सोमवार, 14 सितंबर 2020

मिस्टर चैलेंज (वेद प्रकाश शर्मा) Thriller (Part - 03)




विभा ने कहा ---- " वाह मधु बहन ! अजीब चीज हो तुम भी । तब इस घोंचू के न होने की वजह से रो रही थी . अब इसके होने की वजह से रो रही हो । 
" पल्लू से आंसू पोछती मधु हंस पड़ी । 
" ये हुई न बात ! " विभा ने कहा ---- " अब कहीं जाकर चाय का मूड बना है । " 
घर का माहौल खुशनुमा हो उठा । शगुन ---- करिश्मा , गरिमा और खुश्बु को नमक मिर्च लगाकर मेरी रिहाई का वृतांत सुना रहा था । 

मधु चाय बनाकर लाई तो विभा ने पूछ ---- " चीनी तो नहीं डाली इसमें ? " 
" नहीं " मधु ने कहा । 
" क्यों ? " मैं चिहुंका --- " इसे क्या शुगर है ? " मधु बोली- “ मैंने चाय में मुस्कान मिलाई है । " जोरदार ठहाका लगाकर हंस पड़ी विभा । 

उस वक्त मैं समझ नहीं सका । जब विभा और मधु की पहली भेंट का वार्तालाप बताया गया तो बात समझ में आई । मधु सेन्टर टेबल पर नाश्ता सजाने लगी तो विभा ने कहा ---- " नाश्ते में टलने वाली नहीं हूँ मधु बहन । इस नालायक की वजह से लंच की छुट्टी हो गयी । डिनर के साथ लंच भी लेना है । " और मधु द्वारा प्यार से बनाया गया डिनर ऐसा था कि विभा अंगुलियां चाटती रह गयी । 

डिनर के बाद हम लोग आइसक्रीम खा रहे थे जब जैकी आया । उसके साथ अल्लारखा भी था । मैने ध्यान से उसकी हालत देखी ---- उम्मीद के विपरीत उसके जिस्म पर जख्म तो क्या . खरोंच तक नजर नहीं आई , इसके बावजूद चेहरे से जाहिर था , वह किसी जबरदस्त यातना से गुजरा है । साफ - साफ टूटा हुआ नजर आ रहा था वह । विभा ने जैकी को ही नहीं , अल्लारक्खा को भी बेहद प्यार और सम्मान के साथ कुर्सी पर बैटाया । विभा ने कहा --- " दोनों के लिए खाना लगाओ मधु बहन ! " 
" न - नहीं । " अल्लारक्खा ने सहमकर जैकी की तरफ देखो ---- " म - मुझे भूख नहीं है । " 
" मैं जान चुकी है । " विभा जैकी की तरफ देखकर मुस्कराती हुई बोली --- " बड़ा जालिम इंस्पैक्टर है ये ! खाना तो खाना एक बूंद पानी तक नहीं पिलाया होगा । " 
" आपसे मिलने के बाद मैं खुद में काफी चेंज महसूस कर रहा हूं विभा जी ---- अब उतना जालिम नहीं रहा । " जैकी कहता चला गया ---- " देख तो आप रही ही हैं । पूछ भी सकती है । थई डिग्री की तो बात ही दूर , मैंने इसे हाथ तक नहीं लगाया । " एकाएक मधु ने कहा -- " अगर अल्लारखा ने बता दिया मैं पिटा हूं , तो समझ लो ठीक से पिट नहीं सका।

" यह क्या बात हुई भाभीजी ? " जैकी ने पूछा । 

" यही तो खूबी है इण्डियन पुलिस में ! " मधु कहती चली गयी ---- " उसके चंगुल में फंसा शख्स उससे अलग कुछ कह ही नहीं सकता जो पुलिस चाहती है और अगर कह गया तो समझ लो ---- खातिर ठीक से नहीं हो सकी । इजाजत दे तो इण्डियन पुलिस पर एक लतीफा सुनाऊँ । " 
" मधु तुम .... विभा बोल पड़ी ---- " जरूर | जरूर मधु बहन ! बहुत दिन से कोई लतीफा सुना भी नहीं है । " 
" एक अरब शेख ने हाथी का बच्चा पाल रखा था । ' मस्ती के मूड में मधु मेरी तरफ तिरछी नजरों से देखने के बाद शुरू हो गयी -- " एक बार वह खो गया ! शेख् उसे बहुत प्यार करता था । उसने रिपोर्ट दर्ज कराई । अरब पुलिस ने काफी कोशिश की । महीनों गुजर गये । हाथी का बच्चा नहीं मिला । शेख् परेशान । उसके किसी सलाहकार ने सलाह दी - ऐसे केस हल करने में इण्डियन पुलिस को महारत हासिल है । क्यों न उसकी सेवाएं ली जायें ?


शेख ने अपने स्तर पर सोर्स लड़ाई । इण्डियन गवर्नमेन्ट से बात की और छ : कांस्टेबल्स के साथ एक इंस्पेक्टर अरब पहुंच गया । उसने शेख से मिलकर हाथी के बच्चे का वजन , कद और रंग आदि पूछा । सुनने के बाद पूरे कॉन्फिडेन्स के साथ बोला ---- " फिक न करें । हम एक हफ्ते के अंदर हाथी के बच्चे को बरामद कर लेंगे । ' शेख खुश हो उठा । पुलिस दल को फाइव स्टार होटल में ठहराया । पुलिस वालों की शानदार दावते शुरू हो गयीं । दावतों में वे ऐसे मस्त हुए कि होटल से निकलते ही नहीं । मस्ती मारते - मारते एक हफ्ता गुजर गया । शेख ने तलब किया । पुलिस दल एक गधे को लेकर महल में पहुंचा । इस्पैक्टर ने गधे की तरफ इशारा करके शेख से कहा --- ' ये रहा आपका हाथी का बच्चा । शेख् हैरान ! बोला --- ' क्या थात कर रहे हैं ? ये तो गधा है । ' इंस्पैक्टर ने कहा ---- ' गौर से देखिए । आप ही का हाथी का बच्चा है ये । 

किडनैपर्स ने कुछ खाने पीने को नहीं दिया इसलिए थोड़ा कमजोर हो गया है । चाहें तो इसी से पूछ लें । हैरान - परेशान शेख ने बार - बार और हर तरीके से गधे के बच्चे से पूछा।
वह कौन है ? गधा एक ही बात रटे जा रहा था - मैं हाथी का बच्चा हूं शेख साहब ! आप ही के यहां रहता था । किडनैपर्स साले मुझे बहुत टार्चर करते धे । कैद में था उनकी ! खाने को भी नहीं देते थे इसीलिए मेरी ये हालत हो गयी । आपके यहां रहूंगा तो फिर पहले जैसा हो जाऊंगा । जब मुद्दई गवाही दे रहा था तो शेख् वेचारा क्या करता ? उसे गधे को रखना पड़ा । इण्डियन पुलिस केस हल करके वापस लौट आई । उसके बाद भी शेख ने गधे से कई बार पूछताछ की मगर गधा हमेशा खुद को हाथी का बच्चा बताता रहा । बहुत दिन बाद , जब शेख उसे यह विश्वास दिलाने में कामयाब हो गया कि अब इण्डियन पुलिस लौटकर आने वाली नहीं है तो गधे ने कांपते लहजे में कहा ---- ' शेख साहब ! अगर मैं खुद को हाथी का बच्चा न बताता तो वे मुझे खरगोश का बच्चा बना देते । ' 

सब ठहाका लगाकर हंस पड़े मगर अल्लारखा के होठों पर मुस्कान तक नहीं उभर सकी । अभी तक हंस रहे जैकी ने कहा --- लतीफा आपने वाकई लाजवाव सुनाया भाभी जी । ये सच है । विभाजी से मिलने से पहले मैं भी ऐसा पुलिसिया था । पत्थरों तक को बोलने के लिए विवश कर देने का दावा किया करता था मैं । परन्तु अल्लारक्खा को हाथ भी नहीं लगाया । इसके बावजूद इसने हकीकत उगल दी । " 

" ये चमत्कार तुमने कैसे किया ? " " भविष्य में थर्ड डिग्री का इस्तेमाल न करने का निश्चय मैं तभी कर चुका था जब आपने कहा कि हम पुलिस वालों को उससे आगे भी कुछ सोचना चाहिए । कालिज से थाने तक के रास्ते में सोचता रहा , बगैर थर्ड डिग्री इस्तेमाल किये अल्लारक्खा से हकीकत जैसे उगलवाऊं ? थाने पहुंचा । अपने करेक्टर के विपरीत इसे डटकर खाना खिलाया । चाय पिलाई । नाश्ता कराया ! बहुत ही प्यार से पेश आया । मैंने देखा मेरी हर हरकत पर यह और ज्यादा डर जाता था । ये बात सच है विभा जी , खौफ के जैसे लक्षण मैंने इसके चेहरे पर देखे , वैसे थर्ड डिग्री से गुजरते किसी गुजरिम के चेहरे पर देखने को कभी नहीं मिले । जिस शख्स को थाने पहुंचते ही अपना हवाई जहाज बनाये जाने का अंदेशा हो , उसके साथ यदि नम्रता से पेश आया जाये तो यह बेहद खौफजदा हो जाता है । यही हालत इसकी भी थी । मैंने एक बार भी नहीं पूछा कि इसने हिमानी के नाम से लविन्द्र को लेटर क्यों लिखा ।

अब से कुछ देर पहले यानी रात के लगभग नौ बजे इसे एक जीप में बैठाया । बुरी तरह डरे हुए अल्लारक्खा ने पुछा ---- ' अ - आप लोग मुझे कहाँ ले जा रहे है ? ' मैने ड्राइवर की बगल वाली सीट पर बैठते हुए कहा ---- कालेज । ' 
' क - कालेज " 
हाँ ! ' मैं होले से हंसा --- ' मैने तुम्हे आजाद करने का निश्चय किया है । ' 
' म - मगर आपने यह तो पूछा ही नहीं कि .... ' मुझे कुछ पूछने की जरूरत नहीं है । खुद बताना चाहो तो बता सकते हो । 

अल्लारखा चुप रह गया । दावे के साथ कह सकता हूं लाख सिर पटकने के बावजूद मेरा व्यवहार इसकी समझ से बाहर था । मारे सस्पेंस के बुरी तरह आतंकित हो उठा ये और यही मैं चाहता था । जीप चल पड़ी । मैं और एक सब - इंस्पैक्टर ड्राइवर की बगल में आगे बैठे थे । यह चार सशस्त्र पुलिसियों से घिरा पीछे । अलारक्खा उसी भयंकर मानसिक अवस्था से गुजर रहा था जिससे मैं गुजारना चाहता था । इससे आगे का हाल अगर यह अपने मुंह से सुनाये तो बात ज्यादा अच्छी तरह समझ में आयेगी । " 

" मैं मान ही नहीं सकता था कि इंस्पेक्टर साहब बगैर पूछताछ किये मुझे छोड़ सकते हैं । " 

अल्लारखा चालू हो गया --- " खोपड़ी यह सोच - सोचकर फटी जा रही थी इस्पेक्टर साहब आखिर कर क्या रहे है ? उस वक्त मैं उछल पड़ा जब जीप कॉलिज की तरफ जाने वाले रास्ते को छोड़कर शहर से बाहर निकलने वाले रास्ते की तरफ मुड़ी । लगभग चिहुँककर पूछ बैठा , ..-- ' य - ये आप मुझे कहा ले जा रहे है ? यह रास्ता कालिज की तरफ नहीं जाता । 

इंस्पैक्टर साहब इस तरह से हंसे जैसे मेरी बौखलाहट का मजा ले रहे हो । बोले---- ' डरो नहीं अल्लारखा , इधर थोड़ा काम है । उसे निपटाने के बाद तुम्हें कॉलिज छोड़ देंगे । 

' मुझे बिल्कुल नहीं लगा ये सब बोल रहे हैं । हंहरेड परसेन्ट यकीन हो गया कि कोई खेल खेला जाने वाला है । मैं बहुत कुछ जानना चाहता था । पूछना चाहता था मगर । मुंह से आवाज न निकल सकी । 

जीप सौ की स्पीड पर दौड़ी चली जा रही थी । -'बात समझ में नहीं हम रूड़की रोड पर शहर से बाहर निकल चुके थे । एकाएक सब - इंस्पैक्टर ने इंस्पैक्टर साहब से पूछा समझ नही आ रही सर । हम लोग जा कहां रहे है ?

यह वह सवाल था जिसका जवाब जानने के लिए मैं मरा जा रहा था । अतः मारे उतेजना के घड - धड़ की आवान के साथ बज रहे अपने दिल को नियत्रित करने के असफल प्रयास के साथ कान इंस्पैक्टर साहब के मुंह से निकलने वाले लफ्जो पर लगा दिये । इन्होंने बहुत आहिस्ता से फुसफुसाकर सब इंस्पैक्टर से कहा - ' समझने की कोशिश करो त्रिपाटी ! कोर्ट - कचहरियां इस किस्म के खतरनाक मुजरिमों को वह सजा नहीं दे पाती जो मिलनी चाहिए । ' चौंकते हुए सब - इंस्पेक्टर ने कहा --...-मैं समझा नहीं सर । ' 
' सत्या ! चन्द्रमोहन ! और हिमानी । तीन - तीन मासूमों की हत्या की है इस हरामजादे ने। इंस्पैक्टर साहब का कौशिश बराबर यही थी कि उनकी आवाज़ मेरे कानों तक न पहुंच पाये --... सोचो ---- विभा जिन्दल के मुताबिक इस केस को हम कोर्ट में ले भी गये तो क्या होगा ? पलक झपकते ही कोई खुराट वकील जमानत करा लेगा इसका ! अगले दिन फिर कॉलिज में दनदनाता घुम रहा होगा । नहीं ! 

इतने खूंखार हत्यारे की सजा ये नहीं है ।

' तो आप क्या करना चाहते हैं ? ' इसबार सव - इंस्पैक्टर भी फुसफुसाया था । ' दीराला और सकौती के बीच घना जंगल है । वहां इसे उतार कर कहेंगे कि जा हमने तुझे आजाद किया । यह उत्तरेगा । वहीं गोलियों से छलनी कर देंगे । ये होगी इस हत्यारे की सजा । यह कहानी गढ़ने में हमे कितनी देर लगेगी कि इसने पुलिस गिरफ्त से भागने की कोशिश की और मर गया । 

सन्नाटा हो गया मेरे दिलो - दिमाग पर । तिरपन कांप उठे मेरे । 
यकीन हो गया ---- मेरा एनकाउन्टर होने वाला है । मैं पुलिस की ऐसी कारगुजारियां अखबार में पढ़ा करता था । जी चाहा ----गला फाड़कर चीख पडूं । मुंह से आवाज न निकल सकी । जुबान तालू से जा चिपकी थी । और फिर एक झटके से जीप रुकी । पहले इंस्पैक्टर , उसके बाद पुलिस वाले बाहर कूदे। 

जीप मुख्य सड़क से काफी दूर . कच्ची रोड पर खड़ी थी । चारों तरफ घनघोर अंधेरा था । दूर - दूर तक घना जंगल ! बियादान ! सन्नाटा सांय - सांय कर रहा था । झिंगुरों की आवाजें साफ सुनाई दे रही थीं । मुझे हथकड़ियों सहित जीप से उतारा गया । पैरों के नीचे दवे सूखे पत्ते चरमरा उठे।

इंस्पेक्टर साहब ने हथकड़ी खोल दी । कहा - ' तुम्हारी सजा यही है अलारखा यहां से पैदल अपने कालेज जाओ । हमारी तरफ से आजाद हो । 

मै जान चुका था कैसी आजादी मिलने वाली है ? नजर इंस्पैक्टर साहब के कन्धे पर लटके होलेस्टर पर पडी । अंधकार के बावजूद मुझे रिवाल्वर की मुठ साफ नजर आ रही थी । इस एहसास ने मेरे छक्के छुड़ा लिये कि कुछ देर बाद इस रिवाल्वर की गौलिया मेरे जिस्म में धंसी होगी । मैं धड से इंसपेक्टर साहब के कदमों में गिर पड़ा । 

दहशत के मारे दहाड़े मार - मार कर रोता कह उठा ---- ' मुझे मत मारो इंस्पैक्टा साहब , मुझे मत मारो। माँ कसम सत्या मैडम , चन्द्रमोहन और हिमानी की हत्याएं मैंने नहीं की। 

' अरे बड़ा पागल है तू ' इंस्पेक्टर साहब ने मुझे बहुत प्यार से ऊपर उठाते हुए कहा ---- ' हम तुझे आजाद कर रहे हैं और तू मरने मारने की बातें करने लगा ! किसने कहा हम तुझे मारने वाले है ? ' 

' म - मैने सब कुछ सुन लिया है इंस्पैक्टर साहब ! आप ... आप पूछते क्यों नहीं वो लेटर मैंने क्यों लिखा ? " 
' बताना चाहता है तो बता दे । वैसे हमें जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है । 

' वो - बहुत दिन से हिमानी मैडम पर मेरी नीयत खराब थी । ' मौत के खौफ से घिरा मैं सच उगलता चला गया ---- मैं क्या करता ? 

वे कपड़े ही ऐसी पहनती थी । हरकतें ही ऐसी करती थीं । मैं ही क्या , कॉलिज का हर लड़का उन पर मरता था । मैं उन्हें पाना चाहता था मगर डरता था ---- कहीं बिदक न जाये । उस अवस्था में बेइज्जती तो होती ही . रेस्ट्रीकेशन भी पक्का था ! अपना उल्लू सीधा करने के लिए एक तरकीब सोची । 

हिमानी मैडम की तरफ से लविन्द्र सर को लव - लेटर लिखा। मुझे पूरा यकीन था वो लेटर लबिन्द्र सर को हिमानी मैडम के कमरे में जरूर ले जायेगा । भले ही दोनों की बातचीत में यह खूल जाये कि लेटर हिमानी मैडम ने नहीं लिखा लेकिन . हिमानी मैडम अगर चालू किस्म की लड़की होगी तो लबिन्द्र सर का खुलकर स्वागत करेंगी । 

मेरा अनुमान था ---- लविन्द्र सर भी खुद को रोक नहीं सकेंगे । मैं कैमरा लिए कमरे की खिड़की पर तैनात था । सोचा था ---- उनके फोटो खींच लूँगा। उनके बेस पर हिमानी मैडम को ब्लैकमेल करूँगा और मेरी वह इच्छा पूरी हो जाएगी जिसके लिए मरा जा रहा था । परन्तु वहां तो दृश्य ही उलटा हो गया ।

जो हुआ , उम्मीदों में एकदम उलटा था । लविन्द्र सर उनसे आदर्श भरी बातें करने लगे । हिमानी मैंडम भी वो नहीं निकली जो अपने हाव - भाव और पहनावे में नजर आती थी। कैमरा बगल में दबाये मैं दबे पांव वहां से निकल जाने पर मजबूर हो गया । " 
" और बस ! " जैकी ने कहा ---- " मेरे होठों पर कामयावी से लबरेज़ मुस्कान दौड़ पड़ी । जो जानना चाहता था , जान चुका था । 

अल्लारखा को वापस जीप में बैठाया और सीधा यहां आ रहा हूं । " 
" अब मुझे यकीन हो गया जैकी ! तुम बाकई पैंतरे सीख रहे हो । असल में तुम कोई एनकाउंटर करने वाले नहीं थे । सब - इंस्पैक्टर और तुम मिले हुए थे । वे बाते अल्लारखा को उस मानसिक अवस्था तक पहुंचाने के लिए की गई जिसमे अततः वो पहुंचा । अंदाज ऐसा था जैसे बातें इससे छुपाकर की जा रही हो जबकि मकसद वे बातें इसे सुनाना था । 

यकीनन जबरदस्त टैक्निक इस्तेमाल की तुमने । इस टेकनिक से चाहे जब , चाहे जिस मुजरिम को तोड़ा जा सकता है । " 

गदगद होते जैकी ने कहा ---- " तारीफ के लिए शुक्रिया बिभा जी । " मन ही मन मैं भी जैकी की तारीफ किये बगैर न रह सका ।

हकलाते हुए अल्लारखा ने कहा ---- " म - मैं आप लोगों से एक रिक्वेस्ट करना चाहता हूं । " सबने सवालिया नजरों से उसकी तरफ देखा । " प - प्लीज कालेज में किसी को न बतायें मैंने हिमानी मैडम को ... " 
" और क्या कहेंगे ? " मैं गुर्राया ---- " क्यों छोड़ दिया गया तुम्हें ? " 
जैकी ने राय दी ---- " हत्यारा दूसरों की राइटिंग की नकल मारने माहिर है । लेटर अल्लारखा नहीं , उसी ने लिखा है । ' 

" इस प्रकार से तो हत्यारा समझ जायेगा हम झूठ बोल रहे हैं ? वह कृत्य भी उसी पर थोप रहे हैं जो उसने नहीं किया । " 
" समझ जायेगा तो समझे । फायदा क्या मिलेगा उसे ? " 
" उल्टा हमें ही फायदा मिलने की उम्मीद है । " विभा ने कहा ---- " वह समझेगा ---- हम इतने मूर्ख और कमजोर है कि अल्लारखा तक से सच्चाई उगलवाने की काबलियत नहीं रखते । उसके दिमाग में हमारी ऐसी छवि , फायदा पहुंचायेगी । इन्वेस्टिगेटर को झूठी और काबलियतहीन समझने वाला मुजरिम यकीनन वैसी गलतियां करता है जैसी गलतियों की मुझे तलाश है । " 

तय वही हुआ जो विभा चाहती थी । उसने कहा ---- " अल्लारक्खा को होस्टल छोड़ आओ । " जैकी उसे लेकर चला गया । मैं विभा से पहेली के सम्बन्ध में बात करना चाहता था परन्तु उसने सोने की इच्छा जाहिर की । मधु ने उसे गेस्टरूम में पहुंचा दिपा । काश मैं जान सकता ---- सोने की बात उसके जहन में दूर - दूर तक नहीं थी । जैकी कालिज पहुंचा । टोलियां बनाये स्टूडेन्ट्स परिसर में पहरा दे रहे थे । तेज रोशनी बाले बल्ब लगाकर उन्होंने पूरा फैम्पस प्रकाश - मान कर रखा था । जैकी ने जब लेटर के बारे में वह कहा जो तय हुआ था तो स्टूडेन्ट्स में खुशी की लहर दौड़ गयी । 

