सोमवार, 29 अगस्त 2022

ऐसा क्या हुआ कि उत्तंग मुनि की वजह से श्री कृष्ण को होना पड़ा लज्जित!




महाभारत युद्ध के बाद श्रीकृष्ण द्वारिका जा रहे थे। मार्ग में उनकी भेंट उत्तंग मुनि से हुई। युद्ध की घटना से अंजान मुनि ने जब हस्तिनापुर की कुशलता पूछी तो श्रीकृष्ण ने उन्हें कौरवों के नाश का समाचार सुनाया। मुनि ने क्रोध में कहा-वासुदेव, यदि आप चाहते तो यह विनाश रुक सकता था। मैं अभी आपको श्राप दूंगा। श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए बोले-आप पहले मेरा शांतिपूर्वक पक्ष सुनें, फिर चाहें तो श्राप दे दें। ऐसा कहकर श्रीकृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाया और धर्म की रक्षा के लिए कौरवों के नाश की आवश्यकता बताई।

श्रीकृष्ण ने उनसे वर मांगने को भी कहा। मुनि ने कहा-जब भी प्यास लगे मुझे वहीं जल मिल जाए। वर देकर श्रीकृष्ण चले गए। एक दिन वन में मुनि को बड़ी प्यास लगी। तभी वहां एक मैले कुचैले वस्त्रों में एक बूढ़ा दिखा। शिकारी कुत्तों के साथ वह हाथ में धनुष और पानी की मशक लिए हुए था। 

मुनि को देखकर वह मुस्कुराते हुए बोला-लगता है आप प्यासे हैं, लीजिए पानी पी लें और यह कहकर उसने मशक का मुंह आगे कर दिया। घृणा में मुनि ने जल नहीं पिया। उन्हें श्रीकृष्ण के दिए गए वर के इस स्वरूप पर क्रोध भी आया। तभी वह चांडाल हंसते हुए अंतर्ध्यान हो गया। 

मुनि को अहसास हुआ कि उनकी परीक्षा ली गई है। जब वहां श्रीकृष्ण प्रकट हुए तो उत्तंग ने कहा-प्रभु! आपने मेरी परीक्षा ली। मैं ब्राह्मण होकर चांडाल की मशक का जल कैसे पीता? 

श्रीकृष्ण ने मुस्कुराकर कहा-आपने जल की इच्छा की तो मैंने इन्द्र को अमृत पिलाने को कहा। मैं निश्चित था कि आप जैसा ज्ञानी ब्राह्मण और चांडाल के भेद से ऊपर उठ चुका होगा और आप अमृत प्राप्त कर लेंगे। आपने मुझे इन्द्र के सामने लज्जित किया। यह कहकर श्रीकृष्ण अंतर्ध्यान हो गए। —आचार्य ज्ञान चंद्र

हनुमान जी की मां से हुई भूल, बन गई अप्सरा से वानरी !



एक बार देवराज इंद्र की सभा स्वर्ग में लगी हुई थी। इसमें दुर्वासा ऋषि भी भाग ले रहे थे। जिस समय सभा में विचार-विमर्श चल रहा था उसी समय सभा के मध्य ही ‘पुंजिकस्थली’ नामक इंद्रलोक की अप्सरा बार-बार इधर से उधर आ-जा रही थी। सभा के मध्य पुंजिकस्थली का यह आचरण ऋषि दुर्वासा को अच्छा न लगा। दुर्वासा ऋषि अपने क्रोध के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने पुंजिकस्थली को कई बार टोक कर ऐसा करने से मना किया लेकिन वह अनसुना कर वैसा ही करती रही तो दुर्वासा ऋषि ने कहा, ‘‘तुझे देव-सभा की मर्यादा का ज्ञान नहीं। तू कैसी देव-अप्सरा है जो वानरियों की तरह बार-बार आ-जाकर सभा में व्यवधान डाल रही है। जा, अपनी इस आदत के कारण तू वानरी हो जा।’’

दुर्वासा ऋषि का शाप सुन कर पुंजिकस्थली सन्न रह गई। अपने आचरण का यह परिणाम वह सोच भी नहीं सकती थी, पर अब क्या हो सकता था ? भूल हो चुकी थी। उसके कारण वह शापग्रस्त भी हो गई। उसने हाथ जोड़कर अनुनय-विनय कर कहा, ‘‘ऋषिवर! अपनी मूढ़ता के कारण यह भूल मैं अनजाने में करती रही और आपकी वर्जना पर भी ध्यान न दिया। सभा में व्यवधान डालने का मेरा कोई उद्देश्य न था। कृपया बताइए, अब आपके इस श्राप से मेरा उद्धार कैसे होगा?’’

अप्सरा की विनती सुन कर ऋषि दुर्वासा पसीजे बोले, ‘‘अपनी इस चंचलता के कारण अगले जन्म में तू वानर जाति के राजा विरज की कन्या के रूप में जन्म लेगी। तू देव-सभा की अप्सरा है, अत: तेरे गर्भ से एक महान बलशाली, यशस्वी तथा प्रभु-भक्त बालक का जन्म होगा।’’

पुंजिक अप्सरा को संतोष हुआ। पुनर्जन्म में वानर राज विरज की कन्या के रूप में उसका जन्म हुआ। उसका नाम अंजना रखा गया। विवाह योग्य होने पर इसका विवाह वानर राज केसरी से हुआ। अंजना केसरी के साथ सुखपूर्वक प्रभास तीर्थ में रहने लगी। इस क्षेत्र में बहुत शांति थी तथा बहुत से ऋषि आश्रम बनाकर यज्ञादि करते रहते थे। एक बार ऐसा हुआ कि वन में विचरने वाला शंखबल नामक जंगली हाथी प्रमत्त हो उठा तथा वन में उत्पात मचाने लगा। उसने कई आश्रमों को रौंद डाला। यज्ञ-वेदियां नष्ट कर दीं। उसके भय से भागते हुए अनेक तपस्वी बालक आहत हो गए। कई आश्रम उजड़ गए। कई ऋषि भय के कारण आश्रम छोड़कर चले गए।

