं कर रहा था । लविन्द्र की हत्या को भी मैं चाहती तो नहीं रोक सकती थी । बाकी बचे एकता , नगेन्द्र , गुल्लू और ऐरिक । इन चारों की हत्या से पहले मैं हत्यारे को जरूर गिरफ्तार कर सकती थी , मगर नहीं किया । दो कारण थे ---- पहला , मैं दिल से मानती थी हत्यारा ठीक कर रहा है । दूसरा , उस स्पॉट पर हत्यारे को पकड़ने से लाभ क्या था ? उसे चन्द्रमोहन , हिमानी , अल्लारक्खा , ललिता और लविन्द्र की हत्याओं के इल्जाम में फांसी होती और एकता , नगेन्द्र , गुल्लू तथा ऐरिक को सत्या की हत्या के जुर्म में । मरना उन सभी को था तो सोचा --- हत्यारे को अगर फांसी होनी ही है तो उन सबको मारने के बाद क्यों न हो जो कानून के हिसाब से भी मौत के हकदार है । " 

" वो है कौन विभा ? किसने बदला लिया सत्या की हत्या का ? " 


" मैं तुझे नहीं छोडूंगा हरामजादे । " राजेश जुनूनी अवस्था में ऐरिक के बाल पकड़े उसे झंझोड़ता हुआ दहाड़ा ---- " कच्चा चबा जाऊंगा तुझे ।

" राजेश " जीप को ड्राइविंग सीट पर बैठा रणवीर ने कहा ---- " इंस्पेक्टर पीछा कर रहा है । " 
" करने दे । " संजय ने कहा- तेज दौड़ा । आज ड्राइविंग देखनी है तेरी । 

" रफ्तार पहले ही अस्सी से ऊपर थी। रणवीर का पैर एक्सीलेटर पर दबाव बढ़ाता चला गया । जीप हवा से बातें करने लगी । पिछली जीप की रफ़्तार भी उसी अनुपात में बढ़ गई थी । दोनों जीप मेन रोड पर शहर से बाहर निकल चुकी थी । 

ऐरिक हलाल होते बकरे की तरह डकरा रहा था । गुस्ससे में पागल हुए जा रहे संजय ने अपने सिर की भरपूर टक्कर उसकी नाक पर मारी । ऐरिक फड़फड़ा उठा । नाक से खुन का फव्वारा फुट पड़ा । 

" कमीने ! कुते ! " असलम दहाड़ा ---- " हमें पहले पता लग जाता तुमने सत्या मैडम की हत्या की है तो किसी को तुम्हारे खून से अपने हाथ रंगने की जरूरत नहीं पड़ती । हम ही तुम्हारे जिस्मों के चीथड़े करके चील - कब्वो के सामने डाल देते । " तभी जीप जोर से उछली । 

संजय ने कहा ---- " क्या कर रहा है रणवीर ? " 
" क्या करूं ? सड़क में गडडे ही इतने है ! " " इंस्पैक्टर नजदीक आता जा रहा है । 
" शेखर ने पिछली जीप पर नजरें गड़ाये कहा । " ऐरिक को मार डाल राजेश ! इंस्पैक्टर नजदीक आ गया तो बचा लेगा इसे ! गोली मार दे साले को । " 
" नही ! इतनी आसान और सीधी - सादी मौत नहीं मरेगा ये ! " राजेश ने कहा ---- " इसकी मौत भी कुछ वैसी ही नई टैक्निक लिए होगी जैसे इसके साथी मरे । " 
" क्या करना चाहता है ? " संजय ने पुछा । " सब अपनी अपनी कमीज उतारो । " राजेश मानो पागल हो चुका था ---- " हम इसे बांधकर जीप के पिछले कुंदै में लटका देंगे । इस्पैक्टर के देखते - देखते सड़क पर घिसटता हुआ मर जायेगा साला ! " 

उनका भयानक ईरादा सुनकर ऐरिक के छक्के छूट गये । तिरपन कांप गये ।

बार - बार वैसा न करने के लिए गिड़गिड़ाने लगा । मगर सुनने का होश किसे था ? शेखर ने कहा ---- " इंस्पैक्टर और नजदीक आ गया है ।


" तु कमीज उतार । " राजेश बोला । रणवीर के अलावा सबने पल भर में कमीज उतार दी । राजेश ने एक कमीज का सिरा ऐरिक की दोनों कलाइयां जोड़कर उसमें बांधा । संजय ने बाकी कमीजों में गांठ लगाकर रस्सी थमा दी । उपर दातों पर दांत जमाये जैकी अपनी जीप की रफ्तार बढ़ाये चला जा रहा था । देखते ही देखते उसका बोनट अगली जीप के पिछले भाग से टच करने लगा । 