राजेश ने अल्लारक्खा को गले लगा लिया । कहा -- " मैं जानता था यार , वैसा लेटर तू नहीं लिख सकता । ऐसा गंदा मजाक तूने पहले भी कभी नहीं किया । " अल्लारखा की आंखें भर आई । 
एकता बोली ---- " मेरे ख्याल से हत्यारा स्टूडेन्ट्स में से कोई नहीं हो सकता । " 
" तो हत्यायें क्या अध्यापक कर रहे हैं ? " ऐरिक घुड़का।

" एकता का मतलब यह नहीं था सर " संजय बोला । 
" और क्या अभिप्राय था ? " 
जैकी ने मध्यस्तता की ---- " आप व्यर्थ रुष्ट हो रहे हैं अध्यापक महोदय ! एकता ने वह वाक्य भावुकतावश कहा है । " 
जैकी के शुद्ध हिन्दी बोलने पर सभी स्टूडेन्ट्स ठहाका लगाकर हंस पड़े । माहोल थोड़ा सामान्य हुआ । 
जैकी ने पूछा ---- " कैम्पस में इतनी रोशनी क्यों कर रखी है तुम लोगों ने ? " 
" क्योंकि रोशनी काले दिलवालों की दुश्मन होती है । " जवाब रणवीर ने दिया । उसके कहने का स्टाइल ही ऐसा था कि जैकी सहित सभी हंस पड़े । 
हंसी थमने पर जैकी ने कहा ---- " तुम लोग कहो तो मैं पुलिस पहरे का इन्तजाम कर सकता हूं । " 
" उसकी जरूरत नहीं है इस्पैक्टर साहब । " राजेश ने कहा ---- " हत्यारे से खुद निपटने का फैसला कर लिया है हमने । विभा जी ने ठीक कहा ---- दिल से डर निकालकर एक हो जाये तो कैम्पस में पत्ता तक नहीं फ़ड़क सकता । " 
" गुड ! " जैकी कह उठा- " अब मैं चलता हूं । होशियार रहना । और हां , शिफ्ट बनाकर पहरा दोगे तो बेहतर होगा । सबको आराम भी मिलना चाहिए । " 
" वही प्रोग्राम बनाया है । " राजेश ने बताया ---- " जो लोग इस वक्त कैम्पस में हैं , वे दो बजे हॉस्टल में जाकर सो जायेंगे । जो सो रहे है , दो बजे से उनकी ड्यूटी शुरू होगी । " 

संतुष्ट होने के बाद जैकी चला गया । संजय ने अल्लारखा से कहा ---- " अब तू जाकर आराम कर । " 
" नहीं । मैं तुम्हारे साथ पहरे पर रहूंगा । " 
" तू पहले ही बहुत थका हुआ होगा यार । " राजेश बोला ---- " इस्पैक्टर ने टार्चर न किया सही , हवालात में तो रखा है । फिक्र मत कर । यहां हम हैं ! तू जाकर सो जा । " 

यह बात अल्लारक्खा से सभी ने कहीं मगर वह नहीं माना । कहने लगा ---- " कमरे में जाकर लेट भी गया तो नींद नहीं आयेगी । " 

लबिन्द्र बोला ---- " इसकी इच्छा पहरे पर रहने की है तो क्यों जिद करते हो ? यही सही , लेकिन अल्लारक्खा , कम से कम फ्रेश तो हो सो तुम ! " 
“ हा ! ये ठीक है । मैं अभी आता हूं । " कहने के बाद वह हॉस्टल की तरफ बढ़ गया । तेज कदमो के साथ , गैलरी पार करके अपने कमरे के बंद दरवाजे पर पहुंचा । जेब से चाबी निकालकर ताला खोला।

अंदर दाखिल होते ही दरवाजे की बैक में लगा स्विच ऑन किया । कमरा ट्यूब की दूधिया रोशनी से भर गया । कपड़े उतारकर बेड पर डाले और बाथरूम में घुस गया । दस मिनट बाद वापस कमरे में आया । नाइट सूट पहना और उसके ऊपर वह नाइट गाऊन डाल लिया। जिसका पीठ पर हेलमेट वाले ने कुछ लिखा था । पूर्व की भांति उस पर लिखा कोई अक्षर चमक नहीं रहा था । नाइट गाऊन पहने कमरे से बाहर निकला । ताला लगाया और गैलरी में बढ़ गया । पांच मिनट बाद बह राजेश , दीपा , रवीना , रणवीर और लविन्द्र सर की टुकड़ी में शामिल था । 

मेरी बातें सुनकर मधु के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी । उसकी ऐसी हालत देखकर ठहाका लगा उठा मैं ! फिर बोला .... 
" क्या हुआ ? " 
" ये सब आपने ठीक नहीं किया । " 
" न करता तो मेरा उल्लू कैसे सीघा होता ? " 
" लेकिन अब तो उन्हें हकीकत बता देनी चाहिए । " 
“ पहली बार विभा से मजा लेने का मौका मिला है । जमकर छकाऊंगा । तुम्हें याद है ---- जिन्दलपुरम में उसने कितना छकाया था ? 

सारी इन्वेस्टिगेशन हमारी आंखों के सामने करती रही लेकिन भेद की कोई बात वक्त से पहले नहीं बताई । " 
" वक्त से पहले किसी को कुछ न बताना उनकी कार्य प्रणाली है । " 
" उसी कार्य प्रणाली को देखना है इस बार । देखता हूं कब तक क्या - क्या छुपाती है मुझसे ? " 
" मेरे ख्याल से आप ठीक नहीं कर रहे । " 

" अब दूसरे एंगिल से सोचो । हत्यारे के दिमाग का फ्यूज उड़ा हुआ नहीं होगा क्या ? " 

" वो सब तो ठीक है मगर .... मधु का वाक्य पूरा होने से पहले टेलीफोन की घंटी घनधना उठी । डेढ़ वजा रही घड़ी पर नजर डालते हुए मैंने रिसीवर उठाकर हैलो कहा । दूसरी तरफ से हड़बड़ाहटयुक्त स्वर में कहा गया --- " लविन्द्र भूषण बोल रहा हूँ वेद जी । " 
" क्या हुआ ? " आहट की आशंका का मारा मैं बोला ।

" विभा जी कहां है ? 
" बात बोलो ! हुआ क्या है ? " 
" अल्लारक्खा का मर्डर ! " 
" उफ्फ ! " मैं बुदबुदा उठा । " जल्दी से उन्हें सूचना दीजिए । " कहने के साथ फोन काट दिया गया । 
मैने रिसीवर क्रेडिल पर पटका । ' 
मधु ने पूछा ---- " क्या हुआ ? 
" मैंने बताया तो आश्चर्य से मुंह फाड़े मेरी तरफ देखती रह गयी वह । मैंने वेड से सीधी जम्प दरबाजे पर लगाई । फर्स्ट फ्लोर की बॉल्कनी में पहुंचा । 
बगल वाला दरवाजा गेस्टरूम का था । उसे मैने खटखटाया नहीं बल्कि आवेशित अंदाज में बुरी तरह भड़भड़ा दिया । चीखा --- " विभा ! विभा ! जल्दी से दरवाजा खोलो । " मगर । अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं उभरी । 
मैं चकित हैरान ......
जानता था ---- विभा को जगाने के लिए हल्का सा खुटका काफी है । और इस वक्त तो मैंने इतना शोर मचा दिया था कि ग्राउन्ड फ्लोर पर अपने - अपने कमरों में सोये करिश्मा , गरिमा , खुश्बू , शगुन , विनोद , बहादुर और छोटू ही नहीं , माता पिता भी हड़बड़ाकर उठ गये । 

इसके बावजूद गेस्टरूम से कोई आवाज नहीं उभरी । मेरे लिए यह हैरानी की बात थी । हड़बड़ाया हुआ मैं दरवाजा खोलकर फर्स्ट फ्लोर के टैरेस पर पहुंचा । गेस्टरूम की एक खिड़की टैरेस की तरफ थी । बह खुली पड़ी थी । कमरे में नाइट बल्ब का प्रकाश विखरा हुआ था ।

डबल बेड पर कोई नहीं था । मैंने आवाज लगाई ---- " विभा ! विभा ! " जबाब नदारद । मैंने झांका । मगर छोटी गैलरी में खुलने वाले दरवाने पर पड़ी । वह खुला हुआ था । 

" क्या हुआ ? " तेजी से दौड़कर नजदीक आती मधु ने कहा ---- " विभा बहन बोल क्यों नहीं रही ? 
" उछल पड़ी मधु ---- " कहाँ गयीं ? " " जरूर कॉलिज की तरफ गई होगी । " कहने के साथ मैं अपने कमरे की तरफ लपका । 

विभा कालेज कैम्पस में मौजूद एक ऐसे पेड़ पर बैठी थी जहां से काफी दूर - दूर तक निगाह रख सकती थी । हमेशा विधवा के लिबास में रहने वाली विभा के जिस्म पर इस बक्त टाइट जींस , टाइट शर्ट और उसके ऊपर काले चमड़े की जैकेट थी । पैरों में काले पीटी शूज और सिर पर लम्बे छजजे वाला कैप लगाये हुए थी । जगह - जगह स्टूडेन्ट्स के दल पहरा देते नजर आ रहे थे । उनमें प्रोफेसर्स भी थे । विभा ने खुद को घने पत्तों के बीच एक चौड़ी डाल पर स्थापित कर रखा था । कुछ देर बाद उसे एक अधेड़ शख्स अंधेरे में छुपता - छुपाता इसी पेड़ की तरफ बढ़ता नजर आया । विभा की आंखें स्वतः उस पर जम गइ । हालांकि वह खुद को अंधेरे में रखने की भरपूर चेष्टा कर रहा था परन्तु रोशनी इतनी थी कि बार - बार उसके दायरे में गुजरना पड़ता । ऐसे ही एक क्षण विभा ने उसे पहचान लिया । वह नगेन्द्र था । कॉलिज का चपरासी । वह चोरों की तरह छुपता - छुपाता इस तरफ़ क्यों आ रहा है ? यह सवाल विभा के दिमाग में अटक कर रह गया । कुछ देर बाद वह पेड़ की जड़ में छिपे अंधेरे में आकर खड़ा हो गया । उसने जेब से बीड़ी का बंण्डल और माचिस निकालकर एक बीडी सुलगाई । वहीं खड़ा - खड़ा कश लगाने लगा । विभा अभी कुछ समझ भी नहीं पाई थी कि एक अन्य दिशा से एक और साया उसी तरह चोरी - चोरी पेड़ की तरफ बढ़ता नजर आया।

विभा ने उसे गौर से देखा ---- पलभर के लिए वह रोशनी से गुजरा । वह गर्ल्स हास्टल की वार्डन थी ---- ललिता । सस्पेंस की ज्यादती के कारण विभा का दिल घाड़ - धाड़ करके बजने लगा । उसके देखते ही देखते ललिता भी पेड़ की जड़ में पहुंच गई । " 

मरवाओगे क्या ? 
कैम्पस के चपे - चप्पे पर उन्होंने रोशनी कर रखी है । " कहने के साथ नगेन्द्र ने बीड़ी फैककर ललिता को बांहों में भर लिया । 

ललिता खुद को उससे आजाद करने का प्रयत्न करती बोली ---- " क्या कर रहे हो ? " 
" जिसके लिए बुलाया है । " 
" कोई देख लेगा । " 
" चिंता मत कर ! यहां अंधेरा है , कोई नहीं आयेगा । " 
" छोड़ो मुझे । " खुद को उसकी बाहों से निकलती ललिता ने कहा ---- कालिज में दिन रात मर्डर हो रहे है , तुम्हें अपनी पड़ी है ! जो हो रहा है उसके बारे में क्या सोचते हो तुम ? " 
" क्या हो रहा है ? " 
" पहले चन्द्रमोहन ! उसके बाद हिमानी । किसने मारा उन्हें ? " 
" सोचो । दिमाग पर जोर डालो । कल हम भी तो मर सकते हैं । " 
" हम ! " आवाज कांप गयी नगेन्द्र की ---- " हम क्यों मरेंगे ? " 
" जिसलिए वे मरे । " 
" किसलिए मरे ? " 
" मुझे क्या पता ? " 
" नहीं पता तो क्यों भेजा चाट रही है ? " 
" अच्छा छोड़ो तो सही । " नगेन्द्र ने कहा ---- " छोड़ कैसे दू ? मौका अच्छा है । "

" किसी ने देख लिया तो दोनों की नौकरी जायेगी । मैं चलती हूं । " कहने के साथ उसने एक झटके से अपनी कलाई छुड़ाई । बोली ---- " जब तक हत्यारा पकड़ा नहीं जाता तब तक स्टूडेन्ट लोग इसी तरह रात - दिन हंगामा रखेंगे । कहने के साथ वह वापस चल दी.

चार - पांच कदम लपककर नगेन्द्र ने पकड़ना चाहा परन्तु यह हाथ नहीं आई । ज्यादा आगे बढ़ने की हिम्मत नगेन्द्र ने भी नहीं की । पहले ललिता आंखों से ओझल हुई . फिर नगेन्द्र भी चला गया । अचानक लाइट गुल हो गयी । एक झटके से कैम्पस में अंधेरा छा गया । लविन्द्र भूषण की आवाज उभरी ---- " ये क्या हुआ राजेश ? " 
" शायद लाइट चली गई सर । " राजेश की आवाज । किसी अन्य स्टूडेन्ट ने कहा ---- " सामने वाले लेन की लाइट आ रही है । " 

" केवल कालेज की लाइट गई है । " 
कोई चीखा --- " कहीं कुछ गड़बड़ है । 
" एक और आवाज ---- " मेन स्विब चैक करो । " 
" अकेला कोई नहीं जायेगा उधर । मैं आ रहा हूं ..... " पेड़ पर बैठी विभा न केवल ये आवाज सुन रही थी बल्कि अंधेरे के कारण कैम्पस में मची अफरा - तफरी को देख भी रही थी । 

यह सच है सामने वाली लेन की लाइट आ रही थी । केवल कॉलिज की लाइट गुल हुई थी और ये संकेत था किसी गड़बड़ का । दुर्घटना का ! विभा सतर्क होकर बैठ गई । जैकेट से निकलकर नन्हां सा रिवाल्वर हाथ में आ गया । तभी - उसे दूर , कैम्पस में एक जुगनू सा चमकता नजर आ गया । जुगनू काफी दूर था । कभी दाईं तरफ भागता नजर आ रहा था , कभी बाइ तरफ । विभा ने उसे ध्यान से देखने की कोशिश की । कुछ समझ न पाई । तभी । वातावरण में एक गोली की आवाज गूंजी । गोली को जुगनू में लगते विभा साफ देखा । एक इंसानी चीख उभरी।

अफरा - तफरी दहशत और भगदड में बदल गया । चारों तरफ से चीखने चिल्लाने की आवाजे आने लगी । गोली उसके साथ वाले पेड़ से चलाई गई थी । रिवाल्वर ताने विभा उसी तरफ घूर रही थी । वह पेड़ मुश्किल से विभा वाले पेड़ से दस मीटर दूर था । अचानक उस पेड़ से एक इंसानी साया जमीन पर कूदा । विभा ने उसे लक्ष्य करके ट्रेगर दबा दिया । एक और फ़ायर की आवाज गूंजी । मगर चीख नहीं उभरी । अंधेरे के कारण निशाना ठीक से नहीं लग पाया था । विभा को साया तेजी से भागता नजर आया । वह भी धम्म से जमीन पर कूदी । साये के पीछे लपकी । दौड़ते - दौड़ते उसे लक्ष्य करके एक गोली भी चलाई । परन्तु एक तो अंधेरा ! दूरी ! और भागमभाग के कारण निशाना लगना कठीन था । वह चीखि ---- " पकड़ो ! पकड़ो ! हत्यारा भाग रहा है । शोर चारों तरफ से उठा लेकिन किसी की समझ में नहीं आ रहा था कौन कहां है ? गहन अंधकार के बावजूद विभा आँखें अपने लक्ष्य पर गडाये हुए थी बल्कि बराबर पीछा कर रही थी उसका । भागते - भागते वे एक बरांडे में पहुंच गये । और फिर अचानक साया विभा की आंखों से ओझल हो गया । 

सामने की तरफ से भागते कदमों की आवाज आनी बंद हो गयी । ठिठक गई विभा । अपने इर्द - गिर्द खतरा - सा नजर आने लगा । मजबूती के साथ जमीन पर पैर जमाये चार पांच कदम आगे बढ़ी । तभी ---- पीठ पर भारी बूट की टोकर पड़ी । मुंह से चीख हाथ से रिवाल्वर निकला । बरांडे के फर्श पर गिरी वह । किसी ने भागकर नजदीक से निकलना चाहा । फर्श पर पड़े ही पड़े विभा ने दांया हाथ बढ़ाकर उसकी टांग पकड़ ली । मुह से चीख निकालता हुआ वह भी मुंह के बल गिरा।

विभा फुर्ती से उछलकर खड़ी हुई । एक मजबुत हेलमेट उसके सिर से टकराया । मारे पीड़ा के वह तिलमिला उठी । दोनों हाथ बढ़ाकर प्रतिद्वन्द्वी का गिरेवान पकड़ा । प्रतिद्वन्द्वी ने अपने घुटने की चोट उसके पेट में की । विभा चीख के साथ दुहरी हो गयी । हेलमेट वाले ने उसे रबर की गुड़िया की तरह उठाकर एक क्लासरूम में फेंक दिया । डेस्क और कुर्सियों से उलझती विभा फर्श पर गिरी । अपनी तरफ से काफी फुर्ती के साथ वापस उठी परन्तु तब तक धाड़ से क्लासरूम का दरवाजा बंद हो चुका था । धनधोर अंधकार के बीच वह दरवाजे की तरफ लपकी । उसे खोलना चाहा । दरवाजा बाहर से बंद था । विभा ने महसूस किया ---- उसकी अंगुलियों में कोई लॉकेट उलझा हुआ है । 

भागते दौड़ते रणवीर और संजय मेन स्विच पर पहुंचे । हाथ में पैसिल टार्च लिए एकता भी उनके साथ थी । 
" एकता इधर " रणवीर ने कहा --- " स्विच पर रोशनी डालो । 
" एकता ने प्रकाश दायरा उधर घुमाया । संजय के मुंह से निकला ---- " ये तो आफ है । " 

" जरूर हत्यारे ने किया होगा । " 

" जल्दी आन कर बेवकूफ ! " 
एकता ने कहा- " उसकी अंगुलियों के निशान मिट जायेंगे । ' 
" अंधेरा रहा तो वह भाग जायेगा । " कहने के साथ रणवीर ने एक झटके से स्विच आन कर दिया । कैम्पस प्रकाश से नहा गया । जो जहा था , एक पल के लिए वहीं ठिठक गया । आंखें चूँधिया गइ और जब देखने लायक हुई तो फिजिक्स लैब के बाहर मौजूद हर शख्स के हलक से चीख उबल पड़ी । अपने - अपने स्थान से दो तीन कदम पीछे हट गये सभी । फटी - फ़टी आखें औंधे मुंह पड़ी अल्लारक्खा की लाश पर स्थिर थीं । गोली उसकी पीठ में लगी थी । भल्ल - भल्ल करके खून बह रहा था जख्म से । 
" हे प्रभु ! " ऐरिक कह उठा -- " अल्लारक्खा की भी हत्या कर दी गयी । " 
अन्य किसी के मुंह से बोल तक न फूट सका । इधर - उधर से दौड़कर दूसरे स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स भी वहां पहुंच गये । उन्ही में से रणवीर , संजय और एकता भी थे । जिसने भी लाश देखी ---- अवाक सा खड़ा रह गया । बंसल भी नाइट गाऊन की डोरी बांधता पहुंचा।

लाश पर नजर पड़ते ही पैरों तले से जमीन खिसक गई मानो ! मुंह से निकला ---- ' " हे भगवान ! ये हो क्या रहा है ? क्यों हो रहा है ? " किसी पर जवाब हो तो दे भी ! 

तभी भागता हुआ लविन्द्र भूषण आया । राजेश ने पुछा ---- " आप कहां थे सर ? " 
" जैकी और वेद जी को फोन करके आया हूं । " 

“ क्या होगा बार - बार दूरभाष करके ? " ऐरिक रोषपूर्ण स्वर में चीख पड़ा ---- ' ' हत्याओं की यह श्रृंखला किसी के रोके नहीं रुक रही । पता नहीं किसकी हाय लगी हमारे विद्यालय को । " 
" मेरे ख्याल से विभा जी तो कॉलिज में ही कहीं थी । " राजेश ने कहा । 
" विभा जी यहां ! " लविन्द ने पुछा ---- " यहां कहां है वे ? " 
" क्या आपने उनकी आवाज नहीं सुनी ? " 

" आवाज तो मैंने भी सुनी थी । " दीपा बोली ---- " और जानी - पहचानी भी लगी थी । मगर उस वक्त समझ नहीं पाई कि विभा जी की है । उन्होंने कहा था ---- पकडो । पकड़ो ! हत्यारा भाग रहा है । " 
" हाँ । अब मुझे भी ऐसा ही लग रहा है । " रणवीर ने कहा ---- " आवाज उन्ही की थी । " 
" जो कुछ उन्होंने कहा , उससे जाहिर है ---- विभा जी ने हत्यारे को देखा है । " 
" मेरे ख्याल से गोलीबारी भी हुई है . उनके बीच । लविन्द्र ने कहा ---- " अंधेरे के दरम्यान कई गोलियां चली जबकि अल्लारखा को सिर्फ एक लगा है । सवाल बंसल ने उठाया ---- " अगर विभा जी कैम्पस में थी तो कहाँ ? 