केसरी को जब शंखबल नामक हाथी के इस उत्पात का पता लगा तो वह आश्रम तथा आश्रम वासियों की रक्षा के लिए तत्काल वहां आए और शंखबल को बड़ी कुशलता से घेर कर उसके दोनों दांतों को पकड़ कर उखाड़ दिया। पीड़ा से चिंघाड़ता हुआ वह हाथी वहीं धराशायी हो गया और मर गया।

आश्रम की रक्षा के लिए उनके अचानक पहुंचने तथा हाथी को मार कर आश्रम वासियों को निर्भय कर देने वाले केसरी का ऐसा बल देख कर ऋषि-मुनि बहुत प्रसन्न हुए और केसरी के पास आकर आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘‘वानर राज केसरी! जिस प्रकार तुमने आज हम सबकी तथा आश्रम की रक्षा की, इसी प्रकार भविष्य में तुम्हारा होने वाला पुत्र पवन जैसे वेग वाला होगा तथा रुद्र जैसा महान बलशाली होगा। तुम्हारे बल तेज के साथ-साथ उसमें पवन तथा रुद्र का तेज भी व्याप्त रहेगा।’’

केसरी ने कहा, ‘‘ऋषिवरो! मैंने तो बिना किसी कामना के प्रमत्त हाथी को, जो किसी प्रकार वश में नहीं आ रहा था, मार कर आपकी इस यज्ञ भूमि को निर्भय किया है। आपका दिया यह स्वत: आशीर्वाद मुझे शिरोधार्य है।’’

केसरी ऋषियों को प्रणाम कर चले गए। समय आने पर अंजना के गर्भ से एक बालक का जन्म हुआ। उसमें अपने बाल्यकाल से ही ऋषियों द्वारा दिए आशीर्वाद का तेज झलकने लगा। आश्रमों में वह पवन वेग की तरह जहां-तहां पहुंच जाता। आश्रमों में विघ्न डालने वाले वन्य जीवों तथा दुष्ट व्यक्तियों को अपने अपार बल से खदेड़ देता। अपने इस पराक्रम से वह मदमत्त हो जाता तथा अपने साथियों के साथ वह आश्रमों में क्रीड़ा करने लगता। उसको खेलने से कोई रोकता तो वह उसको भी तंग करने लगता। बालक तो था ही। उसके बाल कौतुक से जब ऋषियों को असुविधा होने लगी तथा उनके पूजा-पाठ और यज्ञ में व्यवधान आने लगा तो उन्होंने उसके स्वभाव में शांति लेने के लिए आशीर्वाद जैसा शाप दिया कि तुम अपने बल को हमेशा भूले रहोगे जब कोई तुम्हें आवश्यक होने पर तुम्हारे बल की याद दिलाएगा तब फिर तुममें अपार बल जागृत हो जाएगा।

इससे वह बालक शांत स्वभाव का हो गया। केसरी नंदन यह बालक आगे चल कर हनुमान नाम से प्रसिद्ध हुआ। सीता जी की खोज के लिए जब कोई समुद्र पार करने का साहस नहीं कर रहा था और हनुमान भी चुप बैठे थे तो जामवंत ने हनुमान जी को उनके बल की याद दिलाई थी। तब उन्होंने समुद्र पार कर सीता की खोज की। 

गुरुवार, 23 सितंबर 2021

"प्रभु का पहरा"




जिसकी रक्षा प्रभु स्वयं करें उसका नाम अहित कोई कैसे कर सकता है। ऐसा ही तुलसी दास जी के साथ हुआ, जब उन्होंने रामायण लिखी तो उनका बड़ा नाम हुआ। कुछ लोगो ने इकट्टे होकर बोले की इनकी रामायण ही चुरा ली जाये या नष्ट कर दी जाये।

          कुछ चोर भेजे गये चोरी करने। जब वे दरबाजे पर पहुँचे तो क्या देखते हैं कि दो राजकुमार हाथों में धनुष लिये द्वार पर खड़े हैं, प्रत्यंचा चढ़ी है और तीर चलने को तैयार हैं। चोर बोले की पीछे से चलते है, जैसे ही पीछे गये तो के देखे वो ही राजकुमार खड़े है, वो चारों तरफ से गये, जहाँ-जहाँ से जायें वही-वही दोनों खड़े नजर आएं। चोर चक्कर लगा-लगा कर थक गये, तो जैसे ही अंदर जाने लगे, उन राजकुमारों के घोड़े उनके पीछे लग गये। अब तो वो बस भागते ही जायें आगे-आगे चोर और पीछे-पीछे घोड़े। आखिर में भागते-भागते वे गिरकर बेहोश हो गये।

         जिन लोगों ने उन्हें चोरी करने भेजा था उन्होंने उन चोरों को बेहोश पड़े पाया। वे उन चोरों को होश में लाये तो उन चोरों ने सारा वृतांत कह सुनाया। सारा वृतांत सुनने के बाद वे सभी कपटी लोग तुलसीदासजी के पास अपनी कुटिलता के साथ जा पहुँचे। जाकर तुलसीदासजी से बोले, हमें ज्ञात हुआ है कि कुछ चोर रात्रि में आपके यहाँ चोरी करने आये थे, जिन्हें आपके पहरेदारों ने भगा दिया। हमें तो आपकी बहुत चिन्ता हो रही थी इसलिये आपका हाल लेने चले आये। वैसे आपके द्वार पर वे धनुषधारी दो घुडसवार पहरेदार कौन हैं जो बहुत ही सतर्कता से आपकी रक्षा करते हैं। सुना है श्याम और गौर वर्ण के वे दोनों राजकुमार बहुत ही बलशाली हैं।

       इतना सुनते ही गोस्वामी तुलसीदासजी के नेत्रों से झर-झर आँसू बहने लगे, गोस्वामीजी अधीर हो कहने लगे- "प्रभु ! इस दास के इस तुच्छ शरीर के लिए आपने इतना कष्ट क्यों सहा, ये अधम तो आपके चरणों का दास है, इस दास के लिए आपने अपनी निंद्रा का त्याग क्यों कर दिया। ऐसे ही कहते-कहते गोस्वामी तुलसीदास जी फूट-फूटकर रोने लगे। 

सोमवार, 13 सितंबर 2021

सुविचार

खट खट..खट खट. कौन है ? पता नहीं कौन है इतनी रात गए !! बडबडाते हुए सावित्री देवी ने दरवाजे के बीच बने झरोखे से झांककर देखा। अरे !! रमा तुम, इतनी रात गए जानती भी हो दो बज रहे है। क्या है....