शेखर चिल्लाया .... " तेज चला रणवीर । " 

राजेश ऐरिक को सड़क पर लटकाने की प्रक्रिया में जुटा । संजय ने कहा -- " रिवाल्वर दे ! मैं देखता हूं इंस्पैक्टर को ! " राजेश ने रिवाल्वर उसे दिया । 

संजय पिछली जीप पर फायर करने के लिए उसे संभाल ही रहा था कि दोनों जीप' घाड से टकराई। 

स्टूडेन्ट्स की जीप खिलौने की तरह हवा में उछल गई । 
फिजा में अनेक चीखें गूंजी । 
हवा में उछलने के बाद जीप ढलान पर गिरी और लुढ़कती चली गयी । 

जैकी ने जोर से ब्रेक लगाकर अपनी जीप सड़क पर रोकी । कूदकर ढलान की तरफ भागा । उधर जीप जब ढलान तय करने के बाद खेत में रुकी तो उलटी खड़ी थी । 
छत जमीन पर पहिये हवा में । 

ऐरिक के अलावा राजेश , रणबीर , संजय , शेखर और असलम आदि सभी जख्मी हो चुके थे । इसके बावजूद न केवल बाहर निकले , बल्कि बंधे हुए ऐरिक को भी घसीटकर निकाला । तब तक दौड़ता हुआ जैकी उनके नजदीक पहुंच चुका था । 

राजेश ने झपटकर जीप के नजदीक पड़ा रिवाल्वर उठाया । रणवीर , संजय और शेखर आदि उन्हें अपने पीछे लेकर जैकी के सामने अड़ गये । ऐरिक चीखने वाली मशीन की मानिन्द चीख रहा था । 
राजेश रिवाल्वर की नाल उसकी कनपटी से सटाता चीखा ---- " आगे मत बढ़ना इस्पैक्टर ! वरना इसे गोली मार दूंगा । " ठिठकते हुए जैकी ने कहा ---- " नहीं राजेश । तुम ये बेवकूफी नहीं कर सकते । " 
" करना तो नहीं चाहता इंस्पैक्टर लेकिन तुमने मजबूर किया तो करनी पड़ेगी । "



" और बीच में खड़े है हम ! " रणवीर गुर्राया ---- " हिम्मत है तो आगे बढ़ो इस्पैक्टर सत्या मैडम की कसम ! हमे पार करके राजेश तक नहीं पहुंच सकते तुम । " 
" ये हमारा शिकार है । हमारी सत्या मैडम का खून किया है हरामजादे ने । " संजय कहता चला गया ---- " तुम जाओ यहां से ! बाद में आकर लाश उठा लेना । " 
" नहीं संजय ! ऐसा हरगिज नही कर सकता मैं । " पगलाया सा जैकी कह उठा ---- " जिस शख्स ने कानून के रक्षक होने के बावजूद इन दरिन्दों को कानून के हवाले नहीं किया , वह तुम्हारे हवाले करके कैसे जा सकता है ? इनकी बोटी बोटी नोचने का हक केवल मुझे है । केवल मुझे ! 

सत्या मेरी जान थी , मेरी जिन्दगी थी , मेरी होने वाली पत्नी थी वो । और इन राक्षसों ने उसे मार डाला । बोलो ! अब बोलो इसकी बौटियां नोचने का हक किसे है ? "


एरिक सहित सभी अवाक रह गये । राजेश कह उठा ---- " य - ये क्या कह रहे हो इस्पैक्टर ? तुम ? तुमसे मुहब्बत करती थी सत्या मैडम ? " 
" हां राजेश जाने कितने सतरंगी सपने देखे थे दोनों ने मिलकर ? हमारा घर होगा ! बच्चे होंगे ! खुशीयों से भर जायेगी हमारी जिन्दगी ! मगर इन कमीनों ने एक ही क्षण में सारे सपनों की धज्जियां उड़ा दी । इसीलिए मैंने खुद एक - एक को चुन - चुनकर मारा । 

