सोमवार, 11 जून 2012

मुआवज़े का फार्म



एक उद्योगपति, एक व्यापारी, एक बैंक मैनेजर और एक सरकारी कर्मचारी गहरे दोस्त थे। एक दिन चारो अपनी-अपनी बिल्ली लेकर एक जगह इकट्ठे हुए और लगे उनकी ख़ूबियों का बखान करने।


फिर उद्योगपति ने अपनी बिल्ली को इशारा किया। वह दौड़ी और कुछ देर में मिठाई का डिब्बा लाकर मेज पर रख दिया।


व्यापारी के इशारे पर उसकी बिल्ली दूध से भरा गिलास ले आई और मेज पर रख दिया।


बैंक मैनेजर का इशारा पाकर उसकी बिल्ली एक प्लेट में केक सजाकर ले आयी और टेबल पर रख दिया।


बिल्लियों की इस भाग दौड़ के दौरान सरकारी कर्मचारी की बिल्ली एक कुरसी पर बैठी सोती रही। 


सरकारी कर्मचारी ने ज़रा ऊंची आवाज़ में कहा, “लंच टाइम।“ यह सुनते ही उसकी बिल्ली ने आंखें खोली, कान खड़े किए और टेबल पर रखी चीज़ों पर टूट पड़ी। सारा सामान चट कर जाने के बाद वह बाक़ी तीनों बिल्लियों के साथ लड़ने लगी। फिर घायल होने का दावा करते हुए मुआवज़े का फार्म भरा और Sick Leave लेकर घर चली गई।


बाबा का ढाबा



हमारे भारत देश में, फिर पनपे कई बाबा,
कृपा बरसाने के नाम पर, खोला ठगी का ढाबा।


खोला ठगी का ढाबा, बात समझ न आई,
आँखे सबकी दो, तीसरी कहाँ से आई ।


होनी है सो होकर रहेगी, चाहे खाओ लाख समोसे,
कर्म कर फल मिलेगा, क्यों किस्मत को को।


निर्मल है कि नोर्मल है, यह तो अब कौन जाने,
पर बाबा नहीं यह ठग है, हम भी अब यह माने ।


सब कुछ ठगी का जाल है, होता इनसे चमत्कार नहीं,
हमारी भावनाओ से ख, इनको ये अधिकार नहीं ।

धर्म आस्था के नाम पर, चलता करोडो का धंधा,
आओ इन्हें सबक सिखाए, कंधो से मिलाकर कन्धा।

मंगलवार, 15 मई 2012

सब कुछ एक साथ नहीं

एक धर्मोपदेशक मुल्ला जी उपदेश देने के लिए हॉल में पहुंचे। एक दूल्हे को छोड़कर उस हॉल में और कोई मौजूद नहीं था। वह दूल्हा सामने की सीट पर बैठा था।
असमंजस में पड़े मुल्ला जी ने दूल्हे से पूछा - "सिर्फ तुम ही यहाँ मौजूद हो। मुझे उपदेश देना चाहिए या नहीं?"
दूल्हे ने उनसे कहा - "श्रीमान। मैं बहुत साधारण आदमी हूं और मुझे यह सब ठीक से समझ में नही आता। लेकिन यदि मैं एक अस्तबल में आऊँ और यह देखूं कि एक घोड़े को छोड़कर सभी घोड़े भाग गए हैं, तब भी मैं उस अकेले घोड़े को खाने के लिए चारा तो दूंगा ही।"
मुल्ला जी को यह बात लग गई और उन्होंने उस अकेले व्यक्ति को दो घंटे तक उपदेश दिया। इसके बाद मुल्ला जी ने अतिउत्साहित होकर उससे पूछा - "तो तुम्हें मेरा उपदेश कैसा लगा?"
दूल्हे ने उत्तर दिया - "मैंने आपको पहले ही कहा था कि मैं बहुत साधारण आदमी हूं और मुझे यह सब ठीक से समझ में नही आता। लेकिन यदि मैं एक अस्तबल में आऊँ और यह देखूं कि एक घोड़े को छोड़कर सभी घोड़े भाग गए हैं, तब मैं उस अकेले घोड़े को खाने के लिए चारा तो दूंगा परंतु सारा चारा एकबार में ही नहीं दे दूंगा।"

शनिवार, 12 मई 2012

वह बुजुर्ग लकड़हारा राजा था!