आंटी जी !! वो...वो... बाबूजी की तबीयत खराब हो रही है उन्हें बडे अस्पताल लेकर जाना होगा !! आंटी जी - अंकल जी से कहिए ना वो अपनी गाडी से उन्हें...

बात बीच मे काटते हुए सावित्री देवी बोली।बेटा !! वो इनकी भी तबीयत खराब है बडी मुश्किल से दवाई देकर सुलाया है ऊपर से गाडी भी ठीक नहीं है तो तुम चौक पर चली जाओ वहां कोई आटो टैक्सी मिल जाएगी.....

क्या चौक पर !! रमा की आँखें भीगी हुई थी। रात दो बजे चौक पर ... 

मां बाबूजी ने कभी आठ बजे के बाद घरसे नही निकलने दिया कारण अक्सर मां बाबूजी उसे समझाते रहते थे बेटा ये वक्त आसामाजिक तत्वों के बाहर घूमते हुए शिकार करने का ज्यादा होता है।लेकिन आज,आज तो मुझे जाना ही होगा ...

मां को ढाढस बंधाकर आई हूं।मुझे बेटी नही बेटा मानते है मेरे मां बाबूजी। तो मै कैसे पीछे हट सकती हूं.....

लेकिन मन मे अक्सर अकेली लडकियों के साथ होती वारदातों की खबरें रमा के मन की आशंकाओं को और बढा रही थी। लेकिन वो हिम्मत करते हुए अपनी गली से बाहर सडक की ओर जाने लगी।

अरे रुको !! कौन हो तुम,पीछे से आवाज सुनाई दी।रमा ने घबराकर पीछे की ओर देखा तो गली के नुक्कड़ पर महीने भर पहले रहने आए नये पडोसी हरिया काका जो कि रिक्शा चलाते है को खडा पाया।अरे तुम तो हमारी गली के दीनानाथ भैया की बिटिया हो ना। कहा जा रही हो इतनी रात गए...

काका वो...बाबूजी की तबीयत खराब है अस्पताल लेकर जाना है कोई सवारी ढूंढने .....

क्या !! दीनानाथ भैया की तबीयत खराब है,बिटिया तुम घर चलो वापिस।कहकर वह जंजीर से बंधे अपने रिक्शा को खोलने लगे....

रमा तुरंत घर पहुंची बाबूजी को सहारा देकर उठाने की कोशिश कर ही रही थी कि हरिया काका अंदर आ गए । आओ दीनानाथ भैया ....

सहारा देते हुए दीनानाथ जी को पकडते हुए हरिया काका ने कहा - 

अरे बिटिया,भाभीजी.... कुछ नहीं है सब ठीक है ! अभी डाक्टर के पास पहुंच जाएंगे...

पिछली सीट पर तीनों को बिठाकर रिक्शा पर तेजी से पैडल मारकर खींचने लगा।अस्पताल पहुंचकर रमा के साथ-साथ डाक्टरों के आगे पीछे भागते हुए दीनानाथ जी को भर्ती कराया।

देखिए !! थोडा बीपी बढा हुआ था।डाक्टर ने उन्हें दवाओं सहित थोड़ा आराम करने के लिए कहा।

बेड के पास बैठी रमा को शाम की वो तस्वीरे आँखों के आगे नजर आ रही थी। जब बगलवाली सावित्री आंटी अंकलजी के साथ खिलखिलाकर गाडी से उतरी थी।तब ना तो गाडी खराब थी और ना अंकलजी की तबीयत ....

बस !! देखिए ये इंजेक्शन मंगवा लीजिए डाक्टर ने एक पर्ची रमा की ओर बढाते हुए कहा - 

यहां लाइए डाक्टर साहब - कहकर हरिया काका ने पर्ची पकड ली । तुम मम्मी-पापा के साथ रहो हम अभी लेकर आए बिटिया और वह बाहर की ओर तेजी से निकल गया।रमा एकटक उसकी और देखती रही..... 

एक छोटा सा चद्दर वाले मकान में रहने वाला रिक्शा वाला हरिया !! गली मे सभी के घर दो तीन मंजिला थे सभी के घरो मे मार्बल पत्थरों की सजावट थी तो किसी के यहां टाइल्स की।बस वही एक घर अजीब सा लगता था झोपड़ीनुमा सीमेंट की चद्दरों से ढका हुआ ....

कुछ ही देर मे,लो डाक्टर साहब !! अचानक हरिया काका की आवाज ने उसकी तंद्रा भंग की।

डाक्टर ने इंजेक्शन लगाया और आराम करने के लिए कहकर चला गया।सुबह छ बजे तक डाक्टर ने चार बार बीपी चेक किया तकरीबन सभी समय सुधार था सो डाक्टरों ने दीनानाथ जी को घर जाने की अनुमति दे दी।वापिसी पर उन्हें लेकर हटिया काका बडी सावधानी से घर पर छोड कर जैसे ही चलने को हुआ रमा ने बटुआ निकालकर पांच सौ का नोट उसकी और बढाया। लीजिए काका !!

ये क्या कर रही हो बिटिया हम इन सब कामों के पैसे नही लेते !मतलब !! ये तो आपका काम है ना काका। लीजिए .

बिटिया !! अपने परिवार के जीवन यापन के लिए हम सुबह से शाम तक उस ऊपर वाले की दया से मेहनत करके कमा लेते है ज्यादा का लालच नही। वो इंतजाम किए देता है हमारे पेट का और वैसे भी हम एक गली मे रहते है ऐसे हम और आप पडोसी हुए और वो पडोसी किस काम का जो ऐसी स्थिति में भी साथ ना हो.

