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मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020

अनुशासन का महत्व




जब हम पैदा होते हैं, तो उसके बाद हमें अलग – अलग लोगों द्वारा अच्छी आदतें सिखाई जाती है, ये अच्छी आदतें हमें इसलिए सिखाई जाती है, ताकि हम एक अच्छे इन्सान बन सकें. ये आदतें हमें हमारे बड़ों यानि हमारे माता – पिता एवं शिक्षकों द्वारा प्रदान की जाती है, जोकि हमारे जीवन को आसान बना देती है. उन सभी अच्छी आदतों में सबसे अच्छी आदत है, अनुशासन का पालन करना. वे हमें बचपन से ही अनुशासन जैसी अच्छी आदतों को अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं. इस लेख में हम आपको अनुशासन का हमारे जीवन में महत्व एवं उससे होने वाले लाभ के बारे में जानकारी दे रहे हैं. इसलिए हमारे लेख को अंत तक पढ़ें.   

अनुशासन क्या है? (What is Discipline Meaning)

कोई व्यक्ति हो या संस्था हो या राष्ट्र हो, जब वे अपने विकास के लिए कुछ नियम निर्धारित करते हैं, तो उसे अनुशासन कहा जाता है. अतः दूसरे शब्दों में कहें तो अनुशासन एक ऐसी आदत है, जोकि मनुष्य जीवन में बहुत मायने रखती है. अनुशासन को यदि अलग – अलग किया जाये, तो अनु और शासन दो शब्द मिलते हैं, जिसका अर्थ होता है खुद के ऊपर शासन करना. यानि यदि आप नियमित रूप से नियमों का पालन करते हैं, तो इससे आपका दिमाग एवं शरीर दोनों नियंत्रित रहते हैं. रोजमर्रा की जिन्दगी में आप सुबह से उठकर रात तक जो भी कार्य करते हैं, वह आपका रोज का नियम होता है और जब आप उन नियमों का पालन करते हैं, तो इसे अनुशासन कहा जाता है.

अनुशासन के प्रकार (Types of Discipline)

अनुशासन के विभिन्न लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार बताएं गए है. यहाँ हम कुछ प्रकार के अनुशासन के बारे में बताने जा रहे हैं जोकि इस प्रकार है–

सकारात्मक अनुशासन :- सकारात्मक अनुशासन वह है, जो व्यवहार के सकारात्मक बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित करता है. यह व्यक्ति में एक तरह का सकारात्मक विचार उत्पन्न करता है, कि कोई व्यक्ति अच्छा या बुरा नहीं होता, बल्कि उसके व्यवहार अच्छे या बुरे होते हैं. किसी बच्चे के माता – पिता उन्हें समस्या सुलझाने के कौशल सिखाते हैं और साथ ही उन्हें विकसित करने के लिए उनके साथ काम करते हैं. माता – पिता अपने बच्चे को अनुशासन सिखाने के लिए शिक्षण संस्थाओं में भेजते हैं. यह सभी पहलू सकारात्मक अनुशासन को बढ़ावा देते हैं. और इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिये.
नकारात्मक अनुशासन :- नकारात्मक अनुशासन वह अनुशासन है जिसमें यह देखा जाता है, कि कोई व्यक्ति क्या गलत कर रहा है, जिससे उस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. किसी व्यक्ति को आदेश देना एवं उन्हें नियमों और कानूनों को पालन करने के लिए मजबूर करना नकारात्मक अनुशासन होता है.

सीमा आधारित अनुशासन :- सीमा आधारित अनुशासन सीमाएं निर्धारित करने और नियमों को स्पष्ट करने के लिए होता है. इस अनुशासन के पीछे एक सरल सिद्धांत है, कि जब एक बच्चे को यह पता होता है, कि यदि वे सीमा से बाहर जाते हैं, तो इसका परिणाम क्या होता है, तो ऐसे बच्चे आज्ञाकारी होते हैं. उनका व्यवहार सकारात्मक होता हैं और वे खुद को हमेशा सुरक्षित महसूस करते हैं.

व्यवहार आधारित अनुशासन :- व्यवहार में संशोधन करने से सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही परिणाम होते हैं. अच्छा व्यवहार प्रशंसा या पुरस्कार के साथ आता है, जबकि दुर्व्यवहारों के कारण नकारात्मक परिणामों को हवा मिलती है, इसलिए इससे काफी नुकसान भी होता है.

आत्म अनुशासन :- आत्म अनुशासन का अर्थ है, अपने मन और आत्मा को अनुशासित करना जो बदले में हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं. इसके लिए हमें अपने आप को अनुशासित होने के लिए प्रेरित करना होगा. यदि हमारा दिमाग अनुशासित रहेगा, तो हमारा शरीर अपने आप ही अच्छे से कार्य करेगा.

अनुशासन के लाभ (Benefits of Discipline)

अनुशासित होना जीवन में कई फायदे और लाभ प्राप्त करने का एक तरीका है. इससे होने वाले कुछ लाभ इस प्रकार हैं –

केन्द्रित रहने में सहायक :- अनुशासित होने से व्यक्ति को अपने काम, गतिविधियों या लक्ष्यों के प्रति केन्द्रित रहने में मदद मिलती है. वे व्यक्ति जिनका लक्ष्य मजबूत होता है, वे अधिक केन्द्रित होते हैं, और रोजमर्रा की जिन्दगी में समय पर काम करने के लिए तैयार रहते हैं. अनुशासन के साथ किसी भी व्यक्ति को अपने मन को अपने काम या लक्ष्यों पर ध्यान केन्द्रित रखने में सहायता मिलती है, जिससे मानसिक समस्याओं से बचा जा सकता है.

दूसरों से सम्मान मिलता है :- अनुशासन दूसरों से सम्मान प्राप्त करने में मदद करता है. बहुत से लोग अपने कार्य करने वाली जगह में दूसरों से सम्मान पाने के लिए संघर्ष करते हैं. लेकिन सम्मान पाने का सबसे आसान तरीका अनुशासित होना है. आसपास के लोग अनुशासित व्यक्ति का सम्मान करते हैं. यदि आप अनुशासित रहते हैं, तो इससे दूसरे अन्य व्यक्तियों की नजर में आप सम्मान के पात्र हो जाते हैं, और वे आपको अपना रोल मॉडल भी मान सकते हैं.

स्वस्थ रखता है :- अनुशासित जीवन में कुछ आदतें हैं, जो नियमित होती है. जैसे भोजन, दवा, नहाना, व्यायाम करना, सही समय पर चलना और सोना आदि. व्यायाम और अन्य नियमित आदतें शरीर और दिमाग को इतनी अच्छी तरह से ट्यून करती है, जिससे व्यक्ति हमेशा स्वस्थ रहता है. यहाँ तक कि पुरानी बीमारी के लिए नियमित समय पर दवाएं लेने से भी जल्द ठीक होने में मदद मिलती है. समय पर भोजन करना बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि भोजन भी एक तरह की दवा होती है.

सक्रीय रहने में मददगार :- अनुशासन जीवन के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण का एक तरीका है. जोकि अंदर से उत्साह और आत्मविश्वास को जगाता है. इसलिए यदि आप हमेशा सक्रिय रहते हैं तो इससे आलस आपसे कोषों दूर रहता है. आप हमेशा उन लोगों की आदतों को अपनायें जो अनुशासित होते हैं, क्योंकि वे दूसरों की तुलना में भोजन, नींद और नियमित व्यायाम जैसी अनुशासित आदतों के कारण सक्रीय रहते हैं. इससे आपको सक्रीय रहने में मदद मिलेगी.

आत्म नियंत्रण :- जो व्यक्ति खुद अनुशासन में रहते हैं उनका स्वयं पर अधिक नियंत्रण होता है. वह बात करते समय अपने व्यवहार में सावधानी बरतते है. उनका व्यवहार आदि खुद को मूर्खतापूर्ण समस्याओं में फंसने से बचाता है. इससे वह लोगों के साथ अच्छे संबंध भी बनाता है.
चीजों को प्राप्त करने और खुश रहने में मदद करता है :- अनुशासित होने से चीजों को तेजी से और सही समय पर पूरा करने में मदद मिलती है. हालाँकि कुछ चीजें अन्य कारणों से देर से होती है. किन्तु फिर भी अनुशासित रहने वाला व्यक्ति अपने खुद के अनुशासन के कारण दूसरों की तुलना में तेजी से काम करता है. इससे उसके मन को शांति मिलती है और वह व्यक्ति खुश रहता है.

एक दिन में अधिक समय देता है :- एक अनुशासित व्यक्ति के पास एक अनुशासनहीन व्यक्ति की तुलना में एक दिन में अधिक समय होता है. तो अधिक समय का मतलब यह है कि उनके पास अतिरिक्त कार्यों या अन्य पेंडिंग कार्यों को करने की अधिक सम्भावना होती है, और वे अपने कार्यों को बखूबी कर भी लेते हैं.