" जवाब किसी के पास नहीं था । चारो तरफ सन्नाटा छा गया । एकाएक वातावरण में किसी दरवाजे को भडभड़ाये जाने की आवाज गूंजी और फिर यह आवाज लगातार गूंजती चली गई । हालांकि कोई कुछ समझ नहीं सका परन्तु सभी स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स आवाज की दिशा में बढ़ते चले गये । दो मिनट बाद भीड़ उस क्लासरूम के बाहर बरांडे में थी जिसका दरवाजा अन्दर की तरफ से भडभड़ाकर जोरदार आवाज पैदा कर रहा था । दरवाजा बाहर से बंद था गनेश ने गुर्राकर दूर ही से पूछा ---- " कोन है अंदर ? " 
" हम है राजेश दरवाजा खोलो । "

किसी को भी विभा की आवाज पहचानने में दिक्कत नहीं हुई । रणवीर ने फुर्ती से दरवाजा खोला । विभा लपककर बाहर निकली । सभी चौके । विभा को देखकर कम , उसके लिबास को देखकर ज्यादा । उसने पहला सवाल किया ---- " गोली किसे लगी ? " 
" अल्लारक्खा को । " 
" उफ ! " दांत किटकिटा उठी विभा । 
" म - मगर आप ? इस ड्रेस में ? कमरे में किसने बंद किया आपको ? " 
" आओ । " कहने के साथ वह अपना रिवाल्वर उठाकर आगे बढ़ी और अल्लाररखा की लाश के नजदीक तक पहुंचते - पहुंचते संक्षेप में हेलमेट वाले से अपने टकराव का वृतांत सुना दिया । लाँकिट का कोई जिक्र नहीं किया । 


चेहरे पर जलजले के से भाव लिए उस वक्त वह अल्लारखा की लाश को देख रही थी जब मैं पहुंचा । मेरे दो मिनट बाद जैकी भी आ गया । अल्लारखा की लाश पर नजर पड़ते ही यह भी इस तरह खड़ा रह गया जैसे लकवा मार गया हो । 

मैं कह उठा ---- " तुमने मुझे हैरान कर दिया विभा । गेस्टरूम से गायब पाकर तो मेरे होश ही उड़ गये । " 
" हैरान तो इस केस के मुजरिम ने कर दिया है । " विभा बड़बड़ा उठी ---- " आज तक मैंने ऐसी कोई केस हिस्ट्री नहीं पढ़ी जिसमें इतनी जल्दी - जल्दी मर्डर हुए हो । " 
" समझ में नहीं आ रहा हो क्या रहा है ? " बंसल मानो अपने बाल नोच डालना चाहता था ---- " वो कौन है ? और क्यों कालिज में लाशों के ढेर लगा रहा है । "

मैं बोला ---- " मेरे ख्याल से तो कोई पागल या जुनूनी किस्म का हत्यारा है । " 
" इस ख्याल की बजह ? " 
" वजह बिल्कुल साफ है विभा जी । " लविन्द्र भूषण ने कहा ---- " जब गोली चली उस वक्त चारों तरफ घनघोर अंधेरा था । आपने खुद बताया , गोली उस पेड़ से चलाई गई । अंधेरे में इतनी दूर से मनचाहे व्यक्ति को निशाना नहीं बनाया जा सकता " ये संयोग है गोली अल्लारखा को लगी और ये मर गया । ऐसा हरगिज नहीं कहा जा सकता वह अल्लारक्खा को ही मारना चाहता था । गोली हममें से किसी को भी लग सकती थी । मुमकिन है अल्लारखा की जगह यहां मैं पड़ा होता । हत्यारे ने हम लोगों की भीड़ की तरफ रिवाल्वर का रुख करके गोली चला दी । बस उसे मतलब नहीं था कौन मरे ! अर्थात् उसका मकसद व्यक्ति विशेष की हत्या नहीं बल्कि कॉलिज के किसी भी बाशिंदे की हत्या से है । ऐसा मकसद किसी जुनूनी या पागल का ही हो सकता है।

"तर्कों के हिसाब से तुम ठीक हो मगर सच्चाई ये नहीं है मि ० लविन्द्र । " 
" क्या आप यह कहना चाहती है उसने निशाना ताक कर अल्लारखा को गोली मारी ? " 
" यकीनन । " 
" ऐसा कैसे हो सकता है ? " जैकी बोला ____ अंधेरा और दूरी इतनी थी कि .... " राजेश । " विभा ने जैकी का वाक्य पूरा होने से पहले कहा ---- " तुम मेन स्विच पर पहुंची । 

" ज - जी ! करना क्या है ? " " उसे ऑफ कर दो । " 
वह कुछ समझ न सका । 
मैंने कहा- " उससे क्या होगा ? " 
" बताती हूँ निशाना कैसे लगाया गया । खड़े क्यों हो राजेश ? जाओ । " 
राजेश को जाना पड़ा । एक मिनट बाद । ' खट्ट ' से लाइट ऑफ हो गई । विभा की आवाज गूंगी ---- " सब लाश की तरफ देखें । " 

सभी की नजरें उस तरफ घूम गई । कुछ के मुंह से चीखें और कुछ के मुंह से सिसकारियां निकल पड़ी । अल्लारखा की पीठ पर लिखा CHALLENGE अंधेरे में अग्निशिखा की मानिन्द चमक रहा था । गोली A को बेधती हुई अल्लारक्खा की पीठ में धस गई थी । CH और LL तक खून की बीमारे फैली चमक रही थीं । बाकी अक्षर पूरी तरह चमचमा रहे थे । 

" ये - ये सब क्या है ? " बंसल के हलक से हकलाहट निकली । 
" मि ० लविन्द्र केमेस्ट्री के प्रोफेसर है । " विभा ने कहा ---- " मुझसे बेहतर बता सकते है कि ये अक्षर कौन से कैमिकल से लिखें गये हैं । " 

" फ - फास्फोरस से । " लविन्द्र बड़ी मुश्किल से लफ्ज निकाल पाया ---- " फास्फोरस रोशनी में नहीं चमकता लेकिन अंधेरे में वैसे ही चमकता है जैसे चमक रहा है । " मेन स्विच की तरफ से राजेश ने चीखकर कहा ---- " अब क्या करना है ? " 
“ ऑन कर दो । " विभा ने ऊंचे स्वर में कहा।

खट की आवाज के साथ लाइट ऑन हो गयी । और उसके साथ ही अल्लारक्खा के गाऊन पर लिखा CHALLENCE चमकना बंद हो गया । राजेश दौड़ता हुआ आया । वह हांफ रहा था । विभा ने कहा- " अब शायद बताने की जरूरत नहीं हत्यारा सिर्फ और सिर्फ अल्लारखा को मारना चाहता था । अंधेरा किया ही इसलिए गया क्योंकि अल्लारक्खा को निशाना बनाने के लिए उसे अंधेरे की जरूरत थी । रोशनी में वह इतने अच्छे ढंग से निशाना नहीं लगा सकता था । जाहिर है गाऊन पर काफी पहले फास्फोरस से CHALLENGE लिख दिया गया था । यह तैयारी ठीक वैसी ही थी जैसी हिमानी के मर्डर के लिए की गई । नतीजा साफ है । हत्यारा जुनूनी या पागल नहीं बल्कि बेहद चालाक है और हर मर्डर खूब सोच समझकर , बाकायदा प्लान बनाकर कर रहा है । ' 

" मगर क्यो ? " बंसल चीख पड़ा ---- " एक - एक को चुन - चुनकर क्यों मार रहा है वह ?

" यह पता लग जाये तो हत्यारा शायद बेनकाब हो जाये । " लविन्द्र ने कहा ---- " कमाल की बात तो ये है कि वह आपके हाथ में आकर निकल गया । " 
" इसमें कमाल की कोई बात नहीं है । " विभा ने कहा ---- " न मैं फ़ाइटर हूं न ही फाइटिंग का कोई अनुभव है । मैं केवल दिमाग से इन्वेस्टिगेशन करती हूँ । इस ड्रेस में आकर उस पेड़ पर केवल इसलिए छूपी थी कि शायद कोई राज की बात मालूम कर सकुं । हत्या की कल्पना मैंने नहीं की थी और हत्यारे ने भी नहीं सोचा होगा कि उसकी किसी से मुठभेड़ हो सकती है । उसने अंधेरे का लाभ उठाकर आराम से गायब होने के बारे में सोचा होगा । " 

एक बार फिर पूरी भीड़ के बावजूद माहौल में सन्नाटा छा गया । " बंसल साहव । " विभा ने कहा ---- " नये हालात में मुझे एक बार फिर कहना पड़ रहा है । कल से कालेज की सामान्य गतिविधियां हर हालत में चालु हो जानी चाहिए । " 
" क - क्या कह रही हैं आप ? भला कैसे .... " 

" इस सम्बन्ध में मैं ज्यादा तर्क - वितर्क नहीं करना चाहती । केवल इतना समझ लीजिए आज ही रात में अल्लारखा के मर्डर के पाछे एक वजह ये भी हो सकती है कि हत्यारा कालेज में सामान्य हालात नहीं चाहता । और हम यह नहीं कर सकते जो वह चाहता है । " 

दयनीय भाव से बंसल ने स्टूडेन्ट्स की तरफ देखा ---- सब खामोश थे । एक कमरे में केवल मैं , जैकी और विभा थे । बाकी सबको बाहर निकाल दिया गया था । बाहर निकलते बंसल से विभा ने कहा था ---- " नगेन्द्र और ललिता को मेरे पास भेजो।
उसका आदेश हम तीनों को चौंका देने वाला था।

बंसल चौंका जरूर मगर बग़ैर कुछ कहे बाहर चला गया । 
सवाल करने का हौसला जैकी भी न कर सका। मगर मैंने पूछ लिया .... " क्या नगेन्द्र और ललिता इस केस मे हमारी कोई मदद कर सकते है" ।
"पता नही" बिभा ने सपाट स्वर में कहा।

मुश्किल से पांच मिनट बाद नागेंद्र और ललिता दरवाजे पर नज़र आये।
दोनो के चेहरे उड़े हुए थे।
मैं देखते ही समझ गया कि इनसे जरूर कोई अपराध हो गया है।
मगर क्या...
मैं नही जान सका।
उसी को जानने के लिए मैं टकटकी लगाए हुए था।
वे दरवाजे पे आके ठिठक गए।
अंदर आने के लिए मानो कदम न उठ सके । 

विभा - के मुँह से आवाज नही कोड़े सी फटकार निकली .... " अंदर आओ । 
" मानो किसी यंत्र ने दोनों को अंदर धकेला । " 

बेद " दोनो पर नजर गड़ाए विभा ने मुझसे कहा ---- " दरवाजा बंद कर दो । 
" मैने दोनों के पीछे पहुंचकर दरवाजा बंद किया। 
मेरे करीब आओ..... एक और फटकार । 

वे इस तरह आगे बढे जैसे हॉरर फिल्म का करेक्टर भूत की तरफ बढ़ता है । 

रोने को तैयार दोनो । चेहरों पर आतंक ! दहशत राम राम कर बिभा के पास पहुंचे ।

दोनों पछाड़ खाकर उसके कदमों में गिरे जैसे एक ही चाभी से हरकत में आने वाले खिलौने हो । 
दोनों के मुंह से एक जैसे शब्द निकले .--- " हमें माफ कर दीजिए बिभा जी।

मैं और जैकी अवाक।
हमे मालूम नही अपनी किस गलती की माफी मांग रहे थे वे।
उठो। बिभा के चेहरे पर छाई कठोरता ज्यूँ की त्यों बिराजमान रही।
खड़े होकर बात करो।

दोनों एक साथ खड़े हो गये । 
वे सचमुच आंसुओं से रो रहे थे । 
" इसका मतलब तुम जान गये हो कि मैं क्या जान गई हूँ ? " इन शब्दों के साथ जो कुछ विभा ने कहना शुरू किया , कम से कम मेरे और जैकी के लिए वह पहेली जैसा ही था -- " जानोगे भी क्यों नहीं ? कैम्पस में बता चुकी हूँ कि हेलमेट वाले से हुई मुठभेड़ से पहले में कहा थी । 
समझ सकते हो , तुम्हारी सारी वकवास मैंने सुनी है । " 
" हम दोनों तबाह जायेंगे विभा जी । " नगेन्द्र ने कहा --- " नौकरी चली जायेगी हमारी । " 

" नर्क में गिरने से पहले नहीं सोचा था ? " दोनों चुप । " ये तो मर्द है । मैं तुमसे पूछती हूं ललिता । क्या सोचकर कीचड़ में गिरी तुम ? क्या दुनिया में जिस्मानी भूख ही सबकुछ है ? तुम्हारे पति को पता लगेगा तो क्या होगा ? " 

अब जाकर मेरी और जैकी के बुद्धि के कपाट खुले । 
ललिता कह रही थी --- " इसने मुझे बहका लिया था मैडम । " 
" शटअप ! " बिभा गुर्राई -.-- " तुम बच्ची नहीं हो ! जिसे वहका लिया । " 
पुनः खामोशी । " कब से चल रहा है ये सब ? " दोनों गर्दन झुकाये खड़े रहे । विभा गुराई- " जबाव दो ! " 
" छह महीने से । दोनों एक साथ बोले । " 
सत्या मैडम जानती थी ? " 
" अपनी बातों के दरम्यान तुमने कहा था पहले चन्द्रमोहन मरा । फिर हिमानी ! कहा था न ? " " क्यों कहा ऐसा ? " 
ललिता ने पहली बार चेहरा ऊपर उठाकर पूछा --- " क - क्यों इसमें भी कुछ गलत था ? " 
" हां ! गलत था । " " इ - इसमें क्या गलत था मैडम ?

" तुम सोचो ! सोचकर जवाब दो क्या गलत था इसमें ? " 
कुछ देर चुप रही ललिता , फिर बोली --- " म - मुझे तो कुछ गलत नहीं लग रहा । " 
" तुम जबाब दो नगेन्द्र । जो कहा उसमें क्या गलत था ? " 
" पहले चन्द्रमोहन नहीं , सत्या मैडम मरी थीं । " 

" आई बात समझ में । अब बोलो ---सत्या मैडम को कैसे भूल गयी तुम ? ये क्यों नहीं कहा कि पहले सत्या , फिर चन्द्रमोहन और उसके बाद हिमानी का मर्डर हुआ । " 
" म - भूली नही थी । भूलने का तो सवाल ही नहीं उठता । बस जो मुंह में आया वह कहती चली गयी । बात को इतनी गहराई तक मैं सोच भी कैसे सकती थी ? " 
" और कोई कारण तो नहीं है ? " 
" अ - और क्या कारण हो सकता है ? " 

इस बार विभा उन्हें केवल घुरती रहीं । बोली कुछ नहीं । थोड़े अंतराल के बाद कहा ---- " अब तुम जा सकते हो । मगर सुनो । यदी चाहते हो ये करतूत इस कमरे में बंद रहे तो जो कर रहे थे , उसे फौरन बंद कर दो । " 
बार - बार बादा करने के बाद दोनों बाहर गये । 

विभा ने फिर मुझसे दरवाजा बंद करने के लिए कहा । मैं समझ गया । अभी उसके पास कोई और गोट भी है । अतः लपककर दरवाजा बंद किया । पलटकर उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा- ' कभी - कभी तुम महत्वहीन बात को ज्यादा लम्बी नहीं कर देती हो विभा ? " 
" कौन सी बात की तरफ इशारा है तुम्हारा ? " “ यही कि ' तुमने अपने सैन्टेन्स में सत्या का नाम नहीं लिया । " 
" काश तुम समझ सकते . यह महत्वहीन नहीं बल्कि अत्यन्त महत्वपूर्ण बात है । यह ऐसी बात है जो स्वप्न में भी किसी के मुंह से नहीं निकलनी चाहिए ।

शुरू से जो शख्स कालिज में घटी पटनाओं का चश्मदीद गवाह है , अगर यह वगैर सोचे समझे भी मुँह से लफज निकाले तो स्बभाविक रूप से वहीं निकालेगा जो हुआ है । उसने सत्या का नाम नहीं लिया , ये बात अस्वाभाविक है । और अस्वाभाविक बात कत्ल के केस की इन्वेस्टिगेशन कर रहे शख्स को हर हाल में खटकनी चाहिए । ' 
" इसलिए तुम्हें खटकी ? " 
" नतीजा क्या निकला ? 
अस्वाभाविक बात ललिता के मुंह से क्यों निकली ? " 
" फिलहाल तुम उसे छोड़ो । मैं तुम्हें हत्यारे की एक चीज दिखाना चाहती हूं । " 
" हत्यारे की चीज ? " मैं उछल गया।

चौंकने के भाव जैकी के चेहरे पर भी थे । विभा ने जेब से लौकिट निकालकर मेज पर रख दिया । सोने की चेन में सोने का ही बना दिल लगा था । 
" अरे ! " जैकी उछल पड़ा- " ये तो लविन्द्र का । " " ल - लबिन्द्र का ? " 
मैं और विभा चौक पड़े । 
" आपने नहीं देखा इसे ? उस वक्त राइटिंग टेबल पर ही तो पड़ा था जब हम लोग हिमानी के कमरे से उसके कमरे में पहुंचे । इसका आधा हिस्सा मेज पर रखी बुक्स के नीचे दबा था मगर ये दिल वाला हिस्सा साफ नजर आ रहा था । मैं दावे के साथ कह सकता हूं यह वही है । 

आपको कहाँ से मिला ? " 
' हत्यारे के गले से । 
" बुरी तरह उद्विग्न मैंने कहा ---- " प्लीज विभा डिटेल में बताओ । " 
तुम तो जानते हो ---- मारधाड़ से मेरा कभी कोई ताल्लुक नहीं रहा । इसके बावजूद जब हेलमेट बाला सामने पड़ा तो उसका पीछा करने के अलावा कुछ नहीं सूझा । वरांडे में उससे गुत्थम - गुत्था हुई । मुकाबला तो खैर मैं क्या कर पाती ? रबर की गुड़िया की तरह उसने मुझे उठाकर क्लासरूम में फेंक दिया । कदाचित उस वक्त मेरे हाथ उसके गिरेबान पर थे । बस इतना ही कह सकती हू थोड़ा होश आया तो इसे अपनी अंगुलियों में उलझा पाया । " 

" तुम दोनों की बातों को मिला दिया जाये तो हेलमेट वाला लबिन्द्र हुआ । " 

“ मैने इसे देखा है । मुझे हैरत है विभा जी , हर चीज को बारीकी से देखने की आदत के बावजूद आप क्यों नहीं देख सकी । सामने ही तो पड़ा था । " 
" उस वक्त मेरी नजर सीधी एशट्रे पर गई थी । " विभा ने कहा ---- " और फिर लविन्द्र के चेहरे पर जम गई क्योंकि मैं समझ चुकी थी हिमानी के कमरे में वही गया था । " 
" ये तो क्लियर है । हेलमेट वाला यही है । उसे फौरन गिरफ्तार कर लेना चाहिए । " 

" उतावलापन मेरी कार्य - प्रणाली में नहीं है । " 

कहने के साथ विभा ने लौकिट उठाया । उसका दिल वाला हिस्सा किसी डिबिया जैसा था । विभा ने उसे खोला । दिल किसी छोटी सी किताब की मानिन्द खुल गया और उसमें से टपक पड़ा एक नन्हां सा फोटो । फोटो मेज पर उल्टा गिरा था । हम तीनों को नजरें एक दूसरे से उलझकर रह गयीं । दिल धाड़ - धाड़ करके बज रहे थे । दिमागों में एक ही सवाल था।

किसका फोटो है ये ? 
क्या सस्पैस खुलने वाला है ? विभा ने अपने नाखूनों से किसी सुहागिन की बिंदी जितना बड़ा वह फोटो उठाकर उलट दिया । मेरे और जैकी के हलक से विस्मयजनक चीख् निकल पड़ी । "

डर देखी है तुमने ? " 
" डर ? " लविन्द्र बिदका । 
" फ़िल्म की बात कर रहा हूँ । शाहरुख खान था उसमें । जूही चावला भी थी । " 
" ब - बड़ा अजीब सवाल पूछ रहे हैं आप ! " 

" जबाब दो ! " मैं गुर्राया । 
" अंजाम ? " 
" ज - जी ? " 
" यह वैसी ही दूसरी फिल्म का नाम है । " 
" मैंने नहीं देखी । " 
" बाजीगर ? " 
" मैं फिल्म नहीं देखता । " 
" मगर हरकतें तीनों फिल्मों के शाहरुख जैसी करते हो । " 
" अ - आप क्या बात कर रहे है । मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा । " 
" समझकर अंजान बनने की यह अदा तुम पहली बार नहीं दिखा रहे । लोग अक्सर ऐसा करते हैं । " . 
" विभा जी प्लीज । " एकाएक उसने विभा की तरफ बढ़ना चाहा ---- " मुझे बताइए तो सही बात क्या है ? " मैंने उसका कालर पकड़कर अपनी तरफ घसीटते हुए कहा ---- " इधर बात करो मिस्टर लविन्द्र । इधर कमान इस वक्त मेरे हाथ में है क्योंकि वो सख्स मैं हूं जो जानता है कि तुम सत्या श्रीवास्तव से कितनी गहराइयों तक मुहब्बत करते थे । " 

" उस मुहब्बत का भला अब क्या जिक्र ?

" कुछ लोगों की फितरत बड़ी अजीब होती है हुजूर । जिस चीज पर उनकी नजर पड़ जाये तो ये किसी भी कीमत पर उसे हासिल करते है या तोड़ देते है । फोड़ देते है । खत्म कर देते हैं । गारत कर देते हैं दुनिया से जैसे सत्या गारत हो गयी । " 
" पता नहीं आप क्या पहेलियां बना रहे हैं ? जो कहना है साफ - साफ कहिए ना ! " 
" लाकिट कहां है तुमहारा ? " 
" सीधा - सादा सवाल भी पहेली लग रहा है क्या ? " 
" मेरे पास कोई लॉकेट नहीं है । " 
" बेशक इस बार नहीं है । मगर था । " 
" क्या कह रहे हैं आप ? मेरे पास कभी कोई लाकिट नहीं था । " 
" झूठ बोलने की कोशिश की तो भूसा भर दूंगा खाल में । " चीखते हुए जैकी ने झपटकर दोनों हाथों से गिरेबान पकड़ लिया । उसके सारे वजूद को हिलाता हुआ दांत भींचकर गुर्राया ---- " मैंने इसी कमरे में लॉकिट को अपनी आंखों से देखा है । वहां मेज़ पर उन बुक्स के नजदीक था । आधा हिस्सा बुक्स के नीचे था और आधा .... 