कहकर रमा के सिर पर हाथ रखकर वो चलने लगा। रमा भीगी हुई आँखें पोछते हुए ऊपरवाले की ओर देखकर बोली - आप जैसे भगवान रुपी पडोसी ईश्वर हर घर के पास रहे

मंगलवार, 27 जुलाई 2021

आज अमृत माथे का टीका



काफी समय पहले की बात है कि एक मन्दिर के बाहर बैठ कर एक भिखारी भीख माँगा करता था । ( वह एक बहुत बड़े महात्मा जी का शिष्य था जो कि इक पूर्ण संत थे ) उसकी उम्र कोई साठ को पार कर चुकी थी । 
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आने जाने वाले लोग उसके आगे रक्खे हुए पात्र में कुछ न कुछ डाल जाते थे । लोग कुछ भी डाल दें , उसने कभी आँख खोल कर भी न देखा था कि किसने क्या डाला । 
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उसकी इसी आदत का फायदा उसके आस पास बैठे अन्य भिखारी तथा उनके बच्चे उठा लेते थे । वे उसके पात्र में से थोड़ी थोड़ी देर बाद हाथ साफ़ कर जाते थे । 
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कई उसे कहते भी थे कि , सोया रहेगा तो तेरा सब कुछ चोरी जाता रहेगा। वह भी इस कान से सुन कर उधर से निकाल देता था। किसी को क्या पता था कि वह प्रभु के प्यार में रंगा हुआ था। हर वक्त गुरु की याद उसे अपने में डुबाये रखती थी। 
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एक दिन ध्यान की अवस्था में ही उसे पता लगा कि उसकी अपनी उम्र नब्बे तक पहुंच जायेगी। यह जानकर वह बहुत उदास हो गया। जीवन इतनी कठिनाइयों से गुज़र रहा था पहले ही और ऊपर से इतनी लम्बी अपनी उम्र की जानकारी - वह सोच सोच कर परेशान रहने लग गया। 
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एक दिन उसे अपने गुरु की उम्र का ख्याल आया। उसे मालूम था कि गुरुदेव की उम्र पचास के आसपास थी। पर ध्यान में उसकी जानकारी में आया कि गुरुदेव तो बस दो बरस ही और रहेंगे। 
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गुरुदेव की पूरी उम्र की जानकारी के बाद वह और भी उदास हो गया। बार बार आँखों से बूंदे टपकने लग जाती थीं। पर उसके अपने बस में तो नही था न कुछ भी। कर भी क्या सकता था, सिवाए आंसू बहाने के। 
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एक दिन सुबह कोई पति पत्नी मन्दिर में आये। वे दोनों भी उसी गुरु के शिष्य थे जिसका शिष्य वह भिखारी था। वे तो नही जानते थे भिखारी को , पर भिखारी को मालूम था कि दोनों पति पत्नी भी उन्ही गुरु जी के शिष्य थे। 
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दोनों पति पत्नी लाइन में बैठे भिखारियों के पात्रों में कुछ न कुछ डालते हुए पास पहुंच गये। भिखारी ने दोनों हाथ जोड़ कर उन्हें ऐसे ही प्रणाम किया जैसे कोई घर में आये हुए अपने गुरु भाईओं को करता है।
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भिखारी के प्रेम पूर्वक किये गये प्रणाम से वे दोनों प्रभावित हुए बिना न रह सके। भिखारी ने उन दोनों के भीतर बैठे हुए अपने गुरुदेव को प्रणाम किया था इस बात को वे जान न पाए। 
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उन्होंने यही समझा कि भिखारी ने उनसे कुछ अधिक की आस लगाई होगी जो इतने प्यार से नमस्कार किया है। पति ने भिखारी की तरफ देखा और बहुत प्यार से पुछा, कुछ कहना है या कुछ और अधिक चाहिए ? 
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भिखारी ने अपने पात्र में से एक सिक्का निकाला और उनकी तरफ बढ़ाते हुए बोला , जब गुरुदेव के दर्शन को जायो तो मेरी तरफ से ये सिक्का उनके चरणों में भेंट स्वरूप रख देना । 
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पति पत्नी ने एक दुसरे की तरफ देखा , उसकी श्रद्धा को देखा, पर एक सिक्का, वो भी गुरु के चरणों में ! पति सोचने लगा क्या कहूँगा, कि एक सिक्का !  कभी एक सिक्का गुरु को भेंट में तो शायद किसी ने नही दिया होगा , कभी नही देखा। 
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पति भिखारी की श्रद्धा को देखे तो कभी सिक्के को देखे। कुछ सोचते हुए पति बोला , आप इस सिक्के को अपने पास रक्खो , हम वैसे ही आपकी तरफ से उनके चरणों में रख देंगे । 
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नही आप इसी को रखना उनके चरणों में । भिखारी ने बहुत ही नम्रता पूर्वक और दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा। उसकी आँखों से झर झर आंसू भी निकलने लग गये। 
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भिखारी ने वहीं से एक कागज़ के टुकड़े को उठा कर सिक्का उसी में लपेट कर दे दिया । जब पति पत्नी चलने को तैयार हो गये तो भिखारी ने पुछा , वहाँ अब भंडारा कब होगा ?
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भंडारा तो कल है , कल गुरुदेव का जन्म दिवस है न। भिखारी की आँखे चमक उठीं। लग रहा था कि वह भी पहुंचेगा , गुरुदेव के जन्म दिवस के अवसर पर। 
