।। जय माता दी ।।
पिछले दिनों 21 जून 2012 को मुझे माता वैष्णो देवी की यात्रा करने का सौभाग्य प्राप्त हूआ, माता वैष्णो देवी के दर्शन करना सबके भाग्य में नही होता. कहते हैं कि जब तक पहाडो वाली का बुलावा ना आ जाये तब तक दर्शन नही होते.
अपनी इसी यात्रा के कुछ पल और अनुभव मै आप सभी लोगो के साथ बाटना चाहता हु ....
वैष्णो देवी मंदिर शक्ति को समर्पित एक पवित्रतम हिंदू मंदिर है, जो भारत के जम्मू और कश्मीर में वैष्णो देवी की पहाड़ी पर स्थित है. हिंदू धर्म में वैष्णो देवी, जो माता रानी और वैष्णवी के रूप में भी जानी जाती हैं, देवी मां का अवतार हैं.
माता के तीन रूप
माता रानी के तीन रूप हैं जो कि पिंडी के रूप में हैं । पहली महासरस्वती जो ज्ञान की देवी है , दूसरी महालक्ष्मी जो धन वैभव की देवी और तीसरी महाकाली जो कि शक्ति स्वरूपा मानी जाती है । माता के ये तीन रूप सात्विक , राजसी और तामसिक गुणो को प्रकट करते हैं
मंदिर, जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू जिले में कटरा नगर के समीप अवस्थित है. यह उत्तरी भारत में सबसे पूजनीय पवित्र स्थलों में से एक है. मंदिर, 5,200 फ़ीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. हर साल लाखों तीर्थयात् मंदिर का दर्शन करते हैं और यह भारत में तिरूमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थ-स्थल है. इस मंदिर की देख-रेख Shri Mata Vaishno Devi Shrine Board द्वारा की जाती है.
Katra |
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(माता की कथा) क्या है मान्यता
माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार माता वैष्णो के एक परम भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर माँ ने उसकी लाज रखी और दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया।
श्रीधर मां वैष्णो देवी का प्रबल भक्त थे. वे वर्तमान कटरा कस्बे से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित हंसली गांव में रहता थे.
एक बार मां ने एक मोहक युवा लड़की के रूप में उनको दर्शन दिए. युवा लड़की ने विनम्र पंडित से 'भंडारा' (भिक्षुकों और भक्तों के लिए एक प्रीतिभोज) आयोजित करने के लिए कहा. पंडित गांव और निकटस्थ जगहों से लोगों को आमंत्रित करने के लिए चल पड़े. उन्होंने एक स्वार्थी राक्षस 'भैरव नाथ' को भी आमंत्रित किया. भैरव नाथ ने श्रीधर से पूछा कि वे कैसे अपेक्षाओं को पूरा करने की योजना बना रहे हैं. उसने श्रीधर को विफलता की स्थिति में बुरे परिणामों का स्मरण कराया.
चूंकि पंडित जी चिंता में डूब गए, दिव्य बालिका प्रकट हुईं और कहा कि वे निराश ना हों, सब व्यवस्था हो चुकी है.उन्होंने कहा कि 360 से अधिक श्रद्धालुओं को छोटी-सी कुटिया में बिठा सकते हो. उनके कहे अनुसार ही भंडारा में अतिरिक्त भोजन और बैठने की व्यवस्था के साथ निर्विघ्न आयोजन संपन्न हुआ.
भैरव नाथ ने स्वीकार किया कि बालिका में अलौकिक शक्तियां थीं और आगे और परीक्षा लेने का निर्णय लिया.
उसने त्रिकुटा पहाड़ियों तक उस दिव्य बालिका का पीछा किया जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब वह कन्या वहाँ से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्यारूपी वैष्णो देवी ने हनुमान को बुलाकर कहा कि भैरवनाथ के साथ खेलों (युद्ध करो) मैं इसगुफामें नौ माह तक तपस्या करूंगी.
इस गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने भैरवनाथ के साथ नौ माह घमासान युद्ध करने लगे जब हनुमान जी युद्ध करते करते थक गये तो माता माता गुफा से बाहर निकली और भैरोनाथ से युद्ध करने लगी आज इस गुफा को पवित्र 'अर्धक्वाँरी' के नाम से जाना जाता है.