अब ऐरिक बचा है । और बचा है ये चाकु ! " जुनूनी अवस्था में कहने के साथ जैकी ने जेब से चाकू निकाल कर खोला । कहा ---- " पहचानो इसे ! यह वहीं चाकू है जिससे इसने मेरे रंगीन सपनों का खून किया । ये चाकु इसके खून का प्यासा है राजेश ! क्या अब भी तुम इसे मेरे हवाले नहीं करोगे ? 
" राजेश , रणवीर , संजय , शेखर और असलम ने एक - दूसरे की तरफ देखा । ऐरिक की धिन्घी बंध चुकी थी । रो - रोकर खुद को उसके हवाले न करने के लिए कहने लगा वह । जज्बातों का आंधी में घिरा जैकी कहता गया-- " इस केस के दरम्यान मैंने कदम कदम पर महसूम किया और इस वक्त अपनी आंखों से देख रहा हूं कि तुम लोग सत्या को कितना चाहते थे । कितना प्यार करते थे उससे । इसका एक ही कारण है — वह भी तुममे बेइंतिहा प्यार करता थी । तुम्हारे किसी नुकसान को तो वरदास्त कर ही नहीं सकती थी सत्या। फिर भला मैं तुम्हें कैसे तबाह होने दे सकता हूं । इसे तुमने अपने हाथों से मारा तो कानून तुम्हारे पीछे पड़ जायेगा मेरे बच्चो । भविष्य बिगड़ जायेगा तुमारा । मेरी सजा मुकरर हो चुका है । इसके कत्ल के बाद भी फांसी होगी . पहले भी फांसी । जिस सत्या को प्यार करते थे उसी सत्या की कसम है तुम्हें , अपना केरियर तबाह मत करो । सत्या की आत्मा को दुख् होगा । मेरे हवाले कर दो इसे । " 

" लो जैकी भैया ! लो । " कहने के साथ राजेश ने ऐरिक को इतना तेज धक्का दिया कि बुरी तरह चीखता लड़खड़ाता वह जैकी के कदमों में जाकर गिरा । , संजय दहाड़ा ---- " हलाल कर दो हरामजादे को । " 
" बोटी - बोटी नोच डालो । " रणबीर ने कहा । असलम बोला ---- " खुदा भी ऐसे जालिमों का यही अंजाम चाहता है । " 
" इसका खून सत्या मैडम के लिए सच्ची श्रद्धांजली होगी । शेखर बोला । 

जैकी के चेहरे पर तो पहले ही आग थी । अपने कदमों में पड़े ऐरिक का कुर्ता पकड़कर उसे ऊपर उठाया । ऐरिक मिमिया रहा था । जैकी के दांत भिजते चले गये । दांये हाथ की मुट्टी चाकु के फल में गड़ी जा रही थी । गुस्से और जुनून के कारण जैकी के जिस्म की हर नसें उभर आई । आग में लिपटे लफ्ज निकले उसके मुंह से ---- " यही चाकू है न वो ! यही चाकू है न जिससे तूने मेरी सत्या को मार डाला।


देख ---- सत्या का खून तक साफ नही किया मैंने इससे । उस दिन से इस दिन तक के लिए संभालकर रखा था इसे...... तेरा अंत इसी से होना था। " ऐरिक तेरा खेल इसी से खत्म होगा।
कहने के साथ ही चाकु खच्च से ' ऐरिक के पेट मे धंस गया । 

ऐरिक के हलक से चीख ,और पेट से खून का फबबारा उछला । 

उसके खून से लहूलुहान हो उठा जैकी ।
मगर रूका नही जैकी ... दांत पर दाँत जमाये चाकू का फल बाहर खींचा । 

वातावरण में ' खच्च खच्च ' की आवाजें गूंजती चली गई। जैकी मानो पागल हो गया था ।

बिजली से चलने वाले मशीन की तरह चल रहा था उसका हाथ। यहां तक कि ऐरिक के हलक से आवाजे निकलना बंद हो गयी । वह मर चुका था । मगर जैसी को होश कहाँ ? 

लाश पर ही चाकु बरसाता रहा वह ।


अंततः राजेश आदि ने झपटकर जैकी को पकड़ा । संजय ने झंझोड़ते हुए कहा ---- " होश में आओ जैकी भैया । होश में आओ । ऐरिक मर चुका है । " जैकी का हाथ जहां का तहां रुका । 

बांये हाथ से फिसलकर लाश धम्म से जमीन पर गिरी । रणवीर ने हाथ बढ़ाकर जैकी से चाकु लेना चाहा । 

" नहीं ! " चीखता हुआ जैकी पीछे हटा ---- " इस चाकू का काम अभी खत्म नहीं हुआ । " 

" क - क्या मतलब ? " 
मगर ! मतलब समझने का मौका किसी को नहीं मिला । जैकी के हाथ में दबे चाकू का समूचा फल पलक झपकते ही उसके अपने दिल में जा गड़ा । 
" नहीं नहीं जैकी भैया । " राजेश आदि घबराकर उसकी तरफ लपके । चाकू अपना काम कर चुका था । जैकी के सीने में गड़ा रह गया वह । 