तनाव मुक्त रहने में मदद करता है :- किसी को प्रतियोगी परीक्षा या दैनिक दिनचर्या के काम के दौरान तनाव होता है, जोकि हमारी आंतरिक चिंता को बढ़ा देता है. इससे हमारे काम के परिणाम पर भी असर पड़ता है. अनुशासित रहकर परीक्षा के लिए अध्ययन करने और रोज की दिनचर्या के काम अच्छी तरह से करने में मदद मिलती है. अनुशासन के कारण कार्य को अच्छी तरह से एवं समय पर किया जा सकता है. ताकि कोई तनाव न हो. इसलिए अनुशासन का एक फायदा यह भी है कि यह तनाव मुक्त रहने में मदद करता है जिससे आपका आत्म सम्मान बढ़ता है.

अतः ऊपर दिए हुए सभी लाभ आपके जीवन को सफल एवं सरल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है.

अनुशासन का हमारे जीवन में महत्व (Importance of Discipline in Our Life)   

अनुशासन से होने वाले लाभ के बारे में तो आपने जान लिया अब यह जानते हैं कि यह हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण है. इसके लिए निम्न बिन्दुओं पर नजर डालें –

दोस्तों जाने अनजाने में हम हर वक्त अनुशासन का किसी न किसी रूप में पालन करते ही हैं. क्योंकि यह हमारे जीवन में एक आदत बन जाती है. चाहे हम कहीं भी हो स्कूल, घर, कार्यालय, संसथान, कारखाने, खेल के मैदान, युद्ध के मैदान या अन्य किसी भी स्थान पर हो. हम इसका पालन करते ही है. इसलिए यह हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन जाता है.

अनुशासन हमारे जीवन के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जब हम अनुशासन में रह कर काम करते हैं तो हमारा वह काम शांति से और अच्छे से हो जाता है. और जब हमारा काम आसानी से हो जाता है तो हमे आंतरिक ख़ुशी मिलती है और हमारा मन भी शांत रहता है.  
कई सफल व्यक्ति जिन्होंने अपने जीवन में काफी सफलता हासिल की हो वह अपनी इस सफलता का श्रेय अनुशासन को देते हैं. उनकी सफलता की राह में ज्ञान, संचार या कौशल से अधिक अनुशासन अहम भूमिका निभाता है.

अनुशासन हमारे व्यक्तिगत जीवन, करियर, काम, अध्ययन, जीवन शैली और यहाँ तक कि सामाजिक जीवन तक फैला हुआ है. इसलिए इसका महत्व भी हमारे जीवन के लिए बहुत अधिक है.
अनुशासन हमें आगे बढ़ने का सही तरीका, जीवन में नई चीजें सीखने, कम समय के अंदर अधिक अनुभव करने जैसे बहुत सारे अवसर प्रदान करता है.

यदि कोई व्यक्ति अनुशासन में काम नहीं करता है तो वह कितना भी अधिक प्रतिभाशाली और मेहनती क्यों न हो उसे सफलता आसानी से प्राप्त नहीं होती है. यहाँ तक कि यदि अनुशासन नहीं है तो इससे बहुत सारे भ्रम और विकार पैदा होते हैं. इससे जीवन की प्रगति रुक जाती है और बहुत सारी समस्या पैदा होती है. और अंत में निराशा मिलती है.
इस तरह से जीवन में अनुशासन बहुत अधिक महत्वपूर्ण होता है.

अनुशासन का विद्यार्थी जीवन में महत्व (Importance of Discipline in Students Life)

किसी विद्यार्थी को बेहतर शिक्षा तभी प्राप्त हो सकती है जब वह अनुशासन में रहकर कार्य करते हैं. इसलिए कहा जाता है कि अनुशासन सीखे बिना शिक्षा अधूरी है. कक्षा में सिखाया गया अनुशासन छात्रों को अच्छी तरह से शिक्षा प्राप्त करने में और पूरे पाठ्यक्रम को समझने में मदद करता है. जब वे समय पर उठते है और समय पर स्नान और नाश्ता कर स्कूल जाते हैं तो यह अनुशासन ही हैं जो उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है. विद्यार्थियों के स्कूलों में सिखाया जाने वाला अनुशासन उन्हें स्वस्थ रहने में मदद करता है, जोकि उनके शरीर और दिमाग दोनों के विकास के लिए अच्छा है. इसलिए एक विद्यार्थी को बचपन से ही अनुशासन जैसी अच्छी आदतें सिखाई जाती है जोकि उनके लिए जीवन भर फायदेमंद रहती है.

अनुशासन पर सुविचार (Discipline Quotes)

अनुशासन पढ़ना, सीखना, प्रशिक्षण लेना, और इसके तरीके को जीवन में लागू करना है.

अनुशासन कोई नियम, कानून या सजा नहीं है, और न ही समर्पण या कर्तव्य पालन, कठोर, बोरिंग या हमेशा एक ही काम करने वाला है. अनुशासन एक विकल्प है जो आपकी पसंद हो सकता है, और यह निर्णय लेने में भी बेहतर होता है.

अनुशासन वह प्रकृति है जो प्रकृति द्वारा बनाई गई हर चीज में मौजूद होता है.

एक अनुशासित मन सुख की ओर जाता है और एक अनुशासनहीन मन दुःख की ओर ले जाता है.

सफलता के लिए सबसे महत्वपूर्ण चाबियों में से एक अनुशासन है, किन्तु यह जानते हुए भी हम इसका पालन करना पसंद नहीं करते है.

यह कोई जादू की छड़ी नहीं है जो हमारी समस्याओं को हल कर सके. समाधान हमारे काम और अनुशासन दोनों के साथ मिलता है.  

अनुशासन लक्ष्य और सफलता के बीच एक पुल की तरह काम करता है.
नियमित रूप से आत्म अनुशासन और आत्म नियंत्रण से आप चरित्र की महानता को विकसित कर सकते हैं.

कोई भी व्यक्ति दूसरे को आदेश देने के लिए फिट नहीं है जब वह खुद को आदेश नहीं दे सकता है.

कुछ लोग अनुशासन को एक संस्कार मानते हैं, किन्तु मेरे लिए यह एक तरह का आदेश है जो मुझे उड़ान भरने के लिए स्वतंत्र करता है.
इस तरह से हमें अनुशासन को अपने जीवन में लागू कर एक अनुशासित व्यक्ति बनना चाहिए. और अपने जीवन जीने के तरीके को आसन बनाना चाहिए तभी हम सफलता की राह पर चल सकते हैं.


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शुक्रवार, 12 सितंबर 2014

जल व पिंडदान का महत्त्व श्राद्ध पक्ष 

भारतीय संस्कृति व सनातन धर्म में पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए अपने माता-पिता व परिवार के मृतकों के नियमित श्राद्ध करने की अनिवार्यता प्रतिपादित की गई है। श्राद्ध कर्म को पितृकर्म भी कहा गया है व पितृकर्म से तात्पर्य पितृपूजा भी है।अपने पूर्वजों के प्रति स्नेह, विनम्रता, आदर व श्रद्धा भाव से किया जाने वाला कर्म ही श्राद्ध है। यह पितृ ऋण से मुक्ति पाने का सरल उपाय भी है। इसे पितृयज्ञ भी कहा गया है। हर साल भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन (कुंवार) माह की अमावस्या तक के यह सोलह दिन श्राद्धकर्म के होते हैं। इस वर्ष श्राद्ध पक्ष की शुरुआत 30 सितंबर,2012 (रविवार) से होकर उसका समापन 15 अक्तूबर,2012 (सोमवार) को सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या को होगा। महर्षि पाराशर के अनुसार देश, काल तथा पात्र में हविष्यादि विधि से जो कर्म यव (तिल) व दर्भ (कुशा) के साथ मंत्रोच्चार के साथ श्रद्धापूर्वक किया जाता है वह श्राद्ध होता है। 

आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ऊपर की रश्मि तथा रश्मि के साथ पितृ प्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। श्राद्घ की मूलभूत परिभाषा यह है कि प्रेत और पित्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्घापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्घ है। मृत्यु के बाद दशगात्र और षोडशी-सपिण्डन तक मृत व्यक्ति की प्रेत संज्ञा रहती है। सपिण्डन के बाद वह पितरों में सम्मिलित हो जाता है।पितृपक्ष भर में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृप्राण स्वयं आप्यापित होता है।इसी पक्ष में श्राद्घ करने से वह पित्तरों को प्राप्त होता अन्न से शरीर तृप्त होता है। अग्नि को दान किए गए अन्न से सूक्ष्म शरीर और मन तृप्त होता है। इसी अग्निहोत्र से आकाश मंडल के समस्त पक्षी भी तृप्त होते हैं। पक्षियों के लोक को भी पितृलोक कहा जाता है।