" क क्या बात कर रहे हो इंस्पेक्टर " चेहरे पर आश्चर्य और खौफ के भाव लिए लबिन्द्र उसका वाक्य काटकर कह उठा --- " मैंने पूरी जिन्दगी में कभी कोई लॉकिट नहीं पहना ..... मारे गुस्से के जैकी मानो पागल हो उठा । दाँत किटकिटाकर हाथ छोड़ने वाला था कि विभा ने आगे बढ़कर रोका । 

मैंने अपनी जेब से लॉकेट निकाला और उसे हवा में उछाल - उछालकर लपकता हुआ बोला -.--- " हम पहले से जानते थे ! कहना तुम्हें यही था क्योंकि तुमसे बेहतर कौन जानता है कि गुत्थम - गुत्थी के दरम्यान लॉकिट विभा के हाथ लग चुका है । " 
" क - क्या बकवास कर रहे हैं आप ? विभा जी , मेरी आपसे गुत्थम - गुत्था कब हुई ? " 

" जब तुम अल्लारखा का मर्डर करके भाग रहे थे । 
" हे भगवान ! ये क्या कर रही हैं आप ? " 
" इस नाटकबाजी से कुछ नहीं होगा मिस्टर लविन्द्र । लौकेट खुद चीख - चीखकर बता रहा है कि मैं लविन्द्र का हूँ । 
" लॉकिट बता रहा है ? " 
मैंने लॉकिट का दिल खोला । उसमें बिंदी के बरावर सत्या का फोटो मौजूद था । लबिन्द्र आखें फाड़े उसे देखता रह गया।

कमरे में डायरी नहीं नजर आ रही है तुम्हारी । कहां है ? " 
" मैंने जला दी ।
" जला दी ? " आखे सिकुड़ गई मेरी ---- " क्यो ? " 
" ताकि कोई और मैरी खामोश मुहब्बत के बारे में न जान सके । " 
विभा ने पूछा---- " ऐसा क्यों चाहते थे तुम ? " 
" जो मुहब्बत परवान न बढ़ सकी — मैं नहीं चाहता उसका जिक्र भी किसी की जुबान पर आये । " 
" कब जलाई ? " मैंने व्यंगपूर्वक पुछा --- " अलारक्खा के मर्डर से पहले या बाद में ? " 
" आपसे बात होने के तुरन्त बाद । " 
" मगर लॉकिट को दिल से लगाये घूमते रहे ? " 
" उफ़ ! कितनी बार कहूँ मिस्टर वेद " लविन्द्र चीख् पड़ा -- " लाकिट मेरा नहीं है । " 

" उसका क्यों नहीं हो सकता जिससे सत्या प्यार करती थी ? " 
" कौन है वो ? " जैकी ने पुछा । 
" मैं नहीं जानता । " 
" जैकी । " विभा ने कहा -- " लविन्द्र की बात में दम हो सकता है । क्यों न एक बार सत्या के कमरे की तलाशी ली जाये ? " 
" सत्या के मर्डर के बाद मैं ले चुका हूं । वहां से ऐसा कुछ नहीं मिला जिसके बेस पर .... " 
फिर भी । " विभा ने कहा ---- " मैं खुद एक बार कमरा चैक करना चाहूंगी । " 
" चलिए । सत्या के कमरे की तलाशी के दरम्यान मैंने कहा ---- " सत्या के प्रेमी का पता लग भी जाये तो हमें क्या फायदा होने वाला है विभा ? भला प्यार करने वाला अपनी प्रेमिका को क्यों मारेगा ? मेरे ख्याल से हम भटक रहे हैं । सत्या के मर्डर की सबसे मजबूत बजह लबिन्द्र के पास है । सत्या उसे हासिल नहीं थी , इसलिए उसने .... " 

तुम्हारी वात में दम है । " उसने कहा ---- " इसके बावजूद यह पता लगाना जरूरी है कि सत्या का प्रेमी अगर कोई था तो कौन है ? " 

मैंने कुछ करने के लिए मुंह खोला ही था कि बरांडे में शोर की आवाज उभरी।


शोर ऐसा था जैसे बाहर मौजूद लोगों ने अनहोनी दृश्य देखा हो । अभी कोई कुछ समझ भी नहीं पाया था कि ---- घाय - धाय । एक साथ दो गोलियां चलने की आवाज से दातावरण थर्रा उठा । बाहर से चीख पुकार उभरी । 

विभा बिजली की सी गति से दरवाजे की तरफ लपकी । हम उसके पीछे थे । दरवाजा खोलते ही देवता कूच कर गये हमारे । दंग रह गये । ठीक सामने । केवल दस फुट दूर गैलरी में ललिता खड़ी थी । घेहरे पर आग नजर आ रही थी उसके हाथ में रिवाल्वर ! रिवाल्वर अपनी कनपटी से लगा रखा था । सभी स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर डरे सहमे उससे दूर खड़े थे । हरेक चेहरे पर खौफ था । आतंक और आश्चर्य । ललिता हिंसक भेड़िये की तरह गुराई ---- " किसी ने मेरी तरफ बढ़ने की कोशिश की तो खुद को गोली मार लूंगी । " 

चारों तरफ सन्नाटा छा गया । सभी अवाक थे । " ये क्या बेवकूफी है ललिता ? " विभा चीखी ---- " क्या चाहती हो तुम ? " 

" बेवकूफी तुम कर रही हो विभा निन्दल । इस कॉलिज में हो रही हत्याओं को तुम नहीं रोक सकती । वापस लौट जाओ । हत्यारे के गिरेबान तक पहुंचना तो दूर , यहाँ हो रही हत्याओं का कारण तक नहीं जान सकतीं तुम । रहा तुम्हारे दूसरे सवाल का जवाब । तो सुनो मैं खुद को गोली मारने वाली हूं । " 

" ये क्या पागलपन है ललिता ? मैं तुम्हारा राज ... राज रखने का वचन दे चुकी हूं । " 

" हा ... हा ... हा । " ललिता पागलों की मानिद हंसी , बोली- “ अब मैं किसी राज को राज रखने की ख्याहिशमंद नहीं हूँ विभा जिन्दल । सुनो ---- कान सोलकर सुनो सब । नगेन्द्र से मेरे नाजायज तालूकात हैं । इसके बच्चे की मां बनने वाली हूँ मैं । बस ! या इसके अलावा भी कुछ कहलवाना चाहती हो ? " 

मैं , जैकी , विभा और वहां मौजूद हर शख्स दंग रह गया । जैकी ने कहा ---- " खुद को क्यों मारना चाहती हो तुम ? " 
" हत्यारे का ऐसा ही आदेश है । "

तुम उस आदेश को मानने के लिए मजबूर क्यों हो ? " चीखकर मैंने पूछा । 

" सोचो राइटर महोदयः सोचो ---- सुना है कल्पनायें करने के मामले में मुल्क के नम्बर वन लेखक हो तुम । कल्पना करो ---- एक शख्स हत्यारे के हुक्म पर अपनी हत्या कैसे कर सकता है ? " 
" ये पागलपन छोडो ललिता । फैंक दो रिवाल्वर । खुद को हमारे हवाले कर दो । " विभा कहती चली गई ---- " मैं विश्वास दिलाती हूँ हत्यारा तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता । आत्महत्या पाप है । " 

" ठीक कहा तुमने । कोई शख्स जब खुद को गोली मारता है तो उसे आत्महत्या कहते हैं मगर ये आत्महत्या नहीं , हत्या है विभा जिन्दल । ऐसा हत्या जो उसी हत्यारे के द्वारा तुम्हारी आंखों के सामने होगी जिसने सत्या , चन्द्रमोहन , हिमानी और अल्लारक्खा को मारा । 
हाथ मेरे हैं लेकिन समझ लो गोली वहीं चलायेगा । अब बोलो ---- हत्यारे द्वारा की जाने वाली हत्या का ये स्टाइल कैसा लगा तुम्हें ? " 

मैंने महसूस किया , जैकी का हाथ धीरे - धीरे अपने होलेस्टर की तरफ बढ़ रहा था । विभा ने ललिता को बातों में उलझाये रखने की गर्ज से कहा ---- " तुम्हारे शब्दों से जाहिर है इस वक्त मुझसे वह कह रही हो जो हत्यारे कहने के लिए कहा है । तुम उसके दवाब में हो । फिर कहूंगी ललिता ---- कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता । मुझे बताओ वह कौन ..... " 

हाथ रोक लो इंस्पैक्टर " ललिता गुर्राई ---- " तुम इस हत्या को होने से नहीं रोक सकते और इसी को क्यों , अभी तो और हत्यायें होगी । तुम , विभा जिन्दल और ये राइटर कोई नहीं रोक सकता । " जैकी का हाथ जहां का तहां ठिठक गया । बिभा ने कहा ---- " नगेन्द्र , तुम समझाओ ललिता को । ये बेवकूफी करने वाली है । " 

" ल - ललिता ! " नगेन्द्र ने हिम्मत की---- " प्लीज ! ऐसा मत करो । " ललिता हंसी । ठीक पागल सी लगी वह । बोली ---- " मरेगा नगेन्द्र ! तू भी मरेगा । " 
" मैं - मैं ! " नगेन्द्र सकपकाया -- " म - मैं भी ? " 
" मरने से पहले इस कालिज में चैलेंज की प्रथा पड़ गयी है । और देखो ---- मैं तुम सबके सामने चैलेंज लिखूगी । " 
कहने के साथ उसने रिवाल्वर दायें हाथ से बायें हाथ में ट्रान्सफर किया । दांया हाथ ब्लाऊज में डाला । वक्षस्थल से एक चौक निकाला । जहां खड़ी थी , वहीं बैठ गयी वह । वायें हाथ में दबे रिवाल्वर को अपनी कनपटी से सटाये गुर्राई ---- " याद रखना , किसी ने भी इंस्पैक्टर जैसी होशियारी दिखाने की कोशिश की तो वक्त से पहले खुद को गोली मार लूंगी मैं । " सभी हकबकाये से खड़े थे । 

उसने विभा , जैकी और मुझ पर नजरें गड़ाये रखकर चौक से फर्श पर लिखा --- ' C ' फिर ' H ' लिखा ।


पीछे मौजूद राजेश ने बिल्ली की मानिन्द दबे पांव उसकी तरफ बढ़ना शुरू किया । ललिता ने ' A ' लिखा । सब जानते ये वह क्या लिखना चाहती है । 

राजेश को उसकी तरफ बढते देख सबकी धड़कनें रुक गई थी । अभी ललिता ने पहला L लिखा था कि राजेश ने झपटकर उसे दबोच लिया । ललिता छटपटाई । राजेश का एक हाथ उसकी रिवाल्वर वाली कलाई पर था । उसकी मदद के लिए विभा और जैकी ने जम्प लगाई । मगर । 
" घांय । " ललिता के हाथ में दबे रिवाल्चर ने शोला उगला । सबकी कोशिशों पर पानी फेरता ललिता की कनपटी चीर गया वह । ललिता की चीख के साथ वातावरण में अनेक चीखें उभरीं । उस एक पल के लिए जो जहां था वहीं ठिठककर रह गया । 

ललिता की गर्दन लुढ़क चुकी थी । रिवाल्चर हाथ से निकलकर फर्श पर गिर गया । लाश राजेश की बाहों में झूलती रह गयी । खून के छीटे खुद उसके चेहरे पर भी पड़े थे । गर्म खून , भल्ल - भल्ल करके बह चला । जैकी और विभा की मदद से राजेश ने लाश को फर्श पर लिटाया । बहुत देर तक ऐसा सन्नाटा छाया रहा जैसे किसी के मुंह में जुबान न हो । 

" हद हो गयी ! " अन्ततः बंसल कह उठा ---- " कैसा हत्यारा है ये ! जो लोगों को खुद पर गोली चलाने के लिए मजबूर कर देता है ? क्यों पीछे पड़ गया है इस कॉलिज के ? हम सबने क्या बिगाड़ा था उसका ? " विभा सहित किसी पर जवाब न बन पड़ा।

बंसल ने कहा --- " मिस्टर वेद आपने बड़े कसीदे पड़े थे विभा जिन्दल की तारीफ में । कहा था इनके आते ही न सिर्फ हत्याओं का सिलसिला रुक जायेगा बल्कि हत्यारा पकड़ा भी जायेगा । चौबीस घण्टे नहीं गुजरे अभी ---- हिमानी , अल्लारखा और ललिता तीनों मारे गये । क्या कर लिया विभा जी ने ? " 
" किसी इन्वेस्टिगेटर के पास अलादीन का चिराग नहीं होता बंसल साहब कि वह घिसे और हत्यारा गुलाम की तरह सामने आकर खड़ा हो जाये । मैंने जो कहा , वही कहने के लिए बाध्य था --- यकीन रखें , विभा से बेहतर इस केस की इन्वेस्टिगेशन कोई नहीं कर सकता । " 

राजेश उत्तेजित हो उठा ---- " हत्यारा चैलेंज देकर सबकी आंखों के सामने मर्डर कर रहा है । इसी मर्डर को लो ! कितनी अनोखी बात है ? हत्यारे का शिकार खुद हत्यारे के शब्द कहता खुद को गोली मार लेता है । पहले कभी ऐसा न देखा गया , न सुना गया । पता नहीं कौन - सा जादू है उस पर ? " 

" फिलहाल उसी जादू के बारे में मालूम करना है । " विभा ने कहा ---- " आखिर उसने ललिता को इतनी मजदूर कैसे कर दिया कि इसने न सिर्फ हर वह लफ्ज बोला जो हत्यारा कहलवाना चाहता था बल्कि सबके रोकते - रोकते खुद को गोली मार ली । " 
" कौन कह सकता है उसने यह चमत्कार कैसे दिखाया ? " जैकी बुदबुदा उठा । 

एकाएक विभा ने मुझसे पूछा ---- " वेद ! ललिता की एक बेटी थी न ? " 
" च - चिन्नी । " मेरे मुंह से निकला । 
" कहां है वह ? " चिन्नी ललिता के रूम में नहीं थी । सभी स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स उसे कालिज में तलाश करते फिर रहे थे । किसी को नहीं मिली । अंततः बंसल के बंगले का चौकीदार कैम्पस में आया । उसने कहा ---- " सर ! लेडीज बार्डन की बेटी हमारे बंगले में है । " 

उस वक्त मैं वंसल के साथ था । सुनकर उछल पड़ा । पेट्रोल पर दौड़ने वाली आग के समान खबर सबके कानों तक पहुंच गयी । लपकते - झपकते सब बंसल के कमरे में पहुंचे । चिन्नी बेहोश थी । . बंसल की पत्नी अर्थात् निर्मला उसे होश में लाने का प्रयत्न कर रही थी । 

बंसल के साथ हम सबको अंदर दाखिल होता देखकर उठ खड़ी हुई । बैड पर एक तरफ रेशम की मजबूत डोरी पड़ी थी । चिन्नी वही रंग - बिरंगा फ्रॉक पहने हुई थी । जिसमें मैंने उसे पहली बार देखा था ।

बंसल ने पुछा --- " यहां कैसे पहुंच गयी ये ? 

" जवाब चौकीदार ने दिया --..- " हमने कैम्पस की तरफ से गोलियां चलने की आवाज सुनी सर , लेकिन आपने कह ही रखा है , उधर चाहे जो होता रहे , हमें यहा से नहीं हिलना है । वही किया । तब भी , जब लाइट गई ---- 

गोलियां चली । लेकिन जब दूसरी बार अब से थोड़ी देर पहले फायरिंग हुई तो चकराये । कॉलिज में आखिर हो क्या रहा है , यह जानने के लिए बरांडे से निकले । मेमसाहब सो रही थीं । हम बगीचे में पहुंचे । चौंके । एक झाड़ी के साये में यह बच्ची पड़ी थी । बुरी तरह बंधी हुई । बेहोश ! मेरा जी थाहा कैम्पस में जाकर आएको खबर दूं । फिर सौचा ---- आपने बंगले के आसपास से हिलने से मना किया है । सो इसे उठाकर अंदर ले आये । मेम साहब को जगाया । इसे देखते मेमसाहब कह उठी ---- ' ये तो चिनी है । वार्डन की बेटी । जल्दी कैम्पस में जाकर अपने साहब को खबर कर । और हम दोड़े - दौड़े आपके पास पहुंचे । " 

" तब से मैं इसे होश में लाने की कोशिश कर रही हूं । " निर्मला ने बताया । 
" कमाल की बात है । " जैकी ने कहा ---- " कैम्पस में इतनी गोलियां चलीं - आप सोती रहीं ? " 
" मुझे अनिन्द्रा की बीमारी है । नींद की गोलियां लेकर सोती हूं । मैं तो तब उठी जब चौकीदार ने दरवाजे को तोड़ डालने वाले अंदाज से भडभड़ाया । " 
चिन्नी के चेहरे पर बार - बार पानी के छींटे मारकर अंततः होश में लाया गया । होश में आते ही वह रोने लगी । बार - बार अपनी मम्मी को पूछने लगी । बहला - फुसलाकर सवाल किये तो वह कहानी सामने आई जिसकी आशंका थी । उसने बताया ---- “ मुझे एक हेलमेट वाले ने पकड़ लिया था । जैसे ही मम्मी कमरे में आई ---- उसने मेरे सिर पर रिवाल्वर रखकर कहा --- ' चीखने या चिल्लाने की कोशिश की तो इसे मार डालूंगा । 
' मम्मी डर गयीं ---- ' बोली तुम हत्यारे हो न ? मुझसे क्या चाहते हो ? ' 
हेलमेट वाले ने कहा --- ' तेरे हाथों से तेरा मर्डर । 
' मम्मी ने कहा ---- " मैं समझी नहीं । वह बोला -- ' समझाता हूँ । और तभी उसने बहुत जोर से अपना रिवाल्वर मेरे सिर पर मारा । मेरे मुंह से चीख् निकली मगर उसका दूसरा हाथ मेरे मुंह पर था । उसके बाद मुझे कुछ पता नहीं क्या हुआ ! " 

सब समझ रहे थे क्या हुआ होगा ? जाहिर था ---- " बेटी को बचाने के लिए ललिता ने केवल वह कहा और किया जो हत्यारा चाहता था बल्कि अपनी जान तक दे दी । " सबकुछ बताने के बाद चिन्नी हिचकियां ले लेकर मम्मी के बारे में पूछती रही । बेचारी को कौन क्या जवाब देता ? एकाएक विभा ने निर्मला से कहा --- " आपकी नथ बहुत सुन्दर है । " 
" न - नथ ? " 
निर्मला का हाथ स्वतः अपनी नाक पर पहुंच गया । " और शायद कीमती भी डायमंड की है क्या ?
हाँ।


विभा का टापिक हैरतअंगेज था । 
हमें लगा ---- दिमाग तो नहीं फिर गया है उसका ? 
कहां हत्यारे द्वारा किये जा रहे मर्डर ? कहां निर्मला की नथ ? इस वक्त हमें पेचीदगियों से भरी घटनाओं पर विचार करना चाहिए था या किसी के गहनों पर ? सवका नेतृत्व करते हुए अंततः मैंने कह ही दिया ---- ' विभा ,ये वक्त किसी के गहनों की तारीफ करने का है या .... जबकि " 
प्लीज बेद ! मुझे अपना काम करने दो । " ये शब्द विभा ने ऐसे अंदाज में कहे कि मैं तो मैं , कोई कुछ नहीं बोला।
विभा ने निर्मला की तरफ पलटते हुए कहा ---- " कब खरीदी ? " 
" मेरिज ऐनीवर्सरी पर इन्होंने प्रजेण्ट की थी । उसने बंसल की तरफ इशारा किया । 
विभा बंसल की तरफ घूमी । आंखें , उसके चेहरे पर गड़ा दी उसने । हकबकाकर बंसल को पूछना पड़ा ---- " प -पत्नी को प्रजेण्ट देना गुनाह है क्या ? " 
" कोई गुनाह नहीं है । " कहने के साथ एकाएक विभा मुस्कराकर बोली ---- " मैं आपके कमरे की तलाशी लेना चाहती हूं । " 
" त - तलाशी ? " बंसल उछल पड़ा ---- " क - क्यों ? " 
" बताऊंगी , लेकिन तलाशी के बाद । " 
" म - मगर । " 
" ऑबजेक्शन हो तो बताइए । " बंसल हकला उठा ---- " म - मुझे क्या ऑब्जेक्शन हो सकता है । 
किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था । मैं भी सब में शामिल था मगर तलाशी में जुट गया । जैकी ने भी सामान को इधर - उधर करना शुरू कर दिया । बंसल और निर्मला सहित सब हकबकाये से खड़े थे । 
विभा एक तिजोरी पर ठिठकी । 
वह वार्डरोब पर रखी थी । लगभग वैसी ही थी जैसी सर्राफों के यहां होती है । 
निर्मला से पूछा ---- " इसकी चाबी ? " "

इन्हीं के पास रहती है , मैं इसे हाथ नहीं लगाती ।
क्यो ? " 
" मैंने मना कर रखा है । " बंसल ने कहा । निर्मला बोली ---- " इसमें ये कॉलिज से सम्बन्धित जरूरी कागजात रखते हैं । " 
" ऐसा आपने कहा होगा इनसे ? " विभा ने बंसल से पुछा । 
" क्या ये सच है ? " 
बंसल अचकचाया । जवाब न दे सका वह । मैं और जैकी अपना अपना काम भूलकर उनकी तरफ देखने लगे थे । विभा , बंसल और निर्मला के बीच संबाद ही कुछ ऐसे थे कि सभी को गड़बड़ नजर आने लगी । कुछ चुप रहने के बाद विभा ने एक - एक शब्द पर जोर डालते हुए कहा ---- " आपने जवाब नहीं दिया बंसल साहब । क्या ये सच है ? कॉलिज से सम्बन्धित कागजात ही है इसमें ? " 
" मेरी समझ में नहीं आ रहा ---- इस सबका हत्याओं से क्या सम्बन्ध ? " 
" मुझे चाबी चाहिए । " 
" विभा जी प्लीज । " बंसल गिडगिड़ा उठा ---- " रहने दीजिए । " 
" कारण ? " 
" व - बाद में बता दूंगा । " 
" बाद से क्या मतलब ? " राजेश भड़क उठा। ---- " यानि हम ही लोगों से छुपाया जायेगा सबकुछ ! हम ऐसा हरगिज नहीं होने देंगे । क्यों दोस्तो ---- क्या कहते हो ? " 
" हमारे दोस्तों के मर्डर हो रहे हैं । हमारी मैडम मारी गई हैं । " एकाएक कई स्टूडेन्ट भड़क उठे ---- " जिसे प्रिंसिपल साहब छुपाना चाहते हैं ---- उसे देखने का सबसे पहला हक हमारा है ! " 
" आगे बढ़ो । " रणवीर चीखा ---- " तोड़ दो तिजोरी को । " 
हुम्म बाढ़ग्रस्त नदी वाले अंदाज में आगे बढ़ा । " विभा जी प्लीज , रोकिए इन्हें । " बंसल ने कहा । 
" ये युवा शक्ति है बंसल माहब । एक हद के बाद इसे नहीं रोका जा सकता । ये देश के ये पागल बेटे हैं जो प्रधानमंत्री के एक गलत फैसले के जवाब में खुद को जलाकर खाक करने पर आमादा हो जाते हैं । इन्हें रोकना मेरे नहीं , आपके हाथ में है । चाबी दीजिए ---- ये रुक जायेंगे ।