अर्धक्वाँरी के पास ही माता की चरण पादुका भी है. यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते - भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था.
कहते हैं उस वक्त हनुमानजी माँ की रक्षा के लिए माँ वैष्णो देवी के साथ ही थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाकर जलधारा को निकाला और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा 'बाणगंगा' के नाम से जानी जाती है,
जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से भक्तों की सारी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं।
त्रिकुट पर वैष्णोमां नेक्रोध में आकर अपने त्रिशूल से भैरोनाथ का सिर काट दिया जो उस स्थान पर गिरा जहां भैरोनाथ का मंदिर है. इस जगह को भैरोघाटी के नाम से भी जाना जाता है और भैरोनाथ का धड वो जगह है जहां पुरानी गुफा से होकर जाते हैं.
भैरोनाथ को अपनी गलती का अहसास हुआ और वह कटे हुए सिर से माता माता पुकारने लगा और विनती करने लगा कि माता संसार मुझे पापी मानकर मेरा अपमान करेगा , लोग मुझसे घृणा करेंगे आप मेरा उद्धार करो । यह सुनकर जगतजननी माता का मन पिघल गया और माता ने भैरो से कहा कि जो भी मेरे दर्शन को आयेगा वो जब तक तुम्हारे दर्शन नही कर लेगा तब तक उसकी यात्रा पूरी नही होगी । इसलिये भक्त तीन किलोमीटर और चढकर भैरो मंदिर पर जाते हैं माता के दर्शनो के बाद
दूसरी तरफ श्रीधर पंडित इस बात से दुखी था कि माता उसके घर आयी और वो पहचान ना सका तो माता ने श्रीधर को सपने में दर्शन दिये और अपनी गुफा का रास्ता बतलाया । उसी मार्ग पर चलकर श्रीधर वैष्णो माता के मंदिर पर पहुंचा जहां उसे माता के पिंडी रूप में दर्शन हु्ए
जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान आज पूरी दुनिया में 'भवन' के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर माँ काली (दाएँ), माँ सरस्वती (मध्य) और माँ लक्ष्मी पिंडी (बाएँ) के रूप में गुफा में विराजित है, जिनकी एक झलक पाने मात्र से ही भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इन तीनों के सम्मिलित रूप को ही माँ वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है।
भैरोनाथ मंदिर
भैरवनाथ का वध करने पर उसका शीश भवन से 3 किमी दूर जिस स्थान पर गिरा, आज उस स्थान को 'भैरोनाथ के मंदिर' के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने माँ से क्षमादान की भीख माँगी। माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।
कैसे पहुँचें माँ के दरबार
माँ वैष्णो देवी की यात्रा का पहला पड़ाव जम्मू होता है। जम्मू तक आप बस, टैक्सी, ट्रेन या फिर हवाई जहाज से पहुँच सकते हैं। जम्मू ब्राड गेज लाइन द्वारा जुड़ा है। गर्मियों में वैष्णो देवी जाने वाले यात्रियों की संख्या में अचानक वृद्धि हो जाती है इसलिए रेलवे द्वारा प्रतिवर्ष यात्रियों की सुविधा के लिए दिल्ली से जम्मू के लिए विशेष ट्रेनें चलाई जाती हैं।
जम्मू भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 1 ए पर स्थित है। अत: यदि आप बस या टैक्सी से भी जम्मू पहुँचना चाहते हैं तो भी आपको कोई परेशानी नहीं होगी। उत्तर भारत के कई प्रमुख शहरों से जम्मू के लिए आपको आसानी से बस व टैक्सी मिल सकती है।