राजेश ने जैकी को जमीन पर गिरने से पहले लपका । टूटती सांसों के साथ जैकी ने कहा ---- " लोकेश मोदीपुरम के मकान नम्बर थर्टी सिक्स वटा टू में है , उसे वहां से निकाल
लेना । " 
" जैकी भैया । रणवीर रो पड़ा ---- " ये क्या किया तुमने ? " 
" जो प्यार करता है , वो अपनी मुहब्बत के बगैर जिन्दगी की कल्पना नहीं कर सकता मेरे बच्चो ! अपनी सत्या के पास जा रहा हूँ मैं उसे तुम्हारे बारे में जरूर बताऊंगा ..... " इन शब्दों के साथ जैकी की गर्दन लुढ़क गई । 


" जैकी ? " मैं उछल पड़ा ---- " जैकी हत्यारा है ? " 
" वह किसी कीमत पर अपने आखिरी शिकार यानी ऐरिक को नहीं छोड़ेगा । " 
" जिस पर महामाया की कृपा हो गयी , भला उसका मिशन कैसे अधुरा रह सकता है । " 

" सत्या ने कैम्पस की जमीन पर जो कुछ लिखा , वह बाकी सारे जमाने के लिए भले ही पहेली था ---- परन्तु जैकी के लिए खुनी किताब से कम नहीं था । लव - लेटर्स में किसी का भी पूरा नाम लिखने की जगह नाम का पहला अक्षर कैपिटल लेटर्स में लिखना उनकी प्रक्टिस में था । घटना स्थल पर पहुंचते ही वह समझ गया कि सत्या की हत्या नौ लोगों ने की है और उनके नाम फला - फला लेटर्स से शुरू होते हैं । " 
" उन लेटर्स के तो कालिज में अनेक लोग थे । " 

" इस समस्या को उसने चुटकी बजाकर हल कर लिया । " 
" सबका शक चन्द्रमोहन पर था । तलाशी के दरम्यान उसके कमरे से चाकु मिला । साथ ही उसका नाम भी C से शुरू होता था ।

जैकी उसे थाने से गया । हवालात में चन्द्रमोहन को सत्या द्वारा लिखे लेटर्स का सही - सही मतलब बताया और कहा कि वह सभी हत्यारों के नाम का पहला लेटर जानता है । पहले तुम हो क्योंकि C फार चन्द्रमोहन होता है । बात क्योंकि सच थी , सचमुच सत्या के हत्यारों नाम उन्हीं लेटर्स से शुरू होते थे । अतः चन्द्रमोहन को टूटते देर न लगी और यह तोते की तरह सारे नाम और किस्सा बताता चला गया । " 

" यानी पहले ही झटके में जैकी न केवल हत्यारों के नाम जान गया था बल्कि यह भी जान गया कि सत्या की हत्या क्यों हुई ।
" वह सब कुछ जान गया जो चन्द्रमोहन जानता था । " 
" उसके बाद ? " 
“ जैकी ने चन्द्रमोहन से कहा ---- अगर तुम सबूत के साथ बाकी आठों को पकड़वाने में मेरी मदद करो तो मैं तुम्हें सरकारी ' गवाह बनाकर कोर्ट से बरी करा सकता हूं ।


चन्द्रमोहन ने वहीं किया जो उन हालात में फंसा कोई भी शख्स करता । तैयार हो गया वह ! तब जैकी ने कहा ---- तुम अपने साथियों को या किसी और को नहीं बताओगे कि तुम सरकारी गवाह बन चुके हो । तुम्हारा काम होगा सबूत हासिल करना और सुबूत मिलते ही स्टॉफ रूम से मेरे मोवाइल पर फोन करना । 

तुम्हारे थाने पहुंचने से पहले उन दोनों के बीच यह सेटिंग हो चुकी थी । उसके बाद जैकी ने तुम्हें दिखाने के लिए चन्द्रमोहन को बेकसूर ' का परमिट देकर ' मुखबिर ' के रूप में कालिज पहुंचाया । रात के वक्त तुम घर आ गये मगर जैकी का मकसद चन्द्रमोहन की मदद से हत्यारों को पकड़ना नहीं बल्कि उनकी हत्या करना था । 

अतः बराबर उस पर नजर रखी । बेवकूफ बने चन्द्रमोहन ने खुद को बचाने की धुन में अपने साथियों को हकीकत नहीं बताई बल्कि गुपचुप तरीके से हिमानी के कमरे से सत्या के खून से सना पेपर हासिल किया और जैकी के निर्देश के मुताबिक स्टॉफ रूम से उसे फोन किया । जैकी ने वहीं उसकी हत्या कर दी ।


" जब चन्द्रमोहन उससे फोन पर बात कर रहा था तो हत्यारा जैकी कैसे हो सकता है ? " 