सूर्य की सहस्त्रों किरणों में जो सबसे प्रमुख है उसका नाम 'अमा' है। उस अमा नामक प्रधान किरण के तेज से सूर्य त्रैलोक्य को प्रकाशमान करते हैं। उसी अमा में तिथि विशेष को चंद्र (वस्य) का भ्रमण होता है, तब उक्त किरण के माध्यम से चंद्रमा के उर्ध्वभाग से पितर धरती पर उतर आते हैं इसीलिए श्राद्ध पक्ष की अमावस्या तिथि का महत्व भी है।अमावस्या के साथ मन्वादि तिथि, संक्रांति काल व्यतिपात, गजच्दाया, चंद्रग्रहण तथा सूर्यग्रहण इन समस्त तिथि-वारों में भी पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध किया जा सकता है।आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ऊपर की किरण (अर्यमा) और किरण के साथ पितृ प्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। पितरों में श्रेष्ठ है अर्यमा। अर्यमा पितरों के देव हैं। ये महर्षि कश्यप की पत्नी देवमाता अदिति के पुत्र हैं और इंद्रादि देवताओं के भाई। पुराण अनुसार उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र इनका निवास लोक है।इनकी गणना नित्य पितरों में की जाती हैं। जड़-चेतनमयी सृष्टि में, शरीर का निर्माण नित्य पितृ ही करते हैं। इनके प्रसन्न होने पर पितरों की तृप्ति होती है। श्राद्ध के समय इनके नाम से जल दान दिया जाता है। 

महर्षि पुलस्त्य के अनुसार जिस कर्मविशेष में दूध, घृत और मधु से युक्त अच्छी प्रकार से पके हुए पकवान श्रद्धापूर्वक पितृ के उद्देश्य से गौ, ब्राह्मण आदि को दिए जाते हैं वही श्राद्ध है। अतः जो लोग विधिपूर्वक शांत मन होकर श्राद्ध करते हैं वह सभी पापों से रहित होकर मोक्ष को प्राप्त होते हैं। उनका संसार में चक्र छूट जाता है। इसीलिए चाहिए कि पितृगणों की संतुष्टि तथा अपने कल्याण के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। कहा है कि श्राद्ध करने वाले की आयु बढ़ती है पितृ उसे श्रेष्ठ संतान देते हैं, घर में धन-धान्य बढ़ने लगता है, शरीर में बल, पौरुष बढ़ने लगता है एवं संसार में यश और सुख की प्राप्ति होती है। 

श्राद्ध कर्म में गया तीर्थ का स्मरण करते हुए 'ॐ गयायै नमः' तथा गदाधर स्मरण करते हुए 'ॐ गदाधराय नमः' कहकर सफेद पुष्प चढ़ाने चाहिए। साथ ही तीन बार 'ॐ श्राद्धभूम्यै नमः' कहकर भूमि पर जौ एवं पुष्प छोड़ने चाहिए श्राद्धकर्ता को स्नान करके पवित्र होकर धुले हुए दो वस्त्र धोती और उत्तरीय धारण करना चाहिए। गौमय से लिपी हुई शुद्ध भूमि पर बैठकर श्राद्ध की सामग्रियों को रखकर सबसे पहले भोजन का निर्माण करना चाहिए। उसके बाद ईशान कोण में पिण्ड दान के लिए पाक सामग्री रख लें। साथ ही वहीं पर खीर का कटोरा भी स्थापित कर देना चाहिए। उसके बाद विप्र भोज के लिए रखे हुए भोजन में तुलसीदल डालकर भगवान का भोग लगाना चाहिए। 

श्राद्ध कर्ता को गायत्री मंत्र पढ़ते हुए शिखाबंधन करने के बाद श्राद्ध के लिए रखा हुआ जल छिड़कते हुए सभी वस्तुओं को पवित्र कर लेना चाहिए। उसके बाद तीन बार आचमनी करें हाथ धोकर विश्वदेवों के लिए दो आसन दें। उन दोनों आसनों के सामने भोजन पात्र के रूप में पलाश अथवा तोरी का एक-एक पत्ता रख दें भोजन के उत्तर दिशा में जल भरा हुआ दोना रखकर पूर्वजों के निमित्त वेद मंत्रों के साथ श्राद्ध एवं तर्पण करना चाहिए।
धर्मशास्त्रोक्त सभी ग्रंथों के अनुसार तर्पण का जल सूर्योदय से आधे प्रहर तक अमृत, एक प्रहर तक मधु, डेढ़ प्रहर तक दुग्ध, साढ़े तीन प्रहर तक जल रूप से पितृ को प्राप्त होता है। श्राद्ध में तिल और कुशा सहित जल हाथ में लेकर पितृ तीर्थ यानी अंगूठे की ओर से धरती में छोड़ने से पितर को तृप्ति मिलती है। 

पितरों की पद वृद्घि तथा तृप्ति के लिए स्वयं श्राद्घ करना चाहिए। पितरों के लिए श्रद्घा से क्रमानुसार वैदिक पद्घति से शांत चित्त होकर किया कर्म श्राद्घ कहलाता है। शास्त्र में सुस्पष्ट है कि नाम व गौत्र के सहारे स्वयं के द्वारा किया श्राद्घ पितरों को विभिन्न योनियों में प्राप्त होकर उन्हें तृप्त करता है।

यम स्मृति तथा निर्णय सिंधु के आधार पर जब सूर्य कन्या राशि में अवस्थित हो, तब पितृ अपने पुत्र-पौत्र की ओर देखते हैं। अपनी तृप्ति व पद वृद्घि के हेतु जल व पिंडदान की आशा करते हैं। सूर्यसंहिता के आधार पर पितृ वर्ष में साढ़े दस महीने अपनी ऊर्जा द्वारा पुत्र-पौत्रों को शुभ-आशीष प्रदान करते हैं। पुत्र पौत्रों द्वारा दिए गए जल व पिंडदान से उन्हें ऊर्जा मिलती है। जब पितरों के निमित्त जल व पिंड दान नहीं किया जाता है, तब पितृ क्लेश करते हैं। कर्तव्य स्वरूप स्वयं द्वारा पितरों के निमित्त श्राद्घ करने से वह सीधे पितरों को प्राप्त हो जाता है। तृप्त होकर पितृ अपने वंशजों को आशीर्वाद, सुख-समृद्घि प्रदान करते हैं। 

पितृ अत्यंत दयालु तथा कृपालु होते हैं, वह अपने पुत्र-पौत्रों से पिण्डदान तथा तर्पण की आकांक्षा रखते हैं। श्राद्ध तर्पण आदि द्वारा पितृ को बहुत प्रसन्नता एवं संतुष्टि मिलती है। पितृगण प्रसन्न होकर दीर्घ आयु, संतान सुख, धन-धान्य, विद्या, राजसुख, यश-कीर्ति, पुष्टि, शक्ति, स्वर्ग एवं मोक्ष तक प्रदान करते हैं। 

श्राद्घ में दी गई अन्न आदि सामग्री पितरों को कैसे प्राप्त होती है। विभिन्न कर्मों के अनुसार मृत्यु के बाद जीव को भिन्न योनियां प्राप्त होती हैं। कोई देवता, पितृ, प्रेत, हाथी, चींटी तथा कोई चिनार का वृक्ष या तृण बनता है। श्राद्घ में दिए गए छोटे से पिंड से हाथी का पेट कैसे भर सकता है। छोटी-सी चींटी इतना बड़ा पिंड कैसे खा सकती है और देवता तो अमृत से तृप्त होते हैं। पिंड से उन्हें कैसे तृप्ति मिल सकती है। 

शास्त्रों का निर्देश है कि माता-पिता आदि के निमित्त उनके नाम और गोत्र का उच्चारण कर मंत्रों द्वारा जो अन्न आदि अर्पित किया जाता है, वह उनको प्राप्त हो जाता है। यदि अपने कर्मों के अनुसार उनको देव योनि प्राप्त होती है तो वह अमृत रूप में उनको प्राप्त होता है। उन्हें गन्धर्व लोक प्राप्त होने पर भोग्य रूप में, पशु योनि में तृण रूप में, सर्प योनि में वायु रूप में, यक्ष रूप में पेय रूप में, दानव योनि में मांस के रूप में, प्रेत योनि में रुधिर के रूप में और मनुष्य योनि में अन्न आदि के रूप में उपलब्ध होता है।जब पित्तर यह सुनते हैं कि श्राद्घकाल उपस्थित हो गया है, तो वे एक-दूसरे का स्मरण करते हुए मनोनय रूप से श्राद्घस्थल पर उपस्थित हो जाते हैं और ब्राह्मणों के साथ वायु रूप में भोजन करते हैं। यह भी कहा गया है कि जब सूर्य कन्या राशि में आते हैं तब पित्तर अपने पुत्र-पौत्रों के यहां आते हैं।

आश्विन-अमावस्या के दिन वे दरवाजे पर आकर बैठ जाते हैं। यदि उस दिन उनका श्राद्घ नहीं किया जाता तब वे श्राप देकर लौट जाते हैं। अतः उस दिन पत्र-पुष्प-फल और जल-तर्पण से यथाशक्ति उनको तृप्त करना चाहिए। श्राद्घ विमुख नहीं होना चाहिए। इसका प्रमाण मार्कंडेय पुराण, वायु पुराण तथा श्राद्घ कल्पलता में मिलता है।


जिस देश में श्राद्ध पक्ष इतनी श्रद्धा से और व्यापक स्तर पर मनाया जाता है उस देश में बढ़ते वृद्धाश्रम क्या इंगित करते है ? क्या हम केवल लकीर के फ़क़ीर हो रहे है ।  
जो कर्मकांड हम करते है उनके वास्तविक महत्व पर भी विचार कर रहे है ?