माँ के भवन तक की यात्रा की शुरुआत कटरा से होती है, जो कि जम्मू जिले का एक क़स्बा है। जम्मू से कटरा की दूरी लगभग 50 किमी है। आप जम्मू से बस या टैक्सी द्वारा कटरा पहुँच सकते हैं। जम्मू रेलवे स्टेशन से कटरा के लिए आपको कई बसें मिल जाएँगी, जिनसे आप 2 घंटे में आसानी से कटरा पहुँच सकते हैं। यदि आप प्रायवेट टैक्सी से कटरा पहुँचना चाहते हैं तो आप 800 से 1000 रुपए खर्च कर टैक्सी से कटरा तक की यात्रा कर सकते हैं, जो कि लगभग 1 घंटे में आपको कटरा तक पहुँचा देगी। कम समय में माँ के दर्शन के इच्छुक यात्री हेलिकॉप्टर सुविधा का लाभ भी उठा सकते हैं।
दर्शनार्थी रुपए खर्च कर कटरा से 'साँझीछत' (भैरवनाथ मंदिर से कुछ किमी की दूरी पर) तक हेलिकॉप्टर से पहुँच सकते हैं।
वैष्णों देवी यात्रा की शुरुआत
माँ वैष्णो देवी यात्रा की शुरुआत कटरा से होती है। अधिकांश यात्री यहाँ विश्राम करके अपनी यात्रा की शुरुआत करते हैं। माँ के दर्शन के लिए रातभर यात्रियों की चढ़ाई का सिलसिला चलता रहता है। कटरा से ही माता के दर्शन के लिए नि:शुल्क 'यात्रा पर्ची' मिलती है।
यात्रा पर्ची
माता के दर्शन करने के लिये भक्तो को पहले कटरा स्थित पंजीकरण कक्ष से अपना और अपने साथ के लोगो का एक ग्रुप के रूप में पंजीकरण कराना होता है । जो कि कम्पयूटराइज कक्ष से होता है और पंजीकरण के बाद आपको एक पर्ची मिलती है जिसे लेकर आपको 6 घंटे के भीतर पहली चौकी बाणगंगा पार करनी होती है । यानि यात्रा जब शुरू करने का मन हो तभी पर्ची कटाये । इस पर्ची की अहमियत ये है कि इस पर्ची को रास्ते में कई बार चैक किया जाता है और उपर माता के भवन पर जाकर इस पर्ची से ही आपको दर्शनो के लिये ग्रुप नम्बर मिलता है जिससे आप सुविधाजनक तरीक से दर्शन कर पाते हैं
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Mata Vaishno Devi Yatra Parchi ( Katra ) |
प्रवेश द्वार
पर्ची कटाने के बाद आप यात्रा शुरू करते हो तो सबसे पहले माता वैष्णो देवी का सबसे पहला और मुख्य द्वार आता है जहां तक आप अगर पैदल ना भी जाना चाहे तो आटो से जा सकते हो जहाँ आप के सामान की चैकिंग कम्पयूटराइज कक्ष मै स्कैनरद्वारा कीजाती है
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Mata Vaishno Devi Entrance |
बाणगंगा
इससे आगे बढ़ने पर आप को पव्रित बाणगंगा के दर्शन होते है यह वही स्थान है जहां माता वैष्णो देवी ने हनुमान जी को प्यास लगने पर अपने वाण से गंगा को प्रवाहित किया था. यात्रा के दौरान भक्त वाण गंगा के जल में स्नान करके अपनी थकान कम करते हैं. स्नान के बाद शरीर में नई ताजगी एवं उत्साह का संचार होता है जो भक्तों को पर्वत पर चढ़ने का हौसला देता है. वाण गंगा के जल में स्नान करने से कई प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं.
यहां पर्ची दिखाकर और सामान चैकिंग कराकर आपको आगे जाने दिया जाता है और चढाई शुरू हो जाती है । यहीं से आपको घोडे ,खच्चर , पालकी और सामान और बच्चो को ले जाने के लिये पोर्टर भी मिलते हैं यहां से दो तीन किलोमीटर की चढाई तक दोनो ओर प्रसाद और खाने पीने की दुकाने हैं जिनसे गुजरते हुए रास्ते का पता ही नही चलता है । यहीं पर उपर चढने वाले यात्रियों को छडी और डंडे मिलते हैं जो कि 10 रू का होता है और अगर वापसी में आप इसे वापिस करो तो आधे पैसे (5 रू ) में ले लेते हैं । बाण गंगा से आगे बढने पर चरण पादुका मंदिर आता है ।वैष्णों देवी श्राईन बोर्ड की तरफ से यहां जन सुविधाएं भी उपलब्ध हैं. कुछ श्रद्धालु भक्त यहां अपने बच्चों का मुण्डन संस्कार भी करवाते हैं. वर्तमान समय में वाण गंगा के जल में स्नान का आनन्द बरसात के मौसम में ही मिल पाता है. अन्य मौसम में वाण गंगा में जलाभाव रहता है ऐसे मे, यात्रियों को श्राईन बोर्ड द्वारा उपलब्ध कराये जाने वाले जल में स्नान करके संतुष्ट होना पड़ता है.