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दोनों पति पत्नी उसके दिए हुए सिक्के को लेकर चले गये। अगले दिन जन्म दिवस ( गुरुदेव का ) के उपलक्ष में आश्रम में भंडारा था। वह भिखारी भी सुबह सवेरे ही आश्रम पहुंच गया। 
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भंडारे के उपलक्ष में बहुत शिष्य आ रहे थे। पर भिखारी की हिम्मत न हो रही थी कि वह भी भीतर चला जाए। वह वहीं एक तरफ खड़ा हो गया कि शायद गेट पर खड़ा सेवादार उसे भी मौका दे भीतर जाने के लिए। पर सेवादार उसे बार बार वहाँ से चले जाने को कह रहा था। 
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दोपहर भी निकल गयी, पर उसे भीतर न जाने दिया गया। भिखारी वहाँ गेट से हट कर थोड़ी दूर जाकर एक पेड़ की छावं में खड़ा हो गया। 
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वहीं गेट पर एक कार में से उतर कर दोनों पति पत्नी भीतर चले गये। एक तो भिखारी की हिम्मत न हुई कि उन्हें जा कर अपने सिक्के की याद दिलाते हुए कह दे कि मेरी भेंट भूल न जाना। और दूसरा वे दोनों शायद जल्दी में भी थे इस लिए जल्दी से भीतर चले गये। 
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और भिखारी बेचारा, एक गरीबी , एक तंग हाली और फटे हुए कपड़े उसे बेबस किये हुए थे कि वह अंदर न जा सके। 
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दूसरी तरफ दोनों पति पत्नी गुरुदेव के सम्मुख हुए, बहुत भेंटे और उपहार थे उनके पास, गुरुदेव के चरणों में रखे। 
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पत्नी ने कान में कुछ कहा तो पति को याद आ गया उस भिखारी की दी हुई भेंट। उसने कागज़ के टुकड़े में लिपटे हुए सिक्के को जेब में से बाहर निकाला, और अपना हाथ गुरु के चरणों की तरफ बढ़ाया ही था तो गुरुदेव आसन से उठ खड़े हुए , 
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गुरुदेव ने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर सिक्का अपने हाथ में ले लिया, उस भेंट को गुरुदेव ने अपने मस्तक से लगाया और पुछा, ये भेंट देने वाला कहाँ है, वो खुद क्यों नही आया ? 
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गुरुदेव ने अपनी आँखों को बंद कर लिया, थोड़ी ही देर में आँख खोली और कहा, वो बाहर ही बैठा है, जायो उसे भीतर ले आयो।
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पति बाहर गया, उसने इधर उधर देखा। उसे वहीं पेड़ की छांव में बैठा हुआ वह भिखारी नज़र आ गया। 
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पति भिखारी के पास गया और उसे बताया कि गुरुदेव ने उसकी भेंट को स्वीकार किया है और भीतर भी बुलाया है। 
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भिखारी की आँखे चमक उठीं। वह उसी के साथ भीतर गया, गुरुदेव को प्रणाम किया और उसने गुरुदेव को अपनी भेंट स्वीकार करने के लिए धन्यवाद दिया। 
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गुरुदेव ने भी उसका हाल जाना और कहा प्रभु के घर से कुछ चाहिए तो कह दो आज मिल जायेगा। 
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भिखारी ने दोनों हाथ जोड़े और बोला - एक भेंट और लाया हूँ आपके लिए , प्रभु के घर से यही चाहता हूँ कि वह भेंट भी स्वीकार हो जाये। 
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हाँ होगी, लायो कहाँ है ? वह तो खाली हाथ था, उसके पास तो कुछ भी नजर न आ रहा था भेंट देने को, सभी हैरान होकर देखने लग गये कि क्या भेंट होगी ! 
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हे गुरुदेव, मैंने तो भीख मांग कर ही गुज़ारा करना है, मैं तो इस समाज पर बोझ हूँ। इस समाज को मेरी तो कोई जरूरत ही नही है। पर हे मेरे गुरुदेव , समाज को आपकी सख्त जरूरत है, आप रहोगे, अनेकों को अपने घर वापिस ले जायोगे। 
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इसी लिए मेरे गुरुदेव, मैं अपनी बची हुई उम्र आपको भेंट स्वरूप दे रहा हूँ। कृपया इसे कबूल करें।" इतना कहते ही वह भिखारी गुरुदेव के चरणों पर झुका और फिर वापिस न उठा। कभी नही उठा। 
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वहाँ कोहराम मच गया कि ये क्या हो गया, कैसे हो गया ? सभी प्रश्न वाचक नजरों से गुरुदेव की तरफ देखने लग गये । 
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एक ने कहा,  हमने भी कई बार कईओं से कहा होगा कि भाई मेरी उम्र आपको लग जाए , पर हमारी तो कभी नही लगी। पर ये क्या, ये कैसे हो गया ? 
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गुरुदेव ने कहा, इसकी बात सिर्फ इस लिए सुन ली गयी क्योंकि इसके माथे का टीका चमक रहा था। आपकी इस लिए नही सुनी गयी क्योंकि माथे पर लगे टीके में चमक न थी।
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सभी ने उसके माथे की तरफ देखा, वहाँ तो कोई टीका न लगा था। गुरुदेव सबके मन की उलझन को समझ गये और बोले  टीका ऊपर नही, भीतर के माथे पर लगा होता है।