राजा भोज एक दिन खाली समय में नदी के किनारे टहल रहे थे। वे हरे-भरे वृक्षों और सुंदर फूलों को निहार रहे थे। तभी उन्हें सिर पर लकड़ियों का बंडल लादकर ले जाता एक व्यक्ति दिखायी दिया। उस वृद्ध व्यक्ति के सिर पर लदा बोझ बहुत भारी था और वह पसीने से तर हो रहा था। लेकिन वह प्रसन्न दिखायी दे रहा था। राजा ने उस व्यक्ति को रोकते हुए पूछा - “सुनो, तुम कौन हो? “ उस व्यक्ति ने प्रसन्नतापूर्वक उत्तर दिया - “मैं राजा भोज हूं। “ यह सुनकर राजा भोज भौचक्के रह गए और पूछा - “कौन? “

उस व्यक्ति ने पुनः उत्तर दिया - “राजा भोज! “ राजा भोज जिज्ञासा से भर गए। वे बोले - “यदि तुम राजा भोज हो तो अपनी आय के बारे में बताओ? “ लकड़हारे ने उत्तर दिया - “हां, हां क्यों नहीं, मैं प्रतिदिन छह पैसा कमाता हूं। “

राजा ने उसकी जेब में मौजूद इस भारी धन के बारे में सोचा। कोई व्यक्ति छह पैसे प्रतिदिन कमाकर भी अपनेआप को राजा कैसे मान सकता है? और वह इतना खुश कैसे रह सकता है? राजा ने अपनी अनगिनत समस्याओं और चिंताओं के बारे में विचार किया। वह उस व्यक्ति के बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने उस व्यक्ति से पूछा - “यदि तुम सिर्फ छह पैसे प्रतिदिन कमाते हो तो तुम्हारा खर्च कितना है? क्या तुम वास्तव में राजा भोज हो? “

उस वृद्ध व्यक्ति ने उत्तर दिया - “यदि आप वास्तव में जानना चाहते हैं तो मैं बताता हूं। मैं प्रतिदिन छह पैसा कमाता हूं। उसमें से एक पैसा मैं अपनी पूंजी के मालिक को देता हूं, एक पैसा मंत्री को और एक ऋणी को। एक पैसा मैं बचत के रूप में जमा करता हूं, एक पैसा अतिथियों के लिए और शेष एक पैसा मैं अपने खर्च के लिए रखता हूं। “ अब तक राजा भोज पूर्णतः विस्मित हो चुके थे। “क्या खूब योजना है! क्या खूब दृष्टिकोण! वह भी इतनी कम आय वाले व्यक्ति की!..... लेकिन यह कैसे संभव है? इस पहेली में उलझकर राजा ने फिर पूछा - “कृपया विस्तार से बतायें, मुझे कुछ ठीक से समझ में नहीं आया। “

लकड़हारे ने उत्तर दिया - “ठीक है! मेरे माता-पिता मेरी पूंजी के मालिक हैं। क्योंकि उन्होंने मेरे लालन-पालन में निवेश किया है। उन्हें मुझसे यह आशा है कि बुढ़ापे में मैं उनकी देखभाल करूं। उन्होंने मेरे लालन-पालन में यह निवेश इसीलिए किया था कि समय आने पर मैं उन्हें उनका निवेश ब्याज समेत लौटा सकूं। क्या सभी माता-पिता अपनी संतान से यह अपेक्षा नहीं करते? “

राजा ने तत्परता से पूछा - “और तुम्हारा ऋणी कौन है? “ वृद्ध व्यक्ति ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया - “मेरे बच्चे! वे नौजवान हैं। यह मेरा फर्ज़ है कि मैं उनका सहारा बनूं। लेकिन जब वे वयस्क और कमाने योग्य हो जायेंगे, वे उसी तरह मेरा निवेश लौटाना चाहिये जैसे मैं अपने माता-पिता को लौटा रहा हूं। इस तरह उन्हें भी अपना पितृऋण चुकाना होगा। “

