सोमवार, 14 सितंबर 2020

मिस्टर चैलेंज (वेद प्रकाश शर्मा) Thriller (Part - 01)




ठहाकों के बाद आवाज गूंजी ---- " देखा इस्पक्टर ! देखा ? इसे कहते हैं चमत्कार ! अपने अगले शिकार की हत्या मैंने तेरे हाथों से करा दी । सबके सामने करा दी । और करना क्या पड़ा मुझे ? सिर्फ तेरे रिवाल्वर से छेड़छाड़ ! उसमें तेरे द्वारा डाली गयीं नकली गोलियां निकालकर असली गोलियां डालना कितना आसान था । मुझे पकड़ने के लिए साजिश रचने चला था । मुझे पकड़ने के लिए गुल्लू को मृत घोषित करके उसे मेरी खोज में लगाना चाहता था । चाल तो अच्छी सोची तूने ! आदमी खुद को जिन्दा लोगों की नजरों से छुपाने का प्रयत्न करता है , मरे हुए लोगों की नजरों से नहीं ! तेरी चाल कामयाब हो जाती तो मुमकिन है गुल्लू के हाथ मेरे नकाब तक पहुंच जाते । मगर देख ---- वो बेचारा तो खुद मरा पड़ा है । सचमुच मर गया वह 


इस उपन्यास के लिखे गए हर शब्द के पीछे मि . चैलेंज छुपा है , इसके बावजूद वेद प्रकाश शर्मा का दावा है कि मेरा कोई भी पाठक अंतिम पृष्ट पढ़ने से पूर्व मि . चैलेंज को नहीं पहचान सकता ! दावे में कितना दम है , इसे आप उपन्यास पढ़ना शुरू करके खुद जान सकते है


जब मै लेखक नहीं था . आपकी तरह केवल एक पाठक था , तब मर्डर मिस्ट्री वाले उपन्यास बहुत पसंद करता था , परन्तु उन उपन्यासों का ' अंत ' पढ़कर अक्सर झुंझला उठता था । कारण था ---- अंत में लेखक द्वारा किसी भी ऐसे किरदार को अपराधी बता देना जिसका मुख्य कहानी से कुछ लेना - देना नहीं होता था । अन्त में एक नई ही कहानी पाठकों को पढ़ा दी जाती थी ! उस वक्त मैं सोचता --- यह तो लेखक द्वारा पाठकों को बेवकूफ बनाना हो गया । जब कहीं कोई ' क्लू ' ही नहीं छोड़ा गया । असली कहानी ही कुछ और थी तो पाठक अपराधी को पहचानता कैसे ? केवल चौंकाने की गर्ज से लेखक द्वारा किसी ऐसे किरदार को अपराधी खोल देना मुझमें हमेशा खीझ भर देता था जिसके खिलाफ उपन्यास में कहीं कोई इशारा तक न किया गया हो । मैं नहीं चाहता वह खीझ आपमें पैदा हो । भरपूर तौर पर कोशिश मेरी भी यही रहती है कि जब अपराधी खुले तो पाठक चौंके परन्तु खिंझे नहीं । अंत पढ़कर उन्हें लगे ---- ' हा . उपन्यास में जगह - जगह ऐसे पॉइंट छोड़े गए हैं जिन पर ध्यान देने पर अपराधी को पहचाना जा सकता था , नहीं पहचान पाये तो ये हमारी चूक है । जो पकड़ लेते है , उन्हें खुशी होती है कि हां , हमने उपन्यास ध्यान से पढ़ा है । तो मि ० चैलेंज को ध्यान से पढ़ें ! अपराधी की तरफ इशारे किए गए हैं , क्लू छोड़े गए हैं । अगर आप रहस्य खुलने से पहले रहस्य को पकड़ सके तो मुझे खुशी होगी । आप उसी प्यार , विश्वास और सहयोग का इच्छुक जो पैंतीस साल से लगातार मिल रहा है । वहीं मेरी असली ताकत है 


दिन निकलते ही मैं लेखन - कक्ष में बंद हो जाता । सूरज ढलने पर बाहर निकलता तो चेहरा लटका हुआ होता , दिमाग पर सवार होती थी ---- अजीब सी झुंझलाहट । कारण ? पिछले तीन दिन से मैं मि ० चैलेंज लिखने की कोशिश कर रहा था , परन्तु शुरू नहीं कर पा रहा था । ऐसा नहीं कि दिमाग में कोई प्लाट ' न था । प्लॉट एक नहीं कई थे । और शायद मेरी असली समस्या भी यही थी । निश्चय नहीं कर पा रहा था उन कई प्लाटस में से किस पर मि ० चैलेंज के कथानक की इमारत खड़ी करू । कक्ष का दरवाजा खुला । आहट बहुत हल्की थी , इसके बावजूद मेरी तंद्रा भंग कर गयी । पलकें उठाकर देखा । दरवाजे पर मधु खड़ी थी ! मेरी पत्नी । होठों पर मुस्कान , हाथों में शाम का अखबार । उसकी मुस्कान के जवाब में मुस्करा नहीं सका मैं । दिमाग पर चिड़चिड़ाहट सवार थी परन्तु जानता था , वह बगैर ' एमरजेंसी " के मुझे डिस्टर्ब नहीं कर सकती थी । अतः स्वयं को नियंत्रित रखकर पूछा ---- " क्या बात है ? 


अखबार लाई हूँ । " उसके होठों पर शरारत नाच रही थी । मेरे दिमाग का मानो फ्यूज उड़ गया । लगभग ' गुर्रा ' उठा मैं--- " मधु , क्या तुम नहीं जानती जब मै लिख रहा होता हूँ तो अखबार नहीं पड़ता । 

देखू तो सही , क्या लिख रहे है जनाब ? " कहती हुई वह अपने करेक्टर के विपरीत आगे बढ़ी और मेज से कोरा कागज उठाकर मेरी आंखों के सामने नचाती बोली --.- " तो ये है चार दिन की सिरखपाई का फल ? " "


ओफो मधु , तुम्हें कैसे समझाऊं कि ... " समझने की जरूरत मुझे नहीं , आपको है पतिदेव । " " मतलब ? " मैंने उसे घुरा । " अच्छा लिखने के लिए अखबार पढ़ते रहना जरूरी है । " " मधु ,क्या पहेलियां बुझा रही हो तुम ? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा। 


करेक्ट ! " वह उचककर मेरे सामने टेबल पर बैठ गई ---- " पहेली ही पूछने आई हूं ! अगर एक लड़की का मर्डर हो और मरने से पहले वह चैलेंज ' शब्द लिख जाये तो क्या मतलब हुआ उसके इस अंतिम हरकत का ? " " क्या तुम मुझे मि ० चैलेंज की कहानी बताने आई हो ? " " बात अगर जंची , तो इस उपन्यास की रायल्टी मेरी । " रायलटी तो मैं सभी उपन्यासों की तुम्हें सौंपता आया हू देवी जी मगर , बेसिर - पैर की बकवास पर उपन्यास नहीं लिखा जा सकता ।



साइक्लोजी कहती है मर्डर हुए व्यक्ति को यदि मरने से पूर्व कुछ लिखने का मौका मिल जाये तो सबसे पहले हत्यारे का नाम लिखेगा । नाम नहीं जानता होगा तो हत्या की वजह लिखेगा । ' चैलेंज ' जैसा , निरर्थक शब्द ' मरने वाला ' कभी नहीं लिख सकता । " आपकी सभी दलीलों की हवा निकालने के लिए पेश है ये अखबार । " कहने के साथ मधु ने अखबार खोलकर मेरी आंखों के सामने लहरा दिया । नजर हैडिंग पर चिपकी रह गई ---- आई.ए.एस. कालिज में हत्या मरने वाली ने CHALLENGE लिखा । मैंने मधु के हाथ से इस तरह अखबार झपटा जैसे भूखे ने रोटी झपटी हो । जल्दी - जल्दी खबर पढ़नी शुरू की । 


लिखा था ---- मेरठ , 10 नवम्बर । आज दिन - दहाड़े हजारों आंखों के सामने आई.ए.एस. कॉलिज की लोकप्रिय प्रोफेसर कुमारी सत्या श्रीवास्तव की हत्या कर दी गयी मगर , एक भी आंख हत्यारे को नहीं देख सकी । घटना सुबह नौ बजे की है । सत्या श्रीवास्तव आई.ए.एस. कालिज में इंग्लिश की प्रोफेसर थीं । कहते हैं कालिज में स्टूडेन्ट्स के दो ग्रुप है । इनमें से एक ग्रुप को प्रिंसिपल महोदय का वरदहस्त प्राप्त है । यह ग्रुप छोटा परन्तु आवारा किस्म के स्टुडेन्ट्स का है । इस ग्रुप का लीडर का नाम चन्द्रमोहन बताया जाता है । कहते है कालिज के ज्यादातर स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर प्रिंसिपल से चन्द्रमोहन का ' रैस्टीकेशन ' करने की मांग कर रहे थे । परन्तु प्रिसिपल महोदय ने ध्यान नहीं दिया । इस मांग का नेतृत्व सत्या श्रीवास्तव कर रही थीं । आज सुबह साढ़े आठ बजे कालिज प्रांगण में एक मीटिंग होने वाली थी । उसमें विचार किया जाना था कि प्रिंसिपल महोदय चन्द्रमोहन को कालिज से नहीं निकालते हैं तो क्या किया जाये ? सबा आठ बजे से स्टूडेन्टर और प्रोफेसर्स इकट्ठा होना शुरू हो गये । साढ़े आठ बजे तक लगभग सभी लोग कैम्पस में पहुंच चुके थे । मगर सत्या आठ पैतीस तक भी उन लोगों के बीच नहीं पहुंची । स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स में बेचैनी फैलने लगी । कुछ स्टूडेन्ट्स सत्या को देखने हॉस्टल में स्थित उसके कमरे में गये । सत्या वहां भी नहीं थी ।


बेचैनी सवालिया निशानों में तब्दील होने लगी । सत्या को सारे कॉलिज में तलाश किया जाने लगा । उस वक्त हर दिमाग में केवल यही एक सवाल था --- खुद मिटिंग कॉल करके सत्या आखिर चली कहां गयी ? अचानक कैम्पस में मौजूद हजारों कानों ने एक जोरदार चीख की आवाज - सुनी । बदहवास आखें ऊपर की तरफ उठी । कालिज के टैरेस पर सत्या नजर आई । वह लहुलुहान थी । चीख रही थी । अगले पल उसका जिस्म रेस पर लगा रेलिंग तोड़कर हवा में लहरा उठा । एक लम्बी चीख के साथ यह कैम्पस की तरफ आई । वहां मौजूद भीड चीखो के साथ पलक झपकते ही ' काई की तरह फट गयी ! सत्या ' धम्म ' से प्रांगण की कच्ची जमीन पर गिरी । सभी दहशतजदा और हकबकाये हुए थे । एक बार गिरने के बाद सत्या ने उठने की कोशिश की , परन्तु लड़खड़ाकर पुनः गिर गई । स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स की भीड़ कर्तव्यविमूढ़ अवस्था में उसे देख रही थी और फिर अपनी अंगुली की नोंक से सत्या ने प्रांगण की जमीन पर कुछ लिखा । लिखने के बाद दम तोड़ दिया । भीड़ की तंग्रा भंग हुई । कुछ स्टूडेन्ट्स लाश की तरफ लपके । कुछ टैरेस की तरफ ! हत्यारा किसी को नजर नहीं आया । सत्या ने प्रांगण की जमीन पर लिखा है ---- CHALLENGE 


इस अनोखे शब्द का मतलब किसी की समझ में नहीं आ रहा है । हमारे संवाददाता ने जब केस के इन्वेस्टिगेटर इंस्पेक्टर जैकी से बात की तो उन्होंने केवल इतना कहा ---- " हत्यारे अक्सर हम लोगों को चैलेज देते रहे हैं मगर मृतक द्वारा इस शब्द के इस्तेमाल की यह पहली घटना है । अभी तक मैं कुछ नहीं समझ पाया हूँ।


खबर पढ़ते ही मेरे जिस्म चीटियां सी रेंग गई । जहन में विस्फोट सा हुआ ---- ' क्यों न इस बार मैं सत्य घटना पर उपन्यास लिखू ? ' मुझे मि ० चैलेंज लिखना है और .... मेरे अपने शहर में एक लड़की चैलेंज शब्द लिखकर मर गई है । कैसा अनोखा संयोग है ? मुझे इस मर्डर की तह में जाना चाहिए । मुमकिन है उन सभी कथानकों से बेहतर कथानक हाथ लगे जो लिखने के लिए मेरे जहन में उमड़ रहे हैं । इन्हीं सब विचारों से ग्रस्त मैंने मधु की तरफ देखा । उसने शरारती अंदाज में आंख मारी । मै सकपकाया । उसने कहा ---- " कहिए जनाब ? कैसी रही ? " " मधु ! " मैंने कहा ---- " यह कथानक मि ० चैलेंज के लिए जबरदस्त साबित हो सकता है । " "


ऐसे ही थोड़ी अखबार हाथ में लिए यहाँ घुस आई ? " पूरे मूड में मधु कहती चली गयी ---- " खबर पर नजर पड़ते ही चौंकी ! पड़ी ! सोचा सत्या चैलेंज लिखकर मर गयी और हमारे सैंया मि ० चैलेंज लिखने के लिए मरे जा रहे हैं ... ? दोनों घटनाओं के तार जोड़ दिये जायें तो करेंट जरूर पैदा होगा । उस करेंट को इस वक्त मैं आपके थोबड़े पर देख रही है । " " सच मधु .... सच ! " खुशी की ज्यादती के कारण मैं खुद पर काबू न रख सका । झपटकर बांहों में भर लिया उसे , बोला ---- " तुम ग्रेट हो । हमेशा मेरी ही प्राब्लम हल करने में लगी रहती हो । मुझे पूरा यकीन था वगैर बडी बात के तुम मुझे डिस्टरब नहीं कर सकतीं । "



करेंट कुछ ज्यादा ही आ गया लगता है कहने के साथ उसने खुद को मेरी बाहों से मुक्त कर लिया । बोली ---- " उस पहेला का क्या हुआ जो मरने वाली कॉलिज प्रांगण में जमीन पर लिख गई है ? क्या आप बता सकते हैं सत्या ने चैंलेज क्यों लिखा ? क्या मरने वाला खुद कहना चाहती है कि मेरे हत्यारे का पता लगाओ तो जानूं ? " " ऐसा है तो बड़ी अजीब बात होगी ये । " क्राइम के उपन्यास लिखने वाला मेरा दिमाग सक्रिय हो उठा। आंखे शून्य में स्थिर हो गयी । बड़बड़ा उठा---- " मेरे ख्याल से इस बंद कमरे में कल्पनाओं के घोड़े दौड़ाते रहने से मेरे हाथ कुछ नहीं लगेगा , बाहर निकलना होगा । एक सुलझे हुए जासूस की तरह इन्वेस्टिगेशन करनी होगी । " " मैं भी यही कह रही हू जनाब ! " मधु के होठो पर मुस्कान थी ---- " मि ० चैलेंज आपको कमरे में बैठकर नहीं , फील्ड में उत्तरकर लिखना चाहिए । " और मैं फील्ड में उतर पड़ा । 


सबसे पहले थाने पहुँचा। हट्टे - कटटे इंस्पैक्टर जैकी से मिला । अपना परियय दिया । मुझसे मिलकर उसने खुशी जाहिर की । हाय ---- " मैंने आपके ज्यादा तो नहीं परन्तु कुछ उपन्यास जरूर पढे हैं । " मैंने आने का कारण बताया तो जैकी के पतले होठों पर मुस्कान फैल गयी । बोला ---- “ अच्छा विचार है आपका ! पाठकों को कुछ नया मिलेगा । " " तुम्हारे ख्याल से सत्या ने ऐसे क्यों लिखा ? " " यह गुत्थी सुलझ जाये तो हत्यारे का पता लग जाये । " " नाम तो किसी का चैलेंज हो ही नहीं सकता । " मैंने कहा ---- " लेकिन .... क्या तुमने मालूम किया , कॉलिज में ऐसा कोई शख्स तो नहीं जिसे चैलेंज शब्द के उपनाम से पुकारा जाता हो ? " " मै समझा नहीं " " कई बार ऐसा होता है ---- मजाक में या किहीं और कारणों से लोगों के उपनाम पड़ जाते है और फिर , ज्यादातर लोग उसे उसके वास्तविक नाम की जगह उपनाम से पुकारने लगते हैं । " " गुड ! " जैकी कह उठा ---- " अच्छा पॉइंट है । मैंने इस एंगल से नहीं सोचा । " तब तो इस एंगल से पूछताछ भी नहीं की होगी । क्यों न हम कॉलिज चलकर पता लगाने की कोशिश करे ? " होठो पर मुस्कान लिए जैकी ने कहा ---- " समझ सकता हूँ ---- जब इन्वेस्टिगेटर बनकर आप निकल ही पड़े हैं तो घटनास्थल का निरीक्षण जरूर करना चाहेंगे । मगर उससे पहले आपको कुछ ऐसी बातें बता दूं जो अखबार में नहीं छपी । " " जैसे ? " "