प्लीज ! इनके सामने रहने दीजिए । " 

" आखिर ऐसा क्या है तिजोरी में जीसे आप छुपाना चाहते है ? " उत्कंटा का मारा मैं चीख पड़ा ---- " 

राजेश ! आगे बढ़ो - तोड़ दो तिजोरी को . " राजेश लपकने ही वाला था , जैकी ने उसे रोकते हुए कहा ---- " बंसल साहब को आखिरी मौका दिया जाना चाहिए । " कहने के बाद वह बंसल की तरफ पलटकर बोला ---- " चाबी दे रहे हैं या नहीं ? " बंसत के चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे बदन से कपड़े नोंचने का प्रयास किया जा रहा हो । दायां हाथ हिला । गाऊन और शर्ट को पार करके बनियान की जेब में पहुंचा । वापस आया तो उसमें चाबी थी । चावी उसने विभा की तरफ इस तरह बढ़ाई जैसे जान निकालकर दे रहा हो । 

विभा तिजोरी की तरफ बढ़ी । सबके दिल धक- धक करके बज रहे थे । ऐसा केवल बंसल के व्यावहार के कारण था । विभा ने चावी घुमाई । हैंडिल गिराया । दरवाजा खुला । उसमें पांच - पांच सौ के नोटों की गड्डियां पड़ी नजर आई । सबके चेहरों पर ' खोदा पहाड़ निकली चुहिया ' वाले भाव उभरे । विभा ने दो गड्डियां उठाई । यहा ---- " ये आपके कितने दिनों की तनख्वाह है ? " 
" यकीन मानिए विभा जी । यह किसी फंड से बचाया गया पैसा नहीं है । ये तो केवल वे है जो विभिन्न टेंडर्स के पास होने पर ठेकेदारों द्वारा दिया ही दिया जाता है । " 
" ओह ! " दीपा कह उठी ---- " प्रिंसिपल साहब कमीशनखोर हैं । " 
" कमीशन खाना अब अपराध कहाँ है ? " राजेश व्यंग्य कर उठा -- " रक्षा सौदों तक में कमिशन खाया जाता है । मंत्रियों के घर से सूटकेस बरामद होते हैं । प्रिंसिपल साहब ने ही लाख - दो लाख खा लिये तो कौन सा इनका हाजमा बिगड़ गया ? " 

बंसल सिर झुकाये खड़ा रहा । इधर टीका - टिप्पणी चल रही थी ---- उधर विभा ने एक नजर और तिजोरी के अंदर डाली । इस बार उसके हाथ एक कार्ड लगा।


एक ऐसा कार्ड जो किसी के बर्थडे पर दिया जाता है । 
विभा ने उसे खोला । 
टिप्पणियां बंद हो गयी थी । सबकी नजर उसी पर थी । 
मैं और जैकी विभा के नजदीक पहुंचे । उस पर लिखा मैटर पढ़ा । बुरी तरह चौके हम ! दिमाग के कपाट तेज आंधी से खुलकर पट्ट - पट की आवाज के साथ खड़खड़ाने लगे । सबसे ऊपर लिखा था --- " स्वीट हार्ट ! " 
बीच में बधाई का ऐसा प्रिन्टिड मैटर था जो केवल प्रेमिका द्वारा प्रेमी को लिखा जाना चाहिए । और सबसे नीचे थे --- सत्या श्रीवास्तव के साइन । विजलिया - सी कौंध रही थी मेरे दिमाग में । तो क्या सत्या का प्रेमी बंसल था ? मेरे दिमाग में , गाड़ी में विभा द्वारा कही गई बातें चकरा रही थीं । 

जैकी कह उठा --- " शायद वह मिल गया विभा जी , जिसकी हमें तलाश थी । " 
" क्या बात कर रहे हैं आप ? " बंसल लपककर हमारे नजदीक आता हुआ बोला -- " क्या है ? 

" विभा ने कार्ड उसे पकड़ा दिया । बंसल ने देखा । बुरी तरह चौंकता नजर आया वह । लगभग चीख पड़ा ---- " - ये क्या बकवास है ? ये कार्ड मेरी तिजोरी में कहां से आया ? "

" वैरी गुड । " जैकी कह उठा-- " तिजोरी आपकी ! चाबी आपके पास । और जवाब हमें देना है । " 
" म - मगर मैं कसम खाकर कहता हूं ! मुझे कार्ड के बारे में कुछ नहीं पता । नहीं जानता इसे तिजोरी में किसने रखा । मैं तो रुपयों की वजह से चाबी देने से इंकार कर रहा था । " सभी स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स को कार्ड के बारे में पता लग गया । 
चारों तरफ सन्नाटा छा गया । सभी अवाक रह गये थे । " जरूर कोई घोटाला है । " अचानक राजेश पूरी ताकत के साथ चीख पड़ा ---- " हमारी सत्या मैडम हरगिज - हरगिज ऐसी नहीं हो सकती । प्यार करना गुनाह नहीं । हम नहीं कहते सत्या मैडम प्यार नहीं करती होंगी परन्तु प्रिंसिपल साहब से ? हरगिज नहीं । शादीशुदा आदमी से मुहब्बत करने वाला चरित्र नहीं था उनका । ' सभी स्टूडेन्ट्स ने समवेत स्वर में उसका समर्थन किया।

एरिक बोला --... " इस सम्बन्ध में तो हम भी यही करेंगे । सत्या के सम्बन्ध में ऐसा विचार नहीं किया जा सकता । विद्यालय में एक वही तो थी जिसके सिद्धान्तों के कारण विद्यालय विद्यालय था । " 
" मैं भी यही कहूंगा विभा जी । " लविन्द्र ने कहा ---- " हम सब बंसल साहब और सत्या के सम्बन्धों के चश्मदीद गवाह है । कभी , एक सकेण्ड के लिए भी नहीं पटी दोनों में । हमेशा छत्तीस का आकड़ा रहता था । नहीं ...-- वो शख्स वंसल नहीं हो सकता जिसका जिक्र सत्या ने मुझसे किया था । " 

विभा ने गंभीर स्वर में कहा ---- " आप सबकी भावनाएं अपनी जगह है और उनकी मैं कद्र करती हूं । परन्तु सुबूत जो बोलेंगे ---- वह हमें कहना ही पड़ेगा । और फिर . यहां किसी के करेक्टर पर लांछन नहीं लगाया जा रहा । केवल ये बातें डिस्कस की जा रही है जो हो सकती है । अगर इसमे आपकी भावनाएं आहत होती है तो बाहर जा सकते हैं । हमें अकेले में डिस्कस करना होगा । ' 

एक पल के लिए सन्नाटा छा गया कमरे में । फिर दीपा ने कहा ---- " सारी विभा जी , आप डिस्कस जारी रखें । " 
विभा ने बंसल की तरफ घूमकर सवाल किया ---- " अगर आप इस रकम को अपनी पत्नी से छुपाकर रखते थे मिस्टर बंसल तो खर्च कहां करते थे ? " 
" किसी अन्य बहाने से निर्मला को दे देते थे । " 

" या सत्या पर खर्च होती थी । " 
" क - कैसी बातें कर रही हैं आप ? भला हम .... " 
मैं कोई बात वगैर वेस के नहीं कहती बंसल साहब । " इस बार विभा उसकी बात काटकर कठोर स्वयं में कहती चली गया ---- " जैसी नथ आपकी बीवी ने पहन रखी थी वैसी ही नथ मेरे पास भी है । " कहने के साथ विभा ने जींस की जेब से एक नथ निकालकर मेज पर डाल दी । अकेला वंसल नहीं बल्कि सब हक्के - बक्के रह गये ।

मैं भी । जैकी भी ! हर नजर कभी मेज पर पड़ी नथ को देख रही थी , कभी निर्मला की नाक में मौजूद नथ को ! जुड़वां बहनें सी लग रही थी दोनों । 
" ये नथ मुझे सत्या के कमरे से मिली है । " विभा एक - एक शब्द को चबाती कहती चली गई- “ और ऐसी नथ निर्मला जी की नाक में देखकर में चौंक पड़ी । आपके कमरे की तलाशी लेने का ख्याल नहीं आया था मुझे । इन नथों के एक जैसी होने ने मुझे प्रेरित किया । और अब तिजोरी से इस कार्ड के मिलने ने स्टोरी पूरी कर दी । मुझे दुख है मिस्टर बंसल । नथ और कार्ड मिलकर उसी कहानी की पुष्टि कर रहे हैं जिस पर कालिज के किसी शख्स को विश्वास नहीं आ रहा । बोलिए ---- अब आपको कुछ कहना है इस बारे में ? 

सत्या पर ये नथ कहाँ से आई ? " 
" म - मैं कुछ नहीं कह सकता । " विभा द्वारा किये रहस्योद्घाटन ने सभी को हैरान कर दिया । ताले पड़ गये जुबानों पर

सारे तथ्य अकाट्य होने के बावजूद जाने क्यों स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स की तरह मेरा दिल भी उस सबको सच मानने के लिए तैयार नहीं था जो कार्ड और नथ कह रहे थे । 

एकाएक विभा ने वहां छाई लम्बी खामोशी को तोड़ा ---- " मानना पड़ेगा जैकी ! एक बार फिर मानना पड़ेगा हत्यारा बेहद चालाक है । अपनी अंगुलियों पर नचाने की कोशिश कर रहा है हमें ! " 
सभी चौंक पड़े । कोई विभा के उपरोक्त शब्दों का अर्थ न समझ सका । 
जैकी ने पुछा---- " आप कहना क्या चाहती है ? " 
" वह हमारे दिमागों में वही स्टोरी , डालनी चाहता है जो कार्ड मिलने पर हमने शुरू की और नथ दिखाकर खत्म की मैंने । " 

विभा कहती चली गई ---- " बहुत ही बड़ा शातिर है कोई ! पहले मेरे हाथ सत्या के कमरे से नथ लगवाता है । उसके बाद चिन्नी के जरिए यहा भेजता है । वह जानता है ---- निर्मला की नथ मैरी नजरों से छुप नहीं सकेगी और मैं कमरे की तलाशी लेने का निश्चय करूंगी । तिजोरी में क्योंकि नम्बर दो की रकम है इसलिए बंसल साहब चाबी देने में आनाकानी करेंगे । शक के दायरे में आयेंगे । वह जानता है बंसल साहब आनाकानी चाहे जितनी करें मगर हम लोग मानने वाले नहीं है । अंततः कार्ड तक पहुँचकर ही दम लेंगे और स्टोरी पूरी हो जायेगी । " 
बंसल खुश ! प्रोफेसस खुश । स्टूडेन्ट्स खुश ! एकता बोली ---- " मैं भी यही कहना चाहती थी विभा जी । " 
जैकी ने कहा ---- " आखिर आप किस बेस पर इस सबको हत्यारे की साजिश बता रही ? " 
" कार्ड को ध्यान से देखो । " 
" देख चुका हूं । " 
" केवल देखा है । ध्यान से नहीं देखा । अब देखो ! " 
जैकी ने कार्ड देखते हुए कहा ---- " क्या देखू ? " 
" इसमें कुछ कमी है । " 
" मुझे नजर नहीं आ रही है । " 
" बंसल साहब का नाम नहीं है इसमें । " 
" ये कमी नही , फैशन है विभा जी । आजकल ऐसे कार्डो पर नाम नहीं लिखे जाते । " 
" उस अवस्था में डेट ऑफ बर्थ लिखी जाती है । " 
" सो तो है । " 
" क्यों नहीं लिखी गई ? " 
" कहना क्या चाहती हैं आप ? " 
" और गौर से देखो --- स्वीट हार्ट और प्रिन्टिड मैटर में एक स्थान पर इंक रिमूबर का इस्तेमाल किया गया है । स्पष्ट है ---- कुछ मिटाया गया है वहां से ! ये काम बारीकी से किया गया । परन्तु ध्यान से देखो , कारस्तानी नजर आ जायेगी।

कार्ड पर जमी जैकी की आँखें चमक उठीं । मुंह से निकला ---- " बाकई । " 
" क्या लिखा गया होगा वहां ? " 
" श - शायद डेट ऑफ बर्थ । " 
" मिटाने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि वह बंसल साहब की डेट नहीं होगी । " 
" मेरा ख्याल है सत्या के प्रेमी को ! " 
" तो क्या हत्यारा सत्या का प्रेमी ही है ? उसी ने बंसल को फंसाने के लिए सत्या द्वारा खुद को दिया गया कार्ड तिजोरी में रख दिया ? " 
" इस बारे में अभी विश्वासपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता । " 
एकाएक दीपा ने कहा --- ' " मेरे दिमाग में एक बात आ रही हैं विभा जी । " 
" बोलो " क्या जरूरी है सत्या मैडम का कोई प्रेमी हो ? " 
सब चौंक पड़े । विभा भी । बोली ---- " क्या कहना चाहती हो ? " 
" केवल लविन्द्र भूषण सर के बयान के बेस पर हम यह मान बैठे है कि सत्या मैडम किसी से प्यार करती थीं । एक आदमी -- एक अकेले आदमी के कहने मात्र से हमें किसी अस्तित्व को स्वीकार कर लेना चाहिए ? क्या ऐसा करके हम समझदारी कर रहे है ? " 
" क्या कहना चाहती हो तुम ? " लविन्द्र भड़क उठा ---- " क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ ? " 
" सॉरी सर । " दीपा ने कहा ---- " ये मतलब नहीं था मेरा । मैं ये कहना चाहती हूं मुमकिन है , सत्या मैडम ने आपसे पीछा छुड़ाने के लिये कह दिया था कि वे पहले ही किसी से मुहब्बत करती हैं । " 
" मुझे नहीं मालूम उसने झूठ कहा था या सच --- मगर कहा जरूर था । " 
" बात में दम है विभाजी । जैकी कह उठा ---- " केवल एक आदमी , वह भी ऐसा ---- जो यह दावा नहीं कर सकता कि सत्या ने उससे सच ही बोला था , के बेस पर हम किसी अस्तित्व को कैसे स्वीकार कर सकते हैं ? क्या पता ऐसे किसी शख्स का अस्तित्व हो ही नहीं ? " 
" यह बात कार्ड मिलने से पहले उठती तो दमदार थी । विभा ने कहा ---- " कार्ड गवाह है ---- किसी न किसी से सत्या मुहब्बत जरूर करती थी । वह वो है जिसकी डेट आफ वर्थ इस पर से मिटा दी गई है । " 

एक बार फिर कमरे में खामोशी छा गयी । अब मैं जिस घटना का जिक्र करने वाला हूं ---- उसने CHALLENGE वाली पहेली एक झटके से खोलकर रख दी । जो हुआ उसे घटना कहना भी शायद गलत है । 


मैं सोच भी नहीं सकता था इस पहेली को खुश्बू हल कर देगी । मेरी सबसे छोटी बेटी उसने एक ही झटके में विभा के दिमाग के समस्त तार झनझना दिये । रात भर कालेज में रहने के बाद हम सुबह घर पहुंचे थे । करिश्मा , गरिमा कॉलिज और खुश्बू , शगुन स्कूल गये हुए थे । मधु को संक्षेप में सब कुछ बताकर उसकी जिज्ञासा शांत की । उसके बाद विभा गेस्टरूम में और मैं अपने कमरे में आराम करने चला गया । दोपहर एक बजे सोकर उठा । मधु से विभा के बारे में पूछा तो उसने कहा ---- " विभा बहन कुछ देर पहले उठी है । बेड टी ले रही है । " 

मैं चाय गेस्टरूम में भेजने के लिए कहकर वहां पहुंचा । विभा एक सोफे पर बैठी चाय पी रही थी । कुछ देर बाद मधु मेरे साथ अपनी चाय लेकर यहीं आ गयी । केस पर चर्चा शुरू हो गयी । चर्चा चल ही रही थी कि खुश्बू स्कूल से आ गयी । विभा होले से मुस्कराकर कह उठी ---- " अभी तक तुमने हथेली पर अपना नाम लिखना नहीं छोड़ा खुश्बू रानी ! " 
" कहा आंटी ! " उसने अपनी हथेली दिखाते हुए कहा ---- " सिर्फ K ही लिखती हूं । " 
" बात एक ही है ---- खुश्बू । " और कहते - कहते विभा उछल पड़ी । 

अचानक मेरी तरफ पलटकर बोली ---- "C फार चन्द्रमोहन ! H फार हिमानी ! A फार अल्लारक्खा और L फॉर ललिता । "

मैं और मधु चकरा गये । समझ नहीं सके वह क्या कह रही है । एक सैकिण्ड को तो ऐसा लगा जैसे विभा पागल हो गयी हो । वह कहती चली गई ---- " इसी क्रम में मर्डर हो रहे हैं वेद । गौर करो ! चन्द्रमोहन , हिमानी , अल्लारखा और ललिता । " 

" सत्या को भूल रही हो तुम । सबसे पहले उसी की हत्या हुई ? " 
" और मरने से पहले उसने CHALLENGE लिखा । 
नहीं ---- वह चैलेंज नहीं था । बल्कि अपने हत्यारों के नाम लिखे थे उसने । हर अक्षर से एक नाम शुरू होता है । कुल मिलाकर नौ अक्षर है अर्थात् नौ लोगों ने हत्या की । ये इत्तफाक है वे नौ अक्षर मिलाकर चैलेंज की स्पेलिंग बन गयी । अगर वह चैलेंज लिखना चाहती तो जैसा कि मैंने पहले कहा ---- स्मॉल इंग्लिश लिखना चाहिए था । उस वक्त हमारे दिमाग में सवाल अटका था कि उसने चैलेंज कैपिटल लेटर्स में क्यों लिखा ? जवाब स्पष्ट है ---- उसने चैलेंज नही ----- बल्कि अपने नौ हत्यारों के नाम के पहले लेटर्स लिखे थे । जो वह कहना चाहती थी वह इन्हीं लेटर्स के स्माल इस्तेमाल से नहीं कहा जा सकता था । " हालांकि मुझे उसकी बात जंची लेकिन क्रॉस किया -- " सत्या ही क्यों , हर मरने वाले ने यही लेटर्स लिखे हैं । "

यही ! " एक - एक शब्द पर जोर देती चली गयी विभा ---- " यही भ्रम फैलाना चाहता था हत्यारा । यह कि बाकी सब हत्याएं भी सत्या की हत्या की श्रृंखला हैं । और हम फंसे रहे । अब बात मेरी समझ में आ गयी है । सबसे बड़ी भूल हम अन्य हत्याओं को सत्या की हत्या की श्रृंखला समझकर कर रहे है वेद । हकीकत यह है कि बाकी हत्याएं सत्या की हत्या के बदले में किये मर्डर है । " 

" मेरी समझ में नहीं आ रहा तुम कहना क्या चाहती हो ? " 
" पहेली हल हो चुकी है दोस्त । इस छोटी सी लड़की की बचकानी हरकत ने मेरे दिमाग में सबकुछ क्लियर कर दिया है । " 
उत्साह से भरी बिभा कहती चली गयी ---- " अब पूरा किस्सा सुनो । मुहब्बत करने वालों के बीच अक्सर हर भाषाओं का आविष्कार और चलन प्रचलित हो जाता है । कदाचित वैसा ही सत्या और उसके प्रेमी के बीच हुआ । यकीनन वे एक - दूसरे को लेटर लिखने या किसी भी मैसेज का आदान - प्रदान करने के लिए अंग्रेजी के किसी नाऊन को पूरा लिखने की जगह शब्द का पहला अक्षर लिखने लगे थे । हालांकि सत्या के मर्डर की वजह अभी अज्ञात है । परन्तु ये तय है , जो वह लिख गई वह हम सबके लिए भले ही पहेली थी परन्तु उसके प्रेमी के लिए पहेली नहीं थी । वह उन अक्षरों को देखते ही समझ गया सत्या के हत्यारे कौन हैं ? बस ! उसने रिवेंज लेना शुरू कर दिया । पहले C मरा , फिर H , रात A और L , इस हिसाब से अभी पांच और कत्ल होंगे । और ये पांच कत्ल ये होंगे जिसके नाम LENGE से शुरू होते हैं । " " तुम्हारी थ्योरी दमदार है विभा मगर .... " 

मगर .... " कालिज में एक अक्षर के अनेक नाम होते हैं । फॉर एग्जाम्पिल चन्दमोहन था तो चकेश भी है । ' 
" यह कोई ऐसी बात नहीं , जो सत्या के प्रेमी के लिए दुविद्या का कारण बनी होगी । उसने नौ में से किसी भी एक तो पकड़ा होगा । उसे टार्चर किया होगा । और बाकी आठ के स्पष्ट नाम जान लिए होंगे । " 
" ओह ! " 
" याद करो .... ललिता ने कहा था — पहने चन्द्रमोहन , उसके बाद हिमानी ! सत्या का नाम नहीं लिया था उसने । यह असामान्य बात मुझे खटकी थी । अब तुम भी समझ सकते हो , उसने ऐसा क्यों कहा ? अपनी तरफ से उसने असामान्य नहीं बल्कि सामान्य और सच्ची बात कही थी । सत्या की हत्या से चन्द्रमोहन , हिमानी और दूसरे लोगों के साथ वह खुद शामिल थी । फिर भला वह कैसे कहती कि सत्या की हत्या किसने की ? उसने उन्हीं का जिक्र किया जो दो हत्याएं खुद उसके लिए रहस्य थीं । और फिर अल्लारखा के बाद उसी हत्यारे द्वारा खुद भी मार डाली गयी ।