राजा ने कम शब्दों में पूछा - “और तुम्हारा मंत्री कौन है? “ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया - “मेरी पत्नी! वही मेरा घर चलाती है। मैं उसके ऊपर शारीरिक और भावनात्मक रूप से निर्भर हूं। वही मेरी सबसे अच्छी मित्र और सलाहकार है। “

राजा ने संकोचपूर्वक पूछा - “तुम्हारा बचत खाता कहां है? “ वृद्ध व्यक्ति ने उत्तर दिया - “जो व्यक्ति अपने भविष्य के लिए बचत नहीं करता, उससे बड़ा बेवकूफ और कोई नहीं होता। जीवन अनिश्चितताओं से भरा हुआ है। प्रतिदिन मैं एक पैसा अपने खजाने में जमा करता हूं। “

राजा बोले - “कृपया बताना जारी रखें। “ लकड़हारे ने उत्तर दिया - “पांचवा पैसा मैं अपने अतिथियों की खातिरदारी के लिए सुरक्षित रखता हूं। एक गृहस्थ होने के नाते यह मेरा कर्तव्य है कि मेरे घर के द्वार सदैव अतिथियों के लिए खुले रहें। कौन जाने कब कोई अतिथि आ जाये? मुझे पहले से ही तैयारी रखनी होती है। “
उसने मुस्काराते हुए अपनी बात जारी रखी - “और छठवां पैसा मैं अपने लिए रखता हूं। जिससे मैं अपने रोजमर्रा के खर्च चलाता हूं। “

अपनी समस्त जिज्ञासाओं का समाधान पाकर राजा भोज उस लकड़हारे से बहुत प्रसन्न हुए।
निश्चित रूप से प्रसन्नता और संतुष्टि का धनसंपदा, पद और सांसारिक वैभव से कोई लेना-देना नहीं है। वर्तमान स्थिति के प्रति आपका व्यवहार और स्वभाव ही सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। यदि कोई व्यक्ति अपने को उपलब्ध साधनों के अनुरूप ही जीवनजीने की कला सीख ले तो वह काफी कुछ प्राप्त कर सकता है। यही सकारात्मक सोच और सही व्यवहार की शक्ति है। वह बुजुर्ग लकड़हारा वास्तव में राजा था क्योंकि उसका नजरिया ही राजा की तरह था!

सबसे सटीक उत्तर


गणित की टीचर ने 07 वर्ष के अर्नब को गणित पढ़ाते समय पूछा - “यदि मैं तुम्हें एक सेब, एक सेब और एक सेब दूं तो तुम्हारे पास कुल कितने सेब हो जायेंगे? “ कुछ ही सेकेण्ड में अर्नब ने उत्तर दिया - “चार! “

नाराज टीचर को अर्नब से इस सरल से प्रश्न के सही उत्तर (तीन) की आशा थी। वह नाराज होकर सोचने लगी - “शायद उसने ठीक से प्रश्न नहीं सुना। “ यह सोचकर उसने फिर प्रश्न किया - “अर्नब ध्यान से सुनो, यदि मैं तुम्हें एक सेब, एक सेब और एक सेब दूं तो तुम्हारे पास कुल कितने सेब हो जायेंगे? “

अर्नब को भी टीचर के चेहरे पर गुस्सा नजर आया। उसने अपनी अंगुलियों पर गिना और अपनी टीचर के चेहरे पर खुशी देखने के लिए थोड़ा हिचकिचाते हुए उत्तर दिया - “चार! “

टीचर के चेहरे पर कोई खुशी नज़र नहीं आयी। तभी टीचर को याद आया कि अर्नब को स्ट्राबेरी पसंद हैं। उसे सेब पसंद नहीं हैं इसीलिए वह प्रश्न पर एकाग्रचित्त नहीं हो पा रहा है। बढ़े हुए उत्साह के साथ अपनी आँखें मटकाते हुए टीचर ने फिर पूछा - “यदि मैं तुम्हें एक स्ट्राबेरी, एक स्ट्राबेरी और एक स्ट्राबेरी दूं तो तुम्हारे पास कुल कितनी स्ट्राबेरी हो जायेंगी? “