चन्द्रमोहन को गिरफ्तार कर लिया है । " " कौन चन्द्रमोहन ? " " आपने अखबार में पढ़ा होगा । कालिज में स्टूडेन्ट्स के दो ग्रुप है । " " हाँ.... याद आया । " मै उसकी बात बीच में काटकर बोला -... " चन्द्रमोहन शायद वहीं लड़का है जिसके रेस्टिकेशन के मसले पर मीटिंग बुलाई गई थी । उसे किस बेस पर गिरफ्तार कर लिया तुमने ? " " जब मै घटनास्थल पर पहुंचा तो ज्यादातर स्टूडेन्टस और प्रोफेसर्स उत्तेजित अवस्था में चीख - चीखकर उसे सत्या का हत्यारा बता रहे थे । " मैंने चकित स्वर में कहना चाहा ---- " और तुमने केवल उनके करने पर .... " नहीं ऐसा कोई इंस्पैक्टर नहीं कर सकता । " " फिर चन्द्रमोहन की गिरफ्तारी की वजह ? " " मैंने सारे कॉलिज और हास्टिल की तलाशी ली थी । चन्द्रमोहन के कमरे से उसके बेड पर तकिये के नीचे रखा खून से लथपथ वह चाकू मिला जिससे हत्या की गई है । " " ओह ! इतना बड़ा सुबुत ? " जैकी की मुस्कान गहरी हो गयी । बोला ---- " मगर मै दावे के साथ कह सकता हूँ---- कातिल वह नहीं है ।


इस केस में अपने उपन्यास के लिए आपके हाथ भरपुर मसाला लगने वाला है । " " मेरे साथ आइए । " कहने के बाद वह कुर्मी मे खड़ा हो गया । मुझे भी खड़ा होना पड़ा । हाथ में रूल लिए जैकी लम्बे - लम्बे कदमों के साथ दरवाजे की तरफ बढ़ा । ' मैं पीछे लपका । दिमाग में रह - रहकर सवाल कौंध रहा था कि वह क्या दिखाना चाहता है ? जैकी मुझे लॉकअप में ले गया । वहां का दृश्य देखते ही मेरे जिस्म में झुरझुरी दौड़ गयी । बीस - बाइस बरस का एक लड़का लींटर में लगे कुंटे के साथ रस्सीयों से जकड़ा उल्टा लटका हुआ था । उसका जिस्म लहुलुहान था । कपड़े जगह - जगह से फटे हुए थे । मैं समझ सफता था ---- जैकी ने उसे थर्ड डिग्री से गुजारा है । जैकी पर नजर पड़ते ही उसके चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे कसाई को देखकर बकरे के चेहरे पर उभरते है । मिमिया उठा बह --- " म - मुझे और मत मारना इस्पेक्टर साहब ! जो जानता था ... बता चुका हूँ । कह चुका हूँ ... वही करूगा जो आपने कहा है । " " ध्यान से देख इन्हें ! " जैकी ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा ---- " और पहचान । " उल्टे लटके लड़के ने सहमकर मुझे देखा । " पहचाना ? " जैकी ने गुर्राकर पुछा। " स - सारी ! म मै इन्हें नहीं जानता । " और मुझे न जानना जैसे कोई गुनाह था । जैकी के हाथ में दबा रूल ' सांय की आवाज के साथ घूमा । लड़का डकरा उठा । रूल का निशान उसकी पीठ पर पड़ता चला गया । " इन्हें नहीं जानता साले ! ये हिन्दुस्तान के सबसे ज्यादा विकने वाले लेखक हैं । अपने नये उपन्यास के कथानक की तलाश में . इस . केस की इन्वेस्टिगेशन के लिए निकले हैं । " " प्लीज इंस्पैक्टर ! " मै चन्द्रमोहन के कुछ बोलने से पहले कह उठा---- " मेरे सामने यह सब मत करो ! किसी का मुझे न जानना अपराध नहीं है । " " आप नहीं समझ सकते । " जैकी इस तरह हंसा जैसे मेरी अवस्था पर तरस खा रहा हो ---- " अगर निचोड़े कपड़े से पानी नही निकलता । इस मामले में काफी बदनाम हूँ मैं । बड़े - बड़े घुटै खुर्राट मुजरिमों से राज उगलवाये हैं । एक बार मेरे चंगुल में फंसा पत्थर भी सच उगले बगैर नहीं हट सकता । ये बेचारा तो है क्या चीज ! सुबह से इसी हालत में है । काफी खातिरदारी कर चुका हूँ । एक ही बात बके जा रहा है .--- ' सत्या की हत्या मैने नही की और अब .... अपने एक्सपीरियंस के बेस पर कह सकता हूं ---- हत्यारा ये नहीं है । "


मैंने पूछा ---- ' तो खून सना चाकू ? " " पता नहीं किसने मेरे तकिये के नीचे रख दिया .... " रोते कलपते चन्द्रमोहन ने कहा । मैंने जैकी से पूछा ---- " क्या तुम भी इसी ढंग से सोच रहे हो ? " " कह चुका हूं ---- इस हालत में यह झूठ नहीं बोल सकता । " " फिर ये टार्चर बंद क्यों नहीं करते ? " " हवलदार का इंतजार है । " जैकी ने कहा ---- " वह फिंगर प्रिन्ट्स डिपार्टमेंट में गया है । मुझे पूरा यकीन है ---- चाकू की मुठ पर इसकी अंगुलियों के निशान नहीं होंगे । " " हवलदार हाजिर है सर । " लाकअप के दरवाजे से आवाज उभरी ---- " आपका यकीन चौबीस कैरेट के सोने की तरह खरा है । चाकू पर इसकी अंगुलियों के निशान नहीं हैं । " हम दोनों ने पलटकर दरवाजे की तरफ देखा। वह धुलथुल तोंद वाला ऐसा हवलदार था जो शक्ल से ही कामेडियन नजर आता था । अपने हाथ में एक कागज लिए बढा और जैकी के नजदीक पहुंचा । जैकी ने कागज लेते हुए पूछा---- " किसके निशान है ? "



किसी के नहीं । " हवलदार ने कहा ---- " रिपोर्ट में लिखा है -- निशान मिटा दिये गये । जैकी ने हवलदार को हुक्म दिया ---- " लड़के को सीधा करके कुर्सी पर बिठाओ । " हवलदार को मानो पसंदीदा हुक्म मिल गया था । वह स्टूल पर खड़ा होकर चन्द्रमोहन के बंधन खोलने लगा । जैकी ने मुझसे पूछा ---- " क्या आपको ये लड़का कुसूरवार लगता है ? " मुझे क्योंकि इंस्पेक्टर को क्रास करना था , इसलिए कहा ---- " मुमकिन है चाकू रखने से पहले इसी ने निशान साफ किये हो ? " " अगर उस वक्त इसका दिमाग इतना काम कर रहा था तो यह भी सोचना चाहिए था कि चाकू अपने नहीं , किसी और के कमरे में छुपाना चाहिए । " चाहकर भी क्रॉस करने के लिए मुझे तर्क न मिला । अतः चुप रहा ।


" ये वो बात है जो खुद को बचाये रखने के लिए हत्यारे ने सोची । " जैकी कहता चला गया ---- " उसने चाकू से अपने निशान मिटाये । उसे किसी और के .... बल्कि उसके कमरे में रखा जिस पर सबको सत्या का हत्यारा होने का शक होना ही होना था । " " सबका शक चंद्रमोहन पर होने का कारण ? " " इस सवाल का जवाब कालिज पहुंचने पर आपको खुद मिल जायेगा।


मैं चुप रहा।

उधर, जैकी की बातें सुनकर चन्द्रमोहन की रुकी हुई सांसें मानो पुनः चलने लगीं। हवलदार उसे सीधा करके लॉकअप में पड़ी एकमात्र कुर्सी पर वैठा चुका था।


होशो-हवास काबू में आते ही चन्द्रमोहन ने कहा----“मैंने तो पहले ही कहा था इंस्पैक्टर

साहव कि....

"शटअप!" गुर्राता हुआ जैकी कुर्सी की तरफ झपटा। दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़कर गुर्राया---"अगर कॉलिज में रिपोर्ट के बारे में किसी से कहा तो चमड़ी उधेड़ कर रख दूंगा।"


चन्द्रमोहन सहम गया। मुंह से बोल न फूट सका।

"गौर से मेरी बात सुन!" चेहरे पर आग लिए जैकी कहता चला गया----

-"जहां ये बात सच है कि तूने हत्या नहीं

की -वहीं यह बात, इससे भी बड़ा सच है कि कोई तुझे फंसाना चाहता है।


जाहिर है, वहीं हत्यारा होगा! बोल----तेरे ख्याल से, तुझे फंसाने की कोशिश कौन कर सकता है?"


"यह कोशिश राजेश की हो सकती है। संजय भी कर सकता है। या उनके ग्रुप का कोई और स्टूडेन्ट भी हो सकता है। सव साले दुश्मनी रखते हैं मुझसे।"

"इनमें से कोई सत्या की हत्या क्यों करेगा? ये सब तो उसी के ग्रुप के थे।"

"मुमकिन है अंदरखाने किसी की....

"तिगड़में मत जोड़। कोई ठोस कारण बता।"

चन्द्रमोहन चुप रह गया।

जैकी ने कहा----“कुछ देर बाद मैं तुझे कॉलिज छोड़कर आऊंगा। सवसे साफ-साफ कहूंगा कि तू कातिल नहीं है! समझ रहा

है न?"

चन्द्रमोहन ने स्वीकृति में गर्दन हिलाई।


"अगर कोई पूछे... कि इंस्पैक्टर ने तुझे किस वेस पर छोड़ दिया तो एक ही जवाब दोगे -यह कि कुछ नहीं जानते! हत्यारा जो भी है, तुझे आजाद देखकर बीखलायेगा! अपनी चाल पिटती देखकर हर शख्स बौखलाता है। बौखलाहट में वह गलती करेगा। ये गलती किसी भी किस्म की हो सकती है। अपने चारों तरफ पैनी नजर रखनी है। ताड़ने की कोशिश करनी है कि कौन तुझे फंसाना चाहता है? याद रहे ----वह तेरा कोई नजदीकी भी हो सकता है। 


ऐसा शख्स----जिसे तू हमदर्द और

शुभचिंतक समझता हो। इतना ही नहीं, अपने ढंग से दूसरे स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स को वॉच भी करना है। अगर किसी की भी, जरा-सी भी संदिग्ध हरकत देखे तो फौरन मुझे इस पर सूचित करना।" कहने के साथ जैकी ने अपनी बेल्ट में फंसा मोवाइल फोन निकालकर उसे दिखाया----"ये सेल्यूलर है! चौबीस घंटे मेरे साथ रहता है। किसी भी वक्त फोन कर सकता

है। हवलदार, इसे एक कागज पर मेरा 'सेल' नम्बर लिखकर दो।"


हवलदार ने आदेश का पालन किया।

जैकी का खेल पसंद आया मुझे। यह एक तरह से चन्द्रमोहन को अपना मुखबिर बनाकर उस परिसर में छोड़ रहा था जहां हत्यारा हो सकता था। चन्द्रमोहन के दिमाग पर और ज्यादा दबाव बढ़ाने के लिए जैकी ने कहा----"एक बात याद रखना----चाकु पर तेरी अंगुलियों के निशान नहीं हैं, ये बात केवल हम तीन आदमियों को मालूम है। मैं पुलिसवाला हूं। चाहूं तो कोर्ट में चाकू वाले प्वाइंट का जिक्र ही न करूं । उस हालत में तेरे खिलाफ मेरे पास अनेक गवाह और सुबूत हैं। फांसी का फंदा सीधा तेरी गर्दन में होगा। फांसी से बचने का एक रास्ता है----यह कि असल हत्यारे को पकड़वाने में मदद कर।

उसकी गिरफ्तारी ही तुझे इस जंजाल से निकाल सकती है।"


"म-मैं पूरी कोशिश करूंगा इंस्पैक्टर साहब।"

“क्या तुम्हारे कॉलिज में मजाक ही मजाक में किसी को चैलेंज भी कहा जाता है?" मैंने पूछा ।

उसका उत्तर था---- "नहीं।"

ड्राइवर ने पुलिस जीप कॉलिज गेट के सामने रोकी।

में, जैकी और चन्द्रमोहन बाहर निकले।

गेट पर खड़े चौकीदार ने गहरे ब्राऊन कलर का पठानी सूट, काली जैकेट और कलफ के कारण खड़ी पगड़ी पहन रखी थी।

रुल बगल में दबाये वह अपनी दोनों हथेलियों को हौले-हौले रगड़ रहा था। हम पर नजर पड़ते ही हाथ रुक गये।

हम उसके नजदीक पहुंचे।

"अरे! चन्द्रमोहन वावा?' उसने गहन आश्चर्य के साथ पूछा----"सावुत के सावुत?"

जैकी गुर्राया----"क्या मतलब?"

चौकीदार ने सकपकाकर कहा----"व-वो साव.... बात ये है कि थाने से निकलने वाले लोगों के हैण्ड में अक्सर मैंने उनके

अस्थि पंजर देखे हैं।"

मैं मुस्करा उठा।

जैकी दहाड़ा-

--"शटअप!"

चौकीदार ने मुंह लटका लिया।

"क्या नाम है तुम्हारा?" जैकी ने पूछा।

"गुल्लू कहा जाता है हुजूर।"

हाथ में क्या है ? " गुल्लू ने दांया साथ बाई हथेली से हटा लिया । उस पर भांग का एक बड़ा सा गोला रखा था । जैकी ने उसे डपटा ---- " नशा करते हो ? " " भोले बाबा का प्रशाद है साच ! इसे लिये वगैर .... गेट के उस तरफ से आवाज उभरी ---- " अरे ! गुरू आ गये !


हम सबकी तवज्जो उधर चली गयी।

सात-आठ लड़के और चार-पांच लड़कियों का ग्रुप उत्साहित अंदाज में चन्द्रमोहन की तरफ लपका। चन्द्रमोहन उनकी तरफ!

जैकी पर नजर पड़ते ही वह ग्रुप जहां का तहां रुक गया ! 





चन्द्रमोहन ने कहा -"डरो नहीं, इंस्पैक्टर साहब को यकीन हो गया है कि सत्या मैडम की हत्या मैंने नहीं की।"

आधुनिक कपड़े पहने लड़के-लड़कियों ने जैकी की तरफ देखा।

जैकी ने हौले से मुस्कराकर चन्द्रमोहन के कथन का समर्थन कर दिया। सभी लड़के-लड़कियों ने एक साथ हुरे का नारा लगाया और लपककर चन्द्रमोहन को अपने कंधों पर उठा लिया। अगले पल वे 'चन्द्रमोहन जिन्दावाद' के

नारे लगाते कॉलिज के प्रांगण की तरफ बढ़ गये।


एक पेड़ के नीचे खड़े दूसरे ग्रुप के लड़के-लड़कियां उन्हें देखने लगे। उस ग्रुप के स्टूडेन्ट्स के चेहरों पर हैरत के भाव थे।

उनके सामने से गुजरते वक्त चन्द्रमोहन के दोस्त कुछ ज्यादा ही जोर-जोर से उछलकर खुशियां मनाने लगे।

एकाध ने फिकरा भी कस दिया।

उस ग्रुप से एक स्मार्ट-सा लड़का लपकता हुआ हमारी तरफ आया। मारे गुस्से के उसका चेहरा तमतमा रहा था। नजदीक आते ही गुर्राया----"ये सब क्या है इंस्पैक्टर?"

"क्या जानना चाहते हो?" जैकी के होठो पर मुस्कान थी।

एक लड़की ने पूछा----"क्या आपने इसे छोड़ दिया?"

"हाँ।"

“मगर क्यों?" दूसरे लड़के ने पूछा।

"हत्या इसने नहीं की।

“आप कैसे कह सकते हैं?"

एक ने गुर्राकर कहा----- "इसके कमरे से चाकू मिला है।"

"चाकू उसे फंसाने के लिए असल हत्यारे ने भी रखा हो सकता है।"

एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। मगर ये सन्नाटा ज्यादा देर कायम नहीं रह सका। सभी स्टूडेन्ट्स के चेहरे गुस्से की ज्यादती के कारण सुलग रहे थे। भीड़ में से कोई चीखा----"ये नाइंसाफी है! इंस्पैक्टर बिक गया है।"

"हां-हां।" एक साथ सभी कह उठे-

-“इंस्पैक्टर घूस खा गया!"

"खामोश!'' जैकी दहाड़ा----"खबरदार! जो मुझे रिश्वतखोर कहने की कोशिश की!"