रविवार, 25 जुलाई 2021

दान की महिमा



*बहुत समय पहले एक राजा था। वह अपनी न्यायप्रियता के कारण प्रजा में बहुत लोकप्रिय था।* 
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    *एक बार वह अपने दरबार में बैठा ही था कि अचानक उसके दिमाग में एक सवाल उभरा। सवाल था कि मनुष्य का मरने के बाद क्या होता होगा?* 
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   *इस अज्ञात सवाल के उत्तर को पाने के लिए उस राजा ने अपने दरबार में सभी मंत्रियों आदि से मशवरा किया।* 
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   *सभी लोग राजा की इस जिज्ञासा भरी समस्या से चिंतित हो उठे।* 
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    *काफी देर सोचने विचारने के बाद राजा ने यह निर्णय लिया कि मेरे सारे राज्य में यह ढिंढोरा पिटवा दिया जाए कि जो आदमी कब्र में मुरदे के समान लेटकर रात भर कब्र में मरने के बाद होने वाली सभी क्रियाओं का हवाला देगा, उसे पांच सौ सोने की मोहरें भेंट दी जाएंगी।* 
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    *राजा के आदेशानुसार सारे राज्य में उक्त ढिंढोरा पिटवा दिया गया। अब समस्या आई कि अच्छा भला जीवित कौर व्यक्ति मरने को तैयार हो?* 
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   *आखिरकार सारे राज्य में एक ऐसा व्यक्ति इस काम को करने के लिए तैयार हो गया, जो इतना कंजूस था कि वह सुख से खाता पीता, सोता नहीं था।* 
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    *उसको राजा के पास पेश किया गया। राजा के आदेशानुसार उसके लिए बढ़िया फूलों से सुसज्जित अर्थी बनाई गई।* 
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  *उसको उस पर लिटाकर बाकयदा श्वेत कफन से ढक दिया गया और उसे कब्रिस्तान ले जाया गया।* 
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   *घर से जाने पर रास्ते में एक फकीर ने उसका पीछा किया और उससे कहा कि अब तो तुम मरने जा रहे हो, घर में तुम अकेले हो।* 
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    *इतना धन तुम्हारे घर में ही कैद पड़ा रहेगा, मुझे कुछ दे दो। कंजूस के बार बार मना करने पर भी फकीर ने कंजूस का पीछा नहीं छोड़ा और बरबार कुछ मांगने की रट लगाए रहा।* 
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   *कंजूस जब एकदम परेशान हो गया तो उसने कब्रिस्तान में पड़े बादाम के छिलकों के एक ढेर में से मुट्ठी भर छिलके उठाए और उस फकीर को दे दिए।*
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   *बाद में कंजूस को एक कब्र में लिटा दिया गया और ऊपर से पूरी कब्र बंद कर दी गई।* 
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    *बस एक छोटा से छेद सिर की तरफ इस आशा के साथ कर दिया गया कि यह इससे सांस लेता रहे और अगली सुबह राजा को मरने के बाद का पूरा हाल सुनाए।* 
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   *सभी लोग कंजूस को उस कब्र में लिटाकर चले गए। रात हुई।* 
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   *रात होने पर एक सांप कब्र पर आया और छेद देखकर उसमें घुसने का प्रयत्न करने लगा।* 
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   *यह देखकर कब्र में लेटे कंजूस की घबराहट का ठिकाना न रहा। सांप ने जैसे ही घुसने का प्रयत्न किया तो उस छेद में बादाम के छिलके आड़ बनकर आ गए।* 
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   *सुबह होते ही राजा के सभी नौकर बड़ी जिज्ञासा के साथ कब्रिस्तान आए और जल्दी ही कब्र को खोदकर कंजूस को निकाला।* 
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   *मरने के बाद क्या होता है, यह हाल सुनाने के लिए कंजूस को राजा के पास चलने को कहा। कंजूस ने राजा के नौकरों की बात को थोड़ा भी नहीं सुना।*
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  *वह पहले अपने घर गया और अपनी तमाम धन संपत्ति को गरीबों में बांट दिया।*
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  *सब लोग कंजूस की अचानक दान करने की इस दयालुता को देखकर हैरान में पड़ गए। उनके मन में कई सवाल उठने लगे।* 
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*अंत में कंजूस को राज दरबार में पूरा हाल सुनाने के लिए राजा के सामने पेश किया गया।* 
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*कंजूस ने बीती रात, सांप व बादाम के छिलकों के संघर्ष की पूरी कहानी कह सुनाई और कहा, ”महाराज, मरने के बाद सबसे ज्यादा दान ही काम आता है, अतः दान करना ही सब धर्मों से श्रेष्ठ है।“*
ओम शांति।।

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शनिवार, 24 जुलाई 2021

काल का इशारा




एक चतुर व्यक्ति को काल से बहुत डर लगता था. एक दिन उसे चतुराई सूझी और काल को अपना मित्र बना लिया.

उसने अपने मित्र काल से कहा- मित्र, तुम किसी को भी नहीं छोड़ते हो, किसी दिन मुझे भी गाल में धर लोगो!

काल ने कहा- ये मृत्यु लोक है. जो आया है उसे मरना ही है. सृष्टि का यह शाश्वत नियम है इस लिए मैं मजबूर हूं. पर तुम मित्र हो इसलिए मैं जितनी रियायत कर सकता हूं, करूंगा ही. मुझ से क्या आशा रखते हो साफ-साफ कहो.

व्यक्ति ने कहा- मित्र मैं इतना ही चाहता हूं कि आप मुझे अपने लोक ले जाने के लिए आने से कुछ दिन पहले एक पत्र अवश्य लिख देना ताकि मैं अपने बाल- बच्चों को कारोबार की सभी बातें अच्छी तरह से समझा दूं और स्वयं भी भगवान भजन में लग जाऊं.

काल ने प्रेम से कहा- यह कौन सी बड़ी बात है, मैं एक नहीं आपको चार पत्र भेज दूंगा. चिंता मत करो. चारों पत्रों के बीच समय भी अच्छा खासा दूंगा ताकि तुम सचेत होकर काम निपटा लो.

मनुष्य बड़ा प्रसन्न हुआ सोचने लगा कि आज से मेरे मन से काल का भय भी निकल गया, मैं जाने से पूर्व अपने सभी कार्य पूर्ण करके जाऊंगा तो देवता भी मेरा स्वागत करेंगे.

दिन बीतते गये आखिर मृत्यु की घड़ी आ पहुंची. काल अपने दूतों सहित उसके समीप आकर बोला- मित्र अब समय पूरा हुआ. मेरे साथ चलिए. मैं सत्यता और दृढ़तापूर्वक अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करते हुए एक क्षण भी तुम्हें और यहां नहीं छोड़ूंगा.

मनुष्य के माथे पर बल पड़ गए, भृकुटी तन गयी और कहने लगा- धिक्कार है तुम्हारे जैसे मित्रों पर. मेरे साथ विश्वासघात करते हुए तुम्हें लज्जा नहीं आती?

तुमने मुझे वचन दिया था कि लेने आने से पहले पत्र लिखूंगा. मुझे बड़ा दुःख है कि तुम बिना किसी सूचना के अचानक दूतों सहित मेरे ऊपर चढ़ आए. मित्रता तो दूर रही तुमने अपने वचनों को भी नहीं निभाया.

काल हंसा और बोला- मित्र इतना झूठ तो न बोलो. मेरे सामने ही मुझे झूठा सिद्ध कर रहे हो. मैंने आपको एक नहीं चार पत्र भेजे. आपने एक भी उत्तर नहीं दिया.

मनुष्य ने चौंककर पूछा – कौन से पत्र? कोई प्रमाण है? मुझे पत्र प्राप्त होने की कोई डाक रसीद आपके पास है तो दिखाओ.

काल ने कहा – मित्र, घबराओ नहीं, मेरे चारों पत्र इस समय आपके पास मौजूद हैं.

मेरा पहला पत्र आपके सिर पर चढ़कर बोला, आपके काले सुन्दर बालों को पकड़ कर उन्हें सफ़ेद कर दिया और यह भी कहा कि सावधान हो जाओ, जो करना है कर डालो.

नाम, बड़ाई और धन-संग्रह के झंझटो को छोड़कर भजन में लग जाओ पर मेरे पत्र का आपके ऊपर जरा भी असर नहीं हुआ.

बनावटी रंग लगा कर आपने अपने बालों को फिर से काला कर लिया और पुनः जवान बनने के सपनों में खो गए. आज तक मेरे श्वेत अक्षर आपके सिर पर लिखे हुए हैं.