" मत भूलो ! जैकी के मोबाइल पर बात कर रहा था वह । गुल्लु के बयान पर गौर करो । उसने हत्यारे को बड़बड़ाते हुए स्टॉफ रूम की तरफ जाते देखा था । उसके एक हाथ में बल्लम था । जाहिर है ... मोबाइल पर चन्द्रमोहन से बातें कर रहा था वह । दूर होने के कारण गुल्लू मोबाइल को नहीं देख सका । उसे केवल यह लगा कि वह बड़बड़ा रहा था । " 

" उस वक्त जैकी के एक हाथ में मोबाइल था । दूसरे में बल्लम। बात करता करता वह चन्द्रमोहन के सामने स्टाफ रूम के दरवाजे पर पहुंचा । चन्द्रमोहन चौंका । जैकी ने बल्लम खीच मारा ! काम खत्म । ' 

" तो क्या चन्द्रमोहन ने अपनी जेब में CHALLENGE लिखा कागज भी उसी के निर्देश पर रखा था ? " 
" नहीं ! वह कागज चन्द्रमोहन के मरने से पूर्व उसकी जेब में नहीं था । " 
" फिर ? " 
" असल में जैकी यह कागज चन्द्रमोहन की हत्या करने के बाद उसकी जेब में रखना चाहता था । परन्तु तत्काल गुल्लू के आने और शोर मचाने के कारण ऐसा न कर सका । वहां से फौरन भागना पड़ा उसे । " 
" लेकिन तलाशी के दरम्यान कागज निकला था । 
" विभा मुझसे मजा लेती बोली ---- " वह तलाशी में नहीं निकला मेरे मुन्ना बल्कि तुम्हें लल्लू बनाया था जैकी ने । चन्द्रमोहन की लाश की जेब में हाथ डालने से पूर्व ही वह उसके हाथ में था और फिर ठीक ऐसे उसे जेब से निकालकर दिखा दिया , जैसे जादुगर झुरैट - मुर्रेट करता है । " 

" इसका मतलब वह चन्द्रमोहन का लिखा नहीं था ? " 
" विल्कुल नहीं था । 
" सो किसने लिखा ? " 
" जैकी ने ! वह राइटिंग्स की नकल मारने में माहिर है । " 
" तुमने खुद कहा था ऐसा शख्स नंगी आंखों को धोखा देने में भले ही कामयाब हो जाये मगर एक्सपर्ट को धोखा नहीं दे सकता । जैकी ने कहा था ---- यह एक्सपर्ट की ओपिनियन ले चुका है । राइटिंग चन्द्रमोहन की ही है । " 

" जैकी ने ही कहा था न ! मत भूलो ---- वह हत्यारा है । " 
" यानी झूट बोला था उसने ? " 
" स्टाम्प पेपर पर लिखकर देना पड़ेगा क्या ? " " यह झूठ उसने बोला क्यों ?


" पहेली को उलझाने के लिए ! बाकी हत्याओं को भी सत्या की हत्या की श्रृंखला दर्शाने के लिए । " 

" इसका मतलब सत्या के अलावा किसी मक्तृल ने CHALLENGE नहीं लिया । जहां लिखा ---- मक्तूल की राइटिंग की नकल मारकर जैकी ने लिखा ? " 
“ सत्या के साथ ललिता का नाम और जोड़ लो । चिन्नी के कारण वह वही करने के लिए मजबूर थी जो जैकी ने कहा । " 

" हिमानी की ड्रेसिंग टेबल पर भी उसी ने लिखा था ? " 
" वह वो वक्त था जब हिमानी अपनी मौत से पूर्व कैम्पस में लिपस्टिक चाट रही थी । याद करो ---- उस वक्त जैकी हमारे साथ नहीं था । थाने से कालिज की तरफ आ रहे थे हम । उसने हिमानी के कमरे में जाकर अपना काम किया ! लौटकर थाने की तरफ जा रहा था कि मोबाइल पर हिमानी की मौत की खबर मिली । रास्ते ही में से पुनः कालिज की तरफ लौटा और गेट पर हमें मिला । 

" बड़ा शातिर था जैकी । मर्डर भी वही कर रहा था , इन्वेस्टिगेशन भी वही ! " 
" अब हम अल्लारखा के नाइट गाऊन पर लिखे हुए CHALLENGE पर आते है । " विभा ने कहा ---- " वह तब लिखा गया जब अल्लारखा हवालात में था । सोचो ---- सब कुछ कितना आसान था जैकी के लिए । अल्लारखा की चाबी से ही उसके कमरे का लॉक खोलकर उसके कमरे में पहुंचा । " 
" माई गाड " 
" ललिता और लविन्द्र की हत्या में ऐसा कुछ नहीं है जिसे जैकी के प्वाइंट ऑफ व्यू से क्लियर करने की जरूरत हो । तुम समझ सकते हो -एकता का मर्डर उसके लिए कितना आसान या । पहरे पर वही था ! दुसरे पुलिस वालों को भनक दिये वगैर उसने खामोशी से हत्या कर दी । उसके बाद नगेन्द्र को मारा ! तुम्हें याद होगा ---- नगेन्द्र को टँकी में उतरने के लिए उसी ने कहा था । हत्यारा कोई और होता तो भला कैसे जान सकता करेंटयुक्त पानी में कौन उतरेगा ? नम्बर क्योंकि नगेन्द्र का था अतः जैकी ने टंकी में उसी को उतारा । 