स्टूडेन्ट्स डरने की जगह कुछ ज्यादा ही भड़क उठे।

किसी ने नारा लगाया----"नाइन्साफी!''

"नहीं चलेगी।" अनेक मुट्टियां हवा में उछली ।

"चाकू-छुरी।

"वंद करो!"

"गुंडागर्दी!'

"बंद करो।"

"चन्द्रमोहन को!"

“वाहर निकालो।"

"हमारी मांगे!"

"पूरी करो।"

वातावरण में बार-बार उपरोक्त नारे गूंजने लगे। इधर-उधर से आकर अन्य स्टूडेन्ट्स भी उनमें शामिल हो गये। देखते ही देखते कॉलिज का शांत वातावरण अच्छे खासे हंगामे में बदल गया। भीड़ प्रतिपल बढ़ती चली जा रही थी।


इधर चन्द्रमोहन के दोस्तों ने भी जवावी नारेबाजी शुरू कर दी। जैकी ने ऐसा न करने का इशारा किया।

चन्द्रमोहन ने अपने साथियों को रोका। अब वे केवल हंगामे के दर्शक थे।

"तुमने जानबूझकर उन्हें उत्तेजित किया है।" मैंने जैकी से पूछा--

"क्या फायदा हुआ इसका!"

"इस वक्त आप एक इन्वेस्टिगेटर हैं।" मेरी तरफ देखते हुए जैकी के होठों पर मुस्कान थी----"सत्या के कातिल तक पहुंचने

के लिए कॉलिज के वातावरण को रीड करना बेहद जरूरी है। अपनी आंखों से देख रहे हैं कि दोनों ग्रुप किस कदर एक-दूसरे के दुश्मन

हैं?"

"तो क्या तुमने मुझे यह नजारा दिखाने के लिए....


"चन्द्रमोहन की वापसी पर इतना तो होना ही था।" जैकी ने मेरा वाक्य काटकर कहा-वे प्रिंसिपल निवास की तरफ जा रहे हैं। आइए, आपकी मुलाकात प्रिंसिपल से कराता हूँ।"


नारे लगाती भीड़ सचमुच जुलूस की शक्ल में एक तरफ को बढ़ गई थी।

हम जुलूस के पीछे लपके।

नारों की आवाज सुनकर प्रिंसिपल पहले ही अपने बंगले के बरांडे में आ चुका था।

उत्तेजित स्टूडेन्ट्स की भीड़ लॉन में इकट्ठी होने लगी।

नारेवाजी निरंतर जारी थी।

हॉस्टल की तरफ से भी लड़के-लड़कियां दौड़कर इधर आ गये थे। चंद्रमोहन के ग्रुप में थोड़ा ही इजाफा हो पाया था।

मुझे समझते देर न लगी कि ज्यादातर स्टूडेन्ट चन्द्रमोहन के खिलाफ हैं। उसके अपने ग्रुप में चंद ही लड़के-लड़कियां हैं।


कई प्रोफेसर्स भी वहां पहुंच गये थे।

प्रिंसिपल काफी देर से हाथ उठा-उठाकर स्टूडेन्ट्स को चुप होने के लिए कह रहा था। सफेद बालों वाला वह एक आकर्षक व्यक्ति था। आंखों पर सुनहरे फ्रेम का चश्मा लगाये जब वह वरांडे में पड़े एक स्टूल की तरफ बढ़ा तो मैंने उसकी चाल में लंगड़ाहट महसूस की। वंगले के बाहर लगी नेम प्लेट पर उसका नाम पढ़ चुका था। उस पर लिखा था----"जे.के. वंसल!"


बंसल की नजर चन्द्रमोहन के साथ-साथ हम पर भी पड़ चुकी थी। वह स्टूल पर खड़ा हुआ और अपनी करारी आवाज में

जैकी को सम्बोधित करके बोला--- "इंस्पेक्टर, चन्द्रमोहन कॉलिज में क्यों नजर आ रहा है?"

नारे लगाते स्टूडेन्ट्स की भीड़ शान्त हो गयी। यह भीड़ इस वक्त जैकी की तरफ देख रही थी। कुछ कहने के स्थान पर जैकी भीड़ को चीरता लम्बे-लम्बे कदमों के साथ बंसल की तरफ बढ़ा। वह चन्द्रमोहन की वांह पकड़े हुए था। उसे लगभग घसीटता हुआ जैकी बंसल के नजदीक ले गया।

मैं उसके पीछे था।

जैकी ने बंसल से कहा----'

-"मैंने अब तक की इन्वेस्टिगेशन में इसे बेगुनाह पाया है।"

"ये झूठ बोलता है। रिश्वत खा गया है। इंस्पेक्टर भ्रष्ट है।" भीड़ में से ऐसे अनेक वाक्य कहे गये और फिर जमकर जैकी के विरुद्ध नारेबाजी शुरू हो गयी। जैकी वरांडे में पड़ी कुर्सी पर खड़ा हो गया। बार-बार कहने लगा----"उत्तेजित होने और नारेबाजी से कुछ नहीं होगा। शांति से मेरी बात सुनें।"

कुछ देर जरूर लगी लेकिन ऐसा वक्त आया जब स्टूडेन्ट्स शान्त हो गये।

हालांकि उत्तेजना में किसी किस्म की कमी नहीं आई थी।

"आप सब मेरे छोटे भाई-बहनों के समान हैं। वादा करता हूँ----कोई नाइन्साफी नहीं होगी।" उस क्षण जैकी का लहजा और

आवाज बेहद प्रभावशाली थे -"और ये नाइन्साफी किसी के भी साथ नहीं होगी।" शब्द 'किसी के भी' पर उसने खास जोर देने के बाद कहा----"चन्द्रमोहन भी उन किसी में शामिल है। मैं जानता हूं तुम लोग सत्या मैडम से बहुत प्यार करते थे।


सारे कॉलिज की चहेती थी सत्या मैडम!" कहते वक्त जैकी की आंखें भर आईं। मैं समझ गया -ये एक्टिंग उसने स्टूडेन्ट्स को प्रभावित करने के लिए की थी और स्टूडेन्ट्स प्रभावित नजर आये भी। मैं मन ही मन जैकी के अभिनय की तारीफ कर उठा। यह वगैर रुके, भराये गल्ले से कहता चला जा रहा था---- -"ऐसे मामलों में जो पुलिस वाला रिश्वत खाता है, वह रिश्वत

नहीं खाता! गू खाता है----गू! मैं थूकता हूं उस पर! मुमकिन है किन्हीं कारणों से सत्या मैडम और चन्द्रमोहन में लगती हो।


ये भी सच हो सकता है उत्तेजना के किन्हीं क्षणों में चन्द्रमोहन ने सत्या पर चाकू ताना हो मगर इसका मतलब ये नहीं कि हत्या चन्द्रमोहन ने ही की है। मैं समझ सकता हूँ----तुम लोगों में यह उत्तेजना सत्या के प्रति बेइन्तिहा मुहब्बत और चन्द्रमोहन के प्रति नफरत के कारण उपजी है। मगर मैं.... इंस्पैक्टर जैकी हत्या के इस केस को भावनाओं में बहकर नहीं देख सकता! मैंने ऐसे अनेक केस देखें हैं जिनमें हत्यारे ने दो व्यक्तियों के मनमुटाव या दुश्मनी का लाभ उठाकर, यह सोचते हुए क्राइम किया कि मुझ पर किसी का शक नहीं जायेगा। क्या इस केस में भी तुम ऐसा ही चाहते हो? क्या तुम चाहते हो

वगैर मुकम्मल तहकीकात के चन्द्रमोहन को सजा मिल जाये और सत्या का असल हत्यारा कालर खड़े करे इस परिसर में घूमता रहे?"


"नहीं! नहीं! हम ऐसा नहीं चाहते।" चारों तरफ से आवाजें उटीं।

"तो मैं इंस्पैक्टर के नाते नहीं बल्कि तुम्हारा बड़ा भाई होने के नाते वादा करता हूँ कि सत्या के हत्यारे को.... वास्तविक हत्यारे को तुम सबकी आंखों के सामने सजा दूंगा। जरूरत है तो केवल तुम्हारे सहयोग की! मुझे पूरा यकीन है कि सत्या का हत्यारा इस वक्त भी इसी परिसर में मौजूद है और मेरी इस चेतावनी को सुन रहा है। मुझे तो उसकी तलाश में जमीन आसमान एक करना ही है , लेकिन तुम लोग देश का भविष्य हो । अगर नजर पैनी रखो तो अपने बीच छुपे हत्यारे को मुझसे बेहतर ढूंढ सकते हो । यह काम जजबातों में आकर नहीं बल्कि दिमाग से करो । यदि वाकई सत्या के हत्यारे को सजा दिलाना चाहते हो तो छोटी - मोटी घटनाओं से उपजी आपसी रंनिश को भूल जाओ । मिलकर काम करो । एक दूसरे की हरकतों पर नजर रखो ऐसी अनेक बातें कहीं जैकी ने । उसने न केवल उत्तेजना शान्त कर दी बल्कि स्टूडेन्ट्स को हत्यारे की तलाश में भी लगा दिया ! 


मेरे नजदीक खड़ा प्रिंसिपल बड़बड़ाया -- " मेरा भी तो बार - बार यही कहना है । चन्द्रमोहन लाख नालायक सही , हत्या नहीं कर सकता । " मैंने पलटफर उसकी तरफ देया । उसने पूछा ---- " आपकी तारीफ ! " " 

उपन्यासकार ! " जबाब हवलदार ने दिया ।


कालिज के लम्बे - चौड़े प्रांगण में उस स्थान के चारों तरफ चॉक से एक दायरा बना हुआ था जहां सत्या श्रीवास्तव ने अंतिम सांसे ली दी । दायरे के अंदर खुन बिखरा पड़ा था । मगर मेरी निगाह खून पर नहीं CHALLENGE पर थी । यही शब्द मुझे यहां तक खीच लाया था । इस शब्द का अर्थ जितना अंधेरे में मेरे लेखन कक्ष में था , उतना ही इस वक्त भी था । जैकी ने अपनी स्पीच के अंत में मेरा परिचय दे दिया था । ज्यादातर स्टूडेन्ट्स मेरे पाठक और प्रशंसक थे । मुझे अपने बीच पाकर बेहद रोमांचित और खुश हुए थे । कई ने आटोग्राफ लिये । कई ने कहा ---- " आप बेहद दिमागदार उपन्यास लिखने है । अब .... जवकि आप इस केस की इन्वेस्टिगेशन के लिए निकले हैं तो हमें पूरा विश्वास है , सत्या मैडम का हत्यारा चाहे जितना चालाक हो ---- आप उसे खोज निकालेंगे । " आई.ए.एस. कालेज के मेरे पाठकों ने जो आशाएं मुझसे बांधी थी ---- मेरी पूरी कोशिश उन पर खरा उतरने की थी मगर अभी तक मेरा दिमाग यह सोचने से ज्यादा और कुछ नहीं सोच पा रहा था कि ---- मरते वक्त सत्या ने CHALLENGE क्यों लिखा ? हमारे चारों तरफ स्टूडेन्ट्स की भीड़ थी । मैंने चेहरा उठाकर उस टैरेस की तरफ देखा जहां से सत्या का नीचे गिरना बताया जा रहा था । यहा से एक स्थान का रेलिंग उखड़ा हुआ था । रेलिंग पूरी तरह टूटकर सत्या के साथ नहीं गिरा था बल्कि दीवार , के सहारे लटका रह गया था । मैंने प्रिंसिपल से पूछा ---- " जिस वक्त सत्या वहां से गिरा , उस वक्त आप कहां थे ? " " प्रांगण में ही । " बंसल ने अंगुली से एक तरफ इशारा किया --- " वहां ! " " आप प्रांगण में क्यों थे ? " " हम इस सवाल का मतलब नहीं समझे " " सुना है जो मीटिंग यहां होने वाली थी , यह आपके खिलाफ थी । इस समस्या पर विचार किया जाना था कि यदि आप चन्द्रमोहन का रेट्रीकेशन नहीं करते है तो क्या कदम उठाया जाये ? मेरे ख्याल से ऐसी मीटिंग में आपको आमंत्रित नहीं किया गया होगा ? " 


आपका ख्याल दुरुस्त है । हमें नहीं बुलाया गया था । " 


" इसीलिए सवाल किया , आप यहां क्यों थे ? " हमने सोचा ---- स्टुडेन्टन और प्रोफेसर को यह बताना जरूरी है कि चन्द्रमोहन का रेस्ट्रीकेशन किसी समस्या का हल नहीं है । चन्द्रमोहन थोड़ा बिगड़ा हुआ सही , लेकिन हम सबकी नजर में वह वैसा ही होना चाहिए जैसे दूसरे स्टूडेन्ट्स हैं । " " इस बारे में विस्तार से बाद में बात करेंगे । फिलहाल तय है कि आप् यहीं थे । " " वहां ! " प्रिंसिपल ने फिर उसी तरफ अंगुली उठाई जिस तरफ एक बार पहले भी उठा चुका था । 


" क्या देखा आपने ? " " वही , जो सबने देखा । " मैने अपना लहजा थोड़ा सख्त किया ---- " मैं आपसे पूछ रहा हूँ । " प्रिंसिपल ने लगभग वहीं दोहरा दिया जो अखबार में छपा था । मैंने यह जॉचने की कोशिश की कि वह सुनी - सुनाई बातें दोहरा रहा है या घटना का प्रत्यक्षदर्शी था ? 


मै किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका । इसलिए सवाल किया ---- " जब आपने टेरिस पर चीखती - चिल्लाती लहुलुहान सत्या को देखा तो उसे क्यों नहीं देख सके जो उस पर चाकू से हमला कर रहा था ? " " जब किसी ने नहीं देखा तो हम कैसे .... “ मैं किसी की नहीं , आपकी बात कर रहा हूं । आपने क्यों नहीं देखा ? " " सीधी - सी बात है , वह नजर नहीं आ रहा था । 


" मेरे कुछ कहने से पहले जैकी बोल उठा ---- " वेद जी , मैं पूछताछ कर चुका हूँ । प्रिसिपल साहब उस वक्त प्रांगण में ही थे । काफी लोगों ने गवाही दी है । " " जैसे मैं ! " इस नई आवाज ने मुझे अपनी तरफ पलटने पर मजबूर कर दिया । मैंने देखा ---- वह लड़की अत्यन्त सेक्सी ड्रेस में थी । ऊंची एड़ी के सैडिल्स जांधों के दर्शन कराती स्कर्ट और टाप ऐसा कि गोलाइयों का ऊपरी आधा हिस्सा झांकता नजर आ रहा था । उनमें होता कम्पन साफ बता रहा था उसने ब्रा नहीं पहन रखी है । वह सुन्दर और आकर्षक थी । मैंने पूछा ---- " आपकी तारीफ ? " अपने होठो पर जीभ फिराने के साथ वह कोयल सी कुंकी -- " हिमानी वर्मा ! आपकी फैन ! " " कौन - सी क्लास में पढ़ती है ? 