टीचर को खुश देखकर अर्नब ने फिर से अपनी अंगुलियों पर गिनना शुरू किया। इस बार उसके ऊपर कोई दबाव नहीं था बल्कि टीचर के ऊपर दबाव था। वह अपनी नयी योजना को सफल होते देखना चाहती थीं। थोड़ा सकुचाते हुए अर्नब ने टीचर से पूछा - “तीन? “

टीचर के चेहरे पर सफलता की मुस्कराहट थी। उनका तरीका सफल हो गया था। वे अपने आप को बधाई देना चाहती थीं। लेकिन एक चीज बची हुयी थी। उन्होंने अर्नब से फिर पूछा - “अब यदि मैं तुम्हें एक सेब, एक सेब और एक सेब दूं तो तुम्हारे पास कुल कितने सेब हो जायेंगे? “

अर्नब ने तत्परता से उत्तर दिया - “चार। “

टीचर भौचक्की रह गयीं। उन्होंने खिसियाते हुए कठोर स्वर में पूछा - “कैसे अर्नब, कैसे? “ अर्नब ने मंद स्वर में संकुचाते हुए उत्तर दिया - “क्योंकि मेरे पास पहले से ही एक सेब है। “

जब भी कोई व्यक्ति आपको अपेक्षा के अनुरूप उत्तर न दे तो यह कतई न समझें कि वह गलत है। उसके पीछे भी कोई न कोई कारण हो सकता है। आप उस उत्तर को सुनें और समझने की कोशिश करें। लेकिन पूर्वाग्रह ग्रस्त होकर न सुनें।

जब तूफान आये तब नींद लो


एक किसान का खेत समुद्र के तट पर था। उसने अन्य किसान को किराये पर लेने के लिए कई विज्ञापन दिये। लेकिन ज्यादातर लोग समुद्र तट पर स्थित खेत में काम करने के इच्छुक नहीं थे। समुद्र के किनारे भयंकर तूफान उठते रहते हैं जो जानमाल और फसलों को प्रायः नुक्सान पहुंचाते हैं। उस किसान ने कई लोगों का अपने सहायक के रूप में कार्य करने के लिए साक्षात्कार लिया परंतु सभी ने मना कर दिया।

अंत में एक ठिगने कद का दुबला-पतला अधेड़ व्यक्ति किसान के पास आया।

किसान ने उससे पूछा - "खेती-किसानी जानते हो?"

उस ठिगने आदमी ने उत्तर दिया - "मैं उस समय सो सकता हूं जब तूफान आ रहा हो।" यद्यपि वह उसके उत्तर से संतुष्ट नहीं था किंतु उसके पास उसे रखने के अलावा और कोई चारा नहीं था। वह ठिगना व्यक्ति सुबह से शाम तक खेत में काम में लगा रहता। किसान भी उसके काम से संतुष्ट था। एक रात समुद्र की ओर से तूफान की खौफनाक आवाजें आने लगीं। अपने बिस्तर से कूद कर किसान ने लालटेन संभाली और पड़ोस में स्थित उस व्यक्ति के आवास तक भांगता हुआ गया। उसने झटका देकर उस किसान को जगाया और कहा -"जल्दी उठो, तूफान आ रहा है। सभी चीजों को बांध लो ताकि तूफान उन्हें उड़ा न ले जाये।"

उस ठिगने आदमी ने करवट बदलते हुए कहा - "नहीं श्रीमान, मैंने आपसे पहले ही कहा था कि मैं उस समय सो सकता हूं जब तूफान आ रहा हो।"

उसके दोटूक उत्तर से किसान को बहुत गुस्सा आया। वह तत्काल उसे नौकरी से निकालना चाहता था लेकिन वह तूफान से बचाव के लिए बाहर भागा। उसे यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि सूखी घास के ढेर तिरपाल से ढ़के हुए थे। सभी गायें अपने बाड़े और मुर्गियां अपने दरबे में थीं और दरवाजे बंद थे। शटर भी कसकर बंद था। हरचीज बंधी हुयी थी। कुछ भी उड़ नहीं सकता था।

किसान को तब जाकर उस आदमी की बात का अर्थ समझ में आया। वह भी अपने बिस्तर की ओर लोटा और आराम से सो गया।

जब कोई व्यक्ति आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार होता है तब उसे कोई भय नहीं होता। सूत्र वाक्य यह है कि बुरी से बुरी स्थिति के लिए भी तैयार रहो।


सावधान! ऊर्जा बचत के लिए ‘अर्थ आवर’ बन सकता है ‘डिज़ॉस्टर आवर .


