बुधवार, 19 मार्च 2014

बापू का बड़प्पन


यह घटना आजादी के पहले की है। बिहार के चंपारण जिले में इंग्लैंड से आए कुछ अंग्रेज नील की खेती करते थे। वे निलहे कहलाते थे। ये वहां के किसानों पर बड़ा जुल्म ढाते थे और तरह-तरह से उनका शोषण करते थे। इससे वहां के किसान बेहद त्रस्त थे। उनमें से एक किसान ने गांधीजी से चंपारण आने की प्रार्थना की। गांधी जी ने किसान का आग्रह मान लिया। वे निलहों द्वारा वहां के किसानों पर किए जाने वाले जुल्मों की जांच करने के लिए चंपारण पहुंचे। वहां की जनता बापू के आगमन से प्रसन्न हो उठी। लेकिन निलहों को इससे गुस्सा आ गया। वे आग-बबूला हो उठे। पर गांधीजी इन सबसे अविचलित अपने काम में लगे रहे।

एक दिन गांधीजी को पता चला कि पास का एक निलहा उनसे इतना गुस्सा है कि उन्हें मार डालना चाहता है। यह जानकर एक रात गांधी जी स्वयं चल कर उस निलहे की कोठी पर पहुंचे। निलहे ने उनसे पूछा- तुम कौन हो? वह बापू को पहचानता नहीं था। बापू ने सरल भाव से कहा- मैं गांधी हूं। शायद आपने नाम सुना होगा। निलहा आश्चर्यचकित होता हुआ बोला- तुम यहां किसलिए आए हो? गांधीजी ने कहा- सुना है कि आप मुझे मार डालना चाहते हैं। आपको कष्ट न हो इसलिए मैं स्वयं आपके पास आ गया हूं। लीजिए,आप मुझे मार डालिए।

बापू के इन वचनों को सुनकर उस निलहे के होश उड़ गए। उससे कुछ कहते न बना और वह सिर झुकाए बापू के चरणों की ओर देखता रह गया। इसके बाद उसने किसानों को सताना बंद कर दिया। बापू की निडरता व उनके बड़प्पन को वह जीवन भर नहीं भूला।


सभी सामग्री इंटरनेट से ली गई है

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