कुछ दिन बाद मैंने दूसरा पत्र आपके नेत्रों के प्रति भेजा. नेत्रों की ज्योति मंद होने लगी.

फिर भी आंखों पर मोटे शीशे चढ़ा कर आप जगत को देखने का प्रयत्न करने लगे. दो मिनिट भी संसार की ओर से आंखे बंद करके,प्रभु के ध्यान में सुरत को नहीं किया.

इतने पर भी सावधान नहीं हुए तो मुझे आपकी दीनदशा पर बहुत तरस आया और मित्रता के नाते मैंने तीसरा पत्र भी भेजा.

इस पत्र ने आपके दांतो को छुआ, हिलाया और तोड़ दिया.

आपने इस पत्र का भी जवाब न दिया बल्कि नकली दांत लगवाये और जबरदस्ती संसार के भौतिक पदार्थों का स्वाद लेने लगे.

मुझे बहुत दुःख हुआ कि मैं सदा इसके भले की सोचता हूँ और यह हर बात एक नया, बनावटी रास्ता अपनाने को तैयार रहता है.

अपने अन्तिम पत्र के रूप में मैंने रोग- क्लेश तथा पीड़ाओ को भेजा परन्तु आपने अहंकार वश सब अनसुना कर दिया.

जब मनुष्य ने काल के भेजे हुए पत्रों को समझा तो फूट-फूट कर रोने लगा और अपने विपरीत कर्मो पर पश्चाताप करने लगा. उसने स्वीकार किया कि मैंने गफलत में शुभ चेतावनी भरे इन पत्रों को नहीं पढ़ा.

मैं सदा यही सोचता रहा कि कल से भगवान का भजन करूंगा. अपनी कमाई अच्छे शुभ कार्यो में लगाऊंगा, पर वह कल नहीं आया.

काल ने कहा – आज तक तुमने जो कुछ भी किया, राग-रंग, स्वार्थ और भोगों के लिए किया. जान-बूझकर ईश्वरीय नियमों को तोड़कर जो काम करता है, वह अक्षम्य है.

मनुष्य को जब अपनी बातों से काम बनता नज़र नहीं आया तो उसने काल को करोड़ों की सम्पत्ति का लोभ दिखाया.

काल ने हंसकर कहा- मित्र यह मेरे लिए धूल से अधिक कुछ भी नहीं है. धन-दौलत, शोहरत, सत्ता, ये सब लोभ संसारी लोगो को वश में कर सकता है, मुझे नहीं.

मनुष्य ने पूछा- क्या कोई ऐसी वस्तु नहीं जो तुम्हें भी प्रिय हो, जिससे तुम्हें लुभाया जा सके. ऐसा कैसे हो सकता है!

काल ने उत्तर दिया- यदि तुम मुझे लुभाना ही चाहते थे तो सच्चाई और शुभ कर्मो का धन संग्रह करते. यह ऐसा धन है जिसके आगे मैं विवश हो सकता था. अपने निर्णय पर पुनर्विचार को बाध्य हो सकता था. पर तुम्हारे पास तो यह धन धेले भर का भी नहीं है.

तुम्हारे ये सारे रूपए-पैसे, जमीन-जायदाद, तिजोरी में जमा धन-संपत्ति सब यहीं छूट जाएगा. मेरे साथ तुम भी उसी प्रकार निवस्त्र जाओगे जैसे कोई भिखारी की आत्मा जाती है.

काल ने जब मनुष्य की एक भी बात नहीं सुनी तो वह हाय-हाय करके रोने लगा.

सभी सम्बन्धियों को पुकारा परन्तु काल ने उसके प्राण पकड़ लिए और चल पड़ा अपने गन्तव्य की ओर

काल ने कितनी बड़ी बात कही. एक ही सत्य है जो अटल है वह है कि हम एक दिन मरेेंगे जरूर. हम जीवन में कितनी दौलत जमा करेंगे, कितनी शोहरत पाएंगे, कैसी संतान होगी यह सब अनिश्चित होता है, समय के गर्भ में छुपा होता है ।

परंतु हम मरेंगे एक दिन बस यही एक ही बात जन्म के साथ ही तय हो जाती है. ध्रुव सत्य है मृ्त्यु. काल कभी भी दस्तक दे सकता है. प्रतिदिन प्रतिपल उसकी तैयारी करनी होगी।

स्वांस उस्वांस में नाम जपो, व्यर्था स्वांस मत खो।
       नहीं पता इस स्वास का, आवन हो के न हो।

समय के साथ उम्र की निशानियों को देख कर तो कम से कम हमें प्रभु की याद में रहने और नाम जाप का अभ्यास करना चाहिए।

।। कबीर ! यह तन जाएगा, सके तो ठाहर ला।।
।।एक सेवा कर सतगुरुकी, और गोविंद के गुंण गा ।।

लघु कथा !! कालूराम की बचत !!


आज हम बात करेंगे ( लघु कथा – कालूराम की बचत ) के जीवन प्रसंग के बारे में !

कालूराम एक छोटे से गांव का रहने वाला एक बहुत ही गरीब व्यक्ति था ! वह आज सुबह जो भी कमाता वह सिर्फ उसके रात का इंतजाम कर पाता था | दूसरे दिन अगर वह नहीं कमाए तो घरवाले भूखे रह जाते थे ! 

एक समय ऐसा आया की कालूराम की तबीयत थोड़ी खराब होने लगी और न कमाने के कारण आर्थिक स्थिति बेहद खराब होने लग गई ! 

कालूराम आर्थिक स्थितियों से परेशान हो गया और अब घर कैसे चलेगा इस चिंता से वहां अंदर ही अंदर सोच कर उसका हाल बेहाल होता जा रहा था ! पूरी तरह से हार गया था टूट गया था बिखर गया था | 

उससे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या होगा उसे लग रहा था कि बस अब मैं इस आर्थिक परिस्थिति को कभी ठीक नहीं कर पाऊंगा ! 

कालूराम की पत्नी उसके पास गई और कहा कि आप चिंता मत करो मुझे पता है कि आपके मन में क्या चल रहा है! 

कालू राम की पत्नी ने कहा, निश्चिंत रहो हमारे पास कई महीनों का राशन पड़ा है | मैंने थोड़े-थोड़े कर कर राशन‌ बचाती थी जिससे विकट परिस्थिति में काम आ सके ! 