ऊर्जा बचत के लिए ‘अर्थ आवर’ जैसी विचारधारा काग़ज़ी तौर पर तो बड़ी उम्दा दिखाई देती है, मगर यह किसी बड़े डिज़ॉस्टर को निमंत्रण देती भी प्रतीत होती है. ‘अर्थ आवर’ में पूरी पृथ्वी पर हर तरफ (स्थानीय समयानुसार)  रात 8.30 बजे से 9.30 बजे तक एक साथ बिजली बत्ती बंद रखने की बात कही जा रही है. और अगर सचमुच हम सभी एक साथ बिजली बन्द कर दें, तो यह हमारे लिए बन सकता है ‘डिज़ॉस्टर आवर’. आइए, देखें कि कैसै.

वैसे तो आमतौर पर तमाम भारतीय क्षेत्रों में बिजली की खासी किल्लत बनी रहती है और शेड्यूल्ड, नॉन-शेड्यूल्ड तथा अंडर-फ्रिक्वेंसी बिजली कटौती के फलस्वरूप रोज ब रोज कई कई घंटे बिजली बन्द रहती है. ऐसे में ‘अर्थ आवर’ की अवधारणा भारतीय क्षेत्रों के लिए तो काम की ख़ैर नहीं ही है. मगर, कल्पना करें कि जहाँ चौबीसों घंटे बिजली मिलती रहती है, वहाँ पर आप अचानक, एक साथ तमाम बिजली (के तमाम उपकरणों को) बन्द कर दें तो क्या होगा? ये तो एक हादसे को निमंत्रण देने जैसा है.

आपको उदाहरण देकर स्पष्ट करते हैं. कल्पना करें कि कोई मालगाड़ी टनों वजन लेकर अपनी अधिकतम रफ़्तार से दौड़ रही है. अचानक ही कोई दैत्याकार राक्षस मालगाड़ी के तमाम वजन को अपने विशाल पंजों में एक झटके में उठा लेता है. मालगाड़ी का इंजन जो टनों वजन को अपनी पूरी शक्ति से खींच रहा होता है उसके ऊपर अब कोई लोड नहीं होता. तो ऐसे में क्या होगा? मालगाड़ी की गति अनंत हो जाएगी और वो बेपटरी होकर दुर्घटना-ग्रस्त हो जाएगी. ऐसे ही अचानक खाली (जब आप वापस बिजली चालू करेंगे) चलती मालगाड़ी पर अचानक लोड दे दिया जाएगा तो क्या होगा? मालगाड़ी धड़ से रूक जाएगी.

यही हाल हमाले विद्युत संयंत्रों का होगा. विद्युत संयंत्र अपने अपने लोड शेयरिंग के हिसाब से सिंक्रोनाइजेशन में चलते हैं. ‘अर्थ आवर’ के शुरू होते ही उनका लोड अचानक ही खत्म कर दिया जाएगा तो वे अचानक ही सिंक्रोनाइजेशन से बाहर हो जाएंगे और या तो वे दुर्घटनाग्रसत् हो जाएंगे या सुरक्षा के लिहाज से वे स्वयंमेव बन्द हो जाएंगे. इसी तरह ‘अर्थ आवर’ की समाप्ति पर जब अचानक लोड बढ़ेगा तो फिर से एकबार यही स्थिति आएगी. और, एक बार कोई विद्युत संयंत्र सिंक्रोनाइज़ेशन से बाहर हो जाता है तो उसे वापस सिंक्रोनाइजेशन में लाने में समय, सावधानी और तैयारी लगती है. फिर, यहाँ पर तो लोड चहुँओर बन्द हो रहा है, ऐसे में यदा कदा टोटल ब्रेकडाउन की स्थिति भी आ सकती है. यानी – डिज़ॉस्टर को खुले आम आमंत्रण.