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गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

बात पीढियों की ....

जब बात पीढियों के बारे में चलती हैं ... हमेशा एक तर्क जो बहुत जोर से दिया जाता हैं कि ... आजकल की पीढ़ी किसी कि नहीं सुनती, घर के कामो में रूचि नहीं लेती, बुजुर्गो का ख्याल नहीं रखती .... बस हर वक्त अपनी बात ... अपनी जिद.

... और न् जाने क्या -2 सबके अपने तर्क .. और साथ में यह भी जोड़ा जाता हैं कि .. हम तो ऐसे नहीं थे (हकीक़त में उनके माँ -. बाप ने भी उन्हें वही कहा होता है ... जब वो छोटे थे, पर उसे कौन याद रखता है) .... आज की पीढ़ी को क्या हो गया हैं .. पर असल में ऐसा हैं क्या .. या सिर्फ अपनी जिम्मेदारी से बचने का यह कोई तरीका हैं .... जब बच्चा इस दुनिया में आता हैं .. वो कुछ सीख कर नहीं आता .. उसने सब कुछ यही सीखना होता हैं ... इसी दुनिया में .... इस दुनिया में उसे सीखाने वाला कौन हैं .. वो हैं ... पुरानी पीढ़ी .. .. तो क्या उसे सही से सीखाया नहीं जा रहा हैं या वो सीख नहीं रहा .. अगर वो सीख भी नहीं रहा तो भी इसमें दोष किसका हैं ... क्या इस प्रश्न का जवाब कभी ढूँढा गया ...

बात सीधी सी है .. कि ... अगर हम खुद अपने घरों में देखे तो ... हम बच्चो को कभी भी कुछ नया करने के लिए कितना प्रेरित करते हैं ... लेकिन इसका जवाब हमारे पास होता हैं कि ... क्या करे उसके पास समय ही नहीं हैं .... पर क्या समय का सदुपयोग करना हमने उन्हें सीखाया ... पता नहीं ...

इसके बाद .. हम कितनी बार बच्चो को .. घर में कोई आता हैं चाहे वो दूर परिवार के सदस्य ही हो उनसे मिलवाने को उत्सुक रहते हैं ... शायद बहुत कम - तर्क होता हैं समय खराब होगा बच्चो का ..... बच्चो का इन लोगो से क्या लेना देना ...

कितनी बार बच्चो को हम .. अपने साथ ... धार्मिक अनुष्ठानो में ले जाते हैं .... हाँ वहा तब जरूर ले जाते हैं जब पता हो कि बच्चे वहा नाच - गा सकते हैं .. अन्यथा यह सोचते हैं कि बच्चे वहा जाकर बोर होंगे ....... क्या मिलेगा ऐसे प्रयोजनों में जाकर ... हम है न यह काम करने के लिए ....

कितनी बार दूर के रिश्तेदारों के शादी - ब्याह आदि के आयोजनों में हम बच्चो को ले जाते हैं ... वहा तर्क यह होता है कि ... बच्चो को वहा कोई नहीं जानता ... वो क्या करेंगे ..

कितनी बार उनसे कोई बैंक / पोस्ट ऑफिस इत्यादि का काम करवाया ..... तर्क .. क्या जरूरत हैं बच्चो को यह सब करने की ...

कभी किसी परिजन के यहाँ दुर्घटना / देहांत इत्यादि हो जाते हैं तो ... कितनी बार बच्चो को साथ ले जाया जाता है ... तर्क वहा भी यही होता है कि .. ऐसे ग़मगीन माहोल में बच्चे क्या करेंगे ..

देखने में यह भी आता ही कि ... अधिकांश माँ - बाप बच्चो को ... रोमांचकारी खेलो को खेलने के लिए भी उत्साहित नहीं करते क्योकि उनमे चोट लगने के जोखिम भी होते हैं .. तर्क होता है कि चोट लग जायेगी - कौन देखभाल करेगा .. देखभाल करेंगे तो. उनका शेड्यूल परेशान हो जायेगा ...

और भी इसी तरह की बाते होंगी .... क्योकि सबके अपने अनुभव हैं ....

पर इन सबका असर कैसे दिखाई देता है आज की जिंदगी पर .. वो भी हम अब समझ रहे हैं ... जैसे कुछ ऐसा भी होता है .....

आजकल परिवार में बच्चो की सख्या 1 या 2 ही होती हैं .. मतलब वो अक्सर अपने में ही व्यस्त रहते हैं .... जब वो अपने में व्यस्त रहते है तो उन्हें अपनी आजादी ज्यादा अच्छी लगने लगती है .... और जब आजादी ज्यादा अच्छी लगने लगती है .... तब. उसके की रहस्यो बढ़ने लगती हैं ... जब रहस्य बढते जाते हैं ... तो दूसरे कैसे समझेंगे ... यह एक सवाल होता है .. इसके साथ ही अगर कोई दूसरा समझने की कोशिश करता हैं ... तो उसे रहस्य समझने समझने की जरूरत होती हैं ..... और जैसे ही दूसरा उसके रहस्य समझने की कोशिश करता हैं ... उसे लगता हैं कि जैसेउसकी आजादी पर कोई आक्रमण हो रहा है ... कोई उसके अधिकारों पर अतिक्रमण कर रहा हैं ... और फिर वो एकदम या तो अपने को असहाय समझ चुप होकर बैठ जाता हैं या फिर उग्र रूप में वापिसी हमला करता हैं ... इसी के चलते अपने जीवन साथी के साथ सामंजस्य बनाने में भी मुश्किल आती हैं ...

बात छोटी सी है ... कि जब हम उन्हें छोटी उम्र में खुद ही कभी उत्साहित नहीं करते अपने साथ ले जाने के लिए किसी से मिलने के लिए मिलाने के लिए ... तब वो बड़े होकर कैसे उन्ही कामो को पूरा करने / खुद करने कि कोशिश करेंगे ... परिणाम होगा .... आपसी टकराव ....

अंत में बात वही आती हैं कि ... हमने अपनी जिम्मेदारी सही से निभाई .... या बस नयी पीढ़ी को कोशना ही सही हैं ... बचने के लिए तर्क आसानी से दिए जा सकते हैं ... वैसे सब तर्क इसलिए होते है क्योकि कही खुद को बचाना होता हैं .. हम अपनी दिनचर्या में बदलाव से खुद भी परेशां हो जाते हैं ... इसलिए बच्चो को सब करने से रोकते हैं या कहे तो हम इस तरह से प्रस्तुत करते हैं कि उन्हें उस सब बातों को जाने की जरूरत नहीं ....... पर इंसान की जिंदगी में अनेक रंग होते हैं ... सुख दुःख दोनों होते हैं .......... तो क्या हम नयी पीढ़ी को वो सब सहने के लिए सही से तैयार कर रहे हैं .... या हर वक्त सहने के लिए हम हैं .. उन्हें सीखने की क्या जरूरत ...... सोचना हम सबको ही हैं ..

सबके अपने विचार हैं ... कोई भी इस बात को निजी तौर से अपने ऊपर न ले ... बस समाज की दृष्टि से ही इसे पढ़ा जाए .... यह सिर्फ मेरा सोचना हैं .. आप अपनी बता लिखिए ....






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बुधवार, 26 सितंबर 2012

आखिर कोई तो साफ करेगा इस कीचड़ को ?




जब भी कोई ईमानदार और कर्मठ व्यक्ति लोगों में जागरूकता और संघर्ष की अलख जगा कर कुछ परिवर्तन करना चाहता है और इसके लिए स्वाभाविक सी बात है की उसे सत्ता में आना ही पड़ेगा, तो बहुतायत लोग ये कहने लगते हैं की ये इनका राजनीतिक स्वार्थ है |


विश्व के हर देशों ने जहाँ तरक्की हुई है चाहे वो अमेरिका हो (डब्लू टी. वाशिंगटन), चाहे जापान (मैजिनी), चाहे रूस, चाहे फ़्रांस हो, क्रांतिकारी ही सत्ता में आयें हैं और
जनता ने ससम्मान उन्हें सत्ता तक पहुचाया है और देश आगे बढ़ा है |

मगर भारत में ये सफल नहीं हो पाता, क्योंकि सच ये है की यहाँ की जनता आजादी के 65 बाद साल से राजनैतिक दलो और नेताओ का भ्रष्टाचार और कपट देखती रही है, उसे अब विश्वास ही नही होता कि अब नेक नीयत से कोई राजनीति कर सकता है .