गुल्लु का मर्डर तो पट्टे ने सारे कालिज के सामने खुल्लम खुल्ला कर दिया , इसके बावजूद तुम जैसा धुरन्धर राइटर नहीं ताड़ सका हत्यारा वही है ? " 
“ उसने एक्टिंग ही ऐसी की । " 
" वाकई ! " विभा कह उठी ---- " अमिताभ तक तो मात कर दिया जैकी ने । जो कुछ उसने गुल्लू को पढ़ाकर खुद उसी के मुंह से उसे हत्यारा कहलवाया , वह तो जैकी की जुवानी सुन ही चुके हो । सबके सामने अपने शिकार की हत्या करने के बावजूद खुद को शक के दायरे से दूर रखने के लिए न सिर्फ लाजबाब एक्टिंग करके यह दर्शाया कि जाने किसने गोलियां बदल दी , बल्कि गुल्लू की कोठरी में रखा वह टेप भी पहले ही आन कर चुका था जिससे आवाज ही सब कुछ होने के बाद निकलनी थी । 

उसके याद तो सबको यकीन हो गया कि जैकी के हाथों गुल्लू की हत्या हत्यारे की साजिश के कारण हुई है । " 

" मगर तुम उस वक्त जैकी के हर पैतरे को समझ रही थी ? " 
" वह तो पहले ही बता चुकी हूं । " 
" लेकिन कब ' मैंने पूछा ---- " तुम्हें कब और कैसे लगा हत्यारा जैकी है ।

" पहेली हल होते ही मेरा ध्यान उस पर चला गया था । " 
“ बजह ?

" ललिता की हत्या तक मैं भी इसी भ्रम का शिकार थी कि हत्यारा वही है जिसने सत्या की हत्या की । इस कारण हत्याओं की कोई ठोस वजह नहीं मिल रही थी । सत्या की हत्या का कारण पेपर नजर आता था । परन्तु बाकी हत्याओं का कारण किसी ऐंगिल से पेपर नहीं बैठता था । 

यह तुम भी जानते हो ---- पहेली हल होते ही यह बात स्पष्ट हो गयी कि बाकी हत्याएं सत्या की हत्या का रिवेंज है । अर्थात सत्या का पहला हत्यारा चन्द्रमोहन था । वहीं मेरे दिमाग में यह खटका ---- अगर वह सत्या का हत्यारा था तो उस शख्स के सामने टुटा क्यों नहीं , जो हवालात में पत्थर तक को बोलने पर मजबूर कर देने का दावा करता था ? 
मुझे लगा ---- जैकी ने झूठ बोला है ।

यकीनन वह चन्द्रमोहन को तोड़ने कामयाब हो गया होगा । यदि ये अनुमान दुरुस्त है तो उसने चन्द्रमोहन को ' बेकसूर ' का परमिट देकर छोड़ा क्यों ? छुपाने का मतलब है --- मन में चोर होना । तभी मुझे जैका की एक और बात याद आई । तुम भी याद करो । उसने तुमसे कहा था --- ' इस केस में अपने उपन्यास के लिए आपके हाथ भरपुर मसाला लगने वाला है । ---- कहा था न ? " 
" हां ---- कहा तो था । " 
" किस बेस पर कहा उसने ऐसा ? उस वक्त तक केवल सत्या की हत्या हुई थी । कोई कैसे दावा कर सकता था कि आगे का घटनाक्रम कुछ ऐसा घटने वाला है जिस पर उपन्यास लिखा जा सके ? " 
" वाकई ! सोचने वाली बात है । " 
“ सोचने वाली इसी बात ने मुझे सोचने पर मजबूर किया । फिर एक और बात याद आई । उसे भी याद करो ! जब जैकी तुम्हें हवालात में ले गया तो चन्द्रमोहन ने कहा था --- ' मुझे और मत मारना इंस्पैक्टर साहब ... जो जानता था --- बता चुका हूं । ' कह चुका है ---- वहीं करूंगा जो आपने कहा है । 