" वह खिलखिलाकर हंस पड़ी । कुछ इस तरह जैसे मैने कोई जवरदस्त लतीफा सुनाया हो ! और उसकी मधुर खिलखिलाहट में मिक्स हुए थे एक पुरुष के ठहाके । 


मैने पुरुष की तरफ देखा । वह धोती कुर्ता पहने हुए था । गंजा सिर । गांठ लगी लंबी चोटी ! नाक पर गांधी ऐनक । हिटलरी मूछें। पेट पकड़ पकडकर हंसते हुए उसने कहा ---- " कुमारी हिमानी विद्यालय की छात्रा नहीं , अध्यापिका है . अंग्रेजी का पठन - पाठन करती हैं । अंग्रेजी ढंग के वस्त्र धारण करती हैं । "



मै भिन्ना उठा । पूछा---- " आप कौन है ? " " ऐरिक ! ऐरिक डिसुजा ! " वह यांत्रिक ढंग से हंसना बंद करके गंभीर स्वर में बोला --- " क्रिश्चियन हूँ । परन्तु पढ़ाता देवनागरी लिपि हूँ । देवनागरी वस्त्र धारण करता हूं । " मै यह सोचने पर विवश हो गया कि इस कॉलिज में एक से बढ़कर एक नमूना है । " उस वक्त मै भी यहां थी सर ! " हिमानी अपनी बड़ी - बड़ी आंखों को नचाती बोली --- " प्रिसिपल साहब के नजदीक खड़ी थी । " " अच्छा बताइए । 


" मैंने पूछा ---- " सत्या मैडम टैरेस से खुद कुदी या किसी ने धक्का दिया था ? " हिमानी सकपका गयी । ऐरिक बोला --- " स्वयं क्यों कुदती ? किसी ने धकेला था । 

" " किसने ? " 

" वह दीखा नहीं । " धक्का देने की अवस्था में देखना चाहिए था । "


" हमारे ध्यान में न वह कुदी थी , न ही धकेली गयी थी । बंसल ने कहा ---- " जिस वक्त वह चीख रही थी , तब विपरीत दिशा में यानी टैरेस की तरफ देख रही थी । शायद उस तरफ हमलावर था । उससे बचने के लिए पीछे हटी और रेलिंग तोड़ती हुई यहाँ आ गिग । " " इंस्पैक्टर , में टेरेस का निरीक्षण करना चाहता हूँ " मैंने जैकी से कहा।


जहां से सत्य गिरी थी , वह लेडीज हॉस्टल की इमारत का टेरिस था । वहां पहुंचने से पहले मैंने सैकिंड फलोर पर स्थित सत्या के कमरे का निरीक्षण किया । परन्तु ऐसी कोई चीज नहीं मिली जो घटना के अंधेरे पहलुओं पर रोशनी डाल सकती । टैरेस पर एक जगह ढेर सारा खून पड़ा था । खुन सूख चुका था । रंग काला पड़ चुका था । उस पर मक्खियां मिनभिना रही थीं । खून की टेढ़ी - मेढ़ी लकीर टूटे हुए रेलिंग तक चली गयी थी । एक स्थान पर चौक से बना दायरा देखकर मैंने पूछा ---- " ये निशान कैसा है ? " " वहा सत्या की सैंडिल पड़ी थी । जैकी ने बताया । " और दूसरी सैंडिल " " काफी तलाश करने के बावजूद नहीं मिली । ' ' " सत्या के कमरे में भी नहीं ? " " नहीं।



यही सोच रहा था मैं ! " मैं टूटे हुए रेलिंग की तरफ बढ़ता हुआ बोला ...- " जिस वक्त सत्या को प्रांगण में होना चाहिए था , उस वक्त टेरेस पर क्यों थी ? मगर नहीं ---- वह टेरेस पर नहीं थी ! हमला यहां हुआ जरूर लेकिन असल में हमलावर से बचने की कोशिश में कही और से भागकर यहां पहुंची । हमलावर उसका पीछा कर रहा था । वार करने का मौका यहां आकर मिला । दूसरा सैंडिल वहां गिरा जहां से सत्या और हत्यारे के बीच भागदौड़ शुरू हुई । "


" क्या जरूरी है ? " जैकी ने कहा ---- " रास्ते में भी तो कहीं गिरा हो सकता है ? " " 


रास्ते में गिरा होता तो हमलावर को उसे गायब करने की जरूरत नहीं थी । " 

मैं जैकी की तरफ पलटता हुआ बोला-- .. " गायब करने की जरुरत इसलिए पड़ी क्योंकि जहां वह गिरा वहां से उसकी बरामदगी हत्यारे को फसा सकती थी अर्थात् भागदौड हत्यारे के अपने परिसर में शुरू हुई । 

" जैकी कह उटा -... " तर्क में दम है । " " मैं लेटीज हॉस्टल की वार्डन से मिलना चाहता हूं । " " नगेन्द्र । " प्रिंसिपल ने अपने नजदीक खड़े चपरासी को हुक्म दिया --- " ललिता को बुलाओ। 

चपरासी साड़ियों की तरफ बढ़ गया । मैंने टूटे हुए रेलिंग के नजदीक से नीचे झांका । वहाँ जहाँ सत्या गिरी थी । जैकी मेरे नजदीक आता हुआ बोला- " यदि सत्या को धकेला गया होता या वह खुद कुदती तो शायद कुछ और दूर जाकर गिरती । लगता है यह हत्यारे से बचने की कोशिश में ही गिरी । " मै जैकी से सहमत था इसलिए कोई तर्क - वितर्क नहीं किया ।


दरअसल मेरे दिमाग में दूसरी बातें घुमड़ रही थी । उन्हीं को उगलने के लिए कहा ---- " जितने उपन्यास मैंने लिखे हैं , उनके अनुभव के बेस पर कह सकता हूं यदि हत्या का उद्देश्य समझ में आ जाये , तो ऐसे केस खुलने में टाइम नहीं लगता । " 

" उद्देश्य पता लगना आसान नहीं होता । "


सवा आठ बजे ! या ज्यादा से ज्यादा साढे आठ बजे सत्या को प्रांगण में होना चाहिए था । " मैंने अपने दिमाग में भरा मलूदा निकालना शुरू किया ---- " यकीनन सत्या सवा आठ और साढ़े आठ के बीच तैयार होकर अपने कमरे से निकला होगी । पत्ता ये लगाना है कि साढ़े आठ से नौ बजे तक वह कहां रही ? क्या करती रहीं ? ऐसा उसने क्या देखा या सुना जिसकी वजह से मरना पड़ा ? " 


"वह रही इसी बिल्डिंग में थी , बाहर किसी ने नहीं देखा मेरे कुछ कहने से पहले ललिता आ गयी । वह तीस साल के आस - पास की साधारण कद - काठी वाली महिला थी । सूती साड़ी और उसी से मैच करता ब्लाऊज पहने हुए थी । दस - बारह साल की एक लड़की भी थी उसके साथ । रंग - बिरंगे फ्रॉक पहने हुए थी वह । वह ललिता की बेटी थी और हॉस्टल में साथ ही रहती थी । बातचीत में उसने उसका नाम चिन्नी बताया ! यह भी बताया कि उसका पति गांव में रहता है । मैंने उससे कई सवाल किये मगर उल्लेख करना इसलिए जरूरी नहीं है क्योंकि उनसे वर्तमान केस पर कोई खास रोशनी पड़ने वाली नहीं है ।


उससे ध्यान हटाकर मैंने जैकी से कहा ---- " एक बात तय है । सत्या के मरने की वजह साढ़े आठ से नौ बजे के बीच पैदा हुई । इस बीच उसे कोई ऐसा राज पता लगा जिसे हत्यारा नहीं चाहता था कि किसी को पता लगे । 


" जैकी भेदभरी मुस्कान के साथ बोला ---- " इतनी देर से आप बेकार दिमागी कसरत कर रहे हैं । " " मतलब ? " मै चौंका । " जो कसरत मैंने सुबह की थी , उसी का फायदा उठा लेते । " 


" मैं अब भी नहीं समझा । " मैं भी इसी नतीजे पर पहुंचा था जीस पर आप पहुंचे हैं । " और फिर .... हम दोनों एक - दूसरे की तरफ देखकर ठहाका लगा उठे ।



अब मुझे इस बात की तह में जाना था कि सत्या की हत्या का शक सब चन्द्रमोहन पर क्यों कर रहे थे ? अतः जैकी से कहा ---- " तुम जाना चाहो तो जा सकते हो , मै अभी यहीं रहूंगा । " जैकी ने जैसी आपकी मर्जी ' वाले अंदाज में कंचे उचका दिये । स्टुडेन्ट्स के दूसरे ग्रुप का लीडर यह स्मार्ट लड़का था जो चन्द्रमोहन को परिसर में देखकर सबसे पहले तमतमाता हुआ जैकी के नजदीक आया था । उसका नाम राजेश था । 

राजेश तोमर । 

मैं उन केन्टीन में ले गया साथ में उसके नजदीकी दोस्त अल्लारखा , एकता और दीपा भी थे । थोड़े ही समय में मैंने महसूस किया कि दीपा और राजेश दोस्त से ज्यादा कुछ थे । 


कालिज की तरह कैंटीन भी शोक में बंद थी । फिर भी हम एक मेज के चारों तरफ कुर्सियों पर बैठ गये । मैंने मतलब की बात पर आते हुए कहा ---- " राजेश , तुम लोगों की चन्द्रमोहन से क्या दुश्मनी है ? 


" नहीं " दुश्मनी जैसी तो कोई बात नहीं है । " राजेश ने कहा ---- " हमारा मिजाज उससे और उसके ग्रुप के सड़के - लड़कियों से नही मिलता । " 

" वह बदतमीज है । " दीपा ने कहा ---- " लड़कियों तक से तमीज से पेश नहीं आता । " मैंने सीधा सवाल किया ---- " क्या तुमसे भी कोई बद्तमीजी की ? " दीपा ने जवाब देने की जगह राजेश की तरफ देखा । भाव ऐसा था जैसे पुछ रही हो , जवाब दे या न दे ? 


मैंने वातावरण को हल्का बनाये रखने के लिए कहा . - .- " दीपा , हिचको नहीं । मेरे किसी भी सवाल का मतलव सत्या के हत्यारे तक पहुंचने की कोशीश से ज्यादा कुछ नहीं है । शायद यह कातिल कॉलेज की पिछली किसी छोटी - मोटी घटना के पीछे छुपा हो।


दीपा से उसने इस बात से पहले ही दिन बहुत बदतमीजी की थी । " राजेश से कहना शुरू किया --... "मै और वो एक ही क्लास में है । दीपा हमसे जूनियर है । उस वक्त रैगिंग चल रही थी जब दीपा वहां आई । चन्द्रमोहन ने इससे कहा ---- ' तुम्हें मेरे होठो का किस लेना होगा । ' दीपा ताव खा गई । झगड़ा बढ़ा । मैं बीच में पड़ा ! चन्द्रशेखर से कहा रैगिंग और बद्तमीजी में फर्क होता है । किसी लड़की से किस लेने के लिए कहना रेगिंग नहीं है । चन्द्रमोहन मुझसे भिड़ गया । शायद उसी वक्त मारपीट शुरू हो जाता , लेकिन दूर से आती सत्या मैडम नजर आई । हम सब उनकी इज्जत करते थे । रैगिंग के वे सख्त खिलाफ थी , अतः पलक झपकते ही तितर - बितर हो गये । " " उसके बाद ? " " एक दिन यही , यानी कैंटीन में मेरे और चन्द्रमोहन के बीच फाइटिंग भी हुई । " मैंने शरारत की ---- " और उसके बाद तुम दोनों में ईलू - ईलू शुरू हो गया ? " दीपा झेंप गई । एक बार राजेश की तरफ देखकर पलकें झुका ली उसने । मैंने हौले - हौले मुस्कुरा रहे राजेश से कहा ---- " कालिज लाइफ में ईलु - ईलू कुछ इसी तरह शुरू होते है .... सत्या मैडम चन्द्रमोहन का रेस्ट्रीकेशन क्यों कराना चाहती थी ? 


" राजेश ने कहा --- " क्योंकि चन्द्रमोहन और उसके साथी स्मैक लेते हैं । 

" मेरे दिमाग में धमाका सा हुआ ! संभलकर बैठ गया । लगा ---- मैं सत्या की हत्या के कारण के आसपास पहुंचने वाला हूँ । बौला ---- " जरा खोसकर बताओ इस बात को ! " 


" एक दिन चन्द्रमोहन और उसके साथी लेडीज टायलेट में छुपे स्मैक ले रहे थे । सत्या मैडम ने रंगे हाथों पकड़ लिया । प्रिंसिपल साहब के पास ले गयीं लेकिन प्रिंसिपल साहब ने कोई खास पनिशमेन्ट नहीं दिया । थोड़ा समझा - बुझाकर और यह वादा लेकर छोड दिया कि अब वे स्मैक नही लेंगे । " 

ये क्या बात हुई।

" सत्या मैडम और प्रिंसिपल साहब के बीच ऐसी ही बातों को लेकर विवाद था । " 

" कालिज में स्मैक आई कहां से ? " 

“ यही सवाल सात्या मेडम का था । उन्होंने प्रिंसिपल साहब से कहा ---- इस घटना को हल्के ढंग से लेकर आप गलती कर रहे हैं । आज चार - पांच स्टूडेन्ट स्मैक पीते पकड़े गये है , कल ये जहर सारे कॉलिज में फैल जायेगा । 

कम से कम यह तो पूछा ही जाना चाहिए कि कालिज में स्मैक लाया कौन ? " 

" बंसल साहब का रुख क्या रहा ? " 

" एक कान से सुनना , दूसरे से निकाल देना । " " और वो चाकू वाला घटना क्या थी ? " मैंने पूछा ---- " सुना है , चन्द्रमोहन ने सत्या मैडम पर चाकू खोल लिया था । नौबत इतना आगे कैसे पहुंची ? " 

' यह कल सुबह की बात है । सारे कालिज में हंगामा मच गया । वजह थी ---- कालिज की दीवारों पर लगे नंगे फोटो ! ये फोटो दीपा के थे । " मैं चौंक पड़ा । मुंह से निकला -- " दीपा के नंगे फोटो ? 

" दीपा चेहरा झुकाये बैठी थी।


राजेश कहता चला गया ---- " ये पोस्टर एक सेक्सी मैग्जीन में छपे नंगी लड़कियों के फोटुओं के चेहरों पर दीपा का चेहरा चिपकाकर तैयार किये गये थे । तैयार करके चिपकाने वाला चन्द्रमोहन था । लेकिन यह भेद खुलने से पहले सबने दीपा के ही समझा । दीपा तो इतनी एक्साइटिड हो गयी कि अगर सही वक्त पर मैं रोक न लेता तो टेरेस से कूदकर सुसाइड कर ली होती । वह तो भला हो सत्या मैडम का जिन्होंने चन्द्रमोहन के कमरे से वह मैग्जीन बरामद कर ली जिसमें से नंगे फोटो काटे गये थे । हकीकत जानने के बाद तो सत्या मैडम जैसे पागल हो गयीं । कालिज प्रांगण में सबके सामने चन्द्रमोहन के गालों पर चाटे पर चाटे बरसाती चली गई वे ! प्रिसीपल साहब ही नहीं , कालिज का हर शख्स दायरे की शक्ल में उनके चारों तरफ खड़ा था । कुछ देर तक चन्द्रमोहन पिटता रहा लेकिन फिर जेब से लम्बा सा चाकू निकालकर खोल लिया और गरजा .... ' बस मैडम ---- ! बहुत हो चुका ! अब अगर एक भी चांटा मारा तो अंतड़ियां निकालकर बाहर फेंक दूंगा । " 


" ओह ! " " सत्या मैडम का हाथ जहां का तहां रुक गया । स्तब्ध रह गई वे ! और वे ही क्यों , हर शख्स स्तब्ध रह गया था । मैं और दीपा टेरेस पर थे । मै नीचे होता तो शायद जान से मार देता चन्द्रमोहन को लेकिन , प्रिसिपल महोदय ने सिर्फ इतना किया कि लपककर आगे बढ़े । चन्द्रमोहन की चाकू वाली कलाई पकड़ी । हाथ से चाकु छिना और गुर्राए--- तुम्हारी बदतमिजियों की हद हो चुका है . चन्द्रमोहन ! 

मैडम पर चाकु खोलने की तुम्हारी हिम्मत कैसे पड़ी ? 

चन्द्रमोहन चुपचाप खड़ा मैडम को घूरता रहा । भाव तब भी ऐसे थे जैसे कच्चा चबा जाने का इरादा रखता है । प्रिसिंपल महोदय ने हुक्म दिया ---- ' चलो ! माफी मांगो सत्या मैडम से ! सॉरी बोलो । 


' चन्द्रमोहन तब भी चुप खड़ा रहा । प्रिसिपल महोदय ने डपटकर कहा ---- ' माफी मांगो । ' और चन्द्रमोहन लट्टमार भाषा में ' सॉरी ' कहकर वहां से चला गया । " 

" उसके बाद ? " " उत्तेजना तो फैल ही चुकी थी । " अल्लारखा ने कहा ---- " चन्द्रमोहन के चंद स्मैकिये दोस्तों को छोड़कर सारा कालिज उसके खिलाफ था । उसी वक्त चन्द्रमोहन को कलिज से निकालने के लिए नारे लगने लगे । 


राजेश और दीपा भी प्रांगण में आ चुके थे । दीपा तो बेचारी हिचकियां ले - लेकर रोये जा रही थी । राजेश बहुत ज्यादा उत्तेजित था । प्रिंसिपल महोदय अपने ऑफिस में जा चुके थे । उतेजना को शान्त करने वाली भी सत्या मेडम ही थीं । राजेश को खास तौर पर शान्त किया उन्होंने । बोली ---- राजेश , अब हद हो चुका है । मै प्रिंसिपल साहब से मिलती हूँ । उन्हें इस कालिज रूपी स्वच्छ तालाब से चन्द्रमोहन नाम की गंदी मछली को निकालकर फेकना ही पड़ेगा । " 

" स्टेन्ट्स को शान्त करके सत्या मैडम , हिमानी मैडम , ऐरिक सर और लविन्द्र सर प्रिंसिपल के रूम में गये थे । " अल्लारखा के चुप होते ही एकता ने बोलना शुरू कर दिया था ---- " वाकी सभी लोग आफिस के बाहर खड़े रहे । वे चारों करीब तीस मिनट ऑफिस में रहे । इस बीच सत्या मैडम के चीखने - चिल्लाने की आवाज बाहर तक आई थी और फिर सबसे पहल वे ही बाहर निकलीं । ऐरिक सर , हिमानी मैडम और लबिन्द्र सर उनके पीछे थे ! गुस्सा तो सभी के चेहरे पर झलक रहा था । मगर सत्या मैडम बहुत ज्यादा उत्तेजित थीं । ऑफिस के बाहर इकट्टी भीड से उन्होंने चीख - चीखकर कहा ---- " पता नहीं क्यों , प्रिंसिपल महोदय चन्द्रमोहन को इस कॉलिज के भविष्य से भी ज्यादा चाहते हैं । वे उसका रेस्ट्रोकीशन करने के लिए तैयार नहीं हैं । मगर , हमने भी सोच लिया है ---- अब इससे कम पर कोई फैसला नहीं होगा ! सोचने के लिए मैं उन्हें पूरी रात देकर आई हूँ । कल सुबह साढ़े आठ बजे प्रांगण में एक मीटिंग होगी । या तो उस वक्त तक प्रिंसिपल महोदय चन्द्रमोहन का रेस्ट्रीकेशन - कर चुके होंगे या उस मीटिंग में तय करना होगा कि हमें क्या करना है ? " " बस ! 