‘अर्थ आवर’ की अवधारणा अच्छी है, मगर इसमें व्यावहारिक परिवर्तन की दरकार है. 24 घंटों में क्षेत्रों की सहूलियत व प्रायोगिकता के हिसाब से बिजली बंद करने के समय को अलग-अलग किया जाना चाहिए ताकि इसके कारण विद्युत संयंत्रों व विद्युत वितरण कार्यप्रणाली में आने वाले झटकों को रोका जा सके.

बुधवार, 9 मई 2012

पर्स में फोटो


यात्रियों से खचाखच भरी ट्रेन में टी.टी.ई. को एक पुराना फटा सा पर्स मिला। उसने पर्स को खोलकर यह पता लगाने की कोशिश की कि वह किसका है। लेकिन पर्स में ऐसा कुछ नहीं था जिससे कोई सुराग मिल सके। पर्स में कुछ पैसे और भगवान श्रीकृष्ण की फोटो थी। फिर उस टी.टी.ई. ने हवा में पर्स हिलाते हुए पूछा - "यह किसका पर्स है? "

एक बूढ़ा यात्री बोला - "यह मेरा पर्स है। इसे कृपया मुझे दे दें। " टी.टी.ई. ने कहा - "तुम्हें यह साबित करना होगा कि यह पर्स तुम्हारा ही है। केवल तभी मैं यह पर्स तुम्हें लौटा सकता हूं। " उस बूढ़े व्यक्ति ने दंतविहीन मुस्कान के साथ उत्तर दिया - "इसमें भगवान श्रीकृष्ण की फोटो है। " टी.टी.ई. ने कहा - "यह कोई ठोस सबूत नहीं है। किसी भी व्यक्ति के पर्स में भगवान श्रीकृष्ण की फोटो हो सकती है। इसमें क्या खास बात है? पर्स में तुम्हारी फोटो क्यों नहीं है? "

बूढ़ा व्यक्ति ठंडी गहरी सांस भरते हुए बोला - "मैं तुम्हें बताता हूं कि मेरा फोटो इस पर्स में क्यों नहीं है। जब मैं स्कूल में पढ़ रहा था, तब ये पर्स मेरे पिता ने मुझे दिया था। उस समय मुझे जेबखर्च के रूप में कुछ पैसे मिलते थे। मैंने पर्स में अपने माता-पिता की फोटो रखी हुयी थी।

जब मैं किशोर अवस्था में पहुंचा, मैं अपनी कद-काठी पर मोहित था। मैंने पर्स में से माता-पिता की फोटो हटाकर अपनी फोटो लगा ली। मैं अपने सुंदर चेहरे और काले घने बालों को देखकर खुश हुआ करता था। कुछ साल बाद मेरी शादी हो गयी। मेरी पत्नी बहुत सुंदर थी और मैं उससे बहुत प्रेम करता था। मैंने पर्स में से अपनी फोटो हटाकर उसकी लगा ली। मैं घंटों उसके सुंदर चेहरे को निहारा करता।

जब मेरी पहली संतान का जन्म हुआ, तब मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ। मैं अपने बच्चे के साथ खेलने के लिए काम पर कम समय खर्च करने लगा। मैं देर से काम पर जाता ओर जल्दी लौट आता। कहने की बात नहीं, अब मेरे पर्स में मेरे बच्चे की फोटो आ गयी थी। "

बूढ़े व्यक्ति ने डबडबाती आँखों के साथ बोलना जारी रखा - "कई वर्ष पहले मेरे माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। पिछले वर्ष मेरी पत्नी भी मेरा साथ छोड़ गयी। मेरा इकलौता पुत्र अपने परिवार में व्यस्त है। उसके पास मेरी देखभाल का क्त नहीं है। जिसे मैंने अपने जिगर के टुकड़े की तरह पाला था, वह अब मुझसे बहुत दूर हो चुका है। अब मैंने भगवान कृष्ण की फोटो पर्स में लगा ली है। अब जाकर मुझे एहसास हुआ है कि श्रीकृष्ण ही मेरे शाश्वत साथी हैं। वे हमेशा मेरे साथ रहेंगे। काश मुझे पहले ही यह एहसास हो गया होता। जैसा प्रेम मैंने अपने परिवार से किया, वैसा प्रेम यदि मैंने ईश्वर के साथ किया होता तो आज मैं इतना अकेला नहीं होता। "