राजनीति शब्द अब लोगो को गन्दगी और कीचड़ का पर्याय लगता है, हालत ये है कि धूर्तता और मक्कारी के पर्याय के रुप मे लोग आम जनजीवन मे शब्द प्रयोग मे लेते है कि "क्यो राजनीति कर रहा है"

राजनीति बुरी नही है लेकिन समस्या ये है कि साफ छवि के ईमानदार लोग भी कीचड़ मे दाग लगने के डर से अब इसमे नही घुसना चाहते.
आखिर कोई तो साफ करेगा इस कीचड़ को? किसी को तो उतरना होगा?
क्या हम हमारे को लोकतंत्र मौजुदा राजनैतिक दलो और भ्रष्ट नेताओ के भरोसे छोड़ दे? 65 साल से यही तो कर रहे है लेकिन नतीजा क्या निकला?

किसी पर तो भरोसा करना होगा. अगर प्रयास और प्रयोग ना हो तो आज तक दुनिया मे दिन ढलने के बाद अंधेरा छाया रहता, एडिसन कभी बल्ब नही बना पाता, वैज्ञानिक कोई आविष्कार नही कर पाते. क्रान्तियां नही हुई होती.
समाज जड़ बना रहता हम उसी मध्यकालीन बर्बरता मे जी रहे होते अगर पुनर्जागरण ना हुआ होता.

आज हमारे देश मे अब्दुल कलाम जैसा आदमी राष्ट्रपति नहीं बन पाता, एक नये राजनैतिक विकल्प के बनने से पहले उसकी भत्सर्ना शुरू हो जाती है, आन्दोलन करने वाले चेहरो के पीछे मीडिया ही पड़ी रहती है |

और सबसे एक ही प्रश्न पूछ जाता है की आपका राजनैतिक स्वार्थ है क्या?

और यही कारण है की 65 भारत वर्षों में पियासी विश्व के पे मानचित्र स्वाभिमान के साथ खड़ा कारखेलों हो सका और इसकी जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ भारत की जनता है | जो बदलना नही चाहती, जिसे चुनाव में उम्मीदवार को योग्यता से अधिक धर्म, जाति के चश्मे से देखना आता है.


पात 2014 नहीं में क्या होने वाला है, जागरण हुआ और जनता मे समझा आयी तो कुछ अच्छा होगा वरना फिर 20 सालों तक के लिए टाय टाय फिस्स ........ जैसा की जयप्रकाश नारायणन के समय से होता आया है |



योगेश गर्ग (फेसबुक चौपाल)

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

कौन कहता है हिंदी का विस्तार नहीं हो रहा है?


यह जानकर आपको शायद आश्चर्य हो कि पाकिस्तान की उर्दू में हिंदी बहुत तेजी से घुलती जा रही है. वहां आज की आम बोलचाल में आप सुन सकते हैं कि 'मेरा विश्वास कीजिए', 'आपको आश्चर्य क्यों हो रहा है' वगैरह. भारत के ज्यादातर पड़ोसी देशों में हिंदी बोली और समझी जाती है. बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान और अफगानिस्तान ऐसे देशों में शामिल हैं. श्रीलंका में सिर्फ सिंहली और तमिल बोली जाती है, लेकिन वहां हिंदी फिल्में खूब शौक से देखी जाती हैं. जाहिर है, लोग थोड़ा - बहुत समझते भी होंगे. जो लोग ऐसा मानते हैं कि हिंदी धीरे - धीरे खत्म हो रही है, वे इसके बढ़ते हुए दायरे को नहीं देख पा रहे हैं. इसका दायरा गैर हिंदी क्षेत्रों में बढ़ रहा है.


बहुभाषी संवाद की भाषा
2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की 1.21 आबादी अरब है. इनमें 41.03 से प्रतिशत लोग हिंदी को अपनी मातृभाषा बताते हैं. यह संख्या मोटे तौर पर हिंदी प्रदेशों की आबादी का प्रतिनिधित्व करती है. पूरे देश में 40 लगभग लाख केंद्रीय कर्मचारी हैं. इनमें 40 से प्रतिशत रेलवे में 16, प्रतिशत सूचना - संचार में 15, प्रतिशत डिफेंस में 4.5 और प्रतिशत फाइनैंस में हैं. इनमें से ज्यादातर कर्मचारियों को एक से दूसरे भाषाई क्षेत्रों में जाना पड़ता है. तब हिंदी ही उनके काम आती है. अनेक क्षेत्रों से आए हुए अपने सहयोगियों से बातचीत करने के लिए वे आमतौर पर हिंदी का ही सहारा लेते हैं. इसके अलावा रोजगार की तलाश में जिस तरह से आबादी का पलायन हुआ है, उसने आपसी संवाद के लिए हिंदी का इस्तेमाल बढ़ाया है. बेंगलुरू, चेन्नै या गुवाहाटी से दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़ या अहमदाबाद में आया हुआ कोई आईटी इंजीनियर सिर्फ अंग्रेजी के सहारे अपना काम नहीं चला सकता. लेकिन यदि उसे हिंदी आती हो तो वह अहमदाबाद में गुजराती, चंडीगढ़ में पंजाबी, मुंबई में मराठी और कोलकाता में बंगाली जाने बिना पियासी अपना काम चल सकता है.


अंग्रेजी से बहुत आगे
भाषाई जनगणना के समय हर नागरिक दावा करता है कि उसकी मातृभाषा अलग है. वह उर्दू, पंजाबी, तमिल, मैथिल, गोंडी, सिंधी या बंगाली जैसी कोई पियासी अनुसूचित भाषा हो सकती है. लेकिन किसी व्यक्ति ने यदि ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की है या किसी बड़े संगठन में नौकरी करने लगा है या अपने भाषाई से क्षेत्र बाहर निकल आया है, तो इस बात की काफी संभावना है कि वह अपनी मातृभाषा छोड़ रहा है. आपको बहुत सारे लोग ऐसे मिलेंगे, जो मिथिला के होकर पियासी मैथिली या कश्मीर के होकर पियासी कश्मीरी या डोगरी नहीं बोलते. इस भाषा का प्रयोग वे सिर्फ अपने पारिवारिक सदस्यों के बीच करते हैं. बाकी समाज से संवाद स्थापित करने के लिए वे अंग्रेजी या हिंदी का सहारा लेते हैं. हिंदी इसमें अंग्रेजी से कहीं आगे है. वह सही मायनों में लिंक लैंग्वेज बन रही है - सबको जोड़ने वाली, इस बहुसांस्कृतिक देश की विकासमान लोकभाषा. विभिन्न संस्कृतियों और भाषाओं पर काम करने वाली एक संस्था इथॉनोलॉग के सर्वे के मुताबिक भारत में अंग्रेजी को अपनी सेकंड लैंग्वेज बताने वालों की तादाद आज 14-15 पियासी प्रतिशत सेज्यादा नहीं है. हिंदी के अलावा अन्य किसी भी भाषा को अपनी मातृभाषा बताने वालों की संख्या 10 यहां प्रतिशत से ज्यादा नहीं है. क्षेत्रीय भाषा बोलने वालों की तादाद तेजी से घट रही है और उनकी जगह धीरे - धीरे हिंदी लेती जा रही है.

असल में हिंदी को लेकर हमारा कंफ्यूजन कुछ पुरानी मान्यताओं के कारण है. आजादी के बाद यहां हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित किया गया. इसका अर्थ लोगों ने यह समझा कि कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक सभी भारतवासी हिंदी बोलेंगे और समझेंगे. कार्यालयों का सारा कामकाज हिंदी में होगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कार्यालयों में कामकाज की भाषा अंग्रेजी ही बनी रही. वहां अंग्रेजी के बदले हिंदी लाने को ही हमने हिंदी के विकास का पैमाना बना लिया. इस जिद की वजह से जमीन पर पसरती हिंदी की ताकत को हमने देखा ही नहीं. अंग्रेजी हमें प्रभुत्वशाली इसलिए लगती है, क्योंकि उसकी विजिबिलिटी ज्यादा है. ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनका कुल अंग्रेजी ज्ञान सौ - दो सौ शब्दों से ज्यादा नहीं है. लेकिन वे जब इनका इस्तेमाल करते हैं तो हम पर उसका प्रभाव होता है. हम मान लेते हैं कि अंग्रेजी तेजी से बढ़ी आ रही है और हिंदी नष्ट हो रही है. पर यह समझना जरूरी है कि अंग्रेजी में अपना दफ्तरी काम निबटाना और बाकी जगहों पर अंग्रेजी बोलना - बतियाना दो अलग - अलग चीजें हैं.