कहानी जारी रहेगी।अगला अपडेट जल्दी ही दूँगा।कहानी के बारे में अपने विचार अवश्य दें।थैंक्स।


यानी तुम श्योर हो हत्यारा सत्या का प्रेमी है ? " " और उसका अगला शिकार वह है जिसका नाम L से शुरू होता है । " 

" यह तो लविन्द्र भी हो सकता है । मैंने कहा । " ऐसे लोग कालिज में और होंगे जिनके नाम से शुरू होते हो ? " 
" लेकिन विभा , भला नौ लोग मिलकर सत्या की हत्या क्यों करेंगे ? चन्द्रमोहन , हिमानी और ललिता के बारे में तो मैं कुछ नहीं कह सकता लेकिन अल्लारखा उन स्टूडेन्टस में से था जो सत्या को बहुत पसन्द करते थे । मुझे नहीं लगता वह सत्या की हत्या में शामिल होगा । " 

क्योंकि अभी कारण अज्ञात है इसलिए दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता । " विभा कहती चली गई ---- " हत्यारे का अगला शिकार है जिसका नाम L से शुरू होता है और इस अक्षर से शुरू होने वाले जिस शख्स को हम जानते हैं वह लविन्द्र है । 

लविन्द्र के मन में सत्या के लिए जो भावनाएं थीं उनसे तुम वाकिफ हो । उनकी रोशनी में क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि लबिन्द्र सत्या के हत्यारों में शामिल होगा ? " 

" अगर वह डर , बाजीगर और अंजाम का शाहरुख नहीं है तो हरगिज ना । " मैने कहा ---- " हां , पहेली के हल की रोशनी में इस बात को दूसरे एंगिल से देखा जा सकता है । " 

" दूसरा एंगिल ? " 
" यदि उसे पता लग जाये कि फला - फलां मी व्यक्ति सत्या के कातिल हैं जो एक एक को चुन - चुनकर मार डालेगा वो। " 

" जैसा कि हत्यारा कर रहा है । " 

" म - मतलब ? " मैं चौंक पड़ा । 
" तुम्हारे ही शब्दों को आगे बढ़ाया मैंने ---- बाकी लोगों का हत्यारा लबिन्द्र भी हो सकता है । " 
" अभी तो तुम कह रही थी ---- हत्यारा सत्या का प्रेमी है । " 
" लबिन्द्र प्रेमी नहीं था क्या ? " 
" मगर उसने बताया .... " अव दीपा द्वारा प्रस्तुत किये गये विचारों पर गौर करो । " मैरी बात काटकर विभा कहती चली गयी ---- " सत्या के प्रेमी का अस्तित्व हमारे दिमाग में केवल लविन्द्र के बयान से बना है । उसके अलावा ऐसे किसी शख्स के बारे में न कभी किसी ने सुना न देखा । मजे की बात ये है कि लबिन्द्र ने भी केवल कहा है ! यह कि सत्या ने उससे अपने प्रेमी का जिक्र किया था । यह सच ही है .... इस बात का बह कोई प्रमाण पेश नहीं कर सका । " 

" मतलब क्या हुआ ? " " लॉकिट को मत भूलो । वह पुख्ता तौर पर लविन्द्र को हत्यारा कहता है । बात को यूं समझो ---- जब तुम उससे मिले और डायरी को देखकर ताड़ गये कि वह सत्या का प्रेमी है तो यह अंदर ही अंदर यह सोचकर घबरा गया कि हालांकि मैं सभी हत्याओं को सत्या की श्रृंखला में होने वाले मर्डर साबित करने का प्रयल कर रहा हूं परन्तु इस केस की इन्वेस्टिगेशन पर निकले इस शख्स को मुमकिन है , किसी स्पॉट पर इल्म हो जाये कि चन्द्रमोहन से शुरू होने वाली हत्याएं सत्या की हत्या का रिवेंज हैं । तो इसका शक सत्या का प्रेमी होने के नाते सीधा मुझ पर जायेगा । ऐसे हालात से बचने के लिए उसने तुमसे बात करते वक्त हाथों हाथ ऐसी कहानी गढ़ दी जिससे तुम्हारे दिमाग में यह बैठ जाये कि वह सत्या से एकतरफा प्रेम करता था , वह कोई और है जिससे सत्या प्यार करती थी । " 

" अर्थात् उसकी कहानी झूठी थी ? मेरे दिमाग सत्या का काल्पनिक प्रेमी खड़ा कर दिया था उसने ? " 
" क्यों नहीं हो सकता ? " 
" बंसल की तिजोरी से निकला कार्ड ? " 
" उसी का रक्खा हो सकता है । " विभा की कहानी में कहीं कोई छेद नजर नहीं आया मुझे । सुबूत और हालात चीख - चीखकर लविन्द्र को हत्यारा बता रहे थे । मैं कह उठा ---- " कितनी अजीब बात है ? पहेली का हल बता रहा है कि हत्यारे का अगला शिकार बो है जिसका नाम L से शुरू होता है । वह लविन्द्र भी हो सकता है और लबिन्द्र ही हत्यारा भी लग रहा है हमें । "


" मेरे ख्याल से तो आपका केस काफी हद तक हल हो चुका है । " काफी देर से खामोश मधु ने कहा ---- " आगे होने वाली हत्याओं को भी रोक सकते हैं आप । LENGE से शुरू होने वाले नामों वाले व्यक्तियों को पकड़िए । उनसे पूछिए कि सत्या की हत्या क्यों की ? मेरे ख्याल से एक घण्टे में सच्चाई उगल देंगे । " 

" मधु ठीक कह रही है । हमें अगला कत्ल होने से पहले कालिज पहुंच जाना चाहिए । " 
" देर मैं कहां , तुम कर रहे हो । " विभा ने सोफे से सीधी छलांग बाथरूम के दरवाजे पर लगाई । एक पल के लिए ठिठकी वह । पलटी ! और नजदीक खड़ी खुश्बू को बाहों में भरकर प्यार करती हुई बोली ---- " थैंक्यू मेरी नन्हीं बेटी । थैंक्यू ! तेरी छोटी - सी शरारत ने मेरे दिमाग के सभी खिड़की दरवाजे खोल दिये । " 

खुश्बू नहीं समझ पाई उसने कितना बड़ा काम कर दिया है । जो पहेली किसी के सुलझाये न सुलझ रही थी , वह पल भर में सुलझ गयी । खुश्बू को यूं ही खड़ी छोड़कर विभा बाथरूम में समा गयी । 

मैं अपने कमरे के साथ अटैण्ड बाथरूम में पहुंचा । फ्रेश होकर निकला तो विभा को हाल में बैठी पाया । मुझे देखते ही वह खड़ी होती हुई बोली ---- " चलो । " कुछ देर बाद राल्स रॉयल कालिज की तरफ उड़ी चली जा रही थी । 

विभा का शोफर उसे ड्राइव कर रहा था । हम पिछली सीट पर बैठे थे और विभा कह रही थी ---- " अभी हम पहेली का हल किसी को नहीं बतायेंगे । यह रहस्योद्घाटन मैं खुद करूँगी ---- तब जब मुनासिब मौका देखूगी । 

" मेरी तरह शायद उसे भी गुमान न था कि कालिज में दिमाग को चकरा देने वाली एक और दुर्घटना इन्तजार कर रही है ।


राजेश , एकता , रणवीर और रीना आदि का पीरियड केमेस्ट्री के प्रेक्टिकल का था । पढ़ाई तो खैर कहीं कुछ नहीं हो रही है ---- पीरियड्स की औपचारिकता - सी निभाई जा रही थी । 
सब जगह एक ही चर्चा थी ---- अगला नम्बर किसका है ? 
कुछ ऐसी ही बातें करते राजेश आदि कैमेस्ट्री लैब में पहुंचे । 

लैब खाली पड़ी थी । जाने क्यों . यहां का वातावरण रहस्यमय सा लगा । 

अन्य स्टूडेन्ट्स भी लैब में आ चुके थे । 

प्रैक्टिकल डेस्को पर अनेक कैमिकल्स रखे थे । हालांकि स्वाभाविक रूप से लैब में उनकी गंध फैली रहती थी । परन्तु इस वक्त स्टूडेन्ट्स एक ऐसी गन्ध भी महसूस कर रहे थे जैसी पहले कभी नहीं की थी । अजीब सी घुटन था उस गंध में । 
" कहां गये लविन्द्र सर ? " एक स्टूडेन्ट के मुँह से वह सवाल निकला जो सबके दिमाग में था । 

दूसरे ने कहा ---- " वे तो हम लोगों से पहले यहां पहुंच जाते थे । " 
कोई कुछ नहीं बोला । राजेश ने ऊंची आवाज में पुकारा ---- " आप कहां है सर ? " 
किसी तरफ से कोई जवाब नहीं उभरा । लगभग सभी स्टूडेन्ट्स बार - बार लविन्द्र को पुकारने लगे । और फिर , कुछ देर बाद चीखती हुई दीपा ने कहा ---- " धुवाँ ! राजेश , ये धुवां कैसा ? " 

सभी उसकी तरफ मुखातिब हुए । बल्कि चारों दिशाओं से लपककर नजदीक आये और जो दीपा दिखाना चाहती थी उसे देखकर दंग रह गये । वह लेबोरेट्री के अंदर यानि टीचर्स रूम था । 

रूम का दरवाजा बाहर से बंद था । फर्श और दरवाजे के बीच वाली दरार से निकलता धुवाँ साफ नजर आ रहा था । हैरानी का कारण वह धुवाँ ही था । 
" अंदर शायद आग लग गया है । " श्वेता के मुंह से निकला । रणवीर ने झपटकर दरवाजा खोला । कमरा धुवें से भरा था।

अंदर धुवें का भभका वाहर निकला तो चीखते स्टूडेन्ट्स पीछे हट गये । हालांकि धुवाँ बहुत गाढ़ा नहीं था । परन्तु इतना ज्यादा जरूर था कि पहली नजर में कुछ नजर नहीं आया । न आग न वह स्रोत जहां से धुवाँ निकल रहा था । 

कुछ स्टुडेन्टस डर गये थे । कुछ सहमे हुए थे । अनिष्ट की आशंका से तो लगमग सभी ग्रस्त हो चुके थे । माहौल ही ऐसा था कि जरा सी घटना सबके दिलो - दिमाग को हिला डालती थी ।

धुवाँ लैब में आया तो कमरे का दृश्य धूंधला सा नजर आने लगा । राजेश और उसके साथी हिम्मत करके अंदर घुसे । और उसके बाद तो चीखों का बाजार गर्म हो उठा । 

' लाश - लाश ' चिल्लाते हुए कई स्टूडेन्ट्स कमरे से कूदकर लैब में आये । 

लैब में मौजूद स्टूडेन्ट्स यही शब्द चीखते बाहर की तरफ दौड़े । सारा कालिज लैब और उसके बाहर इकट्ठा हो चुका था और हमारे सामने थी ---- लविन्द्र भूषण की लाश उसे लविन्द्र भूषण की लाश कपड़ों के कारण कह सकते थे । कपड़े भी वे जो जल और गल जाने के कारण पूरी तरह जर जर हो चुके थे । चेहरा पूरी तरह बीभत्स , विकृत और डरावना हो चुका था । 

चेहरा ही क्यों , समूचा जिस्म जल गया था उसका । और वह सब आग में नहीं जला था । लाश एक मेज पर पड़ी थी । पड़ी क्या थी ---- मेज पर बाकायदा बांधा गया था उसे । रेशम की ठीक वैसी ही मजबूत डोरी से जैसी से चिन्नी को बांधा गया था । इस वक्त वह डोरी भी कई जगह से जल और गल जाने के कारण टूट गयी थी । 

लाश का मुंह खुला हुआ था । उसमें ठूंसी ढेर सारी रूई में से इस वक्त धुवां निकल रहा था।

मेज के नीचे प्लास्टिक का एक खाली मग तथा दो बोतलें लुढ़की पड़ी थी । एक बोतल पर चिपके लेवल पर सल्फ्यूरिक एसिड लिखा था , दूसरी पर नाईट्रिक ऐसिड । 

मेंरी खोपड़ी --- यह सोच सोचकर फटी जा रही थी कि जिस केस को हम घर से चलते वक्त हम लगभग हल हुआ समझ रहे थे । उसमें यह नया मोड आने पर आखिर हम खडे कहां है ? 



हालाँकी मर्डर , विभा द्वारा व्यक्त की गई संभावना के मुताबिक , L से शुरू होने वाले नाम के व्यक्ति का हुआ था , परन्तु वह शख्स भी तो वही था जिसे मैं हत्यारा मान चुका था । मेरे दिमाग में अनेक सवाल रेंग रहे थे । खुलकर विभा से इसलिए बात नहीं कर सकता था क्योंकि उसने किसी के सामने पहेली के हल की चर्चा करने से इंकार किया था । 

" हत्यारे के हौसले बुलन्द होते जा रहे हैं । " मेज की परिक्रमा सी करती विभा कह उठी ... " यह मर्डर उसने बगैर किसी जल्दबाजी के , तसल्ली से किया है । जैसे जानता हो उसकी कार्यवाई के दरम्यान कोई आने वाला नहीं है । 

उसने चीखने - चिल्लाने का मौका दिये बगैर लविन्द्र को पकड़ा ! मुंह में रूई ठूंसी । रेशम की डोरी की मदद से मेज पर बांधा । लैब से सल्फ्यूरिक एसिड और नाईट्रिक ऐसिड की बोतलें लाया । दोनों को मग्गे में डालकर अम्लराज तैयार किया और इसके सारे जिस्म पर डालकर कमरा बाहर से बंद करने के बाद निकल गया । " 

" हौसले बुलन्द क्यों नहीं होंगे हत्यारे के ? रोक कौन पा रहा है उसे ? " बंसल ने एक दीवार की तरफ इशारा किया ---- " ये देखिए ! मरने से पूर्व लबिन्द्र ने भी CHALLENGE लिखा है । 

इस पहेली तक को तो सुलझा नहीं सका कोई । " मेरा जी चाहा ---- चीख - चीखकर बताऊं विभा पहेली को हल कर चुकी है । मगर मैं कुछ न कह सकता था , न विभा ने कहा । मगर , उसके गुलाबी होठो पर हल्की सी मुस्कान जरूर उभरी । बोली ---- " इस वक्त केवल इतना कह सकती हूं ---- हत्यारा हमें किसी भ्रमजाल में फंसाने के लिए मकतूल को मजबूर करके उसके हाथ से यह लफ्ज लिखवाता है । " 

" मुझे तो नहीं लगता ऐसा । " राजेश ने कहा ---- " सत्या मैडम ने सबके सामने अपनी मर्जी से ये शब्द लिखा ! कम से कम हमें तो नहीं लगा वे किसी के द्वारा मजबूर की गई थीं । "


" बहुत से सवालों के जवाब बिभा के पास हैं राजेश । " मैं खुद को इतना कहने से न रोक सका ---- " मगर वक्त से पहले बताना ठीक नहीं समझती । " 
" पता नहीं कब आयेगा वक्त ! " राजेश बड़बड़ाकर चुप हो गया । 
" आयेगा राजेश । तुम जैसे ब्रिलियेन्ट लड़के को निराश नहीं होना चाहिए । " विभा ने कहा ---- " एक हद तक मुजरिम इन्वेस्टिगेटर को जरूर छकाता है मगर हमेशा नहीं छकाता रह सकता । 

इन्वेस्टिगेटर को रास्ते मुजरिम की भूल चूक और गलतियों से मिलते हैं । और हो सकता है जब सारे रहस्य खुलें तो तुम खुद कहो , जो हो रहा था , ठीक हो रहा था । यही होना चाहिए था । " 
" य - ये क्या कह रही है आप ? मेरी कुछ समझ में नहीं आया । " 
" सारी बातों को अभी समझने की कोशिश मत करो । " राजेश से कहे गये विभा के अंतिम शब्द मेरे लिए भी पहेली बन गये । समझ न सका - आखिर वह कहना क्या चाहती है ?

CHALLENGE वाली पहेलो हल करने के बाद विभा मुझे एक पहेली में तब्दील होती नजर आई । तभी वहां जैकी पहुंच गया । विभा के कहने पर उसे फोन कर दिया गया था । 

कमरे में घुसते ही उस पर भी वही प्रतिक्रिया हुई जो हम पर हुई थी । लाश का निरीक्षण करने के बाद सारे कमरे का निरीक्षण करती उसकी नजर दीवार पर चॉक से लिखे गये अक्षरों पर पड़ी । वह बड़बड़ा उठा ---- " फिर यही चैलेज " 

" उतरवाओ इसका फोटो । भेजो एक्सपर्ट के पास । " बंसल ने कहा ---- " इसके अलावा हम कर क्या रहे है ? " 
" वाकई । " जैकी का उठा- " बंसल साहब ठीक कह रहे हैं । विभा जी ! ऐसा लगता है जैसे हमारे करने के लिए कुछ रह ही नहीं गया । मैंने लॉकेट के बारे में जितना सोचा , हत्यारा लविन्द्र ही लगा और अब तोहफे की शक्ल में हत्यारे की तरफ से उसी की लाश पेश है । सारे रास्ते पुनः ब्लाक । " 
" वंसल साहब ! " विभा ने जैकी की बात पर ध्यान दिये बगैर प्रिंसिपल से कहा ---- " मुझे कॉलिज के एक - एक स्टूडेन्ट , प्रोफेसर्स और अन्य स्टॉफ के नामों की सूची चाहिए । " 

" मैं हर चीज देने को तैयार है मगर प्लीज किसी तरह हत्याओं के इस सिलसिले को रोकिए । ये सब होता रहा तो मैं तो शायद हार्ट अटैक से ही मर जाऊंगा । " 
" आओ जैकी " कहने के साथ वह कमरे से बाहर निकल गयी । 

पहेली का हल सुनते ही जैकी उछल पड़ा । मुंह से निकला ---- " हद हो गया ! हर लेटर का मतलब अलग था । और हम उन्हें मिलाकर बने शब्द अर्थात चैलेंज पर अटके रहे । हल समझ में आने के बाद आपकी थ्योरी एकदम सही है विभा जी ! कहीं लोच नजर नहीं आ रहा मुझे । 


यकीनन CHALLENGE के जरिए सत्या अपने प्रेमी को अपने कातिलों का नाम बता गयी और उसके बाद हुए सारे मर्डर सत्या की हत्या का रिवेंज है । ये तय है हत्यारा उसका प्रेमी ही है । अब केवल यह पता लगाना रह जाता है कि वह कौन है ? " 

" तुम्हारे ख्याल से इन नौ लोगों ने सत्या ही हत्या क्यों की ? " 
" आप शायद चन्द्रमोहन की जेब से बरामद खून सने पेपर को भूल रही है । उस वक्त भी मेरी धारणा यही बनी थी कि उसकी हत्या का कारण यही था और अब तो बह धारणा मजबूत होती नजर आ रही है । यकीनन इन नौ लोगों का रैकेट पेपर आऊट कर रहा था । सत्या ने उन्हें पकड़ लिया । इसी वजह से मारी गयी । "

" अगर चन्द्रमोहन अन्य आठ लोगों के साथ सत्या का कातिल था तो मरने से पूर्व तुम से बात करते समय वो किस मानसिक अवस्था में था ? क्या वह सचमुच अपने साथियों को पकड़वाने के फेर में था अथवा तुम्हें धोखा देना चाहता था ? " 

“ मुझे आश्चर्य है । वेद जी ने हवालात में उसकी हालत देखी थी । जितना टार्चर मैंने किया था इसके बाद उसे टूट जाना चाहिए था । कुबूल कर लेना चाहिए था कि उसने फला - फलां आठ व्यक्तियों के साथ सत्या की हत्या की है । मगर नहीं टूटा । मुझे भी लगा वह कातिल नहीं है । इसलिए छोड़ दिया मगर मेरा ख्याल है टार्चर ने उसे हिला डाला । 

वह सोचने पर मजबूर हो गया कि देर सबेर सत्या के हत्यारे का मैं पता लगा लूंगा । उस वक्त जब इंस्पैक्टर को पता लगेगा कि मैं भी कातिलों में एक हूं तो शायद इंस्सपेक्टर इस बात पर क्रुद्ध होकर सबसे ज्यादा बुरी गत मेरी ही बनाये कि मैं उसके टॉर्चर के बावजूद नहीं हिला था । अब हम अपनी थ्योरी को सच मानकर उस वक्त की कल्पना करते हैं जब मैंने चन्द्रमोहन को छोड़ा । उससे पहले उसके आठ साथियों के दिलो दिमाग यह सोच - सोचकर कांप रहे होंगे कि हवालात में चन्द्रमोहन टूट गया और हकीकत बता दी तो क्या होगा ? उन्होंने राहत की सांस तब ली होगी जब चंद्रमोहन ने बनाया होगा कि इस्पैक्टर उससे कुछ नहीं उगलवा सका ।


इधर चन्द्रमोहन के दिमाग में खुद को बचाने का द्वन्द्व चल रहा होगा । और फिर , उसने खुद को बचाने की तरकीब निकाल ली । मारे जाने से पूर्व मेरे ख्याल से वह उसी तरकीब पर अमल कर रहा था । " 
" मतलब ? "
मतलब कि " उसने वह पेपर हासिल किया जो मरते वक्त सत्या की मुट्ठी में था । उसे मुझे सौंपकर शापद वह ये कहने वाला था कि इसकी खातिर फला - फलां आठ लोगों ने सत्या की हत्या की । 
" मैंने कहा ---- " वे आठों पकड़े जाने पर बताते कि चन्द्रमोहन भी उनका साथी है । " 

“ उस वक्त चन्द्रमोहन कहता ---- वे झूठ बोल रहे हैं । मेरा नाम केवल इसलिए ले रहे हैं क्योंकि मैंने इन सबकी पोल खोली है । पकड़वाया है । इस अवस्था में हमें वही सच्चा नजर आता । " 
" बात तो जंचने वाली है । " कहने के साथ मैंने विभा की तरफ देखा ---- " फोन करते वक्त शायद वह इसी फिराक में था । " 

" और उसी समय मारा गया ! यानी हत्यारे को मालूम था की वह सत्या के हत्यारों का भेद पुलिस पर खोलने वाला है । वह उन्हें कानून के हवाले नहीं करना चाहता है। खुद सजा देने का तलबगार है । " 
" जाहिर है । " 
" CHA , L और L मारे जा चुके हैं । बाकी बचे E ,N , G , E को क्यों न हम गिरफ्तार कर लें ? " 
" ये वो लिस्ट है जो मेरे मांगने पर बंसल ने दी । " विभा ने लिस्ट दिखाते हुए कहा ---- " कॉलिज में ऐसे चालीस लोग हैं जिनके नाम E.N.G.E से शुरू होते हैं । क्या हमें सबको गिरफ्तार कर लेना चाहिए ? 

