बुधवार, 19 मार्च 2014

एक अकेला चना कभी भाड़ नहीं फोड़ सकता


एक बार हाथ की पाँचों उंगलियों में आपस में झगड़ा हो गया| वे पाँचों खुद को एक दूसरे से बड़ा सिद्ध करने की कोशिश में लगे थे | अंगूठा बोला की मैं सबसे बड़ा हूँ, उसके पास वाली उंगली बोली मैं सबसे बड़ी हूँ इसी तरह सारे खुद को बड़ा सिद्ध करने में लगे थे जब निर्णय नहीं हो पाया तो वे सब अदालत में गये |

न्यायाधीश ने सारा माजरा सुना और उन पाँचों से बोला की आप लोग सिद्ध करो की कैसे तुम सबसे बड़े हो? अंगूठा बोला मैं सबसे ज़्यादा पढ़ा लिखा हूँ क्यूंकि लोग मुझे हस्ताक्षर के स्थान पर प्रयोग करते हैं| पास वाली उंगली बोली की लोग मुझे किसी इंसान की पहचान के तौर पर इस्तेमाल करते हैं| उसके पास वाली उंगली ने कहा की आप लोगों ने मुझे नापा नहीं अन्यथा मैं ही सबसे बड़ी हूँ | उसके पास वाली उंगली बोली मैं सबसे ज़्यादा अमीर हूँ क्यूंकि लोग हीरे और जवाहरात की अंगूठी मुझी में पहनते हैं| इस तरह सभी ने अपनी अलग अलग प्रशंसा की |


न्यायाधीश ने अब एक रसगुल्ला मंगाया और अंगूठे से कहा कि इसे उठाओ, उंगुठे ने भरपूर ज़ोर लगाया लेकिन रसगुल्ले को नहीं उठा सका | इसके बाद सारी उंगलियों ने एक एक करके कोशिश की लेकिन सभी विफल रहे| अंत में न्यायाधीश ने सबको मिलकर रसगुल्ला उठाने का आदेश दिया तो झट से सबने मिलकर रसगुल्ला उठा दिया | फ़ैसला हो चुका था, न्यायाधीश ने फ़ैसला सुनाया कि तुम सभी एक दूसरे के बिना अधूरे हो और अकेले रहकर तुम्हारी शक्ति का कोई अस्तित्व नहीं है, जबकि संगठित रहकर तुम कठिन से कठिन काम आसानी से कर सकते हो|



तो मित्रों, संगठन में बहुत शक्ति होती है यही इस कहानी की शिक्षा है, एक अकेला चना कभी भाड़ नहीं फोड़ सकता.

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बापू का बड़प्पन


यह घटना आजादी के पहले की है। बिहार के चंपारण जिले में इंग्लैंड से आए कुछ अंग्रेज नील की खेती करते थे। वे निलहे कहलाते थे। ये वहां के किसानों पर बड़ा जुल्म ढाते थे और तरह-तरह से उनका शोषण करते थे। इससे वहां के किसान बेहद त्रस्त थे। उनमें से एक किसान ने गांधीजी से चंपारण आने की प्रार्थना की। गांधी जी ने किसान का आग्रह मान लिया। वे निलहों द्वारा वहां के किसानों पर किए जाने वाले जुल्मों की जांच करने के लिए चंपारण पहुंचे। वहां की जनता बापू के आगमन से प्रसन्न हो उठी। लेकिन निलहों को इससे गुस्सा आ गया। वे आग-बबूला हो उठे। पर गांधीजी इन सबसे अविचलित अपने काम में लगे रहे।

एक दिन गांधीजी को पता चला कि पास का एक निलहा उनसे इतना गुस्सा है कि उन्हें मार डालना चाहता है। यह जानकर एक रात गांधी जी स्वयं चल कर उस निलहे की कोठी पर पहुंचे। निलहे ने उनसे पूछा- तुम कौन हो? वह बापू को पहचानता नहीं था। बापू ने सरल भाव से कहा- मैं गांधी हूं। शायद आपने नाम सुना होगा। निलहा आश्चर्यचकित होता हुआ बोला- तुम यहां किसलिए आए हो? गांधीजी ने कहा- सुना है कि आप मुझे मार डालना चाहते हैं। आपको कष्ट न हो इसलिए मैं स्वयं आपके पास आ गया हूं। लीजिए,आप मुझे मार डालिए।

बापू के इन वचनों को सुनकर उस निलहे के होश उड़ गए। उससे कुछ कहते न बना और वह सिर झुकाए बापू के चरणों की ओर देखता रह गया। इसके बाद उसने किसानों को सताना बंद कर दिया। बापू की निडरता व उनके बड़प्पन को वह जीवन भर नहीं भूला।


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फकीर की रोटियां



ईरानी शासक शाह जूसा इतना सरल और परोपकारी था कि संत और फकीर भी उसका खूब सम्मान करते थे। उसकी पुत्री अत्यंत सुंदर और सुशिक्षित थी। अनेक राजाओं ने उससे विवाह की इच्छा जताई थी, पर शाह ने उन सबका प्रस्ताव यह कह कर ठुकरा दिया, 'मुझे पुत्री के लिए राजा नहीं कोई त्यागी पुरुष चाहिए।'

संयोग से कुछ समय बाद ही शाह को एक युवा फकीर मिला। शाह उससे बहुत प्रभावित हुआ और उसने उससे पूछा कि क्या वह शादी करना चाहता है?' फकीर ने हंस कर उत्तर दिया,' करना तो चाहता हूं पर मुझ फकीर से कौन अपनी लड़की की शादी करेगा?' शाह बोला,' मैं आपको अपना दामाद बनाऊंगा।' फकीर ने कहा,' कहां आप राजा, और दूसरी तरफ मैं, जिसके पास आज केवल तीन पैसे हैं। शाह ने कहा, 'जाओ, इन तीन पैसों से शगुन की कुछ चीजें ले आओ।' बड़ी सादगी के साथ शाह ने अपनी पुत्री का विवाह उस फकीर के साथ कर दिया।

शादी करके फकीर शाह की लड़की को अपनी झोंपड़ी में ले आया। फिर उसने पूछा, 'तुम मेरे साथ इस कुटिया में कैसे रहोगी?' लड़की ने कहा,'मेरी खुद ही मर्जी थी सादा जीवन बिताने की। लेकिन आपकी झोंपड़ी में रोटियों का ढेर देख कर मन में ग्लानि सी हो रही है। इतनी रोटियां किसलिए? क्या आपको कल पर भरोसा नहीं है?' फकीर ने उत्तर दिया,'सोचा कुछ रोटियां बचाकर रख लूं। कल काम आएंगी। 

लड़की बोली, 'अगर आप संग्रह की आदत छोड़ दें तो मैं आपकी झोंपड़ी को भी महल समझ कर रह लूंगी।' फकीर ने संग्रह न करने का प्रण किया और दोनो सादगी भरा चिंतारहित जीवन बिताने लगे।

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