" दीपा ने कहा ---- " इसके बाद वे अपने कमरे की तरफ चली गयीं " प्रिंसिपल के आफिस में क्या बात हुई थी ? " 

" पूरी बातें पता नहीं लग सकी । हां , उड़ती - उड़ती यह सूचना जरुर मिली की तत्काल आदेश के जरिए प्रिंसिपल महोदय ने चन्द्रमोहन को एक हफ्ते के लिए कालिज से निकाल दिया था । यह एक हफ्ता आज सुबह से शुरू होने वाला था । 


मैंने महसूस किया ---- उपरोक्त बाते बताते वक्त राजेश कुछ ज्यादा ही उद्वेलित नजर आ रहा था ।


वारदात सत्या के मर्डर तक सीमित रहती तो शायद कॉलेज में आपको वह कथानक पढ़ने को न मिलता । यदि यहां पर इस बात को भुला दिया जाये कि मरने से पूर्व सत्या ने CHALLENGE लिखा था तो यह घटना , आम हत्याओं सी घटना ही दी और मैं एक आम घटना को अपना कथानक बनाने के मूड में नहीं था । 

लेकिन आई.ए.एस. कालिज में एक के बाद एक घटी घटना ने मुझे झकझोर कर रख दिया । जो कुछ हुआ , यह सनसनीखेज और पेचीदा था । शायद मेरी कल्पनाएं वहाँ तक नहीं पहुंच सकती थी । 


उन पेचीदगियों की शुरूआत हुई रात के दो बजे से । मधु सोई हुई थी । कमरे में नाइट बल्ब का मद्धिम प्रकाश था । मैं जाग रहा था । दिमाग में सत्या की हत्या से सम्बन्धित सवाल सरसरा रहे थे । टेलीफोन की घंटी बजी । मैंने लपककर साइड ड्राज के ऊपर रखे फोन का रिसीवर उटाया । माऊथपास से मुंह सटाकर धीरे से कहा ---- " हैलो ! " " इंस्पैक्टर जैकी बोल रहा हूँ वेद जी ! " दूसरी तरफ से हड़बड़ाहटयुक्त स्वर में कहा गया ---- " मैंने कहा था , इस केस में आपको भरपूर मसाला मिलेगा । शायद वो बात सच होने जा रही है । अगर बाकई कुछ लिखना चाहते हो तो फौरन यहां आ जाइए । " 


मैंने चौंककर पूछा ---- " क्या हुआ ? " " 


चन्द्रमोहन का मर्डर । " 


" क - क्या ? " मेरे हलक से चीख निकल गई । 


मधु हड़बड़ाकर उठ बैठी मगर अब भला मेरा ध्यान उस तरफ कहां था ? मैं फोन पर चीख पड़ा था ---- " कब ? किसने मार हाला उसे ? " " इन सवालों जवाब यही आकर लें तो बेहतर होगा ! " 

" ओ.के. ! मैं आता हूं । " कहने के तुरंत बाद मैंने रिसीवर डिल पर पटक दिया । " किसी ने चन्द्रमोहन को मार डाला । " मैंने एक स्विच ऑन करते हुए कहा । कमरा तेज प्रकाश से भर गया।



मधु के चेहरे पर हैरत का सागर उमड़ा पड़ रहा था । मैं उसे अपनी दिन भर की गतिविधियों के बारे में बता चुका था । इस नई वारदात की कल्पना शायद उसने भी नहीं की थी । उसे इसी हालत में छोड़कर मैंने नाइट गाऊन उतारा और बाहर जाने की लिए कपड़े पहनने लगा ।


क्या आप सोच सकते हैं एक आदमी मरने के बावजूद कैसे खड़ा रह सकता है ? कम से कम मैं चन्द्रमोहन की लाश को देखने से पहले ऐसी कल्पना नहीं कर सकता था । 

जी हाँ लाश ठीक मेरे सामने खड़ी थी । 

आंखें फाड़े घुर रही थी मुझे । 

दृश्य स्टाफ रूम का था । एक मेज पर रखे फोन का रिसीवर नीचे झूल रहा था । उसके नजदीक दीवार के सहारे खड़ी थी ---- 


चन्द्रमोहन की लाश ! एक बल्लम उसके सीने के आर - पार होकर पीछे मौजूद प्लाई की दीवार में धंस गया था । उसमे फंसी चन्द्रमोहन की लाश दीवार सहारे खडी की खड़ी रह गयी थी । उसकी देखकर में जैसे बोलना तक भूल गया " 

चन्द्रमोहन अभी तक दरवाजे की तरफ देख रहा है । " जैकी की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी ---- “ वल्लम की पोजीशन बता रही है , इसे टीक वहां से फेंका गया जहां इस वक्त आप खड़े हैं । 

" मेरी तंद्रा भंग हुई । मै स्टाफ रूम के दरवाजे के बीचो - बीच से हटा । 

हवलदार की आवाज गूंजी --.- " लेकिन सर , रात के इस वक्त ये स्टाफ रूम में क्या कर रहा था ? " 

" फोन पर बात कर रहा था किसी से ! " मैंने जासूसी झाड़ी । " किसी से नहीं , मुझसे बात कर रहा था । " जैकी ने बताया । 

मैं चौका -- " तुमसे ? " 

" इस पर जैकी अपनी बेल्ट में लगे मोबाइल की तरफ इशारा किया ---- " आप जानते ही हैं मैंने इससे क्या कहा था ? शायद उसी को फालो कर रहा था बेचारा । " 

" तो क्या इसे हत्यारे का कोई क्लू मिला था ? " ऐसा ही लगता है । " जैकी ने कहना शुरू किया ---- " फोन पर अपना नाम बताने के बाद यह केवल इतना ही कह पाया था कि मैंने हत्यारे का पता लगा लिया है इस्पैक्टर साहब ! वो कारण भी पता कर लिया है जिस वजह सत्या मैडम की हत्या की गई । मेरे पास सुबुत भी ...। और बस इतना कहकर चुप हो गया । फिर फोन पर इसकी ऐसी आवाज उभरी जैसे अपने सामने किसी को देखकर चौका हो ---- ' तुम ! तुम यहां ? ' दूसरी तरफ से मैं फोन पर चीखा ---- हैलो ! हैलो ! क्या हुआ चन्द्रमोहन ? 

लेकिन जबाव में इसकी जोरदार चीख के अलावा कुछ सुनाई नहीं दिया । मैं काफी देर तक ' हेलो .... हेलो ... ! ' चिल्लाता रहा । 


अनिष्ट की आशंका उसी क्षण हो गयी थी । जीप लेकर भागा । यहां आया तो ... " इसके चीखने की आवाज ने कालिज परिसर को झकझोर कर रख दिया था । 


" प्रिंसिपल कह उठा---- " अपने बंगले में सोये पड़े हम और हॉस्टल में सोये ज्यादातर स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर हड़बड़ाकर उठे । हंगामा सा मच गया । सभी एक - दूसरे से पूछ रहे थे . यह चीख कैसी और किसकी थी । तभी वातावरण में गुल्लू के चीखने की आवाज गूंजी --- " पकड़ो ! पकड़ो । हत्यारा भाग रहा है।


गुल्लू कौन ? " मैने पूछा । 

चौकीदार।

" ओह हां " 

" उसकी आवाजें सुनकर हम सब चारों तरफ से आवाज की दिशा में दौड़े । " 

" सबसे पहले मैं गुल्लू के नजदीक पहुंचा । " आई साइट का चश्मा लगाये करीब तीस वर्षीय व्यक्ति ने कहा ---- " उस वक्त वह कालिज की दाहिनी बाउन्ट्री वाल के नजदीक एक पेड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था । मैंने उसे पकड़ा । पहले तो शायद मुझे ही हत्यारा समझकर हड़बड़ा गया , लेकिन पहचानते ही चीखने लगा --- ' उसे ' पकड़ो सर ! 


वह पेड़ पर चढ़कर चारदीवारी के उधर कूदा है । मैं पेड़ पर चढ़ा भी , मगर बाहर कोई नजर नहीं आया । तब तक काफी स्टूडेन्ट्स और प्रिंसिपल साहब भी वहां पहुंच चुके थे । 


मैंने पूछा ---- " आपकी तारीफ ? " 

" लविन्द्र भूषण ! कालिज में प्रोफेसर हूं । " कहने के साथ उसने अपने हाथ में मौजूद सुलगी हुई सिगरेट में कश लगाया । 

" गुल्लू ने हत्यारे के बारे में और क्या बताया ? " जैकी ने कहा ---- " वह सब गुल्लू के मुंह से ही सुनें तो बेहतर होगा । " मुझे जैकी की राय जंची । अतः चुप रहा । स्टॉफ रूम ज्यादा बड़ा नहीं था । चन्द्रमोहन की लाश के अलावा वहां केवल मैं , जैकी , हवलदार , प्रिंसिपल और लवीन्द्र ही थे । बाकी सब स्टाफ रूम के बाहर खड़े थे । लाश की तरफ बढ़ते हुए जैकी ने कहा- मेरे पहुंचने तक ये सब लोग गुल्लू की निशानदेही पर यहां पहुंच चुके थे । मैंने फौरन आपको फोन किया । आगे की कार्यवाही आपके सामने करना मुनासिब समझा । 


" थैंक्यू इंस्पेक्टर ! " मैंने उसका आभार व्यक्त किया । 

" प्लीज ! " उसने कहा ---- " किसी चीज को हाथ मत लगाइएगा । 


" मै थोड़ा खीझ उठा । बोला ---- " ऐसी बातें रोज लिखता हूं । " मेंरी खीझ पर जैकी मुस्कराया । लाशें देखना उसका रोज का काम था । कम से कम मै एक लाश की मौजूदगी में नहीं मुस्करा सकता था । लाश भी ऐसी जो लगातार मुझे धूरती महसूस हो रही थी । जहां बल्लम गड़ा था , यानी सीने से अभी तक खून की बूदें टपक रही थी । उसके कपड़ों को गंदा करता खून फर्श पर गिर रहा था । मैंने कहा ---- " क्या हत्यारे का पता इसने जरूरत से कुछ ज्यादा जल्दी नहीं लगा लिया था ? " लटके हुए रिसावर का निरीक्षण करता जैकी बोला ---- " मेरे ख्याल से जल्दबाजी के चक्कर में इसने कोई बेवकूफी की ! उसी वजह से हत्यारे की नजर में आ गया । " 

" क्यों न तलाशी । जाये ? 

मुमकिन है सुबुत इसकी जेब में हो । " 

" हुआ भी होगा तो हत्यारे ने निकाल लिया होगा। 


ये बात इस पर डिपेन्ड है कि गुल्लु यहाँ चीख के कितनी देर बाद पहुंचा ? 

" मैंने कहा ---- " यदि फौरन पहुंच गया होगा तो हत्यारे को इसकी तलाशी लेने का मौका नहीं मिला होगा । " 

" बात में दम है । " कहने के साथ जैकी अपना हाथ धीमे से चन्द्रमोहन की पेंट को बाई जेब में डाला । हाथ बाहर आया । उसमें सौ - सौ के बिल्कुल नये करेंसी नोटों के साथ एक कागज भी था ।


कागज पर खून लगा था । सूखा हुआ खून ! अर्थात् चन्द्रमोहन का खून नहीं था वह । कागज इस तरह गोला - सा बना हुआ था जैसे कसकर मुट्टी में भींचा गया हो । 


मेरा दिल धक्क - धक्क करने लगा । क्या यही वह सुबुत था जिसका जिक्र चन्द्रमोहन ने किया था ? क्या है कागज मे ? 


जैकी ने कागज खोला । यह सब प्रिंसिपल , हवलदार और लविन्द्र भी देख रहे थे । उत्सुकता से बंधे वे हमारे नजदीक आ चुके थे । 

कागज पर नजर पड़ते ही प्रिंसिपल कह उठा-- " अरे ये तो पेपर है । " 

" कैसा पेपर ? " जैकी ने पुछा। 

" आगामी एग्जाम में आने वाला इंग्लिश का पेपर । 

" मैंने पेपर को ध्यान से देखते हुए कहा ---- " पेपर ऑरिजनल नहीं , उसकी फोटो कॉपी है । " 

" लेकिन वे यहां आई कैसे ? " प्रिंसिपल की आवाज में रोष था । पेपर किसी कम्प्यूटराइज कागज की फोटो कापी थी । 

जैकी ने सवाल किया .... " इसे फिसने तैयार किया था ? " 

" हिमानी मैडम ने । " 

" चन्द्रमोहन की जेब में कैसे पहुंच गया ? " प्रिंसिपल झुंझला उठा ---- " यही तो हम पूछ रहे है ! " 

" मैं बताता हूं । " यह कहते वक्त जैकी के जबड़े भिंच गये ---- " वेद जी ,आपने कहा था ---- हत्यारे का उद्देश्य पता लग जाये तो आधा केस हल हो जाता है । हत्या का उद्देश्य आपके सामने हैं ! ये पेपर ! मुझे पूरा यकीन है ---- इस पर लगा खून सत्या का है । 

आपका सवाल था ---- साढ़े आठ से नौ बजे के बीच सत्या क्या करती रही ? जवाब ये पेपर दे रहा है ---- वह उसके पास थी जिसके पास यह था और वो ... वो है जिसने सत्या और चन्द्रमोहन की हत्या की ! आप तो कल्पनाएं करने में माहिर है ! जरा सोचिए ----- सत्या का जो करेक्टर हमारे सामने आया है , उसके मुताबिक यदि उसने यह पेपर किसी के पास देखा होगा तो क्या प्रतिक्रिया हुई होगी उसकी ? 


" सिद्धान्तों की पक्की सत्या भड़क उठी होगी । " यह सब कहने के लिए मुझे जरा भी सोचना नहीं पड़ा ---- " जो रैगिंग बरदास्त नहीं करती थी वह भला पेपर आऊट होना कैसे बरदाश्त कर सकती थी ? " 

" और वो जो भी या , मुमकिन है सत्या के सामने पहले गिड़गिड़ाया हो । रिक्वेस्ट की हो कि इस बारे में किसी से न कहे ! मगर मत्या भला इतनी बड़ी गलती माफ करने वाली कहां थीं ? 

" जैकी कहता चला गया ---- " यकीनन उसके बाद सत्या उसके हाथ में पेपर छीनकर भागी ! चाकु खोले हमलावर उसके पीछे दौडा । 


यह वारदात साढ़े आठ और नौ बजे के बीच का है । हमला करने का मौका हत्यारे को टैरेस पर मिला । तब तक पेपर सत्या की मुट्ठी में ही था । कम से कम पहले हमले के बाद ये उससे छीना गया । " 

" अगर पेपर पर लगा खुन सत्या का है तो यही कहानी कह रहा है । 

" मैं जैकी से सहमत होता बोला -..- " लेकिन चन्द्रमोहन के हाथ कहा से लगा ? " 

" वह पता लग जाये तो हत्यारा बेनकाब हो जायेगा । " 

"मतलब"

“ सीधी सी बात है । यही वह सुबुत है जिसके बारे में चन्द्रमोहन मुझे फोन पर बताना चाहता था । सुबूत अपने आप में हत्या का कारण है और चन्द्रमोहन जानता था कि ये उसे कहां से मिला ? इस बीच चन्द्रमोहन से कोई गलती हो गया । उसी का खामियाजा भुगतना पड़ा इसे । " 

" काश ! चन्द्रमोहन फोन पर एकाध लफ़्ज और बोल पाता । 

" प्रिंसिपल ने कहा ---- " हद है । पेपर आउट हो रहे थे । हिमानी मैडम से पुछा जाना चाहिए कि उसके द्वारा तैयार किया गया पेपर किसी और के हाथ में कैसे पहुंचा ? " 

" उससे पहले मुझे तलाशी की कार्यवाही पूरी करनी होगी । " कहने के साथ जैकी ने लाश की बाई जेब में हाथ डाला । वापस आया तो इस बार भी उसके हाथ में एक कागज था ।


सबके दिल बकायदा धक - धक की आवाज करके बजने लगे । जैकी ने कागज खोला , और ये सच है , उस क्षण मेरा दिल तक धड़कना भूलकर कागज को देखने लगा । 


टेढ़े - मेढ़े अक्षरों में लिखा था ---- CHALLENGE


पेपर के बारे में सुनते ही हिमानी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी । अपने होंठों पर जीभ फिराने के साथ प्रिंसिपल की तरफ देखती बोली -- " मैं इस बारे में क्या कह सकती हूं , सर ? मैंने तो पेपर तैयार करते ही आपको सौंप दिया था । " 

" और हमने दूसरे पेपर्स के साथ यूनिवर्सिटी भेज दिया । " 

" यूनिवर्सिटी ? " मैंने पूछा । 

" हां ! " बंसल ने कहा ---- " अकेले इस कॉलिज के लिए तैयार थोड़ी हुआ था पेपर ? यूनिवर्सिटी से जुड़े सभी कालेजो के लिए " यानी काफी मोटा गेम था ये ? " जैकी ने कहा ---- " इसे आऊट करने वाला काफी मोटी रकम कमा सकता था ? " 

" जी हां !


