बुधवार, 19 मार्च 2014

फकीर की रोटियां



ईरानी शासक शाह जूसा इतना सरल और परोपकारी था कि संत और फकीर भी उसका खूब सम्मान करते थे। उसकी पुत्री अत्यंत सुंदर और सुशिक्षित थी। अनेक राजाओं ने उससे विवाह की इच्छा जताई थी, पर शाह ने उन सबका प्रस्ताव यह कह कर ठुकरा दिया, 'मुझे पुत्री के लिए राजा नहीं कोई त्यागी पुरुष चाहिए।'

संयोग से कुछ समय बाद ही शाह को एक युवा फकीर मिला। शाह उससे बहुत प्रभावित हुआ और उसने उससे पूछा कि क्या वह शादी करना चाहता है?' फकीर ने हंस कर उत्तर दिया,' करना तो चाहता हूं पर मुझ फकीर से कौन अपनी लड़की की शादी करेगा?' शाह बोला,' मैं आपको अपना दामाद बनाऊंगा।' फकीर ने कहा,' कहां आप राजा, और दूसरी तरफ मैं, जिसके पास आज केवल तीन पैसे हैं। शाह ने कहा, 'जाओ, इन तीन पैसों से शगुन की कुछ चीजें ले आओ।' बड़ी सादगी के साथ शाह ने अपनी पुत्री का विवाह उस फकीर के साथ कर दिया।

शादी करके फकीर शाह की लड़की को अपनी झोंपड़ी में ले आया। फिर उसने पूछा, 'तुम मेरे साथ इस कुटिया में कैसे रहोगी?' लड़की ने कहा,'मेरी खुद ही मर्जी थी सादा जीवन बिताने की। लेकिन आपकी झोंपड़ी में रोटियों का ढेर देख कर मन में ग्लानि सी हो रही है। इतनी रोटियां किसलिए? क्या आपको कल पर भरोसा नहीं है?' फकीर ने उत्तर दिया,'सोचा कुछ रोटियां बचाकर रख लूं। कल काम आएंगी। 

लड़की बोली, 'अगर आप संग्रह की आदत छोड़ दें तो मैं आपकी झोंपड़ी को भी महल समझ कर रह लूंगी।' फकीर ने संग्रह न करने का प्रण किया और दोनो सादगी भरा चिंतारहित जीवन बिताने लगे।

सभी सामग्री इंटरनेट से ली गई है

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