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Banganga |
चरण पादुका
वाण गंगा से आगे बढ़ने पर मार्ग में चरण पादुका नामक स्थान आता है. इस स्थान पर एक शिला के ऊपर माता के चरण के निशान हैं. भैरो से हाथ छुड़ाकर भागते हुए माता यहीं शिला पर खड़ी होकर पीछे आते हुए भैरो को देखा था. माता क चरण चिन्ह के कारण यह स्थान पूजनीय है. यहां भक्त मात के चरणों का दर्शन करते हैं और अपनी यात्रा सफल बनाने की पार्थना करते हुए आगे बढ़ते हैं.
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Charan Paduka |
Charan Paduka |
अर्धकंवारी (गर्भजून)
चरण पादुका के आगे देवी आदि कुमारी का मंदिर है. भौरो को अपना पीछा करते हुए देखकर माता यहीं एक गुफा में छुपकर विश्राम करने लगीं. माता इस गुफा में नौ महीने तक छुपकर बैठी रहीं अत: इस गुफा को गर्भजून के नाम से जाना जाता है
14 0 किमी की चढाई में आधे रास्ते में आदि कुवारी माता का मंदिर आता है और गर्भजून गुफा. यह एक संकरी गुफा है पर माता के कमाल से आज तक कोई भी मोटे से मोटा आदमी भी नही फंसा यहां पर. इसमें जाने और आने का एक ही रास्ता है इसलिये काफी देर में नम्बर आता है दर्शनो का. यहां पर भी दर्शनो की पर्ची कटती है और नम्बर से दर्शन होते हैं. जब तक आपका नम्बर नही आता तब तक आप आराम कर सकते हैं. ऐसा कहा जाता है कि जो भी भक्त इस गुफा में प्रवेश करता है उसे दोबारा गर्भ में नही आना पडता. वैसे मै माता के दरबार में तीन बार जा चुका हूं पर इस बार इस गुफा के दर्शन नही कर पाया. शायद माता ने इस बार नही चाहा है यहां से माता के भवन के लिये दो रास्ते जाते हैं एक रास्ता है हाथी मत्था और दूसरा नया रास्ता
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Ardhkuwari |
Ardhkuwari Board |
Ardhkuwari |
हाथी मत्था
आदि कुमारी से आगे ढाई किलोमीटर तक पहाड़ पर खड़ी चढ़ाई है. इसकी आकृति हाथी के सिर जैसी होने के कारण इसे हाथी मत्था के नाम से जाना जाता है. खड़ी चढ़ाई होने के बावजूद माता के भक्त जय माता दी का नारा लगाते हुए आगे बढ़ते जाते हैं.
सांझी छत
हाथी मत्था पर चढ़ते - चढ़ते जब भक्त थकने लगते हैं तब सांझी छत आता है. यह स्थान समतल और ढ़ालुवां है. यहां से माता का मंदिर दिखने लगता है और भक्तों का उत्साह बढ़ जाता है. कदम अपने आप तेजी से आगे बढ़ने लगता है. यहां आकर माता के भक्तों की आँखों से खुशी छलकने लगती है. भक्त माता का जयकारा लगाते हुए झूम उठते
यहां पर हैलीकाप्टर की सेवाये उतरती हैं. हैलीकाप्टर जिसका किराया यहां एक ओर 1200 से रू प्रति व्यक्ति के करीब है यहां पर उतारते हैं और यहां से घोडे से एक करीब 0 किमी का सफर करके भवन तक पहुंचते हैं. उनकी लाइन भी बराबर में चलती रहती है. हैलीकाप्टर सेवा कटरा से शुरू होती है और 15 लगभग मिनट में भवन पर पहुंचा देते हें.