" यह पता लगाना शायद मुश्कित नहीं होगा कि इन चालीस में से वे चार कौन से हैं , जो सत्या के मर्डर में शामिल रहे । 

मैंने कहा ---- " दरअसल अभी ये समझ नहीं रहे होंगे कि मर केवल वे रहे हैं जिन्होंने सत्या की हत्या की और हत्यारे के अगले शिकार वे है । यह बात समझ में आते ही वे कदमों में गिर जायेंगे हमारे । " 
" समझाये कौन ? " 
" सोचना यही है वेद । " विभा ने कहा ---- " यह बात उन्हें समझाई जाये या नहीं ? सोच लो ---- चालीस में से चार छांटे तो जा सकते हैं , परन्तु खुलना सभी के साथ पड़ेगा और सबके साथ खुलने का मतलब है वह बात सारे कालिज में फैल जाना जो इस वक्त केवल हमें मालूम है । पहले ही आतंक छाया हुआ है । यह बात खुलने के बाद तो दहशत फैल जायेगी चारों तरफ ! साथ ही हत्यारा भी जान जायेगा कि हम क्या जान गये हैं । " 
" तो करें क्या ? " जैकी बोला ---- " मेरा एक सजेशन है विभा जी ! " 
" बोलो ! " 
" अगर उसी क्रम में चला जाये जिस क्रम से हत्याएं हो रही है तो हत्यारे का अगला शिकार है E..... लिस्ट में ऐसे कितने नाम है जिनके नाम E से शुरू होते हैं ?

" पन्द्रह ! " 
" क्यों न फिलहाल इन पन्द्रह को ही अपने सुरक्षा - जाल में रखें ? " 
विभा ने कहा ---- " लविन्द्र की हत्या ने साबित कर दिया है ---- हत्यारे के लिए दिन और रात में कोई फर्क नहीं है । वह किसी भी समय वारदात कर सकता है । इन पन्द्रह को अभी से अपने सुरक्षा चक्र में ले लेना चाहिए । " " 
" इसके लिए मुझे फोर्स बुलानी होगी । " 
" इसी वक्त जाकर एस.एस.पी. से बात करो । "


विभा ने कहा । कैंटीन वाला कैंटीन बंद करने की प्रक्रिया की तरफ बढ़ रहा था । 

मैं और विभा वहां पहुंचे । विभा ने उसे कैंटीन बंद करने से रोका । कॉफी बनाने के लिए कहा । ज्यादा भीड़ नहीं थी वहां । इक्का दुक्का मेजों पर स्टूडेन्ट्स बैठें थे । मैं और विभा उस वक्त कॉफी पी रहे थे जब गुल्लू वहां पहुंचा । 

रूल बगल में दबाये उसने कैंटीन वाले से चाय बनाने के लिए कहा । और हमसे दूर , एक कुर्सी पर बैठ गया । कहर उस वक्त बरपा जब चाय पीने के बाद गुल्लू पेमेन्ट करने लगा । विभा की आंखों में मैंने बड़ी जबरदस्त चमक देखी । इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता वह झटके से उठी । बाज की मानिंद झपटी और गुल्लू के नजदीक पहुंचकर उसकी कलाई थाम ली । 

गुल्लू के हाथ में सौ का करारा नोट था । उस नोट को लेने के लिए कैंटीन वाले का हाथ बढ़ा का बढा रह गया । विभा की अजीब हरकत पर कैंटीन में मौजूद हर व्यक्ति चकित रह गया था । 

" जब चन्द्रमोहन की हत्या हुई उस वक्त तुम कहां थे ? " पूछने के साथ विभा ने उसके हाथ से नोट खींच लिया । 

" इस्पैक्टर साहब को बता चुके हैं । " गुल्लू ने रटे रटाये शब्द बोलने शुरू किए ---- " हम गेट पर स्टेण्ड थे । चन्द्रमोहन बाबा की चीख सुनी । स्टॉफ रूम की तरफ रन किया । वहां पहुंचे तो देखा .. . 

उसकी बात काटकर विभा गुर्राई ---- " झूठ बोलने की कोशिश की तो जिन्दा गाड़ दूंगी जमीन में । ' सकपका गया गुल्लू । 

हकबकाया सा विभा की तरफ देखता रह गया । तब तक कैंटीन में मौजूद हर शख्स उनके समीप पहुंच चुका था । किसी को समझ में नहीं आ रहा था अचानक विभा ने गुल्लू को क्यों पकड़ा ?


अगर उसे कोई शक था तो काफी पहले यह हरकत क्यों नहीं की ? इसी वक्त गुल्लू की ऐसी क्या असामान्य हरकत देखी जिसके कारण हरकत में आई ? 

मैंने पूछा ---- " क्या हुआ विभा ? क्या किया है इसने ? " 
" इस नोट को देखो । " गुल्लू पर नजरें चिपकाये विभा ने नौट मेरी तरफ बढ़ाया ---- " कितना करारा है ? एकदम नया ! ऐसे ही नोट तुम्हें और जैकी को चन्द्रमोहन की जेब से मिले थे । देखकर बताओ ---- ये नोट उनके साथ का है या नहीं ? 

" दंग रह गया मैं । चन्द्रमोहन की जेब से बरामद जिन नोटों को पूरी तरह भूल चुका था , वे केवल मेरे बताने मात्र से विभा के जहन में थे । न केवल जहन में थे बल्कि इस नोट को देखते ही उन नोटों की याद आ गयी उसे ! आखिर क्या लिंक जुड़ रहा था उसकी करामाती खोपड़ी में ? कुछ भी न समझते हुए मैंने कहा ---- " है तो वैसा ही कोरा मगर उसके साथ का है या नहीं ---- गारंटी से नहीं कह सकता । असल में खुन सने पेपर के कारण मैं उन पर ध्यान नहीं दे सका था । " 

" कहां है वे नोट ? " 

" जैकी के पास । " " मोबाइल पर फोन करो उसके । नोटों के नम्बर पूछो । " 
" ओ.के .. " कहने के साथ मैंने कैंटीन से निकलने के लिए कदम बढ़ाया ही था कि विभा ने कहा ---- " या ठहरो ! " मैं ठिठका " 

पहले इसी से पूछते हैं । " विभा ने गुल्लू से सवाल किया ---- “ बोलो ---- ये नोट उन्हीं के साथ का है या नहीं ? " 

गुल्लू चुप ! " सच बोलोगे तो माफ कर सकती हूं । जैकी से बात करने के बाद हकीकत सामने आई तो तुम्हारे लिए मुश्किलें खड़ी हो जायेंगी । 

" टूट गया गुल्लू । बोला ---- " उन्हीं के साथ का है " 
" और कितने है ? " 
" निकालो । 
गुल्लु ने अपने साफे के नीचे से वैसा ही एक और नोट निकालकर दिया । दोनों के नम्बर आगे पीछे के थे । विभा ने पुछा ---- " तुम पर कैसे आ गये थे ? " 
" चन्द्रमोहन बाबा ने दिये थे । " 
" कब ? कहां ? और क्यों ?


" बात उसी नाइट की है जिस नाइट उनका मर्डर हुआ । हम राऊन्ड पर थे । देखा ---- एक साया बायज हॉस्टल की बाऊंड्री वाल से कैम्पस में कूदा । हमने खुद को अंधेरे में छुपा लिया । " 

" छुपा क्यों लिया ? चौकीदार होने के नाते तुम्हारा कर्तव्य उसे ललकारना था या खुद को छुपा लेना ? " 
" क्योंकि हम साये को पहचान गये थे । 

चन्द्रमोहन बाबा थे तो हमारी आसामी ! " 
" आसामी से मतलब ? " 
" ये मनी फर्स्ट बार नहीं दी थी उन्होंने । " 
" अक्सर देता रहता था ? " 
" क्योंकि वे नाइट में कालिज से बाहर जाते थे । " 
" किसलिए ? " 
" स्मैक लेने । " 
" उस नाइट हम कड़के थे । सो सोचा चलो , अच्छी मुर्गी बनेगी । चन्द्रमोहन बाबा खुद को डार्क में रखने का प्रयत्न करते आगे बढ़ रहे थे । हमने सोचा टूडे ऐसा व्हाई कर रहे हैं ? ये तो सीना तानकर गेट की तरफ बढ़ते थे । हमारी मुट्ठी गर्म करते थे और निकल जाते थे । लगा आज वे चकमा देकर नाइन टू इलेविन होने के फेर में हैं । मगर हम भला कब चूकने वाले थे ? दवे पांव उनके नजदीक पहुंचे । अपना हेण्ड उनके सोल्डर पर रखा । 

बुरी तरह चौक उठे थे । उछलकर घूमते हुए पूछा ---- " क - कौन ? " 
" हम हैं चन्द्रमोहन बाबा । " हमने ही - ही करके टीथ दिखा दिये । 
" ओह ! गुल्लू ? " उन्होंने राहत की सांस ली ---- " तुमने तो मुझे डरा ही दिया यार । " " डरता तो मैन तभी है चन्द्रमोहन बाबा जब खुद के हार्ट में थीफ हो । तुम चोरी - चोरी निकलना चाहते थे ! हमने दबोच लिया । गार्ड हैं यहां के ड्यूटी पर मुस्तैद रहते हैं । बगैर फीस दिये कोई आऊट नहीं जा सकता । " 
" मैं बाहर नहीं जा रहा । " 
" तो क्या कम्पनी गार्डन समझकर नाइट वॉक पर निकले थे ? " 
" स्टॉफ रूम की तरफ जा रहा था । मुझे एक फोन करना है । " 
" तु इस लफड़े में मत पड़ । " कहने के साथ उन्होंने एक नोट निकालकर हमारे हैण्ड पर रखा ---- हमने गैट की तरफ देखते हुए उनमें कहा ---- ' रेट घटा दिये है क्या ? मालूम नहीं — महंगाई कुतुबमीनार पर चढ़कर चिल्ला रही है । एक और झटको । " 

उन्होंने एक और नोट निकालकर हमारे हैण्ड पर रखा । विभा ने पूछा -.... " क्या तुमने उसके पास खुन से सना पेपर भी देखा था ? " 
" नो । उन्होंने दोनों बार जैब से एक - एक नोट ही निकाला था । " 
" और उसके बाद ? " हमने कहा --- " फोन करने के द हन्डरेड ! कोई खास चिड़िया है क्या ? " 
" तू इस चक्कर में मत पड़ । गेट की तरफ जा । " उन्हें घिस्सा देने के लिए हमने गेट की तरफ बढ़ने का ड्रामा जरूर किया पर असल में उपर गये नहीं । बीच ही से कन्नी काटकर मन वदला और वरांडे के धम्बों के पीछे छुप - छुपाते फॉलो करने लगे । सोचा था ---- अगर यह पता लग जाये वे किस गर्ल को फोन कर रहे हैं तो अच्छी- खासी पुड़िया बन जाये । 

जिस वक्त वे स्टॉफ रूम में दाखिल हुए उस वक्त हम सामने वाले बरांडे में थे । बट आपने देखा ही होगा ---- दोनों के बीच करीब टु हन्डरेड फुट चौड़ा ग्राऊन्ड है । उन्हें स्टाफ रूम में गये ज्यादा टाइम नहीं गुजरा था कि एक हेलमेट वाला डार्क से निकलकर चांदनी में आया । उसके हैण्ड में वन वल्लम था । इससे पहले कि हम कुछ समझ पाते , वह बड़बड़ाता सा स्टाफ रूम के दरवाजे पर पहुंचा ।

हम यह जानने की कोशिश कर ही रहे थे कि वह कौन है एण्ड बाट चाहता है कि उसका बल्लम बाला हैण्ड इलेक्ट्रिक स्पीड से चला । अगले पल उसके हैण्ड में वल्लम नहीं था । चन्द्रमोहन बाबा की चीख गुंजी । 

डेंजर का आभास होते ही हम बरांडे से ग्राउन्ड में कुदे । स्टाफ रूम की तरफ रन किया । हेलमैट वाला भी भागा । हम चीखते हुए उसकी तरफ दौड़े । उसके बाद का सच - सच हम आपके फ्रेंड और इंस्पेक्टर साहब को बता ही चुके हैं । हमारे देखते ही देखते वह कॉलिज की बाऊन्द्री बॉल से बाहर कूद गया । " 

" ये बातें तुमने पहले क्यों नहीं बताई " 

" सर्विस से किसे लव नहीं होता , मैडम जी ? प्रिंसिपल साहब को पता लग जाता हम करेंसी लेकर चन्द्रमोहन बाबा को बाहर जाने देते थे तो बोरिया बिस्तर राऊन्ड न हो जाता ? " 

उसे घुरती हुई विभा ने कहा ---- " क्या जरूरी है इस वक्त सच बोल रहे हो ? " 
" आपके सामने किसी की लाई चल ही नहीं सकता मैडम जी बट .... " 
क्या कहना चाहते हो ? " । " 
हैण्ड जोड़ता हूं आपके ! फुट पड़ता हूँ । जो मैंने बताया या बताना पड़ा ---- उसके बारे में प्रिंसिपल साहब से कुछ न कहना । बड़े स्ट्रिक है । हमारी सर्विस चट कर जायेंगे । " 
" नहीं कहूंगी । मगर तुम्हें सच बोलना होगा । " " सब ही तो बोला है मैडम जी । " 
" अभी आधा सच बोला है तुमने । आधे सच को छुपा रहे हो । " 
" ह - हम तो कुछ भी नहीं छुपा रहे , मैडम जी ।


आओ । " कहने के साथ विभा उसे घसीटती सी कैंटीन के कमरे में ले गयी । मैं साथ था । उसके निर्देश पर कमरे का दरवाजा अंदर से बंद किया । बाहर रह गये स्टूडेन्ट सस्पैंस से घिरे वहीं खड़े रह गये । आतंक की ज्यादती के कारण गुल्लू का बुरा हाल था । वह समझ चुका था किसी मुसीबत में फंसने वाला है । हालांकि यह बात मेरे जहन में थी कि गुल्लू का नाम भी उन अक्षरों में से एक से शुरू होता है जो हत्यारे के भावी शिकार है , परन्तु यह न जान सका ---- यह गुल्लू से चाहती क्या है ? इस बक्त वह गुल्लू के अत्यन्त नजदीक खड़ी उसे घूर रही थी । गुल्लू को काटो तो खून नहीं नजर ही नहीं चेहरा झुकाकर कहा उसने ---- " अ - आप हमें ऐसे क्यों देख रही है ? " 

" चन्द्रमोहन के साथ किसी क्राइम में शामिल नहीं थे तुम ? " विभा के हलक से गुर्राहट निकली । 
" ह - म ? " गुल्लू ने एक झटके से चेहरा उठाया - " हम भला किस क्राइम में शामिल होते ? " 
" तुमने अभी - अभी कहा- मेरे सामने झूठ नहीं चल सकता । मैं जान चुकी हूं बेवकूफ । तुम पेपर आऊट करने वाले रैकेट के मेम्बर हो । तुमने चन्द्रमोहन , हिमानी , अल्लारक्खा , ललिता , लविन्द्र और दूसरे साथियों के साथ मिलकर सत्या की हत्या की । " चेहरा निचुड़ गया गुल्लू का । क्षण मात्र में अपराधी सा नजर आने लगा वह । 

विभा उस पर प्रेशर बढ़ाने के लिए गुराई ---- " हकीकत जानते हुए भी मैंने किसी से कुछ नहीं कहा है ! सोचो ---- इस बार मैंने इंस्पैक्टर को बता दिया तो क्या हाल करेगा तुम्हारा ? " 
" न - नो नो मैडम जी । " वह पछाड़ सी खाकर विभा के कदमों में गिर गया ---- " उसके हवाले मत करना । चन्द्रमोहन ने बताया था बड़ा जालिम इंस्पैक्टर है वो । बहुत बुरी तरह टार्चर करता है हम तो सुनकर ही कांप गये । सोचने लगे उसकी जगह हम इंस्पैक्टर के चंगुल में फंस जाते तो हकीकत को छुपाये नहीं रख सकते थे । " 
" कौन सी हकीकत को ? " 
" ज - जब आप सब कुछ जानती ही है तो .... " मेरा जानना अलग है । तुम्हारा बताना अलग ! मैं ये देखना चाहती हूं ---- तुम अब भी कुछ छुपाने की फिराक में हो या सब कुछ सच - सच बताते हो ? बोलो --- सत्या की हत्या क्यों और किस तरह की तुमने ? सारी बातें विस्तार से बताओ । कुछ भी छुपाया तो मुझसे बुरा कोई न होगा । '


" हम नौ लोग पेपर आऊट करने का धंधा करते थे । " 
" नाम बताओ सबके । " 
" आप जानती तो है ....।

तुम्हारे मुंह से सुनने को तलबगार हूं । 
" मैं समझ गया ---- विभा बाकी के तीन नाम जानना चाहती है । उन नामों को सुनने के लिए मैं भी बेचैन था । 
" मैं | " गुल्लू ने बताना शुरू किया ---- " चन्द्रमोहन , हिमानी , अल्लारक्खा , ललिता , लविन्द्र , एकता , नगेन्द्र और ऐरिक । " 
" गुड ! " विभा ने कहा ---- " कब से चल रहा था ये धंधा ? " 
" पांच साल से । शुरू में केवल ऐरिक , नगेन्द्र और चन्द्रमोहन ने शुरू किया था । अगले साल हिमानी और अल्लारखा जुड़ गये । उससे अगले साल ललिता और एकता रैकेट की मेम्बर बनीं । हमें और लविन्द्र सर को उनके फेर में आये ओनली टू ईयर हुए है । " 
" नये - नये लोग किस तरह जुड़ते थे ? " 
" जो किसी भी जरिए से रैकिट का राज जान जाता । ओल्ड लोग उसे शेयर देने का लालच देकर शामिल कर लेते थे । " 
" कितनी कमाई होती थी इसमें ? " 
" असली कमाई के बारे में तो ऐरिक सर और चन्द्रमोहन जानते हैं । हम जैसे छोटे प्यादे को तो वन ईयर में ओनली फ़ाइव लाख मिल जाते थे । " 
" पांच लाख ? " विभा दंग रह गयी । " 
यह केवल इसका शेयर था। " मैं बोला -- " 

अब मेरी समझ में आया । पेपर आऊट करने वाला यह वह रेकैट है जिसकी सक्रियता की चर्चा किसी न किसी स्तर पर हर साल होती रही है । मगर इधर एग्जाम खत्म होते उधर चर्चा भी आई गई हो जाती । ये पेपर यूनिवर्सिटी से कनेक्टिड सभी कालिजों में ऊंचे दामों में बेचे जाते थे । " 
" खैर ! " विभा ने गुल्लू से कहा ---- " सत्या तुम्हारे हत्थे कैसे चढी ? " 
" उन्होंने कैम्पस में वंसल साहब और चन्द्रमोहन के खिलाफ मीटिंग बुलाई हुई थी । क्लाईमेंट तो कॉलिज का गर्म था ही मगर हमें उस गर्मी से कुछ लेना देना नहीं था । हमारे दिमागों पर तो यह गर्मी सवार थी कि एग्जाम आने वाले हैं --- इस बार मिशन को किस तरह अंजाम दिया जाये ? सत्या मैडम को ढूंढने के बहाने हम सब हिमानी मैडम के कमरे में इकट्ठे हुए । उन्हीं के द्वारा बनाये गये पेपर की कापियां थीं हमारे हाथों में । तभी चन्द्रमोहन ने कालिज में अपने खिलाफ चल रहे माहौल का जिक्र छेड़ दिया ! कहने लगा ---- हम सबको सत्या के खिलाफ उसकी मदद करनी चाहिए । 

ऐरिक सर ने कहा ---- " हम लोग सिर्फ इस धंधे के हिस्सेदार हैं । किसी की अन्य गतिविधियों से कुछ लेना - देना नहीं है । जो तुमने किया है , तुम्हीं को भुगतना होगा । हममें से कोई साथ देने के लिए बाध्य नहीं है । ' 

यह सुनकर चन्द्रमोहन भड़क उठा । धंधे का भेद खोलने की धमकी देने लगा । तब एकता और अल्लारखा ने कहा ---- ' इस तरह तुम्हारा साथ देने लगे तो हम लोगों की उस पॉलिसी पर भी पानी , फिर जायेगा जिस पर आज तक अमल करते रहे हैं । सब यही जानते हैं तुम और हम अलग - अलग ग्रुप के हैं । यह सावधानी हमने इसीलिए तो अपना रखी है कि नौ लोगों का रैकिट कभी किसी की समझ में न आ सके । परन्तु चन्द्रमोहन किसी की सुनने को तैयार नहीं था । वह लड़ने - झगड़ने लगा ।

ऊंची आवाज में बोलने लगा । उसी का अंजाम था सत्या मैडम रूम में आ गयीं । " 
" उसके बाद ? " मैंने धड़कते दिल से पूछा। " 

सब अवाक रह गये । उनका फेस कठोर संगमरमर जैसा लग रहा था । हिमानी के हैण्ड में दबा पेपर छीनती हुई बोली ---- " दरवाजे के बाहर खड़ी पन्द्रह मिनट से तुम्हारी बकवास सुन रही हूं । जान चुकी हूं वह रैकेट तुम लोग चलते हो जिसकी कानून को पांच साल से तलाश है । और लविन्द्र तुम ? तुम भी इन लोगों में शामिल हो ? मैं सोच तक नहीं सकती थी तुम इस घृणित धंधे का हिस्सा होगे । "


लविन्द्र सर सहित सबने उन्हें समझाने की कोशिश की । कोशिश यही थी जो किसी भी नये आदमी को राज पता लगने पर की जाती थी । ' उसे रैकेट में शामिल कर लेना । शेयर का लालच देना । मगर सत्या मैडम पर किसी चीज का असर नहीं हुआ । उन्हें सबसे ज्यादा शिकायत लबिन्द्र सर से थी । 