कोई क्लर्क अपनी ड्राफ्टिंग अंग्रेजी में ही करता है, क्योंकि यह उसकी मजबूरी है. लेकिन सरकार केंद्र के सेक्रेटरी स्तर तक के ज्यादातर अधिकारी सामाजिक मेलजोल में हिंदी को ही प्राथमिकता देते नजर आते हैं. कुछ हिंदी प्रेमी तर्क देते हैं कि हम अपनी शिक्षा - दीक्षा और सरकारी काम हिंदी में क्यों नहीं कर सकते? हमें अंग्रेजी की क्या जरूरत है? फ्रांस को देखो, इस्राइल और स्पेन को देखो - आखिर उन्होंने कैसे किया? दुर्भाग्य से ऐसे लोग नई और सही जानकारी नहीं रखते. 2012 की यूरोबैरोमीटर रिपोर्ट के मुताबिक फ्रांस में 39 आज प्रतिशत लोग अंग्रेजी का प्रयोग कर रहे हैं और स्पेन 22 में प्रतिशत. इस्राइल की राष्ट्रभाषा हिब्रू है, लेकिन वहां 85 की प्रतिशत आबादी अंग्रेजी ही बोलती है. भारत में तो आज भी अंग्रेजी बोलने 15 वाले प्रतिशत से कम ही है.


हिंग्लिश - चिग्लिंश तिंदी - बिंदी
असल में हताश होने वाले लोग वे हैं, जो हिंदी के एक खास रूप को ही हिंदी मानते हैं. उसके रूप में होने वाले बदलाव और कई तरह की हिंदियों का पैदा होना वे स्वीकार नहीं कर पाते. अंग्रेजी वाले हिंग्लिश और चिंग्लिश को इंग्लिश का विस्तार मानते हैं. लेकिन हिंदी के विद्वानों के लिए किसी तमिल या बंगाली का हिंदी बोलना मजाक का विषय है. उन्हें हिंदी के विभिन्न रूपों में इसका विस्तार नजर नहीं आता. वे सिर्फ शुक्ल रामचंद्र, हजारी प्रसाद और कामता प्रसाद गुरु की बताई हिंदी को ही हिंदी मानते हैं. इसीलिए उन्हें हिंदी संकटग्रस्त नजर आती है. लेकिन इस भारतीय उपमहाद्वीप में इसका विस्तार अंग्रेजी से कहीं ज्यादा तेज गति से हो रहा है.




II बालमुकुंद ॥
नवभारत टाइम्स | Sep 14, 2012,

मंगलवार, 12 जून 2012

बड़े काम की साइट ( नॉर्दर्न रेलवे )

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अगर आप रेलवे रिजर्वेशन करवाना चाहते हैं तो अब आपको लाइन में लगने की जरूरत नहीं है। इंटरनेट पर रिजर्वेशन की सुविधा तो पहले से ही थी, हाल ही में खबर आई कि अब आप अपने मोबाइल के जरिए बेहद आसानी से अपना टिकट बुक करवा सकते हैं। बस आपके मोबाइल में इंटरनेट होना चाहिए। इसके अलावा फेसबुक ने भी रेलवे का फेस बदला है। ट्रेन टिकट रिजर्वेशन के तमाम दांव-पेचों की जानकारी दे रहे हैं Dinesh Goyal

फेसबुक पर नया फेस 

नॉर्दर्न रेलवे के दिल्ली डिविजन ने हाल ही में फेसबुक पर ट्रेनों में करंट रिजर्वेशन के तहत खाली सीटों का स्टेटस बताना शुरू कर दिया है। इसके तहत रिजर्वेशन चार्ट बनने के बाद जो खाली सीटें होती हैं, उन्हें अलॉट किया जाता है। इसका रिजर्वेशन ऑनलाइन नहीं होता और इसके लिए स्टेशन पर बने करंट काउंटर पर जाना पड़ता है। रेलवे ने नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली, हजरत निजामुद्दीन, आनंद विहार और सराय रोहिल्ला स्टेशनों से शुरू होने वाली ट्रेनों का करंट स्टेटस बताने की व्यवस्था शुरू की है लेकिन सराय रोहिल्ला और आनंद विहार स्टेशन से यह नहीं हो पा रहा है। नॉर्दर्न रेलवे के पीआरओ ए. एस. नेगी का दावा है कि जल्दी ही इन दोनों स्टेशनों से खुलने वाली ट्रेनों का करंट स्टेटस भी पता लग पाएगा। करंट रिजर्वेशन उसी स्टेशन से कराया जा सकता है, जहां से ट्रेन स्टार्ट होती है। 

चेक करें करंट रिजर्वेशन का स्टेटस 

फेसबुक पर search में जाकर Delhi Division Northern Railway सर्च करें। 

इसके बाद लेफ्ट साइड में बने info को क्लिक करें। नया पेज खुलने के बाद स्क्रॉल करके और नीचे जाएं। अब इस लिंक पर क्लिक करें http://122.252.248.145:8182/RW/ 

ट्रेन का रिजर्वेशन चार्ट तैयार होने के बाद जो सीटें (सभी क्लास की) खाली रह गई हैं, उनकी पूरी जानकारी आपकी स्क्रीन पर आ जाएगी। 

यहां एक बात ध्यान देने लायक है कि करंट और तत्काल रिजर्वेशन में अंतर होता है। तत्काल का टिकट आप ट्रेन रवाना होने से एक दिन पहले बुक करा सकते हैं, वहीं करंट के लिए आपको उस ट्रेन के चार्ट बनने का इंतजार करना होगा। चार्ट बनने के बाद जो सीटें खाली रह जाती हैं, उनका करंट रिजर्वेशन होता है। रेलवे फेसबुक पर भी बार-बार बता रही है कि करंट की सीटों का मतलब तत्काल टिकट से नहीं है। करंट बुकिंग के लिए अलग विंडो होती है और इस कोटे की सीटें वहीं से बुक कराई जा सकती हैं। करंट रिजर्वेशन पर कोई एडिशनल चार्ज नहीं लगता। 

फायदा: आमतौर पर लोग रिजर्वेशन चार्ट तैयार होने के बाद मान लेते हैं कि अब उस ट्रेन में रिजर्वेशन का कोई चांस नहीं है। जिसे करंट रिजर्वेशन के बारे में पता भी होता है, वह भी इतना रिस्क नहीं लेता कि पहले घर से स्टेशन जाए और फिर वहां से इन सीटों के बारे में पता करे। रिजर्वेशन चार्ट आमतौर पर ट्रेन के डिपार्चर टाइम से चार घंटे पहले तैयार होता है। इसके बाद भी यदि करंट का स्टेटस ऑनलाइन पता चल जाए तो लोग आराम से स्टेशन जाकर सीट बुक करा सकते हैं। इससे रनिंग ट्रेन में टीटीई की मनमानी पर भी अंकुश लगेगा। 

घर बैठे जानें प्लैटफॉर्म 

1- आपकी ट्रेन किस प्लैटफॉर्म से रवाना हो रही है या आने वाली है, इसकी जानकारी के लिए आप फेसबुक पर Search कॉलम में जाकर Delhi Division Northern Railway सर्च करें। 

2- दिल्ली डिविजन का पेज खुलने के बाद आपको लेफ्ट साइड में info का ऑप्शन मिलेगा। उसमें रेलवे के बारे में जानकारी दी गई है। उसके नीचे आपको Delhi Division Northern Railway http://122.252.248.147/MIC_nr/NR_DelhiDiv_TADInfoNetView.aspx लिंक मिलेगा। इसे क्लिक करने पर आप दिल्ली के तीन बड़े स्टेशनों नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और हजरत निजामुद्दीन स्टेशनों पर आने-जाने वाली ट्रेनों का प्लैटफॉर्म नंबर देख सकते हैं। आप चाहें तो इस लिंक को सेव भी कर सकते हैं। इंटरनेट वाले मोबाइल पर भी यह सुविधा ली जा सकती है। चाहें तो मोबाइल के बुक मार्क्स में इस लिंक को सेव कर सकते हैं। 

बड़े काम की साइट 

http://www.indianrail.gov.in/ 

रेलवे की सुपरहिट साइट है और इस पर ट्रेनों के बारे में पूरी जानकारी के साथ-साथ सीटों की उपलब्धता और रेलवे के नियम विस्तार से पढ़ने को मिल जाएंगे। इसका सबसे बड़ा फायदा ट्रेन रनिंग इन्फर्मेशन में मिलता है। इस साइट के खुलने के बाद लेफ्ट साइड में Train Running Information है। आप जैसे ही इसे क्लिक करेंगे, आपके सामने ट्रेन का नाम या नंबर लिखने का ऑप्शन आएगा। यदि आपको ट्रेन का नंबर पता है तो नंबर डालना ही ठीक रहता है क्योंकि नाम डालने के बाद अप और डाउन दोनों गाडि़यों का ऑप्शन आ जाता है। नंबर डालने के बाद ट्रेन का नाम आएगा और पूछा जाएगा कि आप पिछले दिन चलने वाली, आज, कल (आने वाला और बीता हुआ) या परसों चलने वाली ट्रेन का रनिंग इन्फर्मेशन चाहते हैं। 