सोचो---- क्या कहा था जैकी ने ? जो तुम्हारे सामने कहा गया वह बाद में कहा गया था । उस वक्त कौन सी बात के लिए कह रहा था चन्द्रमोहन ? क्या बता चुका था।
वही हमारे सामने वैसा कुछ नहीं आया । शायद सच्चाई यही है कि जैकी उससे हकीकत उगलवाने में कामयाब हो चुका था । मगर छुपा रहा था । क्यों ? इस क्यों का जवाब हासिल करने के लिए या यूं भी कह सकते हैं कि अपना शक दूर करने के लिए मैंने जैकी को चैक करने का मन बनाया । " 
" और चैक किया ? " 
" बेशक ! " पहेली हल होते ही हम कालिज पहुंचे । वहां लविन्द्र की हत्या हो चुकी थी । जैकी के खिलाफ उपरोक्त बातें मेरे जहन में बराबर खटक रही थीं । यह बात मैने जानबूझकर जैकी को बताई कि हम पहेली हल कर चुके हैं ताकि अगर वह कातिल है तो अपने इर्द - गिर्द खतरा महसूस करे और खुद को शक के दायरे से दूर रखने का कोई गेम खेले । 

' गेम ' खेलने का मौका देने के लिए ही मैंने उसे ' पहरे के लिए एस.एस.पी. के पास जाने के लिए कहा और अपने शोफर को उसके पीछे लगा दिया । गोट बिल्कुल फिट बैठी । जैकी लोकेश का खाना लेकर सीधा यहां आया । बाहर वाले कमरे में उसने ओबरकोट , हेलमेट आदि पहने । इस कमरे में आकर लोकेश को खाना खिलाया और पुनः बाहर वाले कमरे में कपड़े चेंज करके चला गया । 

उसके बाद शोफर ने लोकेश से बात की । वापस कॉलिज पहुंचा । रिपोर्ट दी ! अब हत्यारा मेरे सामने बेनकाब था । " 
" दूसरी बाते तुम्हें इतनी डिटेल में कैसे मालूम है ? " मैंने पूछा ---- " जैसे --- जैकी ने मेरे थाने पहुंचने से पहले हवालात में चन्द्रमोहन को कैसे तोड़ा या क्या कहा ? हर कत्ल की डिटेल कैसे पता लग गई तुमको ? " 

" दिक्कत केवल सिरा मिलने में होती है दोस्त । एक बार सिरा मिल जाये तो गुत्थियां खुद ब खुद सुलझती चली जाती है । शोफर की रिपोर्ट मिलते ही मैंने इसे जैकी के फ्लैट पर जाकर वहाँ की तलाशी लेने का हुक्म दिया । इसने वैसा ही किया और वहां से एक डायरी लाकर दी ।


" डायरी ? " विभा ने शोफर को इशारा किया । शोफर ने अपनी जेब से डायरी निकालकर मुझे दी । विभा ने कहा ---- " यह वह डायरी है जिसे पढ़ने के बाद मैंने फैसला किया कि जो हो रहा है उसे होने दिया जाये । जैकी को रोकना या उसे पकड़ना अन्याय होगा । बहुत ही भावुक होकर ये डायरी लिखी है जैकी ने । पढ़ने से पता लगता है कि वह कितना टुट- टूटकर सत्या से प्यार करता था । और सत्या के बगैर कितना अधूरा रह गया वह । पढ़ते वक्त कई जगह आंसू आ जायेंगे तुम्हारी आँखों में । इसे पढ़ने के बाद ही जान सकोगे कि अपनी सत्या के हत्यारों से बदला लेने की कैसी आग थी उसके दिल में । अपने हर कार्य की ---- हर मर्डर की डिटेल लिखी है उसने !


अपना पूरा प्लान उसने पहले ही दिन बना लिया था । साफ - साफ लिखा है कि वह किसका मर्डर कैसे करेगा ? मेरा ख्याल है ---- ऐरिक का मर्डर यह उस ढंग से नहीं कर सकेगा जैसा डायरी में लिखा है । शायद यह कल्पना वह भी नहीं कर पाया था कि ऐरिक का भेद खुलते ही स्टूडेन्ट्स पर वह प्रतिक्रिया होगी , जो हुई । मगर मुझे यकीन है .... जैसे भी हो , ऐरिक का कत्ल वह अपने हाथों से करेगा और उसके बाद ... डायरी में लिखा है .---- ऐरिक को खत्म करने के बाद मैं अपनी सत्या से मिलने सितारों की दुनिया में चला जाऊंगा । 

यह डायरी लिखकर अपनी मेज की दराज में रख ही इसलिए रहा हूं ताकि मेरी मौत के बाद दुनिया जान सके कि मैंने क्या किया ? क्यों किया ? वो ठीक था या गलत ---- आप कुछ भी सोचते रहे , मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता । " 