जब वे हम सबका भेद कैम्पस में जाकर खोलने की धमकी देने लगी तो चन्द्रमोहन ने चाकू खोल दिया । बोला ---- " तेरा इलाज केवल ये है । " सब समझ चुके थे सत्या मेडम को शामिल करना तो दूर , पोल खोलने तक से नहीं रोका जा सकता । अतः सबको वही रास्ता नजर आया जो चन्द्रमोहन कह रहा था । केवल लविन्द्र सर ने विरोध किया । कहा- " वे सत्या को समझा लेंगे । ऐसा कोशिश उन्होंने की भी किन्तु सत्या मैडम खतरा भांप चुकी थीं । 

लविन्द्र सर समझाने - बुझाने की कोशिश कर ही रहे थे कि उन्होंने दरवाजे की तरफ जम्प लगाई । सैंडिल वहीं रह गई । सब उनके पीछे लपके । भेद खुलने पर फांसी का फंदा साफ - साफ नजर आ रहा था । पेपर मुट्ठी में दवाये सत्या मैडम को जिधर जगह मिली भागती चली गयी । हम उनके पीछे थे । 

चाकू ऐरिक सर के हाथ में भी आ चुका था । भागम - भाग के बाद सब टेरेस पर पहुंचे । ऐरिक सर ने चाकू भौंका । सत्या मैडम के हलक से चीख निकली । जख्म से खून का फव्वारा ! पेपर उनके अपने खून से सन गया । हिमानी मैडम ने झपटकर उसे छीना । सत्या मैडम चीखती हुई टैरेस के सिरे की तरफ भागी । चाकू सम्भाले ऐरिक सर पुनः उन पर झपटे 

मगर हममें से कोई भी टैरेस के सिरे पर नहीं जा सकता था । जानते थे वहां कैम्पस में मौजूद लोगों द्वारा देख लिये जायेंगे । और फिर हमसे बचने के प्रयास में ये टेरेस से गिर गई " बताने के बाद गुल्लू चुप हो गया । गहरी - गहरी सांसें ले रहा था वह । 
" आगे बको । " 
" सब अवाक रह गये । जो हुआ , आनन - फानन में हो गया था । लविन्द्र सर तो ऐरिक पर गुर्रा भी उठे ---- ' ये क्या किया तुमने ? ' ऐरिक सर दहाड़े ---- और क्या करता ? " अल्लारखा बोला ---- ' जो हो गया सो गया , इस पर बाद में सोचेंगे । फिलहाल हमारा कैम्पस की भीड़ में शामिल होना जरूरी है। बात सबको जँची। ऐरिक सर ने चाकू चन्द्रमोहन को देने के साथ कहा ---- ' इसे कहीं छुपा दे । ' 


एकता ने हिमानी से कहा --- ' ये पेपर या पैपर के टुकड़े भी किसी के हाथ नहीं लगने चाहिए । ' हिमानी ने पेपर अपने वक्षस्थल में ठूंस लिया । चन्द्रमोहन टैरेस से टैरेस पर कूदकर व्यायज़ हॉस्टल में पहुंचा । जल्दी ही हम सब भी कैम्पस की भीड़ में शामिल हो गये । " 

" उसके बाद ? " मेरे मुंह से निकला । 

" डेथ से पूर्व कैम्पस की जमीन पर सत्या मैडम द्वारा लिखा गया CHALLENGE जैसे अन्य सबके लिए पहेली था वैसे ही हमारे लिए भी था । आज तक है ! हम लोग आपस में कई बार विचार - विमर्श के बावजूद नहीं समझ सके कि सत्या मैडम ने CHALLENGE क्यों लिखा ? " 

" चन्द्रमोहन की गिरफ्तारी की तुम लोगों पर क्या प्रतिक्रिया हुई थी ? " 
" चन्द्रमोहन के खिलाफ शोर - शराबा राजेश आदि ने शुरू किया । ज्यादातर स्टूडेन्ट्स ने उनका साथ दिया । इस्पेक्टर ने उसके कमरे की तलाशी लेने का फैसला किया । खून से सना चाकू बेवकूफ ने वहीं छुपा रखा था ! मरना तो था ही ! पकड़ा गया । इंस्पैक्टर के जाते ही ऐरिक सर के कमरे में आठों की मीटिंग हुई । ज्यादातर की हवा यह सोच - सोचकर शंट हुई जा रही थी कि चन्द्रमोहन टूट गया तो क्या होगा ? " 
" लविन्द्र की क्या प्रतिक्रिया थी उस वक्त ? " " वे खामोश थे । एक लफ्ज़ नहीं बोले । वार्ता में हिस्सा भी नहीं लिया । सबने पूछा भी वे क्या सोच रहे हैं ? केवल इतना कहा ---- जो हुआ , अच्छा नहीं हुआ ।

ऐरिक सर बोले - हम कब कह रहे हैं अच्छा हुआ मगर यह न होता तो उससे भी बुरा होता । लविन्द्र सर पुनः खामोश हो गये । सब चन्द्रमोहन के टूट जाने से डरे हुए थे । केवल ऐरिक सर को विश्वास था चन्द्रमोहन टूटने वाला नहीं है और फिर उस वक्त मैं गेट पर खड़ा था जब इंस्पैक्टर साहब और ये ! " गुल्लू ने मेरी तरफ इशारा करके कहना जारी रखा ---- " उसे लेकर आये । चन्द्रमोहन ने एक ही इशारे में मुझे बता दिया कि उसने इंस्पैक्टर को कुछ नहीं बताया है । मेरी बांछे खिल गई । यही हाल पता लगने पर बाकी सबका हुआ है । " 

" लविन्द्र का भी ? " " उनका एटीट्यूट किसी की समझ में नहीं आ रहा था । चुप - चुप से थे । वेद जी के जाने के बाद पुनः मीटिंग हुई जिसमें चन्द्रमोहन ने बताया उसे इंस्पैक्टर ने किस - किस तरह कितना टॉर्चर किया मगर उसने हकीकत उगलकर नहीं दी । " 

सुनकर मैंने और विभा ने एक - दूसरे की तरफ देखा । जाहिर था --- चन्द्रमोहन ने अपने साथियों को यह नहीं बताया कि जैकी ने उसे अपना मुखबिर बनाकर छोड़ा है । विभा ने अगला सवाल किया ---- " उसके बाद चन्द्रमोहन तुम्हें कब और कहां मिला ? " 

" रात के वक्त ! मर्डर से पूर्व कैम्पस में । " 
" अब पूरा सच बताओ । क्या बातें हुई तुम्हारी ? " 
" हमने कहा था ---- तुम वैसे ही सबके शक के दायरे में हो चन्द्रमोहन ! एकाध रात स्मैक की तलब को दबा लो तो ठीक रहेगा । " उसने कहा --- मैं स्मैक लेने नहीं , एक जरूरी फोन करने स्टॉफ रूम तक जा रहा हूं । 

हमने काफी पूछा किसे फोन करना है ? उसने नहीं बताया । दो नोट दिये । गेट पर जाकर ड्यूटी देने के लिए कहा । उस वक्त हमने कल्पना तक नहीं की थी यह इंस्पेक्टर को फोन करेगा । जहन में यही था शायद किसी लड़की को फोन करने वाला है । इसीलिए फॉलो किया । उसके बाद वही सब हुआ जो बता चुके हैं । 


उसकी जेब से सत्या के खून से सने पेपर की बरामदगी और यह जानने के बाद तुम लोगों पर क्या प्रतिक्रिया हुई कि वह जैकी को सारा भेद बताने वाला था ? " 
" सबके सामने तो कोई किसी किस्म की प्रतिक्रिया व्यक्त कर ही नहीं सकता था । " गुल्लू ने कहा ---- " बाद में मीटिंग हुई । 

हिमानी मैडम के कमरे से सत्या मैडम के खून से सना पेपर गायब पाया गया । सब समझ गये ---- उसे चन्द्रमोहन ने चुराया होगा ।

इंस्पेक्टर बता ही चुका था कि चन्द्रमोहन ने फोन पर उससे क्या और कितनी बातें की । उनसे जाहिर था ---- चन्द्रमोहन खुद को बचाकर हमें फंसाने के फेर में था । सबकी एक ही राय बनी --- अच्छा हुआ मारा गया । " 

" यह सबाल नहीं उठा ---- मारा किसने ? " 

" उठा क्यों नहीं ? काफी जद्दोजहद हुई । मगर नतीजा किसी की समझ में नहीं आया उसे किसने और क्यों मारा ? " 
" लविन्द्र की प्रतिकिया क्या थी ? " मैंने चौंककर विभा की तरफ देखा । 

समझ नहीं पाया ---- वह बात - बात पर लविन्द्र की ही प्रतिक्रिया जानने के लिए उत्सुक क्यों है ? सवाल करने का मौका नहीं था क्योंकि गुल्लू ने बोलना शुरू कर दिया था --- " जद्दोजहद में कोई खास हिस्सा नही लिया उन्होंने । मुनासिब शायद यही कहना होगा वे चुप - चुप से थे । " 
" उसके बाद हिमानी , अल्लारक्खा , ललिता और अब लबिन्द्र की हत्या पर तुम्हारे ग्रुप को क्या प्रतिक्रिया रही ? "

" लविन्द्र सर की हत्या के बाद तो हम लोग अभी मिल नहीं पाये है लेकिन हर हत्या के बाद मीटिंग होती रही । हर बार यही विचार - विमर्श हुआ कि यह सब हो क्या रहा है ? कौन और क्यों कर रहा है हत्याएं ? किसी की समझ में कुछ नहीं आया । " 

" यह सवाल नहीं उठा हत्याएं तुम्हारे ही ग्रुप की क्यों हो रही है ? " 

" उठा था । अल्लारखा और ललिता की हत्या के बाद लविन्द्र सर ने उठाया था । उन्होंने कहा पहले चन्द्रमोहन , उसके बाद हिमानी और अब अल्लारक्खा तथा ललिता । हमारे ही गुप के लोग क्यों मर रहे हैं ? मुझे लगता है कोई पेपर आऊट करने वाले रैकेट के पीछे पड़ गया है । एक - एक करके सबको खत्म करता जा रहा है वह । ऐरिक सर ने विरोध किया । बोले ---- अपने बे सिर पैर के ख्याल से दहशत मत फैलाओ । जो मरे वे हमारे ग्रुप के थे , यह केवल इत्तफाक है । सत्या मैडम के अलावा हमारा राज जानता ही कौन है ? और वह अब इस दुनिया में नहीं है । 

लबिन्द्र सर ने कहा ---- ' मुझे लगता है , कोई हमसे सत्या की हत्या का बदला ले रहा है । ऐरिक सर भड़क उठे ---- चोर की दाढ़ी में तिनका वाली बात मत करो ! किसी को पता नहीं सत्या की हत्या हमने की है । फिर भला कौन बदला लेगा ? ये कुछ और चक्कर चल रहा है । व्यर्थ ही उसे अपने गुनाह से जोड़कर सबका दिमाग खराब मत करो । ' 

लबिन्द्र सर यह बड़बड़ाने के बाद चुप हो गये कि अगर ये इत्तफाक है तो बड़ा अजीब है । ऐरिक सर ने कहा ---- ' लबिन्द्र की बातों से डरकर कोई अपना मुंह फ़ाड़ने की बेवकूफी न करे । हम लोग केवल तभी तक सुरक्षित है जब तक इंस्पैक्टर , विभा और वो लेखक यह सोच रहे है कि सत्या का मर्डर भी इन्हीं मडर्स की श्रृंखला है । जैसे ही उन्हें पता लगा सत्या की हत्या हमने की है .... हमारी गर्दनों में फांसी के फंदे पड़े होंगे । 

मैंने कहा ---- ' लेकिन सर ! पता तो लगना चाहिए - मर्डरस कर कौन रहा है ? ' 
' तीन - तीन इन्वेस्टिगेटर जुटे पड़े है । अपना दिमाग खराब करने की जरूरत नहीं हमें । हमारी पॉलिसी वही रहनी चाहिए जो अब तक है । चुप्पी ! और वैसा एटीट्यूट जैसा दूसरे स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स का है । 

दूसरे लोगों से जरा भी ज्यादा सक्रियता दिखाने या एग्रेसिव होने की कोशिश की तो इन्वेस्टिगेटर्स की नजरों में आ जायेंगे । वह हमारे हित में नहीं होगा । देर - सवेर हत्यारे को पकड़ ही लेंगे वे । तब सत्या की हत्या भी उसी के मत्थे मढ़ जायेगी । हमारी तरफ ध्यान तक नहीं जायेगा किसी का।

" विभा ने कहा ---- " तुम्हीं में से एक और मारा गया । अब क्या सोचते हो तुम ? " 
" अब तो हमें भी लविन्द्र सर की बात ही ठीक लगती है । कोई हमारे रैकिट को , सत्या मैडम के हत्यारों को एक - एक करके खत्म कर रहा है । शायद अगला नम्बर मेरा ही है । "
" CHALLENGE का मतलब तुम लोगों की समझ में अब तक नहीं आया ? " 
" न - नहीं । क्या आपकी समझ में आ गया है ? " 
" शटअप ! " विभा गुर्राई । गुल्लू सकपका उठा । कुछ देर विभा जाने क्या सोचती रही । फिर बोली - . - .- . " सत्या की हत्या करने और पेपर आऊट करने की सजा से खुद को बचाना चाहते हो तो जो बातें हुई हैं उनका एक लफ्ज भी एकता , नगेन्द्र और ऐरिक को नहीं बताओगे । " 
“ बिल्कुल नहीं बताऊंगा मैडम जी ! आप नहीं चाहेंगी तो क्यों बताऊंगा ? " 
" अगर ये तुम्हें मीटिंग में काल करते हैं तो उसे उसी तरह अटैण्ड करोगे जैसे हमसे बातें होने से पहले करते रहे हो । " 
" बिल्कुल ऐसा ही होगा बट " 
" बको । " 
" आप सेफ तो कर लेंगी हमें ? " 
" हमारा साथ दोगे तो फायदा होगा । " कैंटीन के बाहर अजीब सा शोर उभरा । जैसे स्टूडेन्ट्स का हुजूम वहां पहुंचा हो । हम तीनों का ध्यान उस तरफ गया । कैंटीन के दरवाजे पर जोर से दस्तक दी गई । स्टूडेन्ट्स भन्नाये हुए और गुस्से में नजर आ रहे थे । उनका नेतृत्व राजेश कर रहा था ।

भीड़ में एकता , ऐरिक और नगेन्द्र भी थे । मैंने नोट किया गुल्लू की तरफ खास नजरों से देखा उन्होंने । जैसे जानना चाहते हों कि अंदर क्या बातें हो रही थीं , और उसने हमें क्या बताया है ? उनकी इन नजरों को मैं इसलिए नोट कर सका क्योंकि जान चुका था वे एक ही थाली के चट्टे - बट्टे हैं । ऐसा न होता तो शायद उनकी गतिविधियों पर ध्यान तक नहीं जाता । मैंने यह सोचकर नजरें हटा ली कि कहीं वे भी न ताड जायें कि मैं उनके बारे में कुछ जान गया हूं । " 



आप यहां बंद केंटीन में गुल्लू से जाने क्या बातें कर रही हैं विभा जी ! और वहां , हमें लगता है एक मर्डर और हो चुका है" राजेश के लहजे में हल्का सा रोष था । एक और मर्डर ? " मेरे हलक से चीख निकल गई --- 

" किसका ? " 
" लोकेश नहीं मिल रहा । " 
" कौन लोकेश ? " 
" मेरे क्लास का स्टूडेन्ट है । " दीपा ने आगे बढ़कर कहा । 
" बगर लाश मिले किसी को मृत नहीं मानना चाहिए बेटे । 
" राजेश ने पुछा---- " क्या हम जान सकते हैं कि बंद कमरे में आप गुल्लू से क्या बातें कर रही थी ? " 
" बंसल साहब इसे माफ कर दे तो बता सकती हूं । " 
" ह - हम ? हमसे क्या मतलब ? " 
" आप ही से मतलब है । आप इसकी नौकरी छीन सकते हैं । इस डर से डरकर इसने उस रात की एक महत्त्वपूर्ण घटना का जिक्र नहीं किया जिस रात चन्द्रमोहन की हत्या हुई । " 
" ऐसी कौन सी घटना थी ? " 
" आप इसे सजा न देने का वादा करें तो बताऊं ? " 
" माफ करते हैं । 

तब विभा ने यह सब बता दिया जो गुल्लू ने नोट पकड़े जाने के बाद केंटीन के बाहर ही बता दिया था । मैं समझ सकता था वह सब विभा ने एकता , नगेन्द्र और ऐरिक के मनों से यह शंका मिटाने के लिए किया था कि बंद केंटीन में गुल्लू ने यहीं सब कुछ उगल तो नहीं दिया है । 

विभा के चुप होने पर एक स्टूडेन्ट ने कहा ---- " यह सब तो गुल्लू बाहर ही बता चुका था । हमें वे बातें जाननी है जो कैंटीन के अंदर हुई । " मैंने और विभा ने उसे एक साथ गौर से देखा । वह उन स्टूडेन्ट्स में से एक था जिनके सामने गुल्लू को घसीटकर कैंटीन के अंदर ले जाया गया था । विभा ने सभी शंकाओं पर पानी फेरने की मंशा से कहा ---- " उसी सबकी डिटेल जानने के लिए कैंटीन के अन्दर ले जाया गया था उसे । जानना ही चाहते हो तो सुनो ! " कहने के बाद यह एक पल के लिए चुप हुई , अगले . पल इस तरह बोली जैसे बहुत बड़ा रहस्योद्घाटन कर रही हो ---- " जिस रात चन्द्रमोहन कैम्पस की दीवारों पर अपने द्वारा तैयार किये गये -दृश्यों के नंगे फोटो लगा रहा था , उस रात भी इसने उससे पांच सौ रुपये लेकर अपना मुंह बंद रखा । " 

सभी घृणित नजरों से गुल्लू को घुरने लगे । बंसल ने कहा ---- " वादा न किया होता तो हम इसी वक्त इसे नौकरी से निकाल देते। उस काण्ड में जितना गुनेहगार चन्द्रमोहन था , उतना ही ये भी है । रात ही में शोर मचाकर उसे पकड़वा देता तो .... " उस बात को छोड़िए बंसल साहब ! फिलहाल हमारे लिए लोकेश को ढूंढना ज्यादा जरूरी है । " कहने के बाद विभा ने सवाल किया।

" क्या आपके पास लोकेश का फोटो होगा ? " 
" हम उसका एडमिशन फार्म निकलवा देते है । " " वह तो निकलवाइए ही मगर .... क्या एक ऐसा फोटो नहीं मिल सकता जिसमें लोकेश की पूरी कद - काठी हो ? " 
" पिछले साल का ग्रुप फोटो मिल सकता है । " 
" गुड ! वह भी निकलवा दीजिए । 
" हुक्म सा देने के बाद उसने स्टूडेन्ट्स से कहा ---- " तुम्हारे साथ लोकेश को हम भी तलाश करते हैं । " 


सारी बातें सुनने के बाद जैकी कह उठा -- " केस तो हल हो चुका है । " 
" हत्यारे के पकड़े जाने से पहले कैसे हल हुआ माना जा सकता है ? " 
" वो बात ठीक है मगर गुल्लू के बयान के बाद स्पष्ट हो गया ---- हमारी सम्भावनाएं ठीक थीं । 

यह केस दो हिस्सों में बंटा हुआ था । पहला सत्या का मर्डर दूसरा अन्य मर्डरस ! हम भूल ही यह कर रहे थे कि अन्य मर्डरों को भी सत्या के मर्डर की श्रृंखला मानते रहे । " 
" ऐसे ही नहीं मानते रहे । इस हत्यारे की चालाकी भरी वह चाल कही जायेगी जिसमें हम फंसे रहे । उसने हर मक्तूल से CHALLENGE लिखवाकर न केवल सभी मर्डरों को सत्या के मर्डर की श्रृंखला बना दिया बल्कि पहेली को और ज्यादा उलझा दिया । " 
" मगर तुम उलझने वाली कहां हो जानेमन ! " मैंने मस्ती के मूड में कहा ---- " पहले पहेली हल की ! उसके बाद गुल्लू को पकड़ा । 

केस के एक हिस्से यानी सत्या के मर्डर की बखिया तो उधेड़ ही चुकी हो । कातिल सामने है ! हम कत्ल का कारण जान चुके है " 
" मैंने पहले भी कहा , फिर कहूंगी --- मुजरिम कुछ देर के लिए इन्वेस्टिगेटर्स को भले ही छका ले मगर हमेशा नहीं छकाये रख सकता । वही बात अन्य क़त्ल के कातिल पर लागू है । जैकी , जितनी जानकारियां इस वक्त हमारे पास उनके आधार पर तुम्हारे ख्याल से हमारा अगला कदम क्या होना चाहिए ? " 
" गुल्लू , एकता , ऐरिक और नगेन्द्र को सत्या की हत्या के इल्जाम में गिरफ्तार करके फौरन जेल में ठूँस देना चाहिए । " 
" फायदा ? 
" कालिज में कत्ल होने रुक जायेंगे । " 
" और जेल में शुरू " ये बात अच्छी तरह दिमाग में उत्तार लो जैकी ! हत्यारा भावुकता के तहत सत्या के हत्यारों की हत्याएं कर रहा है । ऐसा हत्यारा जब तक पकड़ा नहीं जाता , तब तक जेल तो क्या पाताल तक अपने शिकारों का पीछा नहीं छोड़ता । जो स्टोरी यहाँ चल रही है वह जेल में चल पडेगी । " 
" जेल में किसी को कत्ल करना इतना आसान नहीं होता । वहां पहुंचना और कत्ल करने के बाद निकल जाना अपने आप में......

मेरे ख्याल से तुम पूरी तरह गलत हो । जेल में घुसना क्या मुश्किल है ? चलते को थप्पड़ मारो और जेल पहुंच जाओ । कत्ल करने के बाद निकलने की क्या जरूरत है वहां से ? हत्यारा उतनी ही आसानी से खुद को कैदियों की भीड़ में छुपा सकता है जितनी आसानी से कालिज की भीड़ में छुपा हुआ है । " 
" आप कहना क्या चाहती है ?