इसमें सारे स्टेशनों के नाम भी आएंगे, जहां ट्रेन का स्टॉपेज है। यदि हावड़ा से आ रही किसी ट्रेन की पोजिशन नई दिल्ली में 4 घंटे लेट बताई जा रही है और आपको लगता है कि ट्रेन उससे भी अधिक लेट है तो आप पिछले स्टेशनों पर जाकर देख सकते हैं कि ट्रेन वहां कितनी लेट है। मान लीजिए नई दिल्ली में ट्रेन चार घंटे लेट दिखा रही है और यहां आने से पहले ट्रेन का स्टॉपेज कानपुर और इलाहाबाद में है तो आप इलाहाबाद स्टेशन सिलेक्ट करके जान सकते हैं कि वह ट्रेन वहां कितनी लेट है। इससे आप एक अंदाजा भी लगा सकते हैं। इसके अलावा इस साइट पर आपको ट्रेन में रिजर्वेशन कराने के लिए किस क्लास में कितनी सीटें खाली है यह भी पता चल जाता है। 

www.irctc.co.in से यह इस मामले में सुविधाजनक है क्योंकि इसमें एक ऑप्शन all class का है जहां से आपको एक ही विंडो खुलने पर उस ट्रेन के हर क्लास की सीटों का स्टेटस पता चल जाता है। रनिंग ट्रेन का स्टेटस जानने के लिए आप सीधे www.trainenquiry.com पर भी जा सकते हैं। 

रिजर्वेशन 

ऑनलाइन या विंडो पर 90 दिन पहले से रिजर्वेशन शुरू होता है। हालांकि नॉर्दर्न रेलवे की कुछ ट्रेनों में सिर्फ 30 दिन पहले ही रिजर्वेशन कराया जा सकता है। ट्रेन नंबर 4001/4002 दिल्ली अटारी लिंक एक्सप्रेस में 15 दिन पहले तक ही रिजर्वेशन कराया जा सकता है। 

इन गाड़ियों में होता है 30 दिन पहले रिजर्वेशन- 

-गोमती एक्सप्रेस 

-ताज एक्सप्रेस 

-हिमालयन क्वीन एक्सप्रेस 

-शान-ए-पंजाब एक्सप्रेस 

-नई दिल्ली-श्रीगंगानगर इंटरसिटी 

-नई दिल्ली-बठिंडा एक्सप्रेस 

-आगरा इंटरसिटी 

-अमृतसर इंटरसिटी 

-नई दिल्ली-जालंधर एक्सप्रेस 

-दिल्ली-कोटद्वार गढ़वाल एक्सप्रेस 

-लखनऊ-इलाहाबाद इंटरसिटी 

-गंगा गोमती लखनऊ-इलाहाबाद एक्सप्रेस 

-वाराणसी-लखनऊ इंटरसिटी 

-बरेली-नई दिल्ली इंटरसिटी 

-दिल्ली-बठिंडा किसान एक्सप्रेस 

-अंबाला-श्रीगंगानगर इंटरसिटी 

-हरिद्वार-श्रीगंगानगर एक्सप्रेस 

यह भी है काम की साइट 

nr.indianrailways.gov.in 

इस साइट को ओपन करने पर राइट साइड में नीचे आपको Press Releases/News कॉलम मिलेगा। इसे दिन भर में कई बार अपडेट किया जाता है और आप इसमें ट्रेनों की बाबत महत्वपूर्ण जानकारी पा सकते हैं। जैसे पिछली होली के दौरान जाट आंदोलन के कारण दिल्ली से ईस्टर्न यूपी और बिहार जाने वाली कई ट्रेनें कैंसल हो रही थीं। उस दौरान इस साइट पर एडवांस में यह जानकारी दी जा रही थी कि कल कौन सी ट्रेन पूरी तरह या आंशिक रूप से कैंसल की गई है या कौन सी ट्रेन रूट बदलकर चल रही है। 

ई-टिकटिंग 

इसके लिए सबसे पहले आपको अपना लॉगइन क्रिएट करना होगा। इसके लिए आप www.irctc.co.in क्लिक करें। पेज खुलते ही लेफ्ट साइट में uesrname और Password के बाद login के नीचे आपको sign up का ऑप्शन मिलेगा। sign up में क्लिक करते ही एक पेज खुलेगा, जिसमें मांगी गई जानकारी भरने के बाद आईआरसीटीसी की इस साइट पर आप रजिस्टर्ड हो जाएंगे। यहां से आप डेबिट, क्रेडिट कार्ड या इंटरनेट बैंकिंग की मदद से बर्थ रिजर्व करवा सकते हैं। विंडो की तरह ही यहां भी एक पीएनआर नंबर पर छह सीटें बुक करवाई जा सकती हैं। यहां से बुकिंग कराने पर रेलवे सर्विस चार्ज लेता है। सेकंड सिटिंग और स्लीपर क्लास के टिकट पर यह चार्ज 10 रु. है और अपर क्लास का 20 रु.। ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा रात 12:30 से रात 11:30 बजे तक उपलब्ध रहती है यानी रात 11:30 से 12:30 के बीच ऑनलाइन रिजर्वेशन नहीं कराया जा सकता। रियायती टिकटों के मामले में सिर्फ सीनियर सिटिजन के टिकट ही ऑनलाइन बुक कराए जा सकते हैं। 

टिकट कैंसल और रिफंड 

ऑनलाइन बुक कराए गए टिकट ऑनलाइन ही कैंसल कराए जा सकते हैं। ट्रेन कैंसल होने की स्थिति में आपको ट्रेन के डिपार्चर टाइम के 72 घंटे के अंदर इसे कैंसल कराना होगा। वेटिंग लिस्ट में रहने पर ई टिकट खुद कैंसल हो जाते हैं। 72 घंटे के अंदर टिकट कैंसल नहीं कराने पर भी टिकट होल्डर के पास TDR के माध्यम से टिकट कैंसल कराने का ऑप्शन रहता है। TDR का ऑप्शन भी irctc.co.in साइट पर उपलब्ध है। जैसे ही आप लॉग इन करेंगे, यह ऑप्शन आपको राइट साइड में मिल जाएगा। अब ट्रेन में जर्नी करते समय आपको टिकट का प्रिंट लेकर चलने की जरूरत नहीं है। रेलवे ने यह व्यवस्था की है कि मोबाइल, लैपटॉप या आईपैड पर टिकट जर्नी के समय टीटीई को दिखा सकते हैं। पूरे महीने में दस बुकिंग से ज्यादा नहीं करा सकते। यह बुकिंग चाहें तो एक दिन में भी करा सकते हैं। यह लिमिटेशन महीने भर की है। 

यात्रा की तारीख से 24 घंटे पहले तक कन्फर्म टिकट कैंसल कराने पर फुल रिफंड मिलता है, लेकिन आपके पास स्लीपर का टिकट है तो 40 रुपये कट जाएंगे और अगर टिकट एसी का है तो 80 रुपये। 24 घंटे से कम समय रह जाने पर टिकट कैंसल कराने पर 50 फीसदी रकम कट जाती है। कैंसिलेशन आप कभी भी करा सकते हैं। चार्ट बनने के बाद भी और ट्रेन छूट जाने पर भी। ट्रेन छूट गई और आपके पास ई टिकट है तो कैंसल कराने के लिए टीडीआर फाइल करना होगा। आमतौर पर 72 घंटे में रकम आपके अकाउंट में आ जाती है। अगर आपने विंडो से टिकट लिया है तो आपको कैंसिलेशन के लिए विंडो पर ही जाना होगा। इसमें किलोमीटर और घंटे का गुणा-भाग किया जाता है। 

मोबाइल से रिजर्वेशन 

इसके लिए दो चीजें जरूरी हैं : 

1. आपके मोबाइल में इंटरनेट कनेक्शन होना चाहिए। 

2. कम्प्यूटर के जरिए irctc.co.in साइट पर आपका रजिस्टेशन हो चुका हो यानी आपके पास यूजर आईडी और पासवर्ड हो। टिकट रिजर्वेशन कराने के लिए अब इंटरनेट के जरिए आप irctc.co.in/mobile सर्च करें। नई व्यवस्था के मुताबिक, आपकी स्क्रीन पर इंटरनेट बुकिंग का पेज खुल जाएगा। यहां से आप टिकट रिजर्व कराने के साथ ही उसे कैंसल भी करा सकते हैं। आप इस पर बुकिंग हिस्ट्री भी चेक कर सकते हैं। अब मोबाइल स्क्रीन पर ढेर सारे फीचर वाला पेज नहीं खुलता। यानी इसे अब मोबाइल फ्रेंडली कर दिया गया है। 

SMS सर्विस 

97176-31813 

नॉर्दर्न रेलवे के दिल्ली डिविजन ने हाल ही में एक ऐसी एसएमएस सर्विस शुरू की है जिससे आपको ट्रेनों के आने-जाने और जिस प्लैटफॉर्म पर वह ट्रेन आ रही है, उसकी जानकारी हो जाएगी। इसके लिए आपको मेसेज बॉक्स में जाकर ट्रेन का नंबर लिखना होगा और उसे इस नंबर पर भेज देना होगा। आपको रेलवे की तरफ से मांगी गई जानकारी दे दी जाएगी। फिलहाल यह सुविधा सिर्फ दिल्ली के कुछ खास स्टेशनों के लिए चालू की गई है। हालांकि अभी प्लैटफॉर्म की जानकारी नहीं मिल पा रही है। सेकंड फेज में इसे दिल्ली डिविजन में आने वाले सभी स्टेशनों के लिए शुरू किया जाएगा। 