मैंने पूछा ---- " दूसरे पेपर्स से मतलब ? " " 


देवनागरी लिपि का प्रश्नपत्र मैंने और रसायन शास्त्र का लविन्द्र भूपण ने बनाया था । " नजदीक खड़े एरिक डिसूजा ने बताया ---- " शेष प्रश्न पत्र सम्भवतः अन्य विद्यालयों के अध्यापकों द्वारा तैयार किये गये होंगे । " 

" मगर आऊट यही पेपर क्यों हुआ ? " मैंने सवाल उठाया । 

" मैं इस बारे में कुछ नहीं जानती सर ! " मारे भय के मैंने हिमानी की आवाज में कंपकपाहट महसूस की ---- " वैसे भी मैंने पेपर तैयार करके अपनी हैडराइटिंग में दिया था , ये किसी कम्प्यूटर पर कम्पोज हुआ है ! 

" जैकी ने बंसल से पूछा ---- " आपने पेपर कम्पोज कराफर यूनिवर्सिटी भेजे थे या .... " 


ज्यों के त्यो । हैंडराइटिंग में । 


" मैंने नजदीक खड़े गुल्लू से सवाल किया ---- " जब तुमने चन्द्रमोहन की चीख सुनी , उस वक्त कहां थे ? " 

" मेन गेट पर स्टैण्ड था सर । " उसने हिन्दी में अंग्रेजी बोली । 

जैकी ने अक्खड़ स्वर में पृष्ठा --- " पूरी बात बताओ ! " 

" हम अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद थे सर ! क्लाइमेट में चन्द्रमोहन बाबा की चीख उभरी । हमने इधर की तरफ रन किया । आप देख ही रहे हैं । मून निकला हुआ है । चांदनी इसी तरह बिखरी हुई थी । हमने दूर से देखा । वन मैन स्टाफ रूम के गेट से निकलकर भागा । " 

" क्या पहन रखा था उसने ? " 

" ओवरकोट । जूते । और शायद पतलून भी थी , हेलमेट भी पहन रखा था । 

उसे हमने ललकारा ! वह दुम दबाकर भागा । हम पीछे लौटे । साथ ही चीखे भी ---- पकड़ो ! पकडो । हत्यारा भाग रहा है । भागने के मामले में हम फस्ट आये । उस पेड़ तक पहुचते - पहुंचते दबोच ही लिया उसे मगर , पावरफुल वह ज्यादा था । 

उसके एक ही झटके में हम फिरकनी की तरह घूमकर दूर जा गिरे । फुर्ती से उठे । वह पेड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था । हमने फिर झपटकर दबोचने की कोशिश का ! उसने बुट की ठोकर हमारी छाती पर मारी । हम फिर चारों खाने चित्त ! जब तक उठे , तब तक यह पेड़ पर चढ़कर चारदीवारी के उपर जम्प मार चुका था । उस वक्त हम पेड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे जब लविन्द्र सर पहुंचे । ये पेड़ पर चढ़े भी परन्तु वह नाइन टू इलेविन हो चुका था । " 


"कैसा था वह "

" कैसा मतलब ? " " मोटा या पतला ? गुट्टा या लम्बा ? " 

" न मोटा । न पतला । न गुटुटा , न लम्बा । बीच बाला था । 

" उसके बाद हम चन्द्रमोहन के कमरे में पहुंचे । वहां मौजूद उसकी नौट बुक देखी । जिस कागज पर CHALLENGE लिखा था , उसको राइटिंग नोट बुक्स की राइंटिग से मिलाई । 


मेरे मुंह से बरबस निकल पड़ा ---- " ये राइटिंग तो चन्द्रमोहन की है । " “ यानी इस कागज पर CHALLENGE लिखकर उसने खुद जेब में रखा ?      


मगर क्यो ? " " इस क्यों का जवाब फिलहाल न मेरे पास है वेद जी , न आपके पास । " 

" पहेली और उलझती जा रही है । पहले सत्या उस अवस्था में CHALLENGE लिखती है जिस अवस्था में किसी भी व्यक्ति को हत्यारे का नाम या हत्या की वजह लिखनी चाहिए । फिर यही शब्द चन्द्रमोहन लिखकर जेब में डाल लेता है । क्या सत्या की तरह वह भी जान गया था कि वह मरने वाला है ? " 

" कम से कम फोन पर बात करने तक नहीं लगता । " कहने के बाद जैको कमरे की तलाशी में जुट गया । अभी तक मै एक दीवार के सहारे खड़ा था । वहां से हटकर चन्द्रमोहन की राइटिंग टेबल की तरफ बढ़ा ही था कि राजेश की चीख ने वातावरण को झकझोर दिया ---- " सर ! ये क्या ? 

" सभी चौंककर उसकी तरफ पलटे । मैं भी । 


चेहरे पर खौफ के साये लिए वह मुझ ही से कह रहा था ---- " स .... सर । आपकी पीठ पर । 

" मैं उछल पड़ा .--- " क्या है मेरी पीठ पर ? " 


इस वक्त मेरी पीठ उसकी आंखों के सामने नहीं थी । हां , जैकी के सामने जरुर थी , वह मेरे पीछे था । उसने झपटकर मेरी पीठ से कुछ छुड़ाया । मैं बौखलाकर उसकी तरफ घूमा । उसके हाथ में एक बड़ा सा कागज था । कागज पर कुछ लिखा था । चेहरे पर आश्चर्य का सागर लिए उसने मुझसे पूछा ---- " ये आपकी पीठ पर किसने लगा दिया ?

" मारे उत्तेजना के जैसे मेरा बुरा हाल था । यह कहता हुआ एक तरह से जैकी के हाथ में मौजूद कागज पर झपट ही जो पड़ा कि ---- " क्या लिखा है इस पर ? " पलक झपकते ही कागज़ मेरे हाथ में था और में फटी फटी आँखों से कम्प्यूटर पर कम्पोज किये गये उन मोटे - मोटे हरफो को देख रहा था , जिनके द्वारा लिखा गया था ---- " खेल अभी शुरू हुआ है ---- मि.चैलेंज " 



" लेकिन किसने ? " हकबकाई मधु ने पूछा ---- " यह कागज किसने लगाया आपकी पीठ पर ? " 

" कुछ कह नहीं सकता । तब तक मैं वहां मौजूद हर शख्स की रेंज में आ चुका था । 


ये तय है मधु हत्यारा उसी कैम्पस में है" सवाल ये है ---- उसने कागज आप ही की पीठ पर क्यों लगाया ? " 

" फिलहाल हमारे पास किसी सवाल का जवाब नहीं है । " 

" पता नहीं क्यों ---- मुझे तो डर लगने लगा है । खेल अभी शुरू हुआ है ' का मतलब साफ है । कॉलिज में और मर्डर होंगे ? " 

" स्लोगन के नीचे ' मि ० चैलेंज ' लिखा है । यानी हत्यारा खुद को ' मि ० चैलेंज ' कह रहा है । मरने वाले भी यही शब्द लिखकर मर रहे हैं । पेंच कुछ समझ में नहीं आ रहा । " " मुझे यह झमेला खतरनाक प्वाइंट की तरफ बढ़ता नजर आ रहा है । 


" मधु ने कहा ---- " आप विभा से कॉन्टैक्ट क्यों नहीं करते ? " " वि - विमा ? " बिजली सी गिरी मेरे दिमाग पर । हमेशा की तरह यह नाम जुबां पर आते ही दिल जोर - जोर से धड़कने लगा।


दिल की गहराइयों से एक मीठी - सी कसक उठी । यह वह दर्द था जो हर शख्स को बड़ा प्यारा लगता है । हालांहि मेरे वे पाठक विभा के नाम से अच्छी तरह परिचित है जिन्होंने ' साढ़े तीन घंटे ' और ' बीवी का नशा ' नामक उपन्यास पड़े हैं । परन्तु उनके लिए संक्षेप में विभा के बारे में बताना जरूरी है जिन्होंने ये उपन्यास नहीं पड़े । वह एल.एल.बी. में मेरे साथ पड़ी थी । मैंने उससे मुहब्बत की थी ---- एकतरफा मुहब्बत ! तीन साल के लम्बे धैर्य के बाद जब मैंने विभा से कहा , ' मैं तुमसे प्यार करता हूँ तो उसने मुझे कितने सुन्दर शब्दों में समझाया था कि मैं कितना गलत करता हूँ ! उसने साफ कहा था ---- ' मैंने तुम्हें एक अच्छे दोस्त के अलावा कभी किसी नजर से नहीं देखा , और वेद , तुम भी दोस्ती के पवित्र रिश्ते को मुहब्बत की स्याही से कलंकित मत करो । यह भावना तुम्हे भटका देगी । तुम्हें लेखक नहीं बनना बल्कि हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा लेखक बनना है । 

' उसकी शुभकामनाएं आज फल रही थीं । कॉलिज लाइफ के बाद में अपने लेखन में डूब गया । मधु से शादी हो गयी । सौभाग्य से ऐसी पत्नी मिली जो मेरे अंदर के लेखक को कभी असावधान नहीं होने देती । मैं और मधु मैरिज एनीवर्सरी मनाने जिन्दलपुरम गये । यहां विभा से मुलाकात हुई । यह किस्सा मैंने ' साढ़े तीन घंटे ' नामक उपन्यास में लिखा है । ' उसकी शादी जिन्दलपुरम के मालिक अनूप जिन्दल से हुई थी । इतने दिन बाद एक दूसरे से मिलकर हम बहुत खुश हुए मगर ये खुशी बहुत छोटी साबित हुई । बड़ी ही रहस्यमय परिस्थितियों में अनूप ने आत्महत्या कर ली । विधवा लिबास में जब विभा सामने आई तो मेरा दिल हाहाकार कर उठा । उसके बाद जिस ढंग से उसने अपने पति की मौत की इन्वेस्टिगेशन की , उसने मुझे और मधू को चमत्कृत कर दिया । 


बेहद ब्रिलियंट है वह। उलझी हुई गुत्थियों और पहेलियों को हल करने में तो उसे महारथ हासिल है । उसने अपने पति के हत्यारों को ऐसी सजा दी जिसके बारे में सोचकर आज भी मेरे तिरपन कांप जाते हैं । उसके बहुत दिन बाद मेरे पास एक दोस्त आया । संजय भारद्वाज ! बड़ी अनोखी समस्या थी उसकी । ऐसी जैसी न उससे पहले किसी के सामने आई थी , न बाद में आई । अपनी बीवी को नेकलेस पहनाने की खातिर उसने एक मर्डर किया था । परफैक्ट मर्डर कि उसे कोई पकड़ नहीं सकता था । उस मर्डर के इल्जाम में उसकी बीवी पकड़ी गयी । उसे बीवी को बचाने की खातिर कानून को बताना था कि हत्या उसने की है मगर खुद उसी के पास इस बात का कोई सुबूत नहीं था । मैं उसे लेकर विभा के , पास पहुंचा । विभा ने कहा ----मै एक बहुत बड़े घराने की बहू हूं वेद । लम्बा - चौड़ा विजनेस मुझे ही देखना पड़ता है । पेशेवर इन्वेस्टिगेटर नही हूँ मैं जो किसी भी केस को साल्व करती फिरूं ! वह मामला मेरे पति का था । तब संजय के बार - बार गिड़गिड़ाने और मेरी रिक्वेस्ट पर वह तैयार हुई और उस वक्त खुद संजय भी हैरत से उछल पड़ा जब विभा ने साबित किया कि असल में वह हत्या संजय ने की ही नहीं थी ।


" कहां खो गये जनाब ? " मधु ने मेरे विचारों के शान्त सागर में अपने वाक्य का कंकर फेका । " ओह "चौककर मै वर्तमान में वापस आया।




मधु ने मुझे तिरछी नजर से देखते हुए छेड़ा ---- " क्या बात है , विभा का नाम आते ही किसी और दुनिया में पहुंच गये आप ? 


मै ये फरमा रही दी हुजूर , इस केस की उलझी हुई गुत्थियों को केवल बिभा बहन सुलझा सकती हैं । " 

" सुलझा तो सकती है" लेकिन ? " ' 

" वह नहीं आयेगी । " 

" क्यों ? " 

" क्योंकि .... खैर , छोड़ो मधु । ये मामला मुझे ही हल करना होगा । जहां इतने सारे पेंच हैं , वहां एक सवाल ये भी है कि इतने दबाब के बावजूद प्रिंसिपल ने चन्द्रमोहन का ऐस्ट्रोकेशन क्यों नहीं किया ? शायद इसी सवाल के पीछे हत्यारा छुपा हो । जवाब केवल प्रिंसिपल दे सकता है । कल उससे मिलना पड़ेगा । " यह निश्चय मैंने कर तो लिया परन्तु उस वक्त सोच तक नही सकता धा कि ---- इस बार कालिज में इतनी हैरतअंगेज घटनाओं से गुजरना होगा । 



मै एक बार फिर कॉलेज में मौजूद था और राजेश के ग्रुप से बातचीत हो रही थी ।

एकता ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि सब बुरी तरह चौंके । अचानक गर्ल्स हॉस्टल की तरफ से लड़कियों के जोर - जोर से चीखने चिल्लाने की आवाजें आने लगी थीं । हम उधर भागे । हॉस्टल में लड़किया इस तरह चीख रही थीं जैसे आफत आ गयी हो ! कई लड़कियां चीखती चिल्लाती बाहर की तरफ दौड़ती नजर आई । राजेश ने उनमें से एक को जबरदस्ती रोकते हुए पूछा ---- " रवीना ! रवीना ! क्या हुआ ? " 

" मुझे नहीं पता ! " कहने के साथ रवीना उसके बंधन से निकलकर भाग गई । हम हॉस्टल के फर्स्ट फ्लोर की गैलरी में पहुंच चुके थे । चीखों के साथ भागती - दौड़ती लड़कियों के चेहरों पर दहशत सवार थी । उनके अस्त - व्यस्त कपड़े बता रहे थे , कि जो जिस हाल में थी , उसी में भाग ली थी । 

अल्लारक्खा ने एक लड़की को रोका । पुछा -.- " आखिर हुआ क्या है ? कुछ बोलो तो सही " ह - हिमानी मैडम ! हिमानी मैडम ! " " क्या हुआ हिमानी को ? 