" यानी इस डायरी ने तुम्हें सब कुछ बता दिया ? " 
" केवल एक बात को छोड़कर । " विभा ने कहा ---- " और वो ऐसी बात है जिसके बारे में जैकी को भी कुछ नहीं पता था । 
" ऐसी कौन सी बात है ? " 
" उसने लिखा है ---- मैं केवल हत्यारा हूं । मि ० चैलेंज नहीं । मि ० चैलेंज मेरे लिए भी एक रहस्य बन गया है । पता नहीं उसने वेद की पीठ पर कागज कब ? कैसे ? और क्यों चिपकाया ? उनका अपहरण क्यों किया ? क्या फायदा हुआ उसे ? क्या वह मेरे जुर्म को और संगीन बनाना चाहता है ? इससे क्या फायदा है उसे ? " 

" यानी सारा केस खुलने के बावजूद मिल चैलेंज तुम्हारे लिए अब भी एक पहेली है ? " 
" वाकई । " मैंने रहस्यमय मुस्कान के साथ कहा ---- " अगर इस पहेली को मैं हल कर दू ? " 

" तुम ? " " बहुत पहेलियां हल करती हो तुम । सोचता हूं --- एक पहेली मैं भी सुलझा लूं । " 

“ सुलझाओ । 

"मैं हूँ मिस्टर चैलेंज"

" उछल पड़ी विभा ---- " क - क्या बक रहे हो ? " 
" बक नहीं रहा जानेमन , फरमा रहा हूं । " मैंने उसकी हैरानगी का पूरा मजा लेते हुए करा ---- " मधू इस खेल की राजदार है । उसे मैंने उस रात सब कुछ बताया जिस रात तूम गैस्टरूम से फुर्र होकर कालिज के पेड़ पर जा बैठी थीं । 




मधु ने कहा भी ---- विभा बहन को सब कुछ बता देना चाहिए । 
मैं बोला -- महामाया बहुत छकाती है मुझे ! थोड़ा मैं भी छका लूं । " 
" इतने लफंगे हो तुम ? " 
" सोचो ---- अब थोड़ा सा जोर तुम भी अपने दिमाग पर डालो । अपनी पीठ पर कागज चिपकाना । अपना अपहरण करना और फिर फोन आदि द्वारा एक के बाद दूसरा सुबूत छोड़कर तुम्हें उस मकान तक पहुंचाना कितना आसान था ? " 
“ मगर तुमने ये सब किया क्यो ? " 
" इस केस की इन्वेस्टिगेशन के लिए बुलाना चाहता था तुम्हें ! जानता था --- मैं चाहे हाथ जोडू या पैर पूजूं । तुम जिन्दलपुरम से बाहर निकलने वाली नहीं हो । सो बंसल का पीछा करता गौतम के ऑफिस में पहुंचा । छुपकर उनकी बातें सुनीं । बंसल पर जो शक हुआ था वो टांप - टाय फिस्स हो गया । उसी समय दिमाग में ख्याल आया ---- अखबार में मेरे अपहरण की खबर छप जाये तो सारे धंधे छोड़कर तुम दौड़ी चली आओगी । 

इसलिए वही किया और तुम आ गयीं । " 

" और वो बातें जो तुमने बंसल को मि ० चैलेज बताते हुए कही थी ? " 
" सब गप्प थीं 1 कोरी गप्प ! मनघडन्त ! गढ़नी इसलिए पडी , नहीं गढ़ता तो तुम्हें शक हो जाता । जानता था ---- मेरे कहने मात्र से बंसल की गर्दन पकड़ने वाली नहीं हो तुम ! अपने तर्कों से धज्जियां उड़ा दोगी ! वहीं हुआ ! " 

"वे गुंडे "

“ अपना परिचय देकर ! करारे - करारे नोट देकर अरेंज किये थे । साथ ही समझाया था। ---- यह खेल एक दोस्त का दूसरे दोस्त से मजाक है । कोई आंच नहीं आने दूंगा तुम पर । " 
" उनसे किया गया वादा भी तुमने निभाया । " विभा ने कहा ---- " थाने में जब पूछताछ की बात आई तो उन्हें साफ बचा गये । " 
" जिनका कुसूर न हो उन्हें बचाना पड़ता है । " 

" बदमाश कहीं के ! मुझसे खेल खेला ? अभी बताती हूं तुझे " कहने के साथ वह घूंसा तानकर मेरी तरफ लपकी । 

मैं उछलकर हंसता हुआ पलंग के दूसरी तरफ पहुंचकर बोला --- ' " छुवा - छुई खेलने का इरादा है ? मैं तैयार हूं । " 


समाप्त