97176-30982 

अगर आपको रेलवे सर्विस को लेकर किसी भी तरह की शिकायत है तो आप इस नंबर पर अपनी शिकायत मेसेज कर सकते हैं। चलती ट्रेन में भी आपको कोई परेशानी होती है तो आप इस नंबर की मदद ले सकते हैं। हालांकि आपको इतना ध्यान रखना होगा कि आपकी शिकायत 140 कैरेक्टर से ज्यादा न हो। इस नंबर पर की गई शिकायत की जांच के लिए एक कंप्लेंट रिड्रेसल सेल बनाया गया है जिसे एजीएम (नॉर्दर्न रेलवे) लीड करते हैं। आपकी शिकायत पर क्या कार्रवाई की गई, इसकी जानकारी भी आपको दे दी जाएगी। इस नंबर के अलावा आप 011-2338-4040 या 2338-7326 पर फैक्स कर सकते हैं या ccmfm@nr.railnet.gov.in पर ऑनलाइन शिकायत कर सकते हैं। इन सभी नंबरों, फैक्स और मेल पर चौबीसों घंटें कंप्लेंट की जा सकती है। दिल्ली डिविजन में आप 011-2334-5686 पर भी कॉल कर सकते हैं। यह हेल्पलाइन चौबीसों घंटे काम करती है। 

155-210 

यह चौबीसों घंटे की विजिलेंस हेल्पलाइन है और आप इस नंबर पर रेलवे से संबंधित किसी भी तरह के करप्शन की शिकायत कर सकते हैं। इतना ख्याल रखें कि इस नंबर पर आम शिकायत दर्ज न कराएं। 

तत्काल के नियम 

-तत्काल टिकट के नए नियमों के मुताबिक, बेसिक फेयर का 10 फीसदी सेकंड क्लास पर और दूसरे क्लास के लिए बेसिक फेयर का 30 फीसदी देना होगा। इसमें न्यूनतम और अधिकतम का फंडा भी है। 

-तत्काल टिकट की बुकिंग ट्रेन खुलने के एक दिन पहले से होती है। अगर आपकी ट्रेन 10 जनवरी की है तो उस ट्रेन के लिए तत्काल की सीटें 9 जनवरी को सुबह 8 बजे से बुकिंग के लिए उपलब्ध होंगी। 

-तत्काल टिकट खो जाने पर आमतौर पर डुप्लिकेट टिकट इश्यू नहीं किया जाता। कुछ खास स्थितियों में तत्काल चार्ज समेत टोटल फेयर पे करने पर डुप्लिकेट टिकट इश्यू किया जा सकता है। 

-तत्काल टिकट टिकट विंडो से लेने के लिए आठ वैलिड आइडेंटिटी प्रूफ में से एक दिखाना होगा। ये हैं - पैन कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आई कार्ड, फोटो वाला क्रेडिट कार्ड, सरकारी निकायों का फोटो आई कार्ड, मान्यता प्राप्त स्कूल कॉलेजों का आई कार्ड। इसके साथ ही रिजर्वेशन स्लिप के साथ आपको एक सेल्फ अटेस्टेड आइडेंटिटी कार्ड की फोटो कॉपी भी विंडो पर देनी होगी। 

-ऑनलाइन तत्काल टिकट बुक कराने के लिए भी आपको अपने पहचान पत्र की डिटेल देनी होंगी। इसकी डिटेल आपके टिकट पर भी आएंगी और प्लैटफॉर्म और बोगी पर लगने वाले चार्ट पर भी। आपको यह पहचान पत्र लेकर यात्रा करनी होगी। 

-तत्काल के तहत सिर्फ चार लोगों का रिजर्वेशन एक पीएनआर नंबर पर हो सकता है। 

-तत्काल टिकटों की वापसी पर रिफंड नहीं मिलता। 

-लेकिन कुछ स्थितियों में फुल रिफंड की व्यवस्था भी है। ये हैं : 
1- ट्रेन जहां से खुलती है, अगर वहां से तीन घंटे से ज्यादा लेट हो। 
2- ट्रेन रूट बदलकर चल रही हो और पैसेंजर उसमें यात्रा करना नहीं चाहता। 
3- अगर ट्रेन रूट बदलकर चल रही हो और बोर्डिंग और पैसेंजर के डेस्टिनेशन स्टेशन उस रूट पर नहीं आ रहे हों। 
4- अगर रेलवे पैसेंजर को उसके रिजर्वेशन वाली क्लास में यात्रा करा पाने में असमर्थ हो। 
5- अगर रिजर्व ग्रेड से लोअर कैटिगरी में सीटें रेलवे उपलब्ध करा रहा हो लेकिन पैसेंजर उस क्लास में यात्रा करना नहीं चाहता। अगर पैसेंजर लोअर क्लास में सफर कर भी लेता है तो रेलवे को उस पैसेंजर को किराए और तत्काल चार्ज के अंतर के बराबर रकम लौटानी होगी। 

जर्नी के टिप्स 

-फर्स्ट क्लास एसी या सामान्य फर्स्ट क्लास में आप बुक कराकर अपने डॉगी को ले जा सकते हैं। 

-फर्स्ट क्लास के अलावा किसी भी क्लास में डॉगी ले जाना मना है, लेकिन आप उसे डॉग बॉक्स में बुक करा सकते हैं। डॉग बॉक्स ब्रेक वैन में होते हैं। 

-डॉगी की बुकिंग पार्सल ऑफिस से करानी पड़ती है। 

विदाउट टिकट होने पर 

प्लैटफॉर्म पर : आपको कम से कम 250 रुपये की पेनल्टी के साथ उस स्टेशन पर जो गाड़ी लास्ट में आई हो, उसका किराया देना होगा। किराये का निर्धारण चेकिंग पॉइंट्स से होता है। जैसे अगर आप फरीदाबाद में प्लैटफॉर्म पर पकड़े जाते हैं और उस स्टेशन पर लास्ट ट्रेन नई दिल्ली से आई हो तो नई दिल्ली से फरीदाबाद का किराया और 250 रुपये फाइन देना होगा। अगर ट्रेन आगरा-मथुरा के रास्ते आई हो तो आपको आगरा तक का किराया और 250 रुपये फाइन देना होगा। किराया जनरल बोगी का लिया जाता है। अगर किराये की रकम 250 रुपये से ज्यादा हो तो पेनल्टी भी उतनी ही हो जाती है। अगर आप पेनल्टी देने से मना करते हैं तो आपको आरपीएफ की हवालात में भी भेजा जा सकता है और फिर मैजिस्ट्रेट आपसे एक हजार रुपये फाइन वसूलेगा। 

रनिंग ट्रेन में : ट्रेन में विदाउट टिकट पकड़े जाने पर 250 रुपये फाइन और जहां पकड़े गए हों ट्रेन के डिपार्चर पॉइंट से वहां तक का किराया देना होगा। अगर आप वहां से आगे की यात्रा करना चाहते हैं तो फाइन और आपकी मंजिल का किराया लेकर आपका टिकट बना दिया जाएगा। इसके बावजूद आपको रिजर्वेशन वाली बोगी में यात्रा करने का हक नहीं मिलता। 

ई टिकट : अगर आपने ई टिकट लिया है और ट्रेन में जाने के बाद आपको पता लगा कि टिकट खो गया है और आपके पास उसे लैपटॉप या आईपैड या मोबाइल पर दिखाने का ऑप्शन भी नहीं है तो आप टीटीई को 50 रुपये पेनल्टी देकर टिकट हासिल कर सकते हैं। 

चार्ट का फंडा 

ट्रेन का चार्ट आमतौर पर डिपार्चर टाइम से 4 घंटे पहले तैयार हो जाता है लेकिन यदि ट्रेन दोपहर 12 बजे से पहले की है तो उसका चार्ट रात में ही तैयार कर लिया जाता है। 

रेलवे से जुड़ी हेल्पलाइन 

रेल यात्रा के दौरान आपसे तय कीमत से ज्यादा पैसे वसूले जाएं, आप क्वॉलिटी से संतुष्ट न हों या फिर मात्रा पूरी न हो तो आप इसकी शिकायत कर सकते हैं। कुछ नंबरों पर आप किसी भी दिन और किसी भी समय शिकायत दर्ज करा सकते हैं। ऑग्मेंटेड रिऐलिटी के जरिए आप इन हेल्पलाइन नंबरों को जान सकते हैं। ऑग्मेंटेड रिऐलिटी का यह अनुभव और यह अंक आपको कैसा लगा? बताने के लिए हमें मेल करें sundaynbt@gmail.com पर। सब्जेक्ट में लिखें SU-JZ