शुक्रवार, 12 सितंबर 2014

ग्लास का भार एक बार एक साइकोलॉजी की प्रोफेसर कक्षा में आई. और एक गिलास उठा लिया .. सबने सोचा की अब वो वहीँ पुराना 'ग्लास आधा ख़ाली है या आधा भरा' वाला पाठ पढ़ाएगी. पर उसके बदले उन्होंने छात्रों से पूछा की उनके हाथ में जो कांच है उसका वजन कितना है? सभी छात्रों ने अपने अपने अनुसार उत्तर दिए .. किसी .. पर महिला प्रोफेसर ने जवाब दिया ग्राम 100 ने किसी तो 50 ग्राम कहा, ने, 'मेरे ख्याल से सही वजन का गिलास इस बात नहीं करता .. बल्कि ये करता है बात की मैं इसे कितनी देर तक करके रखती हूँ पकड़. अगर मैं इसे केवल 1-2 मिनट के लिए उठा के रखती हूँ तो ये मुझे सामान्य सा लगेगा .. पर यदि मैं इसे एक घंटा उठा के रखती हूँ तो मेरा हाथ दुखने लगेगा .. पर यदि मैं इसे पूरा दिन उठा के रखूं .. तो यक़ीनन मेरा हाथ सुन्न पड़ जायेगा .. थोड़ी देर के पंगु बना लिए हो जायेगा .. मतलब की इसका थोडा सा भार भी, यदि मैं ज्यादा देर तक उठा की रखूं. तो मुझे तकलीफ हो सकती है .. "सभी इस उत्तर से सहमत थे. वो आगे बोली, "इसी तरह अगर, एक छोटी सी समस्या की चिंता मैं करती रहूँ .. तो पहले वो कोई ख़ास भार नहीं देगी मन पर .. पर यदि मैं उसी के बारे में सोचती रहूँ .. उसी से परेशान रहूँ .. उसी पर तनाव करती रहूँ .. तो वो छोटी से परेशानी भी मुझे बहुत बड़ी तकलीफ दे सकती है .. मैं डिप्रेशन का शिकार हो सकती हूँ .. मैं दूसरा कुछ भी कार्य करने में असमर्थ हो जाउंगी .. यही तो हमारी वास्तविक परेशानी है .. "सबक: आप अपने परेशानियो को मन से जाने दे, ये बहुत जरुरी है. आपकी परेशानियां आपके मन में रहे या न रहे ये आप कर सकते है फैसला. किसी भी समस्या का इतना तनाव न लें .. की आपके स्वास्थ  को दिक्कत हो ...

सभी सामग्री इंटरनेट से ली गई है

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