यह सुनकर कालूराम के ऊपर से जो पहाड़ जैसा भार था वह तुरंत ही चला गया और उसे समझ आ गया कि थोड़ी-थोड़ी बचत अगर हम करें तो भविष्य में हमें परेशानियों से लड़ने की हिम्मत मिलेगी !


निष्कर्ष :-

यह सिर्फ कालूराम की कहानी नहीं है, यह हमारे जीवन की कहानी है कोरोना काल में हमें समझ आ गया है कि बचत बहुत ही जरूरी है | जिन्होंने बचत करी थी उन्होंने अपने आप को संभाल लिया !

इस बात से हमें यह सीख मिलती है कि हम निर्णय लेंगे कि हम हर एक चीज का सदुपयोग करेंगे चाहे वह पैसा हो या समय हो ! भविष्य में हम प्रबलता से परेशानियों का सामना कर सके ना कि दुर्बल होकर रोते रहे । ओम शांति।

शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

🏵 कहानी 🏵 श्राद्ध खाने नहीं आऊंगा कौआ बनकर

"अरे! भाई बुढापे का कोई ईलाज नहीं होता . अस्सी पार चुके हैं . अब बस सेवा कीजिये ." डाक्टर पिता जी को देखते हुए बोला .

"डाक्टर साहब ! कोई तो तरीका होगा . साइंस ने बहुत तरक्की कर ली है ."

"शंकर बाबू ! मैं अपनी तरफ से दुआ ही कर सकता हूँ . बस आप इन्हें खुश रखिये . इस से बेहतर और कोई दवा नहीं है और इन्हें लिक्विड पिलाते रहिये जो इन्हें पसंद है ." डाक्टर अपना बैग सम्हालते हुए मुस्कुराया और बाहर निकल गया .

शंकर पिता को लेकर बहुत चिंतित था . उसे लगता ही नहीं था कि पिता के बिना भी कोई जीवन हो सकता है . माँ के जाने के बाद अब एकमात्र आशीर्वाद उन्ही का बचा था . उसे अपने बचपन और जवानी के सारे दिन याद आ रहे थे . कैसे पिता हर रोज कुछ न कुछ लेकर ही घर घुसते थे . बाहर हलकी-हलकी बारिश हो रही थी . ऐसा लगता था जैसे आसमान भी रो रहा हो . शंकर ने खुद को किसी तरह समेटा और पत्नी से बोला - 

"सुशीला ! आज सबके लिए मूंग दाल के पकौड़े , हरी चटनी बनाओ . मैं बाहर से जलेबी लेकर आता हूँ ."

पत्नी ने दाल पहले ही भिगो रखी थी . वह भी अपने काम में लग गई . कुछ ही देर में रसोई से खुशबू आने लगी पकौड़ों की . शंकर भी जलेबियाँ ले आया था . वह जलेबी रसोई में रख पिता के पास बैठ गया . उनका हाथ अपने हाथ में लिया और उन्हें निहारते हुए बोला -


"बाबा ! आज आपकी पसंद की चीज लाया हूँ . थोड़ी जलेबी खायेंगे ."
पिता ने आँखे झपकाईं और हल्का सा मुस्कुरा दिए . वह अस्फुट आवाज में बोले -
"पकौड़े बन रहे हैं क्या ?"

"हाँ, बाबा ! आपकी पसंद की हर चीज अब मेरी भी पसंद है . अरे! सुषमा जरा पकौड़े और जलेबी तो लाओ ." शंकर ने आवाज लगाईं .
"लीजिये बाबू जी एक और . " उसने पकौड़ा हाथ में देते हुए कहा.

"बस ....अब पूरा हो गया . पेट भर गया  . जरा सी जलेबी दे ." पिता बोले .
शंकर ने जलेबी का एक टुकड़ा हाथ में लेकर मुँह में डाल दिया . पिता उसे प्यार से देखते रहे .

"शंकर ! सदा खुश रहो बेटा. मेरा दाना पानी अब पूरा हुआ ." पिता बोले.

"बाबा ! आपको तो सेंचुरी लगानी है . आप मेरे तेंदुलकर हो ." आँखों में आंसू बहने लगे थे .

वह मुस्कुराए और बोले - "तेरी माँ पेवेलियन में इंतज़ार कर रही है . अगला मैच खेलना है . तेरा पोता बनकर आऊंगा , तब खूब  खाऊंगा बेटा ."

पिता उसे देखते रहे . शंकर ने प्लेट उठाकर एक तरफ रख दी . मगर पिता उसे लगातार देखे जा रहे थे . आँख भी नहीं झपक रही थी . शंकर समझ गया कि यात्रा पूर्ण हुई . 
तभी उसे ख्याल आया , पिता कहा करते थे -

"श्राद्ध खाने नहीं आऊंगा कौआ बनकर, जो खिलाना है अभी खिला दे ."

माँ बाप का सम्मान करें और उन्हें जीते जी खुश रखे। 

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

माटी के लाल


ऑफिस के रास्ते पर बीते कुछ दिनों से कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था। आज ऑफिस जाते समय मेरी निगाहें उस कंस्ट्रक्शन साईट की तरफ गयीं। कंस्ट्रक्शन का काम करने वाले अपना अपना काम कर रहे थे और उस से थोड़ी ही दूर रेत के ढेर के पास एक छोटा बच्चा मिट्टी में खेल रहा था। वह उन मज़दूरों में से किसी एक मजदूर का बेटा लग रहा था। बच्चा बहुत मगन हो कर मिट्टी में खेल रहा था। एक मजदूर औरत रेत का टोकरा उठाते हुए बड़े ही लाड़ से उस बच्चे को देख रही थी।



शायद वह उस बच्चे की माँ थी। मिट्टी में खेलते हुए बच्चे को देखकर मुझे DDA फ्लैट में रहने वाली Mrs Sharma की याद आई जो क्लोरीन की गोली पानी में घोल कर अपने बेटियों को देती रहती थी। और भी न जाने क्या क्या करती थी लेकिन फिर भी शिकायत करती रहती थी की बेटियाँँ हमेशा बीमार पड़ती है। उस बच्चे को देखकर लगा जैसे मजदूरों के बच्चे बीमार होना शायद afford नहीं कर सकते...