" आशंका के मारे मैं दहाड़ उठा । एक दूसरी लड़की ने खुद हमारे नजदीक रुकते हुए कहा -- " वे अपने कमरे में चीख रही हैं .... " 

" मगर क्यों ? " राजेश ने पूछा । 

" प - पता नहीं ! हम तो उनकी चीखें सुनते ही ... उसका बाक्य बीच में छोड़कर तीर की तरह भागा राजेश । मैं लपका । बल्फि सभी उसके पीछे थे । हिमानी के रूम के बाहर तक पहुंचते - पहुंचते मैंने देखा ---- कई लड़कों के हाथों में हॉकी , क्रिकेट का बैट , विकेट और मोटर साइकिल की चैन जैसे हथियार नजर आने लगे थे । 


कमरे के अंदर से बराबर हिमानी के चीखने की आवाज आ रही थी .- " बचाओ । बचाओ । बचाओ । " लड़कों ने झपटकर कमरे का दरवाजा खोलना चाहा । वह अंदर से बंद था । " दरवाजा तोड़ दो ! " राजेश चीखा । जवान और हट्टे - कट्टे लड़के कहर बनकर दरवाजे पर झपटे । यो तीन हमलों में ही दरवाजा ' भड़ाक ' की जोरदार आवाज के साथ कमरे के अंदर जा गिरा । हथियार लिए लड़के बाढ़ के पानी की तरह कमरे में घुसे । उस वक्त पर दुश्मन सामने होता तो मुझे यकीन है वे लड़के उसकी हड्डियों का चूरा बना देते । युवाशक्ति की शक्ति मै अपनी आंखों से देख रहा था । परन्तु ---- दुश्मन सामने नहीं था । कमरा खाली था । अटैच्ड बाथरूम का दरवाजा अंदर की तरफ से जोर - जोर से भड़भड़ाया जा रहा था । रोती हुई हिमानी की चीखें सुनाई दे रही धी --- " बचाओ ! बचाओ ! खोलो । " एक लड़के ने लपक कर बाहर से बंद दरवाजा खोल दिया । अर्थ - नग्नावस्था में हिमानी नजर आई । वह बुरी तरह से रो रही थी । जिस्म पर सिर्फ एक बड़ा सा टॉवल था । हम सबको देखकर वह वहीं , एक दीवार के सहारे बैठकर रोने लगी । अपना चेहरा घुटनों में छुपा लिया उसने । कई लड़को ने बाथरूम में घुसकर देखा ---- कोई नहीं था वहां ।




मैंने पूछा ---- " क्या हुआ मैडम ? वात क्या है ? " " किसी ने मुझे बाथरूम में बंद कर दिया था । " होठों पर जीभ फिराते हुए उसने कहा ---- " मैं बहुत डर गयी थी । इतनी देर से चीख रही हूं । किसी ने दरवाजा नहीं खोला । " 


" लेकिन आपको बंद किया किसने ? " 

" म - मुझे नहीं पता ! नहाने के बाद जब बाहर निकलना चाहा तो दरवाजा बाहर से बंद था । मैं बौखला गयी । दरवाजा पीटा । चीखी ! मगर किसी ने नहीं खोला । लगा ---- इस बार मेरा ही नम्बर है । पता नहीं कहां मर गये थे सब लोग ? 

" राजेश ने पूछा ---- " कमरे का दरवाजा अंदर से आपने बंद किया था ? " 

" नहीं " 

मैंने सारे कमरे में नजर घुमाई । कहीं कोई ऐसा चिन्ह नहीं था जिससे लगे कि किसी वस्तु के साथ छेड़खानी की गई है । ड्रेसिंग टेवल पर मौजूद मेकअप का छोटा मोटा सामान तक पूरे सलीके से रखा था । मै एक खुली खिड़की के नजदीक पहुंचा । उसके पास झांका । यह सर्विस लेन थी । बोला --- " वह जो भी था ! शरारत करके इधर से भागा।



" ये शरारत नहीं थी सर ! " अल्लारखा ने कहा ---- " ऐसा नहीं कि इस कॉलिज में शरारतें नहीं होती । एक से एक बड़ी शरारत की है हमने लेकिन घटिया शरारत नहीं की और तीन दिन से तो शायद ही कोई शरारत के मूड में हो । ये हरकत उन्हीं वारदातों की कड़ी है ---- जो कालिज में सत्या मैडम की हत्या से शुरू हुई ! " 


" लेकिन ! " एक स्टूडेन्ट ने कहा ---- " मैडम को बाथरूम में बंद करने के अलावा कोई नुकसान नहीं पहुंचाया उसने ! इस हरकत का मतलब क्या हुआ ? " 

" आतंक फैलाना ! " मै बोला ---- " दहशत का माहौल क्रियेट करना । " 

" इससे उसे फायदा ? " 

" फिलहाल वही जाने । " तब तक काफी लड़कियां कमरे में घुस आई थी । मैंने लड़कों को बाहर निकलने की सलाह दी ताकि हिमानी कपड़े पहन सके । गैलरी में मेरे साथ - साथ चल रहे राजेश ने कहा ---- " गनीमत है सर । मैं तो डर ही गया था ! लगा था ---- की हत्यारे ने एक और हत्या तो नहीं कर दी । " 


पहला ख्याल खुद मेरे दिमाग में भी यही आया था । " तभी सामने से दीपा आती नजर आई । उसने राजेश से पूछा

तुम कहाँ थी।

-- " हुआ क्या था ? " “ बाहर गयी थी । ग्रेड लाने " 

राजेश उसे घटना की डिटेल बताने लगा । तभी , तेज चाल से चलता लविन्द्र भूषण मेरे नजदीक पहुंचा । उसके हाथों में सुलगी हुई सिगरेट थी । हकबकाया सा नजर आ रहा था वह । जो सवाल दीपा ने किया था , वही उसने भी किया और मैंने राजेश की तरह स्वाभाविक सवाल किया ---- " आप कहां थे ? " 

" ग्राउन्ड में पिच ठीक कर रहा था । वहां पहुंचकर कुछ लड़कों ने बताया .... 

" इतना हंगामा मचा ! वहाँ आबाजें नहीं पहुंचीं ? " 

" नहीं । 

" मैंने उसे संक्षेप में घटना के बारे में बता दिया । उसने पृछा ---- " अब कहां है हिमानी मैडम ? " 

" अपने रूम में । " वह बगैर कहे हिमानी के कमरे की तरफ गया । राजेश से बात करती दीपा यह कहकर उधर गयी -- ' मैडम से मिलकर आती हूँ । पुनः राजेश के साथ चलते मैंने कहा ---- " एक सवाल कैंटीन में ही तुमसे पूछना चाहता था । फिर जाने क्या सोचकर टाल गया । दीपा को देखकर फिर सवाल दिमाग कौंधने लगा है । " 

" ऐसा क्या सवाल है ?



" क्या सत्या को तुम्हारे और दीपा के इलू - ईलू का इल्म था ? " 

"था"

" कभी कुछ ऑब्जेक्शन किया ? " 

" नहीं । " 

" क्यों ? " 

" मतलब ? " 

" क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है , जो सत्या स्टूडेन्ट्स की रैगिंग तक को पसंद नहीं करती थी , उसने तुम्हारे अफेयर पर कभी एतराज नहीं किया ? 

" राजेश ने जबाब नहीं दिया मगर उसके होठों पर हल्की सी रहस्यमय मुस्कान उभर आई । उस मुस्कान को लक्ष्य करके मैंने कहा ---- " जवाब नहीं दिया तुमने ? " 

" उनका भी चक्कर चल रहा था । " 

" सत्या का ? "मै चौंका। 

" क्यों ? 

टीचर्स के सीने में क्या दिल नहीं होता ? " 

" किससे ? 

" जिनसे कुछ देर पहले आप बात कर रहे । " 

" ल - लबिन्द्र से ? "

हाँ।


हंगामा शान्त होने पर मैं लविन्द्र के कमरे में पहुंचा । उसका कमरा ब्वायज हॉस्टल में था । कमरे में घुसते ही सिगरेट के धुवें की तीब्र दुर्गन्ध मेरे नथुनों में घुसी । बायें हाथ की अंगुलियों के बीच सुलगी हुई सिगरेट लिए वह उस वक्त राइटिंग टेबल के साथ वाली कुर्सी पर बैठा ब्राऊन कलर वाली एक डायरी पड़ रहा था । मुझे देखकर चौंका । सिगरेट हाथ से कुचली । मुझे कुर्सी पर वैठाया और खुद बेड पर बैठ गया । डायरी मेज पर पड़ी रह गयी थी । मैंने अपना हाथ उस पर रखने के साथ बातें शुरू की ---- " चन्द्रमोहन द्वारा चिपकाये गये पोस्टर्स के बाद हंगामें को लेकर सत्या जब प्रिंसिपल के कमरे में गई , तब आप , हिमानी और ऐरिक भी साथ ये न ? " 

" हां । " लविन्द्र ने एक ठंडी सांस ली -.- " मैं वहीं था । " 

" मैं वहां हुई बातें जानना चाहता हूं । " " काफी जबरदस्त तकरार हुई प्रिंसिपल से ! " उसने कहना शुरू किया ---- " हम सबकी एक ही मांग थी ---- चन्द्रमोहन को अब एक पल भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता । उसने सारे कॉलिज का वातावरण बिगाड़ रखा है । फौरन रेस्ट्रीकेशन कीजिए उसका ।



मैंने डायरी उठाते हुए पूछा ---- " प्रिंसिपल की प्रतिक्रिया ? " 

" बर्फ की तरह ठंडा पड़ा रहा वो आदमी ! कोई फर्क नहीं पड़ा । उल्टा मुस्कराने लगा । मुस्कान ऐसी थी जैसे हमें मूर्ख कह रहा हो।

" उसके इस व्यवहार की आप क्या वजह समझते हैं ? " 

मैंने डायरी अपने दोनों हाथों के बीच लेकर घुमानी शुरू कर दी थी । लविन्द्र थोड़ा उत्तेजित नजर आने लगा । शायद इसीलिए मेरी हरकतों पर ध्यान नहीं दे पाया । कहता चला गया वह ---- कालिज में पालिटिक्स चलाये रखना विवाद खड़ा करना ! चन्द्रमोहन को उसकी सै थी ताकि कालिज में उसकी धाक बनी रहे । उस आवारा लड़के को बार - बार माफ करने के पीछे और हो भी क्या सकता है ? मेरे ख्याल से यह आदमी एक पल के लिए भी प्रिंसिपल की कुर्सी पर बैठने के काबिल नहीं है । उस दिन तो सारी हदें टूट गयी थी ---- इसके बावजूद कोई एक्शन नहीं लिया गया । 


" मेरा पक्का यकीन है कोई भी आदमी सामान्य अवस्था में अपने असली रूप में नहीं होता । असली रूप में तब आता है जब उसे गुस्सा दिला दिया जाये । लविंद्र को उसी अवस्था में लाने की गर्ज से मैंने कहा --.- " ये तो गलत है । मैंने सुना है ---- एक्शन तो उसके खिलाफ लिया था प्रिंसीपल ने । ' 

" क्या एक्शन लिया था ? " वह मुझ ही पर भड़क उठा । मानो मै ही प्रिंसिपल था । 

उसे और भड़काने के लिए मैंने कहा ---- " चन्द्रमोहन को हफ्ते भर के लिए कालिज से .... 


" ये कोई एक्शन था ? " लविन्द्र का सम्पूर्ण चेहरा भभक उठा ---- " यही सब सुनकर तो मारे गुस्से के सत्या का बुरा हाल हो गया था । उसने कहा ---- ' यानी हफ्ते भर बाद वो गंदगी फिर कालिज में होगी ! ये कोई सजा है ? हरगिज नहीं । ऐसा नहीं होने दूंगी बंसल साहब ! ये सिर्फ कॉलिन की इज्जत का नहीं , दूसरे सभी स्टूडेन्ट्स के भविष्य का सवाल है । दीपा ने सुसाइड कर ली होती तो क्या होता ? स्टूडेन्ट्स प्रोफेसर्स पर चाकू खोलने लगे तो कैसे होगी पढ़ाई ? कहाँ रहेगा अनुशासन ? कैसे चलेगा कालेज ? " 


" बंसल साहब का जवाब ? " मैंने डायरी बीच - बीच में से खोलकर देखनी शुरू कर दी थी । " 


" सत्या ! बेहतर है ---- हम तब बात करे जब आप होश में हों । ' सत्या यह कहती हुई तमतमा कर बाहरी चली गयी कि ---- ' चन्द्रमोहन के रेस्ट्रीकेशन से कम पर अब कोई फैसला नहीं हो सकता ।

' मै , हिमानी और एरिक भी उसके पीछे बाहर आ गये थे । " 


इस बार मैं डायरी में ऐसा खोया कि अगला सवाल करना भूल गया । मुझे डायरी में मग्न देखकर लविन्द्र मानो पहली बार वर्तमान में आया । झटका सा लगा उसे । लपककर मेरे हाथ से डायरी छीनता हुआ बोला - " माफ करें ! ये मेरी पर्सनल डायरी है । " मैंने अपने होठों पर मुस्कान बिखेरी । देख चुका था डायरी में गजल और शेर लिखे थे । बोला ---- “ आप तो मेरी ही लाइन के निकले लविन्द्र जी ! " 


" मैं समझा नहीं । " 

" मैं लेखक ! आप शायर । " 

" सॉरी ! मैं जो हूँ ---- अपने लिए हूं । किसी और के लिए नहीं लिखता ।


" शायद इसीलिए चाहते हैं इसे कोई और न पढ़े । खैर , माफ कीजिएगा -- थी तो धृष्टता लेकिन चंद पंक्तियों पर नजर पड़ ही गयी और में दावे से कहता हूं आप एक अच्छे रोमांटिक शायर है । 

' वह चुप रहा । 

मैंने पूछा---- " शादी हो गया ? " 

" नहीं ! " उससे संक्षिप्त उत्तर दिया । 

" कोई खास वजह ? " 

" ऐसी कोई खास भी नहीं । " उसने बात टालनी चाही । 

मैंने कुरेदा ---- " जिसे चाहते थे , शायद मिल न सकी । " 

" क्या इन सवालों का सम्बन्ध कॉलिज में घटी घटनाओं में है ? " वह रोष में नजर आया । 

मैंने कहा ---- " यकीनन ! " 

" मै नहीं समझ सका कि .... 

" सोचने वाली बात है ---- आप सत्या से अपने सम्बन्ध क्यों छुपा रहे हैं ? 

" हैरत “ से - सत्या से ? " हलक से निकली चीख जैसी आवाज के साथ वह उठ खड़ा हुआ । 

चेहरे पर असीम आश्चर्य लिए । देखता बोला ---- " ये क्या बात कही आपने ? " 

" कुछ गलत कर गया क्या ? " 

" प्लीज ! जो मैं पूछ रहा हूँ उसका जवाब दीजिए । ये बात आपसे किसने कही ? " 

" एक लड़के ने । " 

" नाम ? " 

" ताकि आप उसकी चमड़ी उघेड़ सकें ? 

नहीं ! 

मैं नहीं बता सकता । " 

" वादा करता हूँ मैं उस लड़के को कुछ नहीं कहूंगा । " 

" फिर नाम जानकर क्या करेंगे ? " 

" केवल इतना पूछना चाहता हूं ये बात उसे कैसे पता लगी ? किस बेस पर कही उसने ? " 


इश्क , मुश्क और खांसी छुपाये नहीं छुप सकते । " " म - मगर ! " उसकी आवाज में जज्बातों की ज्यादती का कम्पन था --- " इश्क था ही कहां ? जो था नहीं वह किसी लड़के ने कैसे कह दिया ? " 

" आप झूठ बोल रहे हैं । डायरी में कई जगह सत्या का नाम मैं खुद पढ़ चुका हूं । 

" डायरी मेरी है ! सिर्फ मेरी । सत्या ने इसे कभी नही देखा है।



" शायद इसीलिए चाहते हैं इसे कोई और न पढ़े । खैर , माफ कीजिएगा -- थी तो धृष्टता लेकिन चंद पंक्तियों पर नजर पड़ ही गयी और में दावे से कहता हूं आप एक अच्छे रोमांटिक शायर है । 

' वह चुप रहा । 

मैंने पूछा---- " शादी हो गया ? " 

" नहीं ! " उससे संक्षिप्त उत्तर दिया । 

" कोई खास वजह ? " 

" ऐसी कोई खास भी नहीं । " उसने बात टालनी चाही । 

मैंने कुरेदा ---- " जिसे चाहते थे , शायद मिल न सकी । " 

" क्या इन सवालों का सम्बन्ध कॉलिज में घटी घटनाओं में है ? " वह रोष में नजर आया । 

मैंने कहा ---- " यकीनन ! " 

" मै नहीं समझ सका कि .... 

" सोचने वाली बात है ---- आप सत्या से अपने सम्बन्ध क्यों छुपा रहे हैं ? 

" हैरत “ से - सत्या से ? " हलक से निकली चीख जैसी आवाज के साथ वह उठ खड़ा हुआ । 

चेहरे पर असीम आश्चर्य लिए । देखता बोला ---- " ये क्या बात कही आपने ? " 

" कुछ गलत कर गया क्या ? " 

" प्लीज ! जो मैं पूछ रहा हूँ उसका जवाब दीजिए । ये बात आपसे किसने कही ? " 

" एक लड़के ने । " 

" नाम ? " 

" ताकि आप उसकी चमड़ी उघेड़ सकें ? 

नहीं ! 