वैष्णो माता का भवन
माता वैष्णो के भवन में पहुंचने के लिए अपना पंजीकरण रसीद दिखाना होता जो कटरा में वैष्णो देवी श्राईन बोर्ड द्वारा भक्तों को दिया गया होता है. भक्त पंक्तिबद्ध होकर अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हुए दरबार में पहुंचने के लिए आगे बढ़ते रहते हैं. गुफा के बाहर माता की एक भव्य मूर्ति है.जो भक्त वैष्णो माता के दरबार में दान करना चाहते हैं वह द्वार पर रखे दान में अपना पात्र गुप्त दान दे सकते हैं. भवन में प्रवेश करने पर बायीं तरफ लक्ष्मी, सरस्वती एवं काली माता की पिण्डी है. दर्शन के बाद आगे बढ़ने पर माता के मंदिर में भक्तों को प्रसाद मिलता है जिसमें एक धातु की मुद्रा पर माता की पिण्डी अंकित होती है. भक्त यह प्रसाद प्राप्त करके माता का जयकारा लगाते हुए माता के भवन से बाहर निकल आते हैं.
वैष्णो देवी प्राचीन गुफा
माता के भवन में प्रवेश के लिए वर्तमान में जिस गुफा द्वार एवं निकास द्वार प्रयोग किया जाता है उसका 1977 निर्माण में किया गया. इस गुफा के पास ही प्राचीन गुफा द्वारा है जिससे होकर भक्त माता के दरबार में पहुंचते थे. यह गुफा काफी संकरी थी अत: माता के दरबार में आने वाले भक्तों की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए नई गुफा का निर्माण करवाया गया.
माता वैष्णों देवी दर्शन का फल
माता वैष्णो देवी त्रिकुट पर्वत पर धर्म की रक्षा एवं भक्तों के कल्याण हेतु निवास करती हैं. वैष्णो देवी अपने दरबार में आये भक्तों की विनती सुनती हैं. यह अपने भक्तों पर दया एवं करूणा भाव रखता रखती हैं. मान्यता है कि माता के दरबार में जैसी कामना लेकर भक्त पहुंचता है माता उसकी उसी अनुरूप कामना पूरी करती हैं. नव दम्पति विवाह के पश्चात माता के दरबार में पहुंचकर अपने सुखी दाम्पत्य जीवन का आशीर्वाद मांगते हैं. माता के दरबार में संतान की कामना से आने वाले भक्तों की मुराद पूरी होती है. भगवती वैष्णों की भक्ति से धन एवं दूसरे भौतिक सुख-साधन भी नसीब होता है. जो भक्त सच्चे मन से माता के दरबार में पहुंचता है मात उसे आरोग्य का आशीर्वाद देती है.
वैष्णो देवी आने वाले भक्त
माता वैष्णो देवी के प्रति दिन-ब-दिन लोगों की आस्था मजबूत होती जा रही है. माता के बहुत से भक्त अपनी मुराद पूरी होने के बाद भवन के मार्ग में भंडारा करते हैं. माता के दरबार में आने वाले भक्त हसे माता का प्रसाद मानकर ग्रहण करते हैं और जयकारा लगाते हुए आगे बढ़ते जाते हैं. वैष्णो देवी आने वाले भक्तों की संख्या प्रति वर्ष लाखों में होती है. यह तिरूपति के बाद ऐसा तीर्थस्थल है जहां सबसे अधिक श्रद्धालु आते हैं. शारदीय नवरात्रा एवं चैत्र नवरात्रा के अवसर पर यहां बड़ी संख्या में भक्तगण आते हैं. शीत ऋतु में जब पहाड़ों पर बर्फ पड़ने लगता है तब तीर्थयात्रियों की संख्या कम हो जाती है वैसे सालो भर यहां दर्शनाथी आते रहते हैं.
