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सोमवार, 18 जून 2012

चार पंक्तियाँ दोस्तों के लिए

चाह के भी जिससे कोई राज छुपाया नहीं जाता है
कभी हँसाता कभी रुलाता पर हर पल साथ निभाता है
खून का तो नहीं पर कभी – कभी हो जाता है उससे भी गहरा
ये प्यारा रिश्ता ही तो दोस्ती कहलाता है

कभी लडखडा के तो देख

यूँ तो हर चाहने वाला तेरे सपने सजाता निगाहों मे है,
पर कभी सोचा कि ये फूल बिखेरता कौन तेरी राहों में है,
तुझे बस अपनी ओर बुलाते हैं ये जमाने भर के हाथ,
पर कभी लडखडा के तो देख तु गिरती किसकी बाहों मे है|

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

आवाज़ें बारिश की सुनी हैं कभी?


 आवाज़ें बारिश की

 

आवाज़ें बारिश की
सुनी हैं कभी?
सीमेंटिड आंगन पर
टिन की छतों पर
हरे चिकने पत्तों पर
खुली पानी की टंकियों पर
पत्थरों पर
सड़कों पर
गलियों में गिरती बारिश
हर बार हर जगह
अलग अंदाज़ के साथ
गिरती है बारिश
हर मंज़िल पर
अलग आवाज़ो का रास्ता
तय करती है बारिश
लेकिन
अंत उसका
एक सा ही होता है
चाहे चुपके से गिरे
चाहे झमाझम
गिरके खो जाती है
बारिश...

निशान

निशान

 


आज सुबह

जब पलकों की चादर

आंखों से हटी
कुछ अलग था नज़ारा,
खिड़की से धूप नहीं
बह रही थी
ठंडी हवा,
दरवाज़े के पास
पड़ी थी कुछ
गीली-पीली पत्तियां,
टपक रही थी मचान से
आवाज़े महीन
और
दहलीज़ पर जमा था
मटमैला पानी,
कुछ नन्ही बूंदे
शीशे पर घर बनाए,
पड़ोस के पेड़ पर
बैठे थे
पर फरफराते,
कुछ पक्षी,
घास पर उतरी
हीरे सी बूंदें,
और अंत में
एक गीली मुस्कान
चेहरे पर
औऱ ज़हन में ख्याल
समेट लूं
इन निशानों को
जिन्हें छोड़ गई
कल रात बारिश..!







 

 

नया रिश्ता

नया रिश्ता


सुबह-सुबह दरवाज़े पर
सूरज की पहली किरण
संग आज ले आई
एक नया महमान
एक ताज़ी हवा का झोंका,
मुझे देख
वो कुछ मुस्कुराया
कुछ हिचकिचाया
फिर बना लिया मुझसे
एक रिश्ता नया,
रुख्सारों को सहलाकर
बालों को उलझाकर
वो फैल गया कमरे में,
धूल से ढकी
कुछ पुरानी तस्वीरों संग
खेला वो झोंका हवा का,
मेरी खुली डायरी को
पन्ने दर पन्ने पलटकर
बांचता रहा कुछ देर
मुझे कुछ जान समझकर
वो आगे बढ़ा,
कानों में कुछ फुसफुसाया
और कहा
कल फिर मिलने आउंगा
जब तुम अपने जज्बातों को
डायरी में बंद करके
खुदको तनहा करके
नींद में होगी
तब चुपके से
तुम्हारी खिड़की से आकर
हौले से तुम्हें जगाउंगा..
( Dinesh.... )