टी.टी.ई. ने उस बूढ़े व्यक्ति को पर्स लौटा दिया। अगले स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही वह टी.टी.ई. प्लेटफार्म पर बने बुकस्टाल पर पहुंचा और विक्रेता से बोला - "क्या तुम्हारे पास भगवान की कोई फोटो है? मुझे अपने पर्स में रखने के लिए चाहिए। "



शनिवार, 5 मई 2012

मैं तुझे तो कल देख लूंगा।

सूफी संत जुनैद के बारे में एक कथा है.

एक बार संत को एक व्यक्ति ने खूब अपशब्द कहे और उनका अपमान किया. संत ने उस व्यक्ति से कहा कि मैं कल वापस आकर तुम्हें अपना जवाब दूंगा.

अगले दिन वापस जाकर उस व्यक्ति से कहा कि अब तो तुम्हें जवाब देने की जरूरत ही नहीं है.

उस व्यक्ति को बेहद आश्चर्य हुआ. उस व्यक्ति ने संत से कहा कि जिस तरीके से मैंने आपका अपमान किया और आपको अपशब्द कहे, तो घोर शांतिप्रिय व्यक्ति भी उत्तेजित हो जाता और जवाब देता. आप तो सचमुच विलक्षण, महान हैं.

संत ने कहा – मेरे गुरु ने मुझे सिखाया है कि यदि आप त्वरित जवाब देते हैं तो वह आपके अवचेतन मस्तिष्क से निकली हुई बात होती है. इसलिए कुछ समय गुजर जाने दो. चिंतन मनन हो जाने दो. कड़वाहट खुद ही घुल जाएगी. तुम्हारे दिमाग की गरमी यूँ ही ठंडी हो जाएगी. आपके आँखों के सामने का अँधेरा जल्द ही छंट जाएगा. चौबीस घंटे गुजर जाने दो फिर जवाब दो.

क्या आपने कभी सोचा है कि कोई व्यक्ति पूरे 24 घंटों के लिए गुस्सा रह सकता है? 24 घंटे क्या, जरा अपने आप को 24 मिनट का ही समय देकर देखें. गुस्सा क्षणिक ही होता है, और बहुत संभव है कि आपका गुस्सा, हो सकता है 24 सेकण्ड भी न ठहरता हो. 

यही है असली लीडर की पहचान

अगर व्यक्ति को सही मायने में सक्सेस पाना है तो उसे कोशिश के साथ साथ पॉजिटिव एटिट्यूड रखना भी जरूरी होता है। क्यों कि लक्ष्य के प्रति सकारात्मक नजरिया ही हमें अपनी मंजिल तक पहुंचाता है।

एक बार गोलियथ नाम का राक्षस था उसने हर आदमी के दिल में दहशत बिठा रखी थी। सब उससे डरते और कहते कि उसे कोई मार ही नहीं सकता। एक दिन 17 साल का एक भेड़ चराने वाला लड़का अपने भाइयों से मिलने के लिए आया उसने पूछा कि तुम इस राक्षस से लड़ते क्यों नहीं। उसके भइयों ने कहा कि वह इतना बड़ा राक्षस है कि उसे मारा नहीं जा सकता। लेकिन उस लड़के ने कहा कि बात यह नहीं कि बड़ा होने कि वजह से उसे मारा नहीं जा सकता बल्कि सच तो यह है कि वह तो इतना बड़ा है कि उस पर लगाया गया निशाना चूक ही नही सकता। उसके बाद उस लड़के ने गुलेल से निशाना लगाकर उस राक्षस को मार ड़ाला।

कथा बताती है कि अगर नजरिया सही हो तो हम बड़ी से बड़ी कठिनाई को पार कर अपनी मंजिल को पा सकते हैं।