भैरो घाटी में स्थित भैरोनाथ
माता के मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर भैरो घाटी है. यहीं बाबा भैरोनाथ का मंदिर है. भैरो मंदिर पहुंचने के लिए खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है. घुमावदार रास्ते हो होकर भक्तगण बाबा भैरोनाथ के मंदिर में पहुंचते हैं. भैरो बाबा के मंदिर से पहाड़ का दृश्य अत्यंत रमणीय है. जो भक्त माता के मंदिर से भैरो घाटी तक पैदल चलने में असमर्थ होते हैं वह माता के मंदिर से घोड़े पर बैठकर भैरो घाटी पहुंच सकते हैं. भैरोनाथ को माता का अशीर्वाद प्राप्त होने के कारण भक्तो को भैरोनाथ का दर्शन अवश्य करना चाहिए.
भैरो नाथ का मंदिर
बाबा भैरोनाथ का मंदिर एक खुले चबूतरे पर है. इस चबूतरे की ऊँचाई लगभग ढाई फीट है. यहां भैरो बाबा के दर्शन के पश्चात भक्तगण उनकी प्रदक्षिणा करते हैं. भैरोनाथ के मंदिर के बायीं तरफ एक हवन कुण्ड है. इस हवन कुण्ड में भक्तगण अगरबत्ती डालकर बाबा को प्रणाम करते हैं. भैरो बाबा को काले रंग की डोरी चढ़ाते हैं.
भौरो बाबा का महात्म्य
मान्यता है कि बाबा पर चढ़ाई गयी काली डोरी पैरों में बांधने पर पैर का दर्द ठीक हो जाता है. काले रंग की यह डोरी बुरी नज़र एवं प्रेत बाधा से भी रक्षा करती है. श्रद्धालु भक्त हवन कुण्ड से भष्म भी लाते हैं. जिन लोगों को रात में बुरे-बुरे सपने आते हैं. अनजाने भय से मन भयभीत रहता है बाबा का भभूत लगाने से इन परेशानियों से मुक्ति मिलती है. भैरो बाबा का भभूत लगाने से कई प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं. इनके दर्शन के पश्चात माता के दर्शन का पुण्य भी भक्तों को प्राप्त होता है.
गृह निर्माण की मान्यता
भैरो घाटी में बाबा भैरोनाथ के दर्शन के पश्चात लौटते समय रास्ते में लोग पत्थरों से घर बनाते हैं. इस विषय में धारणा यह है कि जो भी भक्त माता का ध्यान करके इस स्थान पर पत्थरों से घर बनाता है उसे ��ृत्यु पश्चात परलोक में अच्छा घर मिलता है. अगले जन्म भी व्यक्ति के पास अपना मकान होता है. इस मान्यता के कारण लोग रास्ते के किनारे बिखरे पत्थरों से घर बनाते हैं.
एक — आपको प्रसाद सिवाय उपर भवन के अतिरिक्त कहीं से लेने की जरूरत नही क्योंकि वहां सरकारी दुकान से 20-30-40 तीन रेट में प्रसाद मिलता है बस इसके अलावा कुछ नही वो भी जूट के बने थैले मे जिसमें नारियल , चुनरी और प्रसाद सब होता है
दर्शन चलते रहते हैं
padhkar accha laga yatra vritant ...keep it up
जवाब देंहटाएंPadhkar achha laga Jo hame nahi pata thaa bo sub jankari mil gai
जवाब देंहटाएंHello. Sir help me
जवाब देंहटाएंMain sir pehli baar jaa raha hu main our meri family ja rahi h maa dwar so please help me mujhe bas itna janna hai ki uper bhawan me darshan karna ho to kya kiya jaye our kaise ho ma ke darshan our ek baat our janni h ki agar hum yatra parchi kataye to kya hum apne pure pariwar ka naam dakil karana padta h so please sir pls boliye sir ....our. ...main 19sep2016 ...ko. Ja. Raha. Hu. Tell me pls
जवाब देंहटाएंBahut Achha me bhi Mata Vaishno Devi Ki Darshan Karne Jaunga...or ek sawal hai:- Mata Vaishno Devi ki GarbhJun Gufa Kab khulta hai wo bata dijiye Kon Sa Month me Khulta Hai.....
जवाब देंहटाएंMaa vaishno devi k sapne maa bulave k kya sanket h
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