मैं नहीं बता सकता । " 

" वादा करता हूँ मैं उस लड़के को कुछ नहीं कहूंगा । " 

" फिर नाम जानकर क्या करेंगे ? " 

" केवल इतना पूछना चाहता हूं ये बात उसे कैसे पता लगी ? किस बेस पर कही उसने ? " 


इश्क , मुश्क और खांसी छुपाये नहीं छुप सकते । " " म - मगर ! " उसकी आवाज में जज्बातों की ज्यादती का कम्पन था --- " इश्क था ही कहां ? जो था नहीं वह किसी लड़के ने कैसे कह दिया ? " 

" आप झूठ बोल रहे हैं । डायरी में कई जगह सत्या का नाम मैं खुद पढ़ चुका हूं । 

" डायरी मेरी है ! सिर्फ मेरी । सत्या ने इसे कभी नही देखा है।


मैंने संक्षेप में मुकम्मल घटना सुना दी । वह हैरान और फिक्रमद नजर आने लगा । पूछने लगा इस घटना का आखिर मतलब क्या है ? मैंने अपने मतलब की बात पर आते हुए कहा --- " प्रिंसिपल साहब , आप मुझसे काफी सवाल पूछ चुके ! मैं आपसे सिर्फ एक सवाल का जबाव चाहता हूं । " “ जरूर पूछिये । " बंसल ने विनामतापूर्वक कहा । 

" इतने दबाव के बावजूद आपने चन्द्रमोहन का रेस्ट्रीफेशन क्यों नहीं किया ? " जितना सीधा मेरा सवाल था , बंसल ने जवाब भी उतना ही सीधा और सपाट दिया ---- " मुझे प्रिंसिपलशिप अपने विवेक से चलानी है , लोगों के मूर्खतापूर्ण दबाब से नहीं । " 

" सत्या की हत्या से जो कुछ एक दिन पहले हुआ , उसके बाद कुछ बचता नहीं था । किसी भी कालिज के लिए वह शर्म की बात थी । " 


" आप वही भाषा बोल रहे हैं जो सत्या बोला करती थी । " यह कहने के साथ वह सोफे से उठा । चेहरे पर गम्भीरता विराजमान थी । चहलकदमी शुरू की । मैंने एक बार फिर उसकी चाल में लंगड़ाहट महसूस की लेकिन कुछ बोला नहीं । मुझे उसके बोलने का इंतजार था और वह बोला --- " दरअसल स्टूडेन्ट्स को हैडिल करने की नीति को लेकर हमारे और सत्या के वीच गहरा मतभेद था । यह मतभेद पहली बार तब सामने आया जब सत्या चन्द्रमोहन को स्मैक के साथ हमारे पास लाई ।



" क्या उस घटना को हल्के ढंग से लेना उचित दा ? " 

" हाँ ! " मेरी तरफ पलटले हुए बंसल ने पूरी दृठता के साथ कहा ---- " एकदम उचित था । 

"कैसे भला ? " मेरी आवाज में व्यंग्य उभर आया । 

" ये जनरेशन वो नहीं है जो मां - बाप और गुरुजनों के चरण स्पर्श करके दिनचर्या शुरू करती थी । न इनकी नजर में आज गुरुओं का वह आदर है जो आपके या मेरे युग में होता था । न इनके मां - बाप की नजरों में वो जमाना था जब गुरु शिष्य को अधमरा करके भी डाल देता था तो मां - बाप यह पूछने नहीं आते थे कि बच्चे ने किया क्या था ? मगर आज हाथ लगाकर तो दिखाइए स्टूडेन्ट को । अगले दिन उसके पेरेन्ट्स आकर आपको समझायेंगे ---- ये बच्चे को पढ़ने भेजते हैं , पिटने के लिए नहीं । 

कलेजे पर हाथ रखकर जवाब दीजिए लेखक महोदय , हमने कुछ गलत कहा क्या ? 

" मुझे कहना पड़ा ---- " बात तो ठीक है । "



" यह हालत स्कुलों की है जहां छोटे - छोटे बच्चे पढ़ते हैं । नतीजा ? टीचर्स ने बच्चों के साथ सख्ती बन्द कर दी । उस परिवेश में हुए बच्चे कालिज में आते हैं । क्या वे हमारी डांट - डपट । सख्ती और मार - पिटाई झेल सकेंगे ? " 

" नहीं ! " मेरे मुंह से बरबस निकला । 

" बस हम सत्या को हमेशा यही समझाते थे । 


उस दिन भी जब चन्द्रमोहन को यह वादा लेकर छोड़ दिया कि अब वह कभी स्मैक नहीं लेगा तो सत्या भड़क उठी ! और हमने कहा ' सत्या , हम जानते हैं वह आगे भी स्मैक पियेगा । हम और तुम उसे नहीं रोक सकते । यह स्कूल में गुरुजनों की बात न सुनने की तालीम लेकर आया है । ये नई जनरेशन है । खुद पर किसी की सख्ती की ती आदत ही नहीं पड़ा इसपर । हम मजबूर हैं । इसलिए देखा और अनदेखा कर दो ! जैसे हमने किया है । जानती हो क्यों ... क्योंकि वह बदतमाज लड़का है । उसके साथ यही पालिसी ठीक है । प्यार और नर्मी इन दोनों चीजों की उसे सख्त जरूरत है । याद रखो ---- डांट - डपट , धमकी और सख्ती उसे ज्यादा बद्तमीज बना देगी । ' ' 

" क्या आपकी ड्यूटी यह पता लगाना नहीं थी कि कालिज में स्मैक कहां से आई ? " 

" कॉलिज में इस किस्म की चीजे आना ऐसी प्रॉब्लम नहीं है जिसमें सिर खपाया जाये । " 


बंसल जो कह रहा था , पूरी दृढ़ता के साथ कह रहा था ---- " खुले समाज में आज हर चीज मुहैया है ! दस साल का बच्चा भी मनचाही वस्तु हासिल कर सकता है । इस कॉलिज में तो फिर भी जवान बच्चे पढ़ते हैं । वे .... जो असल में हमारी औलाद नहीं , बाप हैं ! बाप ! " इसमें शक नहीं , कठोर हकीकत कहकर बंसल ने मुझे चुप कर दिया था । वह कहता रहा ---- " उसके बाद भी अनेक बार चन्द्रमोहन की शिकायतें आयीं । अपनी पॉलिसी के मुताबिक हम उन्हें अनदेखा करते रहे और अपनी पॉलिसी के मुताविक सत्या भड़कती रहीं । वहीं हुआ ---- सत्या की पिटाई से आजिज आकर आखिर चन्द्रमोहन ने चाकू खोल लिया । भले ही आप भी न माने , लेकिन हमारा दृढ विश्वास है . ये घटना सत्या की पॉलिसी का दुष्परिणाम दी जिससे हम आगाह करते आये थे । परसों भी जब सत्या भड़की तो हमने कहा आज चन्द्रमोहन ने चाकू खोला है । अगर तुमने खुद को नहीं बदला कल इससे ज्यादा कुछ हो सकता है।


जो कि हुआ । " मैंने कहा --- " सत्या का मर्डर । " 

" प्लीन उन बातों का यह अर्थ मत निकालो जो नहीं था । और फिर , चन्द्रमोहन के मर्डर से पहले आप यह कहते तो बात जमती भी ! उसकी हत्या ने कम से कम यह तो साबित कर ही दिया कि सत्या का हत्यारा वह नहीं था । " " फिर भी आपने तो अपनी तरफ से भविष्यवाणी कर दी थी !

सोमवार, 27 जून 2016

हथिनी और एक बिल्ली की कहानी

मधुवन में सारे जानवर खुशी खुशी रहते थे| उस जंगल में एक हथिनी और एक बिल्ली रहती थी| दोनों एक दूसरे की घनिष्ट सहेली थीं| सयोंग की बात थी कि हथिनी और बिल्ली दोनों आजकल गर्भावस्था(Pregnant) में थीं|

ठीक 3 महीने बाद बिल्ली ने 6 बच्चों को जन्म दिया| हथिनी अभी भी गर्भावस्था में ही थी| करीब 6 महीने बाद बिल्ली ने फिर से गर्भ धारण किया और इस बार 3 बच्चों को जन्म दिया| हथिनी अभी भी गर्भावस्था में ही थी|
 
ऐसे ही दिन बीतते गए, करीब 9 महीने बाद बिल्ली ने फिर से गर्भ धारण किया और इस बार 4 बच्चों को जन्म दिया| हथिनी अभी भी गर्भावस्था में ही थी| एक दिन ऐसे ही दोनों सहेलियां तालाब के किनारे घूम रहीं थीं| तभी बिल्ली ने हथिनी का मजाक उड़ाते हुए कहा – हम दोनों ने साथ साथ ही गर्भ धारण किया था लेकिन देखो मैं अब तक कितने सारे बच्चों को जीवन दे चुकी हूँ| एक तुम हो महीनों बाद भी वैसी की वैसी , तुम वास्तव में गर्भावस्था में भी हो या नहीं| बिल्ली ने मजाक उड़ाते हुए कहा|



हथिनी ने बिल्ली की बात को गंभीरता से लिया और बोली – बहन मेरे पेट में कोई बिल्ली जैसे छोटे बच्चे नहीं हैं| इसमें एक हाथी है, मैं 2 साल में एक बच्चे को जन्म देती हूँ| लेकिन जब मेरा बच्चा जमीन पर कदम रखता है तो जमीन हिल उठती है| जब मेरा बच्चा सड़क पार करता है लोग पीछे हट जाते हैं और उसकी विशालता को आश्चर्य से देखते हैं| मेरा एक पुत्र ही महाबलशाली होता है|
बिल्ली अपना सा मुँह लेकर आगे चली गई|

दोस्तों जिंदगी में कई बार जब हम दूसरों को सफल होता देखते हैं तो कई बार अपने ऊपर से विश्वास खो देते हैं|

जब दूसरे लोग आपसे जल्दी सफल हो जाएँ तो घबराइए मत
जब दूसरे लोगों की प्रार्थना भगवान जल्दी सुनने लगें तो निराश मत होइए 
जब दूसरे लोग आपसे जल्दी अमीर होने लगें तो अपना विश्वास मत खोइए
आपकी प्रगति अगर धीमे हो रही है तो घबराइए मत

हो सकता है आपका मालिक(ईश्वर) आपको कुछ बड़ा देना चाह रहा हो| ये मत सोचिये की दूसरे सफल हो रहे हैं तो मैं क्यूँ नहीं| हो सकता है आपका मालिक आपको इतनी बड़ी सफलता देने के तैयारी में हो कि दुनिया उसको देखे|


सभी सामग्री इंटरनेट से ली गई है(hindisoch.com)

शुक्रवार, 24 जून 2016

पहले खुद को बदलो (Hindi Stories)


एक समय की है बात, एक महिला महात्मा गांधीजी के पास आई और उनसे पूछा की वे उनके बेटे से कहे की वह शक्कर खाना छोड़ दे। गांधीजी ने उस महिला को अपने बच्चे के साथ एक हफ्ते बाद आने के लिए कहा। 

पुरे एक हफ्ते बाद ही वह महिला अपने बच्चे के साथ वापिस आई, और गांधीजी ने उसके बेटे से कहा, "बेटा, कृपया शक्कर खाना छोड़ दो।"

जाते-जाते उस महिला ने महात्मा गांधी जी का शुक्रियादा किया जाने के लिए पीछे मुड ही रही थी की उसने गांधीजी से पूछा, की उन्होंने यही शब्द एक हफ्ते पहले उसके बेटे से क्यू नही कहे थे।
गांधीजी ने नम्रता से जवाब दिया, "क्यू की एक हफ्ते पहले, मैंने शक्कर खाना बंद नहीं किया था।"

सीख - नैतिक

यदि आपको दुनिया को बदलना है, तो सबसे पहले आपको अपने आप को बदलना होंगा। यही महापुरुष महात्मा गाँधी के शब्द थे।

दोस्तों, हम सभी में दुनिया बदलने की ताकत है पर इसकी शुरुवात खुद से ही होती है। कुछ और बदलने से पहले हमें खुद को बदलना होंगा ... हमें खुद को तैयार करना होंगा ... अपनी काबिलियत की अपनी ताकत बनाना होंगा ...

अपने रवैये (मनोवृत्ति) को सकारात्मक (सकारात्मक) बनाना होंगा ... अपनी चाह को फौलाद करना होंगा ... और तभी हम वो हर एक बदलाव ला पाएंगे जो हम सचमुच में लाना चाहते है ..
दोस्तों, इसी बात को महात्मा गाँधी ने बड़े ही प्रभावी ढंग से कहा है,

"खुद वो बदलाव बनिए जो आप दुनिया में देखना चाहते है।"
तो चलिए क्यों ना आज से ही हम गांधीजी की राहो पर चलने की कोशिश करे। और पहले खुद में वो बदलाव लाये जो आप दुनिया में अपने आसपास में देखना चाहते हो ..

शनिवार, 11 अक्तूबर 2014

चोर-चोर

चोर-चोर

एक रात जब मैं
कवि- सम्मेलन से घर आया
तो दरवाज़ों को
अपने स्‍वागत में खुला पाया,
अंदर कवि की कल्‍पना
या बेरोज़गार के सपनों की तरह
सारा सामान बिखरा पडा था
और मैं
हूट हुए कवि की तरह खड़ा था
क्‍या-क्‍या गिनाऊं सामान
बहुत कुछ चला गया श्रीमान
बस एक ट्रांजिस्‍टर में
बची थी थोड़ी-सी ज्‍योति
जो घरघरा रहा था—
‘मेरे देश की धरती सोना उगले
उगले हीरे-मोती’
सुबह होते ही लोग आने लगे
चाय पीकर और उपदेश पिलाकर जाने लगे
मेरे ग़म में अपना ग़म
ग़लत करने के लिए
ठूंस-ठूंस कर खाने लगे
चोरी हुई सो हुई
चीनी-पत्ती-दूध पर पड़ने लगा डाका
दो ही घंटे में खाली डिब्‍बों ने मेरा मुंह ताका
मेरी परेशानी देखकर
मेरे पड़ोसी शर्मा ने ऐसा पड़ोसी धर्म निभाया
मुझसे पैसे लिए
और पत्ती-चीनी के साथ समोसे भी ले आया
इस तरह चाय पिलाते-पिलाते
और चोरी का किस्‍सा बताते-बताते
सुबह से शाम हो गई
गला बैठ गया और आवाज़ खो गई
पचहत्तरवें आदमी को
जब मैंने बताया
तो गले में दो ही शब्‍द बचे थे— ‘हो – गई’
अगले दिन मैंने
दरवाज़े जितना बड़ा बोर्ड बनवाया
और उसे दरवाज़े पर ही लटकाया
जिस पर लिखवाया--
भाइयो और बहनो,
कल रात जब मैं घर आया
तो मैंने पाया
कि मेरे यहां चोरी हो गई
चोर काफी सामान ले गए
मुझे दुःख और आपको खुशी दे गए
क्‍योंकि जब मैं जान गया हूं
कि वही आदमी सुखी है
जिसका पड़ोसी दुःखी है
कृपया अपनी खुशी
मेरे साथ शेयर न करें
अंदर आकर
चाय मांगकर शर्मिंदा न करें
आपका अदर्शनाभिलाषी’
लेकिन उसे पढ़कर एक नर-पुंगव अंदर आया
मैंने अपना गला सहलाते हुए उसे बोर्ड दिखाया
वो बोला— ‘भाई साहब,
बोर्ड मत दिखाओ
हुई कैसे, ये बताओ’
मेरे पत्रकार मित्र ने तो पूरी कर दी बरबादी
अगले दिन ये खबर अख़बार में ही छपवा दी
अब क्‍या था
मेरी जेब में मच गया हाहाकार
दूर-दूर से आने लगे
जाने-अनजाने, यार-दोस्‍त, रिश्‍तेदार
एक दूर के रिश्‍ते ही मौसी बोली-
’बेटा आज तो मेरा व्रत है
आज तो बस मैं फल और मेवे ही खाऊंगी
और जब तक चोर पकड़ा नहीं जाएगा
तुझे अकेले छोड़कर नहीं जाऊंगी।‘
दस दिन बाद मैंने हिसाब लगाया
चोरी तो तीन हज़ार की हुई थी
पर उसका हाल बताने में
पाँच हज़ार का खर्चा आया
मैंने सोचा बचे-खुचे पैसे भी
ठिकाने लग गए तो कहां जाऊंगा
अगर दस दिन और इसी तरह चलता रहा
तो मैं तो मारा जाऊंगा
अगले दो दिन और मैं इसी तरह से जिया
पर तीसरे ही दिन
मैंने एक खतरनाक और ऐतिहासिक फैसला लिया
अपने भीतर
फौलादी इच्‍छा-शक्ति भर ली
और उसी रात पड़ोसी शर्मा के यहां
छोटी-मा‍टी चोरी कर ली
अगले दिन मैंने
सुबह का नाश्‍ता शर्मा जी के यहां जमाया
पत्रकार मित्र से कहकर अख़बार में छपवाया
और अपने रिश्‍ते की मौसी को
उसके रिश्‍ते की बूआ बनवाया
अब जब भी
उसके घर की घंटी बजती
मेरे भीतर के जानवर को
बहुत खुशी मिलती
मैं मन ही मन कहता--
’अबे शर्मा राम भरोसे
ले और खा समोसे’
अब शर्मा जी की तबीयत बुझ गई
मेरी खिल गई
जिसकी पिछले तेरह दिन से इंतज़ार थी
वो शांति मुझे मिल गई
मेरी जेब में पडा
आखिरी दस का नोट
अब किसी से नहीं डरेगा
अब मुझे पता है
कि मेरे यहां चोरी क्‍यों हुई
और मोहल्‍ले में
अगली चोरी कौन करेगा।।